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Click hereमाँ औरशशांक भैय्याका पहली मिलन
आदरणीय संपादक जी,
आपने मेरी 'माँ और शशांक भया' कहानी को प्रचुरित किये है उसके लिए मई आप का धन्यवाद् करती हूँ। लेकिन एक छोटीसी गलती होगयी है मेरे से... वह क्या है की मैंने एक कहानी भेजने की जगह एक और ही कहानी भेजि है। वास्तव में जो कहानी प्रचुरित हुई उसका नाम है 'में हेमा और नानाजी' है! हो सके थो इस गलती को सुधारें। 'माँ और शशांक भैय्या' नाम की कहानि को अब नाम बदल कर "माँ और भैय्या की पहली मिलन शशांक" रखी है। कृपया ध्यान रखे। इस गलती के लिए मई आप के और पाठकों के क्षमा पार्थी हूँ।
स्वीट सुधा 26
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माँ औरशशांक भैय्याका पहली मिलनस्वीट सुधा 26माँ औरशशांक भैय्याका पहली मिलन
हेमा नंदिनी
दोस्तों! मैं हूँ हेमा नंदिनी (हेमा) जिस से आप मेरे पहले दो कहानियों में मिलचुके है 1) मैं और शशांक भैय्या 2) मेरे शशांक भैय्या, जिस पर आप ने जो कमेंट देकर मुझे बढ़ावा दिए है उसकेलिए धन्यवाद्! आईये अब मेरी तीसरी अनुभव की ओर चलें। वास्तव में यह मेरे अनुभव नहीं है... यह शशांक भैय्या की अनुभव है। जिसे उन्होंने मुझे सुनाया और मैं आप को सुना रही हूँ।
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शशांक भैय्या से मौज मस्ती करके डेड महीना गुजर चूका है! फिर से भैय्या से वैसे मौज मस्ती करने का मुझे मौका नहीं मिला! भैय्या को हमारे यहाँ आकर बहुत दिन गुजर गए है, इस बीच पापा आए और सात आठ दिन रहकर चले भी गए है! उन दिनों माँ की चेहरे की दमक देखने लायक थी। जाते जाते उन्होंने मेरी दोनों बहनों को दादाजी के यहाँ छोड़ने ले गए है! वैसे मुझे भी जाना था लेकिन मेरे Inter II year के क्लासेज आरम्भ होने की वजह से मैं जा नहीं पाई। अब घर में मैं और माँ ही रह रहे है।
"माँ बहुत दिन हो गये हैं भैय्या नहीं आए..." मैं माँ से पूछी। "मालूम नहीं बेटा..शायद परीक्षएं होंगी" माँ ने कहा।
इसके कुछ दिन बाद, उस दिन शनिवार था। मेरे कॉलेज को छुट्टी थी। कोई ग्यारह बजे माँ अपने एक सहेली से मिलने चली गयी। शाम पांच छह बजे से पहले नहीं आने वाली थी। चांस अच्छा है सोंच कर मैंने भैय्या को फ़ोन किया और घर आने को कहा।
मैं भैय्या के इंतज़ार में अपनी बुर को दबाती बैठी थी। एक बजे के समय भैय्या आगये है। दरवाजा खोलते ही मैं उनसे जोर से "भैय्या" कहकर लिपट गयी।
"अरी हेमा इतनी उतावली क्यों है?" भैय्या पूछे। "नहीं तो.. इतने दिन होगए है.. तुम आकर... मैं तुम्हारा इंतज़ार कर रही थी।" मैं नखरे करती बोली। "तुम या तुम्हारी यह मुनिया.." कहते मेरे लहंगे में हाथ डाले। मैं शर्म से लाल हो गयी और लजाते बोली "जाओ भैय्या आप भी..."
"अच्छा चलो अंदर चलते है" मेरे कमर के गिर्द हाथ फेरते कहे। हम बहार का दरवाजा बंद कर अंदर चले। इसके बाद पूरा एक घंटे तक हमारा चूमना, चाटना और असली काम, अरे भाई वही.. चुदना चला। भैय्या ने मुझे दो बार चोद कर चार बार मेरी पानी निकाले। फिर हम दोनों साफ़ सफाई कर आराम से बिस्तर पर एक दुसरे के बाँहों में बैठे।
"भैय्या " मैं बुलाई। "ऊँ। .." "तुम मझे तुम्हारी और मम्मी की किस्सा सुनाने वाले थे" मैं पूछी। "तुम जान ना क्यों चाहती हो?"
"बस युहीं... हम उम्र के लड़को लड़कियों से आकर्षित होना आम बात है... लेकिन माँ.. वह तो तुम्हारे से कम से कम 20 साल बड़ी है, और ऊपर से तुम्हरी मौसी है.. तो तुम दोनों में कैसे जमी...?"
भैया कुच देर सोचते रहे और फिर बोलने लगे.....
यह किस्सा कोई आठ नौ महीने पहले की है। मैं फर्स्ट ईयर में था। तब भी मैं यहाँ हर आठ दस दिन में आता था। एक दिन मैने देखा की मौसी के साड़ी की पुल्लू कंधे से फिसल गयी है उनके बड़ी बड़ी वजनी चूचियां ब्लाउज के अंदर से बहार छलकने को थे। उन चूचियों को देख कर मेरा मन में अजीब सी गुद गुदी सी होने लगी। ऐसे ही दो तीन बार हुआ था। मौसी बहुत ही केयरलेस रहती थी और मुझे उन्हें देखने का अच्छा चांस मिलता था। तब तक मैं MILF की कहानियां अंतरजाल (internet) में पढने लगा और मेरा मन मौसी को करने को चाह रही थी! मेरे मुन्ना तन कर कड़क हो जाता था।
"यह MILF क्या है?" मैं पूछी.
"MILF .. यानि Mother I would Like to Fuck भैया ने मुझे उसका मतलब समझाए।
यहाँ आना और हॉस्टल जाकर मौसी के नाम पर मूठ मारना ये ही काम था मेरा। कभी कभी तो सारी रात मौसी को चोदने स्वप्न देख ता था। लेकिन आगे कैसे बढ़ू.. और मौसि मानेगी क्या.. मम्मी, पापा को पता चले तो। ..ऐसे ही उदेढ़बुन मे रहता था। लेकिन यहाँ आना नहीं छोड़ा। फिर एक दिन जब मैं आया तो मौसी अकेली थी। तुम लोग कोई नहीं थे। सब फर्स्ट शो देखने गये थे। उस रात आठ बजे मौसी ने मुझे खाने को बुलाया। मौसी की ख़यालों मे मुझे खाने में मन नहीं लग रहा था। मैं इधर उधर हाथ चला रहा था।
"शशांक बेटे यह क्या खाना है.. ऐसा खाते है क्या कोई.. तू तो बिलकुल नहीं बदला.. बचपन में भी ऐसे ही करता था। तब मैं तुम्हे अपने गोद में बैठकर खिलाती थी" मौसी बोली।
उस समय मुझे नहीं मालूम ऐसी हिम्मत मुझे कहाँ से आई, लेकिन मैंने मौसी से कहा.. "अब भी खिला दो न मौसी..." मैं बोला। बोलने को बोल दिया पर मैं तर तर कांप रहा था। मौसी ने मुझे गौर से देखी और फिर हँसते हुए बोली... "तू बड़ा शैतान बन गया रे..चल आ ..खिलाती हूँ" कही तो मेर कानों पर मुझे विश्वस नहीं हो रहा था।
मैं जब सकुचा रहा था तो बोली "आना..आता क्यों नहीं" कंधसे पकड़ क्रर मुझे उठाके अपने गोद में बिठाली। मैं मौसि की गुदाज जांघों के ऊपर बैठा था। उनका बयां हाथ मेरे कमर के गिर्द लपेटे थी। मौसि का हाथ सीधा पजामा के नीचे मेरे तने लंड पर थी। मुझे ढर लग रहा था की कहीं मौसि को उसका पता न चले..
मैं ढर भी रहा था ..और एन्जॉय भी कर रहा था। पीछे पीठ पर उनके वजनी चूचियों का दबाव। .. मेरे जांघोके नीचे मौसी के जांघो का गुदाज पन। ..उफ़.. मैं तो स्वर्ग में था। मौसी ने भी कोई जल्दी न दिखा कर पूरा आधे घंटे तक मुझे अपने गोद में बिठाकर खाना खिलाती रही। उस रात तो मई मौसी को स्वप्नों में खूब..."
इसके बाद मैं हर वीक आता था.. और मौका देखकर मैं उन्हें खाना खिलने को कहता.. और मौसी भी मेरी बात को मानकर अपने गोद में बैठाकर खिलाती थी। वैसे ही दो महीने गुजर गए। मैं गोद में बैठ केर खाना खाते मौसी की चूचियों का मजा लेने तक ही सिमित था। आगे बढ़ूँ या नहीं.. बढूं तो कैसे बढ़ूँ समझ मे नहीं आ रहा था।
फिर एक दिन ऐसा आया की मेरी लक पलट गयी। उस दिन कॉलेज को छुट्टी थी। मेरे सारे मित्र कोई पिकनिक मनाने गये है तो कोई टूर पर गया है। हॉस्टल में बैठकर बोर हो रहा था तो यहाँ चला आया। तुम सब लोग स्कूल चले गए। जब मैं दरवाजे की घंटी बजाया तो मौसी ने दरवजा खोला और कही "ओह शशांक बेटा मैं ही तुम्हे फ़ोन करने वाली थी की तू ही आगया"
"क्या बात है मौसी?" मैंने पुछा।
"तुम्हारी माँ ने फ़ोन किया है, कह रही थी की तू बहुत दिनों से ऑइल बात नहीं किया है तो तुझे ऑइल बाथ देने को कह रही थी।" साथ ही उनोहने कहा की "यह लो यह टॉवल लपेट कर बाथरूम में बैठो मैं तेल लेकर अति हूँ" मौसी ने मुझे छोटासा टॉवल दिया।
'यह कहाँ फँस गया मैं; सोचते मैंने टॉवल ली और बाथरूम में जाकर टॉवल लपेट ली। टॉवल बहुत छोटा था। बाँधने के बाद सामने से एक झिरि सि बन जाती थी।
थोड़ी देर बाद मौसी एक पुरानी साड़ी लपेटकर आई और मेरे सर पर तेल लगाने लगी। कुछ देर तो मैं सर झुका कर तेल लगवा रहा था, लेकिन जब् मैं सर उठाया तो सामने का नज़ारा देख कर मेरे होश उड़ गए। मौसी की साड़ी पूरा का पूरा उन के कंधे से फिसल चुकी थी और उनके बड़े वजन दार चूचियां मेरे आँखों के सामने थिरक रहे थे। मेरे आँखे चकिया चौंघ गयी। जैसे जैसे मौसी मुझे तेल कग रही थी वैसे वैसे उनकी मस्तियाँ हिल रहे थे। उसे देखते ही मारा जवान लेफ्ट रइट मारने लगा।
मैं अपने आप को संभल रहा था। मुझे वैसे ही बैठने को कह मौसी बहार चली गयी और फिर दस मिनिट बाद आते ही उन्होंने अपने साड़ी को घुटनों के खींच कमर में खोसली जिस से उसकी एक टांग घुटने के ऊपर तक उठ गयी और उस जांघ की झलक दिख रही थी। मौसी मेरे सामने ठहरकर मेरे सर पर पानी डाली और फिर शैम्पू लागा रही थी। शैम्पू के कारण मेरे आँखे जलने लगे और आँखे बंद करली मेरे हाथ आगे फैलाया। जैसी हाथ फैलाया मेरे हाथों में मौसी की दुद्दू आगये और में अनजाने में ही उन पकड़ कर जोर से दबाया।
मुझे आनंद आने लगा। ऐसी किसी चांस का मैं वेट कर रहा था तो आज मिल गयी।
आँखे जलने का बहाना कर मैं हाथ आगे बढ़ाकर उनकी चूची को दबा रहा था। फिर मैं मेरे टांग आगे बढाकर मौसि की गोरे मुलायम पिंडलियों को छूने लगा।
मौसी ने कुछ देर खमोश रही मुझे नहीं पता की वह जान भूजकर अनजान बनी या जानकर। जब मौसी ने मेरे सर पर पानी डाली थो सारा शेम्पू बह गया और मैं आंखे खोला तो आंटी की ब्लाउज पूरा गीला हो चुका था और उनकी काले दब्बे और घुंडियां मुझे साफ़ दिखने लगे।
मैं अपने आप को रोक नहीं सका और मेरे हाथ उनके कमर के गिर्द लपेट कर "मौसी उफ़.. कितने मस्त है तुम्हारी यह.." कह उनकी स्थनों को दबाया।
"आये शशांक येह क्या कर रहा है ..छी। ..छी... सब मेरी गलती है.. एक जवान लड़के को आयल बात देना... मैं भूल गयी थी की यह लड़का जवान हो गया है.. छ...छ सब मेरी गलती ..." कही और अपना माथा पीटते बहार आई।
मौसी को ऐसे नाराज दख कर मेरे तो प्राण निकल गए। 'भगवन..यह क्या होगया ..' सोचता मैं जल्द से मेरे बदन पर पानी डाला और बहार आगया।
मौसी अपने कमरे में बैठी थी। मैं धड़कते दिल से उनके पास गया और कहा "मौसी प्लीज... मुझे माफ़ कर दो, गलती हो गयी! यह सब अनजाने में हुआ है"। कहते मैने उनके हाथे पकड़ ली।
मौसी नाराज थो नहीं थी पर छिड़ छिड़ थी। "क्या अनजाने में हुआ है। .. तुमने क्या कहा... "मौसी उफ़.. कितने मस्त है तुम्हारी यह.." यह क्या अनजाने में कही बात है। मौसी ने अपना मुहं दूसरी तरफ फेरली. "प्लीज मौसी.. गलती हो गयी.. " मैं फिर गिड गिडाने लगा।
"जाओ शशांक, मुझे परेशान मत कर" कह कर मौसी ने फिर दूसरी ओर मुहं फेर ली। "नहीं मौसी... जब तक आप क्षमा बहन करोगे मैं यहाँ से नहीं जाने वाला... प्लीज... क्षमा कर दो ..." और मैंने उनके पैर पकड़ ली। ऐसे ही मैं बहुत देर तक उनसे गिड़ गिडा कर क्षमा मांगता रहा..फिर मौसी ने कहा.. अच्छा चल। .. क्षमा किया.." और अपने पैर खींच ने लगी।
"नहीं... मौसी.. ऐसे नहीं.. तुम अभी भी गुस्से में हो..." "नहीं रे.. मैं गुस्से में नहीं हूँ..." "फिर हंसो.. हँसते हुए कहो की क्षमा किया..."
मौसी मुसुकुरादी "अच्छा बाबा.. क्षमा किया.. अब खुश..:" मौसी के मुहं पर मुस्कराहट देखकर मुझे हिम्मत मिली और मैं बोला "थैंक्स मौसी"
"........ "
"मौसी " मैं मौसी को बुलाया। मौसी ने मझे देखि। "मुझे चाय चहिये..." मैं धीरे से पुछा।
मौसी ख़ामोशी से किचेन मे गयी और 10 मिनिट बाद चाय कप लेके आई और मेरे हाथों में देती बोली.. "ले अभीतक यह रोती सूरत क्यों बनाके रखा है.. अब तो हंस दे... तेरी यह रोती सूरत देखी नहीं जा रही है" वह एक मधुर मुस्कान के साथ बोली।
मैं हलक सा हंसा और एक घूंट पीकर कप को मौसी के होंठो के पास रखा। मौसी मुझे देख रही थी। "तुम्हे गुस्सा नहीं है.. इसमे से एक घूंठ लेलो... प्लीज" मैं याचना पूर्वक स्वर में पुछा।
वह हंस कर कप से एक घूंट पीली और बोली..."बस.. मुझे गुस्सा नहीं है.. यह बताने के लिए कुछ और करना है क्या?"
"सच मे करोगी?" मेरे में फिरसे एक आशा की किरण जागी। "हाँ...हाँ..क्या करना होगा?" उसने पुछा.. मौसी के मुखड़े पर हंसी देखकर मेरी हिम्मत और बढ़ गयी और मैं बोला.. "तो मुझे गोद में बिठाकर चाय पिलादो.." मैं पूछतो लिया लेकिन ढर भी लग रहा था को मौसी फिर से गुस्सा न हो जाये।
"चल आजा... तुझे खुश करने के लिए मुझे क्या क्या करने पढ रहे है" और उसने अपनी गोद फैलाई। में खुशी से दमकते चेहरे से मौसी के गोद में बैठा.. और उनके हाथो से चाय पीने लगा।
मुझे और हिम्मत मिली, फिर से मैं मौसी के गुदाज जांघो का गुदाजपन और गर्माहट महसूस कर रहा था। मेरे मुन्ना फिर से तन गया है। पहले मैं मौसी के वजनी छूछीयों को मेरे पीठ से पीछे दबाता था। लेकिन अब ऐसा करने का हिम्मत नहीं थी। मौसी ने पूरा चाय पिलाने के बाद पूछी "शशांक तूने ऐसा क्यों किया रे?"
मैं खामोश रह गया, कुछ जवाब नहिं दिया। मौसी ने फिर से वह प्रश्न दोहरा दी।
"सॉरी मौसी..." मैं धीरे से बोला। "मैंने सॉरी नहीं मांगी, ऐसा क्यों किया? यह पूछी" "प्लीज अब छोड़ो न मौसी इस बात को..."
"देख तू सीधा सीधा बतादे तूने ऐसा क्यों किया... अगर नहीं बोलै तो मई अभी तुम्हारे मम्मी पापाको तुम्हारि यह हरकत के बारे में फ़ोन करूंगी" कहते उन्होंने मोबाइल हाथ में ली।
मेरी तो पसीने छूट गए... प्लीज मौसी.. मत बोलो मैं बोलता हूँ.." मैं गिड गिडाया। मौसी मेरे बोलने का इंतज़ार कर रही थी।
"मौसी तुम फिरसे नाराज तो नहीं होगी..?""सच सच बतावोगे तो नहीं..." "मौसी.. तुम बहुत सुन्दर हो.. तुम्हे देखकर मेरे मन मचलता था.. इसीलिए..." "मैं।..और सुन्दर...क्यों इस बूढी का मज़ाक उडा रहा है रे..."
"सच में मौसी तुम बहुत सूंदर हो, देखो यह तुम्हारा काले लम्बे बल. हंस मुख चेहरा, मादक होंठ, और यह कमर की ख़म... और तुम.... " मई रुक गया। "मममम .. और क्या? रुक क्यों गए...?"
"तुम...तम..तू...' मुझमे हिम्मत नहीं हो रही थी। "यह तू..तू.क्या कह रहा हैरे..सीधा सीधा बोल..." "...तुम बहूत सेक्सी हो..." मैं हकलाते बोलै।
"क्या...?" मौसी के आँखों में आश्चर्य था। .."मैं तीन बच्चों की माँ तुझे सेक्सी दिख रही है...?" मौसी पूछी लेकिन उनके मुख पर गुस्सा नहीं थी.. हाँ.. आश्चर्य जरूर था।
"सच मौसी.. तुम बहुत सेक्सी हो... तुम्हारी मादकता.. और सेक्स का नशा ने देखो मुझे क्या बनाते है..." और मैं झट मौसी के गोद से उतरा.. और मेरे पजामा निचे गिराया। मेरे आठ इंच लम्बा मर्दानगी अपना फुल ताव में थी। उसे देखते ही मौसी का मुहं खुला का खुला रह गया... वह अचम्भेसे उसे दखते..."यह... यह..." वह हकला रही थी।
"हाँ मौसी.. मैं तुम्हे देखने के लिए ही हर वीक यहाँ अता हूँ.. और फिर हॉस्टल जाकर तुम्हारे नाम का मूठ मरता हूँ..." न जाने मुझ में इतना साहस कहाँ से आया.. पर यह सब मैं एक ही सांस में बोला।
मेरे उछलते लंड को मौसी अचंबे से देखरही थी!
उनके प्रतिक्रिया देख ने मैं उन्हें ही देख रहा था। नीचे मेरा औज़ार टुनकियाँ मार रही थी।
मौसी कुछ क्षण तो मेरे सूरत को फिर मेरे अकड़ते मुसाडे को देख रही थी। ऐसा तीन चार बार कर वह हामोशी से अपने ब्लाउज पर अपने हाथ लगाई और एक एक करके सारे हुक्स खोल कर ब्लाउज के दोनों चोरों को इधर, उधर करी। मेरे आँखों के सामने मौसी के सफेद, मुलायम और वजनी चूचियां पूरी नगनवस्ता में थे। उस के स्तनाग्र के बीच बड़ी गोल काले दब्बे और उस दब्बे के सेंटर में चाकलेटी रंग के कड़क निप्पल्स... ओह.. क्या नज़ारा था। मेरे जीवन मे पहली बार मेरे आँखों के सामने एक औरत की नंगी चूची था। अनजाने में ही मी मुहं में ढ़ेर सारा पानी आया और मई उसे गले के नीचे गटक ने लगा।
मौसी ने मुझे अपने ऊपर खींची और पीछे पलंग पर गिरी। उसने मेरे मुहं में अपना एक चूची को देकर मेरे सर को वहां दबाई। एक भूखे बच्चे की तरह मौसी के चूची को पीने लगा। "आआह्ह्ह..." उनके मुहाँसे एक चीत्कार निकली और मुझे और जोर से अपने स्तनों पर दबाली। मैं घटा घट उनकी दुद्दू को पी रहा था। इतने मे मौसी ने मेरे दूसरा हाथ को अपने दुसरे चूची पर ली। उनका उद्देश्य समझ कर मैं एक को चुभलाते दूसरे को दबा रहा था।
"शाशनक,..." मौसी बुलाई। मैं अपना मुहं वहां से निकले बिना ही 'हूँ" कहा। "तूने कभी किसी को किया है?" वह पूछी और मैं 'ना' में सर हिलाया। "कभी किसी का देखा है?" वह फिर से पूछी। मैं 'हाँ' में सर हिलाया। "किसका...?" मैं उनके स्तनों से सर उठाया और धीरे से कहा "श्वेता के..." "श्वेता... कौन.. तुम्हारी छोटी बहन..?" "हाँ, मैं उसे बाथ रूम में नहाते समय देखता था।
"उस से कुछ किया है?" मैंने ना में सर हिलाया। मौसी मुझे फिर से अपने चूची पर खींची, मैं फिर से उनके चूचियों पीते और खेलता रहा।
इस बीच मुझे नहीं मालूम मौसी ने कब अपने सड़ी और लहंगा उतर फेकि और उसने मेरे हाथ को अपने जाँघों के बीच लगाई। मैंने हाथ बढाकर मैसी की मन्मथ स्थान को छुआ। वह स्थान तो घने बालों से भरा था। मुझ में जोश ही जोश भर गया मौसी की ऐसी हरकत से। मैंने उँगलियों से वह कुरेदा.. मौसी वहां गीला थी। एक ऊँगली अंदर तक घुसा दिया। "मममम..मम" कहते अपनी कमर उछली!
मैं स्तन को चूसते नीचे उनकी खूब चूदि चूत में उंगलि कर रहा था। अंदर गर्माहट के साथ गीला पैन था। मैं उन्हें अपनी ऊँगली से फिंगर फ़क करने लगा।
ऐसे ही कुछ देर चली तो मौसी ने कुझे अपने ऊपर खींची और अपने जाँघे फैलादी।
अब मैं उनके जांघों के बीच मे था और मेरी हथियार मैसी के बुर के ऊपर ठोकर मार रही थी। मेरे सुपाडे को कुछ गीलापन महसूस हुआ और में मेरे उसको अंदर धकेला। वह अंदर नहीं गई बल्कि फिसल गयी। मैंने फिर से कोशिश किया और फिर से फिसल गयी, मुझे रास्ता नहीं मिल रहा था। मैंने मौसी की देखा तो वह हंस रही थी।
मुझे क्रोध आया और मैं रुट ने का बहाना कर दूसरी तरफ मुहं फेर लिया।
उसने हंसी और कही "तेरा यह रूठना तेरे इस लैंड से ही प्यारा है रे! और फिर से .कही.. "शशांक ततेरा यह तो तुम्हारे मौसाजी से भी प्यारा है रे... मुझे विश्वास ही नहीं होरा है है की तेरा इतना लम्बा और मोटा है.. यह तो सच में ही तुम्हारे मौसजी के जैसा ही है..." कहती वह झुकी और मेरे उसको अपनी मुट्टी में जकड़ी। उन्होंने मी अपने मुट्ठी में जकड़ा तो मुझे बहतु मज़ा आया। .. मैं ख़ामोशी से उन्हें देखता रहा।
मौसी ने मेरा पकड़ कर ऊपर नीचे करने लगीतो मैं बाग़ बाग़ होगया और हिम्मत करके उनके उरोजों को पकड़ा। .. मौसी मुझे देख कर हंसी.. उनका सारा नाराजगी गायब होगई.
वहां मेरे टांगो के पास घुटनों पर बैठे बैठे मौसी ने 'क्या' के अंदाज़ में आंखे उछली।
मैंने उन्हें उठाया और बिस्तर पर बिठाकर उनके मस्तियों के साथ खेलने लगा।
मौसी ने मेरे मुहं अपनी ओर कर मेरे होंठों को चूमी और फिर मेरे मुहं को अपने उरोजोंपर राखी। मैं फिर से मसि के चूचियों से खेलने लगा। मौसिने अपना हाथ हम दोनों के बीच लगाई और मेरे फुफकारते लंड को पकड़ का अपनी चूत मुहाने पर राखी और मेरे सुपडे को धीरेसे अंदर धकेली। मेरे सूपड़ा अंदर चला गया। अंदर एकदम भट्टी के तरह थी। "अब अंदर कर..." मौसी मेरे कानों के पास मुहं ले जाकर फूस फुसाई और मेरे नितम्बों पर अपन हाथ रख कर अंदर की ओर दबाई। मैं भी धीरेसे मेरे कमर को अंदर की ओर दबाया। मेरे पूरा का पूरा मौसि की अंदर के अंदर समागया।
कुछ देर रुक कर मौसी धीरे से बोली। "अब धीरे धीरे अंदर बहार करना.. जल्दी नहीं दिखाना". मैंने कमर ऊपर नीचे करने लगा. थोड़ी ही देर में मेरी स्पीड बढ़ गयी और अब मैं जोर जोर से मेरे लवडे को मौसी के अंदर बहार करने लगा। और ऊपर उनको चूम रहा था। चाट रहा था उनके स्तनों को मसल रहा था। मौसी भी मुझे चूम रही थी, काट रही थी, और अपनी कमार उछाल रही थी। यह मेरि यह मेरी पहली चुदाई थी, मैं ज्यादा देर टिक न सका।
"मौसी...उम्म्म..यह.." कह कर उन्हें मेरे बाँहों में दबोचे मैं ख लास होगया। मैंने कहानियों में पढ़ी थी की जयादा देर करनेपर औरत को सुख मिलती है, मैं तो पांच मिनिट भी नहीं कर सका.. "मैं शर्म से मुहं नीचे कर बोलै "सॉरी मौसी, मैं संभल नहीं सका" और मेरा मुहं लटक गया।
मौसी एक मादक हंसी हंसी और बोली "परवाह नहीं रे.. पहली बार ऐसा सबके साथ होता है। दिल छोटा न कर.. अबकी बार तू अच्छा करेगा.. ठीक" कह कर मुहे चूमि और उठ गयी। मैं भी उठकर साफ़ सफाई की!
इसके कुछ दिन बाद मौसी के बातों से मुझे यह पता चला की मौसी ने एक दिन मेरे खड़ा लंड देख किया और मौसाजी की अनुपस्थिति में अपनी प्यास भुजने का मौका समझ मुझे रिझाने के लिए ही अपना चूची दिखाना, मुझे गोद में बिठाना करती रही और फिर उस दिन आयल बाथ के बहाने अपने सुंदरता को दिखा कर मुझसे करवाई!
"शशांक यह बात किसी से कहना नहीं..यह हम दोनों के बेच एक राज़ है, समझ गए" कहकर किसीसे न कहने का प्रॉमिस कराई।
बस उसके बाद...
भैय्या अपनी कहानी ख़तम करे! मैं बहुत उत्तेजित होगई वह कहानी सुन कर और मैं एक बार फिर से भैय्या से अपनी चूत की प्यास बुझाई। भैय्या उस रात हमारे यहाँ ही रुके। उस रात मम्मी फिर से भैय्या के कमरे मे गयी। मुझे मालूम था वहां क्या होरहा यही... मैं ऊपर नहीं गयी.. अपने कमरे में अकेले रह कर अपनी मुनिया को सहलाता सो गयी!
तो दोस्तों यह थी मेरे शशांक भैय्या और मम्मी की पहली मिलन..
सोचती हूँ की मेरी मम्मी की यह गाथा आप को पसंद आई होगी! पसंद आई तो कमेंट जरूर भेजना! आपके कमेंट मुझे मेरे और अन्य अनुभव लिकने को प्रोत्साहित करते है..
अलविदा... आप की हेमा नंदिनी
समाप्त
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tu bhi kissi se chut mariti hai. mota lund chusna aur chut me zor zor se chudhwana mera bhi lund khara ho gaya