छाया - भाग 16

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छाया का हनीमून और पति से मिलन
4.2k words
4.45
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Part 16 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
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छाया का हनीमून

[मैं छाया]

हम सब होटल से वापस आ चुके थे और मैं सोमिल के घर जाने की तैयारी कर रही थी. कुछ पल के लिए अपनी मां, मानस और सीमा को छोड़ते हुए मेरे आंखों में आंसू आ गए थे. मेरी मां मेरी विदाई के समय दुखी थी हालांकि अब उनके जीवन में भी शर्मा जी के रूप में खुशियां आ चुकी थी. इसके बावजूद मुझे अलग करते समय उनकी आंखों में आंसू थे पर मानस भैया से अलग होना मेरे लिए बहुत कष्टदायक अनुभव था।

हम सोमिल के घर आ चुके थे कल रात की थकान मेरे चेहरे पर और शरीर पर स्पष्ट थी. मेरी राजकुमारी अभी भी फूली हुई थी। मुझे महसूस हो रहा था जैसे कल रात में उसके साथ कुछ ज्यादती हो गई थी. मैंने घर पहुंच कर स्नान लिया तथा अपनी राजकुमारी को आराम देने की कोशिश की.

उसने मानस भैया के राजकुमार के साथ जो सराहनीय प्रेमयुद्ध पिछली रात किया था उसके लिए उसे आराम देना जरूरी था.

रात में सोमिल मेरा इंतजार कर रहे थे या नहीं यह मुझे नहीं पता पर मैंने उनसे आज ना आने के लिए क्षमा मांग ली थी. उन्होंने भी इसे सहर्ष स्वीकार कर लिया था. मुझे लगता है सीमा के साथ उन्होंने भी छककर सुहागरात मनाई थी और वह भी आज आराम करना चाह रहे थे.

मैंने सोमिल के परिवार वालों के साथ वक्त बिताया. वो सब मेरे आने से बहुत खुश थे. सोमिल का छोटा भाई तो मुझे देखकर आश्चर्यचकित था. वह मुझसे बोला "भाभी, कोई इतना सुंदर कैसे हो सकता है."

मैं उसकी बातें सुनकर हंस पड़ी. अगले दिन मैं देर से उठी. उसी दिन शाम को हमें अपने हनीमून पर निकलना था. मुझे सीमा द्वारा कल ही पता चला था की मानस और सीमा भी हमारे साथ आ रहे हैं वो हमें अकेला नहीं छोड़ना चाहते थे. वैसे भी हमारा पिछला हफ्ता डरावना बीता था. मैं मन ही मन प्रसन्न थी. मानस और छाया का साथ मेरे लिए घर जैसा माहौल था. बस यूरोप की यात्रा और हमारा हनीमून दो नई चीजें मेरे साथ होने वाली थी. हम सभी के पास यूरोप का वीजा पहले से ही उपलब्ध था.

घर से एयरपोर्ट की तरफ जाते समय सोमिल मेरे साथ थे. पूरे ट्रिप में हमारी यात्राएं ज्यादा होनी थी इसलिए हम लोगों ने अपने बैग अलग-अलग पैक किए थे जिससे हम उसे केबिन में रख सकें और चेक इन एंड चेक आउट का समय बचा सके. सोमिल मुझसे बात करने में कतरा रहे थे पर सारी हकीकत उन्हें पता थी. मैंने स्वयं उन्हें सामान्य करते हुए अपने ऑफिस की बातें शुरू कर दी. वह मेरे सीनियर थे ही कुछ ही देर में हम घुल मिलकर बातें कर रहे थे. हमारी गाड़ी एयरपोर्ट पहुंच चुकी थी. मानस और सीमा हमारा इंतजार कर रहे थे. उन्होंने भी अपने-अपने बैग पकड़े हुए थे.

अगली सुबह हम पेरिस में थे. होटल पहुंचने के पश्चात एक अजीब सा प्रश्न मेरे मन में आया की कौन किसके साथ रुकेगा. यह कठिन स्थिति थी. साथ में रुकने का मतलब रात में एक साथ सोना था. मैंने सब कुछ भाग्य पर छोड़ दिया. वेटर पूछ रहा था की कौन सा बैग किस कमरे में रखना है. हम चारों में से इस बारे में कोई कुछ नहीं बोल पा रहा था. अंततः मुझे ही बोलना पड़ा मैंने वेटर से कहा

"दो अटैचिया एक कमरे में डाल देना और दो एक कमरे में. हम वहां आपस में देख लेंगे" मेरी यह बात सबको पसंद आ गई. सभी के चेहरे पर मुस्कान थी हमने लॉबी में बैठकर वेलकम ड्रिंक ली और अपने कमरों की तरफ चल पड़े. रास्ते में मैंने सीमा से बात कर ली. उसने सबके सामने कहा...

"जिसका सामान जिस कमरे में होगा वह उसी कमरे में रहेगा और सोयेगा भी" कहकर मुस्कुराने लगी।

मानस और सोमिल भी सीमा की बात समझ गए थे. उन्होंने भी हंसकर अपनी सहमति दे दी थी.

कमरे में पहुंचकर मैंने मानस का सामान अपने कमरे में पाया मैं समझ गई की ऊपर वाले की भी यही इच्छा है. मेरी राजकुमारी जो अब रानी बन चुकी थी खुश हो गई. मानस ने आते ही मुझे बाहों में ले लिया और मुझे चूमने लगे. मैंने जींस पहनी हुई थी वह मेरे नितंबों को सहला रहे थे पर जींस होने की वजह से उन्हें वह आनंद नहीं आ रहा था. मैंने उन्हें खुद से अलग किया और कहां आज रात सुहागरात पार्ट 3 मनाया जाएगा. वह खुश हो गए और मेरे स्तनों को सहलाते हुए हुए मेरी रानी तक पहुंच गए. जीन्स मैंने खोली या उन्होंने मुझे याद नहीं पर हम नग्न होकर बाथरूम में आ गए थे.

हम लोगों ने दो रातें पेरिस में गुजारी. मैंने और मानस में जी भर कर संभोग सुख को प्राप्त किया मेरी राजकुमारी अब पूरी तरह रानी बन चुकी थी. मेरे सारे अरमान पूरे हो चुके थे.

तीसरे दिन हम जिनेवा में थे. आज भी मानस ही मेरे भाग्य में आये थे. पर कुछ नया होने वाला था मेरी बायीं आख फड़क रही थी.

मैं सीमा

सोमिल के साथ पिछले 2 दिनों से संभोग का आनंद लेते हुए मुझे आनंद तो आ रहा था पर मेरे मन में कहीं न कहीं इस बात की ग्लानि थी की सोमिल के वचन की लाज रखते रखते मैं स्वयं संभोग का आनंद आने लगी थी।

हम दोनों एक दूसरे की बाहों में बाहें डाले बातें करते उसका राजकुमार मेरी रानी के अंदर अठखेलियां करता। हम पुराने दिनों को याद करते बीच-बीच में हम दोनों अपने अपने ख्यालों में खो जाते मेरे मन में मानस और छाया का अद्भुत प्रेम और उन दोनों के साथ बिताए पल याद आते सोमिल भी खोए खोए से रहते।

संभोग में एकाग्रता का विशेष महत्व है संभोग करते समय यदि आपकी एकाग्रता में कमी होती है तो संभोग का आनंद निश्चय ही कम हो जाता है।

मैंने सोमिल से पूछा

"क्या सोचने लगे?"

जैसे वह अपने ख्वाबों से निकलकर वास्तविकता में लौट आया हो

"कुछ नहीं, कुछ नहीं" प्रत्युत्तर में उसने अपने कमर की गति बढ़ा दी

"बताओ ना क्या सोच रहे थे?."

"अच्छा बाद में बता दूंगा"

वह मुझे लगातार चूमना शुरू कर चुका था। मेरे स्तनों को अपनी हथेलियों से सहलाते हुए वाह अपनी कमर की गति को लगातार बढ़ाये जा रहा था। मैं भी पूरी तत्परता से उसका साथ दे रही थी पर मेरे मन में अभी प्रश्न था जो अनुत्तरित था।

मैं अभी भी उतनी एकाग्र नहीं थी जितना अब सोमिल होने होने का दिखावा कर रहा था। मैंने फिर कहा

"जब तक मुझसे सच बताओगे नहीं मैं सम्भोग का आनद नही ले पाऊंगी तुम्हें ऐसे ही प्रयास करते रहना पड़ेगा।" मैं मुस्कुरा रही थी। उसने मुझे चूम लिया और कहा "सच बताऊं, मैं छाया के बारे में सोच रहा था। आज हमारे विवाह को कई दिन हो गए पर वह आज तक मेरी बाहों में नहीं आई मुझे उसे छूने का मन करता है"

"सिर्फ छूने की बात है तो अभी बुला देती हूँ"

सोमिल ने मेरे दोनों नितंबों को अपनी हथेलियों से पकड़ लिया और अपने राजकुमार की तरफ खींचा उसके राजकुमार का स्पर्श मेरे गर्भाशय के मुख पर हुआ. उसने कहा

"ऐसे छूने का मन करता है" हम दोनों हंसने लगे उसने छाया से संभोग की स्पष्ट इच्छा जाहिर कर दी थी. मुझे उसकी यह साफगोई अच्छी लगी और अब मेरी रानी अपना स्खलन कराने को तैयार हो गई। मैंने अपने कमर की गति उसकी गति से मिला ली और हम दोनों एक दूसरे को प्यार करते हुए कुछ देर में स्खलित हो गए।

मैंने उसे चूमते हुए कहा छाया से मिलन होगा और यह कार्य मैं स्वयं कर आऊंगी इसमें चाहे हमारी अटैचियां किसी भी कमरे में रहे। अटैचियों के नियम को वह जानता था सोमिल खुश हो गया था। मैं छाया की उसके पति से मिलन के लिए नियम तोड़ने को तैयार हो गई थी मुझे पूरा विश्वास था मैं गलत नहीं करने जा रही थी मुझे भी मानस की याद आ रही थी।

छाया प्यारी पत्नी

[मैं छाया]

मैं सीमा दीदी से मिलने उनके कमरे में पहुंची. वहां सोमिल बिस्तर पर लेटे हुए टीवी देख रहे थे. मेरी निगाहें सीमा दीदी को ढूंढ रही थी. पर शायद वह कमरे में नहीं थी. मैंने सोमिल से पूछा

"सीमा दीदी कहां है"

" दीदी या भाभी" सोमिल ने कहा .

मैं शर्मा गयी.

वह बोले

"आओ बैठो, वह मानस के साथ बाहर गई है एक-दो घंटे बाद आएगी" अब मैं निरुत्तर हो चुकी थी.

मैं क्या करूं मुझे समझ में नहीं आ रहा था. मैं बाहर भी नहीं जा सकती थी और यहां रुकने की मेरी हिम्मत नहीं पड़ रही थी. मेरी नजरें झुकी हुयीं थी. वह मेरी इस विषम स्थिति को पहचान गए. उन्होंने मुझे अपने पास बुला लिया. मैं बिस्तर के पास पड़े सोफे पर बैठ गयी. हम कई महीनों से एक दूसरे से हर तरह की बातें करते थे पर आज हमारे पास शब्द नहीं थे. न वह कुछ बोल पा रहे थे ना मैं . अंततः उन्होंने बात शुरू की " इस ट्रिप में सबसे अच्छा तुम्हें क्या लगा"

यह प्रश्न भी उतना ही कठिन था. फिर भी मैंने उत्तर दिया

"हम सब लोग साथ में आए हैं यही सबसे अच्छा है"

"छाया तुम मुझे माफ कर देना मैं अपने वचन से बंधा हुआ था" वो सुहागरात की बात कर रहे थे.

"इसमें आपकी गलती बिल्कुल भी नहीं थी. आपने जिस समय सीमा दीदी को वचन दिया था उस समय आप उन्हें बहुत प्यार करते थे और आपने अपने वचन को पूरा करने के लिए जो कुछ भी किया है मैं उसे गलत नहीं मानती" वो मेरी बातें सुनकर खुश हो रहे थे. उन्होंने मुझसे कहा

"तुम्हारे और मानस के बारे में मैं सारी बातें जानता हूं. मुझे सीमा ने सब कुछ बता दिया. तुम दोनों के साथ वास्तव में ज्यादती हुयी है. तीन चार वर्ष एक दूसरे के साथ व्यतीत करने के बाद समाज की मान्यताओं ने तुम दोनों को एक नहीं होने दिया" मैं उनकी बातें सुनकर खुश हो चुकी थी. उन्होंने मुझे अपने पास बुला लिया. वह मेरी हथेलियों को अपनी हथेली में लेकर छू रहे थे. मानस की तुलना में उनकी हथेलियां सख्त थीं. कुछ ही देर में उन्होंने कहा

"छाया पिछले तींन चार महीनों से मैं तुम्हे प्यार करने लगा था. मैं अपने वचन से बधा हुआ था इसलिए मैं चाह कर भी तुमसे प्यार का इजहार नहीं कर पा रहा था. मैं यह बात जानता था कि बिना अपना वचन पूरा किये मैं तुमसे विवाह नहीं कर पाउँगा." उनकी इन बातों से मैं धीरे धीरे मैं पिघलती जा रही थी और कुछ ही देर में मैं उनके और पास आ चुकी थी.

उन्होंने अचानक आगे बढ़ कर मुझे अपने आगोश में ले लिया और मुझे चूमने लगे मैं भी अपने प्यारे पति को चूम रही थी. आज मैं पहली बार सोमिल के इतने करीब थी। वह मेरे पति थे और प्रेमी भी पर उनके हिस्से में मेरा प्यार आज तक नहीं आया था।

उनके होंठ मेरे होंठों में आते ही मेरा प्रेम प्रदर्शित होने लगा। मेरी इस पहल का उन पर जबरदस्त असर हुआ था। उनकी कामोत्तेजना मेरी इस छोटी सी पहल से जागृत हो चली थी। वह मुझे अपने आलिंगन में लिए हुए सहलाए जा रहे थे उनके हाथ अब मेरे नितंबो तक आ चुके थे। कामुकता हावी थी। मैं भी मन ही मन उनसे संभोग के लिए तैयार थी। मेरी रानी ने प्रेम रस छोड़ना शुरू कर दिया था। वह भी अपने नए राजकुमार की प्रतीक्षा में थी आखिर आने वाला जीवन उसे इसी राजकुमार के साथ बिताना था। मानस भैया का राजकुमार उसका पसंदीदा था पर उससे मुलाकात की संभावना कभी-कभी ही थी। यह बात मेरी रानी जानती थी और मैं भी। परिस्थितियों को स्वीकार करने के लिए मैंने और मेरी रानी ने स्वयं को तैयार कर लिया था।

तभी दरवाजे पर आहट हुई मानस और सीमा कमरे में आ चुके थे.

मेरी जींस के बटन खुले हुए थे जिसे मैंने आनन-फानन में बंद करने का प्रयास किया पर सफल ना हो पायी। और सीमा ने मेरी स्थिति का अंदाजा लगा लिया था। तभी मेरी नजरें मानस भैया से मिल गई थी उन्होंने अपनी नजरें घुमा ली पर उनके चेहरे पर आई मुस्कुराहट मुझे शर्मसार कर गई थी मैं सर झुकाए हुए भागकर मानस के कमरे में चली गई। अजीब परिस्थिति बन गई थी मैं अपने ही पति से प्यार करने में शर्मा रही थी।

मैंने सीमा को सब कुछ बता दिया . उसने मुझसे कहा कि आज तुम्हें सोमिल के साथ ही रहना चाहिए.

"मुझे उनसे शर्म आ रही है यदि उन्होंने सुहागरात के बारे में पूछ लिया तब?"

"तब क्या तुम भी पूछ लेना?"

"दीदी आप भी वहां पर रहीये ना. मुझे लगता है आपकी उपस्थिति में मुझे इन सब सवालों से नहीं गुजरना पड़ेगा और एक बार जब वह मेरे संभोग सुख का आनंद ले लेंगे फिर मेरी शर्म और लज्जा में निश्चय ही कमी आ जाएगी"

सीमा ने हामी भर दी। मैं यह बात सुनकर प्रसन्न हो गयी. मैंने अभी कुछ दिन पहले ही सुहागरात का अनुभव लिया था और आज सीमा की उपस्थिति में अपने जीवन साथी के साथ सुहाग का आनंद लेने जा रही थी.

मैंने इसकी जानकारी मानस को भी दे दी वह इस बात के लिए तैयार हो गए. आज पहली बार उसकी प्यारी प्रेमिका और छोटी बहन अपने पति के साथ प्रेम क्रीड़ा करने जा रही थी.

[मैं सीमा]

मैंने और छाया ने मिलकर सोमिल को प्रसन्न करने की योजना बना ली थी. मैं सोमिल के साथ प्रेमालाप में लगी हुई थी. हम दोनों पूर्णता नग्न होकर एक दूसरे के अंग प्रत्यंग से खेल रहे थे. मैंने सोमिल से कहा

"आज मैं तुम्हें एक नया अनुभव कराऊंगी" यह कहकर मैंने अपने दुपट्टे से उसकी आंखों पर पट्टी बांध दी .

पट्टी बांधने के बाद मैंने छाया को अपने कमरे में बुला लिया. छाया सोमिल को पहली बार नग्न देख रही थी. उसकी नजर एकाएक सोमिल के राजकुमार पर पड़ी. उसकी आँखे खुली रह गयीं. उसने निश्चय ही उसे मानस के राजकुमार से तुलना की होगी. सोमिल इस तुलना में हमेशा प्रथम आता. वह मन ही मन प्रसन्न थी. छाया ने अपनी नाईटी उतार दी वह नग्न हो चुकी थी. मुझे सोमिल के साथ नग्न हिकर अठखेलियाँ करते देख उसकी रानी के होठों प्रेमरस से चमक रहे थे. मैंने इशारा करके पूछा तो उसने बताया की मानस भैया ने आने से पहले तैयारी करा दी. मैं यह सुन कर मुस्कुरा दी थी.

मैं सोमिल के राजकुमार को अपने एक हाँथ से सहला रही थी मेरा दूसरा हाथ छाया की रानी की को सहलाने लगा. उसका कोमल शरीर सोमील के इस राजकुमार को अपने अंदर समाहित करने के लिए उत्सुक था. शायद मानस ने छाया की रानी को चूसकर पहले ही उसे उत्तेजित कर दिया था जिससे उसे सोमिल का लिंग अन्दर लेने में आसानी हो.. मानस सच में छाया का ख्याल रखता था.

मैं अब सोमिल के चेहरे पर चुम्बनों की बौछार कर रही थी. वह मेरे स्तनों को छू रहा था. छाया मंत्रमुग्ध होकर यह प्रेमालाप देख रही थी. अपने पति को नग्न और मेरे साथ इस रूप में देखकर वह मन ही मन खुश हो रही थी. कुछ ही देर में उसने हिम्मत करके बिस्तर पर अपनी जगह बना ली. उन्होंने सोमिल से बिना संपर्क किए अपने दोनों पैर सोमिल के शरीर के दोनों तरफ कर लिए और धीरे-धीरे अपने शरीर को नीचे रहने लगी. उसकी कमर ठीक सोमिल के राजकुमार के ऊपर थी.

अंततः नव दंपति के राजकुमार और रानी बन चुकी राजकुमारी एक दूसरे के संपर्क में आ गए. छाया मेरी तरफ देख कर मुस्कुरायी और धीरे-धीरे अपनी कमर को नीचे करती गई सोमिल का राजकुमार छाया की रानी के अंदर प्रविष्ट हो रहा था. छाया की आंखों और चेहरे पर तनाव था. जैसे-जैसे वह कमर नीचे करती उसके चहरे पर तनाव बढ़ता. सोमिल के चेहरे पर खुशी स्पष्ट दिखाई पड़ रही थी उसे शायद एहसास नहीं था की आज छाया ही उसके राजकुमार को अपने आगोश में ले रही है. कुछ ही देर में छाया ने उसके राजकुमार को अपने अंदर समाहित कर लिया मैं आश्चर्यचकित थी छाया ने कितनी आसानी से सोमिल को अपने अंदर ले लिया था. और उसके चेहरे पर दर्द की अनुभूति हुयी तो थी पर उतनी नहीं जीतनी मैंने सोची थी. मैं इसी दर्द के समय उसके पास रहना चाहती थी ताकि उसे दिलासा दे सकूं.

मुझे एहसास हुआ शायद छाया का कोमल शरीर ज्यादा लचीला था. शायद उसकी रानी ज्यादा लचीली थी. राजकुमार पूरी तरह अंदर जा चुका था. छाया की जांघे अब सोमिल से सटने लगीं थी. मैं यह दृश्य देखकर मोहित हो रही थी. मैंने उन दोनों को एक हाथ छोड़ देना ही उचित समझा. मैंने अपनी नाइटी पहनी और छाया को चुंबन देकर बाहर आ गयी.

[मैं छाया]

मैंने अपने पति के राजकुमार को अपने अंदर समाहित कर लिया था मुझे अपने शरीर में पूर्ण भराव महसूस हो रहा था. सोमिल के साथ यह अनुभूति अद्भुत थी. पिछले चार महीनों में उनकी सौम्यता ने मुझे प्रभावित किया था और आज उनका राजकुमार मेरी रानी के आगोश में था. उनका शरीर भी मानस भैया जैसा ही गठीला था. मैं उनके शरीर को बहुत ध्यान से देख रही थी. उभरा हुआ सीना और सीने पर हल्के हल्के बाल सब कुछ आदर्श स्थिति में था. मैंने उनकी आंखों पर से दुप्पटा हटा दिया.

वह मुझे देखकर हतप्रभ थे. उन्होंने शायद उम्मीद नहीं की थी कि उनके राजकुमार को अपने आगोश में लेने वाली उनकी नई नवेली पत्नी थी. वह कुछ देर यूं ही मुझे देखते रहे. मेरे स्तनों पर की गई मेहंदी की सजावट अभी तक कायम थी. वह मेरे स्तनों को देखते रहे और खुश हो रहे थे. मुझे अब शर्म आ रही थी. मैंने अपनी नजरें झुका लीं थी. अचानक उन्होंने अपने हाथ से मुझे अपनी तरफ खींचा. धीरे-धीरे मैं उन पर बिछती गई. मेरे स्तन उनके सीने से टकराने लगे और मेरे चेहरा उनके चेहरे के पास आ गया. उन्होंने अपने दोनों हाथ से मेरे चहरे को पकड़ा और मुझे होठों पर चूम लिया और कहा

"मैं तुम्हें अपनी पत्नी के रूप में पाकर धन्य हो गया तुम वास्तव में फूल जैसी हो." मैंने उनको होठों पर चुंबन दिया. कुछ ही देर में हम एक दूसरे के आलिंगन में बध चुके थे. सोमिल को मुझसे ढेर सारी बातें करनी थी और मुझे उनसे ढेर सारा संभोग. मैंने अपनी कमर को हिलाना शुरू कर दिया. जैसे जैसे मैं अपनी कमर को हिलाती राजकुमार का तनाव बढ़ता जा रहा था . मुझे अब जाकर महसूस हो रहा था की सोमिल का राजकुमार कुछ ज्यादा ही बलिष्ट था. शायद मेरे अंदर प्रवेश करते समय वह अपने पूर्ण तनाव में नहीं था. मैंने अपनी गति बढ़ा दी सोमिल ने अपने हाथ मेरे नितंब पर रख लिए थे. वह उनकी कोमलता में खोये हुए थे. कुछ ही देर में मेरी राजकुमारी पूरी तरह स्खलित होने के लिए तैयार थी. उन्होंने मेरी मनो स्थिति जान ली थी. वह इस संभोग को यादगार बनाना चाह रहे थे. अचानक ही उन्होंने मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मेरे होठों को जोर जोर से चूमने लगे. पर इस दौरान उन्होंने रानी से अपने राजकुमार को बाहर कर दिया. मैं तड़प कर रह गयी. मुझे गुस्सा भी आया. मेरे अंदर पूरा खालीपन महसूस होने लगा. ऐसा लग रहा था जैसे किसी बच्चे से उसका लाली पॉप छीन लिया गया हो. रानी स्खलन के इन्तजार में थी. पर वह मुझे चूम रहे थे. चुमते चुमते उन्होंने मुझे पीठ के बल लिटा दिया. मैं समझ गई वह मेरे ऊपर आना चाहते है. मैंने उनका साथ दिया और अपनी जांघों के बीच जगह दे दी.

मेरी जाँघों और मेरी रानी को देखकर वह आश्चर्यचकित थे. मेरी कोमलता उन्हें आकर्षित कर रही थी. वो मेरी जाँघों पर हाँथ फेरते हुए कोमलता को महसूस करने लगे. रानी के होंठों को छूते ही उनसे उतेजना बर्दाश्त नहीं हुयी और उन्होंने मेरी रानी को चूम लिया. मैंने उनके सर को हटाया और अपने पास खीचा. मैं उनके चहरे को चुमते हुए बोली सब आपका ही है. वह बोले

"छाया तुम बहुत सुन्दर और कोमल हो"

" मैं या मेरी रानी?"

वह अपने राजकुमार को मेरी रानी के मुख पर रख चुके थे. उसे अन्दर प्रवेश कराते हुए उन्होंने कहा

"दोनों" राजकुमार रानी को फैलाते हुए अन्दर प्रवेश कर चुका था. वह दोनों हाथ से मेरे स्तनों को सहला रहे थे. उनका चेहरा मेरे समीप था और हम दोनों के होंठ सटे हुए थे. राजकुमार रानी के अंदर प्रविष्ट हो रहा था और रानी उसे अपने आगोश में ले रही थी. युवा राजकुमार रानी से कद काठी में बड़ा था. ऐसा लग रहा था जैसे रानी अपनी पूरी शक्ति से फैल कर राजकुमार के लिए जगह बना रही थी. मेरी कमर और मेरी जांघों के बीच एक अजीब किस्म का भराव महसूस हो रहा था.

सोमिल ने अपने राजकुमार को अब तेजी से आगे पीछे करना शुरू कर दिया. वह एक हाथ से मेरे नितंबों को दबाते तथा दूसरे हाथ से अपने शरीर को व्यवस्थित किए हुए थे.

कभी-कभी वह मेरे स्तनों को भी सहला देते. मैं आनद में डूबी थी. मेरी रानी अब इस स्खलित होने के लिए तैयार हो चुकी थी. सोमिल की रफ्तार लगातार बढ़ती जा रही थी. मैंने अपनी जाँघों को पूरी तरह फैला कर रखा था ताकि उनके राजकुमार के आवागमन को बिना दर्द के बर्दाश्त कर सकूं. मेरी भग्नासा पर लगातार रगड़ हो रही थी. अंततः रानी का स्खलन प्रारंभ हो गया. मेरी आँखे बंद थीं. मैंने अपनी जांघे और फैला दी तथा पैरों को ऊपर उठाया. मेरे मुह से आज भी निकल गया

"मानस भैया.........".

वह समझ गए कि उन्होंने अपनी रफ्तार और बढ़ा दी एवं मेरे स्तनों को चूसने लगे. मैं कांप रही थी और स्खलित हो रही थी. उन्होंने अपने राजकुमार को पूरी तरह अंदर कर दिया मेरी रानी फैल चुकी थी. अब उनके राजकुमार का उछलना शुरू हो गया था. मेरा स्खलन भी अंतिम बिंदु पर था. मैं भी उन्हें बेतहाशा चूम रही थी. मेरे पैर अब नीचे की तरफ आने लगे. उन्होंने अंतिम झटके से अपना वीर्य प्रवाह शुरू कर दिया था. वह बोले

"छाया मैं भी तुम्हें मानस भैया जैसा ही प्यार करूंगा."

उन्होंने मुझे चूम लिया.

वीर्य निकल कर मेरे पूरे शरीर पर गिर रहा था.

मेरे स्तन, मेरे गाल , मेरा पेट सब कुछ भीग गए.

होठों पर आई वीर्य की बूंदों को मैंने अपनी जीभ से चखा. मुझे मानस भैया और सोमिल में कोई अन्तर नहीं महसूस हुआ. अब वह दोनों ही मुझे प्यारे थे .

मेरे शरीर पर सोमिल की उंगलियों के कई सारे दाग पड़ चुके थे वह उन्हें सहला कर मिटाने की कोशिश कर रहे थे. वह मेरे पति थे उनका प्रेम रंग मेरे शरीर पर चढ़ चुका था वह मुझे चूम रहे थे.

कुछ देर बाद हम दोनों तैयार हो गए हमें शाम को बाहर घूमने भी जाना था. सीमा खुश थी। अब हम दोनों को किसी भी कमरे में आने जाने की स्वतंत्रता थी.

अभी हमारे हनीमून में चार-पांच दिनों का समय बाकी था यह मेरे और सीमा के लिए सबसे आनंददायक समय था. हम चारों आपस में खुल चुके थे. सिर्फ मानस और सोमिल ही आपस में सेक्स की बातें नहीं करते थे. पर वह दोनों हमसे खुलकर बातें करते थे. सीमा द्वारा उस दिन मुझे और सोमिल को मिलाने के बाद हम तीनों भी आपस में खुल चुके थे. सीमा ने अपनी उपस्थिति में ही मुझे सोमिल को सौंपकर हम तीनों के बीच का पर्दा उठा दिया था। सोमिल जानते थे उस दिन उनके साथ मेरा मिलन सीमा की बदौलत ही हुआ था.

अब अगले होटल में शिफ्ट होते समय हमारे लिए यह प्रश्न खत्म हो चुका था कि कौन किस कमरे में रहेगा. हम सब स्वतंत्र थे. एक कमरा मानस का एक कमरा सोमिल का रहता था. हमारी राते कहां गुजरेंगी यह हम पर निर्भर था. हम दोनों यह बड़ी आनंददायक स्थिति थे. वह दोनों भी हम दोनों के आने का इंतजार करते थे. कभी मानस के पास मैं जाती कभी सीमा. यही बात सोमिल के साथ भी थी. सोमिल से संभोग कर हम दोनों को उतनी ही खुशी होती थी. सोमिल के राजकुमार की कद काठी मजबूत थी पर मानस के साथ संभोग एक अद्वितीय सुख देता था. कभी-कभी हम दोनों सोमिल के पास चले जाते और कभी मानस के पास उन्हें पता था यदि दोनों मेरे पास है तो उनके साथी इंतजार कर रहे होंगे. हम चारों में पूरी समझदारी आ चुकी थी हम एक दूसरे का ख्याल रखते थे. तथा किसी की कोई भावना आहत न हो यह भी हमारे मन में रहता था. हमारे हर वैचारिक मतभेद को सुलझाने की जिम्मेदारी मेरी थी.

(मैं मानस)

धीरे-धीरे यूरोप ट्रिप खत्म हो रहा था और हम सब वापसी की तैयारी में थे. हमने माया आंटी और शर्मा जी के लिए बहुत सारे गिफ्ट लिए. पेरिस में घूमते समय मुझे सेक्स टॉयज की एक दुकान दिखाई दे गए उसमें अद्भुत खिलौने थे मैंने स्त्री और पुरुष दोनों द्वारा प्रयोग किए जाने वाले कई सारे खिलौने रख लिए हम चारों में से किसी को इसकी आवश्यकता नहीं थी पर मेरे मन में एक चेहरा था जिसे शायद इसकी आवश्यकता हो सकती थी।

सोमिल और सीमा के परिवार वालों के लिए भी हमने कई सारे उपहार खरीदे. हमने पिछले पखवाड़े में अपने वैवाहिक जीवन को इस कदर जिया था जैसे हम सब कल्पना करते थे. नियति के बनाए इस खेल में हमें दो दो प्रेमिकाए मिल गयीं थी. दोनों ही अद्भुत थीं. कामुकता और प्रेम उन दोनों में कूट-कूट कर भरे हुए थे. छाया ............वह तो साक्षात रति थी. उसे भगवान ने अद्भुत शरीर, अद्भुत कोमलता अद्भुत सहनशक्ति और प्रेम करने की असीम क्षमता दी थी. उसने हम तीनों को ही भरपूर सुख दिया था.

अगली सुबह हम वापस बेंगलुरु की फ्लाईट में थे.

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Anonymous
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1 Comments
AnonymousAnonymousover 3 years ago
Superb

Very nice series superb

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