छाया - भाग 18

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छाया का उपहार और नयी इच्छा।
3k words
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Part 18 of the 19 part series

Updated 06/10/2023
Created 12/14/2020
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अनुपम कलाकृति (छाया का उपहार)

(मैं मानस)

सुबह अपने ड्राइंग रूम में दो अद्भुत पेंटिंग देखकर मैं पेंटिंग बनाने वाले की तारीफ करने से खुद को रोक नहीं पाया अद्भुत पेंटिंग थीं सफेद रंग के कैनवास पर लाल और पीले रंग की प्रयोग से एक अद्भुत कलाकृति बनी हुई थी उस पेंटिंग के बीच में भी एक अजीब सी सुंदर आकृति दिखाई पड़ रही थी.

ऐसा प्रतीत होता था जैसे उस खूबसूरत कृति को सजाने के लिए अलग-अलग रंगों का प्रयोग किया गया था. दोनों ही पेंटिंग एक से बढ़कर एक थीं. मैंने छाया से पूछा कौन है यह कलाकार छाया के बोलने से पहले सीमा बोल पड़ी. दोनों ही पेंटिंग्स में आपका ही योगदान है. मैं समझ नहीं पाया मैंने उससे फिर पूछा

"पहेलियां मत बुझाओ सीमा. मुझे बताओ यह पेंटिंग किसने बनाई हैं " सीमा और छाया दोनों हंस पड़े. मैं मासूम बच्चे की तरह उन दोनों को देख रहा था और वह दोनों मुस्कुरा रहीं थी. छाया मेरा हाथ पकड़ कर एक पेंटिंग के पास ले गई और बोली यह आपकी और सीमा भाभी की पेंटिंग है. इस चादर के टुकड़े को याद कीजिए और बीच में बनी आकृति को पहचानिये . यह सीमा दीदी के कौमार्य भेदन की निशानी है. पेंटिंग के केंद्र में आपको सीमा दीदी की राजकुमारी का रक्त मिलेगा. मेरी खुशी की सीमा न रही मुझे समझते देर न लगी कि अगली पेंटिंग मेरी और छाया की सुहागरात की निशानी थी. मैने अपनी दोनो अप्सराओं को गले लगा लिया मैं इस अद्भुत कलाकृति से बहुत प्रभावित था.

छाया ने सीमा के जन्मदिन पर अनोखा उपहार दिया था. मैने छाया को अपनी गोद मे उठा लिया। जब तक कि मेरे होठों से चूमने के लिए उसके गालों तक पहुंचते मेरी नजर सोमिल पर चली गई वह दरवाजा खोलकर हाल में प्रवेश कर रहा था मैंने छाया को तुरंत ही अपनी गोद से उतार दिया। सोमिल ने हमें इस हाल में देखकर वापस दरवाजा बंद कर दिया और रूम में जाने लगा। सीमा ने उसकी मनोदशा भाप ली थी। वह जाकर उसे बुला लाई और पेंटिंग दिखाने लगी वह पेंटिंग की दिल खोलकर प्रशंसा कर रहा था। पेंटिंग के राज को राज रखना उचित था। हम तीनों भी पेंटिंग बनाने वाले की तारीफ कर रहे थे।

माया जी का खुशहाल परिवार

(मैं माया)

घर की कॉल बेल बजते ही मुझे अंदर से मानस की आवाज सुनाई पड़ी

"लगता है माया आंटी आ गई" कुछ ही देर में दरवाजा खुला. मैं छाया को देखकर आश्चर्यचकित थी. मुझे लगा वह आज ही यहां आई थी वह बहुत सुंदर लग रही थी. घर के अंदर प्रवेश करते ही मुझे मेरा खूबसूरत उपहार मिल चुका था छाया के चेहरे की खुशी बता रही थी कि का विवाहित जीवन सुखमय था.

अंदर पहुंचकर सोमिल ने मेरे पैर छुए। मानस मैं भी मेरे पैर छूने की कोशिश की पर मैंने मानस को बीच में ही रोक लिया।

मैंने सीमा को गले से लगा लिया आज उसका जन्मदिन था. शर्मा जी भी हाल में खड़े थे सभी बच्चों ने उनका भी अभिवादन किया. मैं और शर्मा जी अपने कमरे में चले गए.

आज शाम को हमें सीमा की जन्मदिन की पार्टी में शरीक होना था जो एक पांच सितारा होटल में रखी गई थी मैं और शर्मा जी दोनों ही सफर की थकान से चूर थे.

शाम को पांच सितारा होटल में छाया और सीमा को खूबसूरत कपड़ों में देखकर मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मेरी बहू और बेटी दोनों अप्सराएं थी. उन दोनों ने मानस के जीवन में वो रंग भरे थे जो एक पुरुष को कल्पना में ही नसीब होते है.

सोमिल छाया को पाकर निश्चय ही धन्य हो गया होगा ऐसा मेरा अनुमान था. सोमिल और मानस अपनी-अपनी पत्नियों के साथ टेबल पर बैठे थे मैं और शर्मा जी भी उनका साथ दे रहे थे. हम सभी अत्यंत प्रसन्न थे हमें अपने जीवन के सारे सुख मिल चुके थे. शाम को होटल से आने के बाद छाया और सीमा अपने-अपने पतियों को लेकर कमरे में जा चुकी थीं. मैं भी शर्मा जी को लेकर अपने कमरे में आ गयी. आज हमारे घर में दिवाली थी तीनों ही पुरुष आज पूरी तरह संभोग के लिए आतुर थे.

हम तीनों स्त्रियों भी उनकी कामुकता को शांत करने और अपना सुख लेने के लिए तैयार थीं.

सुबह उठकर मैं मानस के कमरे से सीमा को बुलाने गई दरवाजा नाक करने के बाद अंदर से छाया की आवाज आई "सीमा दीदी आ रही हूं" मैं छाया की आवाज सुनकर दंग रह गई।

मानस के कमरे में छाया थी यह मैं सोच भी नहीं सकती थी. मैंने बिना कुछ बोले इंतजार किया छाया ने दरवाजा खोला वाह एक पतली सी पारदर्शी नाइटी पहनी हुई थी जो उसके शरीर को ढकने में पूरी तरह नाकाम थी.

उसके स्तन स्पष्ट दिखाई पड़ रहे थे नाइटी बड़ी मुश्किल से उसकी नितंबो तक पहुंच रही थी मेरी छाया अद्भुत कामुक लग रही थी पर वह मानस के कमरे से निकली थी. यह मेरे लिए आश्चर्य का विषय था।

मैं उससे यह भी नहीं पूछ पाई कि अंदर सीमा है या नहीं.उसे इस अवस्था में देखकर मैं मानस और उसके संबंधों को लेकर आश्चर्य में थी। कुछ ही देर में सीमा सोमिल के कमरे से निकलती हुई दिखाई पड़ी। मैं शर्म से पानी पानी हो रही थी. मैंने उन दोनों को उसी स्थिति में छोड़ दिया और अपने कमरे में चली गई.

मेरी धड़कन तेज थीं। छाया और सीमा ने अपने-अपने पतियों को खुश करते हुए जीवन जीना सीख लिया था. अब वह दो नहीं चार थे.

छाया को मानस का साथ इस प्रकार आगे मिलता रहेगा यह सोचकर मैं बहुत खुश थी. अब मैने उन चारों का आपस में एक साथ रहना स्वीकार कर लिया था.

कुछ देर बाद मैं वापस हाल में आई और सामान्य होते हुए बातें करने लगे. सोमिल और मानस भी तब तक हॉल में आ चुके थे

छाया के चेहरे पर खुशी के भाव थे और मानस के भी। सीमा और साहिल भी खुश लग रहे थे. भगवान ने उन चारों को इतनी अच्छी समझ और एक दूसरे को प्यार करने की इतनी शक्ति दी थी यह एक वरदान था. मेरा परिवार खुशहाल था और मैं भी शर्मा जी के साथ जिंदगी का लुफ्त ले रही थी. मैंने ऊपर वाले से अपनी कृतज्ञता जाहिर की और किचन में खाना बनाने चल पड़ी.

(मैं मानस)

छाया के साथ हुए नए संभोग ने मेरे मन में छाया के प्रति एक नयी किस्म की कामुकता को जन्म दिया था। छाया को मैंने किशोरावस्था से लेकर इस अद्भुत यौवन तक अपने हाथों से बड़ा किया था। उसके स्तनों, जांघों, नितंबों और पूरे शरीर की मैने इतनी मालिश की थी कि मुझे उसके हर अंग से प्यार हो गया था। पर इन पांच छह महीनों में साहिल के साथ रहकर वह और जवान और कामुक दिखाई देने लगी थी।

उसका चेहरा अभी भी मासूम और प्यारा था पर शरीर अत्यधिक कामुक हो चला था वह संभोग की देवी बन चुकी थी ऐसा लगता था यदि उसके साथ पूरी उत्तेजना और उद्वेग से संभोग न किया जाए तो यह उसके कामुक शरीर का अपमान होता. जब भी मैं उसे डॉगी स्टाइल में देखता मेरी छाया जाने कहां लुप्त हो जाती और मेरे सामने संभोग के लिए आतुर मदमस्त नवयौवना दिखाई पडती. ऐसा प्रतीत होता जैसे उसे जी भर कर चो....**.कर ही उसके मदमस्त यौवन से न्याय किया जा सकता था..

छाया यह बात जान गई थी. दोपहर में ससुराल जाने से पहले एक बार वो फिर मेरे कमरे में आयी। छाया ने स्वयं ही डॉगी स्टाइल में आते हुए मुझसे कहा..

"लीजिए अब आप की छाया गुम हो गयी" उसने मुस्कुराते हुए अपना चेहरा बिस्तर से सटा लिया . मैं उसकी बात समझ गया था. नाइटी ऊपर उठाते ही सुंदर नितंबों के बीच से लार टपकाती रानी झांक रही थी। में एक बार पुनः पूरे उद्वेग और उत्तेजना से उसे चो...ना शुरू कर चुका था. जब भी मुझे उसका चेहरा दिखाई देता मेरी कामुकता प्यार में तब्दील हो जाती और मैं छाया के होंठों और गालों को चूमता हुआ उसकी रानी को अपने असीम प्यार से स्खलित कराने लगता. छाया मेरे लिए अब दो रूपों में उपस्थित थी. मेरे लिए उसके दोनों ही रूप उतने ही प्यारे थे. आखिर छाया तो छाया थी मेरी सार्वकालिक प्रियतमा. इन दो तीन दिनों के प्रवास में मेरे और छाया के प्रेम में नया रूप आ चुका था। वासना जवान हो रही थी पर प्यार अपनी जगह कायम था। जाते समय बो फिर रो रही थी में भी अपने आंशू न रोक सका और रुंधे हुए गले से कहा

"सोमिल का ध्यान रखना औऱ खुश रहना"

सोमिल हमारे प्यार को समझने लगा था।

छाया की नयी इच्छा.

(मैं छाया)

सीमा के जन्मदिन के बाद मैं अपने ससुराल आ चुकी थी इस बार मानस भैया के साथ गुजारे गये वक्त ने मेरे जीवन में हलचल मचा दी थी। इस बार उनके साथ किए गए संभोग में मैंने अलग किस्म की कामुकता महसूस की थी। सुहागरात और हनीमून के दौरान मानस भैया के साथ किए गए संभोग से यह बिल्कुल अलग था इसमें आनंद का अतिरेक था। उनके प्यार की तो मैं पिछले चार-पांच वर्षों से आदी थी पर उनका यह कामुक स्वरूप मुझे अत्यधिक प्रिय लग रहा था। मुझे कामुक शब्दों ( जैसे चो..ना, बू..., लं..) का ज्ञान तो था पर वह मेरी जुबान पर कभी नहीं आते थे मैं और मानस कभी-कभी उत्तेजना में राजकुमार और राजकुमारी शब्द का प्रयोग जरूर करते पर इस तरह की कामुक शब्दों का प्रयोग हमने कभी नहीं किया था. वह एक सभ्य और सुसंस्कृत पुरुष थे और मैं उनकी शिष्या। हमारे लिए यह कहीं से उचित नहीं था पर इस बार संभोग के दौरान मुझे इन कामुक शब्दों की अहमियत समझ आ रही थी। निश्चय ही ये शब्द उन्हीं उत्तेजक संभोग को दर्शाते होंगे।

मैने भी उस रात स्वयं को मानस भैया से चु..ते हुए महसूस किया था और इस चु...ई का जी भर कर आनंद लिया था।

कुछ दिनों बाद मुझे फिर वही सुख लेने के लिए इच्छा जागृत हुई। सोमिल के ऑफिस जाने के बाद मैंने मानस भैया को फोन किया "मुझे आपसे मिलना है"

"क्यों क्या हो गया?"

"कुछ नहीं मुझे आपकी याद आ रही है"

"अरे और आज तो ऑफिस भी जाना है"

"कोई बात नहीं आप लंच में मुझे मिल सकते है. मुझे आपसे कुछ बातें करनी है"

"ठीक है 1:00 बजे रेडिएंट होटल में मिलते हैं"

यह होटल हम दोनों के ऑफिस ठीक बीच में पड़ता था मैंने अपनी खूबसूरत ब्लैक स्कर्ट और ऑफिस कोट पहनी अपने बाल संवारे शरीर पर मानस भैया का पसंदीदा परफ्यूम लगाया और चल पड़ी अपनी चु.. चु....ने. (मुझे इन शब्दों को लिखते हुए हंसी आ रही थी) ऑफिस पहुंचने पर सब मुझे घूर रहे थे मैं आज जितनी सुंदर शायद उन्हें पहले कभी नहीं लगी थी। मेरी सहेली पल्लवी ने आखिर टोक ही दिया

"आज मानस से मिलने का प्लान है क्या?" उसे हमारी हकीकत मालूम चल चुकी थी. मैंने मुस्कुरा कर बात टाल दी. ऑफिस में दीवारों के भी कान होते हैं यह बातें कभी भी लीक हो सकती थी।

मैं दोपहर का इंतजार करती रही मेरी रानी भी प्रेम रस बहाते हुए इस मिलन के लिए तैयार हो चुकी थी। मैं समय से 10 मिनट पहले ही होटल पहुंच चुकी थी। मैंने रिसेप्शन पर जाकर शॉर्ट पीरियड के लिए एक कमरा बुक कर लिया और स्वयं डाइनिंग हॉल में आकर मानस का इंतजार करने लगी। मैंने मानस के लिए एक सुंदर गुलदस्ता भी ले लिया था। आज यह पहली बार हो रहा था जब कोई सुंदर नवयुवती स्वयं चु...ने के लिए सारी तैयारी स्वयं कर के आई थी और उसके प्रेमी को इस बात का आभास भी नहीं था। कामुकता और रचनात्मकता का मिलन एक अद्भुत अहसास देता है।

आज क्या होगा यह मुझे नहीं पता था पर मैं पूरी तरह तैयार थी। मानस को आते देखकर मैं खुश ही गयी। वह हमेशा की तरह मुस्कुराते हुए मेरे पास आये और मेरे हाथों को चूम लिया। इससे ज्यादा डाइनिंग हॉल में करना उनके लिए संभव नहीं था। हमारे होंठ मिलने के लिए फड़फड़ा रहे थे पर हम दोनों ने उन्हें काबू में कर लिया था। गुलदस्ता देख कर वो खुश हो गए और मुझसे पूछा

"छाया क्या बात हो गई?"

"आपसे मिलने को मन कर रहा था"

"ओहो यह बात है वैसे आज तुम कयामत लग रही हो" मैं शरमा गई. मैंने वेटर को बुलाया और फटाफट कुछ खाने का आर्डर कर दिया। आज संयोग से होटल के डाइनिंग हॉल में और कोई ग्राहक नहीं था। वो मुझे लगातार एक टक देखे जा रहे थे।स्तनों का उभार और बीच का क्लीवेज कुछ ज्यादा ही दिखाई दे रहा था। वो उनके आकर्षण का केंद्र बना हुआ था जिन स्तनों को उन्होंने अपने हाथों से जवान किया था वह आज उनसे मिलने के लिए अपना चेहरा दिखा रहे थे परंतु मेरे टॉप ने उन्हें काबू में रखा हुआ था। राजकुमारी अपना प्रेम रस एक बार फिर छोड़ रही थी। जब तक खाना खत्म होता हमारी सोसाइटी की एक महिला अपने पति के साथ अकस्मात डाइनिंग हॉल में आ गयी। उन्होंने हमें पहचान लिया और पास आकर कहा

"अरे वाह दोनों भाई बहन की जोड़ी एक साथ"

उसनेअपने पति से एक बार फिर हमारा परिचय करवाया। हमारा खाना खत्म हो चुका था। इस भाई-बहन के शब्द ने मेरे मन में एक बार फिर बगावत पैदा कर दी। हमने बिल पे किया। इसके पहले कि मैं मानस से मैं कुछ बोल पाती वो बाथरूम की तरफ चल पड़े और उनके पीछे पीछे में भी।

मैंने मानस से अपनी तैयारी के बारे में कुछ भी नहीं बताया था बाथरूम के दरवाजे पर पहुंचते ही मानस ने मुझे देखा और मुझे जेंट्स बाथरूम की तरफ खींच लिया। मैं हड़बड़ा गई मुझे उनसे यह उम्मीद नहीं थी। उन्होंने मुझे अपने आगोश में लिया और मुझे उठाए हुए अंदर ले आये। इस दौरान वह मेरे होठों को लगातार चूस रहे थे मैं चाह कर भी कुछ नहीं बोल पा रही थी उनकी उत्तेजना मुझे भी उत्तेजित कर चुकी थी। बेसिन के प्लेटफार्म की ठंडक का एहसास जब मेरे नितंबों को हुआ तब मुझे एहसास हुआ कि मैंने पेंटी नहीं पहनी थी। मैंने यह जानबूझकर किया था पर मैं स्वयं भूल चुकी थी।

मानस भैया का राजकुमार जाने कब बाहर आ चुका था। वह मुझे चूम रहे थे और राजकुमार अपनी रानी को तलाश रहा था। रानी के प्रेम रस में उसे तुरंत ही सही जगह तक पहुंचा दिया। मैने मानस भैया के मुख से छाया .....की कामुक आवाज सुनी। इसी आवाज के साथ उनका राजकुमार रानी में प्रविष्ट हो रहा था।आवाज इतनी मादक थी कि मेरी रानी ने अपना मुख स्वतः खोल दिया था।

उनकी कमर हिलने लगी। हमारी नजरें मिलते ही मेरी नजर शर्म से झुक गई।वह अपने होंठ मेरे होंठों से हटा चुके थे। और उन्होंने मेरे कान में कहा क्या सच में हम आदर्श भाई बहन हैं। उनके कमर की रफ्तार बढ़ती जा रही थी। मैंने भी प्रत्युत्तर में जवाब दिया यदि लोगों को लगता है तो ऐसा ही सही।मैने उन्हें चूम लिया और अपनी कमर भी उनकी गति से मिला ली।

कुछ ही देर में उन्होंने मुझे प्लेटफॉर्म से नीचे उतारा।अब मैं अपने दोनों हाथ प्लेटफॉर्म पर रखकर अपनी कमर को पीछे कर चुकी थी। मेरे दोनों नितम्ब खुली हवा में मानस भैया को निमंत्रण दे रहे थे। मेरी कमर झुकी हुई थी और स्तन लटके हुए थे। मैं पूरे कपड़ों में सुसज्जित थी। पर मेरी स्कर्ट के ऊपर उठते ही राजकुमारी होठों से लार टपकाते अपने राजकुमार का इंतजार कर रही थी. मैंने जानबूझकर अपना चेहरा मानस भैया से दूर कर लिया. मुझे उनसे उसी चु***यी की उम्मीद थी जो मैं सोच कर आई थी. मानस भैया ने मेरे मन की बात पढ़ ली थी उन्होंने अपने राजकुमार को रानी में प्रवेश कराया और तेजी से उसे आगे पीछे करने लगे. बीच-बीच में वह मेरे नितंबों को सहलाते कभी जोर से दबा देते मुझे पता था कि मेरे नितंबों पर दाग पड़ रहे होंगे पर उत्तेजना में मैं सब कुछ भूल कर अपनी चु...ई का आनंद ले रही थी. उनकी कमर की रफ्तार काफी तेज थी. राजकुमार पूरी गहराइयों तक उतर कर गर्भाशय को चुमने की कोशिश कर रहा था. मेरा चेहरा लाल हो चुका था इस अद्भुत आनंद की अनुभूति मुझे पहले कभी नहीं हुई थी.

मानस भैया के हाथ अचानक मेरे स्तनों पर आए और उनकी उंगलियों का तेज दबाव मेरे निप्पल ऊपर महसूस हुआ. मुझसे बर्दाश्त नहीं हुआ और मैं कांपते हुए स्खलित होने लगी. मानस भैया ने मेरा स्खलन पहचान लिया था वह मेरी नस नस से परिचित थे. इन्होंने अपनी कमर की गति और बढ़ा दी. उनके मुख से मेरी प्यारी ब**न......मेरी प्यारी छाया....की अत्यंत कामुक कराह मेरे कानों को महसूस हो रही थी. मानस भैया के राजकुमार का अंदर उछलते हुए वीर्य प्रवाह करना मुझे महसूस हो रहा था. आज मैंने पहली बार स्खलित होते समय उनकी आवाज सुनी थी. तूफान के थमने के बाद मानस भैया ने अपनी जेब से रुमाल निकाली और मेरी राजकुमारी के मुख पर रखते हुए अपने राजकुमार को बाहर निकाल लिया मैं भी उठ खड़ी हुई और अपनी जांघों के दबाव रुमाल को रानी के मुख पर व्यवस्थित किए रखा मानस भैया मुझे एक बार फिर चूम रहे थे. और मेरे बाल ठीक कर रहे थे. मेरे कपड़ों में कई सिलवटें आ चुकी थी.

मानस भैया ने कहा मेरी एक मीटिंग है मुझे जाना होगा मेरी प्यास बुझ चुकी थी मैंने उन्हें विदा कर दिया. होटल का कमरा मेरी राह देख रहा था मेरे कपड़ों में सलवटे थी मैं होटल के कमरे में जाकर आराम करने लगी. मैंने अपने कपड़े प्रेस कर वही टांग दिए थे होटल के सुंदर बिस्तर पर नग्न होकर लेटे रहने से मेरी कामुकता एक बार फिर जाग गयी. मैं मानस को तो फोन नहीं कर सकती थी पर मेरे पति को भी इस तरह सजे धजे कमरे में सेक्स करना पसंद था. मैंने उन्हें फोन कर दिया वह एक-दो घंटे बाद होटल में आ गए और हमने जी भर कर सेक्स का आनंद लिया. मेरी रानी आज खुश थी उसने अपने करण अर्जुन दोनों से मुलाकात कर ली थी औऱ दोनो को जी भरकर प्यार किया था.

मैं थकी हुई थी पर खुश थी. सोमिल के साथ आते समय मैं अपनी खुशकिस्मती पर भगवान के प्रति कृतज्ञ हो रही थी और मानस भैया और सोमिल की खुशी के लिए प्रार्थना कर रही थी. हम घर पहुंच चुके थे. अपने कपड़े उतारते समय मैंने मानस भैया का रुमाल अपनी जेब में पाया जो हमारे प्रेमरस से तृप्त था. मैंने उसे सहेज कर अपनी अलमारी में रख लिया यह एक अद्भुत मिलन की निशानी बन चुका था.

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