जीवन-ज्योति

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समय तेजी से बीतने लगा हम दोनों मामा के यहां बीच-बीच में जाते और अपने जगत के साथ खेलते धीरे-धीरे वह 1 साल का हो गया. अगले कुछ ही दिनों में मैंने ग्रेजुएशन पूरा कर लिया और रजनीश से विवाह कर लिया. मैं और रजनीश जगत को लेने के लिए मामा के घर जा रहे थे तभी केदारनाथ वाली घटना हो गयी.

आकाश में बादल फटा था प्रकृति ने अपना रौद्र रूप दिखाया था. बादल फटने से नदी के आसपास के गांव बह गए मेरे मामा और हमारा प्यारा जगत प्रकृति के कहर के आयी उस आपदा में जाने कहां गुम हो गया. हम अपने मामा के घर से कुल 10 - 15 किलोमीटर ही दूर थे. पर उनके घर तक पहुंचने कि अब कोई संभावना नहीं बची थी. मैं और रजनीश तड़प रहे थे और निष्ठुर नियति को कोस रहे थे.

मेरा ध्यान संभोग से बट गया था. रजनीश के लिंग को अपनी जांघों के बीच जगह तलाशते देखकर मैं वास्तविकता में लौट आयी. मैंने ज्योति को याद किया निश्चय ही वह आज संभोग सुख ले रही होगी. मेरी उत्तेजना वापस लौट आयी और मैं रजनीश के साथ संभोगरत हो गई.

अगली सुबह ज्योति का फोन आया

"मां कैसी हो?"

"मैं ठीक हूं बेटी, तू बता तू कैसी है? तू ठीक तो है ना?"

"हां मां, कल एक आश्चर्यजनक बात हुई जीवन में भी ठीक वैसा ही लाकेट पहना हुआ था जैसा आपने दिया था हाथी दांत वाला. जब मैं और जीवन संभोगरत तभी मेरी नजर उसके लॉकेट पर पड़ी. उसके लाकेट ने मेरे लाकेट को सटा लिया था. और एक दिल की आकृति बन गई थी. यह एक अद्भुत संयोग ही है ना? मां मै और जीवन एक दूसरे के लिए ही बने हैं. मां तुम एक बार जीवन से मिलना वह सच में बहुत अच्छा है मेरा बहुत ख्याल रखता है."

मेरे हाथ कांप रहे थे फोन का रिसीवर मेरे हाथ से गिर पड़ा. हे भगवान यह क्या हो रहा था. मुझे जगत की याद आ गई कहीं ऐसा तो नहीं की जीवन ही जगत था. हे भगवान तो क्या एक भाई ने अपनी बहन के साथ संभोग किया मैं थरथर कांप रही थी. रजनीश बगल में सो रहे थे. मैं जल्द से जल्द जीवन से मिलना चाहती थी. दो दिन बाद मैं और रजनीश जीवन से मिलने निकल पड़े.

मैं और रजनीश मन में कई सारी दुविधा लिए कॉलेज की तरफ चल पड़े. एक बार के लिए हमारा मन कहता हे भगवान वह जगत ही हो. पर जैसे ही मैं ज्योति के बारे में सोचती मेरी सोच ठहर जाती. दोनों भाई बहन एक दूसरे से प्यार करने लगे थे और परस्पर संभोग भी कर चुके थे.

मैं उन दोनों को इस रूप को कैसे स्वीकार करूंगी? इसी उधेड़बुन को मन में लिए हुए कुछ ही समय बाद हम हॉस्टल पहुंचे. जीवन और ज्योति हमारा इंतजार कर रहे थे. जीवन को देखते ही एक पल के लिए ऐसा लगा जैसे हमारा जगत वापस आ गया हो.

हमने जगत के माता-पिता से मुलाकात की थोड़ा सा कुरेदने पर उन्होंने हमारे सामने सच उजागर कर दिया. जगत उर्फ जीवन हमारा ही पुत्र था.

हे प्रभु हमें मार्ग दिखाइए मेरे और रजनीश की कुछ भी समझ में नहीं आ रहा था. हमारा पुत्र हमारे सामने खड़ा था पर हम उसे अपने आलिंगन में नहीं ले सकते थे. ज्योति और जीवन भाई बहन थे. काश उन का मिलन न हुआ होता.

अंततः हमने फैसला कर लिया हमने ज्योति की अनुपस्थिति में यह बात खुलकर जीवन को बता दी. वह खुद भी आश्चर्यचकित था पर उसे यह जानना बहुत जरूरी था. उसके माता-पिता उसके सामने खड़े थे. उसने हम दोनों के चरण छुए. मैंने और रजनीश ने उसे गले से लगा लिया हमारी आंखों से अश्रु धारा फूट पड़ी अपने कलेजे के टुकड़े को इस तरह अपने सीने से लगाने का सुख आज हमें 19 वर्ष बाद मिला था. जीवन जब मेरे गले लगा ऐसा लगा मेरे कलेजे का खालीपन भर गया हो. कलेजे की हूक शांत हो गयी थी. हमने ज्योति से उसके रिश्ते पर कोई प्रश्न नहीं किया.

मैंने जीवन से कहा तुम मेरे पुत्र हो और ज्योति मेरी पुत्री. तुम अपनी बहन ज्योति से जैसे रिश्ते रखोगे हमारे साथ तुम्हारा वही रिश्ता कायम होगा. उसने एक बार फिर मेरे चरण छुए और कहां

"मेरे लिए मां और सासू मां में कोई अंतर नहीं है" तब तक ज्योति अंदर आ चुकी थी उसमें भी जीवन के साथ मेरे चरण छुए.

कुछ ही दिनों में हमने जीवन और ज्योति का विवाह कर दिया.

यह जानने के बाद की ज्योति उसकी अपनी सगी बहन है जीवन का प्यार ज्योति के प्रति और भी बढ़ता गया. उनके अंतरंग पलों में जीवन ज्योति को कैसे प्यार करता होगा यह मैंने उन दोनों पर ही छोड़ दिया. मेरे लिए तो वह हर रूप में मेरे पुत्र और पुत्री ही थे.

समाप्त.

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