विधवा भाभी के साथ विवाह

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बड़े भाई की विधवा से विवाह होना और उसके बाद का घटनाक्रम
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मेरा नाम महेश है, मेरी उम्र 26 साल की है। मेरे बड़े भाई जो मेरे से दो साल बड़े थे। उन की शादी एक साल पहले ही हुई थी। कुछ समय पहले उन की मृत्यु एक सड़क दुर्घटना में हो गयी। हमारे सारे परिवार पर दूखों का पहाड़ टूट पड़ा। मेरी भाभी जी की तो मानो सारी दूनिया ही तहस-नहस हो गयी थी। हम सब उन के दूख से बहुत दूखी थे लेकिन कोई भी इस दूख की घड़ी में उन की सहायता नहीं कर पा रहा था।

मैं भी इस स्थिति में अपने आप को बहुत असहाय पाता था। हमेशा चहकने वाली भाभी जी अचानक खामोश हो गयी थी। मेरे माता-पिता भी अपने पुत्र के जाने के दूख को भुल कर अपनी बहु के दूख के कारण दूखी रहने लग गये। ऐसा लगता था कि हमारे हँसते-खेलते परिवार को मानो किसी की नजर लग गयी थी। खुशियाँ शायद हमारे घर का पता भुल गयी थी।

इसी सब के बीच मेरी नियुक्ति भी उच्च सरकारी पद पर हो गयी थी। इस बात की परिवार में किसी को कोई खुशी नहीं थी। सब भाई के निधन के दूख में डुबें थे और उस के जाने के बाद उस की विधवा के दूख के कारण और अधिक दूखी हो रहे थे। इसी माहौल में, मैं अपने पद के लिये ट्रेनिग लेने चला गया। मेरा जाना जरुरी था।

तीन महीने बाद जब ट्रेनिग से वापस घर आया तो माहौल उतना ही गमगीन था। किसी को इस गम से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं मिल रहा था। मेरी नियुक्ति मेरे शहर में ही हुई थी इस लिये मुझे ज्यादा परेशानी नहीं हो रही थी। लेकिन भाई के इस तरह अचानक चले जाने का दूख दूर नहीं हो रहा था। समय के साथ यह दूख कम होगा यह तो हम सब जानते थे लेकिन उस के जाने के दूख में समय काटना भी मुश्किल हो रहा था हम सब के लिये।

मैं और माता-पिता पुरी कोशिश करते थे कि भाभी जी अपने दूख को भुल जाये लेकिन उन के चेहरे पर छाई उदासी दूर नहीं हो पा रही थी। हमारी कई कोशिशें बेकार हो चुकी थी। ऐसे में भाभी जी के माता-पिता जी हमारे घर आये और भाभी जी को साथ लेकर चले गये। भाभी जी जाना नहीं चाहती थी लेकिन माँ ने जोर दिया कि शायद जगह बदलने से उस का मन बहल जाये। माँ की बात मान कर वह अपने मायके चली गयी। लेकिन वहाँ भी उन का दिल नहीं लगा और वह कुछ ही दिनों में वापस आ गयी। उन को छोड़ने उन के माता-पिता ही आये थे।

शाम को मैं जब ऑफिस से वापस आया तो भाभी जी के माता-पिता जी से मेरी मुलाकात हुई। रात को खाना खाने के बाद सारा परिवार, माँ, पिता जी, भाभी जी, उनकी माता जी और पिता जी एक साथ बैठे थे। मैं भी सब के साथ ही बैठा था। तभी माँ नें मुझ से पुछा कि महेश तुम से कुछ बात करनी है। मैंने कहा कि आप कुछ भी पुछ सकती है,आप को किस ने रोका है? माँ कुछ हिचकी और फिर बोली कि बहुत जरुरी बात है।

मैंने कहा कि आप को अधिकार है कुछ भी पुछने का। अब पिता जी ने बात पकड़ी और वह बोले कि हम चाहते थे कि तेरे भाई के जाने के बाद घर में उदासी छा गयी है, लगता है की घर में कोई रौनक ही नहीं है। तुम्हारी नौकरी भी लग गयी है इस लिये हम दोनों की इच्छा है कि अब तुम शादी कर लो। मैंने कहा कि जैसी आप की इच्छा, जैसा आप को सही लगे। माँ बोली कि वैसे हमें पता है कि तुम्हारी कोई लड़की दोस्त नहीं है लेकिन फिर भी अगर तुम कुछ कहना चाहते हो तो बताओ?

मेरी कोई महिला मित्र नहीं है, आप लड़की पसन्द कर लो। मेरी बात सुन कर माँ के चेहरे पर संतोष छा गया। कमरे में शांति छा गयी। कुछ देर बात माँ बोली कि मेरी, तेरे पिता जी की इच्छा है कि तेरी शादी माधवी के साथ कर दी जाये। यह सुन कर मैं हैरान रह गया। माधवी मेरी भाभी जी का नाम है। मेरे चेहरे पर छाई हैरानी को देख कर माँ बोली कि हम सब ने बहुत सोच-समझ कर यह फैसला किया है कि माधवी का विवाह तुम्हारे साथ कर दिया जाये।

वह हमारी बहुत सेवा करती है, इसी घर का हिस्सा है, उस के सामने सारा जीवन पड़ा है। विधवा का जीवन उस के लिये नहीं है। इतनी बढ़िया लड़की तुम्हारे लिये ढुढ़ने पर भी नहीं मिलेगी। जाने वाला चला गया है, लेकिन जो यहाँ है उन को पुरा जीवन जीना है। यह कह कर माँ चुप हो गयी।

मैंने कुछ देर चुप रह कर कहा कि भाभी जी की जिम्मेदारी मेरी है। किसी को इस संबंध में कोई शक नहीं होना चाहिये। भाभी जी को मैं सारे जीवन अपने साथ ही रखुँगा। वह मेरा ही हिस्सा है। मेरा परिवार है। हम आप सब में से एक है।

मेरी बात सुन कर भाभी जी के पिता जी बोले कि तुम्हारी बात पर हम सब को विश्वास है कोई शंका नहीं है लेकिन माधवी अभी जवान है, सारा जीवन उस के सामने है, तुम जो सब कुछ उस के लिये करोगें, वह सब उस से विवाह करने के बाद अपने आप हो जायेगा। उस का जीवन सुधर जायेगा। परिवार में खुशियां फिर से वापस आ जायेगी। हम भी उस की तरफ से निश्चित हो जायेगें।

मुझे चुप देख कर भाभी जी की माँ बोली कि बेटा तुम्हारे विचार बहुत उच्च है लेकिन हमारा समाज ऐसा नही है, विधवा भाभी के साथ जीवन बिताना आसान नही है। बहुत सी समस्याओं का सामना तुम को और माधवी को करना पड़ेगा। यही सब सोच-विचार करके हम सब ने यह फैसला किया है कि तुम्हारा विवाह माधवी के साथ कर दिया जाये।

मैंने माँ से पुछा कि आप ने इस संबंध में भाभी जी से बात कर ली है। मेरी बात पर माँ भाभी जी की तरफ देख कर बोली कि हमने पहले उस से बात की है उसे समझाया है। उस को समझा पाना बहुत कठिन था, लेकिन हम सब ने तुम दोनों से अधिक दुनिया देखी है और जो कुछ कर रहे है उस में ही तुम सब का सुख है। तेरी भाभी ने बहुत सी बातें हमें बतायी है, जो उस के दष्टिकोण से सही थी, लेकिन जब हम ने व्यवाहारिक पक्ष उसे समझाया तो वह इस विवाह के लिये राजी हो गयी है। अब तेरी बारी है।

मेरे मन में विचारों का झंझावात चल रहा था, कल तक जिस भाभी जी को में आदर की दृष्टि से देखता था, उस से विवाह करना, उस के साथ रहना, मन को समझ नहीं आ रहा था, मन कुछ भी समझने को तैयार नहीं हो रहा था।

लेकिन मन के एक कोने में अपने बड़ों की बात की वास्तविकता भी समझ आ रही थी। विधवा की देखभाल करना सारे जीवन की जिम्मेदारी लेना, कहना बहुत आसान है लेकिन वास्तविकता में बहुत कठिन कार्य है। भविष्य में क्या हो जाये कुछ कहा नहीं जा सकता है। मेरी ही हम उम्र होने के कारण शादी में कोई बाधा तो नहीं थी। मन की परेशानी की बात अलग थी।

मुझे चुप देख कर माँ और पिता जी बोले कि तुम बताओ तुम्हें क्या परेशानी है?

कोई परेशानी नहीं है, अगर आप सब और भाभी जी तैयार है तो मैं भी तैयार हूँ

मेरी इस बात पर माँ बोली कि अगर तुझे कुछ समय चाहिये तो समय ले ले, सोच समझ कर अपना जबाव देना। मैंने माँ से कहा कि आप सब भी तो हम बच्चों के हित में ही सोच रहे है तो फिर इस संबंध में और क्या सोचना। जो आप सब ने सोचा है वह हम दोनों के हित में है ऐसा मेरा मानना है।

मेरी बात सुन कर माँ ने भाभी जी की माँ को गले लगा लिया। पिता जी ने भाभी जी के पिता को गले लगा लिया और भाभी जी और मैं अकेले खड़े रहे।

मैंने भाभी जी को संबोधित करके पुछा कि आप की सहमति भी मुझे पता चलनी चाहिये, भाभी जी ने कहा कि आप सब ने जो सोचा है वह मेरे लिये भी सही है। मैं भी आप के विचारों का समर्थन करती हूँ कि हमारे बड़े जो कुछ हमारे लिये सोचते है उसी में हमारा हित है।

भाभी जी ने भी अपनी सहमति दर्शा दी थी। अब यह संबंध पक्का हो गया था। लेकिन मैं मन ही मन में जानता था कि अभी आगे इस संबंध में बहुत बाधायें आने वाली है।

मैं सोने के लिये अपने कमरे में चला गया क्योंकि बहुत रात हो चुकी थी, मुझे सुबह ऑफिस भी जाना था। सोते समय मन में इस बात का संतोष था कि परिवार में छाये उदासी के बादल छँटने वाले है।

सुबह उठ कर मैं ऑफिस के लिये तैयार होने लगा तभी भाभी जी मेरे पास आयी और बोली कि आप के कुछ बात करनी है?

पुछिये?

आप ने कल जो बात कही थी, उस पर सोच-विचार कर लिया है या किसी तरह की दीनता के कारण तो हाँ नहीं की है

आप को क्या लगा?

मुझे लगा कि आपके मन में शंका है, इसी लिये आप से अब पुछ रही हूँ?

आप की जिम्मेदारी अब मेरी है, मेरा जीवन अब आप का है, इसे आप किसी भी अर्थ में ले सकती है। मन में झिझक है, लेकिन विचार बिल्कुल स्पष्ट है कि आप की जिम्मेदारी मेरी है।

किसी तरह की जबरदस्ती तो नही हो रही आप के साथ?

आप तो मुझे जानती है, कोई मेरे से जबरदस्ती कर सकता है?

मुझे पता है आप पर कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता

फिर अपने मन से किसी भी शंका को निकाल दिजिये

मुझे जो पुछना था मैंने पुछ लिया, आप को मुझ से कुछ पुछना है तो निसंकोच पुछ सकते है

आप से क्या पुछु?

क्यों

आप बड़ी है

बड़ी नहीं हूँ, उम्र में आप के बराबर हूँ

बातों में आप से नहीं जीत सकता, लेकिन हम दोनों के लिये आगे आने वाला समय मुश्किल होने वाला है

यह तो मैं जानती हूँ, लेकिन हम दोनों मिल कर उस का सामना कर सकते है

यही मैं अपने लिये भी कह सकता हूँ

भाभी जी मेरा नाश्ता लेने चली गयी। उन के जाने के बाद मैंने देखा कि माँ दरवाजे के पीछे से हमारी बातें सुन रही थी। उन के चेहरे पर संतोष झलक रहा था। मैं ऑफिस के लिये निकल गया। काम में आज ज्यादा मन नही लगा। मन में यही विचार घुमड़ता रहा कि हम दोनों अपने इस नये रिश्ते को कैसे निभायेगें? आगे क्या होगा? यह मुझे नहीं पता था लेकिन यह पता था कि भाभी जी अब मेरे जीवन का अभिन्न अंग बनने वाली है।

शाम को ऑफिस से घर वापस आया तो पता चला कि भाभी जी के माता-पिता दोनों अपने घर लौटने के लिये तैयार थे। रात के खाने पर सारा परिवार एक साथ था, सब के चेहरे पर खुशी झलक रही थी। माँ ने मुझे बताया कि शुभ मुहर्त निकलवा कर जल्दी ही विवाह करवाना है।

आप बता देना कि कितने दिन की छुट्टी लेनी है

सारे काम तुझे ही करने पड़ेगें, छुट्टी तो लेनी ही पड़ेगी

कैसी शादी करवानी है?

जैसी तुम चाहते हो

मुझे तो सादगी पसंद है, लेकिन पहचान के लोगों का दायरा बड़ा है तो शादी के बाद रिशेप्शन बड़ा दे देगे।

जैसा तुझे सही लगे वैसा ही करो

शादी के मुद्दे पर मेरी बात यही पर खत्म हो गयी। सब बड़ें आपस में शादी के विषय में बात करते रहें।

समय बीत रहा था। शादी का समय निकट आ रहा था। सारी खरीदारी माँ-पिता जी और भाभी जी ने साथ जा कर करी थी। मैं केवल एक बार अपने कपड़ें खरीदने गया।

शादी घर में ही रिश्तेदारों के मध्य सादगी से हो गयी। शादी में ज्यादा हर्षोल्लास नहीं मना क्योंकि यह कोई आम शादी नहीं थी। खास परिस्थिती में हुई खास शादी थी।

शादी के दो दिन बाद शहर के बडे़ होटल में रिशेप्शन भी दिया गया। मेरे ऑफिस के लोग भी आये थे। मैं सभी कामों में निर्लिप्त भाव से भाग ले रहा था। एक जिम्मेदारी निभाने का भाव मेरे पर हावी था। इस भाव में उत्साह का भाव शामिल नही था, जिम्मेदारी की भावना अधिक थी। भाभी जी भी शायद इसे महसुस कर रही थी। लेकिन वह कुछ कह नहीं रही थी। हम दोनों विवाह के सारे रिति-रिवाजों को पुरा करने में लगे हुये थे। जब यह सब खत्म हो गया तो मैंने चैन की साँस ली।

जिस दिन हमारी सुहाग रात नियत की गयी थी उस दिन मैंने कमरे की सजावट के लिये मना कर दिया था। मेरे मना करने पर माँ ने कोई विरोध नहीं किया। वह भी शायद मेरी मनोस्थिति को समझती थी। रात को सोने के समय जब मैं कमरे में पहुँचा तो वहाँ माधवी लाल साड़ी पहने बेड पर बैठी थी। मैंने कमरे का दरवाजा बंद किया और बेड के पास जा कर खड़ा हो गया।

बेड पर माधवी के साथ बैठने में मुझे संकोच हो रहा था। वह भी शायद मेरे संकोच को समझ रही थी। वह उठ कर खड़ी हो गयी। हम दोनों एक-दूसरे के साथ बेड के किनारे खड़े थे। कुछ देर बाद मैंने उन से कहा कि आप क्यों खड़ी हो गयी, आप बैठिये मैं भी बैठता हूँ। यह कह कर मैंने एक कुर्सी बेड के पास खिसका ली और उस पर बैठ गया। यह देख कर माधवी भी बेड पर बैठ गयी।

माधवी बोली कि आप को मेरे साथ और मुझे आप के साथ घुलने में समय लगेगा। मैंने उन की बात से सहमति जताते हुये कहा कि आप सही कह रही है हमें इस नये संबंध में पुरी तरह से आने में समय लगेगा। हमें अपने आप को कुछ समय देना चाहिये। बाहर तो सब बदल गया है लेकिन इस कमरे में बदलाव अभी नहीं आया है। आप और मैं अब पति-पत्नी बन गये है, समाज के सामने हमारा रिश्ता बदल गया है, लेकिन हमारे मन में अभी पुराना रिश्ता ही जिन्दा है, उसे खत्म होने और नये रिश्ते को पनपने में समय लगेगा। मैंने आप को अपने मन की बात बता दी है।

माधवी बोली कि आप सही कह रहे हो, खाली शादी होने से एकदम सब कुछ नहीं बदल सकता है। हमें अपने इस रिश्ते को बदलने में समय लगेगा। लेकिन हम दोनों के सिवा और किसी को ऐसा नहीं लगना चाहिये, नहीं तो सब बड़ों को दूख होगा और ऐसा लगेगा कि हम ने जबरदस्ती यह रिश्ता अपनाया है।

आप बेड पर सोये मैं नीचे सो जाता हूँ

ऐसा सही रहेगा?

अभी तो यही सही लग रहा है

मैं नीचे फर्श पर चद्दर बिछा कर तकिया लगा कर लेट गया। काफी थका हुआ था इस कारण से जल्दी ही नींद आ गयी। सुबह किसी के झकझौरने से मेरी नींद खुली तो देखा कि माधवी मुझे जगा रही थी। उन्हें देख कर मैं उठ कर बैठ गया।

उठ कर बेड पर लेट जाईये, कोई आने वाला होगा

मैं उन की बात सुन कर नीचे से चद्दर उठा कर तकिया लगा कर बेड पर लेट गया। माधवी ने जा कर दरवाजा खोल दिया और कमरे से बाहर चली गयी। मैं भी कुछ देर बाद बेड से उठ गया और कमरे से बाहर आ गया। घर से सारे रिश्तेदार जा चुके थे। हम घर वाले ही घर में थे इस लिये मुझे ज्यादा चिन्ता नहीं थी लेकिन मैं यह भी नहीं चाहता था कि हमारे इस तरह अलग-अलग सोने की बात माँ को पता चले। नहीं तो वह यह जान का दूखी होगी, जो मैं नहीं चाहता था।

माँ और पिता के पास जा कर उन को प्रणाम किया और उन के पास बैठ गया। माँ कुछ बोली नहीं, तभी माधवी चाय ले कर आ गयी और हम सब चाय पीने लग गये। माँ ने मुझ से पुछा कि आज ऑफिस जाना है तो मैंने उन्हें बताया कि नहीं अभी कुछ दिन की छुट्टी बची हुई है। यह जान कर माँ प्रसन्न हो कर बोली की हम सोच रहे थे कि तुम दोनों कहीं बाहर घुम आयो।

माँ अभी कहीं बाहर जाने का मन नहीं है। कुछ दिनों के बाद बाहर जाने का प्रोग्राम बनाऊँगा। अभी तो काफी थकान है, घर पर रह कर कुछ दिन आराम करने का मन है।

माँ ने माधवी के तरफ देखा तो उस ने भी मेरी बात से सहमति जताई। माँ बोली कि तुम दोनों बड़ें हो जैसा सही लगे करो।

माँ की बात के तंज को समझ कर मैंने माँ से कहा कि आप जल्दीबाजी क्यों कर रही है। हर काम को होने में समय लगता है। शादी के काम से आप दोनों भी थक गये है, हम दोनों भी बहुत थके हुये है। ऐसे में घुमने जाना सही नहीं रहेगा। जब मन करेगा तब घुमने भी जायेगे। मेरी इस बात से उन के चेहरे पर छायी उदासी कुछ कम हुई।

दिन में मैंने तय किया कि मैं और माधवी कहीं बाहर घुमने चलते है। दोपहर के खाने के बाद हम दोनों तैयार होकर घुमने निकल गये। इस वजह से माँ का चेहरा खिल गया।

रास्ते में माधवी ने मुझ से पुछा कि अचानक घुमने का मन कैसे बन गया आपका?

तुमने माँ का चेहरा देखा था, वह सब समझ रही थी, इसी वजह से उदास सी थी, उन्हें देख कर लगा कि उन के सामने हम दोनों एक साथ कहीं जायेगें तो उन्हें अच्छा लगेगा यही सोच कर घुमने का प्रोग्राम बना लिया।

आप पहले से काफी बदल गये हो, तेज हो गये है

मैं तो पहले से ही ऐसा हूँ

मुझे क्यों लगा कि आप बदल गये है?

आप के लिये तो बदल ही गया हूँ

नहीं वह बदलाव नहीं, अब लगता है कि आप अपने से ज्यादा दूसरों की चिन्ता करते हैं

दूसरा कौन है, सब तो मेरे है उन की चिन्ता मैं नहीं करुँगा तो और कौन करेगा?

मुझे आप के इस रुप का पता नहीं था

मुझे कभी दिखाने का मौका ही नहीं मिला था

मेरे लिये नया अनुभव है

अब जो कुछ होगा वह नया अनुभव ही होगा

रहस्यमयी बातें क्यों कर रहे है

हम दोनों के बीच और दोनों के साथ जो हो रहा है वह नया ही तो है

हाँ यह तो है

कहाँ चले?

आप लाये हो, जहाँ मर्जी हो ले चले

मैंने कार शहर के बाहर के लिये मोड़ दी। शहर के बाहर एक बढिया एंकात जगह थी। जहाँ पर बहुत बढ़िया खाना मिलता था। हम दोनों वहाँ जाने से पहले एक मॉल में चले आये। ऐसे ही मॉल की दुकानों में विंडो शॉपिग करते रहे। जब घुम कर थक गये तो शहर के बाहर स्थित रेस्तरा के लिये चल दिये। जब वहाँ पहुँचे तो शाम घिर आयी थी। दोनों एंकात में एक मेज पर जा कर बैठ गये।

आप को ऐसी जगह कैसे पता है, पहले किसी को ले कर आये है?

ये कैसा सवाल है?

सवाल है जबाव चाहिये?

अब आप नये रोल में आ गयी है

मैं जो पुछ रही हुँ उस का जबाव क्यों नहीं दे रहे है?

मैं माधवी के शक का मजा ले रहा था। मेरी पत्नी, अपने पति पर शक कर रही थी। जो हमारें संबंधों के बदलने का द्योतक था। मुझे मुस्कराते देख कर माधवी ने मेरा हाथ कस कर पकड़ा और पुछा कि आप जबाव क्यों नहीं दे रहे है

दोस्तों के साथ एक-दो बार आया था, किसी लड़की के साथ नहीं आया इस लिये निश्चित रहे

यहाँ दोस्तों के साथ कौन आता है?

मैं आता था

मुझे विश्वास नहीं हो रहा है

अभी से शक करना शुरु कर दिया, आप को तो सब बताता था, फिर भी

हाँ, लेकिन मन नहीं मान रहा है

पति की बात पर विश्वास करना सीखे

पुरा विश्वास है लेकिन मुझे तो पहले कभी नहीं लाये

कभी मौका ही नही मिला था

वेटर ऑडर लेने आ गया। उसे ऑडर करके मैंने माधवी से कहा कि आप को मेरे बारे में सब कुछ पता है फिर भी शक कर रही है।

पहले मैं भाभी थी, अब पत्नी हुँ, शक करना तो बनता है।

शक छोड़ों, मैं आप के सिवा किसी को नहीं जानता

मक्खनबाजी

सही बात कह रहा हूँ विश्वास करें, आप को सब पता है मेरे पास किसी और के लिये समय था?

मजाक कर रही थी, आज बहुत दिनों बाद लगा कि मजाक करुँ

मुझे अच्छा लगा कि कोई मेरे से पुछताछ करने वाला तो है

तुम इतने रोमान्टिक भी हो

नहीं हो सकता

मुझे पता नहीं था

मैंने आपको पता लगने नही दिया

वेटर खाना लगा गया और हम अपनी बहस को अधुरा छोड़ कर खाना खाने लग गये। माधवी ने मुझ से कहा कि खाना बहुत स्वादिस्ट है। हम दोनों खाना खा कर घर के लिये निकल गये। घर पहुँचते-पहुँचते रात हो गयी। माँ हम दोनों को देख कर बहुत खुश नजर आ रही थी।

रात को सोते समय जब मैं नीचे सोने लगा तो माधवी बोली कि नीचे मत सोओ, कमर में दर्द हो जायेगा। उस की बात सही थी, कमर में दर्द तो मेरे हो रहा था, लेकिन मैंने किसी से कहा नहीं था। माधवी ने मेरे बिना कहे ही यह समझ लिया था।

वह बेड के एक किनारे पर सो गयी और मैं दूसरे किनारे पर लेट गया। दोनों के एक बेड पर सोने के बावजूद मेरे मन में माधवी के लिये कोई भाव नहीं आ रहे थे। यही असली समस्या थी। इस ने कब सही होना था यह मैं नहीं जानता था।

रात को नींद अच्छी आयी और सुबह जब उठा तो देखा कि माधवी उठ कर चली गयी थी। वह जब नहा कर आयी तो मैं लेटा हुआ था। वह मुझे लेटा देख कर बोली कि आप अभी तो सो रहे है, उठ जाईये। बाहर माँ पिता जी के साथ बैठिये मैं चाय बना कर लाती हूँ। मैंने उस की आज्ञा का पालन किया और बाहर माता-पिता जी के पास जा कर बैठ गया। कुछ देर बाद माधवी चाय ले कर आ गयी और मैं अखबार पढ़ते हुये चाय पीने लगा।

माँ ने मुझ से पुछा कि कल तुम दोनों कहाँ गये थे? मैंने उन्हें बताया कि पहले मॉल गये थे फिर मैं आपकी बहु को खाना खिलाने के लिये शहर के बाहर बने रेस्तरा में ले कर गया था। यह सुन कर माँ बहुत प्रसन्न दिखायी दी।

मैंने माँ को बताया कि तुम्हारी बहु नें वहाँ मेरी क्लास लगा दी कि पहले किस के साथ यहाँ आये थे। बड़ी मुश्किल से उसे विश्वास दिलाया कि दोस्तों के साथ आया था। यह सुन कर माँ मुस्कराई और माधवी की तरफ देखने लगी। माधवी ने शर्मा कर चेहरा दूसरी तरफ घुमा लिया।

दोपहर में कोई रिश्तेदार मिलने आ गये, इस कारण से उन के आवभगत में समय बीत गया। रात को फिर से वही हुआ और हम दोनों सो गये। सुबह माधवी ने मुझे जगा कर कहा कि आप उठ कर बाहर जाओ, मैं नहा कर आती हूँ। उस की बात मान कर मैं बाहर पिता जी के साथ बैठ गया। माँ अभी अंदर ही थी। पिता जी नें मुझ से पुछा कि

बेटा कैसा चल रहा है।

सब सही चल रहा है, आप को क्या लग रहा है?

मेरा बेटा जैसा नहीं है वैसा बनने की कोशिश कर रहा है

आप सब जानते है तो पुछते क्यों है?

चिन्ता तो होती ही है

आप चिन्ता मत करिये, धीरे धीरे सब सही हो जायेगा

हम यही चाहते है

ऐसा ही होगा, लेकिन थोड़ा समय लगेगा

तब तक माँ भी आ गयी, कुछ देर बाद माधवी चाय के साथ हाजिर हो गयी। मैं माँ के साथ बात करने लगा। वह बाजार से कुछ लाने को कह रही थी। मैंने कहा कि माँ आप दोनों बाजार जा कर जो लेना है ले आयो। मेरी बात सुन कर माधवी ने भी कहा कि हम दोनों घर पर है आप दोनों आज बाहर घुम कर आयो। यह सुन कर माँ बोली कि अब यह बच्चें हमें चलाने लगे है। उन की बात सुन कर हम सब हँस दिये।

दिन ऐसे ही बीत रहे थे। हम दोनों नदी के किनारों की तरह एक साथ रह रहे थे जो साथ होते हुये भी मिलते नहीं है। माँ शायद सब कुछ समझती थी लेकिन कुछ कह नहीं पाती थी। मेरी मजबुरी यह थी की मैं माधवी को देख कर कुछ सोच ही नहीं पा रहा था।

यह बात मुझे अंदर ही अंदर खाये जा रही थी कि मैंने माधवी से शादी तो कर ली है लेकिन अगर उसे मन से चाह ही नहीं पाऊँगा तो यह रिश्ता आगे कैसे बढ़ेगा? क्या ऐसा करके मैं माधवी के साथ अन्नाय तो नहीं कर रहा हूँ। मुझे कोई समाधान या रास्ता नहीं सुझ रहा था। संतोष की बात यह थी कि माधवी अपनी तरफ से कोई असंतोष या गुस्सा नहीं दिखा रही थी। लेकिन इस संबंध का आगे बढ़ाना ही हम सब के लिये हितकारी था।

एक दिन किसी की शादी में जाने का प्रोग्राम बना। मैं, माधवी, माँ और पिता जी चारों लोग शादी में गये। जैसे किसी भी समारोह में जाते है इसी तरह से हम दोनों पति-पत्नी तैयार हो कर गये। समारोह में माधवी लोगों से मिलने में लग गयी और मैं एक कोने में बैठ कर उसे देखने लग गया।

माधवी साड़ी में इतनी सुंदर लग रही थी कि उस दिन पहली बार मेरे दिल में उसे लेकर कोई हलचल हुई। उसे साड़ी में लिपटी देख लगा कि जैसे खजुराहो के किसी मंदिर की कोई मुर्ति सजीव हो कर बाहर आ गयी है। उन्नत स्तन, भरे कुल्हें, पतली कमर, लंबें बाल, उसे देख कर लगा कि इतनी सुंदर स्त्री मेरी पत्नी है और मैं उसे भाव नहीं दे रहा हूँ, यह तो उस के सौन्दर्य की अवमानना है।

पहली बार मेरे दिल में उस के लिये भाव पैदा हुये। मुझे लगा कि माधवी को पत्नी के रुप में पा कर मैं ही धन्य हुया हूँ। उस के चेहरे, भाव और शरीर को मैं अब एक पुरुष की तरह देख रहा था। इस नजर में प्रेम का भाव था, सेक्स की भावना थी, लगाव था, एक पति का पत्नी के प्रति प्रेम था। मैं इन्ही भावों में डुबा उसे ही सारे समय देखता रहा।

जब वह मुझे खाना खाने के लिये बुलाने आयी तब भी मैं उसे ही एकटक देख रहा था। उस ने यह महसुस कर लिया था सो बोली कि ऐसे सारे समय घुरते रहोगे तो लोगों को लगेगा कि हम दोनों के बीच में जरुर कुछ गड़बड़ है। कोई पति अपनी पत्नी को ऐसे थोड़ी ना घुरता है। उस की इस बात को सुन कर मैं झेंप गया और उठ कर उस के साथ चल दिया। रास्ते में माता जी और पिता जी भी मिल गये। वह भी अपनी उम्र के लोगों के साथ बातचीत में व्यस्त थे। हम दोनों को आते देख कर उन्होंने कहा कि चलो खाना खाते है।

हम चारों लोग खाना खाने की जगह पर चल दिये। खाना खाते में हम दोनों फिर से अकेले रह गये तो आपस में बात करने लगे। माधवी ने मुझ से पुछा कि क्या मेरे सर पर सींग उग आये है, जो आप मुझे इतनी देर से घुरे जा रहे है?

अब मैं उसे क्या बताता, कि आज मेरे साथ क्या हुआ है? अगर बताता तो शायद वह इस पर विश्वास ही ना करती। मैंने कहा कि तुम आज बहुत सुंदर लग रही हो इस लिये देख रहा था। अपनी बीवी को देखना कोई गुनाह थोड़ी है। मेरी यह बात सुन कर वह मुस्करा दी और बोली कि आप बदलते जा रहे हो। आप इतने रोमांटिक भी होगे मैंने कभी सोचा नहीं था।

अपनी बीवी के साथ रोमांटिक होना हर पति का हक है

सो तो है लेकिन आप जैसा गंभीर आदमी अचानक रोमांस में डुब जाये तो हैरानी और डर दोनों लगता है

डर किस बात का, मैं कहीं नही जा रहा तुम्हें छोड़ के

ऐसा सोचना भी मत

आप भी अपने सही रोल में आती जा रही है