बेटी को देख माँ चुद गयी

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बेटी को देख माँ चुद गयी.
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नमस्कार दोस्तों, आज फिरसे एक नयी कहानी के साथ उपस्थित हूँ आपके सामने जो लगभग सच्ची कहानी है पर आपको पढ़ने में मजा आये इसलिए मैंने थोडासा मिर्च मसाला भी लगाया है. पर ये आज मैं कहानी मेरी जबान से नहीं बल्कि उस औरत की जबान से सुनाना चाहूंगा क्यों की ये उसकी आपबीती है और उस घटना का एक छोटासा पार्ट हूँ.

ममता एक अच्छे औदे पर पुणे में स्तिथ कंपनी में काम करने लगी थी, मुंबई जैसी भीड़भाड़ वाले शहर से बाहर निकल के वो कुछ आरामवाली और सुख चैन वाली जिंदगी बिताना चाहती थी. असल में देखा जाए तो वो उसके हाल ही में हुए तलाक के चलते और उसपे बीते आपत्तिजनक परिस्थिति से बाहर निकलना चाहती थी और जीवन की नयी शुरवात करने के लिए उसने पुणे जैसा खूबसूरत शहर चुना था...

कैसे हो दोस्तों? मैं ममता, पूरा नाम तो नहीं लिख सकती पर बस ये समझ लो की एक बहोत ही नेक दिल और घरेलु औरत हूँ पर आज का हाल कुछ ऐसा है की क्या बताऊँ. चलो रहने दो आपको एक ऐसी कहानी बताती हूँ जिसने मेरी सारि जिंदगी बदल कर रख दी. १९ साल का सांसारिक जीवन अचानक ख़तम सा हो चूका है मेरा, पति के बदचलन व्यव्हार से परेशांन होके मैं और मेरी बेटी रत्ना उनसे अलग होके चुके है. मेरी १८ साल की बेटी और मैंने सोच समझके लिया था ये फैसला, जैसे उसको अपने पिता के बारे में पता चला तो एक अच्छी सहेली की तरह उसने ही मुझे तलाक लेके अलग होने में मदत की.

मैं और रत्ना दोनों ही अपने नए मकान में शिफ्ट हो चुके है, बेटी अभी भी कॉलेज के दूसरे वर्ष में पढ़ रही थी तो मैंने भी पुणे के बड़े कॉलेज में उसका दाखिला कर लिया. शादी के बाद भी मैं एक बड़े कंपनी में बतौर मैनेजर काम कर रही थी और उसी कंपनी के पुणे स्थित ब्रांच में मेने मेरा ट्रांसफर करवा लिया. बेटी और मैं धीरे धीरे इस नए माहौल में अपने आप को सँभालने की कोशिश कर रहे थे, पुराणी यादों को भूलके एक नया जीवन बनाने की कोशिश कर रहे थे. महिला पाठक ये अच्छे से जान सकती है की उम्र के ४२ साल में अपने पति से अलग होना और खुद अपने पैरों पर खड़ा होना कितना मुश्किल काम है, ऊपर से अब रत्ना की जिम्मेदारी भी मुझ पर थी.

जैसे तैसे मैंने अपना काम संभाला और बेटी ने भी अपना कॉलेज जॉइन कर लिया, अपने पिता से दूर होने की ख़ुशी उसको भी हो रही थी, धीरे धीरे उसके दोस्त बनने लगे पर मेने अपने आप को इन सबसे दूर रखा. मुझे अब किसी भी तरह का लगाव पसंद नहीं था, अकेले ही में मेरे जिंदगी को सवारने लगी पर रत्ना ने कुछ ही दिनों में अपने दोस्त बना लिए. उनके साथ पार्टी करना, देर रात तक बाहर रहना उसका रोज का हो चूका था, एक माँ होने के नाते वो मुझे सब कुछ बताती थी और मैंने भी कभी उसकी किसी भी चीज के लिए मना नहीं किया. शायद यही बात आगे चलके मेरे जिंदगी को बदलने वाली थी, रत्ना के दोस्त आये दिन घर आने लगे थे कभी पढाई का बहाना करके तो कभी किसी और चीज़ के लिए. मुझे मेरे बेटी पर पूरा विश्वास था इसलिए मैंने भी उसके दोस्तों की आने जाने पर कभी उसको टोका नहीं और ना ही रत्ना को कोई सवाल जवाब किया.

पूरा दिन काम करने के बाद जब भी घर आती तो रत्ना कभी घर पर मिलती या कभी नहीं, पर एक चीज थी की वो मेरे लिए खाना जरूर बनाके रखती थी. उसे पता था की उसकी माँ उसके लिए ही इतने कष्ट झेल रही है, अपने बलबुते पर उसकी परवरिश कर रही है और मुझे भी उसके ऐसे समझदार स्वभाव का अभिमान था. रोज काम करके रात को घर आती, बेटी का बनाया खाना खाती और कुछ देर टीवी देख कर सो जाती, मेरी तो जैसे जिंदगी जैसे ख़तम हो चुकी थी. कभी कभार रत्ना से बात भी होती, एक दूसरे के जिंदगी के बारे में हम दोनों किसी सहेली की तरह एक दूसरे से सब शेयर कर देती, जब भी रत्ना मेरे साथ होती तो बिलकुल किसी बच्ची की तरह मुझे चिपक कर सोती. एक दिन ऐसे ही मेने मजाक मजाक में उससे पूछ भी लिया की कही उसने कोई बॉयफ्रेंड तो नहीं बना लिया? तो उसने भी मजाक में मेरे कान खिंच के बोली, "मैं तो खुद आपको बता दूंगी पर आपने तो नहीं कही कुछ कर दिया?" और हम दोनों माँ बेटी जोर जोर से हसने लगे.

आज भी मैं बुरी तरह थक के घर वापिस आयी, रात के करीब ९ बजके गए थे और मेरे अंदाज के हिसाब से रत्ना आज भी किसी दोस्त के पास गयी होगी, चाबी से अपना दरवाजा खोलके मैं घर में दाखिल हुई तो मुझे एक बहोत बड़ा सरप्राइज़ मिला. मेरी बेटी और उसके कुछ दोस्तों में मिलके पुरे हॉल को सजाया था, "HAPPY BIRTHDAY" का बड़ा सा बोर्ड देख के मुझे बहोत ख़ुशी हुई, मैं खुद ही भूल गयी थी की आज मेरा जन्मदिन भी है. पर मेरे बेटी को इस बात को नहीं भूली, उसे याद था अपनी माँ का जन्मदिन, ये सोचते हुए मेरे आंसू निकलने लगे पर उसके दोस्तों ने मुझे शांत किया और हम लोग मेरे जन्मदिवस मनाने लगे.

पड़ोस के कुछ लड़के और कुछ लड़कियों के साथ मिलके रत्ना ने मेरा जन्मदिन बड़ी धूमधाम से मनाने का पूरा इंतजाम किया था, वैसे तो में शराब पीती तो थी पर बस बियर या फिर वोडका. पर आज टेबल पर व्हिस्की भी मौजूद थी पर मैने ये सोच के नजर अंदाज कर दिया की आज के दिन चलता है और वैसे भी रत्ना ने बहोत किया था मेरे लिए, उम्र में तो मैं बड़ी थी पर मुझसे ज्यादा समझदार मेरी बेटी ही थी. समय जैसे जैसे बढ़ने लगा वैसे वैसे सब लोग पार्टी के मूड में आ गए, केक काटने के बाद सभी ने अपनी अपनी पसंद की शराब उठायी की तभी मेरा ध्यान गया एक ५०-५५ साल के आदमी पर. मैंने कुतूहल से उनका नाम पूछा तो रत्ना खुद आगे बढ़कर बोली, "अरे मम्मी ये तो हमारे पाटिल चाचा है इसी बिल्डिंग के छटे मंजिल पर है उनका घर और हाँ ये सारा इंतजाम भी चाचाजी ने ही करवाया है"

मैंने भी हाथ जोड़के उनको नमस्ते किया और उनको धन्यवाद दिया, सारे जवान लड़के और लड़किया अपना अपना ज़ाम उठाके डांस करने लगे और मैं मिस्टर पाटिल एक दूसरे से जान पहचान करने लगे. खाने पिने का पूरा इंतजाम और सजावट देख के मैं बार बार पाटिल जी को धन्यवाद दे रही थी पर वो ये कहके टाल देते की पडोसी ही पडोसी के काम आता है. अचानक रत्ना मेरे पास आयी और उसने मेरा हाथ खिंच के मुझे भी डांस करने के लिए कहने लगी, मैंने भी बिना कोई विरोध किया अपने बेटी और उसके दोस्तों के साथ डांस करना चालू किया. तब रत्ना ने पाटिल जी को भी हमारी तरह खिंचा और बोली, "चलो चाचाजी, आप भी थोड़ा दिखाओ आपका जलवा" और उसकी इस बात पर सब हसने लगे.

रत्ना और पाटिल जी दोनों डांस करने लगे और यहाँ पर नेहा के कुछ दोस्त मेरे साथ डांस करने लगे, बड़ी देर हम लोग दारू पिते रहे और डांस करते रहे. पर मैंने अब जोरदार आवाज देते हुए बच्चों से कहा, "चलो बच्चों अब और कोई शराब नहीं पियेगा, मजा उतना ही करो जितनी उम्र हो. चलो अब सब लोग खाना खाते है". मेरे आकाशवाणी को सुनते ही सभी ने अपने अपने गिलास ख़ाली कर दिए और खाना खाने लगे, पाटिल जी ने भी अपना गिलास निचे रखा ही था की तभी रत्ना बोली, "अरे चाचा, बच्चों को मना किया है मम्मी ने, आप तो एंजॉय करो?". सारे बच्चे एक तरफ बैठ के खाना खाने लगे और मैं पाटिल जी के साथ बैठ के वही एक हॉल के कोने में उनसे बाते करने लगी, एक दूसरे से पहेली बार मिलते हुए भी हम दोनों काफी खुलके बाते कर रहे थे. बातों बातों में पता चला की पाटिल साहब की बीवी अब इस दुनिया में नहीं रही, एक सड़क दुर्घटना में उन्होंने अपनी बीवी को खो दिया. इस बात को भले ही १० साल से ऊपर हो गया था पर फिर भी उन्होंने दूसरी शादी नहीं की थी और मुझे इस बात पर बड़ा आश्चर्य हुवा.

मेरे चेहरे पर आश्चर्य की छठा देख के पाटिल साहब ने कहा, "मैं समझ रहा हूँ आप क्या सोच रही है पर सच कहता हूँ ममता जी, बहोत प्यार करता हूँ अब भी मैं उससे, पता नहीं क्यों छोड़के चली गयी?". उनकी दर्दभरी आवाज से मेरा दिल भी पिघल गया और मैं बोली, "यही तो किस्मत का खेल है पाटिल साहब, आप खोना नहीं चाहते थे पर तक़दीर ने छीन लिया और मेरी किस्मत देखो, ख़ुद के ही घर से ठुकरा दिया उसने मुझे". देखा जाए तो मैं और पाटिल साहब एक ही कश्ती के सवारी थे, दोनों के दुःख एक जैसे ही थे पर उनका अपने बीवी के प्रति प्यार और लॉयल्टी देख के मुझे मेरे पति पर और ज्यादा गुस्सा आने लगा. पाटिल साहब से बात करते करते उनका नाम भी पता चला, "मानस पाटिल", सरकारी कर्मचारी थी किसी बड़े औदे पर, बिलकुल किसी सामान्य व्यक्ति की तरह पर उनका रुबाब कुछ और ही था...

बच्चे खाना ख़तम करके अपने अपने घर जा रहे थे बस मुक्ति, आरव और रत्ना ही बचे थे पर मुक्ति ने भी कुछ बहाना देके निकल गयी. मैं और मानस जी बैठ के एक के बाद एक दारु के गिलास खाली करने लगे और देखते ही देखते रात के ११ बज चुके थे. अचानक मुझे रत्ना का ख्याल आया तो मैंने मानसजी से रुकने को कहा, वैसे भी कल शनिवार था तो ऑफिस जाने की टेंशन नहीं थी. मैंने हलके से उसके ररूम में झांक के देखा, वैसे लाइट तो बंद थी पर किसी के सिसकने की आवाज आ रही थी, तभी मेरे कानो पर आरव की धीमी आवाज सुनाई दी...

आरव: शहशह्ह्हह धीरे बोलो, आंटी बाहर ही है कही हमारी आवाज ना सुन ले

रत्ना: अब इतने जोर से चुसोगे तो आवाज तो निकलेगी ना? उस दिन के जैसे चुसो ना आराम आराम से

कुछ देर के लिए तो मुझे मेरे कानो पर विश्वास ही नहीं हुवा, मेरी बेटी किसी लड़के के साथ आपत्तिजनक स्थिति ने लगभग नंगी थी और वो लड़का मेरे बेटी की इज्जत के साथ खेल रहा था. आरव का सर मुझे उस धीमी रौशनी में दिखने लगा और मेरी साँसे रुक सी गयी, आरव ने मेरे बेटी रत्ना को निचे से पूरा नंगा कर दिया था और अपना सर रत्ना की जाँघों में घुसाके उसकी...उसकी हाय मुझे खुद शर्म आ रही है बोलते हुए....

मेरा आश्चर्य अब गुस्से में बदलने अलग और मैं दरवाजा खोलके अंदर जाने ही वाली थी की तभी मुझे ऐसा लगा की मैं गलत कर रही हूँ, ऐसे पल में उन दोनों को पकड़ना मेरे लिए ही गलत साबित होने वाला था. एक तो मेरा और मेरे बेटी का जो खुलेपन का रिश्ता था वो भी ख़तम हो जाता और सबके सामने मेरे घर की इज्जत भी खतरे में आ जाती क्यूंकि अगर में इनको चिल्लाती तो बाहर बैठे मानसजी को भी पता चल जाता की मेरी ही बेटी उसके यार के साथ रंगरेलिया मन रही है. क्या करू और क्या नहीं ये सोचने की क्षमता जैसे गायब हो गयी थी मेरे अंदर से, तभी मुझे रत्ना की आवाज आयी, "आह्ह्ह्हह मेरे जान, मेरी पतिदेव चुसो ऐसे ही अब मजा आ रहा है आपकी बीवी को.... "

आरव ने भी झट से बोल दिया, "हाय मेरी जान, इतनी खूबसूरत है मेरे बीवी की चुत इसीलिए तो तेरे साथ शादी करूँगा मेरी रत्ना, आज जी भरके खाने दे तेरी चुत मुझे". में फिरसे सोचने लगी, क्या इसका मतलब ये दोनों शादी करने की सोच रहे है? हे भगवान क्या सच है ये? क्या सच में मेरी बेटी इसको अपना पति बनाएगी? पर दूसरा दिमाख बोलै की क्या बुरा है अगर ये आगे जाके शादी करने ही वाले है तो क्यों रोकू इनको?. ये सोच के मैं मुड़ने ही वाली थी पर ना जाने कैसे मुझे अंदर झाँकने का मन करने लगा, बरसों बाद किसी को कामसुख तेरे हुए देख रही थी मैं.

हां सही पहचाना आपने, इससे पहले भी मैंने अपनी आँखों से चुदाई देखि थी और वो थी मेरे मम्मी पापा की, बस २० साल की थी मैं जब एक रात को किसी आवाज के वजह से मेरी नींद खुल गयी थी और वो रात आज तक मेरे आँखों से जाती नहीं. मेरे दिमाख ने भी मुझे समझाना चालू किया, कामसुख हर एक इंसान की जरुरत है फिर चाहे वो मर्द हो या औरत, हर एक को अपने हिसाब से अपना अपना कामक्रीड़ा का साथी चुनने की मुभा है और वैसे ही है मेरे बेटी को. इसी विचार के साथ मैं फिरसे अंदर झाँकने लगी, मानस जी बाहर मेरा इंतजार कर रहे थे ये बात तो बिलकुल मेरे दिमाख से निकल गयी, अंदर मेरी बेटी ने अब आरव की पैंट उतर दी और एक झटके में उसका लौड़ा बाहर खिंच लिया.

रत्ना: वाह मेरे जानू, अच्छा हुवा तेरी बीवी बनी मैं, अब जिंदगी भर इसी लौड़े से चुदवाऊँगी।

रत्ना ने बिना देर किया आरव का लौड़ा अपने मुँह में ले लिया, किसी औरत की तरह वो १८-१९ साल की लड़की एक लड़के का लंड चूस रही थी. मेरे वैवाहिक जीवन काल में कभी मैंने अपने पति का या मेरे पति ने मेरा गुप्तांग नहीं चूस था और ये नया खेल देख के तो मेरे अंदर की वासना की आग फिरसे भड़कने लगी. आज कुछ नया सिखने को मिल रहा था, कुछ नया दिख रहा था तो मेरी उत्सुकता और बढ़ने लगी उन दोनों को पूरा नंगा होते देख मेरे भी हाथ अब मेरे सारी के अंदर घुसाने लगा.

अंदर मेरी बेटी और मेरा होने वाला दामाद के दूसरे को पूरा नंगा कर रहे थे, एक दूसरे को किसी पागल भूके कुत्ते की तरह चाट रहे थे और उनका ये खेला देख के मेरे अंदर दबी कामवासना की चिंगारी भड़कने लगी. मेरा हाथ साडी के अंदर घुसके मेरे चड्डी के ऊपर से ही मेरे फुद्दी को सहलाने लगा, दूसरे हाथ में मेरे सीने पर फुले मुम्मों को मसलना चालू किया और मैं किसी बेशरम रंडी की तरह उनको देख रही थी. दोनों के दूसरे से ऐसे चिपक चुके थे की उन दोनों के बिच में से हवा भी नहीं निकल सकती, रत्ना बेटी का जवान बदन देख के लग रहा था की वो भी अपनी माँ की तरह सुन्दर बदन की मालकिन है. उसकी कमसिन चूँचिया और उसके ऊपर फुले निप्पल्स को आरव चूस चूस के गिला कर रहा था, रत्ना के जांघो के बिच तो जैसे सैलाब आ गया था.

आरव का लंड इस उम्र में भी अच्छा खासा लम्बा था, थोडा काला था पर उसपर एक अलग किसम की चमक दिखाई दे रही थी और मेरी बेटी ने उस लौड़े को अपने मुँह में लेके उसका स्वाद लेना जारी रखा था. कुछ देर एक दूसरे को चूसते चूसते दोनों ने अपना कामरस एक दूसरे के मुँह में ही निकाल दिया, आरव ने रत्ना के चुत का पानी पूरा चाट चाट के पि गया और उधर मेरे बेटी ने भी किसी बेशरम रंडी की तरह आरव के लौड़े का पानी पि लिया. मेरे पति ने या मैंने कभी जिंदगी में ऐसा कामसुख नहीं लिया था, वो बस आता, साडी ऊपर करके उसका डंडा अंदर घुसता, चुम्मा चाटी करके कुछ देर धक्के लगता और फिर अपना पानी मेरे चुत में निकाल के सो जाता. अब तक तो मुझे वही लग रहा था की वही चुदाई होती है अपर आज इन दोनों को देख के मुझे महसूस हो रहा था की चुदाई का मजा कैसे लेते है.

आरव ने अब मेरे बेटी को बिस्तर पर लिटाया और फिर से अपना लौड़ा उसके मुँह में दे दिया, उसके सर के पास खड़ा रहके उसने अपना लौड़ा रत्ना में मुँह में दे के उसको खड़ा करने लगा. रत्ना भी बड़ी चुद्दकड निकली, कैसे लाज शर्म छोड़के एक जवान लौंडे का लंड मुँह में लेके चूस रही थी और अपनी दोनों टाँगे खोल के अपने चुत का दर्शन आरव को दे रही थी. आरव उसके मुम्मे सहलाते हुए बोलै, "क्या मस्त चूस रही है मेरी रांड बीवी, आज तो लगता है तेरे चुत में कुछ ज्यादा ही आग लगी है...". आरव का लंड मुँह से निकालते हुए मेरी बेटी ने झट से कहा, "इसीलिए तो आज तुझे बुलाया मेरे मालिक, चोद चोद के फाड़ दो मेरी चुत, बहोत आग है तेरे बीवी की भोसड़ी में" और फिर से लौड़ा मुँह में भरके चूसने लगी. यहाँ मेरा हाथ और ख़राब हो रहा था, मेरा हाथ अब मेरे चड्डी के भी अंदर घुसके मेरे चुत का दाना रगड़ने लगा, मेरे निप्पल्स खड़े हो चुके थे और मेरे फुद्दी का पानी मेरे उंगलियों को और मेरे चड्डी को गिला करने वाला था.

उधर आरव का लंड भी पूरा खड़ा हो चूका था और मेरे बेटी की जवानी लूटने के इरादा उसकी आँखों में साफ दिख रहा था पर यहाँ तो मेरी बेटी खुद उससे चुदवाने के लिए तड़प रही थी. आरव अपना गिला लौड़ा लेके रत्ना बेटी के चुत के पास खड़ा हुवा, रत्ना की टाँगे उसने खुद फैला दी और अपने जवानी का खजिना अपने पति के सामने खुला कर दिया. आरव ने अपना लौड़ा झट से मेरे बेटी रत्ना के फुद्दी पर रखा और हलके हलके झटके मार के अपना लंड मेरे बेटी की चुत में घुसाने लगा. मुझे लगा शायद रत्ना को तकलीफ होगी, उसकी चुत से खून निकलेगा पर यहाँ तो कुछ और ही हो रहा था. २-३ झटकों में ही आरव का ६ इंच का लौड़ा रत्ना के भोसड़ी में गायब हो गया और रत्ना किसी चुदी-चुदाई बाजारू रंडी की तरह गांड उठाके आरव के लौड़े से चुदने लगी.

दोनों अब धीरे धीरे चुदाई का मजा ले रहे थे, रत्ना की सिसकिया निकलना चालू हो चुकी थी पर मेरे डर की वजह से वो धीरे धीरे सिसक रही थी और आरव तो उसके चूँची चूस रहा था. पूरा ६ इंच का लम्बा लंड मेरी बेटी बिना किसी दिक्कत के अपने चुत में ले रही थी मतलब समझ रहे हो ना? हाँ इसका मतलब मेरी बेटी पहले भी चुदवा चुकी है, किसीने उसकी फुद्दी को बहोत बार चोदा है अपना लौड़ा घुसाके. मुझे समझ नहीं आ रहा था की क्या सच में आरव ने मेरे बेटी की नथ उतरी है या इस रंडी ने कही और भी अपना मुँह कला किया है. पर मेरा दिमाख अब कुछ और ही सोच रहा था इसीलिए वो खयाल मेरे दिमाख से निकल गया, उन दोनों की चुदाई देख के मेने मेरी ३ उंगलिया मेरे भोसड़े में घुसा दी, ब्लाऊज़ के बटन खोलके मैंने अपनी चूँचियों को ब्रा के ऊपर से मसलना चालू किया और एक साथ से मैंने मेरी चड्डी अपने बदन से निकाल के एक कोने में फेंक दी.

जैसे जैसे उन दोनों का जोश बढ़ने लगा वैसे वैसे आरव ने मेरी बेटी रत्ना को पुरे ताकत से चोदना चालू किया, रत्ना के दोनों चूँची को पकड़ के वो बुरी तरह से मसल रहा था. निप्पल्स को मुँह में लेके चूसते हुए उसने मेरे बेटी की ३२ इंच के चूंचे लाल कर दिए, निप्पल्स तो मानो फुल्के एक इंच तक उभर आये थे और रत्ना की चुत का पानी अब आरव के लौड़े पर गिरने लगा था. उन दोनों की पीठ मेरे तरह होने के कारण मुझे मेरे बेटी की चुत से निकलता पानी और आरव का लंड साफ दिख रहा था, रत्ना दोनों टाँगे फैलाके आरव का लौड़ा अपनी चुत में ले रही थी और आरव भी उसको किसी बाजारू रंडी की तरह चोद रहा था. बड़े दिन से मैंने चुदाई का मजा नहीं लिया था और सामने की चुदाई देख के मेरे चुत का पानी अब टपकने ही वाला था पर मैं अपने आप को सम्भलनेवाली ही थी की तभी मुझे मेरे चूँचों पर किसी और इंसान का हाथ महसूस हुवा.

मैं डर के चींखने ही वाली थी की उसने मेरा मुँह बंद कर दिया, मानस जी ही थे वो और ये क्या इतना बड़ा लौड़ा? हे भगवन... मेरे पीछे खड़े होके ना जाने कितनी देर से वो मुझे देख रहे थे. मैं एक बेशरम औरत की तरह अपने ही घर में अपने ही बेटी की चुदाई देख के मेरी चुत रगड़ रही थी और वो भी मानस जी के सामने, ये सोच के ही मैं डर गयी, मुझे अपने आप पर शर्म आने लगी और उनसे हाथ छुड़ाने की कोशिश करने लगी. मेरा विरोध देख मानस जी ने मुझे इशारे से ही शांत होने को कहा, खुद अपना हाथ मेरे चुत पर रखते हुए मेरे पीछे खड़े हो गए और धीरे से मेरे कान में कहा, "अब चुपचाप मजे लो और मुझे भी लेने दो, सब कुछ खुल गया है, ज्यादा नाटक मत करो समझी?". उनका हाथ अब भी मेरे मुँह को दबाये था, दूसरे हाथ ने बेधड़क एंट्री करते हुए मेरे चुत को सहलाना चालू किया.

अब बाकी ही क्या रह गया था? मानस जी ने मुझे देख ही लिया था की मैं खुद अपने बिन बिहाई बेटी की चुदाई देख के चुत सेहला रही थी, क्या लगा होगा मानस जी को? मेरे पास चुपचाप उनका कहा मानने अलावा कोई रास्ता ही नहीं था. मेरे नंगी फुद्दी पर मानस जी हाथ रेंगने लगा, कभी चुत का दाना तो कभी चुत की पंखुड़ियां सहलाते हुए मानस जी ने मुझे फिर से गरम करना चालू किया. मेरा विरोध काम होने लगा और मानस जी ने मेरे मुँह पर रखा हाथ हटा लिया, धीरे धीरे कमर पर बंधी साडी खींचते हुए उन्होंने कुछ ही सेकण्ड में मुझे आधी नंगी कर दिया. ब्लाउज तो मैं खुद खोला था अपनी बेटी की चुदाई देखते हुए, मानस जी के सामने मैं अब बस साया और ब्रा में खड़ी थी, मेरे ३६ इंच के बोबे उनके सामने तन के खड़े थे. मानस जी का लैंड मेरे साये के ऊपर से मेरी जांघों पर रगड़ने लगा और मेरे दिल की धड़कन तेज चलने लगी, एक ही घर में माँ और बेटी दोनों भी अपने अपने यार से चुदाई करने लगी थी.

अंदर आरव का लौड़ा मेरे बेटी की चुत फाड़ रहा था, उसका जोश देख के लग रहा था जैसे वो मेरे फूल सी बेटी की जान निकाल देगा पर रत्ना को देख के ऐसा बिलकुल भी नहीं लग रहा था की उसको कोई पीड़ा या दर्द हो रहा है. वो तो खुद अपनी गांड उठा उठा के आरव के सामने रंडी की तरह टाँगे फैलकै चुद रही थी और इधर उसकी माँ पडोसी मानस जी के बाँहों में नंगी खड़ी थी. मानस जी की उंगलिया अब धीरे धीरे मेरे चुत की गहराइयाँ नापने लगी थी, दूसरे हाथ से मेरे ब्रा को निकालते हुयी उन्होंने मेरे चूंचे नंगे कर दिए और उनकी टोंटियाँ पकड़ के मसलने लगे. मेरे मुँह से भी अब सिसकियाँ निकलने लगी थी, कमसे काम १ साल के बाद मेरे बदन पर पुरुष का एहसास हो रहा था मेरी चुत अब चुदने के लिए बेताब हो रही थी. मेरे चूँचियोंको मसलना बंद करके मानस जी ने मेरा हाथ पकड़ कर अपने लौड़े पे लाया और बोले, "इसे हिलाओ ममता, सेहला मेरा लौड़ा देख कैसे तेरी बेटी मजे से उस लड़के से चुद रही है, साली बिलकुल रंडी लग रही है तेरी बेटी."

मेरे पास कहने के लिए कुछ नहीं था, कहती भी तो क्या? मैंने चुपचाप अपना हाथ मानस जी के लौड़े के ऊपर रखा तो मुझे आश्चर्य हुवा की इस उम्र में भी उनका लौड़ा लम्बा चौड़ा था. उस वक़्त ठीक से नाप नहि सकी पर बाद में पता चला की इस अधेड़ उम्र के पुरुष का लौड़ा साढ़े साथ इंच लम्बा है और ढाई इंच जाड़ा, खड़े खड़े उनका लौड़ा सहलाते हुए मैं फिरसे अंदर झाकने लगी. मानस जी मेरे बेटी की चुदाई देख के मुझे गर्दन पर और पीठ पर चूमने लगे, मेरे हाथ में उनका लौड़ा और गरम हो रहा था और उनके उँगलियों से मेरी चुत भी टपकने लगी थी. मानस जी ने कुछ देर मेरा बदन को चूमा और मुझे मेरी पीठ से निचे दबाते हुए घुटनो पर बिठाया, उनका लौड़ा अब बिलकुल मेरे आँखों के सामने मंडराने लगा था. सुपडे पर उनके लौड़े के पानी की कुछ बुँदे थी इसलिए वो चमक रहा था, लौड़े की हर एक नस फूल के उभर आयी थी, काला लौड़ा मेरे जैसे अधेड़ उम्र की औरत को देख के भी ऐसे खड़ा था जैसे कोई नौजवान हो.

मेरे सर को अपने लौड़े की तरफ खींचते हुए उंहोने ने मेरी आँखों में देखा और धीरे से बोले, "चूस ले ममता, आज तेरी चुत भी सारी रात इसी लौड़े से चुदने वाली है, खोल मुँह मेरी रांड, चूस ले मेरा काला लंड". आज से पहले मैंने कभी ना तो लौड़ा चूस था नाही की किसी को ऐसे करते देखा या सुना था पर आज मेरे बेटी रत्ना के कारनामे देख के मुझमे भी कुछ अलग भावना पैदा हो रही थी. शायद किसी पराये मर्द के सहवास की कल्पना से मेरे अंदर की एक हवस से भरी रंडी बाहर थी, आगे पीछे की सोचने का वक़्त भी नहीं था और ना ही परिस्थिति. मानस जी के लौड़े पर मैंने हलके से मेरे ओंठ रखे, गरम लौड़े से मेरे ओंठ भी गरम होने लगे तह और उस लौड़े की एक भीनी भीनी खुशबु मेरे नाक में घुसने लगी. पता नहीं कैसे पर मेरी जबान अपने आप बाहर आके मानस की लौड़े को और उसपर फुले हुए सुपडे को चाटने लगी, सुपडे के ऊपर पूरी चमड़ी थी, उस खाल को पीछे खरते हुए मैंने उनका सूपड़ा खुला किया और मेरी जबान झट से उस सुपडे पर चलने लगी.

आअह्ह्ह्हह ममताआआअ की एक धीमी आवाज मानस जी के मुँह से निकली और उन्होंने झट से उनका लौड़ा मेरे मुँह में भर दिया, पूरा लंड तो मेरे मुँह में जाने से रहा पर कमसे काम ३ इंच का लंड मेरे मुँह में घुसके बाहर आने लगा. मेरे बालो को सहलाते हुए मानस जी ने मेरे मुँह को धीरे धीरे चोदना चालू किया, मेरा एक हाथ उनके लंड को पकड़ के सेहला रहा था और दूसरे हाथ से मैंने उनके गोलिया सहलाने लगी. बिलकुल मगन होके मैं मानस जी ले लंड को चूस ही रही थी की तभी अंदर से एक जोर की सिसकी निकली, "आह्ह्ह्हह्ह धीरे करो मेरे पतिदेव, गांड फाड़ दोगे क्या?". मुझे कुछ पल के लिए मेरे कानों पर विश्वास ही नहीं जो मैंने सुना, मतलब आरव अब मेरे बेटी की गांड मार रहा था? ऐसे सेक्स ना तो कभी सुना था ना ही कभी देखा था पर मेरी बेटी तो इस चुदाई के खेल में मुझसे दो कदम आगे थी. आरव के लौड़े का सूपड़ा पूरा मेरे बेटी की गांड में घुस चूका था, रत्ना कुटिया बन चुकी थी, उसकी गांड देख के किसी भी आदमी का लौड़ा खड़ा होगा ऐसे फूली हुई थी.

कमसे काम ३८ इंच की गांड देख के मानस जी का लौड़ा भी एक बार मेरे हाथ में ठुमकने लगा, रत्ना की कमर पकड़ के आरव धीरे धीरे उसका लंड मेरे बेटी की गांड में घुसा रहा था. मानसजी का लौड़ा उन्होंने फिर से मेरे मुँह में देते हुए कहा, "वाह ममता क्या बेटी पैदा की है तूने, आज तो इसने मेरे आँखों को जन्नत दिखा दी मेरी जान, ले मेरी रंडी तू भी चूस तेरे यार का लौड़ा बहनचोद". चुदाई का माहौल ऐसे बन चूका था की मैं चुपचाप मानस जी की हर बात मान रही थी, घुटनो पर बैठके मानस जी का लौड़ा चूसते हुए मैंने भी मेरी फुद्दी को रगड़ना चालू किया. जैसे ही मानस जी को इस बात का आभास हुवा तो उन्होंने मुझे खड़ी किया, दरवाजे के पास की दिवार की तरफ मेरा मुँह करके खुद मेरे पीछे जाके घुटनो पर बैठ गए. मेरी फूली हुई ४२ इंच की गांड को देख के मानस जी पागल हो गए, गांड फैलाके उन्होंने सीधा अपनी जबान मेरे गांड के छेद पर रख दी और मेरे लम्बी सिसकी निकल गयी.