बेटी को देख माँ चुद गयी

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कमरे में तेज AC और पंखे के चलते भी मेरा और मानस जी का बदन पसीने से भीग चूका था और चणक चुत्तडों का खुलना कमाल कर गया. ठंडी थड़ी हवा का झोका मेरे पसीने से भीगी गांड पर चलने लगा, पर कुछ ही देर तक क्यूंकि उस खूंखार आदमखोर मर्द ने मेरे गांड में फिरसे अपने जबान घुसा दी. आआह्ह्ह्हह्ह ुह्ह्हम्म्म्म मानसजीईई की ललकार फिरसे मेरे मुँह से उनको सुनाई दि पर उसको ना सुनते हुए उन्होंने मेरे गांड का पसीना चाटना जारी रखा. बिस्तर पर पड़ी पड़ी मैंने मेरे हाथ पीछे घुमाके उनके सर पर रखे और उनका मुँह मेरे गांड में दबाने लगी, निचे मेरे फुद्दी में लगी आग बुझने का नाम नहीं ले रही थी. मेरे गांड का छेद चाट चाट के उनका मन भर जाने के बाद उन्होंने मेरे गांड पर छाता मरते हुए कहा, "चल मेरी रांड, कुत्तिया बन जा मेरी रंडी, आज तेरी गांड का पिटारा देख कैसे खोलता हूँ".

अब ये कुत्तिया बनना क्या होता है ये तो मुझे पता ही नहीं था पर शायद वो मुझे झुकने को बोल रहे थे, रत्ना भी कुछ देर पहले आरव से ऐसे ही चुदवा रही थी. मतलब मानसजी भी मेरी गांड मारेंगे? मैंने बिना कुछ बोले उनकी आँखों में देखा तो उनको मेरे डर का पता चला. मेरी मनोदशा समझते हुए वो हसने लगे और बोले, "डर मत ममता, आज तो सिर्फ तेरी फुद्दी ही चोदुँगा, तेरे गांड का ख़जाना किसी और दिन लूटूँगा". मतलब साफ़ था की वो अब पीछे से मेरे चुत को चोदना चाहते थे, उनका लौड़ा देख के ये लग भी नहीं रहा था की वो रुकने के मूड में है. मैंने भी चुपचपा घुटनों के बल होते हुए, मेरी गांड उनके सामने खोल दी, मेरे चूतड़ों पर प्यार से सहलाते हुए मानस जी बोले, "क्या खूबसूरत हो तुम ममता, लगता है बड़ा चूतिया था तेरा पति बहनचोद, पर आज के बाद तू सिर्फ मेरी है". मानस जी झट से पलंग के निचे उतर गए और मुझे बीएड के किनारे सरका लिया, एक हाथ से उन्होंने मेरा सर आगे की और दबाके मेरी गांड और ऊपर उठवा दी.

मेरे फटे हुए भोसड़े का छेद उनके लौड़े के ठीक सामने था, मेरी गर्दन निचे झुकी होने के कारण मुझे मेरे पेट की तरफ से निचे का सब कुछ दिख रहा था, एक साथ से लौड़ा पकड़ के मानस जी ने उसके ऊपर अपनी थूक लगा दी. मेरी फुद्दी तो अब भी गीली थी, उनका सूपड़ा गिला करके मेरे फुद्दी के दरवाजे पर दस्तक देने लगा और अगले ही पल मानस जी ने तगड़ा धक्का लगते हुए फिरसे मेरे चुत को खोल दिया. कामवासना की चित्कार ने मेरे अंदर की ख़ुशी ज़ाहिर कर दी, मेरे बालों को खींचते हुए मानस जी धीरे धीरे मेरे चुत को चोदने लगे, पुआ लौड़ा फिर से मेरे फुद्दी की दीवारें घिसने लगा. मानसजी की जाँघे मेरे चूतड़ों पर पटकने के कारन पुरे कमरे में थप-थप की आवाजें गूंज उठी, लौड़े की ताकत देख के पता चल रहा था की अब लौड़ा घोड़े की तरह दौड़ेगा. मेरा मन तो था की मैं ऐसे सारी रत चुदवाती रहूं पर मेरा शरीर जवाब दे रहा था, पूरा दिन ऑफिस में काम करने के बाद और एक घंटे में २ बार झड़ने के बाद ये तो होना ही था.

मेरे चुत के पानी से उनका लंड भी सटासट अंदर बाहर हो रहा था, मेरे चुत की दीवारें उनका लंड जखड़ने की कोशिश कर रही थी पर बेचारी हर वक्त असफ़लता ही उनके नसीब में थी, ख़ुशी तो इस बात की थी की लौड़ा पूरी शिद्ददत से उनको चुम रहा था. मानस जी की गति काफ़ी बढ़ चुकी थी, पलंग भी उनके हर एक धक्के से झटके खा रहा था और मैं उनके लौड़े के सामने उनकी बाजारू कुत्तिया बनके चुद रही थी. हर एक वार उनके लौड़े को मेरे बच्चेदानी के आरपार लेके जा रहा था, मेरी गांड गदराई थी, चरबी से भरपूर मांसल थी और चुदाई में उनपर तरंगे उठ रही थी. एक हाथसे मेरे बाल खिंच के वो मुझे ऐसे दिखा रहे थे जैसे की मैं उनकी गुलाम हूँ और उनके सामने झुकना मेरा काम ही है, दूसरा हाथ मेरे दोनों चूतड़ों पर बारी बारी पड़ रहा था. "ले ममता रांड, चुद ले मेरी लावारिस रंडी, आह्ह्ह्ह बहनचोद क्या मस्त फुद्दी है तेरी छिनाल, ले ले मेरे काले लौड़े को" कहते हुए किसी सांड की तरह मानस जी मेरे ऊपर टूट पड़े.

हवस की आग में अंधे हो चुके थे हम दोनों, इस बात का पता ही नहीं चला की इस घर में एक जवान बेटी भी है और नए नए शादी शुदा जोड़े की तरह पहली रात जैसे चुदाई करते हुए मैं और मानसजी एक दसूरे में खो चुके थे. मानस जी ने अब मेरे बाल छोड़े और उनके दोनों हाथ मेरे निचे लटके चूचिओं पर आ गए, मेरे दोनों आम मानसजी ने किसी आते की तरह गुथने चालू किये। उनकी छाती अब मेरे पीठ पर थी, उनका मुँह मेरे मुँह के आसपास, मानसजी की गरम साँसे मुझे मेरे गर्दन पर महसूस होने लगी थी और अगले ही पल उन्होंने ने मेरी गर्दन पर जबान से चाटना चालू किया. औरत की सबसे बड़ी कमज़ोरी, सब मर्द जानते है क्यों सही कहा न? मानसजी ने भी वही वार किया, एक तो मेरे निप्पल्स निचोड़े और फिर मेरी गर्दन पर चाटने लगे. कोनसी औरत इस हमले से बच पायी है? मैं भी तो औरत ही हूँ, ऐसे दोहरे आघात से मेरे भोसड़े का अपनी फिर से मानस जी का लौड़े पर निकाल दिया. इस बार तो इतना भी दम नहीं बचा की चिल्ला सकू, बस मेरा बदन ही था जो मेरी मनोदशा बता रहा था और मैं किसी बेजान पत्थर की तरह बिस्तर पर लेट गयी.

मानस जी ने फिर भी मुझे नहीं छोड़ा, मेरी कमर को पकड़ के उन्होंने ऊपर उठा दी और टूट पड़े मुझ पर, अब तो चुत में जलन होने लगी थी, लग रहा था जैसे अंदर से पूरी तरह छील चुकी हो. मानस जी का बर्ताव बिलकुल किसी जंगली जानवर की तरह था, मेरी परवाह किये बिना वो बस मुझे चोद रहे थे मेरे जवानी का भोग लगा रहे थे मानो मैं एक मामूली बाजारू रंडी हूँ जो पैसों के लिए किसी अनजान का बिस्तर गरम करने आयी हूँ. एक के बाद एक धक्कों से मेरे अंदर अब दर्द और पीडा उमड़ रही थी, पर मुझे ये भी लग रहा था की शायद वो भी जल्दी जल्दी अपने लौड़े का पानी मेरे अंदर निकालना चाह रहे है. किसी सांड की तरह हो गुर्राने लगे थे, आअह्हह्हंन्न आरगगगगगग आर्हर्हर्हर्हर्हर्हर्हर्हर्हर्हर्ह जैसे आवाजें निकलते हुए मानस जी मेरी चुत का भोसड़ा बनाते रहे और मैं उनके निचे दबी रही.

"आअह्ह्ह्हह ले ममताआए पिला रहा हु मेरा पानी तेरे भोसड़े को रंडी आआ बेहेंछोड़ड़ड़ड़ड़ड़ड़" की गर्जना करते हुए मानसजी ने पूरा लौड़ा मेरे अंदर ठूस दिया, बच्चेदानी फाड़के उनका सूपड़ा अंदर तक चूस गया. गरमा गरम वीर्यरस की पिचकारियाँ मुझे मेरे अंदर महसूस हो रही थी और मैं आँखे बंद करके वो मजा ले रही थी जो हर औरत चुदाई के इस खेल में लेना चाहती है. सारा रस मेरे अंदर निकाल के मानस जी कुछ देर मेरे पीठ पर लेटे रहे पर जैसे ही मैंने अपना बदन हिलाया उनको मेरे होने का मेरे मौजूदगी का आभास हुवा. शायद उनको भी पता था उन्होंने कैसे मुझे इस्तेमाल किया है इसलिए वो झट से मेरे ऊपर से उठ गए पर अचानक लौड़ा बाहर आने से मेरी चुत बुरी तरह रागादि और मैं जोर से चिल्ला दी, "ओह्ह्ह्हह्ह माआआआ". मेरे ऊपर से उठने के बाद मेरा ध्यान उनपर गया, पुरे नंगे खड़े थे वो मेरे सामने, और जैसे ही मेरी नजर निचे गयी तो मैं डर गयी, मानस जी के भाषा में बोलूं तो 'मेरी गांड फट गयी'.

पुरे शान से खड़ा था उनका लौड़ा, मुझे घर घर के देख रहा था कमीना, मानस जी को देख के मैंने बेशरमी से कहा, "खड़ा ही रहता है क्या हर वक्त? कुछ करो इसका." और धीरे से हसने लगी. मानस जी मेरे पास बैठ गए और मेरे बालों पर हाथ घुमाते बोले, "आज से तुम ही समझा देना इसको, मेरा कहा तो मानता नहीं शायद तुम्हारी सुन ले?" और इस बात पर हम दोनों हसने लगे. मुझे अपनी बाँहों में लेके मानस जी मुझे प्यार से सहलाने लगे, एक दर्दनाक चुदाई के बाद ऐसा प्यार का अनुभव मुझे कभी नहीं मिला था, उनके प्यार पर ये ममता लूट चुकी थी. पर ख़ुशी थी की आदमी सही चुना था मैंने. एक दूसरे को ऐसे ही नंगे लेके मैं और मानस जी कुछ देर लेटे रहे, कल छुट्टी का दिन था तो जल्दी उठने का टेंशन नहीं था, मानस जी ने भी झट से पूछ लिया, "हो गयी ठंडी? या और कुछ चाहिए?". एक साल के बाद इस भयंकर चुदाई से मेरे अंदर अब फिरसे चुदने की ताकत नहीं बची थी और मानसजी ने भी मेरे कहने को मानते हुए ऐसे ही नंगे लेटे लेटे बाते करने लगे.

रत्ना, उसका यार और ऐसी बहोत सारी बाते करते हुए हमारी आँख लग गयी, बेटी घर में होने के कारण मैंने मानस जी को सुबह जल्दी उनके घर भजे दिया. सुबह सुबह जब मेरी और मेरे बेटी की मुलाकात हुई तो हम दोनों भी एक दूसरे को देख के मुस्कुरा रहे थे, शायद मेरे बेटी रत्ना को पता चल चूका था की रात भर उसकी मम्मी क्या गुल खिला रही थी. पर उसको ये पता नहीं था की मैंने भी उसकी चोरी पकड़ ली है और मुझे इस बात से कोई प्रॉब्लम नहीं है. तो दोस्तों ये थी मेरी और मेरे बेटी की चुदाई की कहानी, आगे की कुछ और घटनाएं है पर कभी समय निकालके आपको बता दूंगी... तब तक मानस जी मंत्र जपते रहो "चोदते रहो, चुदवाते रहो"

समाप्तः

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2 Comments
AnonymousAnonymous5 months ago

Kahani likhna tumhare bas ki baat nahi

shang40shang40over 1 year ago

I want to see the hot sex of my daughter by a handsome guy especially of lower cast.

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