बेटी को देख माँ चुद गयी

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आरव और रत्ना दोनों अपनी धुन में थे तो उनको मेरी सिसकी सुनाई तो नहीं दी पर मानस जी ने मेरी सिसकी को सुन ही लिया, मेरे गांड से अपना मुँह उन्होंने ने बाहर किया और मेरे गांड पर एक जोर का चांटा मारा. "अबे ओ बेहेन की लौड़ी, पूरा मोहल्ला जमा करेगी क्या छिनाल? धीरे चिल्ला बहनचोद वरना तुझे भी तेरे बेटी के साथ लिटाके चोदुँगा " और फिर से उन्होने ने मेरी गांड चाटनी चालू कर दी. अब मेरे पर दोनों तरफ से अत्याचार हो रहे थे, एक तो मानस जी कर रहे थे और दूसरी और मेरी बेटी और मेरा होने वाला दामाद. गांड को चाटना तो छोड़ो कभी मेरे पति ने मेरे चुत्तड़ भी नहीं सहलाये थे और आज तो यहाँ मानस जी ने मेरी गांड का छेद ही अपने जबान से चाटना चालू किया था. गांड पर उनकी जबान और चुत पर उँगलियाँ ऐसे चलने लगी की मेरे चुत ने अब जवाब देना चालू किया, मेरे फुद्दी का रस बहता हुवा मेरे जांघों की तरफ बहने लगा.

मानसजी की जीवा मेरे फुद्दी पर रेंगने लगी और मैंने अपनी सिसकी दबाते हुए मेरे चुत का पानी उनके मुँह पर ख़ाली कर दिया, बिना किसी तिरस्कार से या घिन में मानसजी मेरे फुद्दी का चिपचिपा सा पानी पिने लगे. मेरा बदन उस झंडने की वजह से काँप रहा था, मेरे पैरों से मानो जान ही निकल गयी और मैं धड़ाम से मानस जी के ऊपर गिरने लगी। मानसजी को इस बात का आभास होते ही उन्होंने मुझे पकड़ा और अपनी बाहों में लेते फिरसे मुझे चूमने लगे, उनके मुँह पर और ओंठों पर मेरे चुत का कामरस लगा था और वो वैसे ही मुझे चूमने लगे. आज बहोत सी चीजे जिंदगी में पहली बार घट रही थी, मेरे ही चुत का पानी आज मैं चखा और वासना की आग क्या होती है और संभोगसुख की परिभाषा क्या होती है इसकी अनुभूति आज नए तरीके से हो रहो थी. एक पराये मर्द की बाँहों में लगभग नंगी खड़ी थी मैं, मेरे साये के अलावा मेरे बदन पर अब कोई कपडा नहीं बचा था और अंदर मेरी बेटी तो उस पराये लड़के से चुदवा रही थी. आरव और रत्ना का खयाल आते ही मैंने अपने ओंठ मानस जी के ओंठो से दूर ले गयी और गर्दन घुमाके हल्केसे मैंने अंदर झांक के देखा.

मेरी बेटी की गांड में आरव का लौड़ा आसानी से अंदर बाहर कर रहा था, मानों ना जाने कितनी बार मेरे बेटी की गांड आरव के लौड़े से चुद चुकी हो और वो नौजवान लड़का पूरी शिद्दत से रत्ना की गांड का छेद अपने लौड़े से खोल रहा था. मेरे बेटी की हालत देख के ऐसे लग रहा था की उसके बदन को भोगनेवाला आरव उसे किसी बाजारू रंडी की तरह इस्तेमाल कर रहा है, बिखरे हुए बाल और उसने शरीर पर बने चुदाई के निशान देख के कोई भी बता सकता था की रत्ना एक असली मर्द की बाहों से निकल के आयी है. दार मानसजी ने भी फिर से अपना लौड़ा मेरे हाथ में थमा दिया और फिरसे मेरे निप्पल्स के साथ खेलने लगे, उनके कठोर हाथ मेरे अंदर फिर से वासना की लहर उठा रहे थे. आरव की चुदाई से मेरे बेटी की फुद्दी बून्द बून्द टपक रही थी, उसकी चुदी हुई चुत से निकलता पानी बिस्तर को गिला कर रहा था, आरव ने उसकी गांड का मजा मेटे हुए अपनी २ उँगलियाँ मेरे रत्ना की चुत में घुसाई थी. जैसे जैसे वो अपने लौड़े से मेरे बेटी की गांड मार रहा था वैसे ही निचे से उसकी उंगलिया मेरे बेटी की चुत को चोद रही थी और मेरी बेटी जिसका ये कामरूप आज मैं पहली बार देख रही थी वो तो मस्त मगन होके अपने यार से चुद रही थी.

काफी देर तक वो दोनों चुदाई का खेल खेले जा रहे थे, आरव के लौड़े का पानी शायद निकलने वाला था और उसको अपना पानी निकालने की बड़ी जल्दी दिख रही थी क्यूंकि अचानक ही उसने अपनी स्पीड बढ़ाते हुए मेरे बेटी रत्ना से पूछा, "बोल मेरे लौड़े की रांड, आज तेरे पति का लौड़ा कहा झाड़ेगा? बड़े दिन हो गए तेरे इस मुँह पर मेरे लौड़े की मलाई नहीं लगी साली...". रत्ना ने भी बेशरम बनते हुए कहाँ, "हाँ मेरी जान, आह्ह्म्म उम्मम्मम बड़े दिन हो गए तेरे लौड़े का वीर्य नहीं पिया तेरे बीवी ने बहनचोद, आज निकाल मेरे मुँह में तेरे लौड़े का अपनों मेरी जान, चोद मुझे और जोर से फाड़ दे तेरे बीवी की गांड आअह्हह्ह्ह्ह". आरव ने भी कुछ धक्के लगते हुए रत्ना की गांड फाड् के रख दी और झट से अपना लौड़ा उसकी गांड से बाहर निकाला, मेरे बेटी ने झट से निचे घुटनों पर बैठते हुए आरव का लंड अपने मुँह में लेके चूसना चालू किया. "आअह्ह्ह्हह चूस साली, खाजा मेरा लौड़ा मेरे बच्चे की माँ, चूस चूस के निचोड़ ले मेरा लौड़ा ह्म्मम्म्म्म रत्नाआआआ आए रहाआआआआआ मैंनंन्न" कहते हुए उसने अपना आधा लौड़ा रत्ना के मुँह में घुसाया और वही पर दबाये रखा.

कम रौशनी होने के कारण मुझे ठीक से दिखाई नहीं दिया पर आरव के लौड़े का सारा वीर्य शायद मेरे बेटी के मुँह में जमा हो गया और मेरी बेटी ने भी बड़े स्वाद से आरव का वीर्य अपने गले से निचे उतार लिया. मैं तो देख के दंग रह गयी की क्या कोई औरत मर्द के लौड़े का वीर्य पि सकती है? इतना गन्दा काम कैसे कर रही है रत्ना इस लड़की ने तो सारी मर्यादा को पीछे छोड़ते हुए किसी मर्द का लिया?. आरव के झड़ते ही पीछे से मानसजी बोले, "क्यों ममता जी मजा आया देखके? लगता है तेरी चुत भी अब मेरे लौड़े की राह देख रही है? देख साली लगता है तेरे चुत का पानी भी अब मेरे लौड़े को भिगायेगा आज की रात". इतने में मुझे अंदर से आवाज आयी, "जाओ अब जल्दी मेरे स्वामी कही मम्मी ना आ जाए, रुको मैं भी चलती हूँ साथ मैं", और दोनों कपडे पहनने लगे. मानसजी को आनेवाले खतरे का अंदाजा हो गया तो उन्होंने कहा, "चल ममता, तेरे रूम में चल वर्ण तेरी बेटी के सामने ही तेरी चुत मारनी पड़ेगी मुझे."

मैं और मानसजी मेरे रूम में आ गए और दरवाजा अंदर से बंद करके उन दोनों की हरकत का अंदाजा लेने लगे, आरव को शायद घर जाने की जल्दी थी तो उसने झट से अपने जुटे पहने, मेरे बेटी को चूमा और वो निकल गया. मेरे बेटी के कदम अब मेरे कमरे की तरफ बढ़ने की आवाज आने लगी और दरवाजे पर आकर उसने दरवाजा खोलना चला पर दरवाजा बंद देख वो वापिस अपने कमरे की तरह जाने की आहट सुनाई दी. एक पल तो मेरी धड़कन तेज हुई थी पर रत्ना के जाने की आहट से मैं राहत की सांस ली, मानस जी ने अब मुझे अपने और खिंचा और मुझे साये की गाँठ खोल दी. दूसरे ही पल मेरा साया जमीन पर जा गिरा और मैं मादरजात नंगी कड़ी थी उनके सामने, मानसजी तो पहले से ही नंगे होके अपना लौड़े को सेहला रहे थे. उनका लौड़े गुस्से से मुझे देख रहा था पर मेरी चुत तो पिघल रही थी उसको देख के, मुझे चूमते हुए उनके हाथ अब मेरे उरोजों पर आ गए और उनको मसलने लगे. मानसजी इस उम्र में भी मर्द की तरह पेश आ रहे थे, उनका लौड़ा देख के किसी भी औरत को या लड़की को उस लौड़े से चुदवाने का मन जरूर होगा ऐसे उसका रूप था.

उनकी जबान अब मेरे मुँह में मेरे जबान से लड़ाई करने लगी, उसका लौड़ा मेरे पेट पर चिपका हुवा था और मेरी चूँचिया मसलते हुए मानसजी मुझे चुदाई के लिए तैयार करने लगे. अब आँखों के सामने वासना का खेल देख देख के और मानस की सहवास से मेरे इतने दिन की वासना उभर के बाहर आयी थी, पति के बदचलन व्यव्हार से मैंने पिछले एक साल के उनसे कोई जिस्मनी रिश्ता रखना बंद कीया था. पर अब बात कुछ और थी, मानस जी जैसे पराये मर्द ने और मेरे बेटी की चुदाई ने मेरे अंदर की वो रंडी बाहर निकाली थी और मैं भी अब मानसजी के लौड़े से चुदवाने के लिए बिलकुल तैयार थी. मेरी जबान भी मैं उनके जबान से लड़वा दी और मेरे दोनों हाथ मानस जी के लौड़े पर ले गयी, सुपडे से निकलता पानी से उनका सूपड़ा गिला और चिपचिपा हो चूका था. मेरा एक हाथ अब लौड़े पर और दूसरा हाथ मानस जी के गोलियों पर था, मेरी चूँचिया मसल मसल के लाल करते हुए अब उन्होंने मुझे बिस्तर की ओर धकेला. मैंने अब बिलकुल भी शरमाना बंद किया और चुदाई के लिए व्याकुल हो गयी थी, बिस्तर पर नंगी बैठी थी मैं और उनका लौड़ा मेरे मुँह के सामने लहरा रहा था.

बिलकुल रंडी जैसे मैंने उनका लौड़ा मेरे हाथ में लिया और उनकी आँखों में देखते हुए उस काले लौड़े को मुँह में भर लिया, मानसजी ने मेरे सर पे हाथ रख के मेरे बल सहलाये और मुझे आँख मार के मेरा मुँह उनके लौड़े से चोदने लगे. मेरी लार अब मानस जी के लौड़े पर बेहने लगी, काला लंड उस गीलेपन से और चमकने लगा मैंने भी अब मेरे बेटी का अनुकरण करते हुए जिंदगी में पहेली बार लंड चूसने का मजा लेने लगी. पहली बार मुझे लौड़े के उस नमकीन पानी का स्वाद पता चला था और नए नए मिले खिलौने की तरह मैं उस लौड़े को अपने मुँह में लेके खेल रही थी. मानस जी एक हाथ अब मेरे सामने से निचे आया और मेरे निप्पल्स पकड़ लिए, अंदर चुदने की आग लगी थी मेरे और मेरे निप्पल्स का कड़ापन ये दिखा रहा था की ममता चुदवाने के लिए तैयार है. कुछ देर तो उन्होंने मेरे मुँह से अपने लौड़े को गिला किया पर अब शायद उनको मेरे चुत के पानी का स्वाद लेना था तो मानसजी बोले, "आजा ममता अब मुझे भी तेरे इस चुत का स्वाद चखा दे, अभी अभी बाहर तेरे बेटी की चुदाई देख के तूने मुझे आदत लगा दी है तेरे चुतरस की..."

मानस जी ने फिरसे एक बार मुझे रत्ना के चुदाई की याद दिला दी, आँखों के सामने फिरसे वही दृश्य घूमने लगा और तभी मानस जी ने मुझे अपनी और खिंच के कहा, "क्या सोच रही है ममता, आजा रख दे तेरी भोसड़ी मेरे मुँह पर और तू भी चूस मेरा लौड़ा.". उनका आदेश मिलते ही मैंने भी एक रंडी की तरह अपनी गांड मानस जी में मुँह पर रख दी और उनके ऊपर लेटते हुए उनका लौड़ा फिर से मुँह में भर लिया. पहले पहले तो बस २-३ इंच का लौड़ा चूसने लगी पर लंड की भीनी भीनी ख़ुशबुने मुझे मानस जी के लौड़े को जितना हो सके उतना अपने मुँह में लेके चूसने को मजबूर कर दिया. उन्होंने भी मेरी गांड को पकड़ के मेरे चुत्तड़ फैलाये और अपनी जीवा मेरे फटी हुई अधेड़ उम्रवाली चुत में घुसा दी, उस नुकीली जीभ ने ४ इंच तक अंदर घुसते हुए मेरी एक लम्बी सिसकी निकाल दी. अपनी गांड को उनके मुँह पर पूरा दबाते हुए मैंने कहा, "आअह्हह्ह्ह्ह मनस्सस्स चुसुओ आअह्ह्ह्ह ुहममममम माँ मर गयीइइइइइइ आह्ह्ह्हह्ह अह्हह्ह्ह्ह इस्स्स्सस्स मनस्ससस्सजी, और अंदर घुसने दोओओओ जी".

मानसजी को तो बस मेरे कहने की देरी थी, उन्होंने भी जितना हो सकता उतना मुँह मेरे गांड में घुसाया और साथ साथ उनकी जीभ भी और अंदर तक मेरे चुत की दीवारों पर रगड़ने लगी. उनका लौड़ा हाथ में पकड़ के मैंने अपनी आँखे बंद कर ली और चुत चटवाने का मजा लेने लगी, अपने लंड पर मेरे मुँह की गरम जब उनको महसूस नहीं हुई तो मानस जी ने मेरे गांड पर एक जोरदार थप्पड़ मार दिया. "बेहेन की लौड़ी मेरा लौड़ा क्या तेरी बेटी आके चूसेगी क्या रंडी? चूस कुटिया ले ले मेरा लौड़ा तेरे मुँह में" कहते हुए उन्होंने मुझे फिरसे मेरे बेटी की याद दिला दी. कुछ ही देर पहले मैंने देखा था की कैसे मेरी बेटी रत्ना उसके यार का लौड़ा चूस रही थी और आरव भी कैसे मेरे बेटी की चुत चाट रहा, मैंने भी उन दोनों की याद करते हुए मानस जी का लौड़ा मुँह में लेके चूसना चालू किया. लंड मेरे मुँह में जाते ही उन्होंने भी मेरे चुत में अपनी ज़बान घुसा दी और मुझे जन्नत का रास्ते दिखाने लगे, आआह्ह्ह्हह क्या सुखद अनुभव था वो मेरी नाज़ुक नरम नरम चुत में किसी मर्द की खुरदरी जबान...

कामसुख से बावरी होके मैं भी उनके लौड़े को जोर जोर से चूसने लगी, कभी उनका लंड तो कभी उनके गोलियों को मुँह में भर के मैंने मानस जी को मेरे मुँह से मजा दिलाना चालू किया. सात-साढ़े सात इंच का लौड़ा मैंने जिंदगी में पहली बार नहीं देखा था, मेरे पति का लंड भी लगभग इसी आकर का था पर ना जाने क्यों मानस जी में एक अलग सी आग थी. उनको पता था की औरत को भोगने में भी एक कला होनी चाहिए, मतलब औरत चुद भी जाए और उसे पता भी नहीं चले की कितनी बेदर्दी से उसका शरीर इस्तेमाल हुवा है. उनकी यही बात मुझे उनपर सब कुछ लुटाने के लिए मजबूर कर रही थी, मानस जी का नाक बिलकुल मेरे गांड के छेद पर था और उनकी गरम गरम सांसे मुझे मेरे गांड में महसूस हो रही थी. उन गरम सांसो की वजह से मेरे गांड का छेद भी अब खुजलाने लगा तो मैंने थोड़ा पीछे होके मेरी गांड भी उनकी जबान से चिपका दी, आअह्हह्ह्ह्ह क्या एहसास था वो. गांड का नाजुक छेद, उसकी वो सबसे कोमल त्वचा और ऐसे संवेदशील जगह पर किसी मर्द की खुरदरी जबान, मुझे तो लगा की मैंने जवानी में ऐसा क्यों कुछ किया नहीं? व्यर्थ बितायी थी जैसे मैंने मेरी जवानी...

पुरे बिस्तर पर मैं और मानस जी एक दूसरे के ऐसे ऐसे जगह को चाट रहे थे, चूस रहे थे जिसके बारे मैं ना तो मैंने कभी कुछ सुना था और नाही किया था, और आपको तो पता है की पहली बार यौनसुख का मजा कैसे होता है?. मैंने एक मंझि हुई रंडी की तरह मेरी गांड मानसजी के मुँह पर दबायी और जोर जोर से हुंकार भरते हुए उसका काला लौड़ा चूसने लगी. मानस जी बहोत बड़े खिलाडी थे इस खेल के, उन्होंने झट से पहचान लिया की मुझे मेरी गांड चटवाने में मजा आ रहा है और मेरी मनोदिशा समझते हुए उन्होंने अपनी जबान मेरे गांड पर चलना चालू किया. नुकीली जबान अब मेरे गांड के द्वार पर ठोकर मारने लगी, मानो जैसे अंदर घुसने की इजाजत मांग रही हो, मैंने भी जीभ को अपनी गांड में लेने के लिए मेरी गांड ढिल्ली छोड़ दी. मेरे चुत्तड़ मानस जी ने बुरी तरह से अपनी मुट्ठी में दबाके फैला रखे थे, मेरी मस्तानि गांड का छेद उनकी आँखों के सामने देख उनका लौड़ा भी मेरे मुँह में तड़पने लगा. मेरे मुँह से लगातार सिसकियाँ निकल रही थी, मेरी कमर अपने आप हिल रही थी और जितनी हो सके उतनी जीभ मेरे गांड में लेने के लिए मैंने मेरी गांड मानस जी में मुँह पर दबा दी.

आआह्ह्ह्हह्ह मानसजीईईई चाटो मेरे राजाजी, खा जाओ मेरीइइइइइइ गांड ह्म्म्मम्म पुछहःछः क्या लौड़ा है आपका राजाजी ऐसे अनाप शनाप बकते हुए मैं भी उनका लौड़ा चूस रही थी. बहोर देर के चाटने से मेरे भोसड़े का पानी उबाल रहा था मेरे अंदर, उनकी जीवा कभी मेरी गांड तो कभी मेरी चुत को चाट रही थी और एक गदरायी हुई औरत के जिस्म को भोगने के लिए मानस जी का लौड़ा भी पुरे शान से खड़ा थे. मानस जी ने अब मेरे चुत्तड़ो पर रखा उनका हाथ निकाला और उस हाथ की एक ऊँगली से मेरे गांड का छेद कुरेदने लगे, इस अनपेक्षित हमसे से मैं जैसे पागल होके अपनी गांड मटकाने लगी मानजी के मुँह पर. चाट चाट के गीली गांड के छेद ने उनकी ऊँगली को मेरे गांड में घुसने की इजाजत दे ही दी, चुत में जबान और गांड में ऊँगली घुसाके मानस जी मुझे बेहद गरम कर रहे थे. मेरे चुत ने अब मुझे कहना चालू कर दिया की "ये औरत कब तक खैर मनाएगी? अब तो मैं तेरी इज्जत का पानी इस मर्दाना सांड के मुँह पर निकाले के रहूंगी".

इससे पहले की मैं खुद को संभल पाती और कुछ मेरे चुत को समझने की कोशिश करती, मेरे निगोड़ी फुद्दी ने बिना कोई लाज शर्म किये अपना रस उस मानस रूपी मर्द के बहाना चालू किया. मानस जी का लौड़ा मेरे मुँह से बाहर निकालके मैं बुरी तरह से सिसकने लगी, झड़ने की उस आवेश में ना जाने क्या क्या मेरे मुँह से निकल गया, "आअह्हह्ह्ह्ह राजजीईईईई मर गयी मेरे मालिककककक मूत रही हुन्न्न्नन्नन्न जी पि लो मेरा मूत मानसजीईईई हायययययय मेरी भोसडीईईईई". झड़ते हुए मैंने पुरे ताकत से मेरी जाँघे मानस जी के कानों के पास रखके मेरी गांड भी उनके मुँह पर दबा दी थी, मेरे चुत का पानी वो किसी प्यासे की तरह चाट चाट के पि रहे थे. उस समय मुझे पराया मर्द, लोकलज्जा, मानमर्यादा, ऐसी कोई भी चीज याद नहीं आयी, मैं तो किसी चुदाई रंडी की तरह मेरे मर्द पर अपने प्यार का वर्षाव कर रही थी. मानस जी बिना कोई शिकायत किये मेरे चुत का रसपान कर रहे थे, मेरे बदन की थरथराट ऐसे हो रही थी जैसे मानो कोई मुझे बिजली के झटके दे रहा है.

मैं एक १८ साल की बेटी वाली औरत थी, उम्र ४२ साल मतलब जवानी ढलके अब बदन सिर्फ गदराया जा रहा था और ऐसे अधेड़ उम्रदराज काल में भी मैं आज किसी जवान लड़की की तरह झड़ी थी. मेरे पानी की बून्द बून्द निचोड़ लेने के बाद मानस जी ने मुझे अपना आप से अलग किया, मुझे बिस्तर पर लिटाके खुद मेरे सामने आ गए और बेशर्मो की तरह मेरी आँखों में देख के मुस्कुराने लगे. मुझे तो बड़ी शरम आने लगी, खुदके बदन को ढकने के लिए मैंने मेरा एक हाथ अपने सीने पे और दूसरा हाथ मेरे जांघो के बिच ले गई पर तभी मानस जी बोले, "अब क्यों छुपा रही हो मेरी जान, अब तो तेरी जवानी मेरे लौड़े की प्यासी है चल खोल दे तेरे जवानी का खजिना और देख कैसे रगड़ रगड़ के लेता हु तेरी फुद्दी को...". उनके वो शब्द मुझे गरम करते है, सच मानिये मैं कभी जिंदगी में ऐसे भाषा का प्रयोग नहीं क्या था और मानस जी के ऐसे कामुक बोल सुनके मुझे अभ भी एक गुदगुदी सी होती रही. मेरी शरम को तोड़ने के लिए मानस जी मेरे पास आये और उन्होंने मुझे बिस्तर पर लिटाया, खुद मेरे ऊपर आके उन्होंने अपना लौड़ा मेरे जाँघों के बिच की लकीर पर घुमाने लगे...

आह्ह्ह्हह्ह कितना गरम है इनका लौड़ा सोचते हुए मेरे चुत ने जैसे मुझे इशारा किया की "चल रंडी खोल तेरे पैर, आज तो मैं इस लौड़े से जमके चुदुँगी", वासना की अधीन मैं एक कटपुतली की तरह टाँगे फ़ैलाने लगी. मेरी जांघो के बिच लौड़े को जगह देते हुए मैंने मेरे पैर उठाके मानस जी की कमर पर बांध दिए, उनको मेरी बाँहों में भरके उनकी आँखों में देखने लगी.मैंने अपनी टांगों को खोलके उनका लौड़ा मेरे चुत पर आने दिया ये देख के मानसजी मेरी तरफ देख के है दिए और बोले, "वाह ममता लगता है तेरे अंदर की रंडी तड़प रही है चुदने के लिए, क्यों?". मैंने भी उनको मुस्कुराकर पहेली बार खुलके कहा, "हां मेरे राजाजी, देखो न कैसी निगोड़ी पानी बहा रही है, आज खोल दो मेरे भोसड़ी को, सारी रात चोदो मुझे." मेरे ऐसे बोलने से उनको भी एक नया जोश सा भर गया, मेरी दोनों टांगों को उन्होंने अपने कंधे पर रखा और उनके लौड़े का सूपड़ा मेरे चुत की पप्पी लेने लगा. धीरे से मानस जी अपना लंड मेरे चुत के अंदर दबाने लगे, मेरी चूँचिया अपने हाथ से मसलते हुए उन्होंने मेरे चुत को खोलना चालू कर दिया. ऐसा नहीं था की मैं पहली बार चुद रही थी या इतना बड़ा लंड मैंने कभी लिया नहीं था पर बड़े लम्बे समय के बाद मेरे चुत में कोई बड़ी चीज घुस रही थी.

मानस जी भी किसी शातिर खिलाडी की तरह अपने लौड़े को मेरे भोसड़ी में घुसाने लगे, धीरे धीरे उनका पूरा लौड़ा मेरे चुत ने निगल ही लिया. मानस की टट्टे अब मुझे मेरे गांड के छेद पर महसूस हो रहे थे, उन गोलियों में उबलते हुये वीर्य से इनके टट्टे भी काफी गरम हो चुके थे और मेरी गांड का छेद उन टट्टों को चूमने लगा. पूरा लंड मेरे अंदर घुसाने के बाद मानस जी ने धीरे धीरे अपनी कमर आगे पीछे करनी चालू की, उनके सूपडे की चमड़ी पीछे सरक चुकी थी और उस सुपडे ने मेरे चुत की दीवारें रगड़नी शुरू कर दी. अद्भुत कमाल का हुनर था इनके पास, चुत चुद भी रही थी पर ना कोई दर्द ना कोई परेशानी, मेरे निप्पल्स को भी ऐसे नाजुक तरीके से निचोड़ रहे थे की बदन में एक तरंग उठ जाती और इस तरंग से मेरे चुत का पानी निकले जा रहा था. मेरे चुत की चुदाई का परिणाम था की मैं फिरसे गरमाने लगी, मेरी सिसकियों से मेरे बेडरूम का कमरा फिरसे गूंज उठा और उस पराये मर्द की बाहों में नंगी लेटी मैं चुद रही थी. धीरे धीरे अपना आवेश बढ़ाते हुए मानस जी ने पूरी ताकत से मेरे चुत का भोसड़ा बनाना चालू कर दिया और मैंने भी निचे से अपनी गांड उठा के उनका धन्यवाद करना जारी रखा.

आअह्ह्ह्हह ह्म्म्मम्म माआ इस्स्स्सस्स जैसी विविध कामध्वनि मेरे मुख से निकल रही थी, मानसजी का लौड़ा पूरा अंदर तक घुस रहा था और मेरे चुत का हर एक कोना उनके लौड़े को चुम रहा था. जैसे जैसे मानसजी की गति बढ़ती गयी वैसे वैसे मेरे वासना से मेरा बदन तपने लगा, मानस जी के हाथ पकड़ते हुए मैंने उनको अपने पास खींचा और मानस जी को बेतहाशा चूमने लगी. उन्होंने ने भी मेरी टांगे उनके कंधे से निचे लेते हुए उनके बदन का सारा बोझ मेरे ऊपर लाद दिया और जोर जोर से लौड़ा मेरे फुद्दी ने घुसाने लगे, मैंने भी उनको अपनी बाँहों में जखड़ लिया था. मेरे सीने पे उभरी हुई गुब्बारे जैसे चूँचिया मानस जी के छाती पर पूरी दब चुकी थी, मानस जी ने उनके हाथ से मेरे हाथ पकड़ रखे थे और आँखे बंद करके वो मेरी जवानी का भोग लगा रहे थे. बिच बिच में उनके अंदर है हैवान भी जाग रहा था, जो मुझे गालियां दे रहा था मुझे जलील कर रहा था, कभी रंडी, छिनाल, कुतिया जैसे शब्द सुनके मुझे भी अब लगने लगा था की मैं सच में बाजारू रंडी हूँ.

लौड़े का रुतबा कुछ ऐसे था की पुरे बच्चेदानी को ठोकर मारता पूछ लेता, "क्यों कैसा लगा मेरे लौड़े का चुम्मा?" और बच्चेदानी भी फुल्के है रही थी और जवाब देती, "है मेरे शेर और ले ले मेरी चुम्मी". मानस जी ने मुझे चूमना रोका क्यूँ की उनका लक्ष थे मेरे सीने पे उभरे हुए बोबे, मेरे दिल के नजदीक का चूचा अपने मुझे में बहरते हुए उन्होंने जोर जोर से मेरे दूध चूसना चालू किया. कभी अपनी जबान से चाट लेते तो कभी दातों के बिच निप्पल्स पकड़ कर काट भी देते, मेरे चूँचियों पर अब उनके जंगली तरह चूसने के निशान उमटने लगे थे. दोनों चूँचियों के आसपास लाल निशान साबित कर रहे थे की कोई मर्द इनको बुरी तरह से निचोड़ रहा है, मैंने भी उनके चूसने का मजा लेते हुए अपना सीना उठाके उनके मुँह में दबा दिया. "आह्ह्ह्हह्ह मानसजीईईई चुसो लो राजाजी, काटों ना और निप्पल्स जान...आआअह्ह्ह्हह मंआआआ" जैसे बड़बड़ाते हुए मैंने भी उनको बता दिया की मुझे कितना मजा आ रहा है उनके निचे टाँगे फैलाके लेटने में.

मेरे पति के सम्भोग से मैं झड़ तो जाती थी पर सम्भोग का ऐसा सुख मुझे कभी मेरे पति से नहीं मिला था, चुत का चाटना, पूरी नंगी करके खड़े खड़े अपना लौड़ा चुसवाना और फिर बिस्तर पर पूरी नंगी करके किसी २ कौड़ी की बाजारू रंडी बनाके औरत को चोदना मैंने आज मानस जी से ही सीखा था. मेरे जैसे अधेड़ उम्र की औरत भी आज किसी १९-२० साल की जवान लड़की की तरह चुदाई का मजा ले रही थी, मानस जी का लौड़ा मानो मुझे पूरा निचोड़ने पर तुला था. बड़े देर से मेरे अंदर का पानी मेरे चुत से बाहर निकलना चाह रहा था इसीलिए मैंने भी अपनी गांड उठा उठाके लंड जितना हो सके उतना मेरे भोसड़ी में लेना चालू कर दिया. मेरे ऐसे करने से मानसजी के लौड़े की रेज अब मेरे बच्चेदानी के आरपार जाने लगी और उस सुखद अनुभव को मेरी चुत और मैं ज्यादा देर बर्दाश्त नहीं कर सके.

आह्ह्ह्हह्ह ुह्ह्हम्म्म्म मानस्सस्सस्स जीईईईई मैं गईइइइइइ आयआईईईईई राजजीईईईई की दहाड़ मारते हुए मैंने मानस जी को जोर से मेरे ऊपर दबाया और मेरे चुत से एक के बाद एक योनिरस ने मानस के लौड़े को नहलाना चालू किया. मानसजी ने मुझे झड़ने का आनंद लेने दिया, बिना कोई हलचल किये वो मेरे ऊपर लेते रहे और उनका लौड़ा पुरे अंदर तक मेरे बच्चेदानी में घुसाके रखा. एक औरत ही जान सकती है जब मर्द के लौड़े पर झड़ते हुए अगर वो मर्द उसे उस पल का मजा लेने देता है तो मजा और दुगना हो जाता है, बिना कोई सास लिए आँखे मूंद के मैंने उस पल का आनंद लेना जारी रखा. मानस जी ने भी मुझे उनकी बाँहों में दबाके मेरे बदन की थरथराहट काबू में कर ली, लगभग २ मिन्नित तक तो मानस जी ऐसे ही मेरे ऊपर लेते रहे और मैं उनके लंड पर झड़ती रही. अपने आप को मुझसे अलग करते हुए उन्होंने अपना लौड़ा मेरे चुत से धीरे धीरे बाहर खिंच लिया और झट ने उस गीले लौड़े को मेरे मुँह के सामने कर दिया.

"चल मेरी रांड, देख कैसे लगता है तेरे भोसड़े का पानी, चूस माँ की लौड़ी खोल तेरा मुँह कुत्तिया" बोलके उन्होंने मुझे मेरे ही चुत से निकला उनका लौड़ा चूसने के लिए कहा. पहले तो मुझे थोड़ी घिन आयी पर अचानक से मुझे रत्ना की याद आ गयी, कैसे मेरी बेटी आरव का लौड़ा जो उसकी गांड से निकला था उसे अपने मुँह में लेके चूस रही थी. तब मैंने जाना की संभोग में कुछ गन्दा या घिनौना नहीं होता बस अपने आप को अपने साथी के हवाले कर दो और उस मर्द की सेवा का मजा लो, उनका लौड़ा चुसो, अपनी चुत और गांड चटवा लो और लावारिस कुत्तिया की तरह उनके निचे लेटके चुदवा लो. मानस जी का काला लंड मेरे पानी से चमक रहा था, मैंने अपना मुँह खोला वैसे ही उन्होंने मेरे मुँह में लौड़ा घुसा दिया. मैं भी उनके आँखों में देखते हुए मेरे योनिरस का स्वाद लेते हुए उस लौड़े को चूसने लगी, उनकी लाल आँखे बता रही थी की ये घोड़ा लम्बी रेस का खिलाडी है.

मेरे चूचियोंको को अपनी गांड के निचे दबाते हुए मानसजी में मेरा मुँह चोदना चालू किया और एक हाथ फिरसे मेरे चुत पर रख के मेरे चुत का दाना रगड़ने लगे. उनका हाथ बड़ा कठोर था, गरम गरम उँगलियाँ मेरे फुद्दी को फिर से जागृत कर रही थी और मैं किसी रंडी की तरह उनका लौड़ा चूस रही थी. मेरे चुत को अच्छेसे रगड़ के उन्होंने अपनी उंगलिया बाहर निकल के और मजे से मुँह में लेके चूसने लगे, मुझे आँख मारते हुए बड़े चाव से उँगलियाँ चूस रहे थे. मेरे मुँह में मेरे ही चुत का रस घुलने लगा, नमकीन और चिपचिपा सा रस के साथ उनके लौड़े का पानी भी बून्द बून्द मेरे मुँह में आने लगा और मैं आँखे बंद करके उनका लौड़ा चूसना जारी रखा. काफ़ी देर के बाद मानसजी मेरे ऊपर से उतरे और मुझे धक्का देके पेट पर सुलाया, मेरे गांड पर एक जोर का थप्पड़ मरते हुए मेरे चुत्तड़ फैला दिए.