होनेवाले दामाद से सास चुद गयी

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होनेवाले दामाद से सास चुद गयी.
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नमस्कार दोस्तों आज एक नयी कहानी लेकर आया हूँ पर किरदार पुराने ही है, उम्मीद है सबको पसंद आएगी कहानी. पिछले कहानी में आपने देखा की कैसे आरव और रत्ना की चुदाई देख के ममता के अंदर की हवस भड़क उठी और कैसे वो अपने पडोसी मानस जी के लौड़े से रात भर चुदी। अब आगे की कहानी भी इनकी ही है पर इसमें मेरा कोई काम नहीं, ये तो आप बीती है ममता की जो मुझे उसने खुद बताई और मैं आपके सामने लेकर आ गया...

नमस्ते दोस्तों मैं आपकी ममता फिरसे हाजिर हूँ मेरी और एक आप बीती सुनाने के लिए पर कहानी के लिए मानस जी का शुक्रिया तो अदा करना पड़ेगा, खैर मैं कर दूंगी बाद में मुझे पता उनको कैसे धन्यवाद देना है. मानस जी के लौड़े से चुदने के बाद मेरे अंदर की दबी वासना फिर से जग चुकी थी और हर दूसरे तीसरे दिन मैं और मानसजी एक दूर की प्यास बुझाने लगे पर सरकारी कर्मचारी होने के कारण मानस जी को कभी मुंबई, पुणे, नाशिक तो कभी कही और जग़ह का दौरा करना पड़ता था. इन दिनों में मेरे चुत की प्यास इतनी बढ़ जाती की मैं खुद को काबू नहीं कर पाती और मानसजी के आने के बाद एक दिन में सारी कसार निकाल देती.

खैर उस दिन के बाद मैं और मेरी बेटी रत्ना एक दूसरे से काफी खुल चुके थे, कभी बातों से नहीं पर घुमा फ़िराक़े मैंने और रत्ना ने एक दूसरे को बता ही दिया था की हम अपने अपने मर्दों से चुद रही है. आरव को भी मेरे बेटी ने शायद ये बात बता दी थी की मेरी और से उनके रिश्ते को कोई विरोध नहीं है पर मैंने ये भी कहा था की अब जल्द ही उन दोनों की शादी की बात मुझे आरव के घरवालों से करनी है.

देखते देखते २ साल तो ऐसे ही गुजर गए, रत्ना आरव भी अब आखरी साल में थे और आरव ने भी अपने पापा के धंदे में हाथ बटाना चालू कर दिया था. रत्ना और आरव का रिश्ता लेके जब मैं और मानसजी उनके घर गए तो उन्होंने भी बड़े ही आनंद से मेरे बेटी को अपनी बहु के रूप में स्वीकार कर लिया. ना भी करते कैसे? मेरी बेटी सुन्दर है, पढ़ी लिखी है और आरव से भी तेज, बेटी के होने वाले ससुर ने तो ये भी सबके सामने कह दिया की रत्ना भी मेरे कंपनी में काम करेगी. एक माँ को और क्या चाहिए? इतना समझदार ससुराल मिला था रत्ना को की मेरे अंदर की ख़ुशी से मैं झूम रही थी. उस रात तो रत्ना उनके ही घर रुकी, उसकी होनेवाली सास ने ही उसे अपने घर रोक लिया और यहाँ मैंने मेरी खुशियाँ मानस जी पर लुटा दी, सारी रात मेरे चुत के द्वार मानस जी के लौड़े के लिए खुले थे.

रत्ना और आरव को देख के मैं भी खुश थी, मेरे चुत की प्यास बुझाके मानसजी मुझे वैसे भी ख़ुश रख रहे थे पर अचानक मानस जी का दिल्ली का दौरा लग गया, किसी इलेक्शन के चलते उन्हें ५ दिन दिल्ली जाना था. उनके लौड़े के बिना मेरी चुत २ दिन नहीं रूकती और यहाँ तो ५ दिन की बात थी, मैं उदास हो गयी पर मानसजी को जाना ही था और श्याम के ६ बजे की फ़्लाइट से वो चले भी गए. मानस जी को एयरपोर्ट पर छोड़के मैं ७ बजे घर पहुंची पर मेरा मन किसी बात में नहीं लग रहा था, रत्ना भी घर में नहीं थी तो बिना कुछ किये मैं वैसे ही टीवी देखने लगी.

करीबन १५-२० मिनिट के बाद दरवाजे की घंटी बजी, रत्ना के पास तो चाबी थी मतलब दरवाजे पर कोई और था, मैं अपनी साडी का पल्लू ठीक किया और दरवाजा खोलने चली. दरवाजा खोलते ही मुझे आश्चर्य हुवा, आरव और रत्ना दोनों ही थे, इसपर मैं मेरे बेटी से पूछा भी, "चाबी कहा है तेरी? कही खो तो नहीं दी तुमने?". मेरे गले लगते मेरे गालों को चूमते रत्ना बोली, "अरे मेरी लाड़ो, आज घर पर ही भूल गयी थी चाबी..." वैसे मजाक में कभी मेरी बेटी मुझे लाड़ो तो कभी हीरोइन बोल देती और मैं भी उसको बिल्ली कहके पुकारती. पर आरव के सामने ऐसा कहने से मैं थोड़ी शर्मा गयी और बोली, "शर्म तो कर? मेरे दामाद के सामने ऐसे बोल रही है?"

इतने में आरव बोल पड़ा, "अरे आंटीजी इसमें क्या बुरा है, वैसे आप भी अभी जवान हो, लाड़ो की तऱह..." और दोनों मेरी तरफ देख के हसने लगे, मैंने भी उनका साथ देके हसने लगी. पर मेरा मूड ख़राब होने के कारण मैं ज़्यादा ख़ुल्के नहीं हस पाई जो मेरे बेटी ने झट से पहचान ली, मेरे पास आके मुझे गले लगाके बोली, "क्या हुवा मम्मी? आज इतनी उदास क्यों लग रही हो?". मैं सिर्फ गर्दन हलके ना का इशारा किया पर इतने से उसका मन नहीं भरा, मेरा हाथ पकड़ के मुझे सोफे पर बिठाया और आरव के सामने बोली, "क्या हुवा माँ? पाटिल चाचा नहीं है तो बुरा लग रहा है क्या? मुझे पता है मम्मी, आप दोनों अच्छे दोस्त है पर उनको भी उनका काम तो करना ही है ना?"

मेरे माउसी की वजह जानते ही आरव बोलै, "अरे आंटीजी, चलो आज हम आपको कंपनी देते है, अरे सुन जानू, आज इनको भी लेके चलते है क्लब में. आज तो इनको भी मजा दिलाएंगे क्यों? क्या ख़याल है?". रिश्ता होने के बाद में आरव मुझे आंटी ही कहता था, उसका सुझाव मुझे ख़ास पसंद नहीं आया पर मेरी बेटी रत्ना मुझे जोर देने लगी, "अरे मम्मी, चलो ना यार घर में बैठे बैठे बोर होने से अच्छा है की आप हमारे साथ चले, मैं कुछ नहीं सुनुँगी चलो जाओ और अच्छी से ड्रेस पेहेन कर जड़ी तैयार हो जाओ...". बेटी और होनेवाले दामाद के कहने पर मैं उनके साथ जाने को तैयार हो गयी पर मेरे जैसे अधेड़ उम्र की औरत क्या करेगी वहाँ ये सोच के मैं बोली, "अब इस उम्र में क्लब जाके क्या करुँगी उससे अच्छा है तुम लोग एन्जॉय करो मैं यही ठीक हूँ."

आरव को ये बात कुछ जमी नहीं तो वो बोला, "आंटीजी, अभी तो आप जवान हो, कहा ७० साल की बुढ़िया की तरह बात कर रही हो, चलो जाओ अब जल्दी आज तो मैं आपको लेके ही जाऊंगा क्लब, क्यों रत्ना?". मेरे बेटी ने भी आरव का पक्ष लेते हुए मुझे मेरे रूम की तरह धकेलने लगी, मन मारते हुए मैं रूम में जाने लगी और बोली, "ठीक है पर पहले मैं नहाउंगी मुझे थोड़ा टाइम चाहिए और हाँ रत्ना मैं तो सिर्फ साड़ी ही पहन के आउंगी, मेरे पास ये तुंहारे जींस विंस नहीं है". मेरे हां से ही खुश होकर रत्ना बोली, "जो पहनना है वो पहन लो पर जल्दी करो, ९ बजे तक पहुंचना है हमे"

रूम में आके मैंने सीधा अपनी साड़ी उतार दी, एक एक कपडे मेरे बदन से अलग कर के मैं अब पूरी नंगी होके बाथरूम में नहाने लगी, मेरे बाथरूम में लगे आईने में मेरा अधेड़ उम्र में भी खिलता हुआ नंगा बदन दिख रहा था. मानसजी का हाथ जबसे मेरे बदन को लगा था तबसे मैं फिरसे जवान दिखने लगी थी, मेरी ३६ इंच की चूँचिया बढ़के ३८ की हो चुकी है, मेरी गांड को तो मानस जी ने "ढ़ोल" नाम रखा है और मेरे ये ढ़ोल बजा बजा के उन्होंने नगाड़े बना के रखे हैं. एयरपोर्ट पर जाने से मुझे पसीना आया था, मेरे बदन को अच्छेसे साफ़ करते हुए मैं नहा के बाहर आयी तो देखा, ८ बज चुके थे. मतलब पिछले आधे घंटे से मैं मेरे बदन को चमका रही थी, समय का ध्यान रखते हुए मैं फ़टाफ़ट तैयार होने लगी.

चूँचियोंको ब्रा और ब्लाउज में कैद करके मैंने मेरे फड़फड़ाती फुद्दी पर भी एक अच्छीसी चड्डी चढ़ा दी, नीले रंग की चमचमाती साड़ी और उसपर नीले रंग का ब्लाउज पहनके मैं खदु का अच्छेसे मेकअप किया. पूरी तैयार होके मैं हॉल में आयी पर मुझे ये दोनों दिखे नहीं, शायद रूम में थे दोनों इसलिए मैं रत्ना के रूम की तरफ बढ़ने लगी और दरवाजे के पास जाके उसे खटखटाने ही वाली थी की तभी मुझे लगा की आज भी इस लड़की ने दरवाजा खुला ही छोड़ा है. खुदको समझाने की लाख कोशिश की मैंने पर आख़िरकार मेरी नजरे मेरे बेटी के कमरे में झाँकने ही लगी, हे भगवान क्या करूँ मैं इस लड़की का?... साली एक नंबर की रंडी बनाके रखा था मेरे बेटी को आरव ने...

किसी सड़कछाप आवारा कुत्तिया की तरह मेरी बेटी आरव की गांड में जबान घुसाके उसके गांड का सुराख़ चाट रही थी, हाथ मैं आरव का लौड़ा पकड़ के उसे जोर जोर से हिला रही थि और आरव पलंग पर कुत्ता बनके झुकता. "आअह्ह्ह्हह साली मादरचोद, चाट मेरी गांड रंडी, जीभ घुसा मेरे गांड में मेरी रांड बीवी, हिला मेरा लौड़ा छिनाल" कहते हुए आरव मेरे बेटी से अपनी गांड चटवा रहा था. रत्ना भी बड़े शौक से अपने होनेवाले पति की सेवा कर रही थी, उसकी जबान कभी आरव के गांड में तो कभी उसके टट्टों पर गम रही थी, बिच बिच में आरव का ६-७ इंच का लौड़ा अपने मुँह में लेके उसे चूस चूस के गिला कर रही थी. उन दोनों की पीठ मेरे तरफ होने की कारण मुझे आरव की गांड और उसका लौड़ा साफ़ साफ़ दिखाई दे रहा था, पर आज रत्ना नंगी नहीं थी मतलब आज सिर्फ उसको आरव के लौड़े की मलाई खानी थी ये बात मुझे समझ आ गयी...

"आआह्ह्ह्हह्ह निकल रहा है मेरा माल रंडी, मुँह खोल कुत्तिया" कहते हुए आरव ने झट से छलांग लगाई और बिस्तर पर रत्ना को खिंच के अपना लौड़ा उसके मुँह में घुसा दिया, मुँह का इस्तेमाल किसी चुत की तरह करते हुए आरव मेरे बेटी का मुँह बुरी तरह से चोदने लगा. रत्ना भी किसी पालतू कुत्तिया की तरह उसके लौड़े से अपना मुँह चुदवा रही थी की तभी आरव की एक हुंकार कमरे में गुंजी, "आअह्हह्ह्ह्हह मादरचोद राँडिईईईईई की औलादददददद पि जा मेरा पानी " बोलके उसने अपना पूरा वीर्य मेरे बेटी के मुँह में झाड़ दिया. रत्ना तो ऐसे खुश दिख रही थी जैसे उसे कोई बड़ा ख़जाना हाथ लगा हो, बेशरम रंडी की तरह आरव की आँखों में देखते हुए उसने पूरा वीर्य अपने गले से निचे लेना चालू किया.

उन दोनों का रंगारंग कार्यक्रम देख के मेरी फुद्दी भी फड़फड़ाने लगी पर मैंने मेरे चुत पर हाथ रखते हुए उसे समझाया, रुक जा रंडी, तेरा मालिक ५ दिन के लिए बाहर गया है, उनको आने दे फिर देख कैसे तेरी पिटाई करवाती हूँ. चुपके से हॉलमे आके मैंने दोनों लो आवाज लगाई, २-३ मिनिट के अंतराल में दोनों भी बाहर आ गए और मुझे देख के आरव बोला, "क्या बात है आंटीजी, आज तो जवान बूढ़े सब घायल होनेवाले है, क्यों रत्ना? तेरी मम्मी तो तुमसे ज्यादा हॉट है? हाहाहाःहाहा", रत्ना ने भी मेरा मजाक उड़ाते हुए कहा, "लगता है आज मम्मी को हमसे कोई और चुराने वाला है, आज तो लाड़ो मज़ा करेगी, क्यों ममता जान". और दोनों जोर जोर से हसने लगे. मैं उनको डाँटते हुए कहा, "चुप करो बेशर्मों कुछ तो लिहाज करो, और तू नालायक, तेरी माँ हूँ मैं, इनके सामने तो सोच समझ के बोला कर?"

आरव मुझे शांत करते हुए बोला, "आंटीजी वैसे आप सच में हॉट हो, पर चलो आज आप खुद ही इसका अनुभव करलो, मैं शर्त लगा के कहता हूँ, आज पूरा क्लब आपको ही देखेगा..पर अब देर हो रही है चलो चलते है."आरव के कहने पर मैं और रत्ना दोनों उसके पीछे पीछे चलके उसकी गाड़ी में बैठ गयी, आरव ने जल्दी जल्दी आसान रस्ते से गाड़ी को घुमाया और कुछ ही मिनिटों में हम क्लब में पहुँच गए. जिन्दगी में पहली बार में किसी क्लब के दर्शन कर रही थी, तेज गानों की धुन, शराब की बहती गंगा और आँखे चकाचौंध कर देने वाली रंगबिरंगी लाइट्स में नशे में झूलते जवान लड़के और लड़कियां देख के मुझे तो पहले मजा नहीं आया. आरव और रत्ना ने मुझे लगभग खींचते हुए अंदर ले गए थे, उनके हमेशा के आने जाने से शायद वह के कर्मचारी उन दोनों से परिचित थे और इस सबके बदौलत हमको एक ख़ाली जगह मिल गयी जहा खड़े होके मैं इस नए माहौल को महसूस करने लगी.

आधे से ज्यादा लड़कियां तो छोटे छोटे कपड़ों में जवान लड़को के बदन पर अपना बदन चिपका कर नाच रही थी, हर एक के हाथ में ज्याम था शराब के नशे में धुत होके जवानी का मजा ले रही थे. आरव ने बार काउंटर पर जाके हमारे लिए कुछ गिलास लेके आया, वैसे शराब तो मैं भी पीती थी पर इतने छोटे गिलास देख के मैं समझ गयी की ये टकीला शॉट है. पहले तो इतनी शराब पिने से मैंने मन कर दिया पर रत्ना बोली, "अरे यार मम्मी ये आंटीजी मत बनो, चलो उठाओ जल्दी अपना गिलास". बेटी के कहने पर मैं अपना गिलास उठाया और हम तीनों ने चियर्स करते हुए एक ही सास में पूरा गिलास ख़ाली कर दिया, कच्ची शराब जब अंदर गयी तो पूरा सीना जलने लगा, पेट में जाके तो उस शराब ने मेरे बदन को ऐसा हिला डाला की मुझे और एक शॉट मारने की इच्छा होने लगी.

एक के बाद एक आरव और रत्ना गिलास ख़ाली करते रहे, उनका साथ देते हुए मैंने भी आज मेरे क्षमता से कही ज्यादा दारु अपने पेट में जमा कर ली, दारु ने अपना काम बहोत अच्छे से किया, मेरे खून में समाते हुए मेरे बदन में एक आग सी लगा दी. रत्ना और आरव को डांस करते देख मैं भी झूमने लगी, आरव के कहने पर रत्ना की जगह अब मैंने ले ली और पहेली बार आरव के हाथों का स्पर्श मुझे मेरे नंगे कमर पर महसूस हुवा. जवान खून से उसका हाथ गरम था, उसका सीना मेरे सीने से लगभग चिपक ही गया था, मेरी आँखों में आँखे डाल के उसने मुझे अपनी और खिंचा और बोला, "कैसा लग रहा है ममता जी? मजा आ रहा है ना?". आज अचानक से उसने मुझे मेरे नाम से पुकारा, हमारे बगल में खड़ी रत्ना को पता नहीं चला क्यूंकि गाने जोर जोर से बज रहे थे.

आरव ने जैसे ही मुझे अपनी ओर खिंचा वैसे में लड़खड़ाती हुई उसके सीने से चिपक गयी, मेरी दुधारू चूँचिया आरव के सीने पर पूरी तरह से मसल चुकी थी और आरव का हाथ अब मेरे कमर से होता हुवा मेरे चूतड़ों तक पहुँचने की कोशिश में था. ४-५ शॉट लगाने के बाद रत्ना भी नशे में झूम रही थी और मेरे बदन को उसका होनेवाला पति मसल रहा था, नशे में होने के कारण और इस नए माहौल के कारण मुझे भी आज आरव के साथ मजा आ रहा रहा. आरव की बात का जवाब देने के लिए मैं मेरे ओंठ उसके कानो तक ले गयी और बोली, "दामादजी, मेरी बेटी के सामने ये क्या कर रहे हो?". आरव मेरे दाये कान के पास उसके ओंठ ले गया और बायें बाजू में नाचती रत्ना को ये सब दिखाई नहीं दे रहा था, इसका फायदा उठाते हुए आरव ने मेरे कान पर अपनी जबान घुमाते बोला, "देखो ममता, कैसे सब तुमको ही घर रहे है. मैंने कहा था ना? अभी आप जवान हो?"

आरव के इस हमलेसे मेरे अंदर की रंडी भी जागने लगी, तभी रत्ना ने और एक एक गिलास लाके हमारे हाथ में देते हुए कहा, "चियर्स गायस, थिस इस फॉर माय मॉम". रत्ना ने मेरे गाल पर किस करते हुए कहा, "कैसे लगा मम्मी? अब तो खुश हो ना, मेरी लाड़ो?", और खुद गिलास खाली करके मेरे और आरव के साथ नाचने लगी. आरव का एक हाथ अब मेरे गांड को अच्छेसे मसल रहा था, उसके लौड़े का उभार मुझे मेरे पेट पर महसूस हो रहा था पर एक माँ की मज़बूरी समझो या शराब का असर, मैं आरव की बत्तमीज़ी बर्दास्त करती रही. अब आरव को जैसे मेरी तरफ से ग्रीन सिग्नल मिल चूका था, उस अँधेरे में कहाँ किसको कुछ दिखने वाला था? इस सबका फायदा उठाके उसने मेरा हाथ पकड़ा और बड़े बेशर्मी से उसने मेरा हाथ अपने जींस के उभार पर रखा. आरव का लौड़ा तो मैं वैसे कई बार देख चुकी थी पर आज उसके लौड़े की गरमी से मेरी चुत भी पिघलने लगी, बिना हाथ हटाए मैं उसको देख रही थी और उसका हाथ मेरे चुत्तड़ मसल रहा था.

जैसेही मैंने उसकी आँखों में देखा तो वो बेशर्मों की तरह मुस्कुराने लगा, उसकी आँखे भी चमक रही थी मेरे जवानी रस चूसने के लिए, मेरे हाथ को उसके लौड़े पर दबाते हुए उसने मुझे और करीब लाया. मेरी बेटी के सामने ही उसका होनेवाला पति मेरे बदन को मसल रहा था और रत्ना इन सबसे अनजान शराब की मस्ती में नाच रही थी, शराब का और आरव के स्पर्श का असर मुझे मेरे ऊपर छाते हुए दिखाई दे रहा था. ६-७ शॉट लगाने के बाद मेरे अंदर भी वासना जागने लगी थी, मानसजी की अनुपस्थिति में मुझे अब मेरे चुत की मालिश करने के लिए एक नया और तगड़ा नौजवान लौड़ा मिलने वाला था. यही सोचके मैंने आरव के लौड़े पर हाथ घुमाना चालु किया और मेरी इस हरकत से आरव के ख़ुशी का ठिकाना नहीं रहा और उसने क्लब के अंधरे के फायदा उठाके मेरे गांड को अछेसे मसल दिया.

उसके जवान हाथ के मसलने से मेरी सिसकी निकल गयी पर इस शोरशराब वाले माहौल में वो मुझे भी सुनाई नहीं दी, आरव की आँखों में देख के मैं किसी बेशरम लड़की की तरह उसका लौड़ा मसल रही थी. कुछ देर बाद आरव ने हलकसे मेरे कान में कहा, "आंटीजी, टॉयलेट का बहाना करके उपरवाले फ़्लोर पे आ जाओ जल्दी" और रत्ना को उसने वही बहाना बताके वहा से निकल गया. मैंने भी रत्ना को टॉयलेट का बहाना बताया तो उसने मुझे ऊपर वाली मंजिल पर बने टॉयलेट की तरह इशारा किया, रत्ना को अकेली छोड़ मैं भी आरव के बताये हुए रास्ते पर चल पड़ी.

ऊपर आते ही आरव ने मुझे देख लिया और मेरा हाथ खिंच के वो मुझे और एक ऊपर वाली मंजिल पर ले गया, सुनसान चैट थी वो, घना अँधेरा इतना था की मैं और आरव खुद एक दूसरे को देख नहीं पा रहे थे. छत पर आते ही आरव ने मुझे बाँहों में भर लिया और मेरे दामन में हाथ घुसाके वो मेरी चूँचियो को मसलने लगा, मेरे ओंठो को चूसते हुए उसने अपनी जबान मेरे मुँह में घुसा दी. उसके अचानक हमलसे मैं थोड़ी असहज हो गयी पर मेरी चुत ने मेरे दिमाख पर अपना असर दाल दिया, मेरा हाथ भी अब खुद बी खुद आरव के लौड़े को सहला रहा था. आरव ने किस तोड़ते हुए कहा, "ममता बाहर निकाल मेरे लौड़े को, हिला दे मेरा लौड़ा बड़ा मस्त बदन है तेरा" और फिरसे वो मुझे चूमने लगा, मेरे मम्मों को बड़े प्यार से मसलते हुए उसने मेरे अंदर एक अजीब सी आग पैदा कर दी.

आरव के जींस की बेल्ट खोलते हुए मैंने भी उसका लौड़ा बाहर निकाला, वासना की आग से उसका लौड़ा भी गरमा गया था और मुझे उस लौड़े का स्पर्श मजा दे रहा था. मेरे सर को अपने हाथ से निचे दबाते हुए उसने मेरे मुँह में लौड़ा देने के लिए झुकाया और मैं भी किसी गयी गुजारी बदचलन औरत की तरह उसके इशारो को मानती गयी. घुटनो पर बैठ के मैंने उस अँधेरे में भी उसका लौड़ा बाहर निकाला और अपने हाथ से उसे हिलाने लगी, मेरा सर अपने लौड़े लौड़े पर दबाते हुए आरव ने उसका लंड मेरे मुँह में भर दिया. लंड की भीनी भीनी खुशबु से पगला गयी मैं, रंडी बनके अपने ही होनेवाले दामाद का लौड़ा चूसने लगी और आरव भी उसकी सास का मुँह किसी चुत सामान इस्तमाल करने लगा.

मेरे मुँह में लंड चलाते हुए आरव ने निचे झुक के फिर मेरी चूँचिया दबानी चालू की और धीरे से बोला, "चूस ले ममता, आअह्ह्ह्हह साली रंडी है तू तेरे बेटी की तरह बहनचोद, खाजा मेरा लौड़ा छिनाल आअह्हह्ह्ह्ह ऐसे ही चूस बेहेन की लौडीइइइ". मेरे दामाद के मुँह से ऐसी गालियां मैं पहले भी सुन चुकी थी जब वो उस दिन मेरे बेटी को बाजारू रंडी की तरह चोद रहा था और मानस जी भी मुझे ऐसी गालिया देकर ही चोदते है इसीलिए मुझे उसकी बातो का बुरा नहीं लगा. पर कुछ ही पल में उसने लंड मेरे मुँह से निकाला और मुझे खड़ा करते हुए खुद निचे बैठ गया, मेरे साड़ी को ऊपर उठाते हुए उसने लगभग मुझे निचे से नंगी कर दिया.

"ले रंडी पकड़ इसको" कहते हुए उसने मुझे मेरी ही साड़ी पकड़ने का आदेश दिया, मैंने भी मेरी साड़ी मेरे कमर तक उठा के पकड़ ली और तब तक आरव ने एक ही पल में मेरी चड्डी निचे खिंच दी. आज तीसरी बार मैं किसी मर्द के सामने नंगी हुई ही, मेरा वो चूतिया पति, मानस जी और अब मेरा होनेवाला दामाद, इस ममता की चुत के दर्शन पाके मेरा दामाद खुद को रोक नहीं पाया. मेरे चुत के ओंठ अपनी ऊंगलीसे अलग करते हुए उसने मेरे चुत का दाना बाहर निकाला और झट से अपना मुँह मेरी जांघों में घुसा दिया, मेरे गीली चुत से निकलता पानी चूसते हुए उसने अपनी ३-४ इंच की जबान मेरे फ़टे पुराने भोसड़े में घुसा दी. पिछले आधे घंटे से आरव ने मुझे इतना गरम कर दिया था की मेरी चड्डी मेरे चुतरस से भीग चुकी थी पर अब मुझे ख़ुशी थी की मेरा चुतरस जाया नहीं हो रहा था बल्कि मेरा दामाद मेरे चुत का पानी पि रहा था...

आआह्ह्ह्हह्ह आरवववववव इस्स्स्सस्स उह्ह्हम्मम्मम चुस्सस्स्स्स भोस्डीकेएएएएए कहते हुए मैं उसके बाल मेरे मुठी में भर लिए और उसका सर जितना हो सके मेरे चुत पर दबाने लगी. आरव ने भी पुरे जोर से फुद्दी को चूसना चालु कर दिया, मानस जी के तरह वो भी मेरे दाने को अपनी ज़बान से छेड़ रहा था और मैं आवारा बदचलन बाजारू रंडी की पैर फैलाके उसे मेरे चुत को पिने दे रही थी. आरव जवान था, चुत को चूसने का अंदाज ऐसा था की मैं कुछ ही पलों में झड़ने की कगार पर पहुँच गयी, उसके बाल खींचते हुए, उसका सर मेरे चुत पर दबाते ख़ुद मेरी फुद्दी उसके मुँह पर रगड़ने लगी. आख़िर के कुछ पल और मेरे चुत ने आरव के सामने हार मान ली, वैसे तो मानसजी ने कल ही रातभर चोद चोद के मेरे भोसड़े का पानी ख़ाली कर दिया था पर आरव के चूसने से फिरसे मेरे भोसड़े ने उसका मुँह और टीशर्ट गिला कर दिया.

उसका मुँह मेरे चुत पर दबाके रखा और मैंने झड़ने का पूरा आनंद लिया, मेरा बदन थरथरा रहा था पर आरव ने समय का लिहाज देखते हुए मेरे सामने खड़ा हुआ और मेरे मुँह को चूमने लगा. आरव के मुँह से मैं मेरे ही चुत का पानी चख रही थी, उसके सर के बालों में हाथ घुमाते उसको मैं बड़े कामुक तरीक़े से चुम रही थी पर तभी वो बोला, "चल ममता, तेरी बेटी निचे है, अब घर जाके तेरे फुद्दी की आग बुझाता हूँ." इस पर मैं बोली, "घर पे तो रत्ना होगी यार, वहा कैसे करोगे?", मेरे मम्मे को जोर से मेरे साड़ी के ऊपर से दबाते हुए वो बोला, "बहनचोद, बड़ी आग लगी है तेरे भोसड़े में छिनाल? तू देखती जा बस अब मैं करता हूँ, चल अब जल्दी." आरव ने लगभग मुझे खींचते हुए निचे लाया और रत्ना के पास छोड़के खुद और शराब लाने लगा, वापिस आके उसने टेबल पर ६ गिलास रख दिए और बोला, "कम ऑन रत्ना, लेटस हैव अ फाइनल स्पोर्ट..."

मेरे बेटी ने भी आरव को कहा, "सही किया मेरे शेर तूने, चल १,२,३ स्टार्ट", इतना बोलते ही आरव ने और रत्ना ने एक एक बाद एक पुरे ६ गिलास ख़ाली कर दिए, रत्ना तो पहले से ही शराब के नशे में बुरी तरह से झूम रही थी. रत्ना के पेट में और ३ शॉट जाने की वजह से अब तो उसका अपने आप पर काबू नहीं रहा, टेबल के आसपास कोई बैठने की जगह ना होने के कारण वो कभी मेरे तो कभी आरव के ऊपर गिरने लगी. आरव ने उसके गालो पैन थपथपाते हुए कहा, "रत्ना, क्या हुवा? ठीक हो या घर जाना है?", मेरी बेटी तो नशे में लगभग बेहोश हो चुकी थी, आजुबाजु में क्या चल रहा है उसको कुछ पता नहीं चला.

आरव के पूछने के बाद भी रत्ना कुछ जवाब देने के हालत में नहीं थी, क्लब के एक कोने में खड़े होकर मैं और आरव उसको होश में लाने की कोशीश कर रहे थे पर इतनी शराब पिने से रत्ना को कोई फरक नहीं पडा. आरव ने मेरी तरफ देख के रत्ना के सामने ही कहा, "देख ममता, बन गया ना हमारा काम? अब इस रंडी को घर पे जाके पटक दूंगा और तेरे चुत को आज भोसड़ा बना दूंगा, चल पकड़ इसको अब सीधे घर निकलते है." मैं भी लगभग नशे में ही थी, मेरे भी पेअर लड़खड़ा रहे थे पर मुझे होश था, मैंने रत्न का एक हाथ मेरे कंधे पर रखा और दूसरे तरफ से आरव ने. क्लब की भीड़ से जगह बनाते हुए हम आरव की कर की तरफ आ गए, पीछे वाली सीट का दार खोलके आरव ने रत्ना को उस सीट पर बिठाया पर नशे के कारण रत्ना लेट गयी. अब मेरे पास आगे की और बैठने के अलावा कोई चारा नहीं था, आरव अब तक सेट पर बेथ के गाड़ी चालू कर चूका था और मैंने भी उसकी बगल वाली सीट पर अपनी गांड रख दी.

इस सब खेल में और शराब के दौर में रात के १० बज चुके थे, आरव ने भी मेरे चुत का मजा लेने की चाहत में जल्दी जल्दी अपनी कार मेरे घर के तरफ भगानी चालू की पर कार चलाते हुए भी वो मेरे मांसल जांघों को मसल रहा था. मेरा हाथ पकड़ के उसने लौड़े पर रखा और बोला, "सहला इसको ममता, घर जाते चुत में घुसाना है इसको..." और मैं भी उसका कहाँ मानते हुए, जींस के ऊपर उसका लौड़ा सहलाने लगी. रात के अँधेरे में कार में एक नौजवान लौंडे का लंड हिलाना मुझे और भी गरम कर रहा था, मेरे फुद्दी के पानी से मेरे चड्डी को फिरसे भिगोना चालू किया. आरव का हाथ भी मेरे जांघों से होता हुवा मेरे फुद्दी तक आ गया, साडी के ऊपर से ही उसने मेरी चुत अपने मुट्ठी में भर ली और उसको दबाने लगा.

मेरे अंदर की कामवासना उफान पर थी, अब किसी भी हालत में मुझे चुदवाना था फिर चाहे वो आरव हो या सड़क का कोई आवारा कुत्ता, उसके हाथ से गरम होते हुए मैं बोली, " धीरीईए कर भोस्डीकीई आअह्ह्ह्हह दबा और आरव मजा आ रहा है." आरव के हाथ से मजे लेते हुए मैं आँखे दी थी, उसके लंड का बढ़ता हुवा आकार मुझे महसूस हो रहा था और इस दौरान हम कब मेरे घर के निचे पहुँच गए मुझे पता ही नहीं चला. अचानक गाड़ी रुक जाने से मैंने आँखे खोली तो कार मेरे बिल्डिंग के निचे खड़ी थी और पार्किंग में मैं अपने दामाद से अपनी फुद्दी मसलवा रही थी. होश में आते ही मैंने आरव का हाथ दूर किया, उसके लौड़े को छोड़ते हुए मैं कार से निचे उतर गयी और पीछे का दरवाजा खोलके मैं रत्ना को जगाने की नाकाम कोशिश करने लगी.