औलाद की चाह 074

Story Info
फोन सेक्स.
1.1k words
3.5
187
00

Part 75 of the 282 part series

Updated 04/27/2024
Created 04/17/2021
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औलाद की चाह

CHAPTER 6-पांचवा दिन

तैयारी-

'परिधान'

Update-21

पति का फ़ोन आया​

मैं अपने कमरे से बाहर आकर अपना पल्लू ठीक करते हुए फ़ोन रिसीव करने आश्रम के ऑफिस की तरफ़ जाने लगी। ऑफिस गेस्ट रूम के पास था और मैं जैसे ही अंदर गयी, फ़ोन के पास परिमल खड़ा था। उस बौने आदमी और उसके मजाकिया चेहरे को देखते ही मेरे होठों पर मुस्कुराहट आ जाती थी।

मैं अपने कमरे से बाहर आकर अपना पल्लू ठीक करते हुए फ़ोन रिसीव करने आश्रम के ऑफिस की तरफ़ जाने लगी। ऑफिस गेस्ट रूम के पास था और मैं जैसे ही अंदर गयी, फ़ोन के पास परिमल खड़ा था। उस बौने आदमी और उसके मजाकिया चेहरे को देखते ही मेरे होठों पर मुस्कुराहट आ जाती थी।

"किसका फ़ोन है?"

परिमल--आपके पति का, मैडम।

"ओह।"

मैं बहुत खुश हो गयी और मुझे आश्चर्य भी हुआ की अनिल ने फ़ोन किया है।

"हेलो..."

अनिल--हेलो रश्मि, मैं अनिल बोल रहा हूँ।

"कैसे हो आप? आज इतने बाद मेरी याद आई."

अपने पल्लू को अंगुलियों में घुमाते हुए मैंने बनावटी गुस्सा दिखाया।

अनिल--तुम्हें तो मालूम ही है रश्मि की मैं गाँव गया था और कल ही वापस लौटा हूँ। तुम्हें फ़ोन कैसे करता?

मुझे याद आया की अनिल को किसी काम से हमारे गाँव जाना पड़ गया था इसीलिए वह मुझे आश्रम तक छोड़ने नहीं आ पाए थे।

"हम्म्म...मालूम है। अब बहाने मत बनाओ."

अनिल--जान, वहाँ कैसा चल रहा है?

इस सवाल से मेरे दिल की धड़कनें रुक गयी और मैंने थूक निगलते हुए जवाब दिया।

"सब ठीक है । मेरा उपचार चल रहा है।"

अनिल--जान, तुम्हें बहुत-सी जड़ी बूटियाँ लेनी पड़ रही होंगी।

क्या क्या लेना पड़ रहा है, तुम क्या जानो, मैंने सोचा।

" हाँ...बहुत-सी जड़ी बूटियाँ, पूजा, यज्ञ, वगैरह। तुम्हारा तो इनमें विश्वास नहीं है।

अनिल--अगर अच्छा परिणाम मिलेगा तो मैं विश्वास करने लग जाऊँगा। पर ये तो बताओ तुम कैसी हो? दवाइयों का कोई साइड एफेक्ट तो नहीं है?

"ना...ना...मैं बिल्कुल ठीक हूँ।"

पता नहीं कितने मर्दों ने मेरी जवानी से छेड़छाड़ की है यहाँ, मैं सोच रही थी।

अनिल--अच्छी बात है। यहाँ घर पर भी सब ठीक है, तुम फिकर मत करना।

"तुम्हें मालूम है मामाजी मुझसे मिलने आए थे।"

अनिल--हाँ ।मम्मी ने बताया था। क्या कहा उन्होंने?

"कुछ ख़ास नही। बस मेरा हाल चाल पूछ रहे थे।"

अनिल--बहुत अच्छे आदमी हैं।

हाँ बहुत अच्छे हैं। जिस तरह से उन्होने मेरे माथे को चूमा था, मेरे कंधों पर ब्रा के स्ट्रैप को छुआ था, मेरी चूचियों को अपनी छाती पर दबाया था और मेरे नितंबों पर थप्पड़ मारा था।मुझे सब याद आया। बहुत अच्छे या बहुत बदमाश?

"ह्म्म्म्म..."

अनिल--रश्मि, कोई आस पास है तुम्हारे?

मुझे हैरानी हुई की ऐसा क्यों पूछ रहे हैं। मैंने इधर उधर देखा तो ऑफिस के कमरे में कोई नहीं था। परिमल मुझे फ़ोन पकड़ाकर चला गया था।

"ना, मैं अकेली हूँ। पर क्यों पूछ रहे हो?"

अनिल--उम्म्म...जान, तुम्हें मिस कर रहा हूँ, बेड में।

अंतिम दो शब्द अनिल ने फुसफुसाते हुए कहे थे। मेरी नंगी जांघों पर दीपू के छूने से मुझे गर्मी चढ़ी थी और अब मेरे पति का फ़ोन पर प्यार, मैं पिघलने लगी।

"उम्म्म...मैं भी आपको मिस कर रही हूँ।"

अनिल--एक बार मुझे किस करो ना।

"ये आश्रम है, आपको ऐसा नही! "

अनिल--उफ...एक बार किस करो ना। तुम्हें मेरी याद नहीं आती?

"हम्म्म...मैं तुम्हें बहुत मिस करती हूँ।"

अनिल--अच्छा, ये बताओ अभी तुम साड़ी पहनी हो?

"क्यूँ पूछ रहे हो?"

अनिल--असल में फिर मुझे तुम्हारा ब्लाउज खोलना होगा।

"बदमाश!"

अनिल--रश्मि सुनो ना।

"क्या?"

अनिल की प्यार भरी आवाज़ सुनकर मैं कमज़ोर पड़ने लगी थी और मेरा मन कर रहा था कि अभी दौड़कर उसकी बाँहों में समा जाऊँ।

अनिल--जान, अपने होंठ खोलो।

मैंने फ़ोन के आगे अपने होंठ खोल दिए.

अनिल--क्या हुआ? खोलो ना।

"ओहो! मैंने खोल रखे हैं।सिर्फ़ तुम्हारे लिए."

अनिल--ऐसा है तो तुमने फ़ोन कैसे पकड़ा हुआ है?

"ओफफो! मैंने तुम्हारे लिए अपने होंठ खोले हैं। फ़ोन से उसका क्या लेना देना?"

अनिल--रश्मि डार्लिंग, मैंने तुमसे साड़ी के अंदर वाले होंठ खोलने को कहा था ताकि मैं अपना डाल सकूँ।

"तुम बहुत बदमाश हो। मैं फ़ोन रख रही हूँ।"

मुझे अनिल की बातों में मज़ा आ रहा था लेकिन मैंने गुस्से का दिखावा किया।

अनिल--ना ना।जान। प्लीज़ फ़ोन मत रखना। अच्छा चलो तुम्हारे होठों को चूमने तो दो।

अनिल ने फ़ोन पर मुझे कई बार चूमा।

अनिल--रश्मि, तुम्हारे बिना बेड सूना-सा लगता है।

मेरे पति की ऐसी बातों से मैं उत्तेजित होने लगी थी। मैं दाएँ हाथ में फ़ोन को पकड़े हुई थी और मेरा बायाँ हाथ अपनेआप साड़ी के पल्लू के अंदर चला गया और ब्लाउज के ऊपर से मैं अपनी रसीली चूचियों को दबाने लगी।

अनिल--अब अपनी आँखें बंद कर लो। एक बार मुझे अपने सेबों को दबाने दो!आह!

मेरी आँखें बंद थी और मैं कल्पना कर रही थी की अनिल मेरे सेबों को पकड़े हुए है और दबा रहा है।

अनिल--उम्म्म।बहुत मिस कर रहा हूँ जान तुम्हें।

"मुझे अपनी बाँहों में ले लो..."

अनिल--उम्म्म।रश्मि, एक बार मुझे किस करो ना।

"नही। मैं यहाँ से नहीं कर सकती।"

अनिल--क्यूँ? शरमाती क्यूँ हो? तुमने कहा था कि वहाँ कोई नहीं है । फिर?

क्या मुझमें कुछ शरम बची भी है, मैं सोचने लगी। लेकिन मेरे पति के लिए तो मैं वही पुरानी शर्मीली रश्मि थी।

अनिल--क्या हुआ जान?

"हम्म्म ।ठीक है बाबा।"

मेरी साँसे तेज हो गयी थी और मेरी चूचियाँ ब्लाउज के अंदर टाइट हो गयी थी। मैंने इधर उधर देखा और फ़ोन पर ज़ोर से अनिल को किस किया।

अनिल--तुम बहुत प्यारी हो रश्मि।

"उम्म।"

अनिल--आशा करता हूँ की तुम्हारे आश्रम के उपचार से हमें फल ज़रूर मिलेगा।

"उम्म! "

अनिल--रश्मि?

मैं अभी भी अनिल के प्यार में खोई थी।

अनिल--तुम वापस कब आओगी?

मैंने अपने पर काबू पाने की कोशिश की।

"हाँ, शायद परसों को ।"

अनिल--ठीक है । तब तक मैं तुम्हें रोज़ फ़ोन करूँगा।

मैं घबरा गयी, क्यूंकी आज रात से महायज्ञ होना था और गुरुजी ने बताया था कि दो दिन तक चलेगा।

"अरे सुनो ना। अब यहाँ फ़ोन मत करना । मैं जल्दी ही वापस आ तो रही हूँ। गुरुजी आश्रम में ज़्यादा फ़ोन कॉल पसंद नहीं करते!"

अनिल--हम्म्म!मैं समझता हूँ। वह तो पवित्र जगह है। ठीक है जान, कुछ चाहिए होगा तो बता देना।

"तुम अपना ख़्याल रखना और भगवान से प्रार्थना करना की ।"

अनिल--हाँ ज़रूर, ताकि तुम्हारा उपचार सफल हो जाए. बाय।

"बाय!"

अनिल ने फ़ोन काट दिया और मैंने रिसीवर रख दिया। बेचारा अनिल। वह कल्पना भी नहीं कर सकता की यहाँ मेरे साथ क्या-क्या हुआ है भले ही वह मेरे उपचार का ही एक हिस्सा था। मेरा अभी भी गुरुजी पर पूर्ण विश्वास था और मुझे उम्मीद थी की महायज्ञ से वह मुझे माँ बनने में मदद करेंगे। ये सही है कि मैंने भी अपने साथ घटी कुछ घटनाओ का मज़ा लिया था ख़ासकर की विकास और गोपाल टेलर के साथ। लेकिन मैं भी तो एक इंसान हूँ, 28 बरस की जवान औरत, मर्दों के मेरे बदन से छेड़छाड़ करने पर मैं कामोत्तेजित हुए बिना कैसे रह सकती थी।

यही सब सोचते हुए मैं अपने कमरे की तरफ़ वापस जा रही थी।

गोपाल टेलर--मैडम, किसका फ़ोन था?

"अनिल का। मेरा मतलब मेरे पति का।"

कहानी जारी रहेगी

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