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Click hereरज़िया बीबी अपने दिल ही दिल में ये दुआ माँग रही थी। कि काश ये सब एक भयानक मज़ाक हो और काश ज़ाहिद उसे ये कह दे कि उस ने नीलोफर से इस किस्म की कोई बात नहीं कही।
तो फिर वह अपने बेटे ज़ाहिद से कह कर नीलोफर और उस के पूरे खानदान की वह हालत बनवाएँगी। कि उन कमीनो की अगली सात नस्लो भी क्या याद करेंगी। कि किसी के साथ ऐसा गंदा मज़ाक कैसे किया जाता है।
ज़ाहिद ने अम्मी की फैंकी हुई अपनी और अपनी बहन शाज़िया की फोटो को फर्श से उठाया और उन को हाथ में ले कर बहुत गौर से देखने लगा। मगर उस ने अपनी अम्मी की बात का कोई जवाब ना दिया।
अपनी जवान बहन के मोटे और भरे मम्मो को तस्वीर में देख कर ज़ाहिद की आँखों और मुँह पर एक मक्कारी भरी शैतानी मुस्कुराहट फैलती चली गई ।
अपने बेटे ज़ाहिद की खामोशी और उस के चेहरे पर ज़ू महनी मुस्कराहट को देख कर रज़िया बीबी का दिल पहले से ज़्यादा डोलने लगा और ज़ाहिद से कोई जवाब ना पा कर वह दुबारा चीखी "ज़ाहिद खामोश क्यों हो, कुछ तो बको और मुझे बताओ कि ये सब माजरा क्या है?"
"क्यों अम्मी आप को अपनी बेटी के लिए भेजा हुआ मेरा रिश्ता पसंद नहीं आया क्या?" ज़ाहिद अपनी शैतानी आँखों को अपनी अम्मी की आँखों में डालते हुए, इतनी बड़ी बात बड़े आराम और होसले से अपनी अम्मी से कह गया।
"क्या बकवास कर रहे, तुम! होश में तो हो ज़ाहिद, क्या तुम ने वाकई ही नीलोफर के हाथ अपनी ही सग़ी बहन के लिए अपना रिश्ता भिजवाया है?" अपने बेटे की बात सुन कर रज़िया बीबी का सर चकराने लगा और उसे यूँ महसूस हुआ कि जैसे किसी ने उस के पावं तले से ज़मीन खैंच ली हो।
"हाँ अम्मी जी ये बात सच है, आप ही तो मुझे बार-बार शादी करने पर मजबूर कर रही थी ना" ज़ाहिद ने बड़े सकून से अपनी अम्मी को जवाब दिया।
"ज़ाहिद लगता है तुम पागल हो चुके हो, मेने तुम को किसी दूसरी लड़की से शादी करने का कहा था और तुम अपनी ही सग़ी बहन के साथ ये गलीज़ हरकत करने का सोचने लगे, तुम जानते हो कि ये बात ना सिर्फ़ ना मुमकिन ही नहीं बल्कि गुनाह-य-कभीरा भी है बेटा" रज़िया बीबी ने जब ज़ाहिद को इस तरह पुरसकून हालत में अपनी ही सग़ी बहन से शादी करने की बात करते सुना। तो उसे यकीन हो गया कि उस का बेटा ज़ेहनी तौर पर पागल हो चुका है। इसी लिए वह इस तरह की बहकी-बहकी बातें करने लगा है।
"क्यों ना मुमकिन है ये बात, आप ही बताएँ क्या कमी है मुझ में, जवान और पड़ा लिखा हूँ और सब से बड़ी बात कि अच्छी नोकरी है मेरी, तो आप को तो खुश होना चाहिए अपनी बेटी के लिए आने वाले मेरे इस रिश्ते पर अम्मी" ज़ाहिद ने अपनी अम्मी के नज़दीक जाते हुए कहा।
अपने बेटे के मुँह से इस तरह की वाहियात बातें सुन कर रज़िया बीबी का मुँह गुस्से से लाल पीला हो गया और उस ने अपने नज़दीक पहुँचे हुए ज़ाहिद के मुँह पर ज़ोर दार किस्म के थप्पड़ो की बरसात कर दी।
ज़ाहिद ने अपने मुँह पर पड़ते अपनी अम्मी के थप्पड़ो को नहीं रोका और चुप चाप खड़ा अपनी अम्मी से मार ख़ाता रहा।
वो खुद चाहता था कि जब उस की अम्मी दिल भर कर अपने अंदर का गुस्सा उस पर निकाल लेंगी। तो फिर ही वह उन से सकून से मज़ीद बात चीत करेगा।
जब रज़िया बीबी अपने बेटे के मुँह पर तमाचे मारते-मारते थक गई. तो वह पास पड़े सोफे पर बैठ कर ज़रो कातर रोने लगी।
ज़ाहिद भी अपनी अम्मी से मार खाने के बाद खुद भी उन के सामने पड़े सोफे पर जा बैठा और अपनी अम्मी के चुप होने का इंतिज़ार करने लगा।
कुछ देर बाद जब रज़िया बीबी रो-रो कर थक गई. तो ज़ाहिद अपने सोफे से उठ कर अपनी अम्मी के पास जा बैठा और उन के कंधे पर हाथ रख कर प्यार से अपने गले से लगा लिया।
रज़िया बीबी आज अपने बेटे की बातें सुन कर उस से नफ़रत करने लगी थी।
इसीलिए वह ज़ाहिद के हाथ को झटक कर तेज़ी से उठी और दूसरे सोफे पर जा बैठी।
टीवी लाउन्ज के दूसरे सोफे पर बैठते ही रज़िया बीबी ने अपनी आँखों में आते हुए आँसुओं को पोन्छते हुए ज़ाहिद से कहा "ज़ाहिद ये सब क्या है और कब से ये सब गंदा खेल तुम दोनों बहन भाई इस घर में खेल रहे हो।"
"अम्मी अगर आप अपने आप में थोड़ा होसला पेदा करें तो में आप को सब कुछ सच-सच और पूरा तफ़सील से बता सकता हूँ" । ज़ाहिद ने अपनी अम्मी की तरफ देखते हुए कहा।
रज़िया बीबी अब पहले की मुक़ाबले अब थोड़ा अपने आप को संभाल चुकी थी और उस का दिल भी अब ये चाह रहा था। कि वह अपने बेटे के मुँह से सारी बात सुन कर ये बात जान सके कि उस की तर्बियत में ऐसी क्या कमी रह गई थी। कि उस की नाक के नीचे ही उस के बच्चे आपस में ही प्यार की पींगे बढ़ाते हुए गुनाह के रास्ते पर चल निकले थे।
"अच्छा बताओ ये सब काम कब और कैसे स्टार्ट हुआ ज़ाहिद" रज़िया बीबी ने अपने रुखसार पर बैठे आँसू को अपने दुपट्टे से पोन्छते हुए ज़ाहिद से कहा।
इस के बाद ज़ाहिद ने नीलोफर और जमशेद से मुलाकात से ले कर पिंडी एर पोर्ट तक और उस के बाद नीलोफर और जमशेद के साथ शाज़िया और अपनी शादी वाले प्लान की सारी बात अपनी अम्मी के गॉश-ओ-गुज़र कर दी।
मगर इस सारी बात में उस ने पूरी कोशिश की कि लंड, फुद्दि जैसा कोई नंगा या गंदा लफ़्ज अपनी अम्मी के सामने उस के मुँह से अता ना हो।
जब रज़िया बीबी को एक बहन भाई होते हुए नीलोफर और जमशेद के आपस जिन्सी ताल्लुक़ात कायम करने वाली बात का ईलम हुआ।तो ज़ाहिद और शाज़िया की तरह उन की अम्मी का मुँह भी हैरत से खुला का खुला रह गया।
ज़ाहिद और शाज़िया की तरह रज़िया बीबी के लिए भी ये ना काबले यकीन बात थी। कि सगा भाई होते हुए भी जमशेद अपनी ही सग़ी बहन का यार भी बन गया था।
"अच्छा अब में सारी बात जान चुकी हूँ, लेकिन अगर नीलोफर और जमशेद ने एक ग़लत काम किया है। तो तुम लोग भी क्यों उसी ग़लत काम को करने पर तूल गये हो बेटा" रज़िया बीबी ने ज़ाहिद की बात ख़तम होने पर उसे समझाते हुए कहा।
"अम्मी मेने इस वाकये से पहले तक कभी अपनी बहन के बारे में इस तरह की कोई बात सोची तक नहीं थी, लेकिन नीलोफर और जमशेद से एक मुलाकात ने मेरी ज़हिनियत ही बदल कर रख दी, अब हक़ीकत ये है कि जमशेद की तरह में भी अपनी ही बहन शाज़िया से मोहब्बत करने लगा हूँ और उस से शादी का ख्वाहिश मंद हूँ और उस के लिए आप की इजाज़त चाहता हूँ" ज़ाहिद ने अपनी अम्मी की बात के जवाब में कहा।
"तुम को ऐसी घटिया बात सोचते हुए भी शरम आनी चाहिए ज़ाहिद, मुझे तो शरम आ रही है तुम को अपना बेटा कहते हुए" रज़िया बीबी ने अपने बेटे को कोसते हुए कहा।
"अम्मी चाहे आप कुछ भी कहो में अब शादी करूँगा तो सिर्फ़ शाज़िया से वरना नही" ज़ाहिद ने अपनी अम्मी को अपना फ़ैसला सुनाते हुए कहा।
अपने बेटे की बात सुन कर रज़िया बीबी का दिल फिर काँपा और वह अपने बेटे ज़ाहिद को समझाने वाले अंदाज़ में बोली "बेटा तुम क्यों ये बात नहीं समझते कि ये सब जो तुम सोच और कह रहे हो ये एक बहुत बड़ा गुनाह है।"
"अम्मी मुझे कुछ नहीं पता बस मेने अपना फ़ैसला आप को सुना दिया है" ज़ाहिद अम्मी की बात की अनसुनी करता हुआ बोला।
"मगर ज़ाहिद ये बात ठीक नही, तुम दोनों बहन भाई हो कर कैसे ये सब कर सकते हो भला, वैसे भी ये बहुत गुनाह वाला काम है और सोचो कि दुनिया और हमारे रिश्ते दार क्या कहेंगे बेटा" रज़िया बीबी ने अपने बेटे से कहा।
"कौन-सी दुनिया और कौन से रिश्ते दार, आप जानती हैं कि अब्बू की मौत के बाद हमारे घर के क्या हालात हो गये थे, उस वक्त कौन-सी दुनिया और कौन से रिश्ते दार हम लोगों की मदद को आगे आए थे, अब जब हमारा अच्छा वक्त चल रहा है तो इस वक्त मुझे किसी और की कोई परवाह नहीं अम्मी" ज़ाहिद ने अपनी अम्मी की बात का जवाब दिया।
"तुम को दुनिया या खुदा का ख़ौफ़ नहीं मगर मुझे है, इसीलिए में तुम्हे अपनी ही सग़ी बहन को अपनी बीवी बना कर इस घर में रखने की हरगिज़-हरगिज़ इजाज़त नहीं दूंगी ज़ाहिद" रज़िया बीबी गुस्से से अपने बेटे से कहा।
ज़ाहिद अब अपनी बहन की मोटी फुद्दि को हासिल करने के लिए पूरी तरह तुला हुआ था।और अपनी बहन की जवान गरम और प्यासी चूत में अपना मोटा लंड डालने के लिए उसे चाहे कोई भी हद क्रॉस क्यूँ ना करनी पड़े वह उस पर अब आमादा हो चुका था।
ज़ाहिद अब तक ये समझ रहा था। कि वो किसी ना किसी तरह से अपनी अम्मी को ये सब काम करने पर राज़ी कर लेगा।
लेकिन जब उस ने देखा कि घी सीधी उंगली से नही निकल रहा। तो उसे पहली बार अपनी अम्मी पर बहुत गुस्सा आया।
"में आप को सोचने के लिए चन्द दिन की मोहलत देता हूँ अम्मी,में चाहता तो ये ही हूँ कि शाज़िया को अपनी बीवी बनाने में आप की रज़ामंदी शामिल हो,लेकिन अगर दो दिन के बाद आप ने फिर भी मेरी बात ना मानी,तो फिर में ना सिर्फ़ शाज़िया को इस घर से भगा कर ले जाऊंगा, बल्कि में आप से ये मकान,जायदाद और सारा रुपैया पैसा भी छीन कर आप को कोड़ी कोड़ी का मोहताज कर दूँगा, और आप कुछ भी नही कर सकेगीं" ज़ाहिद ने पोलीस वालों के रवायती अंदाज में पहली बार अपनी ही अम्मी को धमकी देते हुए गुस्से में कहा।
ये कह कर ज़ाहिद गुस्से में उठ कर अपने बेड रूम की तरफ चला गया।
(इसी लिए तो लोग कहते हैं ना कि पोलीस वालों की ना दोस्ती अच्छी ना दुश्मनी अच्छी।)
रज़िया बीबी के सामने ज़ाहिद आज एक बेटे के रूप में नही बल्कि पहली बार एक असली थाने दार "पुलसिया" के रूप में ज़ाहिर हुआ था। और रज़िया बीबी अपने बेटे का ये रूप देख कर ख़ौफ़ से कांप गई।
अपने बेटे की सारी बातें सुन कर रज़िया बीबी को तो समझहह ही नहीं आ रही थी। कि ये सब क्या हो रहा है।
इसीलिए वो अपने सर पर हाथ रख कर "सुन्न" हालत में सोफे पर ही बैठी रही और अपने आँसू दुबारा बहाने लगी।
उधर दूसरी तरफ अपने घर पहुँच कर नीलोफर ने शाज़िया को फोन मिलाया। तो इस बार शाज़िया ने अपना फोन उठा ही लिया।
"किधर हो यार कल से तुम को फोन कर कर के थक गई हूँ में" शाज़िया के फोन आन्सर करते ही नीलोफर बोली।
"यार इधर कराची में ही हूँ असल में मेरे फोन का चारजर नही मिल रहा था मुझे " नीलोफर की बात सुन कर शाज़िया ने जवाब दिया।
"अच्छा ये बताओ तुम्हारे आस पास तो कोई नही एक बहुत ज़रूरी बात करनी थी तुम से" नीलोफर ने शाज़िया से पूछा।
"कोई नही में अपने कमरे में अकेली ही हूँ,बताओ क्या बात है" शाज़िया ने नीलोफर की बात सुन कर उस से पूछा।
इस के बाद नीलोफर ने शाज़िया को ज़ाहिद से मुलाकात और प्लान से ले कर शाज़िया की अम्मी रज़िया बीबी से अपनी बात चीत तक सारी बात तफ़सील से शाज़िया को बयान कर दी।
शाज़िया तो नीलोफर की तरह अपने भाई से छुप छुप कर अपनी चूत मरवाने के चक्कर में थी। मगर उसे क्या ईलम था कि उस का भाई उसे अपनी दुल्हन बना कर अपने हमेशा हमेशा के लिए अपने पास ही रखना चाहता है।
इसीलिए नीलोफर के मुँह से अपने भाई का प्लान सुन कर ही ख़ौफ़ के मारे शाज़िया के पसीने छूटने लगे थे। और जब नीलोफर ने शाज़िया को बता दिया। कि वो उस की अम्मी से मिल कर उन्हे तस्वीरो वाला लिफ़ाफ़ा दे भी आई है। तो इस बात को जान कर शाज़िया का तो जैसे हार्ट ही फैल होने लगा।
"उफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़! खुदाया अब क्या होगा,अम्मी या तो मुझे और भाई को क़त्ल कर देंगी या खुद को फाँसी लगा लेंगी, नीलोफर" शाज़िया ने खोफ़ और परेशानी के आलम में अपनी सहेली से पूछा।
"यार मुझे भी इसी बात का डर था, मगर तुम्हारा भाई ज़ाहिद ही नही मान रहा था, इसीलिए मुझे उस की ज़िद के अगर हार माननी पड़ी"नीलोफर ने शाज़िया को बताया।
"अच्छा तुम फोन बंद करो में ज़ाहिद भाई ने पता करती हूँ कि क्या हो रहा है अभी हमारे घर में" शाज़िया ने नीलोफर से ये बात कहते हुए फोन काट दिया।
नीलोफर से बात ख़तम करते ही शाज़िया ने जल्दी से ज़ाहिद का नंबर मिलाया। तो फोन की पहली ही रिंग के बाद शाज़िया के कानों में ज़ाहिद भाई की आंवाज़ पड़ी"हेलो तुम कराची ख़ैरियत से पहुँच गई हो ना,मेरी जान। "
ज़ाहिद तो जैसे अपनी बहन शाज़िया के फोन के इंतज़ार में ही बैठा था।
"भाई सब ख़ैरियत है ना घर में,अम्मी किधर है,क्या हुआ?" शाज़िया ने घबराई हुई आवाज़ के साथ एक ही सांस में इतने सारे सवाल पूछ डाले।
"उफफफ्फ़! मेरी बन्नो सब कुशल मंगल (अमन शांति) है तुम चिंता मत करो" ज़ाहिद अपनी "माशूक" बहन और होने वाली बीवी की आवाज़ सुन कर चहक उठा। और हिन्दी अल्फ़ाज़ यूज़ करते हुए बड़े रोमॅंटिक अंदाज़ में अपनी बहन को होसला देते हुए बोला।
फिर ज़ाहिद ने अपनी बहन को अपने और अपनी अम्मी रज़िया बीबी के दरमियाँ होने वाली सारी बात डीटेल से बता दी।
"अब क्या हो गा भाई" अपने भाई के मुँह से सारी तफ़सील सुन कर शाज़िया पहले से ज़्यादा परे शान हो कर रोने लगी।
"अरे यार तुम फिकर मत करो यार,कुछ भी नही हो गा,में हूँ ना में सब ठीक कर लूँ गा,बस तुम रोओ मत" ज़ाहिद ने अपनी बहन को तसल्ली देते हुए कहा।
शाज़िया को अपने भाई से बात चीत कर के थोड़ा होसला मिला।
अभी उन दोनो का दिल आपस में कुछ और किस्म की बातें करने को चाह रहा था। मगर इतने में शाज़िया की छोटी बहन उस के कमरे में आ कर उस के पास बैठ गई।
शाज़िया ने ज़ाहिद को अपनी छोटी बहन के कमरे में आमद का बता कर फोन अपनी बहन को पकड़ा दिया।
ज़ाहिद ने अपनी छोटी बहन से थोड़ी देर बात चीत कर के फोन बंद किया और सोने के लिए लेट गया।
उधर बाहर टीवी लाउन्ज में बैठी रज़िया बीबी कुछ देर सोफे पर बैठी अपने आँसू बहाती रही। और फिर जब वो थक गई तो अपने कमरे में सोने के लिए चली आई।
रज़िया बीबी ने पूरी रात बिस्तर पर करवटें बदलते और ज़ाहिद और शाज़िया के बड़े में सोचते सोचते और रोते रोते ही बसर कर दी।
अगली सुबह ज़ाहिद तो जल्दी ही उठ कर पोलीस स्टेशन चला गया। जब कि रज़िया बीबी बिना कुछ खाए पिए सारा दिन अपने बिस्तर पर बीमार बन कर पड़ी रही।
शाम को जब ज़ाहिद घर वापिस आया। तो वो होटेल से अपने और अपनी अम्मी के लिए खाना ले आया।
जब ज़ाहिद ने अम्मी के कमरे में जा कर उन को खाना दिया। तो रज़िया बीबी ने उसे खाने से इनकार कर दिया।
ज़ाहिद ने अपनी अम्मी को अपनी भूक हड़ताल ख़तम करने का कहा। मगर ज़ाहिद की तरह उस की अम्मी भी अपनी ज़िद पर कायम रहीं।
आख़िर काफ़ी देर बाद थक हार कर ज़ाहिद ने अपनी अम्मी को उन के हाल पर छोड़ा । और खुद अपने कमरे में सोने चला गया।
ज़ाहिद के जाने के बाद काफ़ी देर तक रज़िया बीबी ने कमरे में रखे खाने की तरफ नज़र उठा कर भी ना देखा। मगर जो भी हो रज़िया बीबी एक बूढ़ी औरत थी। जो कि कल शाम से भूकी भी थी।
इसीलिए आख़िर कार कुछ देर बाद जब भूक रज़िया बीबी के लिए ना काबले बर्दास्त हो गई। तो उस को चारो-ना-चार उठ कर प्लेट में पड़ा खाना खाना ही पड़ा।
पंजाबी ज़ुबान की एक मिसाल है कि:-
"तिढ़ ना पाया रूठेआं ते सबे गुलान ख़ुतेआं।"
(कि जब तक पेट में रोटी ना जाय उस वक्त तक इंसान को कोई बात नही सूझती।)
इसीलिए दो दिन की भूकि रज़िया बीबी को पेट भर कर खाना मिला। तो उस के दिल और दिमाग़ को भी कुछ सकून मिला और उस ने ठंडे दिल से कुछ सोचना शुरू कर दिया।
रज़िया बीबी बिस्तर पर लेट कर अपनी गुज़री जिंदगी के बारे में सोचने लगी।
अपने ख्यालों में मगन हो कर अपनी गोज़िश्ता जिंदगी पर नज़र दौड़ाते दौड़ाते रज़िया बीबी को वो वक्त याद आ गया। जब उस के शोहर की मौत के बाद उस के सब रिश्ते दार उस का साथ छोड़ गये थे।
तो उस वक्त कैसे ज़ाहिद और शाज़िया ने दिन रात मेहनत कर अपने घर का ना सिर्फ़ बोझ उठाया था। बल्कि खुद शादी के क़ाबिल होने के बावजूद पहले अपनी छोटी बहनों की शादियाँ कर के अपना फ़र्ज़ भी निभाया था।
साथ ही साथ रज़िया बीबी को वो रातें भी याद आ गईं। जब रात की तन्हाई में उस ने अपनी तलाक़ याफ़्ता बेटी को अपनी जिस्मानी प्यास से मजबूर हो कर अपनी गरम चूत से खेलते सुना था।
अपनी बेटी की गरम सिसकियाँ सुन कर उसी वक्त ही रज़िया बीबी को अंदाज़ हो गया था। कि उस की जवान बेटी के जिस्म में बहुत गर्मी छुपी हुई है। जिस के लिए उसे एक ऐसे जवान मर्द की ज़रूरत है। जो उस के प्यासे जवान बदन की गर्मी को अच्छी तरह से संभाल सके।
ये बात सोचते सोचते पहली बार रज़िया बीबी के दिल में ख्याल आया। कि अगर जमशेद अगर अपनी बहन के शोहर की गैर मौजूदगी में अपनी बहन की चूत की प्यास बुझाने में अपनी बहन की मदद कर सकता है।
तो बाप की वफत के बाद एक अच्छे कपल की तरह घर का बूझ उठाने वाले ज़ाहिद और शाज़िया भी अगर अब शाज़िया की तलाक़ के बाद असल कपल बनना चाहते है तो इस में कोई हैरानगी तो नही।
"उफफफफफफफफफफफफ्फ़ खुदाया में ये क्या सोचने लगी हूँ" रज़िया बीबी के दिमाग़ में ज्यूँ ही ये बात आई। तो उस ने फॉरन अपने आप को कोसा।
मगर इस के साथ ये सब बातें सोचते सोचते रज़िया बीबी के दिमाग़ में गुज़रे हुए कल में की गई ज़ाहिद की सारी बातें भी याद आ गईं।
(कहते हैं कि इंसान की हलाल की कमाई में जब हराम की अमेज़िश हो जाती है। तो इंसान आहिस्ता आहिस्ता बुरे भले की तमीज़ खो बैठता है।)
जारी रहेगी