अम्मी बनी सास 041

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"तेरे नैना बड़े ज़ालिम मार ही डालोगे".
1.8k words
4.58
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Part 41 of the 92 part series

Updated 06/10/2023
Created 05/04/2021
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ज़ाहिद ने अपनी बहन शाज़िया के मम्मो के साइज़ के मुताबिक 40D का ब्रेजियर और लार्ज साइज़ का थॉंग खरीदा और पेमेंट कर के वापिस झेलम की तरफ चल पड़ा।

उधर दूसरी तरफ शाज़िया से फोन पर बात ख़तम करने के बाद रज़िया बीबी दुबारा सोच में पड़ गई।

अपने लालची पन के हाथों मजबूर हो कर रज़िया बीबी ने अपने बेटे ज़ाहिद की बात मान तो ली थी, मगर अंदर से उस का दिल उसे अपने इस फ़ैसले पर अभी भी मालमत कर रहा था।

इसीलिए रज़िया बीबी ने पक्का इरादा कर लिया, कि ज़ाहिद की बात मानने के बावजूद वह अपने बच्चो के किसी मामले में अमली तौर पर हिस्सा नहीं लेगी।

बल्कि वह अपनी खुली आँखों के सामने सब कुछ होता हुआ देख कर भी एक बे जान बुत्त की मानद घर के एक कोने में पड़ी रहेगी।

ज़ाहिद उस शाम घर वापिस आया। तो उस ने अपनी अम्मी को अपने कमरे में बिस्तर पर ही लेटे हुए पाया।

"अम्मी में आप का शूकर गुज़ार हूँ कि आप ने मेरी बात मान कर हमारे घर को टूटने से बचा लिया" ज़ाहिद ने अपनी अम्मी से कहा।

रज़ाई बीबी ने अपने बेटे की बात का कोई जवाब ना दिया और खामोशी से बिस्तर की चादर ओढ़े पड़ी रही।

ज़ाहिद ने अपनी अम्मी के पास शाम का खाना रखा और सुबह वाले खाली बर्तन समेट कर किचन में रख दिए।

किचन से निकल कर ज़ाहिद शाज़िया के कमरे में गया और शाज़िया के ड्रेसिंग टेबल के ड्रॉ से अपनी बहन की पड़ी हुई एक अंगूठी (रिंग) निकल कर अपनी पॉकेट में रख ली।

ज़ाहिद अभी शाज़िया के कमरे से निकला ही था। कि उसे जमशेद का फोन आया।

"किधर हो यार" जमशेद की आवाज़ ज़ाहिद के कान में पड़ी।

"में घर में आया था और अभी वापिस पोलीस स्टेशन जाने का सोच रहा हूँ, तुम बताओ ख़ैरियत से फोन किया है" ज़ाहिद ने जमशेद की बात सुन कर उस से पूछा।

इस पर जमशेद ने ज़ाहिद को नीलोफर की तलाक़ वाली सारी बात बताई और साथ ही साथ ज़ाहिद को नीलोफर के साथ उस घर के ऊपर वाले हिस्से में शिफ्ट होने का बताया।

आज का दिन ज़ाहिद के लिए बहुत-सी खुशियाँ एक साथ लाया था। इसीलिए जमशेद से ये खबर सुन कर ज़ाहिद पहले से भी ज़्यादा खुश हो गया।

थोड़ी देर में जमशेद और नीलोफर अपना समान ले कर ज़ाहिद के घर पहुँच गये। तो ज़ाहिद ने घर का ऊपर वाला हिस्सा खोल कर उन दोनों बहन भाई के हवाले कर दिया।

ज़ाहिद उन दोनों को अपने घर छोड़ कर खुद बाज़ार चला आया और उस ने झेलम में बाज़ार में एक ज्यूयेल्री शॉप पर अपनी बहन शाज़िया की पुरानी अंगूठी देखा कर शाज़िया के लिए एक नई सोने की रिंग साथ में "एसजेड" (शाज़िया ज़ाहिद) के नाम वाला सोने का एक लोकिट और सोने की चूड़ी (बॅंगल्स) भी पसंद कर के खरीद ली।

अगले दिन शाज़िया ने अपनी क़्वेटा और कराची वाली दोनों बहनों को जमशेद के साथ अपनी और नीलोफर के साथ ज़ाहिद भाई की शादी का बता कर अपनी दोनों बहनों को शादी में शामिल होने की दावत दी।

मगर दोनों बहनों ने अपने बच्चो के स्कूल में पढ़ाई की वजह से शादी में शिरकत से मज़रत कर ली।

अपनी बहनों को अपनी और ज़ाहिद भाई की शादी की दावत देना शाज़िया का फ़र्ज़ बनता था।

मगर शाज़िया दिल से अपनी दोनों बहनों की शादी में शिरकत नहीं चाहती थी। क्योंकि अपनी छोटी बहनों की मौजूदगी में शाज़िया का अपने भाई ज़ाहिद से शादी वाले दिन "मिलाप" ना मुमकिन हो जाता। इसीलिए शाज़िया को अपनी बहनों के इनकार पर दिल ही दिल में खुशी हुई।

फिर शाज़िया ने कॉसिश कर के अगले दिन दोपहर की फ्लाइट पर सीट बुक करवा ली।और अपनी पिंडी आमद की नीलोफर को इतला कर दी।

नीलोफर और जमशेद ने शाज़िया को एरपोर्ट से पिक किया और फिर सब इकट्ठे पिंडी में अपनी-अपनी शादी की शॉपिंग करने चले गये।

शाज़िया और नीलोफर ने अपनी-अपनी पसंद के सुर्ख रंग के लहंगे खरीदे और शाम को सब एक साथ झेलम वापिस चले आए।

शाज़िया के घर वापिस आने का रज़िया बीबी या ज़ाहिद को ईलम नहीं था।इसीलिए अपनी बेटी को यूँ अचानक अपने सामने देख कर रज़िया बीबी को हैरानी हुई।

रज़िया बीबी अपनी बेटी से रूखे अंदाज़ में मिल कर चुप चाप अपने कमरे में चली गई।

शाज़िया को अपनी अम्मी के इस रवैये पर हैरत हुई. मगर वह फॉरन ये बात समझ गई कि उस की अम्मी ने ज़ाहिद और शाज़िया के फ़ैसले को अभी दिल से कबूल नहीं किया।

इतनी देर में नीलोफर ने ज़ाहिद को फोन पर झेलम वापसी की खबर दे दी थी।

ज़ाहिद अपनी बहन के वापिस आने की खबर पा कर उड़ता हुआ घर आया।तो शाज़िया जमशेद और नीलोफर के साथ ड्राइंग रूम में बैठ कर गप शप में मसरूफ़ थी।

ज्यों ही ज़ाहिद ड्राइंग रूम में एंटर हुआ। तो दोनों बहन भाई के दिल एक दूसरे को देख कर बहुत तेज़ी से धड़कने लगे।

ये दोनों बहन भाई की आपस में प्यार के इज़हार के बाद आशिक़ और माशूक के रूप में पहली मुलाकात थी।

अपने भाई को यूँ अपने सामने देख कर शाज़िया की पीरियड वाली फुद्दि में से उस की चूत का पानी तेज़ी से टपक-टपक कर उस की चूत पर लगे उस के पॅड में जज़्ब होने लगा।

जब के शाज़िया को देख कर ज़ाहिद का दिल चाहा के वह जेया कर अपनी बहन के गरम जिस्म को अपनी बाहों में भर ले और उसे चूम-चूम कर बे हाल कर दे।

मगर अपनी बहन से किए हुए वादे का पास रखते हुए ज़ाहिद के शाज़िया की तरफ बढ़ते कदम रुक गये।

थोड़ी देर तक दोनों बहन भाई यूँ ही आँखों ही आँखो में एक दूसरे को चूमते और चाटते रहे।

शायद इसी मोके के लिए किसी शायर ने इंडियन मूवी का ये गीत लिखा था कि- "तेरे नैना बड़े ज़ालिम मार ही डालोगे।"

जब नीलोफर ने देखा कि दोनों बहन भाई की नज़रें एक दूसरे से हट नहीं रही। तो उस के सबर का पैमाना लबरेज हो गया और नीलोफर बोल पड़ी "यार अब तुम लोग लैला मजनू वाला ये ड्रामा ख़तम करो, ता कि खाना खाया जाए" ।

नीलोफर की इस बात पर सब ने एक साथ कहका लगाया और शाज़िया नीलोफर के साथ उठ कर किचन में चली गई।

खाने के दौरान भी दोनों बहन भाई एक दूसरे से नज़रें मिलाते और कभी नज़रें चुराते रहे।

खाने से फारिग हो कर ज़ाहिद नीलोफर को कमरे के एक तरफ ले गया और कोने में जा कर नीलोफर से उस के कान में कुछ ख़ुसर पुसर करने लगा।

शाज़िया सोफे पर बैठी अपने भाई ज़ाहिद को नीलोफर से राज़-ओ-नियाज़ करता देख कर दिल ही दिल में सोच रही थी। कि न ज़ाने ज़ाहिद भाई उस की सहेली से क्या ख़ुफ़िया बात चीत कर रहे हैं।

उधर ज़ाहिद की बात सुन कर नीलोफर के मुँह पर एक मुस्कराहट फैल गई। और वो ज़ाहिद के पास से हट कर शाज़िया के करीब आई। और ज़ू महनी अंदाज़ में शाज़िया की तरफ देख कर बोली "बानो आज खुशी के इस मोके पर मज़े दार सी चाय (टी) तो पिला दो ना।"

"खुशी का मोका!, में समझी नही नीलोफर?" शाज़िया ने अपनी सहेली की बात ना समझते हुए नीलोफर से पूछा।

"यार असल में तुम्हारा भाई तुम को अपनी बीवी बनाने से पहले तुम्हें मँगनी (इंग़ेज़मेंट) की रिंग पहनाना चाहता है, तो ये खुशी की बात ही हुई ना। चलो अब जल्दी से चाय बना कर लाओ, ताकि फिर हम सब मिल कर तुम्हारी अपने भाई के साथ तुम्हारी मँगनी की रसम अदा करें।" नीलोफर ने खुश होते हुए शाज़िया से कहा।

अपनी सहेली की बात सुन कर शाज़िया ने हैरत से अपने भाई ज़ाहिद की तरफ देखा. तो ज़ाहिद ने मुस्कराते हुए अपनी पॉकेट से रिंग का एक डिब्बा निकाला। और उसे अपनी बहन शाज़िया की आँखों की सामने लहराने लगा।

"ये सब करने की क्या ज़रूरत है भाई?" शाज़िया ने नीलोफर की बात और अपने भाई की हरकत पर हेरान होते हुए पहली बार अपने भाई को डाइरेक्ट मुखातिब कर के पूछा।

"ज़रूरत है तभी ही तो कह रहा हूँ, तुम्हें नही पता कि शादी से पहले माँगनी की जाती है बुद्धू।" ज़ाहिद ने मुस्कराते हुए अपनी बहन को समझाया।

"उफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़! भाई तो मेरे साथ जाली शादी करने से पहले असली शादी वाली सारी रस्में भी पूरी करने पर तुला हुआ है।"अपने भाई की इस बात पर शाज़िया के दिल में एक हल चल मच गई।

"अच्छा चलो दोनो इकट्ठे मिल कर चाय बनाते हैं।" नीलोफर ने शाज़िया को हाथ से पकड़ कर किचन की तरफ धकेलते हुए कहा।

"तो ये ख़ुसर फुसर हो रही थी तुम दोनो में?" शाज़िया ने नीलोफर के साथ किचन में दाखिल होते हुए पूछा।

"हां ज़ाहिद ने मुझ से इसी बारे में मशवरा किया था, यार!" नीलोफर ने शाज़िया को जवाब दिया।

फिर चाय बनाने के बाद शाज़िया चाय की ट्रे ले कर आहिस्ता आहिस्ता चलती हुई टीवी लाउन्ज में वापिस आई।

उस वक्त शाज़िया का ड्राइंग रूम में चाय की ट्री ले कर आने का अंदाज़ बिल्कुल ऐसे ही था।

जैसे कोई लड़की अपना रिश्ता देखने के लिए आने वाले मेहमानो के सामने पहली बार चाय ले कर जाती है।

"ज़ाहिद साब ये है हमारी शाज़िया ख़ानम, जिसे देखने आज आप हमारे घर तशरीफ़ लाए हैं, तो बताइए केसी लगी आप को हमारी बानो?" शाजिया ज्यों ही टीवी लाउन्ज में दाखिल हुई। तो उस के पीछे पीछे आती नीलोफर ने सोफे पर बैठे ज़ाहिद से पूछा।

शाज़िया अपनी सहेली के मुँह से ये इलफ़ाज़ सुन कर मस्त हो गई। और उस ने एक अदा के साथ चाय का कप अपने भाई के हाथ में ऐसे पकड़ाया, जैसे वाकई ही में उस का भाई ज़ाहिद अपनी ही बहन से शादी के लिए उस का रिश्ता देखने आया हो।

"हाईईईईईईई! क्या बताऊ नीलोफर साहिबा, आप की बानो तो इस चाय से भी ज़्यादा गरम दिखती है मुझे।" ज़ाहिद ने एक हाथ से चाय का कप अपने होंठो से लगाते हुए, अपनी बहन शाज़िया की तरफ देख कर आँख मारी। और दूसरे हाथ से शाज़िया के हाथ को पकड़ कर उसे अपने साथ सोफे पर बिठा लिया।

बे शक शाज़िया अपनी सहेली की मेहरबानी की वजह से अब अपने ही भाई से जिन्सी ताल्लुक़ात कायम करने के लिए ज़ेहनी तौर पर पूरी तरह आमादा हो चुकी थी ।

मगर इस के बावजूद जमशेद और नीलोफर की मौजूदगी में अपने भाई के साथ इस तरह की बातें करना। और उस के साथ एक सोफे पर इतने करीब हो कर बैठने पर शाज़िया को एक उलझन सी होने लगी थी।

लेकन इस से पहले कि शाज़िया अपने भाई ज़ाहिद के पास से उठ कर दूसरे सोफे पर बैठ पाती। ज़ाहिद ने चाइ के कप को टेबल पर रख कर अपने हाथ में पकड़ी अपनी बहन के हाथ की उंगली में अपने "नाम" की अंगूठी डाल दी, और साथ ही अपनी बहन के हाथ को अपने होंठो पर ला कर उसे चूम लिया।

शाज़िया अपने भाई के प्यार का ये अंदाज़ देख कर खुशी से फूली ना समाई.और उस ने शर्मो हया को बुला कर बे इख्तियारि में अपनी बाहें अपने भाई के जिस्म के गिर्द लपेट ली।

ज्यों ही ज़ाहिद ने शाज़िया की उंगली में सोने की रिंग पहनाई। तो जमशेद और नीलोफर ने तालियाँ बजा कर शाज़िया और ज़ाहिद को उन की मँगनी की मुबारकबाद दी।

अपनी बहन को इस तरह वलिहाना अंदाज़ में खुद से चिपटा हुआ पा कर ज़ाहिद अपनी बहन से किया हुआ वादा भूल गया।

जारी रहेगी

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