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Click hereउधर जब ज़ाहिद और जमशेद ने अपने दोस्तों और मोहल्ले दारों को खाना खिला कर फारिग किया।तो उस वक्त रात के 10 बज चुके थे।
उस वक्त तक नीलोफर ऊपर वाले कमरे में जब कि शाज़िया अपने भाई ज़ाहिद के कमरे में सुहाग की सेज पर बैठ कर अपने-अपने दूल्हा भाइयों का इंतिज़ार कर रही थी।
मेहमानो को रुखसत कर के जमशेद अपनी बहन के साथ अपनी सुहाग रात मनाने ऊपर चला गया।जब कि शेरवानी में मलबूस ज़ाहिद तेज़ी से अपने कमरे की तरफ लपका।
ज़ाहिद ज्यों ही अपने कमरे के दरवाज़े के करीब पहुँचा। तो उस ने अपनी अम्मी रज़िया बीबी को अपने कमरे से बाहर निकलते हुए देखा।
अपनी अम्मी को अपने सजे हुए कमरे से बाहर आता देख कर ज़ाहिद को पहली बार अपनी अम्मी से झिझक और शरम महसूस हुई और उस के अपने कमरे की तरफ बढ़ते कदम रुक से गये।
जब रज़िया बीबी ने अपने बेटे को तेज़ी से अपने कमरे की तरफ आता देखा।तो वह समझ गई कि उस का बेटा उस अपनी बहन की जवानी का रस पीने के लिए बे ताब हो रहा है। मगर वह अपनी अम्मी को यूँ अचानक सामने देख कर बोखला-सा गया है।
अपने बेटे की अपनी बहन के लिए ये बे ताबी देख कर रज़िया बीबी ने ज़ाहिद को मज़ीद इंतिज़ार की ज़हमत देना मुनासिब ना समझा।
इसीलिए रज़िया बीबी ने ज़ाहिद के सामने से हटते हुए अपने बेटे को कमरे में जाने का इशारा किया।
ज़ाहिद शरमाते हुए ज्यों ही अपनी अम्मी के पास से गुज़र कर अपने कमरे के दरवाज़े पर पहुँचा। तो उसे अपनी अम्मी की हल्की-सी सरगोशी अपने कानों में सुनाई दी "ज़ाहिद बेटा ये ख्याल रखना कि सुबह वालिमा जायज़ होना चाहिए।"
(मुझे यकीन हैं कि आप में से ज़्यादा तर दोस्त "वालिमा जायज़ होने" की इस टर्म का मतलब अच्छी तरह जानते होंगे ।मगर जो दोस्त इस बात को नहीं समझते तो उन के लिए अर्ज़ है। कि पाकिस्तान में आम तौर पर लोगों का ये विस्वास है। कि शादी को पहली रात ही को लड़का और लड़की का आपस में जिन्सी मिलाप हर सूरत में होना चाहिए.ता कि नेक्स्ट डे दूल्हा की तरफ से दी गई खाने की दावत को जायज़ और बरकत वाला समझा जाए।)
(रज़िया बीबी अपने बेटे को "वालिमा जायज़ होना चाहिए" का कह कर, दूसरे लफ़ज़ो में अपने बेटे ज़ाहिद को अपनी ही बेटी शाज़िया के साथ आज ही की रात चुदाई करने की तलकीन कर रही थी।)
अपनी अम्मी की ये बात सुन कर कमरे में जाते ज़ाहिद के कदम रुक गये ।और उस ने तेज़ी से पलटते हुए अपनी अम्मी की तरफ देखा।
तो रज़िया बीबी ने मुस्कुराते हुए चेहरे के साथ अपने बेटे ज़ाहिद को कहा "मेरा मुँह क्या देख रहे हो, जाओ मेरी बेटी शाज़िया तुम्हारे इंतिज़ार में पागल हो रही है बेटा।"
"अंधे को क्या चाहिए दो आँखें" की तरह अपनी अम्मी की इजाज़त पाते ही ज़ाहिद ने अपने कमरे की कुण्डी लगाई.और सुहाग की सेज पर बैठी अपनी दुल्हन बहन की तरफ बढ़ता चला गया।
दरवाज़े की कुण्डी लगा कर ज़ाहिद आहिस्ता-आहिस्ता चलता हुआ अपने बेड के करीब आया।
उस वक्त ज़ाहिद का कमरा उस के बेड की चादर पर बिखरे हुए फूलो और बिस्तर के इरद गिर्द लटकी हुई गुलाब और मोतिए की लड़ियों की खुश्बू से पूरी तरह महक रहा था।
ज़ाहिद ने देखा कि उस की बहन शाज़िया "अपने ब्रदर की दुल्हन" के रूप में अपना घूँघट निकले मसहरी पर बैठी हुई उस का इंतिज़ार कर रही है।
ज़ाहिद ने सुर्ख लहंगे में मलबूस अपनी बहन के जवान और बाहरी जिस्म का जायज़ा लेते हुए अपना कूला (पगड़ी) और शेरवानी उतार कर बिस्तर के पास पड़ी टेबल पर रखी और फिर आहिस्ता से अपनी बहन के साथ ही बिस्तर पर बैठ गया।
वैसे तो आज इतना सज संवर कर अपने ही भाई की दुल्हन बनी शाज़िया बहुत बे करारी से अपने भाई ज़ाहिद का कमरे में आने और उस के साथ "मिलाप" करने की मुंतीज़ार थी।
मगर अब रात की तनहाई में अपने भाई को अपने साथ बैठा हुआ महसूस कर के ना जाने क्यों शरम के मारे शाज़िया के जिस्म से पसीने छूटने लगे थे।
जब के दूसरी तरफ ज़ाहिद का हाल भी बिल्कुल अपनी बहन शाज़िया जैसा ही था।
इस बात के बावजूद के औरतों के मामले में ज़ाहिद एक मंझा हुआ खिलाड़ी था।
जो आज से पहले तक नीलोफर समेत ना जाने कितनी ही औरतों से हम बिस्तरी कर चुका था।
लेकिन आज अपनी ही बहन के साथ अपनी सुहाग रात मनाने के इरादे से शाज़िया के नज़दीक आते ही ज़ाहिद को भी ना जाने क्यों एक अजीब किस्म की घबड़ाहट शुरू हो गई थी।
असल में आज इन दोनों बहन भाई की इस घबड़ाहट की वजह शायद ये रही होगी। कि दोनों के जिस्मो में जवानी की "आग" चाहिए जितनी भी शिद्दत से जल रही हो।
मगर इस के बावजूद अपने ही खूनी रिश्ते के साथ अपने जिस्मानी ताल्लुक को कायम करने और अपनी जिन्सी सोच को अमली जामा पहनाने की खातिर पहला कदम उठाना आज उन दोनों के लिए बहुत मोहल हो रहा था।
ज़ाहिद और शाज़िया को अब ये समझ आ रही थी। कि रात की तन्हाई में अपनी बहन या भाई के मुतलक सोच कर अपने लंड की मूठ लगाना या अपनी चूत में उंगली मारना एक बात है।
लेकिन हक़ीकत में अपनी ही बहन या भाई से चुदाई करना एक दूसरी बात होती है।
शायद मिर्ज़ा ग़ालिब ने ये शेर इस मोके के लिए फ़रमाया था कि,
" ये इश्क की मंज़िल आसान नहीं ग़ालिब, गान्ड फट जाती है जुल्मत सहते सहते" ।
बिल्कुल इसी तरह अब दोनों बहन भाई के एक दूसरे से कुछ इंच के फ़ासले पेर बैठे होने के बावजूद। ज़ाहिद और शाज़िया दोनों की आगे बढ़ कर पहल करने और अपने आज तक सोचे हुए ख्यालात को अमली जमा पहनाने में उन दोनों की गान्ड फॅट रही थी।
कमरे में इतनी खामोशी थी।कि दोनों बहन भाई की तेज-तेज और घबराई हुई साँसों की आवाज़ भी उन दोनों को सॉफ साफ सुनाई दे रही थी।
ज़ाहिद जानता था कि चाहे कुछ भी हो। अपने मुश्राकी माहौल के मुताबिक एक मर्द होते हुए पहल तो हर सूरत में अब उसे ही करनी है।
इसी दौरान बिस्तर पर बैठ कर अपनी बहन के गुदाज और भरे हुए मस्त बदन का जायज़ा लेते-लेते ज़ाहिद को ये फिल्मी गाना याद आ गया कि,
" रूप तेरा मस्ताना प्यार मेरा दीवाना, भूल कहीं हम से ना हो जाए।"
इस गाने के बोलों को ज़ाहिद ने अब अपनी बहन के मस्ताने रूप में खोते हुए अपनी ही बहन के साथ "भूल" करने की ठान ली थी।और फिर अपनी शलवार में खड़े हुए लंड के इसरार पर ज़ाहिद ने आहिस्ता से अपना हाथ आगे बढ़ाया और फिर अपने काँपते हाथो से अपनी बहन शाज़िया के चेहरे पर पड़े हुए उस के घूँघट को उठा दिया।
शाज़िया का घूँघट उठाने के बाद ज़ाहिद ने अपनी बहन की ठोडी (चिन) के नीचे अपना एक हाथ रख कर अपनी बहन की झुकी हुई ठोडी को उपर की तरफ किया।और शाज़िया के चेहरे की तरफ देखते हुए बोला "शादी मुबादक हो मेरी जान।"
शाज़िया ने जब अपने भाई को अपना घूँघट उठा कर देखा। तो उस ने एक रवायती दुल्हन की तरह शरमाते हुए अपनी आँखे बंद कर लीं और अपना मुँह अपने मेहन्दी भरे हाथों से ढक लिया।
"चश्में बद्दूर, शाज़िया आज मेरी दुल्हन बन कर तुम तो पहले से भी ज़्यादा खूबसूरत लग रही हो मेरी बहन" ज़ाहिद ने जब अपनी बहन को शरम से अपनी आँखे बंद करते देखा। तो उसे अपनी बहन का उस से यूँ शरमाना बहुत अच्छा लगा।
ज़ाहिद ने बड़े प्यार से अपनी बहन के हाथों को उस के चेहरे हटाया और अपनी बहन के मेक अप से फुल चेहरे पर अपनी नज़रें जमाते हुए अपनी बहन के हुष्ण की तारीफ की।
अपनी भाई के मुँह से अपनी तारीफ सुन कर शाज़िया की पहले से गरम चूत में लगी आग और बढ़ गई और उस ने भी जज़्बात में आते हुए अपनी आँखे खोल कर अपने भाई की तरफ देखा।
अपनी बहन का यूँ आँखे खोल कर उसे देखना ज़ाहिद के दिल में तीर से चला गया।
ज़ाहिद शाज़िया के हाथ को अपने हाथ में लेते हुए बड़े प्यार से बोला "शाज़िया तुम को मालूम है कि सुहाग रात में" मुँह दिखाई"की रसम की जाती है और इस रसम को पूरा करने की खातिर मैं तुम्हारे लिए दो तोहफे लाया हूँ, मुझे उम्मीद है मेरे दिए हुए ये तोहफे तुम को पसन्द आएँगे मेरी जान।"
ये कह कर ज़ाहिद ने अपनी कमीज़ की पॉकेट से ज्वेलर से खरीदी गई चूड़ियाँ निकालीं। और बहुत प्यार से एक-एक कर उन चूड़ियों को अपनी बहन की कलाई में चढ़ा दिया।
सारी चूड़ियाँ चढ़ाने के बाद ज़ाहिद ने अपने हाथ में पकड़े हुए शाज़िया के हाथ को शाज़िया की आँखों के सामने किया और बोला "अच्छा ज़ेरा देख कर बताओ कि मेरी जान को मेरा दिया हुआ" मुँह दिखाई"का ये तोहफा कैसा लगा है?"
शाज़िया अपने भाई के हाथ से अपनी कलाई छुड़ा कर भाई की पहनाई हुई चूड़ियों का जायज़ा लेने लगी। तो बे इख्तियारी में शाज़िया की कलाई हिलने की वजह से चूड़ियों की "छुन छुन" की गूँज पूरे कमरे में फैल गई।
अमिताभ बच्चन ने अपनी एक मूवी का ये गाना शायद इसी मोके के लिए पिक्चराइज़ करवाया था कि "चूड़ियाँ खन्की खनकाने वाले आ गये।"
(ज़ाहिद आज अपनी ही बहन की चूड़ियाँ खनकाने के लिए ही अपनी बहन शाज़िया के बिस्तर पर मौजूद था।)
अपनी बहन को चूड़ियाँ पहना कर ज़ाहिद ने एसज़ेड (शाज़िया ज़ाहिद) के नाम वाला लॉकेट भी अपनी कमीज़ की पॉकेट से निकाला और अपनी बहन के गले में पड़े हुए लहंगे के दुपट्टे को खिसका कर ज़ाहिद ने अपना प्यार भरा ये नेकलेस भी अपनी बहन शाज़िया की गर्दन में पहना दिया।
दुल्हन बनी शाज़िया ने तो उस वक्त पहले ही काफ़ी सारा ज़ेवर पहना हुआ था। मगर इस के बावजूद शाज़िया अपने भाई के दिए हुए ये तोहफे पहन कर बहुत खुश हुई।
खास तौर पर एसजेड (शाज़िया ज़ाहिद) के हरफो वाला लॉकेट पहन कर शाज़िया की खुशी की इंतहा ही ना रही। क्यों कि अपने नाम का लॉकेट तो शाज़िया को उस के असली सबका शोहर ने भी नहीं दिया था।
(जिस तरह नई कार खदीदने के बाद अक्सर लोग कार पर अपनी पसंद की नंबर प्लेट लगवाते हैं। इसी तरह अपने भाई के हाथों ये लॉकेट अपनी गर्दन में पहनवा कर शाज़िया को यूँ लगा। जैसे ज़ाहिद ने अब उस के जिस्म पर अपने नाम की नेम प्लेट लगा दी हो।)
शाज़िया अपने भाई की उस से चाहत का इज़हार देख कर खुद भी अपने भाई के प्यार में खोई जा रही थी।
फिर अपनी बहन शाज़िया को सुहाग की रात में मुँह दिखाई के तोहफे दे कर ज़ाहिद ने दुबारा से शाज़िया के हाथ को अपने हाथ में था। और दहमे लहजे में बड़े प्यार से अपनी बहन से मुक़तब हुआ, "शाज़िया तुम ने मेरी बीवी बन के मेरे साथ अपनी जिंदगी गुजारने का ये जो फ़ैसला किया है। मैं इस के लिए तुम्हारा, दिल से शूकर गुज़ार हूँ मेरी बहन ।"
अपने भाई के ये प्यार भरे अल्फ़ाज़ सुन कर शाज़िया के दिल में भी छुपी हुई उस के भाई की मोहब्बत ने जोश मारा और उस ने भी उसी तरह प्यार भरे अंदाज़ में अपने भाई की बात का जवाब दिया "भाई मुझे बहुत खुशी है कि आप ने मुझे अपने दिल में एक बीवी का रुतबा दिया है और में पूरी कोशिश करूँगी कि आप के लिए एक अच्छी बीवी साबित हो सकूँ।"
अपनी बहन शाज़िया के मुँह से ये इलफ़ाज़ सुन कर ज़ाहिद के सबर का पैमाना अब लबरेज हो गया।
ज़ाहिद अपनी जूतियाँ (शूस) उतार कर बेड पर चढ़ गया। और अपनी बहन के मज़ीद नज़दीक होते हुए।
ज़ाहिद ने अपनी बहन शाज़िया के भारी जिस्म को अपने बाहों में भर कर अपने जिस्म के साथ लगाया।
ज़ाहिद का इस तरह अपनी बहन को अपनी छाती से लगाने की वजह से ऊपर शाज़िया के मोटे मम्मे ज़ाहिद की सख़्त जवान छाती से चिपक गये।
जब कि नीचे से ज़ाहिद का लंड भी लहंगे के ऊपर से उस की बहन की गरम प्यासी फुद्दि पर आ कर टिक गया।
जारी रहेगी