अम्मी बनी सास 045

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नथ उतराई.
2.1k words
4.7
253
00

Part 45 of the 92 part series

Updated 06/10/2023
Created 05/04/2021
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अपने भाई के सख़्त और गरम लंड को अपनी चूत से छूता हुआ महसूस कर के शाज़िया के पहले से गरम बदन में एक झुरझुरी-सी फैल गई.और अपने भाई की बाहों में आते ही शाज़िया समझ गई. कि उस का भाई उस के साथ भी मियाँ बीवी के दरमियाँ खेला जाने वाला सुहाग रात का असल खेल शुरू करने ही वाला है।

ये बात सोच कर शाज़िया का जिस्म ना जाने क्यों खुद ब खुद ही सख़्त हो कर काँपने लगा।और उस को यूँ लगा कि उस के हाथ पावं जैसे फूल रहे हों।

वैसे तो अपनी तलाक़ के बाद से अब तक शाज़िया अपनी जवानी के दिन और राते अपनी उंगलियों पर गिन-गिन (काउंट) कर इस उम्मीद पर गुज़ार रही थी। कि उस की जिंदगी में कब वह वक्त आएगा जब कोई जवान लंड उस की गरम फुद्दि में दुबारा से जा कर उस की चूत को जिन्सी सकून बखसेगा।

मगर आज जब वह घड़ी (टाइम) आन पहुँची थी। जब उस के अपने भाई का बहुत मोटा, ताज़ा और सख़्त लंड उस की चूत के दरवाज़े पर खड़े हो कर शाज़िया से उस की फुद्दि के अंदर आने की इजाज़त तलब करने लगा था।

तो इस वक्त अपनी पानी छोड़ती चूत को नज़र अंदाज़ करते हुए शाज़िया का दिल चाहने लगा। कि अगर हो सके तो वह किसी ना किसी तरह अपने भाई को उस के साथ अपने जिन्सी ताल्लुक़ात कायम करने से एक दो दिन मज़ीद रोक ले।

इस की वजह शायद ये थी। कि अपने गरम वजूद और बे चैन होती चूत की तलब पूरी करने की ख्वाहिश के बावजूद शाज़िया का दिल अब भी अपने ही भाई से चुदवाने से शरमा रहा था।

असल में शाज़िया की ये शरम बिल्कुल एक कुदरती अमल था। जिस पर चाहते हुए भी शाज़िया काबू नहीं पा सक रही थी।

इसीलिए शाज़िया ने झिझकते हुए अपने भाई ज़ाहिद से कहा, "भाई अगर आप बुरा ना माने तो मुझे एक आध दिन मज़ीद दे दो" ।

"मगर क्यों" ज़ाहिद ने अपनी बहन की बात को समझते हुए हैरत से पूछा।

"वो असल में आज हम दोनों में इतना कुछ होने के बावजूद ना जाने क्यों अब इस से आगे बढ़ने में मुझे एक अजीब किसम की घबड़ाहट हो रही है" शाज़िया ने अपने भाई के सवाल का जवाब देते हुए कहा।

ज़ाहिद ने भी अपनी बाहों में जकड़े हुए अपनी बहन के जिस्म में आती तब्दीली को महसूस कर लिया था। मगर उस का लंड अब अपनी बहन की चूत से मज़ीद दूरी बर्दास्त करने के मूड में हरगिज़ नहीं था।

इसीलिए उस ने अपनी बहन के बदन के गिर्द अपनी बाहों का घेरा मज़ीद तंग करते हुए कहा, "तुम को कुछ दिन मज़ीद देने में मुझे कोई मसला नही, मगर में अम्मी के हुकम का क्या करूँ मेरी जान" ।

"अम्मी का हुकम, कैसा हुकम भाई" शाज़िया ने अपने भाई की बात पर हेरान होते हुए उस से पूछा।

"असल में अभी-अभी तुम्हारे पास कमरे में आते वक्त ही अम्मी ने मुझे कहा था कि बेटा ख्याल रखना कि कल का" वालिमा हलाल होना चाहिए" ज़ाहिद ने अपने होंठ अपने बहन के गाल पर चिस्पान करते हुए उसे जवाब दिया।

"किय्आआआआआआअ!" अपने भाई के मुँह से ये बात सुन कर शाज़िया तो मज़ीद हेरान हो गई।

"हाँ शाज़िया ये सच है और तुम तो जानती हो कि अम्मी ने मेरी बात को मानते हुए मुझे तुम से शादी की इजाज़त दी है, इसीलिए अब उन की कही हुई बात को पूरा करना भी मुझ पर भी तो लाज़िम है ना" ज़ाहिद ने अपनी बहन के गुदाज और नरम गालों पर अपनी गरम ज़ुबान फेरते हुए कहा।

अपने भाई के मुँह से अपनी अम्मी की ये ख्वाहिस "कि आज की रात उन का अपना सगा बेटा, उन की अपनी सग़ी बेटी की फुद्दि में अपना लंड डाल कर उसे ज़रूर चोदे, ताकि सुबह होने वाला शादी का वालिमा हलाल हो।" सुन कर शाज़िया की चूत से पानी का एक फव्वारा-सा निकला। जो उस के छोटे और बडीक से तोंग में-सी निकल कर शाज़िया की मोटी गुदाज रानो पर से फिसलने लगा।

अपनी अम्मी रज़िया बीबी की इस फरमाइश सुन कर तो शाजिया की रही सही सारी शरम और झिझक भी ख़तम हो गई.और उस ने भी जोश में आते हुए अपनी बाहें अपने भाई के गले में डाल दीं।

शाज़िया के जवान जिस्म से उठती हुई उस की प्यासी जवानी की खुसबू के साथ-साथ परफ्यूम और मेहन्दी की खुसबू के मिलाप ने शाज़िया के बदन को और भी महका दिया था।

शाज़िया के गरम बदन से आती हुई ये मधुर खुसबू जब ज़ाहिद की नाक के ज़रिए उस के दिमाग़ में पहुँची। तो अपनी बहन की मचलती जवानी की ये खुसबू ज़ाहिद को अपनी बहन शाज़िया के लिए और भी बे चैन करने लगी।

ज़ाहिद ने अपनी बहन के चेहरे को अपने हाथों में थामा और शाज़िया की नाक में पहनी हुई उस की नथ को अपने हाथ से हटाते हुए ज़ाहिद ने आहिस्ता से अपना मुँह आगे बढ़ा कर अपने होन्ट अपनी बहन के प्यासे होंठो पर रख दिए।

अपनी भाई के होंठो को अपने गरम होंठो पर पा कर शाज़िया के जवान जिस्म में एक अजीब-सी हल चल मच गई।

इस से पहले भी एक दो दफ़ा ज़ाहिद ने ज़बरदस्ती शाज़िया के होंठो को अपने होंठो से चूमा था।मगर उस वक्त शाज़िया को अपने भाई की ये हरकत बहुत नागवार लगी थी।

लेकन आज अपने भाई के होंठो को अपने होंठो पर महसूस कर के शाज़िया को ऐसा लगा जैसे किसी ने उस की चूत में आग लगा दी हो।

ज़ाहिद ने अपनी बहन के गुदाज होंठो को अपने होंठो में ले कर चूसना शुरू तो किया। मगर शाज़िया की नाक में पहनी हुई उस की नथ की वजह से ज़ाहिद को अपने बहन के प्यारे होंठो के रस को सही तरह से पीने में दिक्कत हो रही थी।

इसीलिए ज़ाहिद ने अपने होंठो को अपनी बहन के होंठो से अलग किया और फिर बहुत आहिस्ता और प्यार से उस ने शाज़िया की नाक में पहनी हुई अपनी बहन की नथ को उतार दिया।

"उफफफफफफफफफ्फ़! शाज़िया आज की ये रात मेरी जिंदगी की एक यादगार रात रहेगी, क्यों कि आज की रात में अपनी ही बहन की नथ को उतार रहा हूँ मेरी जान" ज़ाहिद ने ये कहते हुए अपनी बहन शाज़िया के होंठो पर अपने होंठ दुबारा से चिस्पान कर दिए।

शाज़िया कोई बच्ची नहीं थी बल्कि अब एक तलाक़ याफ़्ता मेच्यूर औरत हो चुकी थी। इसीलिए अपने भाई ज़ाहिद की तरह शाज़िया भी ये बात अच्छी तरह से जानती थी। कि नथ उतराई का असल मतलब क्या होता है।

इसीलिए अपने भाई के मुँह से अपनी ही बहन की नथ उतारने की बात सुन कर शाज़िया भी बे काबू हो गई और उस ने भी इस इंडियन गाने।

" ज़रा-ज़रा बहकता है, महकता है, आज तो मेरा तन बदन, में प्यासी हूँ, मुझे भर ले अपनी बाहों में"

की तरह गरम होते हुए और अपनी शर्म-ओ-हया को भुलाते हुए अपने भाई के जिस्म के गिर्द अपनी बाहों को लिपटा कर अपने होंठ अपने भाई के होंठो के इस्तकबाल करने के लिए खोल दिए।

ज़ाहिद को तो बस इस लम्हे का ही इंतिज़ार था. ज़ाहिद को अपनी बहन की खुद सुपुर्दगी का ये अंदाज़ बहुत भाया। और उस ने जोश में आते हुए एक दम से अपनी बहन शाज़िया के होंठो, गाल और गर्दन पर अपने होंठो की चुम्मियों की जैसे बरसात सी कर दी।

"हाईईईईईईईईईईईई! शाज़िया मेरी बहन मेरी बीवी,मेरी बहन, तुम्हारे होंठ बहुत ही नरम और मज़े दार हैं।" ज़ाहिद ने अपने होंठो को अपनी बहन के मक्खन की तरह नरम होंठो पर रगड़ते हुए कहा।

शाज़िया इस से पहले अपने सबका शोहार और फिर अपनी सहेली नीलोफर से किस्सिंग का स्वाद चख चुकी थी।

मगर फिर भी अपने तलाक़ के बाद किसी भी मर्द के साथ आज वो पहली दफ़ा किस्सिंग कर रही थी.और आज उस के जवान प्यासे होंठो का रस चाटने वाला कोई और नही बल्कि उस का अपना सगा बड़ा भाई था।

इसीलिए आज अपने ही भाई के होंठो के साथ अपने होन्ट और अपने भाई की ज़ुबान के साथ अपनी ज़ुबान लहराने में शाज़िया को एक अलग किसम की खुशी और मज़ा नसीब हो रहा था।

और ये वो मज़ा था जिस का शाज़िया ने अपने सबका शोहर से हासिल करने का कभी तवस्सुर भी नही किया था।

दूसरी तरफ ज़ाहिद आज अपनी बहन के होंठो को ऐसे चूस रहा था. जैसे आज के बाद अपनी बहन के ये हसीन, गरम और जुवैसी लब उसे कभी नसीब नही होंगे।

दोनो बहन भाई के दरमियाँ किस्सिंग और चूमा चाटी का ना रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया था।

ज़ाहिद के लब और ज़ुबान अपनी बहन के मीठे होंठो और नरम ज़ुबान से अपनी जंग लड़ रहे थे. कि इस दौरान ज़ाहिद ने अपनी बहन शाज़िया के होंठो को चूमते हुए ज़ाहिद ने पहले शाज़िया के गले से उस का दुपट्टा उतार कर बिस्तर पर रख दिया। और फिर एक एक कर के अपनी बहन शाज़िया के कानो की बालियां, माथे का झूमर और गले में पहना हुआ सोने का हार उतार कर अपनी बहन के नाज़ुक जिसम को भारी जेवरात के बोझ से आज़ादी दिला दी।

अपनी बहन का सारा ज़ेवर उतारने के बाद ज़ाहिद ने अपने हाथ को आगे बढ़ा कर उसे अपनी बहन की छाती पर आहिस्ता से रखा. और बड़े आराम और सकून के साथ अपनी बहन की जवान,भरी और नरम छाती को अपनी गिरफ़्त में लेने की कोशिश करने लगा।

मगर शाज़िया का मम्मा इतना बड़ा था कि ज़ाहिद के हाथ अपनी बहन के मम्मे से फिसलने लगे।

शाज़िया के मम्मे बड़े और मोटे होने की वजह से उस के भाई के हाथ में नही समा पा रहे थे।

अपनी बहन के भारी मम्मे पर अपने हाथ रखते ही ज़ाहिद को ऐसे महसूस हुआ. जैसे उस ने किसी बड़े गुब्बारे (बलून) को अपने हाथ में पकड़ लिया हो।

अपनी बहन के मम्मे पर हाथ रखते हुए ज़ाहिद ने शाज़िया की आँखों में आँखे डालीं. और फिर आहिस्ता आहिस्ता अपनी बहन के भारी मम्मे को अपने हाथ से दबाने और सहलाने लगा।

"ओह क्या मस्त और जवान मम्मे हैं मेरी बहन के" ज़ाहिद ने शाज़िया की छाती को अपनी हथेली में ले कर मसल्ते हुए कहा।

भीला शुबह शाज़िया कोई कंवारी लड़की तो थी नही. इस से पहले भी कई दफ़ा उस के सबका शोहर और उस की सहेली नीलोफर ने उस के बड़े और मोटे मम्मो को अपने हाथों में ले कर इसी तरह मसला और दबाया हुआ था।

मगर आज उस के अपने सगे भाई के हाथ पहली बार उस के जिस्म की इन उँचाइयो को छू रहे थे.

शाज़िया एक बहन होने के साथ साथ एक औरत भी थी.जिस के लिए अपने ही भाई से अपनी चुचियाँ मसलवाने का ये एक नया तजुर्बा था।

शाज़िया के जवान प्यासे जिस्म के साथ उस के भाई के हाथ आज एक मर्द और उस के "शोहर" के रूप में आ कर उस के साथ छेड़ छाड़ करने लगे थे.और अपने ही भाई से अपनी चुचियाँ मसलवाने के अमल को वो कितना पसंद कर रही थी. इस का अंदाज़ा शाज़िया की बंद आँखों और तेज़ी से ऊपर नीचे होते उस के सीने को देख कर बहुत अच्छी तरह लगाया जा सकता था।

ज़ाहिद के हाथ उस की बहन के भारी गुदाज मम्मे को हाथ से मसल रहे थे.और अपने भाई के हाथ की गर्मी को अपने लहंगे की चोली में से महसूस कर के शाज़िया के जिस्म में लगी हुई आग मज़ीद भड़का रही थी। जिस की वजह से उस के मुँह से एक प्यार भरी सिसकारियाँ निकालने लगी थी।"अह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह! ओह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह!"

मुँह से निकलने वाली सिसकारियों के साथ साथ नीचे से शाज़िया की चूत भी गीली होने लगी थी।

दोनो बहन भाई अपनी सुहाग की सेज पर एक दूसरे की छाती से छाती मिला एक दूसरे से चूमा चाटी में मसरूफ़ थे।

फिर शाज़िया के होंठो और ज़ुबान को सक करते करते ज़ाहिद अपने हाथ को शाज़िया की कमर के पीछे ले गया. और एक एक कर अपनी दुल्हन बनी बहन के शादी वाले लहंगे की चोली की स्ट्रिंग को लूज करने लगा।

ज्यों ही ज़ाहिद ने अपनी बहन की चोली की तनिया (स्ट्रिंग्स) को खोला. तो शाज़िया की चोली उस की जवान चुचियाँ से ढीली हो गई।

जिस के साथ ही ज़ाहिद ने बड़े आराम से अपनी बहन की चोली को उतार कर शाज़िया के जिस्म से अलहदा कर दिया।

आज जब ज़ाहिद ने अपनी बहन की चोली को अपने ही हाथों से उस के बदन से उतारा. तो ज़ाहिद को सुरख रंग के लेसी ब्रेजियर में अपनी बहन की कसी हुई छातियों का दिल कश नज़ारा देखने को मिल गया।

शाज़िया के भारी भरकम माममे पुश उप ब्रेज़ियर में से उभर उभर कर बाहर छलक रहे थे.और ज़ाहिद ही के दिए हुए तोफे में से आधे नंगे हो कर उस की भूकि आँखों के सामने मंडरा रहे थे।

अपनी बहन बड़े बड़े मम्मो को उस के ब्रेजियर में यूँ कसा हुआ देख कर ज़ाहिद के जिस्म में एक मस्ती सी छा गई. और उस ने बिस्तर पर पड़ी गुलाब की पतिया उठा कर बड़े प्यार से अपनी बहन की भारी छातियों के ऊपर बिखेर दीं।

जारी रहेगी

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