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(इस कहानी का पूरा आनंद लेने के लिए मेरी पूर्व की कहानी को भी पढ़ें। इसके अतिरिक्त यह कहानी पूर्व की कहानी के एक भाग आगे है।)
माता जी के गांव जाने के बाद दीदी घर पर ही रहती।वह कॉलेज भी नहीं जाती थी।दिन भर किताबों में डूबी रहती थी।
पहले तो मुझे लगा कि यह भी कोई नया ढोंग है। लेकिन चुकीं दीदी पढ़ने की शौकीन थी, इसलिए यह लगने लगा कि शायद अपनी पूर्व के कृत्यों के कारण वह शर्मिंदा अनुभव कर रही हैं और अपने आप को सुधारने का प्रयास कर रही हैं ।
मैंने चुपचाप उनको कई बार कमरे में रोते हुए भी देखा था ।
जब मैं उसे यह कहती कि वो क्यों रो रही है? तो, मुझे चुप करा देती।फिर भी मेरी और उनकी बातचीत कम हो पाती थी। मैं उन्हें डिस्टर्ब करने का प्रयास नहीं करती थी क्योंकि मुझे लगता था कि वह अपनी आदतों को सुधारने का प्रयास कर रही हैं।
जो लड़के दीदी को बार-बार स्टोक किया करते थे,उनका भी आना जाना बहुत ही कम हो गया था। इसलिए एक तरफ से शांति का अनुभव हो रहा था।
बगल वाली अंकल आंटी के ट्रांसफर होके चले जाने के बाद दीदी को मानसिक शांति का आभास हो रहा था, क्योंकि माताजी को बताने वाला कोई नहीं था।
इसलिए उन्होंने भी चैन की सांस ली। माताजी इस बार लंबे समय के लिए गांव गए थीं। खेती का सीजन था और खेती कराने का पूरा कार्यभार उन्हीं के कंधों पर था।
मेरा स्कूल 8:00 से 2:00 का था, इसी में प्रतिदिन अपने विद्यालय समय पर चली जाती थी। क्योंकि घर में शांति थी,इसलिए मुझे कोई चिंता नहीं थी।
दीदी के कॉलेज जाने का समय अनियमित था।वह सिर दर्द का बहाना करके घर पर पड़ी रहती थी।
एक दिन दोपहर 2:00 बजे जब मैं स्कूल से घर वापस आई तो मैंने दरवाजे की घंटी बजाई।दरवाजे की घंटी बजाने के कुछ देर के बाद दीदी ने दरवाजा खोला। मैंने देखा कि उनका पूरा चेहरा लाल था। उन्होंने मुझे हाथ पकड़ कर खींच लिया और दरवाजा बंद कर दिया।
मैं उनके चेहरे को एकटक देख रही थी। उनका पूरा चेहरा रक्त की तरह लाल था।
अभी मैं कुछ पूछती, उसके पहले ही दीदी अपने आप एक जगह खड़ी हो गई ।उसके कुछ समय के बाद सारे कपड़े उतार दिए ।
दीदी हमेशा सलवार सूट पहना करती थी। पहले सलवार -सूट और फिर अपनी ब्रा और पैंटी उतार दी।
दीदी पूरी तरह नंगी अवस्था में मेरे सामने खड़ी थी।
मैं हतप्रभ थी।
मैंने इस प्रकार उनको बहुत कम देखा था । मैं कुछ पूछती, उससे पहले ही दीदी भाग कर सीढ़ी के सामने वाले छज्जे पर चली गई और फिर मैं आश्चर्यचकित उनको देखती रही।
दीदी मुर्गी बन गई थी। मुर्गी बनने का मतलब अपने हाथों को पैरों के पीछे से ले जाकर अपने चूतड (Ass) को ऊपर उठाना और हाथों को कान से पकड़ना होता है।
मैं कुछ देर दीदी को देखती रही। फिर गुस्से से आगे चली गई।
जब मैं खाना खाकर वापस फिर से कमरे में आई तो मैंने देखा कि --दीदी मुर्गी बनी हुई है!मैं सीढ़ी लगाकर छत पर चढ़ी तो मैंने देखा कि दीदी का पूरा शरीर लाल हो गया है और पूरे शरीर से पसीना टपक रहा था। लेकिन दीदी उसी प्रकार मुर्गी बनी हुई थी ।
उनका चूतड हवा में लटक रहा था।
मैंने कहा कि -'' यह क्या पागलपन है? "
दीदी ने कहा कि--" तुम जाओ मुझे इस तरह अच्छा लग रहा है।"
मैंने कहा कि -"अच्छा कैसे लग रहा होगा? तुम्हें क्या दर्द नहीं हो रहा?''
दीदी ने उसी तरह मुर्गी बने हुए कहा --"तुम जाओ मुझे डिस्टर्ब मत करो!''
मैं गुस्से में नीचे उतर कर अपने कमरे में चली गई।
कुछ देर के बाद मुझे दीदी के सीढ़ी वाले छज्जे से कुछ आवाजें आई ।
मैं इन आवाज को पहचानती थी ।ये आवाजें तनु आंटी की थी।यहां अकेले हमारे घर के बगल में रहा करती थीं। उनकी उम्र लगभग 50 साल की थी। उनके कोई बच्चा नहीं था। उनकी तीन बहने थी,जो उनकी देखभाल करने के लिए आया करती थी।वह गुस्सैल महिला थी।
मोहल्ले में उनकी किसी से नहीं बनती थी।
उनका घर हमारे घर के बगल में ही था और हम दोनों के छत आपस में सटे हुए थे।
कुछ इस तरह कि -एक छत के ऊपर छत पर आ जाया जा सकता था... मैं ऊपर छत पर गई और मैंने देखा दीदी उसी तरह मुर्गी बनी हुई है........और तनु आंटी उनको घूर रही हैं।