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Click hereकॅमोड पर बैठ कर ज्यों ही शाज़िया ने पिसाब कर शुरू किया। तो पिशाब का गरम पानी उस की रात भर की चुदाई की वजह से सूजी हुई फुद्दि के किनारों से टकराया।
अपनी फुद्दि के किनारों से पिशाब का तेज और गरम पानी टकराते ही शाज़िया को अपनी फुद्दि में से दर्द की हल्की हल्की टीस उठती हुई महसूस हुई। जिस वजह से शाज़िया के मुँह से एक हल्की सी चीख निकल गई। "हाईईईईईईईईईईई!"
शाज़िया ने बड़ी मुश्किल से अपने मुँह से निकलती हुई चीख को रोका ।और फिर पिशाब से फारिग होने के बाद शाज़िया बाथ रूम के शीशे के सामने खड़े हो कर अपने नंगे वजूद का जायज़ा लेने लगी।
शाज़िया ने देखा कि उस के भाई ज़ाहिद के काटने की वजह से ना सिर्फ़ उस के बड़े बड़े मम्मे और उस के साँवले बड़े निपल्स पर निशान बन चुके थे।
बल्कि शाज़िया की चूत,उस की गान्ड और उस की मोटी रानों पर भी उस के भाई के वलिहणा और वहशियाना प्यार के निशान पूरी तरह वज़िया हो रहे थे।
अपनी ये हालत देखते हुए शाज़िया के ज़हन में उस की पहली और असली सुहाग रात के दूसरे दिन की यादें घूमने लगीं।
शाज़िया को ख्याल आया कि उस की ये हालत तो उस के सबका शोहर ने उस की पहली चुदाई में भी नही की थी। जिस हालत में उस के अपने ही भाई ने आज उसे पहुँचा दिया था।
ज़ाहिद ने तो उसे एक ही रात में इतना ज़्यादा और इतना जबर्जश्त तरीके से चोदा था। कि उस के भाई का लंड अब उस की चूत में ना होने के बावजूद शाज़िया को अभी तक अपने भाई के लंड की सख्ती और गर्मी अपनी गरम और मोटी फुद्दि की दीवारों में महसूस हो रही थी।
शाज़िया को बाथरूम के आईने में अपना नंगा जिस्म इस बुरी हालत में देख कर अपने आप से शरम आने लगी।
वो अपने आप को शीशे में से देखते हुए सोचने लगी। कि वाकई ही नीलोफर ने शाज़िया को जो अपने और अपने भाई जमशेद के बारे में बताया था।वो इस लम्हे लफ़्ज ब लफ़्ज बिल्कुल सच साबित हो रहा था।
शाज़िया को अपनी सहेली नीलोफर की कही हुई बात याद आने लगी। कि शाज़िया जो मज़ा अपने ही साथ जनम लेने वाले भाई के साथ जिस्मानी ताल्लुक़ात कायम करने में है।वो मज़ा किसी भी आम मर्द से चुदवाने से हासिल नही होता।
क्यों कि अपनी ही माँ की कोख से पेदा होने वाले बहन या भाई से अपनी जिसनी ताल्लुक़ात कायम करने का अपना एक अलग ही मज़ा है।
और अपने ही खून वाले सगे बहन भाई से अपने जिस्मानी ताल्लुक़ात कायम करने में जो लज़्ज़त और स्वाद मिलता है वो स्वाद लफ़्ज़ों में भी बयान नही किया जा सकता था।
शाज़िया सोचने लगी कि उस के भाई ने उसे रात भर चोद कर ना सिर्फ़ उस की सुनसान चूत को फिर से आबाद कर दिया था।
बल्कि अपने ही सगे भाई से रात भर की चुदाई के बाद शाज़िया अब अपने आप को एक मुकम्मल औरत तस्वर करने लगी थी। "क्यों कि अब वो सिर्फ़ एक औरत नही बल्कि अपने ही भाई की औरत थी।"
अपनी इन ही सोचो में गुम शाज़िया जब बाथरूम से निकल कर बेड रूम में दाखिल हुई। तो उस ने बिस्तर पर लेटे हुए अपने भाई पर नज़र दौड़ाई।
शाज़िया ने देखा कि उस का भाई ज़ाहिद अपनी नींद में इतना बे खबर सो रहा था।कि सोते वक्त ज़ाहिद के जिस्म से कंबल उतर चुका था। जिस की वजह से उस का पूरा वजूद अब नंगा हो चुका था।
अपने भाई के नंगे जिस्म पर नज़र दौड़ाते हुए शाज़िया की निगाह ज़ाहिद की टाँगों के दरमियाँ आ कर गुम गई।
जहाँ उस की नज़र अपने भाई ज़ाहिद के ढीले पड़े लंड पर पड़ी।
जो इस वक्त ज़ाहिद की टाँगों के दरमियाँ नीम मुर्दा हालत में पड़ा था।
ज़ाहिद का लंड पूरी रात की चुदाई के बाद अब थोड़ा सुकूड तो चुका था। लेकिन सिकुड़ने के बावजूद इस हालत में भी इस वक्त ज़ाहिद का लंड काफ़ी बड़ा और मोटा ताज़ा नज़र आ रहा था।
ज़ाहिर सी बात है कि ज़ाहिद का लंड इस वक्त मोटा और ताज़ा होता भी क्यों ना। क्यों कि आख़िर कार उस ने गुज़शता रात अपनी ही सग़ी बहन की जवान और प्यासी चूत का ना सिर्फ़ रस पिया था।
बल्कि अपनी ही बहन की गान्ड की कंवारी सील तोड़ कर उसे चुदाई के एक नये मज़े से वाकिफ़ करवा चुका था।
शाज़िया अभी अपने भाई के लंड को बाथरूम के दरवाज़े पर खड़ी अपनी नज़रों से निहार रही थी।कि इतने में ज़ाहिद की भी नींद से आँख खुल गई।
ज़ाहिद ने ज्यों ही अपनी नंगी बहन को बाथरूम के दरवाज़े खड़ी हो कर उस के नंगे जिस्म का जायज़ा लेते देखा। तो ज़ाहिद के चेहरे पर मुस्कराहट सी फैल गई।
"क्या देख रही हो मेरी जान" ज़ाहिद ने जब शाज़िया की नज़रें अपने लंड पर जमी देखीं।तो उस ने अपनी बहन से शरारती लहजे में पूछा।
"कुछ नही भाई" शाज़िया ने शरमाते हुए अपने भाई के लंड से अपनी नज़रें हटाते हुए उसे जवाब दिया। और फिर खुद आहिस्ता आहिस्ता चलती हुई बिस्तर पर लेटे हुए अपने भाई के पास आ कर बेड पर बैठ गई।
"अपनी शादी की पहली सुबह मुबारक हो मेरी जान" ये कहते हुए ज़ाहिद ने शाजिया को खैंच कर अपने साथ बिस्तर पर लिटा लिया। और उस के गरम होंठो पर अपने सख़्त होंठ रख कर अपनी बहन के नरम होंठो को प्यार से चूमने लगा।
शाज़िया को भी अपने भाई के प्यार का ये अंदाज़ भाया और उस ने भी खुशी से अपने होंठो को अपने भाई के होंठो से मिला कर उस का साथ देना शुरू कर दिया।
"शाज़िया क्या रात को मुझ से चुदवा कर मज़ा आया मेरी जान को" ज़ाहिद ने अपनी बहन के होंठो को चूमते हुए उस से पूछा।
"भाईईईईईईई! बस करो और मुझे उठ कर कपड़े पहने दो ना" शाज़िया ने अपने भाई की बात का जवाब नही दिया। बल्कि उस की कॉसिश थी कि वो अपनी अम्मी के उठने से पहले भाई के कमरे से निकल कर किचन में काम काज में मसरूफ़ हो जाय।
जब ज़ाहिद ने देखा कि शाज़िया उस से अपनी जान छुड़ाने के चक्कर में है और उस के सवाल का जवाब भी नही दे रही।तो उस ने शाज़िया के नंगे जिस्म को अपनी बाहों में भरते हुए दुबारा कहा " जब तक जवाब नही दोगी मैं तुम को बिस्तर से हिलने भी नही दूँगा। "
"बस ठीक ही था" शाज़िया ने जब देखा कि उस का भाई आसानी से उसे छोड़ने वाला नही। तो अपने भाई को तंग करने के इरादे से जान बूझ कर उस ने ऐसा जवाब दिया।
"अच्छा तो इस का मतलब है कि तुम को मज़ा नही आया मुझ से चुद कर शाज़िया" ज़ाहिद अपनी बहन के जवाब से वाकई ही थोड़ा परेशान हुआ।
"मज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़्ज़ा तो इतना आया है कि पूछो मत,काश मुझे पता होता कि आप के लंड में इतना मज़ा है, तो में अपनी चूत की असल सील भी आप से ही तुड़वाती भाईईईईईईई"।शाज़िया ने जब अपने मज़ाक पर अपने भाई को परेशान होते देखा। तो वो जोश में अपने जिस्म को अपने भाई के नंगे जिस्म से रगड़ते हुए सिसकारी ली।
"उफफफफफफफ्फ़! आइ लव यू वेरी मच मेरी जान!, यकीन मानो में तुम से बहुत मोहब्बत करता हूँ मेरी बहन" ज़ाहिद ने जब अपनी बहन का जवाब सुना। तो उस ने भी जोश में अपने बहन के जिस्म को अपनी बाहों में कसते हुए कहा।
अभी दोनो बहन भाई एक दूसरे की बाहों में गुम हो कर एक दूसरे के होंठो और गालों को चूसने में मसरूफ़ ही हुए थे। कि कमरे दरवाज़े पर होने वाली एक "ठक ठक" (दस्तक) ने उन दोनो बहन भाई के रंग में भंग डाल दी।
"कौन" कमरे के दरवाज़े पर ये दुस्तक सुन कर दोनो बहन भाई एक दम से हैरान हो कर एक दूसरे से अलग हुए और फिर ज़ाहिद ने बुलंद आवाज़ में पूछा।
"बेटा में हूँ तुम्हारी अम्मी,दरवाज़ा खोलो में चाय ले कर आई हूँ तुम दोनो के लिए" बाहर से उन की अम्मी रज़िया बीबी की आवाज़ उन दोनो के कानों में पड़ी।
वैसे तो रज़िया बीबी की आँख हर रोज़ सुबह जल्दी ही खुल जाती थी। लेकिन अक्सर नींद से जागने के बावजूद वो देर तक बिस्तर पर लेट कर टीवी पर चलते हुए मॉर्निंग शोस देखती रहती थी।
मगर आज जैसे ही रज़िया बीबी की आँख खुली।तो गुज़री रात अपनी जवानी बेटी की गरम सिसकियाँ को सुन कर उस की चूत में से उठने वाले तूफान का असर अभी तक उस के तन बदन में बाकी था।
इसीलिए अपनी नीद से बे दर होते ही रज़िया बीबी के दिल में उत्सुकता पैदा हुई।कि वो जा कर देखे तो सही कि उस के बेटा और बेटी किस हाल में हैं।
इसी लिए अब अपने बच्चो को चाय देने के बहने वो उन के कमरे तक चली आई थी।
"अच्छा एक मिनट अम्मी" ज़ाहिद ने जब अपनी अम्मी की आवाज़ सुनी।तो उस ने फॉरन अपनी अम्मी की आवाज़ का जवाब देते हुए कहा।
"भाई ये अम्मी को क्या सूझी कि वो चाय ले कर हमारे पास चली आई हैं" शाज़िया ने अपनी अम्मी की उन के कमरे में आमद पर हेरान होते हुए अपने भाई से शरगोशि की।
"उफफफफफफफफफफ्फ़! अम्मी ने भी सुबह सुबह ही चाय पीला देनी है,अभी तो में उन की बेटी का ताज़ा दूध पीने के मूड में था" ज़ाहिद ने अपनी बहन के बड़े मम्मे को अपने हाथ से कसते हुए अपनी बहन के निपल पर तेज़ी से अपनी ज़ुबान फेरते हुए जवाब दिया।
"हाईईईईईईईई! भाई छोड़ो मुझे,मगर अभी दरवाज़ा मत खोलना प्लीज़, मुझे जल्दी से पहले कुछ पहन लेने दो भाई"शाज़िया ने अपने आप को अपने भाई की बाहों से आज़ाद करते हुए बिस्तर से छलाँग लगाई। और ज़ाहिद की अलमारी से अपना एक पुराना शलवार कमीज़ सूट निकाल कर शलवार पहनी।
ये सूट शाज़िया ने कल शाम ही अपने भाई की अलमारी में टांगा था। और फिर वो नंगी हालत में ही जल्दी जल्दी बिस्तर पर पड़े कंबल को ठीक करने लगी।
"भाई खोलो भी दरवाज़ा" बाहर से उन की अम्मी की आवाज़ दुबारा आई। तो शाज़िया ने जल्दी से बिस्तर को उसी हालत में छोड़ कर अपनी कमीज़ भी ज़ेबे तन कर ली।
कपड़े पहनने की जल्दी में शाज़िया के गले से उस का दुपट्टा सरक कर फर्श पर जा गिरा। जिस का ईलम उस वक्त शाज़िया को नही हुआ।
जारी रहेगी