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Click hereअम्मी बनी सास
PART 076
अम्मी क्यों अपने बच्चो को यूँ छुप छुप कर देखेंगी
उधर ज्यों ही शाज़िया अपना हुलिया ठीक करने में मसरूफ़ हुई। तो ज़ाहिद अपना तोलिया उठा कर बाथरूम में नहाने के लिए घुस गया।
ज़ाहिद के बाथरूम में जाते ही शाज़िया ने कमरे में बिखरी हुई चीज़ों को जल्दी से समेटा। और फिर फॉरन ही कमरे से नंगे पावं ही बाहर निकल आई।
शाज़िया अपने कमरे से तेज़ी से निकली। तो किचन की तरफ जाते हुए शाज़िया का पावं फर्श पर गिरे हुए अपनी अम्मी की चूत के लैस दार पानी पर आन पड़ा।
एक तो घर का फ्लोर वैसे ही काफ़ी चिकना था। उपर से रज़िया बीबी की चूत का लैस दार पानी गिरने की वजह से फर्श अब पहले से भी काफ़ी स्लिपरी हो गया था।
इसीलिए ज्यों ही शाज़िया का पावं अपनी अम्मी रज़िया बीबी की चूत के पानी पर पड़ा। तो शाज़िया का पावं एक दम से स्लिप हुआ। जिस वजह से शाज़िया अपना वज़न खो बैठी और एक दम से फर्श पर गिर पड़ी।
"घर में तो हम दोनो बहन भाई के सिवा कोई नही, तो फिर ये पानी इधर किस ने गिराया है" ज्यों ही शाज़िया फर्श पर गिरी तो उसे ख्याल आया।
शाज़िया को फर्श पर अचानक गिरने के बावजूद कोई चोट नही आई थी। इसीलिए वो अपने कपड़े झाड़ते हुए दुबारा से उठ कर खड़ी हो गई।
ज्यों ही शाज़िया ने किचन की तरफ जाने के लिए अपना पावं दुबारा से आगे बढ़ाया। तो शाज़िया को यूँ महसूस हुआ कि जैसे उस के पावं पर कोई लैस दार पानी लग गया है। जो कि अब उस के किचन की तरफ जाने के दौरान फर्श से लग कर "चिप चिप" कर रहा है।
शाज़िया ने एक दम से अपना पावं ऊपर करते हुए अपने पावं पर लगे हुए पानी को अपने हाथ से सॉफ करने की कोशिश की। तो वो लैस दार पानी शाज़िया के हाथ पर भी लग गया।
"ये पानी तो नही बल्कि कोई लैस दार चीज़ सी है" शाज़िया ने बे ख्याली में अपना हाथ अपनी नाक के करीब किया। और अपने हाथ पर लगे उस लैस दार पानी नुमा चीज़ को समझने की कोशिश की।
ज्यों ही शाज़िया ने अपने हाथो को अपनी नाक के नज़दीक किया। तो शाज़िया को अपने हाथ पर लगे हुए इस पानी से चूत के पानी की एक मखसोस की बू (स्मेल) आई।
शाज़िया चूँकि नीलोफर से अपने लेस्बियन ताल्लुक़ात कायम करने के बाद कई दफ़ा अपनी सहेली की चूत को चाट चुकी थी। इसीलिए वो चूत के पानी की इस मक्सोस बू को अच्छी तरह पहचानती थी।
"ये तो फुद्दि के पानी की स्मेल है" ज्यों ही शाज़िया के नथुनो ने चूत के पानी की इस खास बू को सूँघा। तो शाज़िया एक दम से हैरत जदा हो कर सोचने लगी।
" वो जो चीख मेने सुनी थी, क्या वो अम्मी की तो नही थी?,क्या अम्मी हम दोनो बहन भाई को देख कर अपनी "चूऊतततत! का पनीईईई!" शाज़िया के ज़हन में ख्याल आया। मगर वो चाहते हुए भी अपनी अम्मी की "चूत" का पानी अपने जेहन में मुकम्मल ना कर सकी।
"नहियीईईईईईई! भला अम्मी क्यों अपने बच्चो को यूँ छुप छुप कर देखेंगी, उफफफ्फ़ में अम्मी के मुतलक क्या वाहियात सा ख्याल अपने ज़हन में लेने लगी हूँ" दूसरे ही लम्हे शाज़िया ने अम्मी के मुतलक आने वाले इस गंदे ख्याल को अपने ज़हन से झटका। और किचन में घुस कर अपने हाथ को पानी से धोने लगी।
कुछ टाइम बाहर गुज़रने के बाद रज़िया बीबी दुबारा अपने घर वापिस आई।
ज्यों ही रज़िया बीबी किचन में काम करती हुई शाज़िया के सामने हुई। तो शाज़िया ने ना जाने क्यों आज अपनी अम्मी की आँखों में आँखे डाल कर देखने की कोशिश की।
शायद शाज़िया अपनी अम्मी रज़िया बीबी की आँखों में झाँक कर ये देखने की कोशिश करना चाहती थी। कि कहीं उस के कानों में पड़ने वाली चीख वाकई ही उस की अपनी अम्मी रज़िया बीबी की तो नही थी।
या शायद शाज़िया ये जानने की कॉसिश में थी। कही उस की अम्मी रज़िया बीबी तो छुप छुप कर अपने बेटे और बेटी की चुदाई तो नही देखती रही?।
मगर रज़िया बीबी आख़िर कर शाज़िया की माँ थी। इसीलिए रज़िया बीबी ने अपनी किसी भी बात या हरकत से शाज़िया को ये महसूस नही होने दिया। कि वो ज़ाहिद और शाज़िया की चुदाई का मंज़र आज एक बार फिर देख कर अपनी फुद्दि की आग को अपने हाथों से ठंडा कर चुकी है।
इसीलिए घर वापिस आते ही रज़िया बीबी किचन में अपनी बेटी शाज़िया का हाथ ऐसे बंटाने लगी। जैसे उसे कुछ ईलम ही नही कि उस की गैर मौजूदगी में उस की बेटी शाज़िया और बेटा ज़ाहिद अपने घर में क्या "गुल" खिलाते रहे हैं।
"नहियीईईईई! मुझे अपनी अम्मी पर यूँ शक नही करना चाहिए" रज़िया बीबी के चेहरे पर एक सकून और इतमीनान देख कर शाज़िया ने अम्मी के मुतलक अपने ज़हन में आने वाले शक को दूर किया।
"मगर हो ना हो आज किसी इंसान ने हम दोनो बहन भाई की चुदाई का शो ज़रूर देखा है,लेकिन वो शख्स कॉन हो सकता है? शाज़िया ने अपनी अम्मी के मुतलक अपने ज़हन में आने वाले ख्याल को तो झटक दिया था।
मगर इस के साथ साथ शाज़िया को अपनी चुदाई के वक्त किसी तीसरे शख्स की अपने घर में मौजूदगी का पूरा यकीन होने लगा था।
इस तरह एक हफ़्ता और गुज़र गया और इस हफ्ते के दौरान घर के इन तीनो सदस्यों के लंड और चूत की गर्मी कम होने की बजाय मज़ीद बढ़ती ही जा रही थी।
एक हफ्ते बाद एक दिन ज़ाहिद हुस्बे मामूल सुबह सवेरे नहाने के लिए बाथरूम गया। तो नहाने के दौरान अपनी अम्मी और बहन के मोटे मोटे मम्मो और चुतड़ों को याद कर के ज़ाहिद का लंड अकड कर खड़ा होने लगा।
इधर दूसरी तरफ रज़िया बीबी भी हस्बे मामूल शाज़िया से पहले उठ कर किचन में आई। और अपने बच्चों के लिए नाश्ता बनाने लगी।
"क्यों न में ज़ाहिद को उस के कमरे में ही चाय दे आऊ" चूल्हे पर पड़ी चाय (टी) ज्यों ही बन कर तैयार हुई तो रज़िया बीबी ने सोचा।
इस के साथ ही रज़िया बीबी ने चाय को एक कप में डाला और फिर कप अपने हाथ में थामे अपने बेटे ज़ाहिद के कमरे की तरफ चल पड़ी।
ज्यों ही रज़िया बीबी ने अपने बेटे ज़ाहिद के कमरे के दरवाज़े को हाथ लगाया। तो ज़ाहिद के कमरे का दरवाजा अंदर से लॉक ना होने की वजह से खुलता चला गया।
"लगता है ज़ाहिद रात को अपने दरवाज़े की कुण्डी लगा कर नही सोया" अपने बेटे के दरवाजे को यूँ खुला पा कर रज़िया बीबी ने सोचा।
रज़िया बीबी दरवाजा खोल कर ज़ाहिद के कमरे में दाखिल हुई। तो उसे ज़ाहिद तो अपने बिस्तर पर नज़र नही आया। मगर रज़िया बीबी को अपने कान में बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ सुनाई दी।
"लगता है कि ज़ाहिद बाथरूम में नहा रहा है" ज़ाहिद के बाथरूम से पानी गिरने की आवाज़ सुन कर रज़िया बीबी समझ गई।
रज़िया बीबी ने चाय का कप ज़ाहिद के बिस्तर की साइड टेबल पर रखा और मूड कर वापिस किचन में जाने लगी।
"शाज़िया तो अभी सो रही है,तो क्यों ना आज सुबह सुबह में फिर से अपने बेटे के लंड का दीदार कर लूँ" रज़िया बीबी ज्यों ही किचन में जाने के लिए ज़ाहिद के बाथरूम के दरवाज़े के सामने से गुज़री। तो रज़िया बीबी को ख्याल आया।
अपने बेटे के मोटे लंड का ख्याल आते ही रज़िया बीबी की मोटी फुद्दि गर्म होने लगी। और उस के साथ ही रज़िया बीबी ने एक दम झुक कर ज़ाहिद के बाथरूम के की होल पर अपनी आँख लगा कर अपने बेटे ज़ाहिद के बाथरूम में झाँका।
रज़िया बीबी की आँख ने ज्यों ही बाथरूम के अंदर का मंज़र देखा। तो बाथरूम का का नज़ारा देख कर रज़िया बीबी की साँसें उस के गले में अटकने लगीं।
रज़िया बीबी की सांस उस के गले में अटकने की वजह से रज़िया बीबी की भारी छातियाँ भी उस की बिखरी सांसो के साथ ताल से ताल मिलाते हुए उपर नीचे होने लगी।
रज़िया बीबी ने देखा कि बाथरूम में उस का बेटा ज़ाहिद उस वक्त अपने लंड पर साबुन (सोप) लगा कर नहाते वक्त साथ ही साथ अपने लंड से भी खेल रहा था।
ज्यों ही रज़िया बीबी ने अपने बेटे ज़ाहिद को नहाने के दौरान यूँ अपने मोटे और बड़े लंड से खेलते देखा।
तो अपनी उपर नीचे होने वाली सांसो के साथ रज़िया बीबी भी दरवाज़े के बाहर खड़े हो कर अपनी शलवार के उपर से ही अपनी फुद्दि पर अपना हाथ फेरने लगी।
"काश मेरा बेटा मुझे भी एक दिन अपने लंड से यूँ खेलने का मोका दे" अपने बेटे ज़ाहिद के लंड को हसरत भरी निगाहों से देखते हुए रज़िया बीबी का दिल कर रहा था। कि वो अपना हाथ बढ़ा कर अपने बेटे के तगड़े लंड को अपने काबू में कर ले।
मगर रज़िया बीबी जानती थी कि ये उस की एक ऐसी ख्वाहिश है। जो शायद कभी पूरी ना हो सकेगी।
इसीलिए अपनी तमन्नाओ को अपने दिल में ही मार कर रज़िया बीबी खामोशी से अपने बेटे को अपना लंड रगड़ता देखती रही। और साथ साथ अपनी फुद्दि को भी अपने हाथ से छेड़ती रही।
उधर उस दिन ज़ाहिद को चूँकि आज एक केस के सिलसिले में कोर्ट में हाज़िरी देनी थी। इसीलिए उस के पास सुबह सुबह अपने लंड की मूठ लगाने का भी टाइम नही था।
इसीलिए ज़ाहिद ने जल्दी से अपना शवर बंद किया। और अपने जिस्म को तोलिये से सॉफ करने लगा।
अपने जिस्म को खुश्क कर के ज्यों ही ज़ाहिद ने अपने जींस के गिर्द अपनी कमर पर टवल लपेटा। तो रज़िया बीबी समझ गई कि अब ज़ाहिद किसी भी वक्त बाथरूम से बाहर निकल सकता है।
इसीलिए रज़िया बीबी जल्दी से पलटी और कमरे के बाहर निकलने लगी। मगर इस जल्दी के दौरान रज़िया बीबी ज़ाहिद के कमरे का दरवाजा खुला छोड़ गई।
ज्यों ही रज़िया बीबी ज़ाहिद के कमरे से बाहर आई। तो उसे अपने पीछे अपने बेटे ज़ाहिद के बाथ रूम का दरवाजा खुलने की आवाज़ सुनाई दी।
"कहीं ज़ाहिद ने मेरी चोरी पकड़ ना ली हो" रज़िया बीबी के ज़हन में ना जाने क्यों ये डर बैठ गया। और इसी डर के मारे उसे पता नही किया सूझा कि रज़िया बीबी ज़ाहिद के कमरे के सामने बने हुए एक छोटे से कमरे नुमा स्टोर में जा घुसी।
स्टोर में जाते ही रज़िया बीबी की नज़र सामने बनी हुई कपड़ों की अलमारी पर पड़ी। इस अलमारी में कपड़े गुंजाइश से ज़्यादा होने की वजह से अलमारी का दरवाजा ठीक से बंद नही हुआ था।
रज़िया बीबी को जल्दी में कुछ और ना सूझा तो वो कपड़े की अलमारी के खुले हुए दरवाज़े को ज़ोर से बंद करने लगी।
इधर बाथरूम से बाहर निकलते ही ज़ाहिद ने देखा कि उस के कमरे का दरवाजा खुला हुआ है।
"ये मेरे कमरे का दरवाजा किस ने खोल दिया है। "अपने कमरे के खुले दरवाज़े को देख कर ज़ाहिद ने सोचा।
इस के साथ ही ज़ाहिद की नज़र अपने बिस्तर के साइड टेबल पर पड़े हुए "चाय" के कप पर पड़ी।
"ओह्ह्ह्ह! अच्छा लगता है कि अम्मी या शाज़िया चाय का कप रखने के बाद दरवाजा खुला छोड़ गईं हैं" साइड टेबल पर रखे हुए कप को देखते ही ज़ाहिद ने दुबारा सोचा।
इस के साथ ही ज़ाहिद अपनी अलमारी की तरफ गया और अलमारी में से अपनी एक पॅंट निकाल कर पहन ली।
अपनी पॅंट पहन कर ज़ाहिद ने टेबल पर पड़ा हुआ चाय का कप अपने हाथ में उठाया। तो उस की नज़र अपने कमरे के खुले दरवाज़े से सामने के कमरे में जा कर अपनी अम्मी रज़िया बीबी पर पड़ी।
जो उस वक्त कपड़ों वाली अलमारी के सामने खड़ी हो कर उस अलमारी को बंद करने की कॉसिश कर रही थी।
अलमारी को बंद करने के दोरान रज़िया बीबी का मुँह तो अलमारी की तरफ था। जब कि उस की पीठ अपने बेटे ज़ाहिद की तरफ थी।
स्टोर की अलमारी को बंद करने की गर्ज से रज़िया बीबी को चूँकि अलमारी के दरवाज़े पर अपना पूरा ज़ोर लगाना पड़ रहा था।
इस अमल के दौरान रज़िया बीबी आगे को झुकी हुई थी, जिस वजह से रज़िया बीबी की मोटी और भारी गान्ड पीछे से उपर की तरफ उठ गई थी।
जारी रहेगी