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VOLUME II
नयी भाभी की सुहागरात
CHAPTER-2
PART 07
सुहागरात की तयारी
राजमाता ने धोती का कपड़ा पापा के शरीर पर फेंक दिया। -यह बहुत अजीब था; पल की ललक में जो खूबसूरत और आनंदमय लग रहा था वह अब शर्मनाक था।
मेरी नजर राजमाता के शरीर पर घूम गई। ब्लाउज के गीले रेशम के माध्यम से निप्पल दिखाई दे रहा था। अब अर्ध-सूखी वीर्य की लकीर, उनके के गले से दरार तक एक रेखा खींच रही थी, हालाँकि जहाँ वीर्य ने उसकी सोने की चेन जो राजमाता के गले में थी उसे छुआ था वहाँ अभी भी नमी थी। पापा का हाथ, जो अब राजमाता के स्तन को दबा नहीं रहा था, उनके स्तन की गोलाई और वजन को महसूस कर रहा था।
रौशनी में राजमाता दीप्तिमान-गुलाबी लग रही थीं। "ओह राजमाता बिस्तर में कमाल की होनी चाहिए," मैंने सोचा।
पापा ने धीरे से अपना हाथ राजमाता के स्तन से हटा लिया और राज माता ने छाती को अपने दुपट्टे के पर्दे से ढक दिया। वह शरमा गई; कामवासना का यह तूफान एक पुरानी आग थी जो कुछ देर के लिए सुप्त पड़ी हुई थी। वह पापा के और मेरे लंड और नग्न रूप को देखती रही। वह उसकी ताकत को देखने में सक्षम थी; और जब से पिछले कुछ दिनों से यह नई योजना उन्होंने बनायी थी तब से उनके मन में कामवासना का तूफ़ान फिर से उठने लगा था।
वे एक-दूसरे के बारे में सोचते हुए कुछ देर वहीं बैठे रहे। राजमाता को एहसास हुआ कि अब उन्हें आगे बढ़ने की जरूरत है। उन्होंने पापा की आँखों में देखा और विचारों में समानता देखा। पापा की आँखे उनके शरीर पर थिए और राजमाता की आँखे के उनके नीचले भाग पर घूम रही थीं, फिर उन्होंने ने देखा कि नीचे फिर से एक उभार विकसित हो रहा है और एक तम्बू बन रहा है।
उन्हें लगा अब यहाँ इस अध्याय को समाप्त कर देना चाहिए, शायद इस के बाद वह खुद पर नियंत्रण खो दे और अपनी कामवासना को नियंत्रित न कर पाए और इस बात का कोई आश्वासन नहीं था कि पापा भी अब खुद को नियंत्रित कर पाएंगे।
दोनों ने अपने कपड़े व्यवस्थित कर लिए। उन्होंने अपने दुपट्टे के सिरे का इस्तेमाल अपने गले, गर्दन और छाती पर लगे दागों को पोंछने के लिए किया। पापा ने और मैंने अपना पायजामा बाँध कर अपने कड़े लंड को पायजामे में कैद कर दिया।
बड़ा अजीब-सा मामला था और अजीब और असाधारण परिस्तिथिया थी जिसमे राजमाता जो मेरी ताई जी थी हमारे (महाराज जो उनके पुत्र थे और मैं जो की उनके देवर का पुत्र था) के सामने मेरे पिता जी के लंड का हस्तमैथुन करके मुझे सम्भोग करना सीखा चुकी थी और उसके बाद उनकी तरफ देखे बिना हमने उन्हें और पिताजी को प्रणाम किया और भाई महाराज और मैं अपने कक्ष में लौट आये। फिर भाई महाराज की सुहागरात का समय हो गया। अब नाम भाई महाराज का था दरअसल गुप्त रूप से मुझे ये सुहागरात नयी रानी के साथ मनानी थी।
सुहागरात के लिए एक बड़े से भव्य शयनकक्ष को मुख्य रूप से सजाया गया था। महाराज ने विशेष दासियो को भेज कर मुझे स्नान करवाया और मेरे शरीर पर विशेष तेल से मालिश की और इत्र लगया और मुझे सबसे श्रेष्ठ वस्त्र और आभूषण पहनाये।
इसी प्रकार महाराज को भी त्यार किया गया। फिर रात्रि के भोजन के उपरांत नयी रानी की कुछ खास दासीयाँ, मौसियो के पुत्रवधुएँ मीना और स्मिता भाभियाँ और भाई महाराज की वरिष्ठ महारानी ऐश्वर्या, भाई महाराज हरमोहिंदर को सुहागकक्ष तक ले आई. द्वार पर पहुँच कर दासीयाँ महाराज से हँसी ठिठोली करने लगीं। नयी रानी के साथ उसकी कुछ सखिया और दासिया भी विवाह के उपरान्त रानी के साथ ही आ गयी थी और सभी दासीयाँ और सखिया अत्यंत प्रसन्न थीं। परन्तु विवाह के वास्तविक प्रयोजन और नियम और शर्त वहाँ उस वक़्त उपस्थित लोगों में से केवल मात्र महराज हरमोहिंदर, नयी रानी और वरिष्ठ रानी को ही ज्ञात था!
"हमारी राजकुमारी बहुत कोमल हैं, अपने कठोर हाथ उनसे दूर ही रखियेगा महाराज!"। एक दासी ने कहा।
"और नहीं तो क्या, नहाते हुए यदि जल में इत्र और पुष्पों के रस की मात्रा तनिक भी अधिक हो जाये, तो राजकुमारी के अंग विहल हो जाते हैं!"। तो दूसरी दासी बोली।
"मुझे नहीं लगता की महराज पूरी रात राजकुमारी से सिर्फ मीठी-मीठी बातें करके ही कटायेंगे!" और एक दासी बोली।
"अब तो प्रात:काल राजकुमारी के स्नान के समय ही पता चलेगा की उनके किस-किस अंग में क्या-क्या और कितनी क्षति हुई है!"। चौथी दासी ने कहा।
सभी दासीयाँ खिलखिला कर हँसने लगीं।
"निर्लज्ज लड़कियों! अब भागो यहाँ से। महाराज और रानी साहिबा के विश्राम का समय हो गया है!"। नयी रानी की प्रमुख सखी और सेविका ने दासीयों को डांट डपट लगाई।
"हमें तो नहीं लगता की महाराज और राजकुमारी जी आज पूरी रात सिर्फ विश्राम करेंगे!"। फिर से किसी दासी ने कहा तो सभी दासीयाँ हँस पड़ी।
"महराज! इन उदंड लड़कियों को कुछ उपहार दे दीजिये, वर्ना ये यहाँ से जायेंगी नहीं और आपको ऐसे ही तंग करती रहेंगी!"। महरानी ऐश्वर्या ने महाराज हरमोहिंदर से कहा।
महाराज हरमोहिंदरने अपने शरीर से कुछ आभूषण और मोतीयों की मालायें उतार कर दासीयों को भेंट दी, तो उन्हें लेकर रानी की प्रमुख सखी सभी हँसती खिलखिलाती दासियो को बोली अब चलो अब हमे कबाब में हड्डी नहीं बना चाहिए और सभी हँसती खिलखिलाती हुई वहाँ से लेकर चली गई।
महराज हरमोहिंदर और अब जब अंदर प्रवेश करने को आगे बढे तो अब उनकी फूफेरी बहने जेन, अलका, लूसी और सिंडी और उनकी मौसेरी बहने श्रीजा, बीना और भतीजियाँ नीता और रीता सुहागरात कक्ष के द्वार पर मोर्चे बना कर डटी हुई थी और उन्हें रोका।
" अरे अरे! ये क्या? भाई महाराज अपनी बहनो का नेग तो देते जाईये। नववधु के सुहागकक्ष में प्रवेश अपनी बहनो को नेग देने के बाद ही मिलेगा। तो महाराज ने माणिक जड़ी हुई अँगूठिया और आभूषण अपनी बहनो और भतीजियों को नेग में दिए।
"और भी कोई सेवा हो तो बता दीजिये भाभी जी! "। भाई महाराज ने अपनी भाभी से मज़ाक में कहा।
मीना भाभी बोली आपने हमारी बाते मानी इस के लिए आपके आभारी हैं बस अब जल्दी से भतीजे का मुँह दिखला दीजिये। तो अब ऐश्वर्या महारानी बोल उठी बस उसी दिन की तो पूरे राज्य को प्रतीक्षा है।
"स्मिता भाभी ने हँसते हुए कहा, फिर बिस्तर पर बैठी रानी के कान में अपने होंठ सटाकर एकदम धीमे स्वर में बुदबुदाते हुए बोली।" मुझे पता है कि आप इस घड़ी का बरसों से प्रतीक्षा कर रही होंगी।
तो उसके बाद भाभियो ने भाई महाराज को अंदर धकेल कर द्वार बंद कर दिया। भाई महाराज ने अंदर से द्वार बंद किया और नयी रानी को देखा तो वह लजा गई।
महराज कक्ष में चारो तरफ घूमे और सुनिश्चित किया की कमरे में कोई और तो नहीं है और फिर एक तरफ जा कर एक गुप्त रास्ता खोला और मैंने उस सुहागरात कक्ष में प्रवेश किया और भाई महाराज वहाँ से चले गए।
सुहागसेज को गुलाब, मोगरा और अन्य कई सारे फूलों से इस कदर सजाया गया था कि बिस्तर की चादर तनिक भी नज़र नहीं आ रही थी और ऐसा प्रतीत हो रहा था कि मानो पूरी सेज फूलों से ही निर्मित हो। पूरा कक्ष मोगरे के इत्र की खुशबु से सुगंधित था।
सोलह शृंगार किए घूँघट ओढ़े लाल जोड़े में फूलों से सजी सुहाग-सेज पर लाज से सिमटी बैठी नयी दुल्हन भाभी मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। सबसे मजे और आश्चर्य की बात ये थी की अब तक न तो मैंने दुल्हन बनी हुई भाई महाराज की नयी रानी जो मेरी भाभी लगती थी का चेहरा देखा था न मुझे उनका नाम ही मालूम था।
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार