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VOLUME II
नयी भाभी की सुहागरात
CHAPTER-2
PART 11
नयी रानी के साथ सम्भोग
जब मेरा पूरा लंड उसकी चूत में समा गया और उसकी चीख निकल गयी। रानी जूही की चीख इतनी बुलंद थी कि एक बार को तो मैं भी डर गया कि पता नहीं क्या हुआ लेकिन ये डॉ नहीं था कि कोई आ जाएगा क्योंकि ये तो आज सभी को पता था कि आज महाराज की नई रानी के साथ सुहागरात है। मुझे जूही की टाइट छूट को छोड़ने और उसकी सील तोड़ने में बहुत मज़ा आया।
जूही की आँखों से आंसू की धारा बह निकली। मैं उन आंसुओं को पी गया। मैं बोला-रानी साहिबा, बस थोड़ी देर बर्दाश्त कर लो, आगे मजा ही मजा है।
हमने राजमाता को फिर से फुसफुसाते हुए सुना, "कुमार अब जैसे मैंने तुम्हें सिखाया था, वैसे ही अंदर और बाहर स्लाइड करो!"
जूही जिसकी योनि मेरे लंड के लिए समायोजित हो रही थी और स्वयं मेरे लंड के कारण उसकी योनी के खिंचाव में खोई हुई थी अपनी सास के इस बयान के निहितार्थ पर चौंक गई।
जूही सोचने लगी क्या राजमाता ने इस अद्भुत लगने वाले लिंग का स्वाद चखा हुआ है? क्या उन्होंने कुमार के पौरुष का आनंद लिया है अगर हाँ इसीलिए वह चाहती हैं जी जूही भी उसी आनद का अनुभव ले। जूही सोचने लगी ये उसका सम्ब्नध कैसे परिवार से हो गया है। वह सोचने लगी इससे आगे और क्या। एक त्रिकोणीय सेक्स। फिर उसने अपने अंदर उत्तेजना का अनुभव किया और उसे अपनी योनि फिर से गीली होती हुई महसूस हुई। मैंने भी अपने लंड को गिला होते हुए महसूस किया।
मैंने जोर-जोर से उसको चुंबन करते हुए उसकी सांसें चूस लीं और जूही की योनि में आयी बाढ़ की लहर को महसूस किया। राजमाता ने मुझे इसकी चेतावनी दी थी की यह गीलापन खुशी और आनद को बढ़ाएगा और इससे सम्भोग का समय बढ़ जाएगा।
कुछ ही देर के बाद योनि की मांसपेशिया समायोजित हो गयी और लंड चूत के अंदर अपनी जगह बनाए में कामयाब हो गया और दर्द भी काफूर-सा होने लगा था।
मैं उसके ऊपर लेट कर उसे किस भी कर रहा था और एक हाथ से उसके मम्मों को सहला भी रहा था।
एक बार फिर आवाज आयी कुमार अब करिये।
मुझे रानी के अंदर और बाहर स्लाइड करने का आदेश दिया गया था। इस समय यही मेरा कर्तव्य था।
मुझे अब उस शैतान पर नियंत्रण पाना था जो मेरे मन और शरीर में था।
मुझे, "मैंने खुद से कहा और लिंग को बाहर खींचते हुए," आदेश दिया गया है, "अंदर धकेलो;" उसे, अंदर, बाहर खींचो और अंदर और बाहर पाउंड करो और अंदर और बाहर और अंदर और..."
यंत्रवत् मैंने लंड को अंदर और बाहर बढ़ा दिया। में अपने आप को भूल गया कि मैं कहाँ था और किस परिवेश में था। बस लिंग को बाहर निकाला और अंदर बढ़ा दिया। यांत्रिकी में वह भूल गया कि जैसे ही उसके रस ने मेरा लंड भीग दिया, मुझे उसे सूखा लेना चाहिए ताकि उत्तेजना अधिकतम हो और कामोन्माद जल्दी हो जिसके कारण उत्कर्ष और स्खलन हो। मैंने लंड को जूही की योनि से बाहर निकाला तो लंड कौमार्य के रक्त और योनि रस से भीगा हुआ था इसलिए धोती के कपड़े में लंड पकड़ लिया। जैसे ही माने उसे साफ़ किया और इसे सूखने के लिए रखा, मैंने महसूस किया कि मेरा लंड आज भर ज्यादा बड़ा हो गया था और उस अनुपात में सूज गया है जिसे मैंने पहले कभी अनुभव नहीं किया था। निश्चित तौर पर ये जूही की टाइट कुंवारी योनि और अंगूठी का प्रभाव था।
मैंने उसको उठाकर उसकी चूत में अपनी एक उंगली डाल दी, तो वह ज़ोर से चिल्लाई प्लीज जल्दी करो ना, प्लीज आहहह। फिर जब मैंने उसकी चूत में अपनी उंगली की तो वह मेरे कमर को ज़ोर से आगे पीछे करने लगी और ज़ोर से मौन करने लगी। उसकी चूत पूरी डबल रोटी की तरह फूली हुई थी। अब में उन्हें ऊँगली से लगातार चोद रहा था और वह ज़ोर से मौन कर रही थी।
मैंने ऊँगली निकाली उसे कपडे से साफ़ किया फिर मैंने उस कपडे से योनि को भी जितना साफ़ कर सकता था साफ़ किया और फिर एक तेज झटके में लंड को फिर से अंदर घुसा दिया और बाहर निकला। एक बार फिर लंड और योनि को कपडे से साफ़ किया।
सूखे हुए लंड को योनि के अंदर प्रवेश और बाहर निकालने की प्रक्रिया में दोनों को बहुत मजा आ रहा था। फिर मैंने उनकी गांड के नीचे एक तकिया लगाया और उसके दोनों पैरों को फैलाया और अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया। अब जब मेरे लंड का सुपड़ा ही उसकी चूत में गया था तो उन्ह! " वह घुरघुराई, उसकी उँगलियाँ उसके तकिए के सिरों को पकडे हुई थी। मैंने उसे अनसुना करते हुए एक ज़ोर का धक्का लगाया तो वह और ज़ोर से चिल्लाई। डालो। जोर से डालो। अब वह ज़ोर-जोर से हाँफ रही थी और जैसे कोई कई मीलों से दौड़कर आई हो और आहह, एम्म, ओह, आआआआआआअ, डालो ना अंदर जैसी आवाजे निकल रही थी।
फिर तो झटकों का सिलसिला शुरू हो गया। फिर मैंने उसके लिप्स पर किस करते हुए उसके मुँह को बंद किया और अपने धक्के लगाता गया। अब वह झटपटा रही थी और अपने बदन को इधर से उधर करने लगी, लेकिन में नहीं माना। अब में धक्के पर धक्के लगाए जा रहा था।
कभी कभी 2 उंगलियों में उसकी निप्पल को भी ले कर मसलता और कभी बहुत ज़ोर से खींचता, उसके निप्पल तने हुए थे। मैं भी मज़े से लंड को तेजी से चूत के अन्दर बाहर कर रहा था।
मैं क्षण भर के लिए यह भी भूल गया कि उस तेज़ गति के अंत में एक महिला थी। सुखी हुई योनि और लंड के घर्षण से जो कामाग्नि उत्पन्न हुई उससे ये सम्भोग उतना ही जोरदार होता गया। मैंने महसूस किया कि उसकी चूत की दीवारें जल रही हैं, जिसकी आग बुझाने के लिए योनि रस बह रहा है। मैंने साथ ही ये भी महसूस किया की स्नेहन (चुतरस) उसकी योनी की दीवार की धड़कन को ट्रिगर करता है। वह चाहती थी, मैं तेज़ी से लंड को अंदर बाहर करता रहूँ। उसने अपने पैरों को चौड़ा कर उन्हें मेरे कंधों पर टिका दे, जिससे उसकी योनि अंदर की ओर खुल गयी और लंड और अंदर जा रहा था और गर्भाशय से टकरा रहा था। मैं अपने हाथो से उसके स्तन मसल रहा था उसकी सांसें बहुत तेज थीं।
जूही अब तक इन शारीरिक संवेदनाओ से अपरिचित थी और इस अज्ञात भावनाओ के बीच उसके शरीर ने चुदाई में मेरा साथ देना शुरू कर दिया और उसके नितम्ब मेरे धक्को की गति और ताल के साथ ले मिला कर हिलने लगे। उत्तेजना में उसका सीना काँपने लगा।
मैं उसकी चिल्लपों से कतई नहीं डर रहा था और न ही उसके बोलने की आवाज़ आ रही थी। बस वह केवल आह-आह कर रही थी।
जूही के शरीर में आग लगी हुई थी। मैं उसे जैसे चोद रहा था उससे जूही को ये उम्मीद बिलकुल नहीं थी की ये बहुत लम्बा चलेगा। लेकिन वह चाहती थी ये लम्बा चले। उसने एक हाथ से मेरा हाथ पकड़ लिया ज। उसका दूसरा हाथ मेरे गले तक चला गया और मैंने उसके स्तनों को छूने के लिए बेताबी में अपनी गर्दन को उसके गर्दन से रगड़ा।
अब तक मेरे और रानी जूही के बीच जो कुछ हुआ वह सब राजमाता को मंजूर था। वह जानती थी कि मुझे कामोन्माद की शुरुआत महसूस होने से पहले कुछ स्ट्रोक की जरूरत होगी। यह विशेष रूप से ऐसा था जब हम दोनों काम उत्तेजना में डूब रहे थे। राजमाता को मेरे स्ट्रोक प्ले के समय का आभास था, उसने सोचा कि अभी कुछ मिनट बाकी हैं उसके बाद उसे फिर से हस्तक्षेप करने की आवश्यकता महसूस होगी।
राजमाता को पता ही नहीं चला कि मैं क्या महसूस कर रहा था। मैंने महसूस किया था कि रानी अब नितम्ब हिला कर चुदाई करव रही है। जब मैंने लिंग को वापस खींच लिया था और अपने लिंगमुण्ड की संवेदनाओं पर ध्यान केंद्रित कर रहा था तो जूही नितम्बो को अति संवेदनशील सिर पर वापस ले आयी थी। राजमाता ने इसे देखा और लंड और योनी को परस्पर क्रिया की अनुमति दी क्योंकि मेरे बीज को उगलने के लिए कुछ आनंद की आवश्यकता होने वाली थी। मैंने जिस चीज की आशा नहीं की थी, वह थी जूही का मेरे हाथ को पकड़ना।
मैंने जूही की तरफ को देखा। हमारी नजरें मिलीं और वह मुस्कुरा दी। मैं देख सकता था कि वह कामवासना से पीड़ित थी। उसकी त्वचा गर्म लाल हो गई थी। उसने अपना सिर घुमाया और अपने होठों से मेरे हाथ को चूमा।
मैं पिछले कुछ दिनों से रानी की सुंदरता की बेशर्मी से निहार रहा था। गुरुदेव की आज्ञा अनुसार मैं ब्रहंचर्य का पालन कर रहा था। आस पास मेरी प्रेमिकाओ और सुंदर महिलाओ का मेला था परन्तु मैं किसी को भी छू तक नहीं सकता था।
कहानी जारी रहेगी
दीपक कुमार