गंगाराम और स्नेहा Ch. 01

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"आआअह्ह्ह्हह.... अंकल... धीरे से.. मुझे दुःख रहा है.. इतना जोर से मत धकेलो..." वह कही और लंड को मुहं से बाहर निकाली।

लेकिन गंगाराम इतना उतावला था की वह स्नेहा की बात को अनसुना कर उसके मुहं में अपना लंड घुसेड़ने लगा। स्नेहा "हआ.. ममम.. उन. अं...कल.क्ल..." कर रही थी।

पूरे चार पांच मिनिट तक वह उसके मुहं में अपना मुस्सल अंदर बहार करके फिर.. "आआह्ह्ह स्नेहा.. मेरी जान.. मेरि निकल गई..." कहते उसके मुहं में अपने लंड के रस से भरने लगा। एक बार तो स्नेहा गभरा गयी। गंगाराम का गर्म वीर्य उसके मुहं मे भरने लगा तो, क्या हो रहा है उसे समझ में नहीं आया। फिर समझ गयी की अंकल ने उसके मुहं में झड़े है। उसका मुहं एक अजीब सी कासीलापन के साथ साथ नमकीन स्वाद फील कर रही थी।

"ओह अंकल.. ये क्या किया अपने। मेरे मुहं में ही झड़ गए.. बहार तो निकालना था"उस वीर्य को गले के निचे उतारने के बाद वह शिकायत भरे स्वर में बोली।

"ओह नो स्वीट हार्ट.. यह अमृत है.. तुम्हे शायद मालूम नहीं... यह रस पीनेसे और इसे अपने चेहरे पर लेपने से लड़की की सुन्दता बढ़ती है" गंगाराम स्नेहा की चूची लो टीपते बोला।

स्नेहा इतना भोली थी की "क्या सच अंकल..." कह कर पूछी और फिर अपने शरीर पर गिरी उस लंड रस को निकाल निकाल कर चाटने लगी और अपने गालों पर लेपने लगी। जैसे जैसे वह चाटने लगी अब उसे चाट ने से स्वाद मिलने लगा। वह चटकारे लेकर चाटने लगी। फिर दोनों कुछ देर आराम करे।

**************

आधे घंटे की आराम के बाद गंगाराम ने स्नेहा से पुछा... "स्नेहा क्या अब गेम शुरू करे" गंगाराम का ऐसे पूछते ही स्नेहा चित लेट गयी और अपने टंगे पैलादी। अब वह भी उतावली थी। उसे उसकी सहेली सरोज की बातें यद् आने लगी।

"यार जब मर्द अपना लंड अंदर तक घुसाके मारते है तो वह आनंद अलग ही है। तू नहीं समझेगी यह बात। जब तू भी चुदवायेगी न तब समझ में आएगी।"

स्नेहा को वह बात यद् आयी और वह बेसब्रेपन से अंकल की डंडे का इंतजार कर रही थी।

वह चित लेटते ही गंगाराम उसके ऊपर चढ़गया। लड़की की जांघों के बीच आकर अपना डंडा स्नेहा की चूत पर रख रगड़ने लगा।

गंगाराम का मोटा डिक हेड अपनी फांकों पर रगड़ते ही स्नेहा का सरा शरीर सिहर उठी। उसमे एक अजीब मदहोशी छाने लगी। आज उसके साथ जो भी हो रहा था। उस पर वह विश्वास ही नहं कर पा रही थी।

इधर गंगाराम भी अपना संतोष समां नहीं पा रहा था। 21 -- 22 की होने पर भी उसे एक कुंवरी लड़की मिल रही है यह बात उसे हवा मे उडाने लगी। नहीं तो आज कल की लड़कियां तो 15 -16 होते होते अपने classmates से या अपने बॉय फ्रैंड से चुद जति है।

जैसे ही गंगाराम ने अपना लंड फांकों पर चलाकर जोर देने वाला ही था की "अंकल..." कहते स्नेहा अपना हाथ अपनी बुर पर रखी।

गंगाराम ने स्नेहा को देखा...

"अंकल मुझे ढर लग रहा है.." स्नेहा बोली।

"ढर... किस बात का... क्या तुम्हे पसंद नहीं है...?"

"वह बात नहीं अंकल.. आपका बहुत बड़ा है.. कहीं मेरी..." स्नेहा रुक गयी।

"आरी पगली.. लंड जितना बड़ा और लम्बा होता है औरत को उतना मजा मिलती है। तम्हारी सहेली... क्या नाम है उसका.. हाँ सरोज .. वह क्या कहती थी.. की उसे अपने पति से उतना मजा नहीं आता .. क्यों की उसका छोटा और पतला है" गंगाराम एक क्षण रुका और फिर बोला "लेकिन मैं मानता हूँ पहले पहले कुछ दर्द होता है... तुम देखना बाद में तुम्हे जन्नत दिखयी देगी..." गंगाराम स्नेहा की छोटो नंगी चूची को टीपते बोला।

लेकिन स्नेहा फिर भी असमंजस में थी। यह देख कर गंगाराम उसे फिर से अपने गोद में बिठाया और एक हाथ से उसकी छोटी चूचियों से खिलवाड़ करता दूसरे हाथ उसके जांघों में घुसाकर उसकी अनचुदीं बुर को ऊँगली से कुरेदने लगा। साथ ही साथ उसका सारा मुहं को चूमने लगा! स्नेहा की होंठ, गाल, आंखे वगैरा।

पांच मिनिट से भी कम समय में स्नेहा.."आअह्ह। ... हहहहह... ससससस..." सिसकारियां लेते हुए मछली की तरह तड़पने लगी। "अंकल... अंकल..." वह बड़ बढ़ाने लगी। उसकी बुरसे मदन रस एक नाले की तरह बहने लगी। और उसके बुर के अंदर की खुजली बढ़ गयी।

"आह्ह अंकल.... मममम... कुछ करो.. मेरी सुलग रही है... ऎसा लग रहा है..जैसा अंदर आग लगी है.. आआआआह" कहते गंगाराम से लिपटने लगी।

गंगाराम ने मौका देख कर उसे फिर से चित लिटाया और उसके जंघों में आ गया और अपना लंड स्नेहा की चूत पर रखा। स्नेहा इतना गर्म हो चुकी थी की वह खुद अंकल (गंगाराम) के लंड को पकड़ कर अपनी चूत के मुहाने पर रख कर बोली अंकल.. अब डाल दीजिये..." और अपनी कमर उछाली।

स्नेहा की उतावली देख कर गंगारम एक जोर का शॉट दिया।

"आमम्मा.... ओफ्फोऊ... मैं मरी.... अंकल.. नहीं. निकालो... मुझे नहीं चुदाना .. मममम.. मेरी फटी." स्नेहा चिल्लाई और गंगाराम को अपने ऊपर से धकेलने की कोशिश की।

स्नेहा के आँखों में आंसू आ गये। गंगाराम उसे समझा रहा था की कुछ नही होगा लेंकिन वह नहीं मान रही थी और "प्लीज... अंकल.. निकालो.. उफ्फो कितना मोटा है. मेरी तो फट ही गयी.. नहीं.." कहती वह रोने लगी।

"स्नेह.. देखो इधर मेरी ओर.. देखो.." गंगाराम उसे अपनी ओर घुमाते बोला। स्नेहा की आंखे आंसू से भरे थे। "क्या बहुत दर्द हो रहा है...?" अपने लंड को अंदर ही रख पुछा।

"नहीं तो...! प्लीज अंकल निकालो.." वह रुआंसे स्वर में बोली। अगर गंगाराम चाहता तो वाह उसे जबरदस्ती चोद सकता था, लेकिन गंगाराम को यह अच्छा नहीं लगा। साली इतनी तंग है... कमसे कम छह महीने तक तो उसके साथ मजे लूट सकते थे... यह अवसर वह खोना नहीं चाहता था। स्नेहा के बुर से अपना लंड बाहर खींचा।

लंड पर स्नेहा की बुर के रस के साथ कुछ खून दब्बे भी दोखी। खून देखते ही वह और गभरा गयी.. देखो क्या कर दिये आपने मेरे से.. खून..."

"आरी स्नेहा गभरा मत.. मैं सब ठीक कर दूंगा.." कहते वह उठा और व्हिस्की बोतल और रुई ले आया। रुई पर थोड़ा व्हिस्की उंडेलकर उस रुई को स्नेहा की चूत की फाँकों के बीच टच किया... "ससस.....मममम जलन हो रही है.." बोली। एक ग्लास में पेग व्हिस्की डाला और उसे स्नेहा से पिने को कहा।

"नहीं अंकल.. यह शराब है.. मैं नहीं पीती.." वह अपना मुहं दूसरी ओर फेरली।

पगली.. यह दवा है, पीके तो देख केसा तुम्हारा दर्द कम होता है..." कहते गंगाराम ने स्नेहा से जबरदस्ती पिलाया।

"याक.. कड़वा है.." वह कहि। गंगाराम फिर उसे अपने बाँहों मे लिया और उसे फिरसे गर्माने की कोशिश करने लगा। स्नेहा की बुर पर व्हिस्की का रुई का और उसके पेट में एक पेग हिस्की बहुत कारगर सिद्द हुयी।

तीन चार मिनिट में स्नेह का सरा दर्द हांफट हो गया पेट में व्हिस्की उसमे फिर से गर्मी भरने लगी। देखते देखते वह फिर रोमांस में आगयी और गंगाराम की हरकतों का एन्जॉय करने लगी। उसके चूमने और चाटने का जवाब वह वैसे ही देने लगी।

--

गंगाराम उसे पीट के बल लिटाकर उसकी चूत में ऊँगली करने लगा। "आअह्ह " वह एक बार कसमसाई। गंगाराम उसकी सिसकारों का कोई परवाह न करते उसकी बुर को कुरेदने लगा। अब स्नेहा में भी गर्मी बढ़ने लगी और वह गंगाराम के हरकतों से चटपटाने लगी। देखते ही देखते अब उस लड़की की बुर खूब सारा मदन रस छोड़ने लगी। गंगाराम उसकी चूची को पूरा का पूरा अपने मुहं में भर लिए और चूसने लगा तो दूसरे हाथ से उसकी दुसरी चूची को जोर जोरसे मसलने लगा।

अब स्नेहा से रहा नहीं जा रहा था। वह अपनी नितम्ब उठाते "अंकल.. अब चोदिये न.. प्लीज...." कहते गंगाराम के लण्ड को मुट्ठी में दबाकर अपनी ओर खींचने लगी।

"नहीं स्नेहा... नहीं... मैं चोदने लगूंगा तो तुम फिर से रोने लगोगी ... फिरसे निकालो.. निकालो.. चिल्लाने लगोगी..." वह बोलता रहा और अपना काम करता रहा।

"नहीं अंकल अब मैं कुछ नहीं कहूँगी... आपकी इस लंड की कसम ... जल्दी डालिये.. मेरी सुलग रही है.."

गंगाराम उसे इसि हालत में देखना चाहता था... "पक्की बात..." उसकी बुरमें ऊँगली चलते पपूछा।

"हाँ अंकल...पक्की बात... जल्दी चोदो मुझे.." वह मिन्नते मांगने लगी।

"ठीक है फिर.. मैं आ रहा हूँ..." कहा और वह स्नेहा की जांघों के बीच आ गया। स्नेहा झट अपनी फांके उसके मुस्सल के लिए खोली। चूत के अंदर लालिमा लिए नमी को देखते ही गंगाराम आव देखा न ताव ... योनि के मुहाने पर लंड ठिकाया और एक जोर का दक्का दिया...

"aammmmmaaaaaa..... mei... mareeeeee ह..अहा.." कही।

उसका आधा लंड स्नेहा की अन चुदी बुर में बोतल की कॉर्क की तरह फंस गयी। अब की बार गंगाराम उसी एक न सुनी.. उसे मालूम है... उसके लिंग बहुत मोटा और लम्बा है... फिर भी आधा लंड बाहर खींच कर उसके मुहं को बंद कर एक और दक्का दिया... आआह्ह्ह... उसका पूरा मुस्सल जड़ तक लड़की की बुर में।

ह्ह्ह्हआआ...आमम्मामआएमाआ..." स्नेहा के मुहं से एक न सुन ने वाली आवाज निकली। गंगाराम की हाथ अब भी उसके मुहं को दबाये थी।

लड़की साँस लेने चटपटाते रह गयी।

बहुत देर तक गंगाराम कोई हरकत नहीं की... सिर्फ स्नेह पर पड़ा रहा... बहुत देर बाद लड़की में फिर हरकत शुरू हुई। उसकी बुर पानी छोड़ने लगी। एक अजीब सी सुर सूरी भी होने लगी। स्नेहा अपनी कमर इधर उधर हिलाते रही और कुछ देर बाद अपनी कमर उठाने लगी।

गंगाराम उसकी कमर उठाने का नजरअंदाज कर बस वैसे ही पड़ा रहा। उसे मालूम है... अब लड़की अपने आप जोश में आएगी।

उसने जैसे सोचा वैसे ही हुआ... "स्नेहा कमर उछलते बोली... अब चोदिये भी अंकल..." कहकर अपनि कूल्हे उछालने लगी। अब गंगाराम शुरू हो गया... वह भी अपनी कमर उठा उठाके उसे चोदने लगा..

जैसे जैसे अंकल की लंड उसके अंदर बाहर होरही है... वैसे ही वह भी अपनी गांड उछालते चुदाने लगी।

गंगाराम का लण्ड.. उसकी तंग चूत की दीवारों को रगड़ते अंदर बाहर होने लगी।

"हहह... स्नेहा.. माय लव.. कितना तंग है तुम्हारी चूत..मममम..तुम्हे मजा मिला रहा है न...." गंगारम अपनी चुदाई जारी रखते पुछा।

"हाँ अंकल.. अब सच मे मजा आ रहा ही.. चोदिये और अंदर तक डालकर पेलिए..मममम... इस चुदाई के लिए कितनो दिनोंसे तड़प रहीथी.. चोदो और अंदर तक डालिये..." स्नेहा बड बड़ा रहीथी।

ले मेरी रानी मौज कर अंकल के चुदाई से.. अब तुम जब चाहो तब एक बार फ़ोन कर देना और यहाँ आजाना.. तिम्हे स्वर्ग दिखा दूंगा... ममम.. स्नेह.. अब रहा नहीं जाता.. छोड़ रहा हूँ.. बोलो कहाँ छोडूं.. अंदर या बाहर" वह पुछा।

"अब मैं सेफ पीरियड में हूँ अंकल.. मैं सुरक्षित हू.. अंदर ही छोड़िये... मेरी सहेली सरोज कहती है की मर्द का गर्म वीर्य अंदर लेने से राहत मिलती है.. वह आनंद मैं चाहती हूँ.. डालिये अंदर ही..आआह्ह्ह्हह्ह.. मेरा भी होगया अंकल.. मैं झड़ रही हूँ..." कहते वह भी झड़ गयी.. साथ ही साथ वह अंकल का गर्म लस लसे का आनंद भी ले रही थी।

उसके बाद उस दिन गंगाराम से उसने एक बार फिर से चुदवायी। संतृप्त होकर शाम को वह अपने घर के लिए निकली।

"स्नेहा... सच कहना मजा आया...?" गंगाराम पुछा।

"हाँ अंकल बहुत मजा आया..पहले दर्द बहुत हई थी पर बादमें बहुत आनंद आया.. बादमें तो मैं स्वर्ग में विचर रही थी। थैंक्स अंकल..." स्नेहा बोली।

"थैंक्स तो मुझे बोलना चाहिए...वैसे फिर कब मिलोगी...?"

"जल्दी ही मुलाकत होगी अंकल बाई.. बाई... वह बोलकर बाहर को निकली।

तो दोस्तों यह रही 21 साल की स्नेहा और 55 साल की गंगाराम की पहली चुदाई की कहानी... उसके बाद उनकी मुलाकातें क्या रंग लायी यह मैं आपको बाद में लिखूंगी।

तबतक के लिए स्नेहा का सलाम कुबूल करें

समाप्त

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manchalimanchali4 months ago

hum do bahne hain- Pooja aur Riya . Jab se school mei aye tab se hum bahno ko mardon ke lund ka chaska lag gaya. Didi ne mujhe bataya tha ki Ma karib 30 sal ki thi, jab Didi ne pahli bar Ma ko teen mardon (23 se 47 sal tak) se poori rat chudwate dekha. hamare baap ko log sharab ki bottle de dete, fir jo chaho ghar mei karo. Didi (15) ko Ma ke yaro mei se ek ne, jo 56 sal ka tha,Didi ka hath pakad kar dusre kamre mei le ja kar seal todi. us ke bad to aksar har umar ke mard aate aur Ma ko paise de kar Didi Ko chodte. Mujhe 13 sal ki umar mei hi teen admiyo aur ek 17 saal ke ladke ne chat pe bane kamre mei le jaa kar choda. Didi ne bataya Ma ne 4 hazaar ruye liye the. Mujhe bohot dard huwa tha pahle din; mere saare chedon ko virya se bhar diya tha. ladke ne choot mein, ek tailor ne Gaand mei, buddhe maulana (68) ne muh mei aur chowkidar (52 sal) ne choti- choti chatiyon ke upar virya ki dhar chodi. Uske bad Didi aur mei school ke bahar se hi customer pakad lete aur ek buddhi vidhwa ke ghar mein 20 rupye ghanta de kar chuudwate. Wo budhiya chowkidari karti.

AnonymousAnonymousalmost 2 years ago

बहुत बढ़िया स्टोरी है, गर्म कर दिया तुमने और मुझे मेरे बचपन की याद दिला दी। कई बुड्ढे बहुत हरामी होते है, मै जब छोटी थी तो मेरे को कई एसे बड़ी उम्र के आदमी मिले जो मुझे बहलाने की कोशिश करते पर मै किसी के चक्कर के नहीं पड़ी पर एक ने फंसा लिया था और मेरी सील तोड दी।

मै स्कूल मे पढ़ती थी और वो हमारे स्कूल का गार्ड था, वो मेरे से बेटी बेटी कह के बात करता था और अक्सर मौका मिलने पर सर पर, कंधे पर या गालो पर हाथ फेर देता। मेरे को वो अच्छा लगता था और मै उससे धीरे धीरे पटने लगी। वो कभी मौका मिलता तो मुझे अपने आलिंगन मे ले लेता तो मुझे अजीब सी गुदगुदी होने लगती। एक दिन स्कूल के बाद वो मुझे अपने कमरे मे बुला लिया और मुझे अपनी बाहो मे ले के किस कर दिया, मेरे पूरे बदन मे झनझनाहट होने लगी।

धीरे धीरे वो मुझे अपनी लाइन पर ले आया और एक दिन कमरा बंद करके वो मेरे ऊपर चढ़ गया। जब वो मेरे कपड़े उतारने लगा तो मै पहले तो घबराई पर फिर मज़ा आने लगा। चूस चूस के वो मेरे गोरे गोरे स्तनो को लाल कर दिया। मै इतनी वासना के डूब गयी की पूरी मस्ती मे उसका साथ देने लगी तो वो भी जोश मे मुझे रगड़ने लगा। मुझे पूरी तरह से गर्म करने के बाद वो मेरी टाँगे ऊपर उठा दिया और अपना लाँड़ मेरी चूत पर टिका दिया।

पहले धक्के मे ही वो मेरी सील तोड़ दिया और मै बिलबिला गयी, मै दर्द के मारे ज़ोर से चिल्ला पड़ी पर स्कूल मे कोई नहीं था उस वक़्त सुनने वाला। वो आसानी से मुझे दबोचे रहा और पूरा लाँड़ अंदर घुसा दिया। मै तडफड़ाती रही पर वो छोड़ा नहीं बल्कि मुझे पुचकार पुचकार के समझता रहा। शुरू मे जब धक्के मारा तो मेरी चीखे निकाल जाती पर फिर दर्द थोड़ा कम पड़ा और एक टीस सी बदन मे रह गयी। उसके बाद वो मेरी कुँवारी चूत के मज़े लेने लगा और मै उसके वजन के नीचे दबी चुदवाती रही।

उस दिन चुदवाने के बाद मै बहुत दिनो तक उसके पास नहीं गयी पर फिर एक दिन फंस गयी और फिर तो सिलसिला ही शुरू हो गया।

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