आखिर बेटी ने पापा से चुदवा ही लिया

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जयशंकर- अच्छा कर दूँगा. चल अब ये चादर डाल ले और सोने की कोशिश कर.

सुगंधा ने मुँह पर चादर डाल ली और जयशंकर जी उसके सर को सहलाने लगे. अब सुगंधा ने अपने हाथ चादर के अन्दर कर लिए थे और बहुत हल्के से वो लुंगी के ऊपर से लंड को छूने लगी. यानि कुछ इस तरह से छूने लगी कि जयशंकर जी को जल्दी समझ में नहीं आता कि वो टच कर रही है या उनका लंड ही वहाँ है.

सुगंधा की कोशिश कामयाब होने लगी. लंड महाराज इतनी सी छुवन भी भाँप गए और बस ख़ुशी के मारे फूलने लगे. अब जयशंकर जी का लंड खड़ा होगा तो उन्हें तो पता होगा ही ना, बस वो बेचैन हो गए और उन्होंने चादर में हाथ डाल कर लंड को एड्जस्ट किया ताकि सुगंधा को पता ना लगे. मगर सुगंधा तो अब फास्ट हो रही थी, तो फ़ौरन उसने जयशंकर जी को टोक दिया.

सुगंधा- पापा आप सर दबाओ ना.. चादर के अन्दर क्यों हाथ ला रहे हो.

जयशंकर- अरे वो थोड़ी खुजली हो रही थी तो बस खुजाने के लिए लाया था. तू सोने की कोशिश कर.. ऐसे ही बोलती रहेगी क्या?

सुगंधा- अच्छा अच्छा सो रही हूँ मगर अबकी बार आपको खुजली हो, तो मुझे बता देना.. मैं कर दूँगी. आप बस मेरा सर सहलाओ.

जयशंकर जी ने 'ठीक है..' कहा और फिर सर को सहलाने लगे. अब सुगंधा फिर से लंड पर उंगली घुमा रही थी और लंड था कि बस अकड़े जा रहा था.

जयशंकर जी ने बहुत ध्यान लगाया कि लंड से कुछ टच हो रहा है मगर सुगंधा इतने हल्के तरीके से छू रही थी, जिससे जयशंकर जी को समझ नहीं आ रहा था कि सुगंधा छू रही है या कपड़े की रगड़ से लंड खड़ा हुआ है.

अब जयशंकर जी सुगंधा के कंधे दबाने लगे और सुगंधा के चिकने जिस्म पर उनका हाथ लगते ही लंड ने जोरदार अंगड़ाई ली. अब लंड अपने पूरे शवाब पर आ गया था. सुगंधा को अब भी पता नहीं चल रहा था कि लंड किस पोज़िशन में है, वो बस हल्की सी उंगली टच कर रही थी. फिर उसने करवट लेने के बहाने जल्दी से पूरा हाथ लंड पर लगा दिया और उसको ये जानकार झटका लगा कि पापा का लंड काफ़ी बड़ा और एकदम कड़क है.

ये इतना अचानक हुआ कि जयशंकर भी समझ नहीं पाए कि सुगंधा ने जानबूझ कर लंड छुआ या अंजाने में हो गया.

सुगंधा के करवट लेने के बाद सारा मामला ही बदल गया. जयशंकर जी की लुंगी थोड़ी सरक गई और लंड का टोपा बाहर निकल आया. ये बात दोनों को ही नहीं पता थी. मगर जब सुगंधा थोड़ी आगे हुई उसके होंठ सीधे सुपारे से टच हुए. तो उसी पल जयशंकर जी भी समझ गए कि लंड बाहर निकल गया है. मगर वो कुछ नहीं बोले और वैसे ही सुगंधा की टी-शर्ट में हाथ डालकर उसकी गर्दन और पीठ को सहलाते रहे.

सुगंधा ने सोचा ऐसा मौका दोबारा नहीं मिलेगा. उसने धीरे से अपनी जीभ निकाल कर सुपारे पर घुमाई और जयशंकर जी फ़ौरन हरकत में आ गए.

जयशंकर- सुगंधा सो गई क्या.. कुछ बोल तो?

सुगंधा ने सांस रोक ली और चुपचाप वैसे ही पड़ी रही.

जयशंकर जी को लगा कि सुगंधा शायद सो गई है. उन्होंने धीरे से चादर हटाई तो अन्दर का नजारा देख कर उनके होश उड़ गए.

सुगंधा करवट लेकर सोई हुई थी और लंड पूरा बाहर था. सुगंधा के होंठ लंड से एकदम सटे हुए थे.

ये नजारा देख कर एक पल के लिए जयशंकर जी सब कुछ भूल गए और उनकी अन्तर्वासना जाग गई. सुगंधा के नर्म होंठ लंड से सटे हुए थे और जयशंकर जी के शरीर में करंट दौड़ने लगा था. उन्होंने लंड को हाथ से पकड़ा और सुगंधा के होंठों पे रगड़ने लगे.

सुगंधा इस हमले के लिए बिल्कुल तैयार नहीं थी. वो घबरा गई और जल्दी से सीधी होकर लेट गई. अब उसकी साँसें तेज चल रही थीं और उसके चूचे साँसों के साथ ऊपर-नीचे होने लगे.

जयशंकर जी ने जल्दी से लुंगी ठीक की और लंड को अन्दर कर लिया. मगर उनकी नज़र अब सुगंधा के मदमस्त मम्मों पर जा टिकी.

जयशंकर जी ने एक-दो बार सुगंधा को आवाज़ दी. उसे हिलाया.. मगर वो जस की तस रही. अब सोई होती तो शायद जाग जाती.. मगर जागती हुई को कैसे जगाया जाए.

जयशंकर जी को जब यकीन हो गया कि सुगंधा सो गई है.. उन्होंने डरते हुए अपना एक हाथ सुगंधा के एक चूचे पे रख दिया, मगर उन्होंने कोई हरकत नहीं की, बस चूचे पर हाथ रखे हुए सुगंधा के चेहरे को देखते रहे.

सुगंधा अपने मन में सोचने लगी कि ओह गॉड.. पापा ये क्या कर रहे हो. मेरे चूचे पे हाथ क्यों रख दिया.. उफ़ अब मैं क्या करूँ?

सुगंधा सोच ही रही थी कि क्या करूँ तभी उसके कान में जयशंकर जी की धीमी आवाज़ आई- ओह सुगंधा.. तुम अब बड़ी हो गई हो.. उफ़ तेरे जिस्म में कितनी आग है.. देखो मेरा हाथ तेरे चूचे पे रखा हुआ कैसे जल रहा है. तूने तो आज मेरी आग भड़का दी है.. काश तेरी माँ भी तेरे जैसी गर्म होती. अब मैं क्या करूँ.. कहाँ जाऊं.. कैसे अपने इस लंड को शांत करूँ.

जयशंकर जी की बात सुनकर सुगंधा को बहुत दुख हुआ और वो अपनी माँ को कोसने लगी. फिर उसने डिसाइड किया कि अब जो हो देखा जाएगा. बस वो आज तो अपने पापा को शांत करके ही सोएगी.

जयशंकर जी ने अपना हाथ वापस हटा लिया, शायद वो डर रहे थे और सुगंधा को लगा कि अब शायद वो चले जाएँगे.

सुगंधा मन में बुदबुदाने लगी- ओह गॉड पापा तो जा रहे हैं.. ऐसे तो सारी रात ये परेशान ही रहेंगे. क्या करूँ सुगंधा.. कुछ कर तू.. ओह लगता है मुझे पापा को कुछ नजारा दिखाना ही होगा.

सुगंधा ने पेट पर खुजली के बहाने टी-शर्ट को ऊपर कर दिया और थोड़ी देर खुजा कर वो शांत हो गई. मगर उसके आधे चूचे अब नंगे हो गए और जयशंकर जी उन्हें देख कर अपने होश खो बैठे.

जयशंकर- हे भगवान ये आज मेरे साथ क्या हो रहा है.. मैं जितना सुगंधा से दूर जाना चाहता हूँ, हालात मुझे इसके और करीब ला रहे हैं. अब ऐसा नजारा सामने है, मैं जाऊं या रुकूं.. क्या करूँ.

जयशंकर जी दुविधा में थे. उनका लंड तो अकड़ कर उन्हें इशारा दे रहा था कि कली सामने है और तू जा रहा है.. मसल दे. मगर दिल बोल रहा था कि नहीं वो तेरी बेटी है, ये ग़लत है.. यहाँ से जा चला जा.

जयशंकर जी अभी किसी नतीजे पे पहुँच पाते, तब तक सुगंधा ने दूसरा धमाका कर दिया.

सुगंधा ने धीरे से आँख खोल कर देखा तो जयशंकर जी खड़े हुए कुछ सोच रहे थे. सुगंधा अपने मन में बोल रही थी- लगता है पापा इतने से नहीं रुकेंगे.. कुछ और करना होगा.

सुगंधा ने फिर खुजने के बहाने से अबकी बार अपने पजामे में हाथ डाल दिया और उसे थोड़ा नीचे कर दिया यानि पजामे को बस दो इंच और नीचे करती तो उसकी चुत का दीदार उसके पापा को हो जाता. मगर सुगंधा इतना कैसे कर रही थी, ये वही जानती थी. बिना चुदे ही उसकी गांड फट रही थी. ये तो पिछले दिनों की कुछ गंदी हरकतें थीं, जो उसमें इतनी हिम्मत आ गई. फिर भी डर से उसकी साँसें तेज हो गई थीं.

अब नजारा कुछ ऐसा था टी-शर्ट पूरी ऊपर.. और पजामा नीचे सरका हुआ था, जिससे सुगंधा का पूरा पेट नंगा और आधे मम्मों की झलक दिख रही थी. इसी के साथ उसकी चुत के ऊपर का हिस्सा भी दिख रहा था. इस हालत में एक बाप अपने अन्दर के मर्द के सामने हार गया.

अब जयशंकर की आँखों में सिर्फ़ वासना नज़र आ रही थी. वो धीरे से बिस्तर पर बैठ गए और सुगंधा की टी-शर्ट को पूरा ऊपर कर दिया. अब उस कमसिन कली के 30″ के दिल को छू लेने वाले चूचे पूरे नंगे होकर जयशंकर जी के सामने थे. वो नजारा देख कर उनके होंठ सूख गए. उनका मन कर रहा था कि जल्दी से सुगंधा के पिंक निप्पलों को चूस लें, मगर वो उठ ना जाए.. ये डर भी उनके मन में था.

वो थोड़ी देर ऐसे ही उस नजारे को देखते रहे, फिर हिम्मत करके उन्होंने एक चूचे को हाथ में लिया और धीरे-धीरे उसे दबाने लगे.

सुगंधा की तो हालत खराब थी, वो मुँह को कसके भींचे हुए पड़ी थी कि उसकी कहीं सिसकी ना निकाल जाए.

जयशंकर जी को लगा कि सुगंधा गहरी नींद में है, तो वो थोड़ा खुलकर उसके मम्मों को सहलाने लगे.. उसके निप्पलों को छेड़ने लगे. थोड़ी देर ऐसा करने के बाद उन्होंने एक निप्पल अपने मुँह में ले लिया और उसे चूसना शुरू किया. मगर ये कुछ ज़्यादा हो रहा था और सुगंधा के लिए अब अपने आपको रोक पाना मुश्किल था. वो नींद में फिर खुजाने के बहाने हिली और उसने अपनी टी-शर्ट को नीचे कर दिया. इस हरकत के कारण जयशंकर जी फ़ौरन उससे अलग हो गए.

सुगंधा- ओह गॉड.. ये पापा तो कुछ ज़्यादा ही गर्म हो गए हैं.. अब क्या करूँ ऐसे तो इन्हें पता लग जाएगा कि मैं उठी हुई हूँ.. हे भगवान कोई आइडिया दो.. मैं कैसे इन्हें शांत करूँ.

जयशंकर जी थोड़ी देर वैसे ही शांत बैठे रहे.. जब उनको लगा सुगंधा शांत है. तो उन्होंने अबकी बार सुगंधा का पजामा धीरे से नीचे किया और उसकी चुत को देख कर हल्के से बोल पड़े- वाह, क्या मस्त चुत है तेरी सुगंधा.. कोई नसीब वाला ही होगा जिसे तू मिलेगी. अब तूने मेरी आग तो भड़का दी है.. मगर इस लंड को कैसे शांत करूँ. तेरे साथ ज़्यादा कुछ कर भी नहीं सकता, तू जाग गई तो बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी.

जयशंकर जी बड़बड़ा रहे थे मगर अबकी बार सुगंधा ने एकदम ध्यान दिया तो उसे सब समझ आ गया. तभी उसके दिमाग़ में एक आइडिया आया और वो नींद में बोलने लगी.

सुगंधा- उम्म्म टीना प्लीज़, मुझे भी आईसक्रीम चूसनी है.. उम्म दो ना प्लीज़..

सुगंधा ने अपना मुँह खोल दिया था जयशंकर जी ने सोचा नींद में अपनी सहेली के साथ बात कर रही है. सुगंधा का खुला हुआ मुँह देख कर जयशंकर जी से रहा नहीं गया, वो उसके पास खड़े हो गए और धीरे से अपना सुपारा उसके होंठों पर टिका दिया.

सुगंधा तो ऐसे ही किसी मौके की तलाश में थी. उसने सुपारे को चाटना शुरू किया और मुँह में पूरा लंड लेने की कोशिश करने लगी, मगर जयशंकर जी का लंड काफ़ी मोटा था और सुगंधा नींद में थी तो ऐसे कैसे ले लेती. इससे तो उसकी चोरी पकड़ी जाती मगर उसका ये काम उसके पापा ने आसान कर दिया.

जयशंकर जी ने लंड पर दबाव बनाया और सुपारा उसके मुँह में घुसा दिया. अब सुगंधा धीरे-धीरे अपने पापा का लंड चूसने लगी.

जयशंकर- आह.. सुगंधा तेरी आईसक्रीम के चक्कर में तू अपने पापा का लंड चूस रही है.. उफ्फ बहुत मज़ा आ रहा है.

ये खेल आगे चलता.. इससे पहले एक गड़बड़ हो गई.. बाहर जोर की आवाज़ हुई शायद कोई बर्तन गिरा था और उस आवाज़ के होते ही जयशंकर जी ने जल्दी से लंड मुँह से निकाला और लुंगी में डाल लिया.

ना चाहते हुए भी सुगंधा की आँख खुल गई, शायद घबराहट की वजह से ऐसा हुआ था. मगर उसकी आँखें खुलीं तो सीधे जयशंकर जी की आँखों से मिल गईं. अब सुगंधा का दिमाग़ कंप्यूटर की तरह चलने लगा. एक ही पल में उसने बात को संभाल लिया.

सुगंधा ने एक जोरदार अंगड़ाई ली, जैसे वो बहुत गहरी नींद से जागी हो.

सुगंधा- उम्म्म उम्म्म पापा.. क्या हुआ इतनी जोर से आवाज़ आई.. मैं डर गई कैसी आवाज़ थी ये? और आप अभी तक यहीं हो.. मुझे कब नींद आई, पता भी नहीं चला.

जयशंकर- अरे कुछ नहीं बिल्ली होगी शायद.. तू सो जा.. मैं जाकर देखता हूँ.

सुगंधा- पापा मुझे डर लग रहा है.. प्लीज़ आप देख कर वापस आ जाना. मैं सो जाऊं फिर आप चाहें तो चले जाना.

जयशंकर- अच्छा ठीक है.. तू रुक, मैं बाहर देख कर आता हूँ.

जयशंकर जी बाहर चले गए और सुगंधा बिस्तर पे बैठ गई.

सुगंधा- शिट.. ये क्या किया मैंने.. मुझे ऐसे अचानक आँख नहीं खोलनी चाहिए थी. कहीं पापा को कुछ शक हो गया तो..! अब क्या करूँ वैसे पापा का लंड काफ़ी मोटा है शायद.. इसी लिए मेरे मुँह में नहीं जा रहा था. काश एक बार में देख पाती. अब पापा वापस आएँगे तो क्या करूँ.. कैसे उनको शांत करूँ, कुछ समझ में नहीं आ रहा.

तभी..

जयशंकर- मैंने कहा था ना बिल्ली होगी. उसको मैंने भगा दिया. चल अब तू सो जा, रात बहुत हो गई है. मैं अपने कमरे में जाता हूँ.. नहीं तेरी माँ उठेगी और मुझे वहां नहीं देखेगी तो घबरा जाएगी.

सुगंधा की ज़रा भी हिम्मत नहीं हुई कि वो कुछ बोले या उन्हें रुकने को कहे. उसने बस 'हाँ' में गर्दन हिला दी और चादर लेकर सो गई.

जयशंकर जी ने कुछ सोचा, फिर वो भी कमरे में चले गए. अब उनको कहाँ नींद आने वाली थी. बस बार-बार सुगंधा के चूचे और चिकनी चुत ही उन्हें दिखाई दे रही थी. उनका लंड बैठने का नाम नहीं ले रहा था. वो उठे और एक बार सुगंधा के कमरे के पास जाकर रुके, जब उन्हें लगा सुगंधा सो गई तो वो टॉयलेट में जाकर लंड को सहलाने लगे.

अब आपको बता दूँ कि सुगंधा भी सोयी नहीं थी, वो भी उन्हीं पलों को याद कर रही थी. तभी उसे अहसास हुआ कि कमरे के बाहर कोई है तो वो सोने का नाटक करने लगी. जब जयशंकर जी टॉयलेट में चले गए, तो वो धीरे से कमरे से बाहर आई और टॉयलेट के पास जाकर रुक गई.

जयशंकर जी अन्दर बैठे अपने लंड को सहला रहे थे और सुगंधा को याद कर रहे थे.

जयशंकर- आह.. सुगंधा बेटी... ये तूने क्या कर दिया.. उफ्फ तेरे हुस्न को देख कर आज तेरा बाप पागल हो गया. देख लंड कैसे अकड़ा हुआ है.. उफ्फ मैं तेरे होंठों का स्पर्श अभी तक महसूस कर रहा हूँ.. आह.. आह.. चूस ले सुगंधा.. जोर से चूस आह.. मज़ा आ रहा है.

अपने पापा के मुँह से अपने बारे में ऐसी गंदी बातें सुनकर सुगंधा भी उत्तेजित हो गई और उसने वहीं खड़ी रह कर अपने पजामे को नीचे किया. अब वो अपनी चुत को उंगली से रगड़ने लगी थी.

अब सीन देखिए.. अन्दर बाप और बाहर बेटी वासना की आग में जल रहे थे.

काफ़ी देर तक जयशंकर जी सुगंधा के नाम की मुठ मारते रहे और आख़िर उनके लंड ने पानी छोड़ ही दिया, इधर सुगंधा भी झड़ चुकी थी. उसका पूरा हाथ रस से भीग गया था. उसने जल्दी से पजामा ऊपर को किया और जल्दी से अपने कमरे में जाकर लेट गई.

सुगंधा- उफ्फ ये मुझे क्या हो गया था. मैं कैसे बाहर अपनी चुत को रगड़ रही थी. अगर माँ आ जातीं तो सस्स.. आज पानी निकालने में इतना मज़ा क्यों आया.. क्या पापा के बारे में सोच कर? नहीं नहीं.. ये ग़लत है. मुझे बस पापा को किसी और के साथ सेक्स करने के लिए तैयार करना है, इससे ज़्यादा कुछ नहीं.

सुगंधा ऐसे ही सोचती हुई सो गई और उधर जयशंकर जी पानी निकालने के बाद भी शांत नहीं हुए. वो बस रात भर सुगंधा के बारे में सोचते रहे और आख़िरकार उन्हें भी नींद ने अपने आगोश में ले लिया.

सुबह का सूरज क्या नई कहानी लेकर आएगा, ये तो सुबह ही पता लगेगा.

रोज की तरह जयशंकर जी जल्दी उठ गए और चाय पी रहे थे. जब बहुत देर तक सुगंधा अपने कमरे से बाहर नहीं आई.

जयशंकर- अरे आज सुगंधा नहीं उठी क्या.. उसको कॉलेज नहीं जाना क्या?

मम्मी- आपकी याददाश्त कमजोर हो गई है.. बादाम खाया करो, आज सनडे है और सनडे को कौन सा कॉलेज खुलता है?

जयशंकर- अरे हाँ.. याद आया. कल शाम तक तो याद था कि आज दुकान का माल आने वाला है, अभी पता नहीं कैसे भूल गया.

मम्मी- आज भी आप दुकान जाओगे क्या? मैं सोच रही थी कि आज मैं माता के मंदिर होकर आऊँगी.

जयशंकर- तो मुझसे तुझे क्या काम है.. चली जाना, किसने रोका है?

मम्मी- अरे सुगंधा भी तो घर पर है, अब लड़की को अकेली छोड़ कर जाऊं क्या?

जयशंकर- अरे तो मैं कौन सा शाम तक रहूँगा.. बस अभी गया और अभी आया. सामान की लिस्ट चैक करनी है, बाकी तो आदमी देख लेंगे.

मम्मी- ठीक है जी.. आप होकर आ जाओ, तब तक मैं अपना काम निपटा लेती हूँ और अपनी लाड़ली को भी उठा दो.. ताकि उसे भी नाश्ता करवा दूँ.

सुगंधा को उठाने की बात सुनकर जयशंकर जी के जिस्म में करंट दौड़ गया. उन्हें रात वाली बात याद आ गई, वो उठे और सुगंधा के कमरे में चले गए. उस वक़्त सुगंधा सीधी लेटी हुई थी. उसके बाल चेहरे पर थे और सांस के साथ सीना ऊपर-नीचे हो रहा था.

ये नजारा देख कर जयशंकर जी का मन डोल गया, वो उसके पास बैठ गए- सुगंधा उठ जाओ, सुबह हो गई है.

सुगंधा ने कोई रेस्पॉन्स नहीं दिया, वो वैसे ही बेसुध सोई रही. तब जयशंकर जी ने थोड़ी हिम्मत करके उसके मम्मों पे हाथ लगाया और धीरे से दबा दिया.. जिससे सुगंधा की नींद टूट गई और वो उठ गई. जयशंकर जी ने जल्दी से हाथ हटा लिया.

सुगंधा- उउउह क्या है.. पापा सोने दो ना.. आज छुट्टी है. आज तो मेरा बस सोने का मन कर रहा है.

जयशंकर- बच्चे तेरी माँ को मंदिर जाना है. तू उठ जा, नाश्ता कर ले. फिर मुझे भी दुकान जाना है.

सुगंधा उठ कर बैठ गई और उसने एक जोरदार अंगड़ाई ली और अपने पापा से लिपट गई- पापा, आप कितने अच्छे हो.. रात को अपने कितने प्यार से मुझे सुलाया.. मुझे बहुत अच्छी नींद आई.

जयशंकर- अच्छा ऐसी बात है.. तो मैं रोज तुझे ऐसे सुला दूँगा, चल अब उठ जा.

सुगंधा- पापा, आज दुकान मत जाओ ना. माँ भी जा रही हैं, मैं अकेली क्या करूँगी.

जयशंकर- अरे मैं अभी जाकर जल्दी आ जाऊंगा.. बस सामान की लिस्ट देखनी है.. फिर पूरा दिन तेरे साथ ही रहूँगा.

जयशंकर जी के दिमाग़ में अभी भी कोई विचार नहीं आया था. वो बाहर जाकर वापस कुर्सी पे बैठ गए. सुगंधा जल्दी बाहर आ गई उसके बाद नाश्ता किया और अपनी माँ का हाथ बंटाने लगी.

जयशंकर जी वहां से निकल गए.

सुगंधा ने मेनडोर अनलॉक किया हुआ था और खिड़की से छुपकर वो अपने पापा के आने का इन्तजार कर रही थी.

सुगंधा- ओह पापा कहाँ रह गए, आ जाओ ना जल्दी से.. आपके लिए अभी तक मैं नहाई भी नहीं हूँ. आज मैं आपको अपना जिस्म दिखाना चाहती हूँ. मैं आपकी सोई हुई अन्तर्वासना आज जगा दूँगी. फिर आप किसी को भी चोदने को राज़ी हो जाओगे.

सुगंधा ये बातें सोच ही रही थी तभी उसे पापा आते हुए दिखाई दिए. वो जल्दी से भाग कर अपने कमरे के बाथरूम में चली गई और अपने कपड़े निकाल दिए.

जैसा सुगंधा ने सोचा, ठीक वैसा ही हुआ. जयशंकर जी अन्दर आए और बिना आवाज़ किए वो सीधे सुगंधा के कमरे में आ गए. शायद उनके मन में भी चोर था. सुगंधा ने की-होल से उन्हें आता देखा तो पानी का शावर चालू कर दिया और मज़े से गुनगुनाते हुए नहाने लगी.

जयशंकर जी धीरे से की-होल के पास बैठ गए और जैसे ही उन्होंने अन्दर देखा, उनका लंड एक झटके में खड़ा हो गया.. जैसे कोई बरसों का प्यासा हो.

सुगंधा के जवान जिस्म को देख कर जयशंकर जी के अन्दर वासना भर गई. उनका दिल करने लगा कि अभी अन्दर जाकर उसके खड़े निपल्स को चूस के उसके मदमस्त चूचों को मसल डालें और उसकी कुँवारी चुत का सारा रस पी जाएं. मगर बीच में जो बाप और बेटी के रिश्ते की दीवार थी.. उसको कैसे तोड़ें.

जयशंकर जी ने अपना लंड बाहर निकाल लिया और सुगंधा की सुलगती जवानी को देखते हुए वो लंड को सहलाने लगे.

सुगंधा को पता था कि बाहर उसके पापा उसकी जवानी का मज़ा लूट रहे हैं. ये सोचकर उसके निप्पल हार्ड हो गए, चुत में खुजली होने लगी मगर उसने अपने आप पर काबू रखा. सुगंधा ये बिल्कुल नहीं चाहती थी कि अपने पापा के सामने वो चुत को रगड़े या कुछ ऐसी हरकत करे, जिससे उसके पापा उसे गंदी लड़की समझें. वो तो बस अनजान बन कर अपने पापा को मज़े देना चाहती थी.

जब सुगंधा नहा चुकी तो उसने अपने जिस्म को अच्छे से पौंछा और सिर्फ़ टॉवल लपेट कर वो बाहर आ गई. तब तक जयशंकर जी वहां से बाहर निकल गए थे और फिर उन्होंने बाहर से सुगंधा को आवाज़ दी, जैसे वो अभी-अभी घर में दाखिल हुए हों.

जयशंकर- सुगंधा कहाँ हो तुम? देखो मैं जल्दी आ गया ना.

सुगंधा ने कोई जवाब नहीं दिया और बस मुस्कुराते हुए धीरे से बोली- वाह पापा, मेरे जिस्म को देख कर आँखें सेंक ली, अब बहाना बना रहे हो. वैसे आपका लंड भी तो मेरी चुत की तरह फड़क रहा होगा, उसे तो मैं ही अपने मुँह से चूस-चूस कर ठंडा करूँगी. देखना आप.

सुगंधा- मैं नहा रही थी पापा.. बस अभी कपड़े पहन कर आती हूँ.

जयशंकर- अरे घर में ही तो रहना है, कपड़े पहनने की क्या जरूरत है.

जयशंकर जी को पता नहीं क्या हो गया था. वो कुछ भी बोल रहे थे मगर फ़ौरन उन्हें अहसास हुआ तो बात बदल दी.

जयशंकर- एमेम... मेरा मतलब है जल्दी से कुछ भी पहन ले.. कोई घर में पहनने लायक कपड़े.. समझ गई ना..!

सुगंधा- ओके पापा, बस अभी एक मिनट में आई.

सुगंधा ने अपने कपड़ों में से एक कॉटन की मैक्सी निकाली और पहन ली. इसके अन्दर उसने कुछ नहीं पहना था.

सुगंधा- ये लो आ गई. पापा इस मैक्सी में मैं कैसी लग रही हूँ?

जयशंकर- वाह बहुत अच्छी लग रही हो मगर ये तो वो पुरानी वाली है ना?

सुगंधा- हाँ पापा मगर ये पतली है.. तो इसमें आराम रहता है और वैसे भी आज मैंने ये बहुत दिनों बाद पहनी है.

जयशंकर- अच्छी बात है.. बैठ कर बातें करेंगे.

सुगंधा- पापा पहले आप कपड़े तो बदल लो, ऐसे पैन्ट पहन कर काम करोगे क्या?

जयशंकर जी को लगा सुगंधा सही बोल रही है और वैसे भी उनका इरादा उसके मज़े लेने का था तो पैन्ट में मज़ा नहीं आता, इसलिए वो अन्दर गए और सिर्फ़ लुंगी और बनियान पहन कर आ गए, उसके बाद बाथरूम का लॉक लगा दिया.

जयशंकर- ले भाई, ये काम तो हो गया, अब बोल?

सुगंधा- पापा, पहले आप मेरे साथ कितना रहते थे मगर अब तो आप बहुत बिज़ी रहते हो.. मेरे साथ खेलते ही नहीं.

जयशंकर- अरे मेरा तो बड़ा मन है तेरे साथ खेलने का.. मगर डर लगता है.

सुगंधा- कैसा डर पापा..? मैं आपकी बात का मतलब कुछ समझी नहीं.

जयशंकर- व्व..वो मेरा मतलब है तुझे कोई चोट ना लग जाए इसलिए.

सुगंधा- हा हा हा हम कौन सा कुश्ती लड़ने वाले हैं जो चोट लगेगी.

जयशंकर- हाँ ये भी है. चल आज तेरे मन की बात पूरी करते हैं, बोल क्या खेलेगी?

सुगंधा सोचने लगी कि ऐसा कौन सा खेल खेले, जिससे वो पापा को मज़ा दे सके और उनका लंड भी देख सके. रात से उसके मन में ख्याल था कि पापा का लंड कैसा होगा.

सुगंधा- कुछ समझ में नहीं आ रहा पापा क्या खेल खेलूँ.

जयशंकर- अरे अभी तो बोल रही थी खेलते नहीं. अब खुद ही सोच में पड़ गई. चल ऐसा कर मैं तुझे गोदी में बिठा कर झूला झुला देता हूँ और तेरे सर की मालिश भी कर दूँगा. बोल क्या कहती है.

सुगंधा मन में- अच्छा पापा बड़ी जल्दी है आपको मज़ा लेने की.. मेरी चुत से लंड टच करना चाहते हो क्या.

जयशंकर- अरे कुछ तो बोल.. हाँ या ना.. ऐसे पुतला बन कर क्यों खड़ी हो गई..?

जयशंकर जी की बात सुनकर सुगंधा के दिमाग़ में एक आइडिया आया- वाउ पापा क्या आइडिया दिया है, ये मस्त है इसमें मज़ा आएगा.

जयशंकर- अरे क्या आइडिया आया मुझे भी बता.

सुगंधा- पापा हम एक खेल खेलते हैं जिसमें एक पुतला बन जाएगा और दूसरा उसके जिस्म से छेड़खानी करेगा, लेकिन उसको हिलना नहीं है. वो सिर्फ़ बोल सकता है. ये टाइम देख कर खेलेंगे जो ज़्यादा देर तक टिका रहा, वो जीत जाएगा और हारने वाले की बात मानेगा.

जयशंकर- नहीं नहीं, इसमें कुछ मज़ा नहीं आएगा थोड़ी सी गुदगुदी की और खेल खत्म.. कुछ और सोच, जिसमें मज़ा आए.

सुगंधा ने थोड़ी देर सोचा मगर उसके दिमाग़ में कोई आइडिया नहीं आया, जिससे वो खेल के बहाने पापा को मज़ा दे सके. साथ ही जयशंकर जी भी इसी सोच में थे कि कैसे वो सुगंधा को लंड चुसवाए, उनके दिल में बस यही बात थी कि एक बार सुगंधा उनका लंड चूस दे और वो उसके निपल्स चूस सकें.

सुगंधा- मुझे तो कुछ समझ नहीं आ रहा आप सोचो, मुझे तो भूख लगने लगी है. मैं फ़्रीज़ से केला लेकर आती हूँ. आपको भी एक लाकर दूँ क्या.

जयशंकर जी सुगंधा के पास गए और उसके चेहरे को पकड़ कर मुस्कुराने लगे.

सुगंधा- क्या हुआ? केला चाहिए आपको भी?

जयशंकर- नहीं सुगंधा मेरे दिमाग़ में एक खेल आ गया है. तू ये बता अगर केला खाने की वजह चूसा जाए तो कैसा लगेगा?

सुगंधा- हा हा हा पापा, आप भी ना कुछ भी.. ये कैसा खेल हुआ? भला कोई केला भी चूसने की चीज है क्या?

जयशंकर- अरे पगली पता है मुझे.. मगर ये एक खेल है. अच्छा सुन तुझे मैं ठीक से समझाता हूँ. देख इस खेल में आँखें और हाथ बंद होंगे. मैं तुझे फ़्रीज़ की कोई भी चीज जैसे केला हो या कोई सब्जी जैसे भिंडी या तुरयी, कुछ भी मुँह में दूँगा. तू उसे चूस कर बताना वो क्या है?

जयशंकर जी की बात सुनकर सुगंधा की आँखों में चमक आ गई, वो समझ गई इस खेल में उसे लंड चूसने को मिलेगा और साथ ही साथ वो अपने पापा की होशियारी पर फिदा हो गई. मगर उसे थोड़ा शक हुआ अगर जयशंकर जी ने लंड ना चुसवाया तो फिर उसने भी दिमाग़ दौड़ाया और फिर बोली- वाओ पापा, ये गेम तो बहुत मस्त सोचा आपने, मगर फ़्रीज़ में क्या-क्या है ये तो मुझे पता है. फिर सब्जी की तो खुशबू से ही पता लग जाएगा कोई ऐसी चीज चूसने को देना, जिसका आसानी से पता ना लग सके. जैसे पेन या पेन्सिल या कोई भी ऐसी चीज जिसका अंदाज़ा लगाना मुश्किल हो. हाँ साथ में सब्जी भी यूज करना ताकि कन्फयूजन रहे और खेल लंबा चले.