आखिर बेटी ने पापा से चुदवा ही लिया

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सुगंधा ने थोड़ी देर सोचा, उसके बाद वो उठी और उसने अपनी नई ब्रा और पेंटी का सैट पहना, उसके बाद अपने रोज वाले नाइट के कपड़े पहन लिए और अपने पापा का इन्तजार करने लग गई.

आग तो दोनों तरफ़ बराबर लगी हुई थी. जैसे ही मम्मी सोई, जयशंकर जी उठे और सीधे सुगंधा के कमरे में चले गए. उस वक़्त रूम की लाइट भी जली हुई थी और सुगंधा पेट के बल लेटी हुई थी.

जयशंकर- क्या तुम सुगंधा सो गईं?

सुगंधा- नहीं पापा आपका ही वेट कर रही थी. आ जाओ ना अन्दर.. आप ऐसे दरवाजे पर क्यों खड़े हो गए हो!

जयशंकर जी ने दरवाजा बंद किया और सुगंधा के पास आकर बैठ गए.

सुगंधा- पापा आप बहुत अच्छे हो, मुझे सुलाने के लिए आ गए.

जयशंकर- अरे आता कैसे नहीं.. तू मेरी जान है, तेरे लिए तो मैं कुछ भी कर सकता हूँ.

सुगंधा- थैंक्स पापा.. चलो मेरा सर दबाओ, मुझे आपका दबाना अच्छा लगता है.

जयशंकर जी शुरू हो गए मगर सुगंधा को सर थोड़ी दबवाना था, वो तो आज कुछ और ही दवबाने के मूड में थी. थोड़ी देर बाद उसने अपना नाटक शुरू कर दिया. सुगंधा ज़ोर से उछली और अपने सीने पर खुजाने लगी.

जयशंकर- अरे क्या हुआ.. क्या तुझे फिर खुजली हो रही है?

सुगंधा- आह.. सस्स ये सुबह से ही हो रही है. लगता है चींटी ख़तरनाक थी.. उसका जहर अभी तक असर कर रहा है.

जयशंकर- मैंने कहा भी था कि मुझे देखने दे. मगर तू नहीं मानी अब ये ज़्यादा हो गया ना.. चल अब मुझे देखने दे. उसके काटने से कोई दाद-वाद तो नहीं हो गई.?

सुगंधा- नहीं पापा रहने दो, मैं खुजा रही हूँ ना.. अब इस वक्त कौन सा मेरे हाथ पर आटा लगा हुआ है.

जयशंकर- बात तेरे हाथ की नहीं है, तू कैसे देख पाएगी. अब बहस मत कर, मैं ठीक से देख लेता हूँ.

सुगंधा- ठीक है पापा आप ही देख लो.

जयशंकर जी ने जैसे ही टी-शर्ट ऊपर की तो उनको सुगंधा की लाल ब्रा नज़र आई और उनके अरमान पानी-पानी हो गए.

जयशंकर- अरे तूने अन्दर पहन लिया. अब मैं कैसे देखूँ?

सुगंधा- व्व..वो पापा सुबह आपने ही तो कहा था. इसलिए मैंने..

जयशंकर- तू एकदम पागल है.. अरे बेटा जब बाहर जाओ, तब पहनने के लिए कहा था. रात को सोने के टाइम नहीं पहनते, इससे भी खुजली होती है और शरीर को हवा नहीं मिलती. रात को तो ऊपर-नीचे एकदम खुलकर सोना चाहिए. तू मेरी बात को समझ रही है ना?

सुगंधा- हाँ पापा, समझ रही हूँ सॉरी मैं ठीक से समझी नहीं थी. कल से में पहन कर नहीं सोऊंगी.

जयशंकर- अरे कल से क्यों? अभी निकाल दे ना.. और हाँ तूने वो कपड़ों के साथ रात में पहनने के लिए वो नाइट ड्रेसिज ली थीं ना.. वो क्यों नहीं पहनती, उनमें ज़्यादा आराम रहता है और जिस्म को हवा भी मिलती है.

सुगंधा अपने मन में कहने लगी- वाह पापा मानना पड़ेगा आपको.. बिना ब्रा-पेंटी की वो सेक्सी नाइटी मुझे पहनाना चाहते हो ताकि मेरे मज़े खुल कर ले सको.

जयशंकर- तू अब क्या सोच रही है?

सुगंधा- कुछ नहीं पापा.. कल से मैं सोने के टाइम वही पहन लूँगी.

जयशंकर- अरे तू कल पर क्यों अटकी हुई है. चल अभी पहन. मैं भी तो देखूं मेरी बेटी मॉर्डन कपड़ों में कैसी लगती है.

सुगंधा- ठीक है पापा आपकी इच्छा यही है तो मैं अभी पहन कर आती हूँ.

सुगंधा ने अलमारी से नाइटी ली और बाथरूम में चली गई. वहां वो एकदम नंगी हो गई और अपने मम्मों पे हाथ घुमा कर बड़बड़ाने लगी- ओह पापा.. आपने मुझे अपना दीवाना बना लिया है. आज ये चूचे आपके हाथों के स्पर्श के लिए मचल रहे हैं. आज तो मैं आपको भरपूर मज़ा दूँगी और आपका लंड रस आज वेस्ट नहीं होने दूँगी.. पूरा पी जाऊँगी.

थोड़ी देर तक सुगंधा अपने आपसे बात करती रही, फिर जब वो नाइटी पहन कर बाहर आई तो जयशंकर जी तो बस उसको देखते ही रह गए. सुगंधा ने एक ब्लैक शॉर्ट नाइटी पहनी थी जो उसको घुटनों से भी ऊपर थी और उस काली नाइटी में उसका गोरा बदन बड़ा ही मनमोहक नज़र आ रहा था. बिना ब्रा के उसके चूचे आधे से ज़्यादा बाहर झाँक रहे थे.

जयशंकर तो सांस रोके उस वासना की मूरत को घूरे जा रहे थे. सुगंधा उनके एकदम पास आकर खड़ी हो गई- क्या हुआ पापा, मैं इन कपड़ों में कैसी लग रही हूँ?

जयशंकर- बहुत सुन्दर तू एकदम किसी अप्सरा की तरह लग रही है.

सुगंधा ने थैंक्स कहा और अपने पापा से लिपट गई और जानबूझ कर वो उनसे ऐसे चिपकी कि उसके चूचे जयशंकर के सीने में धँस जाएं. इस वक्त सुगंधा अपने पापा का लंड अपनी नाभि पे महसूस कर रही थी, जो एकदम अकड़ा हुआ था.. जैसे अभी उसके पेट को फाड़ देगा.

जयशंकर- चल अब तू लेट जा, मैं तुझे सुला देता हूँ और वो तुझे चींटी ने किधर काटा था, वो भी देखता हूँ.

सुगंधा- नहीं पापा रहने दो.. आप कैसे देखोगे.. इसको ऊपर करना पड़ेगा और मैंने अब नीचे कुछ पहना भी नहीं है.

जयशंकर- अरे मैं तेरा पापा हूँ, तू ऐसे क्यों बोल रही है और इसको उठाने की जरूरत नहीं मैं ऊपर से ही देख लूँगा.. ठीक है.

सुगंधा- नहीं पापा मुझे शर्म आएगी. आप ऐसा करो कि लाइट बंद करके देख लो.

जयशंकर- लो कर लो बात.. अंधेरा होने के बाद मैं कैसे देख सकता हूँ. मुझे तुमने उल्लू समझा है, जो अंधेरे में देख सकूं?

सुगंधा- हा हा हा हा पापा आप भी ना.. अच्छा ठीक है. मैं आँखें बंद कर लेती हूँ आप प्लीज़ जल्दी से देख लेना.

जयशंकर- अच्छा ठीक है.. चल तू आराम से लेट जा, मैं देखता हूँ.

सुगंधा सीधी लेट गई और अपनी आँखों पर हाथ लगा लिए.

बस जयशंकर जी को और क्या चाहिए था, उन्होंने ऊपर से जो डोरी बंधी थी.. उसको खोला तो सुगंधा का पूरा सीना साफ नज़र आने लगा. जयशंकर सुगंधा के सीने पर बड़े प्यार से हाथ घुमा कर मज़ा लेने लगे. वो थोड़ा दबा भी रहे थे, कभी निपल्स को उंगली और अंगूठे से दबा देते.

सुगंधा- आह.. सस्स पापा.. आराम से देखो ना.. दुख़्ता है आह.. सस्स धीरे.

जयशंकर- अरे इनको इनको ऊपर-नीचे करके देखने दे. मैं ठीक से देख रहा हूँ कि कहाँ-कहाँ काटा है.. समझी.

जयशंकर जी तो बस अपनी बेटी के मम्मों को दबा कर मज़ा ले रहे थे. उन पर वासना सवार हो गई थी. जयशंकर जी का लंड लुंगी में तंबू बना चुका था, उनकी आँखें लाल हो गई थीं.

सुगंधा- क्या हुआ पापा.. देख लिया क्या मुझे दर्द हो रहा है.

जयशंकर- हाँ देख लिया.. बहुत जगहों पे काटा है.. लाल सुगंधान हो गए हैं.

सुगंधा- ओह.. गॉड अब क्या होगा पापा इनमें तो बहुत खुजली होगी ना?

जयशंकर- ऐसे कैसे होगी.. मैं किस लिए हूँ.. अभी मैं इसका सब इलाज कर दूँगा.

सुगंधा- आप इलाज कैसे करोगे पापा?

जयशंकर- बेटी दवा से कुछ नहीं होगा. मैं देसी तरीके से ठीक करूंगा.

सुगंधा- कौन सा तरीका मुझे तो बताओ पापा.

जयशंकर- मैं इन सुगंधानों को चूस कर चींटी का सारा जहर निकाल दूँगा, फिर तुझे इनमें खुजली नहीं होगी.

सुगंधा- नहीं पापा रहने दो, मुझे ये सब अच्छा नहीं लग रहा और मुझे शर्म भी बहुत आ रही है. आपके सामने मैं ऐसे पड़ी हुई हूँ, नहीं नहीं.. जाने दो.

जयशंकर- अरे जाने कैसे दूँ.. ये बहुत ख़तरनाक है. अभी खुजली होगी फिर एलर्जी हो जाएगी. मैं तेरा पापा हूँ कोई गैर नहीं.. मुझसे कैसी शर्म!

सुगंधा- अच्छा पापा कर दो मगर प्लीज़ लाइट बंद कर दो ना प्लीज़.. मुझे शर्म आ रही है.

जयशंकर जी ने सुगंधा की बात मान ली, वैसे अंधेरा होने में उनका ही फायदा था. वो खुलकर मज़े ले सकते थे और बाप-बेटी के बीच ये परदा भी बना रहता.

जयशंकर जी ने लाइट बंद कर दी और वो सुगंधा के मम्मों पर भूखे कुत्ते की तरह टूट पड़े. मम्मों को दबाने लगे, निप्पलों को बारी-बारी से चूसने लगे, जिससे सुगंधा की उत्तेजना बढ़ने लगी. वो बस मादक सिसकारियां लेकर मज़ा लेने लगी.

सुगंधा- आह.. सस्स पापा.. आह.. अच्छा लग रहा है. उई काटो मत ना.. आह.. हाँ ऐसे ही आह.. आराम से चूसो उफ्फ आह...

काफ़ी देर तक जयशंकर जी अपनी बेटी के मम्मों को चूसते रहे. अब तो सुगंधा की चुत भी पानी टपकाने लगी थी. वो एकदम गर्म हो चुकी थी और यही हाल जयशंकर जी का भी था. उनका लंड अकड़ कर दर्द करने लगा था.

जब सुगंधा से बर्दाश्त नहीं हुआ तो उसने दूसरा दांव खेला, जो जयशंकर जी के लिए भी फायदेमंद साबित हुआ.

सुगंधा- आह.. पापा बस भी करो.. अब ठीक हो गया है. मुझे बहुत बेचैनी हो रही है.

जयशंकर जी समझ गए ये उत्तेज़ित हो गई है और इसकी चुत रिस रही होगी.

जयशंकर- कैसी बेचैनी बेटा.. मुझे ठीक से बता ना.. मैं सब कुछ ठीक कर दूँगा.

सुगंधा- पापा व्व..वो वो शायद चींटी ने मेरे पैरों के ऊपर भी काटा है.. वहां भी खुजली हो रही है.

जयशंकर- पैरों पर कहाँ? बता मुझे मैं अभी चूस कर ठीक कर देता हूँ.

सुगंधा खुलकर बोल नहीं सकती थी कि मेरी चुत को चाटो, वहां बेचैनी हो रही है और जयशंकर जी अच्छी तरह जानते थे कि उनको कहाँ चूसना है. मगर ये शर्म का झूठा परदा भर दोनों ने लगाया हुआ था.

सुगंधा- अब आपको कैसे बताऊं पापा.. वो नीचे मेरा मतलब पैरों के ऊपर एकदम वहां..

जयशंकर- अच्छा अच्छा वहां.. मैं समझ गया, तू रहने दे. बस अपने पैरों को थोड़ा खोल दे, मैं अभी ठीक कर देता हूँ.

सुगंधा ने नाइटी ऊपर कर दी और घुटनों को मोड़कर अपनी चुत जयशंकर जी के सामने खोल दी.

वैसे तो कमरे की लाइट बंद थी मगर बाहर से हल्की रोशनी अन्दर आ रही थी और उसने सुगंधा की चुत एकदम चमक रही थी. चूंकि उसकी चुत का रस बहकर चुत पर फैल गया था और अंधेरे में चमक फैला रहा था. सुगंधा की चुत से भीनी भीनी खुशबू आ रही थी, जो जयशंकर जी को और पागल बना रही थी.

जयशंकर जी ने पहले तो उसकी जाँघों को चूमा-चाटा, उसके बाद वो सीधे चुत को चूसने में लग गए.

सुगंधा- आह.. सस्स पापा.. आह.. यहीं बहुत खुजली हो रही है.. उफ्फ आह.. आह...

जयशंकर जी तो खुद चुत के आशिक थे. अब तो सुगंधा ने उनको खुला निमन्त्रण दे दिया था. वो बड़े मज़े से चुत को चूसने लगे.

चुत चूसते हुए उनको एक ख्याल आया कि ये जो हो रहा है, सुगंधा जानबूझ कर तो नहीं करा रही ना. कहीं वो अपनी उंगली से चुत को चोदती होगी या किसी लड़के के साथ कहीं चुदवा तो नहीं ली. बस यही ख्याल उनके मन में घूमने लगा.

अब जयशंकर जी कभी अपनी जीभ से चुत को कुरेदते, अपनी जीभ की नोक चुत में घुसेड़ने की कोशिश करते और एक बार तो उन्होंने उंगली चुत में घुसाने की कोशिश भी कि जिसका परिणाम जल्दी उनके सामने था.

सुगंधा- ओह पापा.. क्या कर रहे हो आह.. सस्स दुख़्ता है ना.. बस चूस के दर्द दूर कर दो.. आप हाथ मत लगाओ.

सुगंधा की चीख उनके लिए ये इशारा थी कि वो एकदम अनछुई कली है. अब वो और जोश में चुत चुसाई करने लगे. परिणाम स्वरूप अब सुगंधा अपने चरम पे पहुँच गई थी. सुगंधा ने अपनी चुत उठा कर अपने पापा के मुँह से लगा दी- आह.. पापा सस्स.. आह.. ज़ोर से यहीं चींटी ने काटा था आह.. जल्दी आह.. बहुत तेज खुजली हो रही है.

जयशंकर जी समझ गए कि ये अब झड़ने वाली है. वो चुत के होंठों को अपने मुँह में भरकर ज़ोर-ज़ोर से चूसने लगे और सुगंधा का रस बह गया, जिसे जयशंकर जी ने चाट कर साफ कर दिया. अब सुगंधा की आग तो ठंडी हो गई थी और ये सब अंजाने बहाने में ही सही.. मगर दोनों को पता था कि अभी क्या हुआ है.

सुगंधा- आह.. सस्स बस पापा.. अब ठीक है.. ठीक हो गया.

जयशंकर जी ने चुत को एकदम चाट कर साफ कर दिया. फिर सुगंधा के पास बैठ गए और उसके सर को सहलाने लगे. सुगंधा तो ठंडी हो गई थी मगर वो जानती थी कि उसके पापा अब वासना की आग में जल रहे हैं और अब उनको शांत करने की उसकी बारी है. मगर उसके लिए भी कोई आइडिया तो लगाना ही पड़ेगा.. और वो सोचने लगी.

सुगंधा- पापा आप बहुत अच्छे हो.. मेरा कितना ख्याल रखते हो आप.

जयशंकर- अरे तू मेरी लाड़ली बेटी है.. तेरा ख्याल ना रखूं तो किसका रखूं.

सुगंधा- पापा मुझे भी आपके लिए कुछ करना है.. आप बताओ मैं क्या करूँ.

जयशंकर- अरे तू क्या करेगी.. चल आजा मेरी गोद में सो जा, तेरे सर को सहला देता हूँ.

जयशंकर जी की बात सुनकर सुगंधा को आइडिया मिल गया. जब उसके पापा आसानी से उसकी चुत को चूस सकते हैं तो वो उनके लंड को क्यों नहीं पकड़ सकती. वो जल्दी से उनकी गोदी में लेट गई. अब उसके होंठ लंड के एकदम करीब थे और लंड अभी भी खड़ा हुआ था.

सुगंधा- पापा वो हम खेल रहे थे तो आपने मुझे क्या चूसने को दिया था.. उसका स्वाद बहुत अच्छा था. प्लीज़ एक बार दिखाओ ना.

सुगंधा ने इनडाइरेक्ट्ली अपने पापा के लंड को देखने की इच्छा जाहिर कर दी.

जयशंकर- अच्छा तुझे इतना पसंद आया वो..?

सुगंधा- हाँ पापा रियली उसका टेस्ट बहुत ही ज़्यादा अच्छा था. काश वैसा बहुत सारा रस एक साथ मिल जाए.

सुगंधा के इशारे जयशंकर जी को समझ में आ रहे थे. वो ये भी समझ गए कि सुगंधा को लंड का पता लग गया है और अब उसका दोबारा उसको चूसने का मन कर रहा है.. वीर्य पीने का दिल कर रहा है.

जयशंकर जी सुगंधा की बात को समझ तो गए मगर वो सीधे कैसे उसके मुँह में लंड घुसा देते. वो कुछ सोचते तभी सुगंधा ने धीरे से उनके लंड पे उंगली टिका दी, जिससे उनका काम आसान हो गया.

जयशंकर- मैं तुझे सुला देता हूँ. तू एक काम कर, मेरी जाँघ पर थोड़ा खुजा दे, थोड़ी बेचैनी हो रही है.

सुगंधा- पापा आपको तो चींटी ने नहीं काटा ना.. मैं देखूं क्या?

जयशंकर- अरे नहीं नहीं, ये तो ऐसे ही हो रही है.. तू ऐसे ही खुजा दे.

सुगंधा को इशारा मिल गया था, अब वो धीरे-धीरे उनकी जाँघ पे हाथ घुमा रही थी.. साथ ही साथ लंड को भी हाथ लगा देती.

जयशंकर- हाँ ऐसे ही कर.. अच्छा लग रहा है.

सुगंधा कुछ देर तो डरते-डरते लंड को छू रही थी मगर थोड़ी देर बाद वो खुल गई और सीधे लंड को पकड़ लिया और जैसे ही जयशंकर जी का अज़गर उसके हाथ में आया, उसकी साँसें ऊपर-नीचे हो गईं और होती भी क्यों नहीं.. आपको तो पता ही है. वो एक 10″ का काफ़ी मोटा लौड़ा था.

सुगंधा अपने मन में बुदबुदाने लगी- हे राम इतना बड़ा है पापा का लंड.. और मोटा भी कितना है, तभी मेरे मुँह में ठीक से नहीं घुस पा रहा था. इसको तो आज चूस कर ठंडा कर दूँगी, तभी मुझे सुकून मिलेगा.

सुगंधा का हाथ लंड पर पड़ते ही जयशंकर जी ने भी चैन की सांस ली. अब उनको यकीन हो गया था कि ये खेल मजेदार होने वाला है.

जयशंकर- आह.. बेटी ऐसे ही सहलाती रह.. इससे मुझे बड़ा आराम मिल रहा है.

सुगंधा ने लंड को मसल कर उसे जांघ कहते हुए कहा- पापा आपकी जाँघ इतनी गर्म क्यों है.. और कितनी सख़्त भी है ये.

सुगंधा अब भी अंधेरे में नासमझी का नाटक कर रही थी मगर इससे क्या फर्क पड़ता है. दोनों अब वासना के जाल में फँस चुके थे. अब इनकी ये वासना इन्हें कहाँ लेकर जाएगी ये तो आने वाला वक़्त बताएगा. अभी तो इन्हें ही देखते हैं.

जयशंकर- आदमी की जाँघ ऐसे ही सख़्त होती है.. तू बस सहलाती रह बेटा.

सुगंधा- पापा आपकी लुंगी की वजह से ठीक से नहीं कर पा रही.. इसको थोड़ा साइड में कर के कर दूँ क्या??

सुगंधा की सारी शर्मोहया अब हवा हो गई थी. वो खुलकर लंड को सहलाना चाहती थी.

जयशंकर- तेरा जैसा मन करे, तू वैसे कर ले बेटी.. मुझे क्या दिक्कत है.

सुगंधा ने लुंगी को एक तरफ़ सरका दिया. अब जयशंकर जी का लंड आज़ाद था और वो किसी ज़हरीले नाग की तरह फुंफकार रहा था. उसे तो बस चुत की जरूरत थी.. मगर इस वक़्त उसको चुत तो नहीं मिली लेकिन एक कमसिन कली का स्पर्श उसको और पागल बना रहा था.

सुगंधा अब बड़े प्यार से लंड को सहला रही थी. ऊपर से नीचे तक पूरा हाथ में लेकर लंड को आगे-पीछे कर रही थी.

जयशंकर- सस्स सुगंधा.. आह.. अच्छा लग रहा है.. मुझे लगता है यहाँ मुझे भी चींटी ने काटा होगा.. थोड़ी जलन हो रही है अगर तुझे कोई दिक्कत ना हो तो बेटा थोड़ा चूस दे ना.

सुगंधा- पापा आप कैसी बात कर रहे हो.. मुझे क्या दिक्कत होगी, आपने भी तो मुझे कितना आराम दिया है.

इतना कहकर सुगंधा ने अपने सर को ठीक किया. वो अपने पापा के लंड सुपारे को जीभ से चाटने लगी और धीरे-धीरे उसने सुपारा मुँह में लेकर चूसने लगी.

जयशंकर जी धीरे-धीरे सुगंधा की पीठ को सहला रहे थे और मज़ा ले रहे थे. इधर सुगंधा बड़े मज़े से अपने पापा के लंड को चूस रही थी. उसकी पूरी कोशिश थी कि ज़्यादा से ज़्यादा लंड वो निगल जाए. मगर इतना बड़ा लौड़ा पूरा मुँह में लेना उसके बस का नहीं था. बस जितना वो ले सकती थी, उसने लिया और लंड पे चुप्पे मारने लगी.

जयशंकर जी तो अपनी बेटी से लंड चुसवा कर स्वर्ग की सैर पर निकल गए. उनके मुँह से मादक सिसकारियां निकलने लगीं. काफ़ी देर तक सुगंधा उनको मज़ा देती रही.. जब वो चरम पर पहुँच गए तो..

जयशंकर- बस सुगंधा सस्स आह.. अब आराम है.. आह.. रहने दो नहीं करो.. आह...

मगर सुगंधा कहाँ मानने वाली थी. उसको पता था जिस वीर्य से उसका जन्म हुआ है.. आज वही उसको पीने को मिलेगा. उसने और तेज़ी से लंड की चुसाई शुरू कर दी और अगले ही पल वीर्य की तेज धार उसके गले में उतर गई. एक के बाद ना जाने ऐसी कितनी धारें निकलीं, जिसे सुगंधा ने गटक लिया और आख़िरी बूँद तक सुपारे से निचोड़ डाली. उसके बाद वो अलग होकर लेट गई.

सुगंधा- पापा लगता है बहुत सारी चींटियों ने आपको काटा था, तभी बहुत सारा जहर निकला. अब आपको आराम मिला ना..!

जयशंकर- हाँ सुगंधा बहुत आराम मिला.. तू बहुत अच्छी है मगर ये जो हुआ सही था क्या..? हम बाप बेटी हैं बेटा..!

सुगंधा- ये आप क्या बोल रहे हो मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा. इसमें सही ग़लत कहाँ से आ गया? चींटी ने काटा तो आपने मेरी हेल्प की.. और मैंने आप की हेल्प की. अब आप जाओ मुझे बहुत नींद आ रही है, सुबह कॉलेज भी जाना है.

जयशंकर जी समझ नहीं पाए ये क्या है. सुगंधा अब भी परदा बनाए हुए है. वो उठे और वहां से निकल गए.

जयशंकर जी के जाने के बाद सुगंधा ने चैन की सांस ली. उसकी ज़रा भी हिम्मत नहीं थी इस टॉपिक पे उनसे बात करने की. उधर जयशंकर जी भी झिझक रहे थे तो उन्होंने जाना ही ठीक समझा और जाकर सो गए. इधर सुगंधा भी सोचती रही और कब उसको भी नींद आ गई पता नहीं चला.

दोस्तो सुबह हो गई और रोज की तरह सुगंधा अपने कॉलेज चली गई

सुगंधा सीधी अपने घर चली गई तो देखा पापा भी वहीं थे.. और उनके और मम्मी जी के बीच कोई बात चल रही थी, जो शायद कुछ गड़बड़ का संकेत दे रही थी.

जयशंकर- बेटा तेरी नानी की तबीयत बहुत खराब है. शायद उनका अंतिम समय आ गया है.

सुगंधा- पापा ठीक कह रहे हैं माँ.. आपको वहां जाना चाहिए

सुगंधा और जयशंकर जी ने मम्मी को समझाया तो वो मान गईं. सुगंधा का कॉलेज और जयशंकर जी की दुकान की वजह से दोनों नहीं जा सकते थे, तो ये तय हुआ कि शाम की ट्रेन से मम्मी जी जयपुर जाएंगी.

जयशंकर जी टिकट लेने चले गए और सुगंधा ने खाना खाया, फिर वो पैकिंग में अपनी माँ की मदद करने लगी.

दोपहर से शाम कब हुई, पता भी नहीं चला. दोनों बाप-बेटी मम्मी को स्टेशन छोड़ने गए

मम्मी के जाने से दोनों बाप-बेटी बहुत रिलेक्स फील कर रहे थे. सुगंधा ने नाइटी पहनी हुई थी और खाना तैयार कर रही थी और पापा जी तो वही अपनी लुंगी में मस्त थे. अब मम्मी नहीं है तो आज वो खुलकर मज़ा लेने के मूड में थे.

सुगंधा रोटी बना रही थी और उसकी गांड पीछे को निकली हुई थी, जिसे देख कर पापा जी का मन मचल गया, वो उसके पीछे गए और लंड को लुंगी से बाहर निकाल कर उन्होंने धीरे से सुगंधा की नाइटी ऊपर की.. तो देख कर खुश हो गए कि उसने भी अन्दर कुछ नहीं पहना था. फिर उन्होंने लंड को दोनों जाँघों के बीच फंसाया और सुगंधा से चिपक कर खड़े हो गए.

सुगंधा को जब गर्म अहसास हुआ वो समझ गई कि पापा जी ने लंड को कैसे फँसाया हुआ है मगर वो अनजान बनी रही.

सुगंधा- क्या पापा क्यों परेशान कर रहे हो.. मुझे रोटी बनाने दो ना.

पापा- अरे तो किसने रोका है.. तू अपना काम कर, मैं तो बस तुझे देख रहा हूँ.

सुगंधा- लेकिन आप मुझसे चिपके हुए हो.. मुझे दिक्कत हो रही है ना.

पापा- अरे इसमें दिक्कत कैसी.. तू अपना काम कर, मैं अपना कर रहा हूँ.

सुगंधा- आप बहुत शरारती हो पापा.. अभी जाओ यहाँ से.. आपका काम मैं खाने के बाद कर दूँगी ना.. ऐसे तो मुझसे रोटी ही नहीं बनेगी.

पापा- तूने कल भी नहीं किया था.. बस नींद का बहाना मार दिया.

सुगंधा- अच्छा मेरे अच्छे पापा आज पक्का कर दूँगी.. अब आप यहाँ से जाओ.

पापा जी का लंड चुत से रगड़ खा रहा था, जिससे सुगंधा को भी मज़ा आ रहा था. उसकी चुत एकदम गीली हो गई थी.

पापा- अरे रहने दे ना और वैसे भी तुझे भी तो मेरा ऐसे चिपकना अच्छा लग रहा है.. फिर हटा क्यों रही है.

सुगंधा- नहीं मुझे कुछ अच्छा नहीं लग रहा.. आप बस जाओ यहाँ से.

पापा- अच्छा, बिना मज़ा आए ही तेरा रस टपक रहा है क्या?

सुगंधा जल्दी से पलटी और अपने पापा को धक्का देकर अलग किया. तभी उसकी नज़र उनके लंड पर चली गई जो एकदम तना हुआ खड़ा था. आज पहली बार सुगंधा ने लाइट की रोशनी में पापा का लंड देखा था. वो बस पापा का मूसल लंड देखती ही रह गई. जब जयशंकर जी को यह अहसास हुआ तो उन्होंने जल्दी से लुंगी ठीक की.

सुगंधा- पापा आप बहुत बदमाश हो.. कुछ भी बोल देते हो, अब जाओ यहाँ से.

जयशंकर जी ने रुकना चाहा मगर सुगंधा ने ज़िद की तो वो बाहर चले गए और फ्रीज़ से बियर की बोतल निकाल कर बैठ गए.

उधर सुगंधा तो बस लंड के बारे में ही सोच रही थी. आज उसने उस भीमकाय लंड को ऐसे तना हुआ देखा था. सुगंधा सोचने लगी कि वाउ पापा का लंड तो बहुत प्यारा है.. आज तक बस अँधेरे में उसको चूसा है, मगर आज तो ऐसे ही देख कर मज़ा लूँगी मैं..

जयशंकर जी लंड सहलाते हुए बुदबुदा रहे थे- बस सुगंधा, ये लुका-छिपी बहुत हो गई. आज तो तुझे चुदने के लिए बोल ही देता हूँ. अब मुझसे बर्दाश्त नहीं होता.

अन्दर सुगंधा कुछ और सोच रही थी और बाहर जयशंकर जी कुछ और

सुगंधा का खाना रेडी हो गया था. जब वो बाहर आई, तो उसके पापा जी मज़े से बियर पी रहे थे.

सुगंधा- ओह.. पापा.. ये क्या है आप अभी क्यों पीने लगे.. पहले खाना तो खा लेते. उसके बाद आराम से पी लेते और मैंने भी तो कहा था मैं भी पीऊंगी.

पापा- सुगंधा, ये चाय नहीं जो खाने के बाद पी जाए. ये बियर है बेटा इसको खाने के पहले ही पीते हैं.

सुगंधा- तो ठीक है लाओ मुझे भी दो.. मैं भी तो देखूं ये क्या है.

पापा- ये तेरे काम की नहीं है बेटा.. तुझे इससे नशा हो जाएगा.

सुगंधा- आपने तो कहा था ये शराब नहीं है.. फिर नशा कैसे होगा?

जयशंकर जी ने सुगंधा को बहुत समझाया कि पहली बार पीने से नशा होता है मगर वो नहीं मानी और गिलास में बियर डालकर पीने लगी. पहली बार तो उसको ये बहुत अजीब लगी मगर धीरे-धीरे इसका टेस्ट सुगंधा को भा गया. उसने आधी बोतल गटक ली.

पापा- बस कर.. नहीं तो यहीं लुढ़क जाएगी. चल अब खाना लगा बहुत भूख लगी है. उसके बाद आज तुझे मेरे साथ ही सोना है.. तेरी माँ तो है नहीं ना..!

सुगंधा- हिच हिच.. नहीं मैं आपके साथ नहीं सोऊंगी.. आप मुझे.. हिच हिच.. परेशान करोगे.

सुगंधा की आँखें नशे से लाल हो गई थीं.. उसकी ज़ुबान भी लड़खड़ा रही थी.

पापा- मैंने कहा था ना मत पी, अब चढ़ गई ना.. देख सोना तो तुझे मेरे साथ ही पड़ेगा.. आज मुझे मज़ा देने का तेरा अपना पक्का वादा याद है ना?

सुगंधा- हाँ याद है.. हिच एमेम मगर वो करने के बाद मैं अपने कमरे में सो जाऊँगी.. हिच.. नहीं तो आप पूरी रात सताओगे.

पापा- तुझे बहुत चढ़ गई है. तू यहाँ बैठ मैं खाना लगाता हूँ और तेरा इलाज भी करता हूँ. नहीं तो तू ऐसे ही हिचकियां लेती रहेगी और मेरा भी मूड खराब करेगी.

जयशंकर जी ने खाना लगाया और सुगंधा को नींबू काट कर चूसने को दिया, जिससे उसका नशा थोड़ा कम हो और एक गिलास में नींबू पानी भी बना के उसको पिला दिया, जिससे उसकी हिचकी बंद हो गई.

दोनों ने जमकर खाना खाया. फिर जयशंकर जी सुगंधा को अपने कमरे में ले गए. बियर का नशा अभी भी सुगंधा पर था मगर बहुत कम हो गया था. अब वो अपने पापा से ठीक से बात कर रही थी- पापा लाइट बंद कर दो ना ऐसे हम दोनों को नींद कैसे आएगी?

पापा- अरे अभी से सोने की बात कर रही है.. मुझे आराम तो दे दे पहले.. या पहले मैं तुझे मज़ा दूँ?

सुगंधा- ये सब बाद में.. पहले लाइट बंद कर दो आप.. ओके..!

पापा- अरे अंधेरे में तो रोज ही करती हो.. आज ऐसे ही करो ना सुगंधा.

सुगंधा- नहीं पापा मुझे शर्म आती है.