गंगाराम और स्नेहा Ch. 03

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"ऐसी कोई बात नहीं है...वह खुद कह चुके हैं की में किसी को भी बुला लूँ.. यार स्नेहा चलना..." स्नेहा रिक्वेस्ट करि।

"दावत किस लिए...?" पूछी सरोज।

"अंकल का जन्मदिन है" (birthday)

"ओह कब...?"

"वैसे जन्म दिन तो फ्राइडे (Friday) को है... लेकिन हमें छुट्टी नहीं मिलती ईसी लिये संडे बारह बजे ... अगर तुम चाहो तो तुम्हारे पति को भी ले चलो..."

"कौन.. मेरा पति... न.. न.. यह पहले से ही शक्की मिजाज का है... नहीं उन्हें नहीं.... वैसे भी वह हर संडे की तरह अपने दोस्तों से मिलने जाता है..."

ठीक है.. फिर.. संडे को 10 बजे मिलते है..." बोली स्नेहा।

"वह तो ठीक है.. पहले तुम अपनी गांड मराने की किस्सा तो बता दे... तुमने तो मुझमे उत्सुकता जगादि।"

"क्या अभी...?"

हाँ.. अभी.. अभि तो दो ही बजे है.. तुम चार बजे जयेगी न.. बहुत समय है.. जरा डिटेल से बताना ..." कही और कपड़ों के ऊपर से ही स्नेहा की गांड पर एक थपकी दी।

"स्स्स्सस्ठ्ठाआ..." इतनी जोरसे क्यों मार रही है.. सुन बताती हूँ..." और स्नेहा अपनी गांड मराने की किस्सा सुनाते सुनाते उस दिन की घटना के बारे में सोच ने लगी।

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उस दिन सवेरे कोई गयारह बजे स्नेहा को गंगाराम के यहाँ से फ़ोन आया।

"हेलो अंकल.." स्नेहा चाहकते बोली...

"स्नेहा.. मुझे पहले इस जगह पे मिलो..." बस इतना कह जगह नाम बताया और फ़ोन काट दिया।

वह झट स्नान करके तैयार होने लगी। जब से गंगाराम ने उसके अकाउंट में 60,000 रूपये जमा कराया है स्नेह गंगाराम पे फ़िदा होने लगी। वह एक पिंडलियों तक आनेवाली स्कर्ट और गोल गले का टाइट टॉप पहन कर निकली। टॉप टाइट होने की वजह से उसके छोटे छोटे चूची भी बहुत लुभावनि दिखरहे थे। निर्धारित समय और निर्धारित जगह पर गंगाराम ने उसे पिक किया और गाड़ी आगे चलने लगी।

स्नेहा सामने पैसेंजर सीट पर बैठते ही आगे झुक कर गंगाराम की गाल को किस करि और सीट पर जम गयी। गंगाराम गाड़ी चला रहा था।

"हम कहाँ जा रहे है अंकल..." वह गंगाराम से पूछी।

"just wait डार्लिंग मालूम पड़ जाएगा.." कहते उसने स्नहा के गाल को पिंच किया। उसके बाद उन दोनों में कोई वार्तालाप नहीं हुई। स्नेहा ख़ामोशी से खिड़की से बाहर का नजारा कर रही थी। कोई 40 km चलने के बाद गाड़ी एक रिसोर्ट में घूमी। स्नेहा पूरा नाम नहीं पढी लेकिन एक रिसोर्ट है यह समझ गयी। रिसोर्ट के अंदर maingate गेट से कोई 2km दूरी पर main building दिखी।

गंगाराम और स्नेहा गाड़ीसे उतरे और अंदर चले। एक manager ने आकर उसे स्वगत किया और गंगाराम उससे कुछ पूछे। फिर दोनों गाड़ी में बैठे। उनके के साथ एक रिसोर्ट के कर्मचारी भी था जो उन्हें रास्ता दिखाने लगा। रिसोर्ट के main building के पीछे कोई 3 मिनिट चलने का बाद वह एक कॉटेज के सामने रुके और कर्मचारी ने कॉटेज का ताला खोल कर उन्हें अंदर तक ले गया और गंगाराम का दिया टिप लेकर चला गया।

गंगाराम और स्नेहा अंदर बेडरूम में पहुंचे... वह बड़रूम इतना बड़ा होगा स्नेहा ने अनुमान नहीं लगाया। बहुत बड़ा था और बहुत बड़ी पलंग और उस पर मखमली गद्दी...

गंगाराम ने स्नेहा को गद्दी पर धकेला और उस पर टूट पड़ा... स्नेहा खिल खिलाकर हँसते बेड पर रोल होते अंकल को अपने ऊपर गिराने से बची।

कुछ देर बाद दोनों हँसते बेड पर बैठे और गंगाराम उसे अपने गोद में खींचा... वह हँसते हुए उसके गोद में बैठी और अपने हाथों का हार गंगाराम की गले में पहनाई।

"ओह.... अंकल कितना अच्छा है यह जगह... कहते उसे चूमने लगी। गभराओ नहीं डार्लिंग तुम मेरे साथ रहो मैं तुम्हे एक से एक स्वर्ग जैसी जगह दिखावुंगा और तुम्हे स्वर्गकी सैर करावुंगा....बोलो.. दोगी साथ...?" बोलते उसने उसे चूमते उसके मादक छोटे बूब्स पर हाथ फेरने लगा।

"अंकल मैं तो हमेशा आपके साथ हूँ..." मादक अंदाज से बोली और "अंकल I am वेटिंग..." कहती उसने गंगाराम की जांघों में हाथ डाली।

"नहीं स्नेहा...अभी नहीं..." वह उसे रोका...

स्नेहा उसे अस्चर्य से देखने लगी।

"चलो फ्रेश होजाओ.. बाहर जाकर खुले में बैठते हैं..."

स्नेहा बातरूम में घुसी और बातरूम की सजावट देख कर दंग रह गयी। इतना उम्दा बातरूम था वह। एक ओर बात टब, दूसरी ओर एक आदमकद शीशे के साथ ड्रेससिंग टेबल... स्नेहा सपने में भी कभी नहीं सोची की ऐसे रिसोर्ट में वह कुछ समय बितायेगी। उसके फ्रेश होक बाहर आते ही गंगाराम भी फ्रेश होकर आया और दोनों कॉटेज के सामने लॉन (lawn) में बिछे एक टू सीटर सोफे पर जम गए। सामने के एक छोटे टेबल पर कुछ डिशेस पहले से ही रखे हैं। लगता है गंगाराम ने पहले से ही आर्डर दे रखा है। साथ में एक व्हिस्की बोतल और दो गिलास भी थे।

गंगाराम ने दोनों ग्लासों में व्हिस्की डाला और पानी मिलाकर स्नेहा को एक थमाते चियर्स बोला। दोनों आराम से व्हिस्की चूसक रहे थे। अब स्नेहा बेहिचक व्हिस्की लेने लगी। स्नेहा गंगाराम को देखकर हँस रही थी। गंगाराम ने एक आंख दबायी। स्नेहा हँसते हुए अपने जगह से उठी और गंगाराम की गोद में अपने छोटे नितम्ब जमाकर बैठ गयी।

"थैंक यू डियर...:" गंगाराम ने उसे किस करा।

गंगाराम उसे गोद में बिठाकर बहुतसे बाते करने लगा। वह अपने बिज़नेस के बारे में भी उसे बता रहा था। उसने किधर किधर कितना रुपए इन्वेस्ट किया... जैसी बहतु से बातें।

उसने अपने दोनों बेटों के बारे में भी बताया.. और न जाने क्या क्या....

स्नेहा खामोशी से सुन रहीथी।

स्नेहा एक पेग तक ही सिमित राहि, जब की गंगाराम दूसरा पेग ले रहा था। फिर दोनों ने वहां परोसे खाना खाया.. कुछ देर बाद एक कर्मचारी आकर टेबल साफ करके चला गया।

दोनों वही बैठे व्हिस्की सिप करते गप्पे मार रहे थे। गंगाराम स्नेहा के घर के बारे में, उनके घर के सदस्य के बारे में पूछ रहा था। और उसके सहेलियों के बारे में.. और भी बहुत से बातें।

"स्नेहा कभी अपने घर के दूसरे सदस्यों से हमारा परिचय करादो; वैसे ही तुम्हरे कोई दोस्त भी हो तो... देखो मैं अकेला रहता हूँ... मुझे लोग बहुत पसंद है..."

"उसमे क्या है अंकल जरूर परिचय करा दूँगी... मेरे घर के मेंबर्स के साथ मेरी एक अच्छी सहेली है सरोज .. मैं अपको उस से मिलवा दूंगी" बोली।

"तुम्हारा कोई मेल (male) फ्रेंड्स नहीं है क्या...?" गंगाराम पुछा।

"नहीं अंकल..."

"कोई बॉय फ्रेंड...?"

"आप मेरे बॉय फ्रेंड ही है न..."

"मेरे अलावा..."

"बॉय फ्रेंड.. और मेरा....." वह हंसी और बोली... I am not so lucky अंकल... मुझे फुरसत कहाँ मिलती.. किसी को बॉय फ्रेंड बनाने का..."

"हूँ... खैर छोड़ो..."

"वैसे स्नेहा..एक बात; आने वाले संडे को मैं एक पार्टी देरहा हूँ.. तुम अपने फॅमिली को और भी कोई अपने दोस्तों को फॅमिली के साथ invite कर सकती हो" कहते उसने उसके स्कर्ट के निचे हाथ घुसा दिया।

हाय अंकल यह क्या कररहे हो.. इतने उजालेमे वो भी बाहर लॉन में..." कहते उसने गंगाराम के हाथ को बहार खींचने की कोशिश करने लगी।

"अरे डियर.. जबतक हम न कहे यहाँ कोई नहीं आएगा.. मेरी गारंटी... कहते उसके पैंटी के ऊपर से उसकी बुर को दबोचा...

"सससससस....हहह" स्नेहा एक मीठी सिसकारी ली; और बोली ठहरो अंकल... और उसने गंगारम के हाथ बाहर निकालते ही अपना पैंटी ही उतार फेंकी।

"वाह यह हुई न बात..." उसने फिरसे हाथ स्कर्ट के निचे डाल दिया। स्नेहा अपने टांगे पैलादी।

गंगारम की मिडिल फिंगर स्नेहा के बुरमें जड़तक घुस चुकी थी। उससे अपने बुर को कुरेदवाते, स्नेहा ने गंगाराम की पजामा के सामने का ज़िप निचे झीँच कर उसके डंडे को बाहर खेंचि। उसके 9 1/2 इंच लम्बा और 4 इंच मोटा डंडा बाहर खुले आसमान को ताक रहा था। स्नेहा झुककर उसे एकबार चूमि... और बोली... "अंकल यह आपका जादू का डंडा सचमे ही मुझपर जादू कररही है..." कहि और उसके मोठे सुपाडे को मुहंमें ली। गंगाराम उसके स्कर्ट के निचेसे हाथ निकाल कर पिछेसे उसे जकड़ा। अब दोनों को सहूलियत थी। वह पीछे से उसे ऊँगली से चोद रहा था और स्नेहा उसके पहलवान को चुभला रही थी।

कोई पांच छह मिनिट यह चुभलाना और ऊँगली से चुदवाने का सिल सिला चला। अब दोनों को ही अपने आप को संभालना मुश्किल लग रहा था।

"स्नेहा डार्लिन अब रहा नहीं जाता... जल्दी से मुझे स्वर्ग में आने दो..." वह स्नेह कि छोटी चूची को टीपता बोला।

"रोक कौन रहा है अंकल.... आईये न... ठहरो मैं हि इसे अंदर लेलेती हूँ..." कही और गंगारम की गोद में बैठी। बैठने से पहले उसने अपने स्कर्ट को कमर तक उठायी और उसके डंडे को अपने बुर में लेली।

"आअह्ह्ह्ह... कितना गर्म हो.. तुम्हारी .. सससस.. सच मजा आगया.. ऐसे खुले आसमान के निचे दिन के उजाले में... तुम्हे कैसा लग रहा है.... स्नेहा डियर...?" वह निचेसे उसके बुर में दक्का देते पुछा।

"पुछा पूछो मत अंकल.. में तो स्वर्ग में हूँ... और तुम कहते हो की स्वर्ग मेरे जांघों में है... लेकिन में कहती हूँ स्वर्ग तो आपके जांघों के बीच है...." वह उसके ऊपर उछलती बोली।

स्नेहा गंगराम के गोद में बैठ कर ऊपर नीचे हो रही थी तो वह निचे से ठोकर देने लगा।

वह लोग अपने काम में डूबे थे की गंगाराम की मोबाइल बजी। चिढ चिढ़ाते उसने फ़ोन उठाया और 'हेलो' बोला। स्नेहा उधर से आने वाले बातों को सुन नहीं पायी लेकिन गंगराम की बातें उसके कानों में पड रहे थे।

"नहीं, नहीं समीर खान जी यह नहीं होसत्ता..." गंगाराम कहरहा था।

"......... "

"अरे बाबा.. सुनते नहीं हो...; नहीं हो सकता..."

"..........."

""आप समझते क्यों नहीं समीर साहब..."

".............."

"ठीक है मैं रख रहा हूँ.. हाँ.. बाबा.. सोचूंगा..." और गंगारम ने फ़ोन काट दिया, फिर अपने गोद में बैठे स्नेहा की ओर ध्यान दिया..

अंकल..." स्नेहा उसके उपर उछलती बुलाई

"hooon"

"कौन था...अंकल...." उसके लंड पर अपनी बुर दबाती पूछी।

"था कोई औरतों का रसिया.. स्साला..." गंगाराम घुसे हे कहा।

फिर दोनों के बीच धमसान चुदाई हुई और गंगाराम अपना मॉल अंदर छोड़ चूकाथा तो; स्नेहा ने दोबार झड़चुकी और थककर गंगारम के ऊपर गिरी। दोनों अंदर आये और बेड पर गिरे। गिरते ही स्नेहा की आंखे मूंदने लगी।

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जब उसे होश आया तो उसने महसूस किया की उसके नितम्बों के बीच कोई ऊँगली कर रहा है... "ममममम..." कहती उसने आंख खोली तो "उठ गयी डार्लिंग..." गंगारम पुछा।

"क्या कर रहे हो अंकल...?" तबतक उसे गांडके दरार में ऊँगली का मजा आने लगा तो टांगे पैलाती पूछी।

"तुम्हारी गांड बहुत मस्ती भरी है.. उसे चोदने की तैयारी कर रहा हूँ,,,"

"ओह... नो.. अंकल... मेरी गांड फट जाएगी..." वह बोली लेकिन गंगाराम को रोकने की कोशिश नहीं करि।

गंगाराम अपने साथ लाये पॉन्ड्स पोमेड को स्नेह कि गांड के इर्द गिर्द और उसके गोल छेद पर मलते दबाव देरहा था। "अरे पगली.... चूत और लैंड का मजा तो ली है.. अब गांड मराने का मजा भी तो ले..." और अपना काम जरी रखते इसके ऊपर झुका और उसके गालों को काटने लगा।

स्नेहा को मजा आरहा था तो वह खामोश पड़ी अपने गांड को चिकना करवा रही थी। उसके गांड पर पोमेड लगाते लगाते, गंगाराम ने अपनी तर्जनी ऊँगली को थोड़ा दबाव दियातो वह दो टकनों तक गांड के अंदर चली गयी। गांड में ऊँगली घुसने का स्नेह महसूस करि लेकिन उसे कुछ दर्द नहीं हुआ तो वह चकित रह गयी। जब वह कुछ नहीं बोलीतो गंगाराम ने पुछा.. "स्नेहा..कुछ दर्द हो रहा है...?"

"नहीं अंकल.. आपका ऊँगली अंदर गयी क्या...?"

"हाँ... दो टकनों तकतो अंदर गयी..."

"Wwaaaaaaaavvvv...." वह बोलती गांड को ऊपर उछाली।

"जनू ... अब लंड डाल रहा हूँ..." अपने सुपाड़ा उसकी चिकनहट पर रख पुछा..."

"अंकल.. संभल के..." वह कहही रहीथी की गंगाराम ने अपने लंडपर दबव दिया..पोमेड के चिकनाहट की वजहसे "पछ...." की हलकी सी आवाज के साथ सूपड़ा अंदर चलीगयी।

"डार्लिंग सूपड़ा अंदर.. कुछ दर्द तो नहीं...? वह पुछा।

"नहीं अंकल...."

गंगाराम ने एक और दक्का दिया और आधेसे ज्यादा लंड गांड में चली गयी..."

"आह....आह.. " अबकी बार उसे हल्कासा दर्द महसूस हुआ।

"दर्द हुआ...?"

"हाँ लेकिन थोडासा ..."

गंगाराम उसके कमर पकड़ कर एक और शॉट जमकर दियातो उसका औजार पूरा अंदर चला गया..."

"सससस...हहहआ..." स्नेहा चट पटायी। गंगाराम ने अपनी चुदाई शुरू करदी।

तीन चार मिनिट बाद स्नेहाको भी मजा आने लगा तो..वह अपने गांड को पीछे धकेलती बोली... "आअह्ह्ह अंकल.. अब मजा आरहा है.."

गंगाराम उसके छोटे कुल्हों पर तपकी देता जमकर उसकी गांड मारने लगा...

"सससस.. अंकल डालो अंदर.. अब मजाही मजा आरही है.. मारो मेरी कुंवारी गांड को.. मजा दे रही है क्या...?"

"हाँ.. स्वीटी मुझे भी मजा ही मजा है..." कहते दना दन गांड मारने लगा।

"अंकल मेरी चूत में भी खुजली हो रही है..." अपने गांड को पीछे धकेलती बोली।

गंगाराम अपना एक हाथ उसकी जांघों में डालकर उसकी रिसरही चूतको कुरेदने लगा। "आआअह्ह्ह्ह...." ख़ुशी से वह जोर से चिल्लायी..

"क्या हुआ....?"

"कुछ नहीं अंकल...आप करते रहीये... अब मैं झड़ने वाली हूँ... ऊँगली मेरी बुरमें और अंदर डालिये...आआह्ह्ह्ह..." वह कही और झड़ गई। गंगाराम की ऊँगली उसके चूत रस से चिपडा था। उस ऊँगली को उसने स्नेहा के मुहं के पस रखा... स्नेह अपना मुहं खोलकर उस ऊँगली को ली और चूसने लगी।

गंगाराम पूरे आठ दस मिनिट उसकी गांड मारते रहा और उसके गांड में अपना गरम लस लसा से भरने लगा। दोनों थके हारे बेड पर गिरे।

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अंकल वह कौन था जो आप इतना गुस्से में थे...?" गाड़ी से वापिस आते समय स्नेहा पूछी..

"छोड़ो.. उस नालायक की किस्सा..." गंगाराम चिढ़ते बोला।

"बोलिये ना अंकल.. प्लीज...." कहती वह उसकी ओर झुकी और उसकी गाल को चूमि।

"कुछ नहीं स्नेहा..." गंगाराम उस की कंधे पर दबाव देता बोला "वह एक सरकारी अधिकारी है। नाम है समीर खान। जबतक उस अधिकारी की सर्टिफिकेट न आये मुन्सिपल वाले बिल्डिंग प्लान अप्रूव (approve) नहीं करते। उसके पास मेरा एक फाइल है... वह उसमे दस्तखत करता तो मेरा एक प्लाट पर एक पांच माला बिल्डिंग बन सकती है.. हर माले में तीन तीन फ्लैट होंगे... 50:50 हिसाब से बिल्डिंग बनाने को एक बिल्डर तैयार है.. लेकिन यह सस्ला.. फाइल sign नहीं कर रहा है..."

"उसे कुछ देदेना था..."

वह सब होगया.. वह मान नहीं रहा है ...वह औरत खोर है.. उसे औरत या लड़की चाहिये.. वह भी घरेलू... किसी रंडीको तो मैं ब्रोकर से बुक करा सकता हूँ... लेकिन उसे वह पसंद नहीं है.. उसे सिर्फ और सिर्फ फॅमिली औरत चाहिए.... इसे मैं कहाँ से लावूं ..."

"oooooooohhhhh" बोली स्नेहा।

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समीर खान की बात छोड़कर वह कैसे गांड मराई थी यह किस्सा उसने सरोज को सुनाई। ..

तो दोस्तों.... यह थी कैसे गंगाराम ने स्नेहा की गांड मारी और सलीके से समीर खान की बात स्नेहा को सरकायी... एक बार रावसे चुदने के बाद वह स्नेहा को अपने फायदे के लिए use करने को सोंचा... अब देखना यह है क्या होता है..."

यह एपिसोड कैसा रहा आप अपना कमेंट जरूर लिखे...

फिर किसी अच्छे एपिसोड के मिलने की प्रॉमिस के साथ....

स्वीट सुधा

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Anonymous
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1 Comments
AnonymousAnonymousover 1 year ago

Acha likha sudha ji.... Lekin gangaram ko sneha ne bataya nahi tha rao ke saath chudai ka to gangaram kaise fayda sochne laga ya to gangaram ki hi planning hai jo baad mein pata chalegi baat khul kar aayegi baad mein

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