अंतरंग हमसफ़र भाग 182

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नयी मुख्य पुजारिन का प्रथम सम्भोग
3.1k words
5
186
00

Part 182 of the 342 part series

Updated 03/31/2024
Created 09/13/2020
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मेरे अंतरंग हमसफ़र

सातवा अध्याय

लंदन का प्यार का मंदिर

भाग 50

प्रथम सम्भोग

जीवा ने फिर से चुतड छोड़ अपनी जांघे सीधे करी और मैं की कमर पर अपनी जांघो का घेरा बना लिया। मैं जीवा को चूमता हुआ आराम से धक्के लगा रहा था। जीवा भी इस आराम से हो रही चुदाई का पूरा मजा ले रही थी। फिर कुछ देर के बाद मैंने पूछा कि मज़ा आ रहा है। फिर वह बोली कि हाँ बहुत मज़ा आआआआ रहा है,...हाईईईईई, म्म्म्मम और फिर वह जोर-जोर से कराहने लगी। फिर कुछ देर के बाद मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी। अब वह पूरी मस्ती में थी और मस्ती में मौन कर रही थी अआह्ह्ह आाइईई और करो, बहुत मजा आ रहा है। अब वह इतनी मस्ती में थी कि पूरा का पूरा शब्द भी नहीं बोल पा रही थी। अब में अपनी स्पीड धीरे-धीरे बढ़ाता जा रहा था हाअ, मेरे मास्टर, मेरे राजा राआआआजा, आईसीईई, चोदो और जोर से चोदो। आज मेरी चूत को फाड़ दो, आज कुछ भी हो जाए लेकिन मेरी चूत फाड़े बगैर मत झड़ना, आआआआ और ज़ोर से, उउउईईईई माँ, आहह हाँ, अब ऐसे ही वह कराह रही थी।

मैं को अब लंड को चूत में पेलने के लिए थोडा कम ताकत लगानी पड़ रही थी। मैं ने एक करारा झटका लगाया और लंड चूत को चीरता हुआ सीधा जीवा के बच्चे दानी के मुहँ से टकराया और मैं ने पूरा जोर लगा दिया। मैं का मोटा लम्बा लंड पूरा का पूरा जीवा की नाजुक चूत में समा गया, मुझे ये करने में समय कुछ ज्यादा लगा लेकिन आखिरकार मैंने ये कर डाला।

जीवा की आंखे फ़ैल गयी, जीवा की बच्चे दानी के मुहँ पर बहुत दबाव पड़ रहा था लेकिन मैं कुछ देर के लिए वैसे ही ठहर गया। मैं मुस्कुराया और उसके स्तनों को चूमता और रगड़ता रहा, लेकिन अपना लंड नहीं हिलाया। 5 मिनट के भीतर, योनि की मासपेशिया समायोजित हो गयी और सिलवटे खुल गयी । योनि और लिंग आपस में परिचित हो गए योनि की कसी हुई मांसपेशियों और सिलवटों ने खुल कर लिंग के लिए जगह बना दी और कसवत थोड़ी ढीली हुई और दर्द थोड़ा कम हो गया और जीवा अब बेहतर महसूस कर रही थी,

फिर जीवा के स्तनों को जकड़कर धक्के लगाने लगा। जीवा का पूरा शरीर कांपने लगा, शायद उसे इस दर्द में भी ओर्गास्म हो गया था। कुछ देर तक वह तेज-तेज कराहाती रही और उसका पूरा शरीर कांपता रहा।

जीवा के मुहँ से कामुक और दर्द भरी कराह निकलती रही-यस यस-यस यस यस ओह गॉड आह्ह्हह्ह ओह्ह्ह्ह स्सस्सस्स आःह्ह ओह्ह्ह्हह स्सस्सस्स ओह गॉड, ओह्ह्ह्ह गॉड यस-यस यस

ज्योत्सना ने मेरा हाथ छोड़ दिया और मेरी पीठ पर लेजा कर चिपक गयी और उसका दूसरा हाथ उसकी जाँघों पर टिका हुआ था। वह अपने होठों को चाट रही थी और हांफ रही थी और आंखें अभी भी बंद थीं और अपने पहले संभोग के आनंद के पहले स्वाद से उबरने की कोशिश कर रही थीं। जैसे ही उसकी साँसे ठीक हुई वह शांत होने लगी, वह बहुत कम नरम स्वर में असमिया भाषा में कुछ कह रही थी। मैंने उसका सिर उठाया और उसे दो घूंट पानी पिलाया। उसने फिर अपनी आँखें खोलीं और मेरी ओर देखा, और जब वह थोडा शांत हुई और बोली-मुझे माफ़ कर दो मेरा खुद पर काबू ही नहीं है, मैं वहाँ बहुत गीली हो गयी हूँ और लथपथ हूँ! मैंने रोशनी देखी और फिर ऐसा लगा जैसे मेरे अंदर की हर चीज फट गई हो! " वह फिर से झड गयी थी।

मैं उसका हाथ पकड़कर चूत के पास ले गया। एक मुस्कराहट के साथ, जीवा ने कहा, "मास्टर मैंने ऐसा कुछ महसूस करने की उम्मीद नहीं की थी! मुझे बहुत अच्छा लगा!" और वह मेरे साथ कस कर चिपक गयी तभी उसने महसूस किया होगा कि लोहे की छड़ उसके पैरों के बीच में चुभ रही है ।

मैं उसकी बात अनसुनी करते हुए किसी और ही धुन में था, हांफते हुए बोला-तुमने कर दिखाया।

जीवा--क्या?

जीवा समझ गयी, पहले तो उसे यकीन ही नहीं हुआ, इतना लम्बा मोटा मुसल जैसा लंड, उसकी चूत में पूरा का पूरा समां गया। जीवा मैं के लंड को पेट के निचले हिस्से में महसूस कर रही थी। जीवा ने अपनी वासना से भरी सुर्ख आँखों से मेरी तरफ देखा। मैंने सर हिलाया। जीवा अब सातवे आसमान पर थी, मेरलंड जो पहले लग रहा था कि उसकी योनि में कैसे जाएगा अब पूरा का पूरा उसके अन्दर था ये उसके लिए गौरव की बात थी। जैसे आदमियों के लिए लगातार बिना रुके कई चूत चोदना गौरव की बात की होती है उसी तरह से कोई भी औरत हो जब वह बड़े से बड़ा लंड अपनी चूत में पूरा का पूरा घुसेड लेती है तो उसके अन्दर का स्त्री गौरव चरम पर पंहुच जाता है। उसके अन्दर का सब डर भय मिट गया था, अब उसे किस बात की चिंता नहीं थी अब तो वह खुलकर चुदेगी, हचक-हचक के चुदेगी।

जीवा--मास्टर शुक्रिया और मुझे चुंबन कर बोली जी अब मन भर के चोद लो जैसे मुझे चोदना चाहते हो वैसे चोदो। मैं झड़ चुकी हुई अब मेरे दर्द और मुझे संतुष्टि देने की चिंता त्याग कर कस क्र चुदाई करो । जीवा बस अभी झड़ी थी इसलिए मैं ने हल्के-हल्के चूत में लंड पेलना जारी रखने का फैसला किया। मैंने फिर से धक्के लगाने शुरू कर दिए। जैसे-जैसे लंड चूत में अन्दर बाहर होता जीवा के मुहँ से सिकरियाँ निकलने लगती।

मैं ने धीरे-धीरे फिर चोदने की स्पीड बढ़ा दी और अब वह जीवा की चूत की अंतिम गहराई तक सीधे-सीधे चोदने लगा, जीवा की पहली चुदाई में ही मैं उसे इस तरह से चोद रहा था जूस तरह की चुदाई बहुत कम लड़कियों की नसीब होती है और बहुत कम लड़को को जीवा जैसी शानदार सुंदर और कसी हुई चूत चुदाई के लिए मिलती है। इसलिए मैं उसे पूरे जोश के साथ चोद रहा था । एक तो मेरा लम्बा बड़ा मोटा लंड, वह भी-भी पूरी ताकत के साथ चूत की दीवारों को चीरता हुआ, आखिरी छोर पर जाकर बच्चेदानी के मुहँ से टकरा रहा था।

मेरा लंड चूत का छेद पूरी तरह से भरते हुए चूत की दीवारों से इस कदर चिपका जाता की जीवा लंड के ऊपर की हर सिकुडन, फूली हुई नसे, यहाँ तक की मेरे लंड के खून के तेज बहाव को महसूस कर सकती थी। तभी मैं ने लंड को थोडा और अन्दर ठेलने की कोशिश की। चूत की दीवारे अपनी अंतिम सीमा तक फ़ैल गयी। जीवा को महसूस हुआ की मेरा लंड नाभि से बस कुछ ही नीचे गहरे से उसकी टाइट चूत में धंसा हुआ है। मैंने जीवा के ओठो को अपने मुहँ में ले लिया और अपनी जीभ उसके मुहँ में डाल दी और दोनों के ओठ जीभ आपस में गुथाम्गुत्था हो गए।

मैंने महसूस किया की अब जीवा की चूत का संकरा छेद थोडा-सा खुल गया है और उसकी चूत के बीच की दीवारों की संकरी जगह फ़ैलने लगी है, अब मेरे लिए लंड पेलना थोडा-थोडा आसान हो गया है, जीवा की चूत की दीवारों का विरोध अब कमजोर हो गया है और चूत का लंड पर कसाव भी ढीला हो चला है। जीवा को चोदना अब मेरे लिए पहले से ज्यादा आसान था, जीवा की चूत मेरे मोटे लम्बे लंड के मुताबिक खुद को एडजस्ट कर चुकी थी। अब मैं चोदने की स्पीड मनमुताबिक घटा बढ़ा सकता था। ऐसा नहीं है कि लंड में दर्द नहीं होता, जब चूत कसी हुई हो तो लंड को भी उसे चोदने में दिक्कत होती है पर उस दबाब का अलग ही मजा है। अब मेरे लंड पर दबाव थोड़ा कम पड़ रहा था और वह आसानी से जीवा की चूत में अन्दर तक जा रहा था। मैं तेजी से धक्के-धक्के लगाते हुए बीच में पूरा लंड अन्दर तक पेल के कुछ देर रुक जाता।

जीवा की चूत की दीवारे अपनी अधिकतम सीमा तक फ़ैल कर मैं के लंड को अपने आगोश में लेने की पूरी कोशिश करती। इसी के चलते बच्चे दानी भी काफी ऊपर तक उठ जाती और जीवा को नाभि के नीचे तक मेरा लंड महसूस होता। चूत की इस गहराई तक कोई लंड जा सकता है उसने सपने में भी नहीं सोचा था। लगातार बच्चे दानी पर ठोकर लगने से उसको हलका हल्का दर्द होने लगा था लेकिन उसने मैं को ये बात नहीं बताई। मैं जीवा के इस नए दर्द से बेपरवाह मोटे मुसल जैसे लंड को जीवा की संकरी चूत में उसके आखिर छोर तक एक झटके में पेल देता। इस तरह से चोदने से जीवा एक तरफ आनंद में गोते लगाने लगाती दूसरी तरह उसे दर्द भी सहना पड़ता। लेकिन जीवा चुदाई के उत्तेजना में सब कुछ भूल चली थी, चूत की दीवारों से लगातार पानी रिस रहा था और दोनों पसीने से नहाये हुए थे। मुझे लगने लगा की अब वह ज्यादा देर तक जीवा को चोद नहीं पायेगा। उसका चरम अब करीब था, जीवा तो दो बार पहले ही झड चुकी थी। फिर भी मैं चाहता था कि जीवा मेरे झड़ने से पहले ही झड जाये। यही सोचकर उसने धक्को की स्पीड थोड़ी कम कर दी। जीवा का वासना से तपता शरीर उसके मन के नियंत्रण से पहले ही बाहर था। उसकी गीली चूत के अन्दर मचे तूफान को शांत करने के लिए किस तरह चूत की दीवारे लंड के चारो तरफ फैलती चली जा रही थी। उसका पूरा शरीर कापने लगा था, उसके स्तन और शरीर में अकडन आ गयी थी, पूरा शरीर पसीने से नहाया हुआ था।

मैंने जीवा की हालत का अंदाजा लगा लिया, वह भी ज्यादा देर तक नहीं रुक पायेगी। इसलिए अपना हाथ जीवा के चुतड के नीचे ले जाकर, उसके नरम ठोस गोल चुतड को अपनी हथेली में भरकर, जीवा को अपनी तरफ ऊपर की तरफ ठेलने लगा। जीवा की कमर ऊपर उठने से उसकी चूत का छेद और चौड़ा हो गया, मैं ने तेजी से अपना मोटा मुसल जैसा लंड जीवा की चूत में पेल दिया। लंड जीवा की दीवारों को फाड़ता हुआ चूत की जड़ में जाकर बच्चे दानी के मुहँ से जोर से टकराया।

उसके कूल्हों को पकड़कर, मैंने अपनी गति बढ़ा दी और अपने लंड को उसकी भीगी हुई गीली योनी की गहराई तक धकेलना शुरू कर दिया।

मैं उनकी चुचियों को बेरहमी से मसलने लगा और वह मादक आवाजें निकालने लगीं-उम्म्ह... अहह... हय... याह!

जितना हो सके उसे पीछे धकेलते हुए मैंने उसकी मखमली सुरंग को सहलाया। हम दोनों घुरघुराहट में सांस ले रहे थे और किसिंग कर रहे थे, थप् ठप की आवाजें हाल में गूँज रही थी। चोदने के दौरान, मैं जीवा पर चढ़ कर बेकरारी से उनको चूमने लगा। चूमते वक्त हमारे मुँह खुले हुए थे... जिसके कारण हम दोनों की जीभ आपस में टकरा रही थीं... और हमारे मुँह में एक दूसरे का स्वाद घुल रहा था। मैं कम से कम 15 मिनट तक उनके होंठों का किस लेता रहा। साथ मेरे हाथ उनके मम्मों को दबाने में लगे हुए थे, वह भी मेरा साथ देने लगी थीं। इस बीच मेरा लंड उसकी तंग, गर्म, चूत से अंदर और बाहर फिसल रहा था।

वह इसके हर मिनट को प्यार कर रही थी। जीवा उम्म्ह... अहह... हय... याह... करती हुई लगातार झड़ रही थी, उसकी योनि संकुचन कर रही थी और उसके संकुचन मेरे पिस्टन की कठोरता की लंबाई को ऊपर-नीचे कर रहे थे।

'अब मैंने फिर धक्का मारा तो कुछ दर्द का अहसास पूरे बदन में हुआ । मैं उसके उरोजो पर हाथ रख कर उन्हें दबा और सहला रहा था और उसके होंठ मेरे होंठो के अंदर थे । कभी सीने पर दर्द हुआ और योनि में धक्का लगा तो कुछ दर्द हुआ फिर कभी दर्द कम हुआ और फिर उसके पूरे शरीर में मस्ती-सी छाने लगी थोड़ी देर बाद जब वह अपने दर्द को लगभग भूल चुकी थी, तब मैंने मेरे दोनों हाथ उपर की तरफ कर उसकी कलाईयो को कस के पकड़ लिया, फिर उसकी पलकों को चूमा तो उसने लाजाते घबड़ाते हुए आँखे बंद कर दी। मेरे होंठ अगले ही पल उसके होंठो पर थे। उसके होंठो को खुलवा कर, मैंने उनके बीच अपनी जीभ डाल दी और अपने होंठो से उसके होंठो को' सील' कर दिया और मैं कस के उसके होंठ चूस रहा था और जीभ मुँह के अंदर उसके मुख की तलाशी ले रही थी ।

उसका सारा शरीर मस्ती से शिथिल हो गया तभी मैंने उसकी दोनों कलाईयो को पकड़ के खूब कस के धक्का मारा, और...हज़ारो बिजलियाँ एक साथ चमक गयी। हज़ारो बदल एक साथ कॅड्क उठे। दोनों कलाईयो में उसने जो चूड़ियाँ पहनी हुई थी उनमे थे आधी एक साथ चटक गयी और दर्द की एक लहर उसकी जाँघो के बीच से निकल के पूरे शरीर में दौड़ गयी। उसने चीखने की कोशिश की लेकिन उसके दोनों होंठ मेरे होंठो के बीच दबे थे और सिर्फ़ गो-गो की आवाज़ निकल के रह गयी। लेकिन मैं रुका नहीं एक के बाद दूसरा और... फिर तीसरा।

कलाईयो को पकड़और होंठो की पकड़ बिना कोई ढील दिए मैं धक्के पर धक्का मारे जा रहा था। 8-10 धक्के के बाद ही मैं रुका और कलाई पर पकड़ थोड़ी ढीली की । जब उसने दो पल बाद आँखे खोली तो उसका चेहरा दर्द से भरा था, उसने अपनी पलके बंद कर ली और सारा दर्द बूँद-बूँद कर पीती रही।

मैं उसकी कलाई छोड़ के उसका सर सहलाने लगा । फिर कस के उसके रसीले होंठो को चूम लिया। मैंने उसको थॅंक्स देने के लिए चूमा और उसके बाद तो पूरे चेहरे पर चुंबनो की बारिश कर दी और कस-कस के फिर से उसके स्तन दबाने, मसलने और उनका रस लेना शुरू कर दिया। उसका तन मन में एक बार फिर से रस भर गया, दर्द का अहसास कम हो गया था। बस नीचे अभी भी मीठी-सी एक टीस बची थी।

मैंने फिर बहुत हल्के-हल्के थोड़ा-सा बाहर निकाल के 'लंड' अंदर बहुत प्यार से घुसेड़ा।और मेरे हाथ उसकी कमर पर ले जाकर कुछ देर धीमे-धीमे करने के बाद, मेरा हाथ रे सीने पर जा पहुँचा और स्तनों को दबाना, सहलाना चालू कर दिया। थोड़ी देर में दोनों किशोर रसीले उरोज पकड़ के, कभी कमर, कभी नित्म्बो को मसला और मेरे धक्को की रफ़्तार बढ़ने लगी। मेरे होंठ और उंगलिया कभी होंठो का रस लेती, मेरी उंगलियाँ भी अब उसकी देह के कटाव और गोलाईयो से अंजान नहीं थी, कभी उसके सीने को छू कर, दबाती, सहलाती और मसलती । कभी रस कलशो का और जब मैंने उसके 'मदन द्वार' के उपर उस 'तिलस्मि बटन' को छू लिया तो उसके पूरे बदन में तरंगे दौड़ने लगी। थोड़ी ही देर में उसकी सारी देह काँप रही थी और वह उत्तेजना के चरम शिखर पर पहुँच के शिथिल हो गयी।

मैंने फिर से अंदर बाहर...करना शुरू कर दिया और कस के शॉट मारा तो ।वो सिहर उठी लेकिन अब इसमें सुख और मजा ज़्यादा था। थोड़ी ही देर मेमेरी स्पीड बढ़ गयी अब हम दोनों में से कोई रुकना नहीं चाह रहा था। मैंने उसे बाहो में कस के भींच लिया और दबा कर उसके, अंग-अंग को चूम लिया और वह भी बिना कुछ बोले इस नये सुख को, बूँद-बूँद करके सोख रही थी और धक्को की रफ़्तार और तेज हो गयी थी,

जिन चूत की दीवारों ने इतने मोटे लंड को बड़े आराम से अन्दर जाने दिया, खुद को फैलाकर लंड के लिए रास्ता बनाया, उसे चूत की दीवारों की कुचलने रगड़ने चीरने में बिलकुल भी दया नहीं आई। टक्कर इतनी जोर से लगी की जीवा की चीख निकल गयी। कमर ऊपर उठने पूरा लंड चूत में जाकर धंस गया और मैं ने भी बड़ी बेरहमी से लंड को पेला था। मैं ने फिर से उसी स्पीड से लंड निकालकर अन्दर डाल दिया। जीवा के पैर कमर पिंडलिया चूत की इस गहराई में इतनी जोरदार टक्कर के कारन कांपने लगे। दर्द और उत्तेजना के कारन रीमा की आंखे बंद थी। मैं झटके पर झटके लगा रहा था और पूरी गहराई तक जाकर जोरदार टक्कर मार रहा था। उसे जीवा को दर्द देने में मजा आ रह था, पहली बार जीवा के दर्द भरे चेहरे को देखकर मेरे चेहरे पर मुस्कान तैर गयी।

अब चोदने और चुदवाने की जुगल बंदी शुरू हुई। हालांकि शुरू में जीवा को काफी दर्द हो रहा था फिर वह जल्द ही मेरे हर धक्के के साथ उतनी ही फुर्ती से ऊपर की और अपना बदन उठाकर जवाब दे रही थी। उसके मन में बस एक ही इच्छा थी की वह कैसे मुझे ज्यादा से ज्यादा सुख दे जिससे की उसका प्रियतम, उसका मास्टर, उसका प्रदाता, ज्यादा से ज्यादा आनंद ले सके। जब मेरा मोटा और लम्बा लण्ड जैसे ही जीवा की संकरी चूत के योनि मार्ग में घुसता की दो आवाजें आतीं। एक ज्योत्स्ना की ओहह ह... और दुसरी मेरे बड़े और मोटे अंडकोष की दो जाँघों से टकराने की आवाज फट फट। यह आवाजें इतनी सेक्सी और रोमांचक थीं अब दोनों का दिमाग सिर्फ चोदने पर ही केंद्रित था।

एक हाथ वह जीवा के चुतड के नीचे लगाये था जबकि दूसरे हाथ से बारी-बारी से जीवा के स्तनों को बुरी तरह मसला रहा था। जीवा की उत्तेजना चरम पर थी इसलिए उसे इस तरह से स्तन मसलवाने में भी आनंद महसूस हो रहा था लेकिन मैं तो सिर्फ दर्द देने के लिए रीमा की छाती को बुरी तरह मसल रहा था। मैं अब जीवा की चूत में इतने जोरदार झटके लगा रहा था कि उसकी गोलिया जीवा के चुतड़ो और गांड से टकराने लगी थी। जीवा वासना से सरोबार हो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी।

जैसे ही मैंने गति पकड़नी शुरू की, उसकी सांसे तेज हो गई और वह मेरे धक्के के साथ लय मिला कर अपने कूल्हों को हिला रही थी और नतीजा ये हुआ हम दोनों एक साथ उत्तेजना के शिखर पर पहुँच रहे थे। मुझे फिर से मेरी गेंदों में झुनझुनी महसूस होने लगी और उसने भी इसे महसूस किया होगा क्योंकि मेरे लंड का सूपड़ा फूल कर बड़ा हो गया था और ये महसूस करके हुए उसने अपनी बाहों को मेरी पीठ के चारों ओर लपेटा, मुझे गले लागते हुए ऊपर खींच लिया और इस क्रिया, से मेरा लंड उसके अंदर एक इंच या उससे भी अधिक अंदर गया और मेरी गेंदे उसकी योनि के ओंठो के साथ चिपक गयी।

ज्योत्सना काँप उठी और इतनी पूरी बची हुई ताकत से आगे-पीछे हिलने लगी, वह मेरे लंड के सिर पर जो उत्तेजना डाल रही थी वह अवर्णनीय थी! मैंने लंड उसके गर्भाशय ग्रीवा में धकेल दिया था और मैं अपने लंड के सिर को उसकी योनि के अंत में महसूस कर सकता था और उसके गर्भाशय ग्रीवा का मुंह मेरे लंड के सिर पर शीर्ष के खिलाफ रगड़ रहा था।

उसे तो इस बात का अहसास ही नहीं था कि झड़ने की कगार पर पहुँच चूका मैं अब उसे पूरी स्पीड से चोद रहा था, उसे अपनी चूत की गहराई में लंड के सुपाडे से लगने वाली जोरदार ठोकर से होने वाले दर्द का भी अहसास नहीं था, उसके कोमल से गोरे स्तनों पर नाखून गड़ाती मैं की उंगलियो का भी होश नहीं था, मैं की वजह से गोरे स्तन लाल हो चले थे और उन पर नाखुनो के निशान साफ़-साफ़ नजर आ रहे थे।

मैं कराह उठा "ओह्ह मैं शूट करने वाला हूँ!" लेकिन फिर मुझे पाईथिया के वह सुनहरे शब्द याद आये । संयम और धैर्य । । वस्तुत्ता मुझे कोई जल्दी नहीं थी । मैं थोड़ा धीम हो गया। अब मैं इस सत्र को लम्बा खींचना चाहता था।

जारी रहेगी

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