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सातवा अध्याय
लंदन का प्यार का मंदिर
भाग 51
शक्ति का स्थापन
मैं कराह उठा "ओह्ह मैं शूट करने वाला हूँ!" लेकिन फिर मुझे पाईथिया के वह सुनहरे शब्द याद आये । संयम और धैर्य । । वस्तुत्ता मुझे कोई जल्दी नहीं थी । मैं थोड़ा धीमा हो गया। अब मैं इस सत्र को लम्बा खींचना चाहता था।
मैं अब जीवा की चूत में इतने लम्बे झटके लगा रहा था कि मेरे अंडकोष जीवा के चुताड़ो और गांड से टकरा रहे थे। जीवा वासना से सरोबार हो आनंद के सागर में गोते लगा रही थी, उसे तो इस बात का अहसास ही नहीं था कि झड़ने की कगार पर पहुँच चूका था और स्वयं पर नियंत्रण कर सत्र लम्बा करने का प्रयास कर रहा हूँ । अब उसे अपनी चूत की गहराई में लंड के सुपाडे से लगने वाली जोरदार ठोकर से होने वाले दर्द का भी अहसास नहीं था।
जीवा वासना के परमानन्द में डूबी हुई थी और बडबडा रही थी-ओह यस ओह यस, चोदो मुझे, अन्दर तक चोदो मुझे, अपने मोटे लंड से फाड़ दो मेरी चूत को, चीर के रख दी इन जालिम चूत की दीवारों को, दिन रात ये मुझे वासना की आग में जलाती रहती है, बुझा दो इनकी आग, मसल कर रख दो इन्हें, चोदो मैंऔर जोर से चोदो मुझे!
जीवा ने शरीर में जबदस्त अकडन आ गयी थी, उसने अपना सर तकिये में दबा लिया। वह सोच रही थी की मैं उसको बड़ी बेदर्दी से चोद रहा हूँ, मास्टर ने मेरी छोटी-सी नाजुक-सी चूत में अपना मोटा-सा मुसल लंड डालकर उसे सुरंग बना दिया है। इतनी तेज पेल रहा है कि मेरी जान निकल रही है। इतना दर्द उसे पूरे जीवन में नहीं हुआ जितना मैंने चुदाई में दिया था और वह, इसी दर्द के लिए ही तो तड़प रही थी, यही तो वह चाहती थी मैं उसे मसलु कुचलु रगड़-रगड़ कर पेलू और जबदस्त तरीके से चुदाई करूँ। तभी मेरा एक तेज झटका और उसकी कमर और पिंडली में भीषण दर्द पैदा कर गया।
गीवा चिल्ला उठी-आआआआअह्हह्हह्हह्हह्हह! ओअओअओअओह्ह्ह्ह! ओह्ह्ह ेडेल्फी मैं मर गई ओह मेरी योनि गयी।
इस झटके ने वही ख़ास काम किया इसने उसकी योनि की सोई हुई शक्ति को जगा दिया और अब उसका पूरा शरीर योनि बन गया और अब उसकी योनि की मांसपेशिया जग गयी और संकुचन करने लगी और लंड को जकड़ कर चूसने लगी । मुझे मजा आया और नेमे एक और करार झटका दिया और जीवा का अकड़ा हुआ शरीर कांपने लगा। उसकी कमर नितम्ब जांघे, पेट सब कुछ अपने आप हिलाने लगा, वह झड़ने लगी। पूरा शरीर कंपकपी से कापने लगा, मैं चुदाई करता रहा। जीवा के हाथ पांव सब ढीले पड़ने लगे। उसकी जांघे की पकड़ अब शिथिल हो चली। जीवा का कम्पन थमा लेकिन उसकी योनि का संकुचन चालू रहा और उसने मेरा टॉप गियर लगा दिया, उसने मुझे मजबूर कर दिया की जितनी तेज लंड चूत में पेल सकता था उसी स्पीड से उसकी चुदाई करूँ और मैं लंड पेलने लगा। मेरे हर शॉट जीवा की चूत की गहराई में लग रही थी। मैं जितने गहरे जितने तेज धक्के लगा सकता था लगा रहा था। लगा नहीं रहा था बल्कि उसकी योनि मुझ से लगवा रही थी । मेरा आपने ऊपर नियंत्रण खत्म हो गया था । अब योनि मेरे लंड पर नियंत्रण कर चुकी थी और अब लंड जीवा के अन्दर समां जाने को आतुर था। मेरे मुहँ से कराहने की आवाज निकलने लगी। जीवा बेसब्री से ओठ दबाये, बच्चेदानी पर लग रहो जोरदार ठोकर से होने वाला दर्द बर्दास्त कर रही थी। वह इसी तरह से चुदने के तो ख्वाब देखती थी। आज उसका ख्वाब पूरा हो रहा था, भले ही इसमे दर्द हो लेकिन उसकी सालो की दबी कामना पूरी हो रही थी। चूत के आखिरी कोने तक हचक-हचक के चुदाई, जिसमे चूत का कोई कोना बचे ना। पूरी चूत लंड से भरी हो और हवा जाने के भी जगह ना हो। उसकी मांसपेशियों मेरे लंड कके चारों ओर इतना तंग हो गयी की मैं वास्तव में महसूस कर रहा था कि अब योनि मेरे लंड को चूस रही थी ।
मेरे कराहने की आवाज और तेज हो गयी। मैं जीवा को बेतहाशा चूमने लगा, अपनी लार और जीभ दोनों उसके मुहँ में उड़ेल दी और उसके मुहँ की लार को पीने की कोशिश करने लगा। उधर मेरी कराहे सुन पाईथिया समझ गयी अब आगे क्या होने वाला है और उसने तुरंत पर्पल और ग्लोरिया क हाथ पकड़ा और उन्हें उस वेदी के पास ले आयी जहाँ मैं और जीवा सम्भोग कर रहे थे । उसने उन दोनों को एक-एक कटोरा दिया और उसे जीवा की योनि के पास लगा कर उन्हें कहा । इस अद्भुत रस की एक भी बूँद बेकार नहीं जानी चाहिए । सारा रस इस कटोरे में एकत्रित कर लेना ।
मेरी गोलियाँ फूलने लगी, उनके अन्दर भरा गरम गाढ़ा लंड रह ऊपर की तरह बह चला। तेज कराहने की आवाज के साथ अपने कुछ अंतिम धक्के अपनी पूरी ताकत से लगाने लगा। एक धक्का इतना तेज था कि जीवा दर्द से बिलबिला गयी और उसकी कमर अपने आप नीचे की तरफ खिसक गयी। मैंने झट से चुतड के नीचे लगे हाथ से उसकी कमर को ऊपर उठाया और चूत में अन्दर तक लंड पेल दिया।
हर धक्के के साथ मुझे अहसास हो रहा था कि उसके अन्दर कोई ज्वालामुखी फटने वाला है और गरम लावे से जीवा की चूत का हर कोना भर देगा। मेरे अंडकोषों में उबाल मार रहा गरम सफ़ेद लावा ऊपर की तरफ बह निकला और अगले तेज झटके के साथ जैसे ही लंड मैंने पीछे किया मेरे अन्दर का गरमसफ़ेद गाढ़ा लावा तेज पिचकारी के साथ लंड के छेद से निकल कर जीवा की चूत में गिरने लगा।
पहला शूट इतना तेज था की वह सीधे जीवा की बच्चे दानी से टकराया। जैसे ही मैंने पिचकारी मारना शुरू किया, उसने एक गहरी, गहरी कराह निकाली और मेरे साथ चिपक गयी ओर मेरे नीचे दब गई। जब उसने पहला शॉट महसूस किया, तो वह सिहर उठी और बोली, "इतना हॉट! इतना तेज! बाप रे! आप मुझे भर रहे हो" और वह कांपने लगी और रुकी नहीं मैंने झटके लगाने नहीं रोके, लेकिन लंड को वह चूत की गहराई में ही आगे पीछे कर रहा था। पहली पिचकारी ने ही मैंने जीवा की चूत लबालब भर दी। मेरा लावे जैसा गरम लंड रह, चुदाई से आग की भट्ठी बन गयी चूत की दीवारों पर बिलकुल वैसा ही था जैसा गरम तवे पर पानी की बूंदे।
शक्ति का स्थापन हो गया था शक्तिशाली वीर्य के रस से जीवा की चूत की दीवारे तर हो गयी। उनकी बरसो से लंड रस से तर होने की मुराद पूरी हो गयी। मेरा गाढ़ा सफ़ेद लंड रस इतना गाढ़ा और ज्यादा था कि जीवा की चूत के दीवारे उसे रोक नहीं पाई और उनसे रिसकर वह बाहर चूत के चारो तरफ छिटकने लगा।
दूसरी और तीसरी धक्के और पिचकारी मारते ही मेरे वीर्य का रस । जिवा का चुतरस और कौमार्य का मिला जुला रस मेरा वीर्य जीवा की चूत रस के साथ अच्छी तरह मथ गया। पाईथिया ने मुझे थपथपा कर रुकने का ईशारा किया और मैंने धक्के लगाने बिलकुल बंद कर दिए। जीवा की चूत से लंड रस की एक धार बहने लगी जिसे पर्पल और ग्लोरिया ने तुरंत कटोरे में एकत्रित कर लिया ।
जीवा मुंह खोलकर ओह्ह हाय करती हुई और भारी सांस लेती हुई कांप रही थी। । यह सबसे अविश्वसनीय अनुभूति थी और जीवा निरंतर कांप रही थी, प्रत्येक कंपकंपी के साथ "उउह्ह और आह" कर रही थी और फिर वह बेहोश हो गई।
मेरे घुटने अकड़ने लगे, इसलिए मैं जीवा के ऊपर गिर गया, अभी भी उसका ग्राम बदन मेरे चारों ओर लिपटा हुआ था, लंड अभी भी अंदर था और हम एक साथ जुड़े हुए थे। उसने मेरे कूल्हों के साथ अपने पैरों को मोड़ लिया और मैं उसकी छाती पर लेटा हुआ था, मैं जीवा को अभी भी ऐंठन हो रही थी, मेरे लंड को जकड़ रही थी, ऐसा लगा जैसे वह मेरे लंड को चूस रही हो।
पाईथिया, पर्पल और ग्लोरिया ने गुलाब की पंखुड़िया अपने हाथो में ली और हम दोनों पर बरसा दी फिर कुछ मोगरे के और दुसरे फूल बरसा दिए। धीरे से मैंने जीवा की गोरी पेशानी चुम ली फिर उसे चूमा और फिर मैं उसके होंठो को चूमने लगा और वह भी मेरा साथ देने लगी फिर मैंने अपनी जीभ उसके मुँह में डाल दी और वह मेरी जीभ को चूसने लगी मैंने उसे मुख्या पुजारिन बनने को बधाई दी और मैंने देखा की पाईथिया, पर्पल, ग्लोरिया । अन्य मुख्य पुजारिने, मंदिर की कनिष्ट पुजारिने, सेविकाएँ, अनुचर और परिचारिकायें सभी घुटनो के बल होकर प्राथना कर रही थी। मैं भी जीवा से अलग हुआ ।
जीवा की लंड रस से भरी चूत से मेरा लंड फिसल कर बाहर आ गया। उसका लंड जीवा की चूत रस, कौमार्य के लाहो और अपने ही सफ़ेद लंड रस से पूरी तरह सना हुआ था। जैसे ही जीवा की चूत से मेरा लंड निकल, रस की बूंदे टपकने लगी तो पाईथिया ने उन्हें अपने हाथ में ले लिया और जीवा की योनि से जो रस निकला उसे पर्पल और ग्लोरिया ने जल्दी से कटोरे में समेट लिया और फिर पाईथिया उठी और उसने सब को बधाई दी और मैंने देखा मेरा लंड अभी भी कठोर था ।
उसने उस मिले जल रस को मुझे और ग्लोरिया को चटाया और वह बोली ग्लोरिया अब तुम्हारी दीक्षा का समय हो गया है। मास्टर अब आप ग्लोरिया को दीक्षित कीजिये ।
जारी रहेगी...