प्रथम रात्रि

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प्राचीन काल में राज कुमार और राजकुमारी की प्रथम रात्रि
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आकाश में काले घने मेघ छाये हुये थे, इन मेघों के मध्य जब कभी बिजली कड़कती थी तो लगता था कि दामनी की रेखा सी खिंच गई है। गवाझ में खड़ा व्यक्ति व्याकुलता से कभी आकाश को देखता था कभी कक्ष के द्वार पर उसकी नजर चली जाती थी, कक्ष किसी राजमहल का था कक्ष के मध्य मे एक विशाल शय्या पड़ी थी जो रेशमी चादर से ढ़का थी रेशमी कशिदागारी से जड़ें गांव तकियें दिवान पर यहाँ वहाँ रखे हुऐ थे। कक्ष में लगी मशालों से आती रोशनी से कक्ष प्रकाशित हो रहा था बड़े-बड़े गन्ध दानों से सुवासित हवा कक्ष के वातावरण को सुगन्ध से भर रही थी। हमारा नायक बैचेन था। उसकी बैचेनी का कारण आप को थोड़ी देर में पता चलेगा। मेघों के गरजने की ध्वनि से अचानक पुरा कक्ष कांप गया। गवाक्ष पर लगे परदें हवा के साथ हिलोरें खा रहे थें। रात का प्रथम पहर था तभी कक्ष में एक सेविका ने प्रवेश किया, उस के हाथ में एक पात्र था। सेविका ने कहा कि वैघराज ने यह द्रव्य आप के लिये भेजा है वह स्वयं भी आप की सेवा में उपस्थित होने वाले है। यह कह कर सेविका पात्र को एक चौकी पर रख कर चली गयी। पुरुष ने जा कर पात्र के ढ़क्कन को हटा कर देखा तो उस में एक तेल भरा हुआ था।

यह देख कर उस ने पात्र को फिर से ढ़क दिया। उस के चेहरे पर कुछ संतोष आया लेकिन उस की उग्रता कम नही हुई। वह फिर से गवाक्ष के समंक्ष जा कर आकाश को देखने लगा, बाहर छाये घनधोर अंधकार के कारण कुछ दिखायी नही दे रहा था। ऐसा लग रहा था कि किसी भी क्षण भीषण झझावांत आने को था। तभी किसी ने कक्ष में प्रवेश किया, आने वाला कक्ष के व्यक्ति की उम्र का था तथा ऐसा लगता था कि वह सेवक से अधिक महत्व रखता है वह सीधे पुरुष के पास जा कर खड़ा हो गया। उसे देख कर उस ने पुछा कि अरे चक्रपाणि ऐसे संकट के समय तुम मुझे छोड़ कर कहां चले गये थे? चक्रपाणि जो उस पुरुष का सखा था, बोला की कुमार मैं आप की समस्या के हल के लिये राजवैघ के पास परामर्श के लिये गया था, राजवैघ ने एक औषधि अपने हाथों से बना कर भेजी है, वह स्वयं भी आते होगे। सखा की बात सुन कर बैचेन पुरुष के चेहरे पर चमक आ गयी।

कुछ देर बाद राजवैध कक्ष में पधारे और राजकुमार को प्रणाम करके बोले कि आप व्यर्थ ही चिंचित हो रहे है मैनें जो औषधी बना कर भेजी है उस का उपयोग करें आप उस की मालिश अंग पर कर ले, कुछ ही देर में वह अपना प्रभाव दिखाना शुरु कर देगा तथा एक पहर तक उस का प्रभाव बना रहेगा। परिक्षित प्रयोग है चिन्ता की कोई बात नहीं है। यह कह कर राजवैध ने जाने की आज्ञा मांगी और चले गये। चक्रपाणि नें राजकुमार से कहा कि अब तो आप को मुझ पर विश्वास आ गया होगा कि आप की समस्या का समाधान मिल गया है।

आप इस का प्रयोग कर ले, समय होने ही वाला है राजकुमारी का आगमन कभी भी हो सकता है, कहें तो किसी सेविका को पुकारु। यह सुन कर कुमार ने कहा कि इस का कष्ट मत करों, मुझे कुछ क्षणों के लिये एंकात दो। यह सुन कर चक्रपाणि ने हाथ से संकेत किया, सभी सेवक कक्ष से बाहर निकल गये चक्रपाणि भी उन के साथ चला गया। कक्ष का प्रवेश द्वार प्रहरियों ने बंद कर दिया, यह देख कर पुरुष ने जिसे अब हम राजकुमार के रुप में पहचानते है, अपनी धोती धीली की तथा उसे उतार कर शय्या पर रख दिया इस के बाद उस ने अपना लगोंट खोला तथा उसे भी अन्य वस्त्रों के साथ रख दिया। इस के बाद उस ने सेविका द्वारा लाये पात्र के ढक्कन को हटा कर अपनी दो ऊगलिंयां द्रव्य में डुबों कर उन पर लगे द्रव्य को अपने शिथिल पड़े लिंग पर लगा लिया। फिर उस को पुरे लिंग पर ऊपर से नीचे तक अच्छी तरह मला, इस से उसे भला सा लगा, उस ने फिर से पात्र में अपनी ऊगंलियां डुबायी और द्रव्य को लिंग पर भरपुर मात्रा में लगा कर उस की मालिश की। इस के बाद अपने हाथ को एक वस्त्र से पोंछ कर पहले लगोंट बांधा, उसके बाद धोती पहनी। उस के चेहरे पर संतोष के भाव परिलक्षित हो रहे थे।

उस ने कक्ष में रखे घन्टें को बजाया तो कक्ष का द्वार खुला और सेवकों के साथ चक्रपाणि ने प्रवेश किया उस ने कुमार को देखा तो उन के चेहरे के भावों से ही पता चला लिया की औषधी को प्रयोग कर लिया गया है। दोनों के मध्य आंखों के भावों से ही बात हो गयी। यह सब हो ही रहा था तभी बाहर कुछ कोलाहल सुनाई दिया। एक सेविका ने आ कर सूचित किया की राजकुमारी का आगमन हो गया है। देखते देखते कक्ष सेविकाओं से भर गया राजकुमारी की प्रधान सेविका सुदेवी ने कुमार के समक्ष आ कर निवेदन किया की कक्ष के बाहर राजकुमारी की पालकी आ पहुंची है। राजकुमार, चक्रपाणि और सुदेवी के साथ कक्ष के बाहर चल दिये। बाहर कहार पालकी ले कर खड़े थे, सुदेवी का संकेत पा कर पालकी धरती पर रखी गयी, सुदेवी ने जा कर पालकी का आवरण हटाया, राजकुमार ने अपना दायां हाथ राजकुमारी की तरफ बढ़ाया, राजकुमारी ने उन के हाथ को थाम कर पालकी से बाहर पांव निकाले और फिर वह पालकी से उतर गयी और राजकुमार का हाथ थामे ही कक्ष में प्रवेश कर गयी।

आज की दिन या कहे रात दोनों के जीवन की महत्वपुर्ण रात थी दोनों की मधुयामिनी थी, प्रथम मिलन था केवल दो प्राणियों का मिलन नही था बल्कि दो राज्यों का भी मिलन था इस लिये यह अवसर विशेष था, इस के लिये शुभ मुहर्त निकाला गया था। कुछ विशेष रीतिरिवाज भी होने थे जिन के लिये सुदेवी तैयारी करके आयी थी। राजकुमारी और कुमार एक दूसरें का हाथ थामें खड़ें थे। कक्ष में केवल चक्रपाणि, सुदेवी और कुछ खास सेवक ही उपस्थित थे। सुदेवी ने संकेत किया तो चक्रपाणि को छोड़ कर सब कक्ष से निकल गये। सुदेवी बोली की राजकुमार, राजकुमारी से मिलन करने से पहले आप को कुछ वचन देने होगे जो पहले से आप को ज्ञात है। राजकुमार ने चक्रपाणि की तरफ देखा, चक्रपाणि ने कहा देवी आप उन का उच्चारण करे। कुमार उन्हें दोहरा देगे।

सुदेवी बोली कि राजकुमारी आप की पटरानी यानि राजमहिषी होगी। यह स्थान उन से छिना नहीं जायेगा। राजकुमारी की संतान आप की उत्तराधिकारी होगी। चक्रपाणि ने सिर हिलाया, राजकुमार ने कहा कि राजकुमारी मेरी राजमहिषी होगी, उन की संतान मेरी उत्तराधिकारी होगी मैं ऐसा वचन आप सब के सामने राजकुमारी को देता हूँ। यह सुन कर सुदेवी बोली कि आशा के आप का वचन अटल रहेगा। सुदेवी ने राजकुमारी की तरफ सहमति से सर हिलया। राजकुमारी ने झुक कर कुमार के चरणों का स्पर्श किया, कुमार ने राजकुमारी को कंधों से पकड़ कर उठाया। चक्रपाणि और सुदेवी ने एक दूसरे को देखा और संकेत किया, अब दोनों को एंकात की आवश्यकता थी, चक्रपाणि ने परिहास करते हुए राजकुमारी से कहा कि अब कुमार आप के हो गये है इन का ध्यान रखियेगा। उस की बात सुन कर राजकुमारी मुस्करा दी। इस के बाद चक्रपाणि, सुदेवी और सभी सेवक कक्ष के बाहर चले गये उन सब को प्रातः काल तक बाहर ही रहना था।

एंकात होने के बाद कुमार ने राजकुमारी का हाथ पकड़ कर उन्हें शय्या पर बिठा दिया। राजकुमारी सकुचाती हुई कुमार की बगल में बैठ गयी। कुमार को राजकुमारी की धड़कने स्पष्ट सुनाई दे रही थी। कुमार कुछ देर मौन रहे फिर राजकुमारी का हाथ अपने हाथ में लेकर उन्होने राजमाता द्वारा दिये हुये रत्न जड़ित कंगन उन को पहना दिये और कहा कि यह राजमाता ने उपहार में दिये है अब आप इन की प्रहरी है। कुमार ने कहा कि आप को तो पता ही होगा कि आज हमारी मधुयामिनी है। आप के मन में कोई शंका या दुविधा हो तो कहे? राजकुमारी ने गरदन उठा कर राजकुमार को देखा, गौर वर्ण. बलिष्ठ, विशाल वक्ष के स्वामी अब उस के स्वामी है। यह शरीर अब उस का है। वह उन की आंखों को देख रही थी।

राजकुमार ने यह देख कर राजकुमारी की ढोडी पकड़ कर उन का चेहरा ऊपर उठाया और उसे ध्यान से देखा, राजकुमारी ने लजा कर अपनी आंखें अपनी हथेलियों से ढ़क ली। राजकुमार ने दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ कर चेहरे से हटाया और उन के होठों पर चुंबन ले लिया। राजकुमारी अपने में सिमट गयी। उन का मन तो कर रहा था कि वह इसी क्षण कुमार के विशाल वक्ष में अपना चेहरा छिपा ले लेकिन नारी सुलभ लज्जा के कारण वह ऐसा कर नहीं सकी। कुमार को उन के मित्र ने इस व्यवहार के बारे में पहले से ही परीचित करा दिया था, सो कुमार परेशान नहीं थे। वह केवल पहले अपनी पत्नी से कुछ वार्तालाप करके उन के तनाव को कम करना चाह रहे थे।

कुमार ने राजकुमारी से पुछा कि आप को हमारा महल कैसा लगा? किसी तरह की असुविधा तो नही हुई। राजकुमारी ने ना में सिर हिलाया। इस पर कुमार ने हंस कर कहा कि अब आप हमारी महिषी है इस लिये आप और हमारे मध्य संवाद होना चाहिये। हम आप की मधुर आवाज को सुनना चाहते है। राजकुमारी ने कहा कि मुझे किसी तरह की असुविधा का सामना नही करना पड़ा है आप इस ओर से निश्चित रहे। मै चाहती हूं कि अगर मेरे किसी व्यवहार या आचरण से आप रुष्ट हो तो मुझे अवश्य सुचित किजियेगा। मैं उसे सुधारने का प्रयत्न करुंगी।

कुमार ने अपनी वधूको देखा जो सोन्दर्य की मूर्तिमान प्रतिमा थी। यौवन से सारा शरीर भरा हुआ था। लगता था कि काम का हर बाण उन के पास था। कुमार उन को बांहों मे लेने को व्याकुल हो रहे थे लेकिन संकोच कर रहे थे। नहीं चाहते थे कि प्रथम मिलन में कुछ विघ्न पड़े। उन्होनें पुछा कि आप की सखी ने आप को आज के लिये पुरा पारंगत किया है? राजकुमारी ने सर हिला कर उत्तर दिया। कुमार को पता था कि सुदेवी ने राजकुमारी को प्रथम मिलन के लिये पुर्ण रुप से तैयार किया होगा। वह भी सारी जानकारी ले चुके थे।

लेकिन संकोच टूट नही रहा था, उन्हें यह भी ध्यान था कि आज मिलन होना आवश्यक है। इसी लिये उन्होने संकोच त्याग कर राजकुमारी को अपने निकट किया और उन को अपनी बांहों में भर लिया। दोनों ही इस आलिंगन के लिये लालायित थे लेकिन संकोच कर रहे थे जब एक बार संकोच हट गया तो दोनों अपने मिलन के लिये आतुर हो उठे। कुमार ने राजकुमारी के फुल की पंखुडियों से भी कोमल होठों को अपने होठों से भीचं लिया। राजकुमारी ने भी संकोच त्याग कर कुमार का साथ दिया और दोनों गहरे चुंबन में रत हो गये। कुछ देर बाद दोनों के होठं एक-दूसरे से अलग हुये। कुमार ने अपनी पत्नी के कठोर उरोजों कों अपने ह्रदय में महसुस किया तथा राजकुमारी ने कुमार के वक्ष स्थल की कठोरता को महसुस किया। दोनों के अंदर अब काम की अग्नि धधकने लगी थी। कुमार ने राजकुमारी का ऊपर का वस्त्र उतार दिया।

इस के बाद उन के कुंचों को ढ़के कंचुकी को भी पीठ पर हाथ ले जा कर उस की गाठ खोल कर उतार दिया, राजकुमारी के उन्नत कुंच अब विवस्त्र कुमार के सामने थे। राजकुमारी ने उन्हें अपनी बांहों से ढक लिया। कुमार ने अपने हाथ से उन की बांहों को हटा कर कुंचों का स्पर्श किया। कुंच पत्थर के समान कठोर थे लग रहा था मानों दो कटोरें उल्टें कर के रख दियें गये थें। कुमार ने उन को हाथों से सहलाया और फिर सर झुका कर उन के चुचकों को अपने होठों के मध्य ले लिया। राजकुमारी के मुंह से आह निकल गयी। कुमार ने अब यही दुसरे चुचुक के साथ किया। इस व्यवहार से दोनों के शरीर में काम अपनी आक्रमकता बढ़ा रहा था।

राजकुमारी ने हाथ बढ़ा कर कुमार के ऊपर के वस्त्र निकाल दिये दोनों कमर से ऊपर निर्वस्त्र थे। राजकुमारी ने कुमार के वक्षस्थल को अपने कोमल हाथ से सहलाया तथा पीठ से पीछे हाथ कर के कुमार को अपने नजदीक करके उन का चुंबन ले लिया। कुमार भी अपने होंठों से राजकुमारी की गरदन को चुम रहे थे। राजकुमारी उत्तेजना के कारण कांप रही थी, इसे देख कर कुमार ने राजकुमारी को शय्या पर लिट दिया, और उन के ऊपर झुक गये। उन के होंठ राजकुमारी के उरोजों को चुम कर उन का रस पी रहे थे। उन के होंठों ने राजकुमारी की नाभी का स्पर्श किया और नीचे के वस्त्रों के को खोलने का प्रयत्न किया। राजकुमारी ने इस में उन की सहायता कि और नीचे के वस्त्र धीले हो कर नीचे खिसक गये। हाथों ने कुंवारी योनि को स्पर्श किया तो राजकुमारी का सारा शरीर तरंगित हो गया, यही तरंग कुमार के शरीर में भी दौड़ रही थी। कुमार ने अपने लिंग में तनाव के कारण खिचांव महसुस किया उन्हें लगा कि अब इसे भी बंधंन से मुक्त कर देना चाहिये सो ऐसा सोच कर कुमार ने अपने नीचे के वस्त्र उतार दिये और अपना लगोट भी खोल दिया। ऐसा करने से कुमार का छहः इचं लम्बा मोटा लिंग बिल्कुल सीधा खड़ा हो गया। उस को देख कर राजकुमारी को बड़ा भय हुआ। उन को लगा कि इतना बड़ा अंग मेरे अंदर कैसे जायेगा। शायद कुमार यह बात भांप गये उन्होनें राजकुमारी के भंग के अंदर अपनी मध्यिमका उगुंली डालने का प्रयास किया लेकिन कसावट की वजह से वह प्रवेश नहीं कर पायी। इस पर कुमार ने दो उगंलियों से भंग के होंठों को अलग किया और मध्यमिका को योनि के अंदर डाल कर उसे अंदर बाहर करने लगे।

पहले तो राजकुमारी को दर्द का अनुभव हुआ लेकिन कुछ क्षण के पश्चात उन्हें इस में आनंद आने लगा। कुमार ने अब दो उगंलियाँ अंदर कर दी थी। राजकुमारी के मुख से आह निकलने लगी। कुमार ने योनि में से हाथ हटा कर उन की केले के समान जाँघों को हाथ से सहलाना शुरु कर दिया, फिर पंजों की उगलियों को होठों में लेकर चुमा। इस के राजकुमारी का सारा शरीर कांपने लगा। कुमार ने यह क्रिया दूसरे पंजें के साथ भी की। कुमार और राजकुमारी अब समागम के लिये पूर्ण रुप से तैयार थे।

राजकुमार ने राजकुमारी की जाँघों को अलग करके मध्य में स्थान बना कर लिंग को योनि के मुख पर रख कर धक्का दिया। लिंग योनि के मुख से फिसल गया। कुमार को ध्यान आया कि किसी स्नेहक का होना आवश्यक था लेकिन वह यह भुल गये थे। चक्रपाणि ने भी याद नही दिलाया था। अब कुछ नहीं हो सकता था। सो दूबारा कुमार ने लिंग के सुपारे को योनि के मुख पर रख कर जोर लगाया तो सुपड़ा योनि में प्रवेश कर गया। लेकिन राजकुमारी के मुख से चीख निकल गयी। कुमार को पता था कि आज संभोग करना जरुरी है इस लिये वह राजकुमारी के दर्द की चिन्ता नही कर सकते थे। उन्होनें इस बार पुरे बल से धक्का लगाया तो लिंग योनि की झिल्ली को तोड़ता हुआ बच्चेदानी के मुख तक पहुंच गया। औषधि के कारण लिंग पत्थर की तरह कठोर था। इतने तीव्र प्रहार के कारण राजकुमारी दर्द से तड़फ रही थी उनके मुख से चीख निकल रही थी। एक बार तो कुमार को लगा कि लिंग को निकाल लेना चाहिये फिर उन्हे चक्रपाणि के शब्द याद आये कि प्रथम रात्रि को आप की कोई भी दया भविष्य में आप के रिस्ते को तय करेंगी। यह सोच कर वह जोर-जोर से धक्के लगाने लग गये। राजकुमारी नीचे से दर्द के कारण सिर इधर-उधर पटक रही थी लेकिन कुछ देर के धक्कों के बाद उन का दर्द कम हो गया तथा वह भी आनंद लेने लगी। अब उन्हें सुदेवी के वचन याद आये कि प्रथम मिलन में होने वाले कष्ट से बचा नही जा सकता है उस के बाद ही आनंद की प्राप्ति होती है। इसी लिये वह इस दर्द को सह गयी।

कुमार धक्कों के कारण थक गये थे सो वह कुछ क्षण के लिये रुकें लेकिन अब नीचे से उन की पत्नी अपने कुल्हों को उछाल कर लिंग को अंदर-बाहर कर रही थी। यह देख कर कुमार फिर से दूगने जोश के साथ धक्कें लगाने लगे। कुछ क्षणों बाद उन्होनें अपने आप को राजकुमारी के ऊपर से अलग कर लिया और पालथी मार कर शय्या पर बैठ गये, राजकुमारी को उठा कर अपनी गोद में बिठा लिया तथा उन के पांव अपनी पीठ की ओर कर दिये। दोनों हाथों को राजकुमारी के कुल्हों के नीचे लगा कर उन्हें ऊपर उठाया और अपने लिंग के मुंख पर टिका दिया कठोर लिंग एक बार में ही योनि में घुस गया। पुरी योनि पार कर के लिंग के सुपारे ने राजकुमारी की बच्चेदानी के मुख पर प्रहार किया। राजकुमारी फिर से कराही। उन की बांहें कुमार की गरदन पर लिपट गयी। अब तक वह समझ गयी थी कि कुमार काम कला में पारंगत है और उन्हें काम सुख की कमी नहीं होगी। कुमार के बारें में जो भी बातें उन के कानों में पड़ी थी वह सब व्यर्थ थी। कुमार के जीवन के बारें में शत्रुओं ने व्यर्थ का प्रलाप उन को कुमार के विरुध करने के लिये किया गया था। उस प्रलाप में रंच मात्र भी सच्चाई नहीं थी, अगर कोई राजकुमार स्त्रीयों से संबंध नही रखता है तो इस का अर्थ यह तो नही है कि वह नामर्द है। कुमार के होंठों ने राजकुमारी के होंठो को चुमा फिर कुमार की जिव्हा राजकुमारी के मुख में प्रवेश कर के खिलवाड़ करने लगी। राजकुमारी भी अब कुमार का इस खेल में साथ दे रही थी। उन की जिव्हा भी कुमार के मुख में प्रवेश करके अढ़खेलियां करने लगी।

इस दौरान कुमार के हाथ राजकुमारी के उरोजों का मर्दन कर रहे थे। दोनों के शरीर एक ही लय में ऊपर नीचे हो रहे थे। कुमार को जैसे कुछ याद आता तो उन्होनें हाथों से पकड़ कर राजकुमारी को लिटा दिया और उन के ऊपर आ गये। शायद उन को ध्यान आया कि वीर्य व्यर्थ नही जाना चाहिये सो अब उन्होनें राजकुमारी की दोनों टांगे अपने कंधो पर रख ली और योनि में लिंग का प्रवेश कराया, अब अंदर तरलता बढ़ गयी थी धर्षण कम हो गया था। लेकिन कसावट बहुत थी कुछ देर बाद ही कुमार स्खलित हो कर राजकुमारी के ऊपर लेट गये। राजकुमारी भी स्खलित हुई थी। क्षणिक मुर्क्षा के बाद दोनों की चेतना वापस आ गयी। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और एक प्रगाड़ आलिगंन में बंध गये। इस के बाद दोनों गहन निंद्रा में चले गये।

सुबह कुमार की आंख प्रहर के घंटे की ध्वनि से खुली, उन्होनें अपनी वधू को देखा जो पांव को सिकोड़े हुए सो रही थी। वह शय्या से उठे और एक वस्त्र से राजकुमारी को ढ़क कर वस्त्र पहन कर नित्य क्रिया के लिये कक्ष से बाहर निकले। उन के जगने का पता चलते ही सेवक, सेविकायें जो बाहर ही प्रतिक्षारत् थे कक्ष में प्रवेश करने लगे तथा कुमार के सेवक उन के साथ चल दिये।

सुदेवी ने कक्ष में आ कर देखा कि राजकुमारी निश्चित हो कर सो रही है। तथा उन के ऊपर वस्त्र पड़ा हुआ है, सुदेवी को कुमार की उदारता के बारे में पता चला। वह मन ही मन प्रसन्न हुई की कुमार के रुप में राजकुमारी को योग्य वर मिला है। उसने राजकुमारी को हाथ से झकझोर कर उठाया तो राजकुमारी अचकचा कर उठ कर बैठ गयी जब उन्होनें अपने को देखा तो झट से वस्त्र को अपने शरीर पर खीचं कर लपेट लिया। सुदेवी बोली की राजकुमारी रात कैसी बीती तो राजकुमारी ने शर्मा कर अपना चेहरा हथेलियों में छिपा लिया। सुदेवी मंद हास्य के साथ बोली की देवी अब छुपाइये मत रात को कक्ष से आती ध्वनियों ने सब पोल खोल दी है।

राजकुमारी बोली कि जब सब कुछ पता है तो पुछती क्यों हो? सुदेवी बोली कि देवी के मुख से वर्णन सुनने की इच्छा है। राजकुमारी जो अब पुरी तरह से जाग्रत हो चुकी थी बोली कि सब बताऊंगी अभी तो चले। यह सुन कर सुदेवी को कुछ याद आया और वह बोली कि देवी महाराजा और महारानी के दर्शन करने जाने है, आप और कुमार दोनों को निमंत्रित किया गया है। आप शीघ्रता करें मैं चक्रपाणि तक यह संदेश भिजवाती हूँ। राजकुमारी ने वस्त्र पहने तथा वह सेविकाओं की ओट में अपनी पालकी में बैठी और रनिवास की ओर चल दी।

कुमार और राजकुमारी का महाराजा से मिलना

सुदेवी ने चक्रपाणि को महाराजा एवं महारानी के दर्शन के लिये कुमार और राजकुमारी के जाने की संदेश भिजवा दिया। कुमार स्नान करके संध्या के लिये जाने वाले थे तभी चक्रपाणि ने आकर कर कुमार को स्मरण कराया कि उन्हें माता-पिता के दर्शन करने जाना है, कुमार नें यह सुन कर संध्या करके तैयार होना शुरु कर दिया, जब वह तैयार हो गये तभी सुदेवी की भेजी सेविका नें आ कर कहा कि देवी आने वाली है। कुमार अपनी पत्नी के स्वागत में खड़े हो गये, चक्रपाणि हाथ जोड़ कर एक तरफ खड़ा हो गया। तभी सुदेवी ने कक्ष में प्रवेश किया और कुमार का अभिवादन करके कहा कि देवी उपस्थित होने की आज्ञा चाहती है, कुमार के गरदन हिलाने पर सुदेवी राजकुमारी को लेने कक्ष से बाहर चली गयी।

राजकुमारी नें सुदेवी के साथ कक्ष में प्रवेश किया, दोनों को एंकात देने के उदेश्य से चकपाणि औरर सुदेवी कक्ष से जाने लगे तो कुमार नें हाथ के इशारे से उन्हें रोका और बोले कि देवी से पुछे कि वह महाराजा और महारानी के दर्शन के लिये तैयार है। राजकुमारी नें सुदेवी की तरफ देख कर गरदन हिलायी, सुदेवी नें हाथ जोड़ कर कुमार से कहा कि देवी आप के साथ दर्शनों के लिये प्रस्थान करने के लिये उत्सुक है। यह सुन कर चक्रपाणि नें कुमार से चलने का इशारा किया। कुमार सेवकों समेत कक्ष से बाहर निकले, उनके पीछे राजकुमारी सुदेवी और सेविकायों सहित पालकी में सवार हो कुमार के पीछे चल दी। यह समुह महाराजा के कक्ष में पहुंचा तब कुमार कक्ष के बाहर अपनी पत्नी के लिये ठहर गये।

चक्रपाणि नें सुदेवी को कहा की कुमार देवी की प्रतीक्षा कर रहे है, राजकुमारी अपनी पालकी से उतरी और धीरे-धीरे चल कर कुमार के साथ खड़ी हो गयी। फिर चक्रपाणि, सुदेवी आगें और कुमार तथा राजकुमारी नें कक्ष में प्रवेश किया चक्रपाणि नें दोनों के आने की घोषणा की। महाराजा और महारानी अपने आसनों पर आसीन थे। कुमार और राजकुमारी नें दोनों को प्रणाम करके चरण स्पर्श किये। राजा नें पुत्र को और रानी नें पुत्रवधु को गले से लगाया फिर कुमार पिता के साथ के आसन पर और राजकुमारी महारानी के साथ के आसन पर आसीन हो गयी।

राजा-रानी ने सेवक सेविकायों के लिये दान दिया और गरीबों में बांटें जाने वाले दान को स्पर्श करके सेवकों को उन्हें ले जाने का इशारा किया। इस के बाद सेवक सेविकायें कक्ष से निकल गये। केवल राजा-रानी और चक्रपाणि और सुदेवी कक्ष में उपस्थित थे। रानी नें सुदेवी से पुछा कि राजकुमारी का मन यहां लग गया है? तो सुदेवी ने रानी को बताया कि राजकुमारी अपने स्वागत से प्रसन्न है तथा चाहती है कि उन्हें आप दोनों की सेवा करने का अवसर प्रदान किया जाये। यह सुन कर रानी नें कहा कि वह भी अपनी पुत्रवधू से प्रसन्न है। रानी नें राजकुमारी को उपहार में एक नौलखा हार पहनने को दिया। महाराजा नें कुमार को और अपनी बहू को भी गहनें उपहार में दिये। इस के बाद चक्रपाणि और सुदेवी को भी उपहार मिले। राजा पुत्र से और रानी पुत्रवधू से वार्तालाप में मग्न हो गये। तभी सेविका नें आ कर कहा कि भोजन लग गया है आप सब लोग भोजन कक्ष में चले।

सब लोग भोजन कक्ष में चले गये। इस सब में दोपहर हो गयी। अब सब के विश्राम का समय था। माता-पिता से कुमार और राजकुमारी नें विदा ली और अपने कक्षों की तरफ चल दिये।

सुदेवी नें चक्रपाणि से कहा कि देवी चाहती है कि कुमार उन के कक्ष में कुछ देर विश्राम करें। चक्रपाणि नें कुमार को देखा तो कुमार बोले कि जैसी देवी की इच्छा। सुदेवी मुस्कराई और सब लोग राजकुमारी के कक्ष के लिये चल दिये। राजकुमारी का कक्ष कुछ दूर था, सुदेवी नें पालकी वालों को बुलाया तो राजकुमारी नें कहा कि वह कुमार के साथ चलेगी। यह सुन कर चक्रपाणि और सुदेवी कुमार और राजकुमारी से पीछे हो गये। सेवक सेविकायें उन के आगें निकल गये। अब केवल कुमार और राजकुमारी थे। कुमार नें राजकुमारी की तरफ हाथ बढ़ाया तो राजकुमारी नें अपना हाथ बढ़ा दिया। कुमार उन का हाथ पकड़ कर धीरे-धीरे चलने लगे। राजकुमारी बोली कि कुमार रात को हमारी किसी बात से नाराज तो नहीं है। कुमार ने कहा कि यही प्रश्न में आप से करने वाला था। राजकुमारी बोली कि हो सकता है पहली बार में कोई घृष्टता हो गयी हो तो क्षमा प्रार्थी हूँ। कुमार नें कहा कि ऐसी कोई बात नहीं है आप चिन्ता ना करें।

राजकुमारी का कोमल हाथ पकड़ कर कुमार उन के कक्ष में प्रवेश कर गये। सुदेवी नें दोनों को आसन प्रदान किया। सेविकाओं नें स्वादिस्ट पेय सेवा में उपस्थित किये। चक्रपाणि नें कुमार से कहा कि वह कुछ देर में सेवा में उपस्थित होता है तो इशारा समझ कर सुदेवी भी कक्ष से निकल गयी। कुमार और राजकुमारी दोनों एंकात में रह गये। राजकुमारी नें कुमार के चरणों का स्पर्श किया तो कुमार नें उन्हें उठा कर ह्रदय से लगा लिया। राजकुमारी के पुष्ट उरोजों के तने कुंचकों नें कुमार के ह्रदय में सीधे वार किया। कुमार के आंलिगन पाश में राजकुमारी बंध गयी। कुमार के होंठ राजकुमारी के अधरों का पान करनें लगे। कुछ देर पश्चात जब चुम्बन समाप्त हुआ तो राजकुमारी बोली कि आप से एक प्रार्थना है, कुमार बोले कि आप बताये। राजकुमारी सकुचा कर बोली कि आशा है कुमार प्रार्थना को अन्यथा ना लेगे। कुमार नें कहा कि आप हमारी पत्नी है अर्धागनी है, आदेश करें। राजकुमारी नें कहा कि मैं स्वास्थय ठीक ना होने के कारण आप की सेवा में रात्रि में उपस्थित नहीं हो पाऊंगी। कुमार नें कहा कि बस इतनी सी बात के लिये आप परेशान थी, आप आज रात्रि अपने कक्ष में विक्षाम करें। तभी कक्ष के द्वार पर किसी नें दस्तक दी। कुमार नें आने को कहा तो चक्रपाणि और सुदेवी थी।