प्रथम रात्रि

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उन की कराह सुन कर कुमार को बहुत क्षोभ हुआ लेकिन अब कुछ नहीं किया जा सकता था। उन्हें ध्यान आया कि देवी के औषधी लगानी है तो वह उन के अतः वस्त्र खोलने लगे। फिर पात्र में से ऊंगिलयों में औषधी लगा कर देवी की योनि में औषधी लेपन कर दिया। पात्र में से औषधी से ऊंगलियां भर कर उसे नितम्बों के मध्य गुदा मुख पर भी लेप दिया, इस से गुदा के द्वार पर हो रही जलन से देवी को छुटकारा मिला। यह देख कर कुमार नें अनामिका को औषध से सान कर गुदा के अंदर कर के गुदा के अंदर लेपन कर दिया। जिस से गुदा के अंदर देवी को शीतलता का अनुभव हुआ। इस केबाद कुमार नें देवी के वस्त्र सही कर दिये। देवी निश्चल पड़ी थी। कुमार नें देवी के अधरों का स्पर्श करके पुछा कि जलन में कमी आयी है? राजकुमारी बोली कि आप को हर समस्या का समाधान पता है।

प्रातःकाल से हो रही पीड़ा अब कम हुई है। कुमार बोले कि हमें यह पता नहीं था कि यह औषधी आप की पीड़ा में भी लाभप्रद रहेगी नहीं तो पहले आ कर लेपन कर देते। देवी नें अपनी बांहें कुमार की गरदन में डाल कर उन्हें अपने ऊपर गिरा लिया और दोनों काम क्रीड़ा में मग्न हो गये। पहर बीतने को था इस कारण कुमार अपनी प्रेयसी के पास से अपने कक्ष लौट गये। संध्याकाल में किसी मंत्रणा में उन्हें भाग लेना था। चक्रपाणि भी उन के साथ कक्ष की तरफ चल दिया।

रात्रि के लिये कुमार का राजनिवास में जाना

सुदेवी ने चक्रपाणि से पुछा था कि आज की रात के लिये कोई संदेश है। चक्रपाणि ने सुदेवी को तब बताया था कि देवी को रात्रि में कुमार के पास आना ही है। अब दोनों हर अनुभव ले चुके है सो आशा करें कि संयम रख पायेगे। दंपत्तियों के मध्य किसी को नहीं आना चाहिये, उस की यह बात सुन कर सुदेवी के चेहरे पर मंदहास्य छा गया था। कुमार की अपने मित्रों के साथ मंत्रणा चल रही थी, चक्रपाणि भी उस में भाग ले रहा था। रात्रि के प्रथम पहर के खत्म होने तक यह मंत्रणा चलती रही। मंत्रणा के समाप्त होने के बाद सुदेवी की भेजी सेविका नें देवी का संदेश कुमार को दिया कि देवी की प्रार्थना है कि कुमार आज की रात्रि उन के कक्ष में व्यतीत करें। कुमार नें यह सुन कर अचरज से चक्रपाणि की तरफ देखा।

चक्रपाणि नें ना में गरदन हिलायी। फिर वह कक्ष से बाहर चले गये। कुछ देर के पश्चात वह दूबारा कक्ष में आये तो कुमार के कानों में कुछ कहा। कुमार नें सेविका से कहा कि देवी से मेरा संदेश कहे कि आज अपहार्य कारणों से देवी की प्रार्थना का पालन करना संभव नहीं हो पायेगा। हम इस के लिये क्षमा प्रार्थी है। सेविका संदेश ले कर वापस चली गयी। उस के जाने के बाद कुमार बोले कि अब क्या होगा? चक्रपाणि बोला कि देवी अपने इस अपमान को आसानी से स्वीकार नहीं करेगी।

कल पता चलेगा कि उन की क्या प्रतिक्रिया है। आप को उन के क्रोध का सामना करने के लिये तैयार करना पड़ेगा। कुमार इस घटना क्रम से खिन्न थे। वह बोले कि हम अपनी पत्नी की इच्छा पुरी नहीं कर सकते? कुमार की खिन्नता तो भाप कर कहा कि कुमार सुरक्षा से खिलवाड़ नहीं किया जा सकता। आवेदन बहुत देर से आया था, प्रथम पहर में आता तो कोई कारण नहीं था की प्रार्थना नहीं मानी जाती। कुमार और चक्रपाणि काफी देर तक वार्तालाप करते रहे फिर चक्रपाणि कुमार को प्रणाम करके चले गये। उन को मन में पता था कि देवी इस को आसानी से नहीं लेगी और उन की प्रतिक्रिया कठोर होगी।

राजकुमारी का कुमार से नाराज होना

दिन के पहले पहर में कुमार तो नित्यकर्म करने में व्यस्त रहे, फिर संध्या में लग गये। चक्रपाणि नें जब कक्ष में प्रवेश किया तब उसे राजकुमारी के कोप के बारें में पता चल चुका था। वह इसी विषय में कुमार से वार्तालाप करने आया था। कुमार नें उस को देख कर कहा कि मित्र आज इतनी देर क्यों हो गयी? चक्रपाणि नें कहा कि मैं देवी के कक्ष पर चला गया था वहां से समाचार ले कर आ रहा हूँ इस लिये देर हो गयी है। कुमार नें प्रश्नवाचक मुद्रा में देखा तो चक्रपाणि नें बताया कि देवी कोप भवन में चली गयी है।

कल आप नें उन के कक्ष में रात्रि व्यतीत करने की उन की प्रार्थना ठुकरा दी थी वह इस अपमान से बहुत आहत है इसी लिये प्रातः काल से शय्या से उठी नहीं है। ना नित्यकर्म किया है। पेट के बल बिस्तर पर पड़ी है। किसी सेविका की कोई बात नहीं सुन रही है। मुझे लगता है कि अब आप को चल कर उन के क्रोध का शमन करना पड़ेगा। सुदेवी नें भी कुछ कहने से मना कर दिया है। मुझे कुछ ऐसा ही होने की आशंका थी इसी लिये सबसे पहले में उन के कक्ष में गया। वहां बाहर ही सुदेवी से मिलना हुआ और यह पता चला तो आप के पास चला आया हूं। आप बताये कि क्या करना है? कुमार नें असहाय मुद्रा में चक्रपाणि की ओर देखा। चक्रपाणि नें कुछ सोच कर कुमार से कहा कि देवी के क्रोध को आप ही समाप्त कर सकते है। इस लिये आप को चलना पड़ेगा। कुमार बोले कि चलो चलते है।

वह अपनी पत्नी से मिलने के लिये उन के कक्ष की तरफ चल दिये। कक्ष के बाहर सेविकायें खड़ी थी सुदेवी भी उन में से एक थी। कुमार को समझ नहीं आ रहा था कि वह राजकुमारी का कैसे सामना करें। चक्रपाणि भी इस अवस्था में कोई सहायता नहीं कर पा रहा था। कुमार अकेले कक्ष में प्रवेश कर गये। अंदर राजकुमारी बिस्तर पर उलटी पड़ी थी। उन के वस्त्र और केश बिखरे पड़ें थे। अपनी पत्नी के इस रुप को देख कर भी कुमार को उस पर स्नेह हो रहा था। वह चुपचाप शय्या के पास जा कर खड़े हो गये। देवी को लगा कि सुदेवी है तो वह बोली कि तुम यहां से चली जा मुझे कुछ नहीं सुनना है। अपने अपमान को मैं पचा नहीं पा रही हूँ। मेरा अब जीवित रहना सम्भव नहीं है। कुमार चुपचाप सुनते रहे। जब वह कुछ नहीं बोले तो राजकुमारी नें मुह मोड़ कर देखा तो कुमार को खड़ा देख कर अचकचा कर बैठ गयी।

कुमार नें पुछा कि कोप में क्यों है तो वह बोली कि जैसे आप को पता नहीं है? कुमार ने कहा कि मेरी धृष्टता के लिये आप अपने आप को कष्ट क्यों दे रही है। राजकुमारी चुप रही। कुमार राजकुमारी के समीप बैठे तो देवी उन से दूर खिसक गयी। कुमार बोले कि आप का क्रोध उचित है, आप नें पहली बार मेरे से कोई मांग करी थी और मैनें उसे नकार दिया। मैं अपनी करनी के लिये क्षमाप्रार्थी हूं लेकिन एक बार आप को मेरा पक्ष भी जानना चाहिये। राजकुमारी कुमार की तरफ देख रही थी कि उनका पति उनके क्रोध को भी झेल सकता है।

कुमार नें अपनी बांह बढ़ा कर राजकुमारी को अपने से सटा कर कहा कि आप यह कैसे मान बैठी की हम आप के सामिप्य के इच्छुक नहीं है। आप नें यह इच्छा अगर अपरान्ह में व्यक्त कर दी होती तो हम रात्रि में आप के पास होते। लेकिन आप की इच्छा जब हम तक पहुंची तब तक रात्रि का दूसरा पहर लग गया था, हमारे सुरक्षा प्रहरी अपने कार्य में लग गये थे। हम तो आने के लिये उत्सुक थे लेकिन सुरक्षा अधिकारी नें मना कर दिया। उस के अनुसार उस समय सुरक्षा को आपके कक्ष पर लगाना उचित नहीं था, आप की निजता का भी ध्यान था। कक्ष की गहन तलाशी करनी पड़ती इसी कारण वश अपनी भार्या के सानिध्य की इच्छा होते हुये भी हम को मन मारना पड़ा।

राज परिवार की सुरक्षा में कोई कोताही हमें स्वीकार नहीं है। आप स्वयं इस खतरें को समझ सकें इसी लिये हम स्वयं आप के समक्ष आये है। आप को पुरा अधिकार है कि आप हम पर क्रोधित हो लेकिन आप की निजता और सुरक्षा के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जा सकता, यही मुख्य कारण था रात्रि में आप के कक्ष में ना आने का। अब हम यह आप पर छोड़ते है आप हमारे साथ क्या व्यवहार करें। यह कह कर कुमार चुप हो गये। लेकिन उन की बांह राजकुमारी को अपनें से चुपकायें रही। कुमार के स्पष्टीकरण से देवी का क्रोध कम हो गया था, लेकिन पुर्ण रुप से गया नहीं था। कुमार नें कहा कि चक्रपाणि से पुछ ले। सुदेवी को भी बुला लेते है। यह कह कर कुमार नें राजकुमारी को अपनी बांहों से मुक्त कर दिया। कुमार की आवाज सुन कर सुदेवी और चक्रपाणि हाथ जोड़ कर कक्ष में आ गये और राजकुमारी के समक्ष सिर झुका कर खड़े हो गये।

कुमार ने चक्रपाणि से पुछा कि रात्रि के किस पहर से सुरक्षा कड़ी कर दी जाती है तो जबाव मिला कि प्रथम पहर के खत्म होते ही सुरक्षा कड़ी कर दी जाती है उसके बाद किसी तरह से उसे बदला नहीं जा सकता है। सुरक्षा में चूक होने का डर रहता है। इस नियम का पुरी कठोरता से पालन होता है। राजपरिवार भी इस का उल्लघन नहीं कर सकता है। देवी ने सुदेवी को देखा तो वह बोली कि सुरक्षा के कारण रात्रि होने के बाद प्रहरीयों को बदलना संभव नहीं है। इस कारण से कक्ष की सुरक्षा बदली नहीं जा सकती है लेकिन यह बात सामान्य जन नहीं जानते है।

पहले कुमार के मुह से, फिर चक्रपाणि और सुदेवी के मुह से स्पष्टीकरण सुन कर देवी का क्रोध दूर हो गया, अब उन्हें अपने व्यवहार पर ग्लानी हो रही थी। कुमार नें यह जान लिया था, अपनी पत्नी को ग्लानी से बचाने के लिये उन्होनें चक्रपाणि और सुदेवी से कहा कि आज की रात्रि वह देवी के कक्ष में विश्राम करेगें इस का प्रबन्ध किया जाये। कुमार के वचन सुन कर देवी के चेहरे पर चमक आ गयी। सुदेवी अपनी सखी की दशा समझ रही थी। वह बोली कि मैं प्रबन्ध करती हूं।

चक्रपाणि ने कुमार से कहा कि आप के चक्कर में मैं तो अभी तक भुखा हूं कुमार बोले कि मित्र मेरा भी यही हाल है कुछ करो। उन दोनों की बात सुन कर राजकुमारी शय्या से उठ कर खड़ी हो गयी और दोनों से बोली कि आप मेरी प्रतिक्षा किजिये, मैं व्यवस्था करती हूँ यह कह कर वह सुदेवी का हाथ पकड़ कर कक्ष से बाहर चलने लगी। चक्रपाणि बोला कि देवी हम अभी वापस आते है तब तकआप व्यवस्था करें। यह कह कर कुमार का हाथ पकड़ कर उन्हें ले कर कक्ष से बाहर निकल गये। दोनों पास के उपवन में चले आये। कुमार ने मित्र से पुछा कि अब वहां से क्यो चले आये? चक्रपाणि नें कहा कि कुमार आप कुछ नहीं समझते, देवी स्नान करने के बाद तैयार होने अपने कक्ष में ही आयेगी तब हमारी वहां क्या आवश्यकता है? कुमार तो कुछ कुछ समझ आया, चक्रपाणि बोला कि मित्र देवी का क्रोध तो आपकी बातों से समाप्त हो गया था, लेकिन उन को अपने रुप में आने के लिये समय तो देना पड़ेगा

इसी लिये मैं आप को उपवन में ले आया हूँ। कुमार हंस कर बोले कि मित्र आप के बिना मेरा क्या हाल होगा? चक्रपाणि हंस कर बोला कि मित्र अब आप विवाहित है तो पत्नी की हर बात को समझना आप के लिये आवश्यक है। हमनें अगर देवी को रात्रि में ही कारण समझा दिया होता तो वह क्रोधित नहीं होती। मैं इस के लिये आप की तरफ से देवी से क्षमा मांग लुंगा। कुछ समय उपवन में बिता कर दोनों मित्र देवी के कक्ष में लौट आये। तब तक राजकुमारी स्नान करके तैयार हो चुकी थी। कलेवा करने के लिये व्यवस्था हो चुकी थी दोनों आसन पर बैठे तो कुमार नें कहा कि देवी आप दो आसन और लगवायें, एक अपने लिये और एक अपनी सखी सुदेवी के लिये। यह सुन कर राजकुमारी बोली कि हम बाद में कलेवा करेगी पहले आप दोनों करें। कलेवा करते में चक्रपाणि ने रात्रि के घटना क्रम के लिये कुमार की ओर से राजकुमारी से क्षमाप्रार्थना की और कहा कि आप को रात्रि में कारण बताना ध्यान नहीं रहा,आप को कष्ट हुआ है उस के लिये आप हमारे अपराध को क्षमा करें।

देवी ने कटाक्षों से अपने पति को देखा और कहां कि इनका तो हर अपराध क्षमा है। यह देख कर चक्रपाणि ने कुमार से कहा कि मित्र हमें तो क्षमा मिल गयी है आप का पता नहीं? कुमार हंस कर बोले कि हम भी क्षमा मांग लेगे, आशा है कि हमारी प्रार्थना भी सुनी जायेगी। उन की बात पर देवी मुस्करा दी। कलेवा करने के बाद दोनों मित्र अपने कक्ष को लौट गये। कक्ष में पहुंच कर कुमार नें चक्रपाणि से कहा कि आज तो तुमने प्राण बचा लिये, नहीं तो पता नहीं क्या होता? चक्रपाणि नें हंस कर कहा कि रात्रि में देवी से क्षमा मागिऐगां। देखते है कि मिलती है या नहीं, आप ने उन्हें बहुत कष्ट दिया है।

कुमार की क्षमा याचना

रात्रि के प्रथम पहर के समाप्त होते ही कुमार और चक्रपाणि सेवकों के साथ देवी के कक्ष में पहुंचे, उन के स्वागत का पुरे आदर से किया गया। कुमार ने देवी के साथ भोजन किया। प्रातःकालीन कलुष घुल गया था उस की जगह प्रेम नें ले ली थी। भोजन के बाद विश्राम का समय हो गया था सो चक्रपाणि दोनों को प्रणाम करके कक्ष से चला गया। कुछ देर बाद सुदेवी भी सेविकायों के साथ कक्ष में चली गयी। कक्ष में दोनों के लिये पुर्ण एकांत था। कुमार नें अपनी प्रेयसी के चरणों में बैठ कर क्षमा प्रार्थना की। कुमार को क्षमा इस दंड़ के साथ मिली की कुमार उन्हें अकेला नहीं छोड़ेगें चाहे वह कितना भी कहे। कुमार अपनी पत्नी की मांग को मानने के लिये मना नहीं कर सके।

कुमार नें राजकुमारी को आंलिगन में लिया और उनके अधरों पर अपनें अधर रख दिये। दोनों के अधर अपने काम में लग गये। प्रेम तो पहले ही दोनों के बीच था, अब वह पल्वित होने लगा था। दोनों प्रेमी प्रेम लीला में मग्न हो गये। काम नें दोनों को अपने बाणों से बेध दिया था। संयम आज भी रखना जरुरी था सो चुम्बन और मर्दन से काम चला और दोनों निद्रा देवी की अराधना में लीन हो गये। सुबह राजकुमारी सबसे पहले नींद से उठी। उन्होनें अपने वस्त्रों को सही किया। कुमार को उन्होनें नहीं छेड़ा, लेकिन कुछ क्षण बाद कुमार भी उठ गये। उन्होनें पत्नी को देखा और कहा कि देवी के क्रोध का क्या हाल है?

राजकुमारी ने हंस कर कहा कि आप के सामने मेरे क्रोध का टिकना असम्भव है, इस लिये वह तो कब का समाप्त हो गया। कुमार नें देवी से कहा कि वह अपने कक्ष में जा रहे है। राजकुमारी नें सहमति प्रदान की। कुमार के कक्ष से बाहर निकलने पर उनके सेवक, सेविकायें उन के साथ उनके कक्ष के लिये चल दिये। राजकुमारी की सेविकायें भी उन की सेवा के लिये कक्ष में आ गयी। दोनों अपने-अपने दैनिक कार्यों में मग्न हो गये। अपरान्ह में दोनों भोजन के लिये मिले। रात्रि में राजकुमारी कुमार के कक्ष में पहुंची, दोनों के बीच आज संयम टूट गया और काम क्रीड़ा पुरे जोर के साथ हुई और दोनों के बीच प्रेम का उदय हो गया।

समापन

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