प्रथम रात्रि

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दोनों नें कक्ष में आ कर कहा कि कुमार राजकुमारी का रात्रि में अपने कक्ष में रहना संदेह का कारण बनेगा जो नवविवाहित दंपति के लिये उचित नहीं रहेगा। सुदेवी बोली कि राजकुमारी प्रथम मिलन के श्रम से पीड़ित है जो हर नवविवाहिता को भोगना पड़ता है, मेरी प्रार्थना है कि देवी आप के कक्ष में ही शयन करें लेकिन आप दोनों शारीरिक मिलन से बचे। कुमार नें चक्रपाणि की तरफ देखा तो चक्रपाणि नें कहा कि कुमार इस को लेकर चिन्तित ना हो, मैं और सुदेवी मिल कर इस का कोई समाधान ढुढ़ लेगे। चक्रपाणि कुमार का हाथ पकड़ कर कक्ष के एक कोनें में ले जा कर उन को समझाता है कि प्रथम मिलन में ऐसा हो जाता है। पीड़ा अधिक होनें के कारण राजकुमारी अशान्त है। कुमार नें कहा कि अब तुम ही इस का कोई समाधान निकालो। चक्रपाणि उन से कहता है कि आज उन्हें सयंम का पालन करना पड़ेगा नहीं तो देवी का कष्ट अधिक बढ़ सकता है। कुमार के अकेले शयन करने से अनेक अफवाहों का जन्म होगा जो सही नहीं रहेगा।

कुमार की समझ में पुरी बात आ गयी। वह बोले कि सुदेवी राजकुमारी से कहो कि हम उन्हें वचन देते हैं कि उन के पुर्ण स्वस्थय होने तक स्पर्श नहीं करेगें। सुदेवी यह सुन कर प्रसन्न हुई और बोली कि कुमार देवी आपके प्रण से प्रसन्न है। चक्रपाणि नें कहा कि वह सुदेवी के साथ राजवैध से मिल कर इस का समाधान प्राप्त करेगा। यह कह कर चक्रपाणि और सुदेवी दोनों को प्रणाम करके कक्ष से चले गये। एंकात मिलने पर कुमार नें अपनी वधू का कर पकड़ कर उन्हें शय्या पर बिठाया और उन के चरणों में बैठ कर कहा कि कल रात्रि में हुये व्यवहार के लिये क्षमा प्रार्थी हूँ, मधु यामिनी होने के कारण उत्तेजना वश अधिक उग्रता हो गयी है। अब जब तक देवी पुर्ण रुप से स्वस्थय नहीं होगी वह उन्हें स्पर्श नहीं करेगें।

राजकुमारी ने कुमार से कहा कि यह तो उन के प्रति अन्याय होगा। कुमार ने राजकुमारी को देखा तो वह बोली कि मिलन को छोड़ कर तो आप हमें स्पर्श कर सकते है। हम आप से ऐसा कठोर व्यवहार नहीं चाहते। कुमार नें अपनी पत्नी की व्यथा समझ कर कहा कि जैसा देवी चाहेगी वैसा ही होगा। राजकुमारी नें कुमार का चेहरा उठा कर उन का माथा चुम लिया। कुमार अपनी पत्नी के व्यवहार से बहुत प्रसंन्न हुये और बोले कि स्नेह स्पर्श के तो हम भी अभिलाषी है। वह खड़े हुये और दोनों पति-पत्नी आलिंगन में बधं गये। चुम्बन और मर्दन का लंबा दौर चला। फिर दोनों शय्या पर विश्राम करने लगे।

कुमार राजकुमारी के कक्ष से निकल कर चक्रपाणि के साथ अपने कक्ष के लिये चल दिये। रास्तें में चक्रपाणि नें कुमार से पुछा कि आपने प्रण तो कर लिया है, क्या उस पर टिक पायेगे?, कुमार बोले कि मित्र कह तो तुम सत्य रहे हो लेकिन देवी को सान्तवना देना आवश्यक है, प्रण निभाने की जिम्मेदारी दोनों की है देखते है इस संबंध में भविष्य में क्या होता है। तुम और सुदेवी इस का समाधान शीघ्र प्राप्त करों, यही उचित रहेगा। नवविवाहितों से संयम का पालन करने को कहना बड़ी क्रुरता है। चक्रपाणि नें अपने मित्र कुमार को आश्वस्त किया कि वह सुदेवी के साथ मिल कर इस का समाधान प्राप्त कर लेगा। कुमार को कक्ष में छोड़ कर चक्रपाणि सुदेवी की तलाश में चल दिया रनिवास की तरफ आते समय मार्ग में सुदेवी मिल गयी, उसे देख कर वह बोली कि मैं आप को बड़ी देर से ढुढ़ रही थी कहां चले गये थे? चक्रपाणि बोला कि कुमार के साथ था। उस के बाद आप को ढुढ़ रहा था।

देवी और कुमार की समस्या का समाधान ढुढ़ने में आप की सहायता चाहिये। सुदेवी हंस कर बोली कि यह कोई समस्या थोड़ी ना है कुमार नें ज्यादा बल प्रयोग कर दिया था उस के कारण यह हुआ है, कुमार को थोड़ा संयम रखना चाहिये था। यह कहते में उस के होठों पर मंद हास्य गोचर हो रहा था। चक्रपाणि इसे समझता था लेकिन वह अपने मित्र के साथ था, इस लिये वह बोला कि देवी दोषारोपण से कुछ नहीं होगा, दोनों से संयम की अभी भी आशा करना व्यर्थ है, काम की अग्नि हर संयम को जला देती है। सुदेवी बोली कि अब आप ही बताये क्या उपाय है। चक्रपाणि नें कहा कि राजवैध के पास चल कर आप समस्या बतायें तो वही कोई औषधी बतायेगें। वही सही समाधान होगा। सुदेवी बोली कि कह तो आप सही कह रहे है। दोनों राजवैध के आवास पर पहुंच गये। राजवैध को प्रणाम करके सुदेवी ने समस्या का इशारा किया तो राजवैध बोले कि मैनें स्नेहक द्रव्य भेजा था लेकिन वह उपयोग में नहीं आया है, तुम लोग यही प्रतिक्षा करों मैं औषधी ले कर आता हूँ। कुछ देर बाद राजवैध हाथ में एक औषधी पात्र ले कर आये।

पात्र को सुदेवी को दे कर बोले कि इस औषधी का प्रयोग कुछ दिनों में आराम पहुंचा देगा। संयम भी जरुरी है ऐसा नियम है। दोनों राजवैध के यहां से औषधी लेकर वापस चल दिये। मार्ग में सुदेवी बोली कि आप यह पात्र कुमार के कक्ष में ले जाये और कुमार से प्रार्थना करें कि वह इस का प्रयोग देवी पर करें। मैं देवी को इस औषधी के विषय में बताती हूँ। आप बताये आप के क्या विचार है? चक्रपाणि बोला कि औषधी के उपयोग के बारें में, मैं कुमार को अवगत कराता हूँ, संयम की बात भी उन से करता हूँ लेकिन मुझे इस विषय में अधिक सफलता की आशा नहीं है। सुदेवी बोली कि आप अपने मित्र को परिस्थिति से पुर्ण रुप से अवगत तो करा सकते है। चक्रपाणि नें कहा कि मैं अवश्य ऐसा ही करुंगा और पहले भी कुमार को अवगत करा चुका हूँ। आप इस विषय में पुर्णरुप से निश्चित रहे।

जब चक्रपाणि कुमार के कक्ष पर पहुंचे तो कुमार मंत्रणा में मग्न थे तो चक्रपाणि कक्ष के बाहर प्रतिक्षा करने लगे। कुछ समय पश्चात मंत्रणा खत्म हो गयी, यह देख कर चक्रपाणि कुमार के कक्ष में प्रवेश किया, मित्र को देख कर कुमार प्रसन्न हुये और बोले कि लगता है मित्र तुम्हें समाधान मिल गया है। चक्रपाणि नें पात्र को पीठिका पर रख कुमार को प्रणाम किया और कहा कि समाधान मिला तो है लेकिन थोड़ा कठिन है, आप दोनों कर पायेगें इस में शंका है। कुमार बोले कि शंका क्यों है? चक्रपाणि बोला कि मित्र नव दंपतियों से संयम की आशा व्यर्थ ही है। कुमार बोले कि बताओं मुझे क्या करना है। चक्रपाणि बोले कि राजवैध नें औषधी जी है जो आप को देवी के अंग पर लेपना है। संयम रखना है।

कुछ दिनों में पुर्णरुप से आराम मिल जायेगा। कुमार बोले कि मित्र एक तरफ तो आप राय देते है कि रात्रि में किसी तरह की दया नहीं दिखानी है और दूसरी तरफ संयम की बात। यह द्वन्द कैसे दूर होगा। चक्रपाणि बोला कि कुमार उस दिवस आप स्नेहक द्रव्य का उपयोग करना भुल गये थे इस कारण यह अवस्था उत्पन्न हुई है। संयम और औषधी के उपयोग से कुछ ही दिनों में दूर हो जायेगी। मेरा आप से अनुरोध है कि भविष्य में स्नेहक द्वव्य का उपयोग अवश्य करें, इस के उपयोग से घर्षण कम होगा और पीड़ा भी कम होगी। कुमार नें सिर हिलाया। कुमार नें स्नेहक के पात्र को शय्या के पास रख लिया। औषधी भी उसी के नजदीक रख ली। फिर चक्रपाणि से पुछा कि मित्र अब तो तुम को विश्वास होगा कि मैं इन का उपयोग करुंगा। चक्रपाणि नें सहमति में सिर हिलाया। शाम हो रही थी, कुछ देर में राजकुमारी कुमार के पास आती होगी, यह सोच कर चक्रपाणि नें कुमार के कान में कुछ कहा, उसे सुन कर कुमार ने सर हिलाया।

दोनों मित्र किसी विषय में वार्तालाप में मग्न हो गये। सेविका ने देवी के आगमन की सूचना दी। कुमार और चक्रपाणि नें वार्तालाप बंद कर दिया। सुदेवी कक्ष में आती दिखायी दी, उस के पीछे देवी पधार रही थी। सेविकाओं नें भोजन पात्र उठा रखे थे, आज देवी अपना रात्रिकालीन भोजन कुमार के साथ करने वाली थी। कुमार ने देवी का स्वागत किया और उन्हें आसन प्रदान किया और खुद भी उन के साथ बैठ गये। सेविकाऐं भोजन लगाने लगी। चक्रपाणि सुदेवी के साथ एक कोने में बात करने के लिये चला गया। चक्रपाणि नें कहा कि मैनें अपना कार्य कर दिया है आप नें क्या किया, यह सुन कर सुदेवी बोली कि मैनें देवी को औषधी के संबंध में सब समझा दिया है उस के उपयोग की विधि भी पता दी है। संयम के लिये भी समझाया है। आप को क्या लगता है समाधान होगा? चक्रपाणि बोला कि आगे तो दोनों को करना है जितना सहयोग करेगें, उतना शीघ्र समस्या से छुटकारा मिलेगा। आशा करे कि हरि सही करेगें। सुदेवी उन की बात सुन कर मुस्करायी। कुमार और देवी भोजन करने लगे। भोजन के सम्पन्न होने के बाद कक्ष में एंकात हो गया। केवल कुमार, देवी, चक्रपाणि और सुदेवी उपस्थित थे। कुमार ने चक्रपाणि की तरफ देखा तो चक्रपाणि नें कहा कि देवी को सब ज्ञात करा दिया है। आप को भी सब ज्ञान है। ईश्वर आप दोनों पर कृपा करें ऐसी मेरी कामना है। यह कह कर उस ने और सुदेवी नें दोनों को प्रणाम कियाऔर कक्ष से बाहर हो गये।

कुमार को अपनी भार्या के साथ एंकात की आवश्यकता थी, बाहर बादल गरज रहे थे लगता था कि रात को घनघोर वर्षा होगी। कुमार नें उठ कर कक्ष को अंदर से बंद कर लिया यह देख कर देवी के चेहरे पर संतोष झलका। दोनों का पता था कि आज की रजनी बड़ी भारी होने वाली थी। देवी तो आज आना ही नहीं चाहती थी लेकिन किसी तरह की शंका जन्म ना ले, इस कारण से वह कुमार के कक्ष में उपस्थित हुई थी। कुमार अपनी पत्नी के पास आ कर बैठ गये। उन्होनें पुछा देवी आज आपका स्वास्थय कैसा है तो राजकुमारी बोली कि पीड़ा हो रही है, बाकी सब सही है। कुमार यह सुन कर प्रसन्न हुये। राजकुमारी ने कुमार से पुछा कि कोई समाधान मिला है तो कुमार नें कहा कि हां राजवैध नें औषधी भिजवायी है, मैं आप के लगा दूंगा, इस से अवश्य ही आप को लाभ होगा। कुमार के स्पर्श की कल्पना मात्र से राजकुमारी के शरीर में सिहरन होने लगी। वह सकुचा गयी। कुमार नें यह बात देखी और राजकुमारी से पुछा कि औषधी लगानें में आप को कोई आपत्ति तो नहीं है तो देवी नें सर हिला दिया। कुमार अपनी पत्नी की लज्जा का अनुभव करके चुप हो गये। वह इस विषय पर बात करके पत्नी को लजाना नहीं चाहते थे।

उन्होनें पुछा कि आज का दिवस कैसा बिता? देवी बोली कि पुरा दिन बहुत व्यस्त था लेकिन माता-पिता जी के दर्शन कर मन प्रसन्न हो गया। इस बहाने आप के दर्शन भी प्राप्त हो पाये। आप बताये आप का समय कैसे बिता? सुदेवी बता रही थी कि आप संध्या तक मंत्रणा में व्यस्त थे। कुमार बोले कि हां दिवस कैसे शुरु हुआ और कैसे बिता पता ही नहीं चला आप से मिलन की आस में समय कब बीत गया मुझे पता नहीं है। यह सुन कर राजकुमारी कुमार के मन में अपने प्रति पनप रहे प्रेम को जान कर प्रसन्न हुई। कुमार नें राजकुमारी से कहा कि देवी आप अब विश्राम करें मैं कुछ देर गावाश्र से आकाश में हो रही घटनाओं को निहारता हूं, यह कह कर कुमार गावाश्र पर जा कर खड़ें हो गये, आकाश में घुमड़े बादल उन के ह्रदय में घुमड़ते भावों की तरह थे, शीतल हवा मन को शान्ति प्रदान कर रही थी, पता नहीं कब राजकुमारी कुमार के पीछे आ कर खड़ी हो गयी थी और आकाश को निहार रही थी।

कुमार जैसे ही पीछे हुये, राजकुमारी से टकरा गये। राजकुमारी आघात से गिरने को हुई लेकिन कुमार की बलिष्ट बाहों नें उन्हें थाम लिया। राजकुमारी यही तो चाहती थी लेकिन अपने मन की कामना को व्यक्त नही कर पा रही थी। तभी आकाश में जोर से विधुत तड़ित हुई, उसकी आवाज से डर कर राजकुमारी कुमार से लिपट गयी। कुमार नें अपनी पत्नी को अपने बाहुपाश में ले लिया। उन के कठोर उरोज, कुमार के संयम की परीक्षा लेने लगे। कुमार नें देवी के माथे पर स्नेह स्पर्श किया तो राजकुमारी का संयम टूट गया औ वह ऊचक कर कुमार के होठों पर चुम्बन करने लगी। कुमार नें उन्हें बाहों में ऊपर उठा लिया अब उन के कमल की पखुड़ियों से कोमल होठ कुमार के होठों से मिल गये। दोनों प्रेमी गहन चुम्बन में रत हो गये।

कुमार की जीव्हा राजकुमारी के मुह में प्रवेश कर गयी, राजकुमारी नें उसे चुसना आरम्भ कर दिया। काम नें दोनों के शरीर को अपने बाणों से बेध दिया था, कोई संयम अब नहीं हो सकता था, चुम्बन के बाद राजकुमारी कुमार से बोली कि मिलन का निषेध है स्नेह मर्दन का निषेध तो नहीं है। कुमार अपनी भार्या का आशय समझ गये और उन्होनें अपने हाथों से देवी के उरोजों का मर्दन शुरु किया। फिर पीठ के पीछे से कंचुकी की गांठ खोल कर उरोजों को मुक्त कर दिया। काम के रस से भरे उरोजों को भवरें रुपी कुंचकों को होठों के मध्य लेकर उन के रस का पान करने लगे। राजकुमारी ने भी कुमार के ऊपर के वस्त्र उतार दिये थे, वह अपने हाथों से कुमार के वक्ष को सहला रही थी।

कुमार का मन जब उरोजों से भर गया तो वह राजकुमारी की पतनी कमर पर चुम्बन लेने लगे। उसके पश्चात नाभी से निचे जाती पतली केश रेखा को होठों से स्पर्श करते हुये अतः वस्त्र पर पहुंच गये, उन के करों नें इस बाधा को भी दूर कर दिया। राजकुमारी के सम्मुख बैठ कर वह उन की योनि पर जिव्हा प्रहार करने लगे। कुमार को पता था कि योनि में प्रवेश की मनाही है लेकिन कामवश उनका मन अब उन के वश में नहीं था। उत्तेजना के कारण राजकुमारी कांप रही थी कुमार ने दोनों हाथों से देवी के भरे नितम्बों को पकड़ कर योनि को अपने मुह से सटा लिया और उस के रस का स्वाद उठाने लगे। राजकुमारी कुमार के सर के बालों को पकड़ कर कांप रही थी।

यह देख कर कुमार नें राजकुमारी को बाहों में उठा कर शय्या पर लिटा दिया। फिर अपने नीचे के अतः वस्त्र तथा लगोट उतार दी। उन का लिंग उत्तेजना के कारण बिल्कुल सीधा खड़ा था, रक्त के प्रवाह के कारण उस पर रक्त वाहिकायें उभरी हुई थी। कुमार अपने मन में कुछ निश्चय कर चुके थे। वह राजकुमारी से समीप लेट गये। राजकुमारी कुमार से लिपट गयी जैसे कोई लता पेड़ के तने से लिपट जाती है। कुमार के हाथ अपनी पत्नी की जांघों को सहलाने लगे। केले के कंदम के भांति जांघें नितम्बों को बोझ उठाने के लिये ही बनी थी। कुमार नें उठ कर देवी के पांवों को चुमा और उनकी ऊगलियों का चुम्बन लिया, इस क्रिया से राजकुमारी की कामवासना भड़क गयी थी। कुमार नें राजकुमारी को अपने पैरों पर लिटा लिया और वह उन की पीठ को गरदन से नितम्बों तक सहलाने लग गये। राजकुमारी इस स्पर्श के कारण स्खलित होने की सीमा तक पहुंच गयी थी उनके भरे नितम्ब ऊपर नीचे हो रहे थे कुमार इस क्रिया को समझ नही पा रहे थे लेकिन वह संभोग नहीं करना चाहते थे उन्हें पता था कि इस से योनि के अंदर लगे घाव हरे हो जायेगे और वह संभोग को असंभव कर देगे।

उन्होनें देवी के नितम्बों को हाथों से दबाया और उन की गहराई में अपनी अनामिका को अन्वेषण के लिये प्रवेश करवाया। अनामिका गुदा के मुख को सहलाती रही। उस के बाद नीचे योनि के मुह पर पहुंच कर फिर ऊपर आ गयी। कुमारनें हाथ की अनामिका को शय्या के पास रखे स्नेहक द्रव्य में पुरा डुबा कर उसे द्रव्य से सराबोर कर लिया फिर अनामिका को नितम्बों की गहराई में उतार दिया। अनामिका को अपनी मंजिल पता थी कुछ समय तक वह अनामिका के द्रव्य को गुदा के मुह पर मलते रहे फिर अचानक उनकी अनामिका राजकुमारी कि गुदा में प्रवेश कर गयी। उत्तेजना वश राजकुमारी के मुह से कराह सी निकली लेकिन वह चुपचाप पड़ी रही। चिकनाई के कारण अनामिका को कोई बाधा नहीं मिली। कुछ देर अनामिका से गुदा मर्दन करने के बाद कुमार नें अनामिका को गुदा से बाहर निकाल लिया था। उन्होनें उठ कर पात्र से स्नेहक को हाथ से अच्छी तरह से अपने लिंग पर मला फिर दूबारा से स्नेहक की बहुत अधिक मात्रा हाथ के द्वारा लिंग पर चुपड़ कर बचे द्रव्य को राजकुमारी के नितम्बों की गहराई में लगा दिया।

इसके बाद कुमार नें राजकुमारी को पेट के बल लिटा कर उन के नितम्बों को उठा कर ऊंचा किया और उन के नितम्बों के पीछे घुटनों के बल बैठ गये एक हाथ उन्होनें नितम्बों पर रखा और दूसरें हाथ से लिंग को गुदा के मुह पर रख कर उस के मुह से गुदा को सहलाया। नीचे राजकुमारी समझ चुकी थी कि आज उन के दुसरें मुह का भी उद्धाटन होना है। पीड़ा का ज्वार उठने वाला था लेकिन वह भी कामवश थी। कुमार ने लिंग के मुह को गुदा के मुह पर हाथ की सहायता से दबाया तो स्नेहक होने के कारण वह गुदा में प्रवेश कर गया, पीडा के कारण राजकुमारी की जीख निकली लेकिन कुमार नें अपने हाथ से उनका मुह बंद कर दिया। लिंग के गुदा के अंदर जाने के कारण राजकुमारी की गुदा में अग्नि की ज्वाला के समान जलन होने लग गयी थी। कुमार के नितम्बों के दूसरे प्रहार से सम्पुर्ण लिंग गुदा में समा गया। राजकुमारी को लगा कि वह इस पीड़ा से मर जायेगी, लेकिन वह भी मन ही मन पीड़ा का अनुभव करना चाहती थी।

कुमार कुछ क्षण रुके फिर उन के नितम्बं तीव्र गति से प्रहार करने लगे। चिकनायी के कारण कुमार के लिंग को कम घर्षण का सामना करना पड़ रहा था। राजकुमारी भी अब तक पीड़ा का आनंद लेने लग गयी थी सो उन के नितम्बों की गति भी कुमार के नितम्बों की गति का साथ दे रही थी। कुमार नें अपना हाथ उन के मुह से हटा कर दोनों हाथों से उन के नितम्बों को पकड़ लिया था और लिंग को गुदा के अंदर बाहर कर रहे थे। राजकुमारी की आहें कराहें कक्ष में भर गयी थी। कुमार के गुदा प्रवेश के कुछ देर बाद कुमार गुदा में स्खलित हो गये।

वीर्य गुदा के बाहर बह कर योनि से होकर नीचे गिरने लगा। कुमार ने राजकुमारी को पीठ के बल लिटाया और उन की बगल में लेट गये। उन की सांसे भी फुल गयी थी। कुछ क्षणों बाद कुमार ने राजकुमारी को अपनी तरफ करके उनका चुम्बन लिया और कहा कि प्रिये इस के अतिरिक्त कामवासना की पुर्ति का कोई और साधन नहीं था। राजकुमारी प्रथम बार चरम सुख की प्राप्ति का सुख भोग रही थी। इस कारण वह कुछ बोली नहीं। कुमार नें अपनी प्रेयसी को अपने अंकपाश में ले लिया दोनों एक दूसरे के आंलिगन में कस गये। आंलिगन के दौरान ही कुमार को पता चला कि उन की पत्नी भी स्खलित हुई है और योनि द्रव्य से उस की जांघें गिली थी। उन की जांघों के मध्य भी लिंग से बहता वीर्य चिपचिपा रहा था।

कुमार कुछ देर पत्नी की पीठ सहलाते रहे फिर शय्या से उठे और वस्त्र ले कर अपने लिंग तो पोछा और उस के बाद राजकुमारी के शरीर को पोछ कर स्वच्छ किया। इस के बाद उन्हें कुछ याद आया तो पीठिका पर रखे औषधी पात्र को लेकर लेटी राजकुमारी के पास पहुंचे। पात्र की औषधी में अपनी दो ऊगलियों को डुबा कर उन्होनें राजकुमारी की योनि में ऊगलिंया डाल कर औषधी को योनि में अंदर लगा दिया। एक बार फिर ऊगलियों को औषधी में लिप्त करके योनि के भीतरी भाग में औषधी का लेपन कर दिया। औषधी के कारण राजकुमारी को योनि में शीतलता का अनुभव हुआ, उन्हें पता चला कि कुमार के ह्रदय में उनके लिये कितना प्रेम है। पात्र को वापस पीठिका पर रख कर कुमार शय्या पर आ कर राजकुमारी के समीप लेट गये। उन्होनें राजकुमारी से पुछा कि औषधी लेपन से क्या अनुभव हुआ? देवी ने कहा कि अंदर शीतलता का अनुभव हो रहा है। कुमार बोले कि यही हमारी समस्या का समाधान है।

प्रातः काल मैं लगा दुगां, दिन के लिये आप को यह कार्य करना पड़ेगा तो राजकुमारी बोली कि कुमार को ही यह कार्य अपने करों द्वारा करना पड़ेगा, इस पर कुमार बोले कि जैसी देवी की आज्ञा। दोनों थक गये थे, इस लिये निंद्रा देवी की अराधना में डुब गये। प्रातः काल उठने के बाद कुमार नें देवी के अंग में औषधी का लेपन कर दिया। फिर वह उठ कर कक्ष में टहलने लगे। बाहर वर्षा धरती की प्यास बुझा रही थी, रात्रि में दोनों नें अपनी प्रेम की प्यास कुछ अलग तरह से शान्त करी थी। राजकुमारी जब उठी तो उन की कमर में दर्द था, नितम्ब भी दर्द से भरे थे लेकिन राजकुमारी कुमार के सामने कमजोर नहीं दिखना चाहती थी इस लिये उठ कर वस्त्र पहन कर तैयार हो गयी। कुमार के लिंग पर भी गुदा मैथुन का प्रभाव पड़ा था वह भी दर्द कर रहा था लेकिन वह अपनी भार्या को सन्तुष्ट कर के प्रसन्नता का अनुभव कर रहे थे इसी कारण से उन्होनें अपनी पीड़ा का पत्नी को अनुभव नहीं होने दिया। कक्ष को खोल कर कुमार बाहर निकले तो उनके सेवक साथ चल दिये।

सुदेवी अपनी राजकुमारी का हाल जानने के लिये उत्सुक थी सो लपक कर उन के पास पहुंची तो देखा कि आज राजकुमारी तैयार बैठी थी। रात की ध्वनियों नें उन्हें बता दिया था कि राजकुमारी के दूसरें मुह का भी उद्धाटन हो गया है। उस नें पुछा कि देवी रात्रि कैसी बीती तो राजकुमारी शर्मा कर बोली कि प्यार भरी थी। सुदेवी बोली कि यह तो कक्ष से आ रही ध्वनियां ही बता रही थी। राजकुमारी ने बाहों से अपना चेहरा ढ़क लिया। सुदेवी समझ गयी कि मेरी सखि अब पुर्ण स्त्री बन चुकी है। आज का दिवस बहुत व्यस्त होने वाला था या तो देवी विश्राम करेगी या वह अपने मन में आ रहे कार्य का निष्पादन करेगी। यह उसे कुछ देर में पता चलने वाला था। राजकुमारी प्रस्थान के लिये शय्या से उतरी तो चद्दर की अवस्था देख कर सुदेवी बोली कि कुमार राजकुमारी को पुर्ण सन्तुष्ट कर रहे है। यह बात जान कर उस के मन में शान्ति का अनुभव हुआ।

कुमार अपने नित्यकर्म में जुट गये। राजकुमारी भी अपने कक्ष में पहुंच कर स्नान करने के बाद भोजन बनाने की व्यवस्था करने का आदेश दिया। सुदेवी नें पुछा तो देवी बोली कि कुमार को संदेश भिजवा दे की आज अपरान्ह का भोजन वह मेरे कक्ष में करेंगे। सुदेवी यह सुन कर मुस्कराई और मन ही मन बोली कि कुमार नें मेरी सखी का ह्रदय विजित कर लिया है। तभी दर्द के कारण बैठ ना पाने के बावजूद कुमार के भोजन का खुद बना रही है। यह भी कुमार के प्रति देवी के प्रेम का घोतक है।

सुदेवी नें सेविका को बुला कर यह संदेश कुमार को देने को भेज दिया। कुमार चक्रपाणि से वार्तालाप कर रहे थे कि राजकुमारी की सेविका नें आकर कर संदेश दिया कि देवी चाहती है कि आप अपरान्ह का भोजन उनके कक्ष में करें। यह सुन कर चक्रपाणि के चेहरे पर मुस्कराहट आ गयी। कुमार नें सेविका को जाने का इशारा किया और अपने मित्र से पुछा कि मित्र इस संदेश से आप प्रसन्न क्यों है। चक्रपाणि बोला कि कुमार आप अब तक नहीं समझे, रात्रि के आप के व्यवहार से देवी रुष्ट नहीं है वह आपके लिये भोजन बना कर आप को अपने कष्ट के बावजूद प्रेम का प्रतिदान कर रही है। आप व्यर्थ की चिन्ता करना छोड़ दे। स्त्रियों के व्यवहार को समझना ईश्वर के लिये भी कठिन है फिर हम मानवों की क्या गति है। कुमार यह सुन कर हंस दिये।

राजकुमारी का राजप्रसाद में अपने कक्ष में आना, कुमार के लिये भोजन तैयार करना

कुछ देर राज्यकार्य में व्यस्त होने के बाद चक्रपाणि नें कुमार से कहा कि अब हमें देवी के कक्ष में चलना चाहिये। चक्रपाणि नें सेवकों को आवाज दी। कुमार सब के साथ देवी के कक्ष की तरफ चल दिये। कुमार जब कक्ष पर पहुंचे तो सुदेवी बाहर उन की प्रतिक्षा कर रही थी। उन का स्वागत करके उन्हें कक्ष में ले जा कर आसन प्रदान किया। कुमार नें आसन ग्रहण करने के बाद सुदेवी से देवी के बारें में पुछा तो सुदेवी नें बताया कि देवी दूसरे पहर से स्वयं कुमार के लिये भोजन तैयार कर रही है। इस लिये किसी और विषय पर ध्यान नहीं है। कुछ देर बाद देवी के दर्शन हुये। देवी ने सुदेवी से कहा कि भोजन तैयार है कुमार के हाथ धुलवाइयें। सेविका नें कुमार के हाथ पानी से धुलवाये और कुमार भोजन के लिये भुमि पर आसन पर बैठ गये। एक और आसन लगा था। कुमार को लगा कि शायद उन की पत्नी उन के साथ भोजन करेगी, लेकिन देवी तो अपने हाथों द्वारा भोजन परोस रही थी, भोजन परोसने के बाद देवी ने कुमार से अनुरोध किया की भोजन प्रारभ्य करें। कुमार नें भोजन करना शुरु कर दिया। देवी ने पुछा कि भोजन कैसा बना है तो कुमार नें कहा कि आप के हाथों में तो स्वयं मा अन्नपूर्णा विराजमान है। अपनी प्रसंशा सुन कर उन के चेहरे पर चमक आ गयी थी। सुदेवी नें यह भांप लिया। कुमार नें भोजन करने के बाद कहा कि देवी को भी अब भोजन करना चाहिये तो सुदेवी बोली कि देवी अब भोजन करेगी।

कुमार विश्राम करने के लिये आसन पर बैठ गये और राजकुमारी भोजन करने लगी। भोजन के बाद कुमार बोले कि अब अन्य सब को भोजन करना चाहिये। सेविकाये, सुदेवी और चक्रपाणि प्रणाम करके कक्ष से चले गये। कुमार नें शय्या पर लेट कर पत्नी को अपने पास आने का इशारा किया। राजकुमारी कुमार के पास आ कर बैठ गयी। कुमार नें उन का हाथ अपने हाथ में लेकर कहा कि आप नें आज भोजन बनाने का कष्ट क्यों किया। आज तो आप को विश्राम करना चाहिये था। देवी ने कहा कि पीड़ा को भुलाने के लिये मुझे लगा कि यही उचित रहेगा की किसी अन्य कार्य में अपने आप को व्यस्त किया जाये। कुमार नें अपनी भार्या को ह्रदय से लगाया और कहा कि काम का शमन करने के लिये आप को पीड़ा देनी पड़ी। देवी ने कहा कि काम का शमन करना भी जरुरी था आप ने जो किया उचित किया। मुझे कष्ट तो है लेकिन यह भी मंद पड़ जायेगा। कुमार ने अपनी प्राणप्रिया को अपने ऊपर गिरा कर आंलिंगन में भर लिया। फिर दोनों गहन चुम्बन में रत हो गये। कुमार के हाथ पत्नी के नितम्बों पर लगे तो वह पीड़ा से कराही।