अंतरंग हमसफ़र भाग 256

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9.10 प्रेमपुजारिन की गर्म और गीली कामवासना की दुनिया
2.5k words
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Part 256 of the 342 part series

Updated 03/31/2024
Created 09/13/2020
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मेरे अंतरंग हमसफ़र

नौवा अध्याय

डॉक्टरी की पढ़ाई

भाग 10

गर्म और गीली कामवासना की दुनिया

दोनों प्रेमी कामवासना की दुनिया में खोए हुए थे... मैं जीवा की गांड पकड़कर दबाने लगा... सब कुछ काबू से बाहर होता जा रहा था... वह बेसाख्ता कराह रही थी ।

जीवा: आआई मम्माममआ ईईईईऊ आया ऊ ईईई. ये चीख सुन कर पर्पल ये जाने के लिए हमारी तरफ आयी की जीवा क्यों चिल्लाई और सोफे पर हमे चुदाई की और बढ़ते देख मुँह बंद कर वहीँ रुक गयी । । उसने पलट कर तीनो लड़कियों को ओंठो पर ऊँगली रख चुप रहने का इशारा किया और उन्हें इशारे से पास बुला कर हमारी चुदाई देखने के लिए आमंत्रित किया ।

मैं नीचे झुककर जीवा के स्तन को चूमा । जीवा भी उत्तेजित होकर अपनी गांड उठा रही थी... मैं लंड को बार-बार जीवा की योनि के ऊपर घीसे जा रहे थे... जीवा तड़प रही थी...

उसकी गांड आगे पीछे हिल रही थी... मैंने अपना एक हाथ नीचे किया और जीवा की बहुत ही गर्म गीली रसीली छेद का एहसास करते हुए अपनी एक उंगली को उस रसीले छेद में डाल दिया... जीवा तड़प तड़पकर कसमसआने लगी... मेरी मोटी लंबी उंगली का एहसास अपने छेद में पाकर जीवा चीखने लगी। ओह्ह्ह्ह आआई ईईईई!

मैं बड़ी तेज रफ्तार से मैं उस उंगली से ही जीवा की मदमस्त गुलाबी रसीली चूत चोदने लगा... जीवा दर्द और उत्तेजना के मारे उछलने लगी... मैंने अपनी उंगली की रफ्तार तेज कर दीफिर । मैंने जीवा के होठों को चुम्मा लिया और फिर अपनी जीभ उसके मुंह में डाल उसके ओंठ चूसने लगा...

हालाँकि जीवा मुझ से चुद चुकी थी पर फिर भी ताज़ी-ताज़ी चुदाई के बाद जीवा की चूत की कसावट कुवारी चूत वाली ही थी। फिरमैंने प्रेम की देवी से प्राथना की और उनसे थोड़ा-सी और शक्ति और सब्र माँगा और दोनों उंगलिया को अन्दर डालने के लिए जोर लगाया। चूत की कसी हुई मखमली दीवारे मेरी उंगलियों को अंदर नहीं जाने दे रही थी। लेकिन मैंने हाथ से दाने को रगड़ना जारी रखा। इससे मिलने वाले चरम सुख की कोई सीमा नहीं थी। जीवा के मुहँ से सिसकारियो का सिलसिला लगातार चल रहा था, उसका शरीर भी उसी अनुसार लय में कांप रहा था और आगे पीछे हो रहा था। अचानक उसका पूरा शरीर अकड़ गया, सिसकारियो का न रुकने वाला सिलसिला शुरू हो गया, जांघे अपने आप खुलने बंद होने लगी, दाना फूलकर दोगुने साइज़ का हो गया लेकिन मैंने उसे रगड़ना अभी भी बंद नहीं किया था। दाने के रगड़ने से चूत के कोने-कोने तक में उत्तेजना की सिहरन थी। चूत की दीवारों में एक नया प्रकार का सेंसेशन होने लगा, कमर और जांघे अपने आप कापने लगी, जीवा को पता चल गया अब अंत निकट है, ये वासना के तूफ़ान की अंतिम लहर है। चूत रस तेजी से बाहर की तरफ बहने लगा। सारा शरीर कापने लगा, उत्तेजना के चरम का अहसास ने उसके शरीर पर से बचा खुचा नियंत्रण भी ख़त्म कर दिया।

साथ में मैं नीचे अपनी उंगली से जीवा की चूत चोदने में लगा रहा उत्तेजना के इस चर्म पर जीवा की कमर अपने आप ही हिल रही थी, पैर काँप रहे थे, मुहँ से चरम की आहे निकल रही थी और फिर अंतिम झटके के साथ पूरे शरीर में कंपकपी दौड़ गयी और पूरा शरीर सोफे पर धडाम से ढेर हो गया और फिर वह झटके खाती हुई स्खलित हुई और धीरे-धीरे वह सोफे पर पूरी तरह लेट गयी।

फिर मैंने जीवा की दोनों टांगों को चौड़ा किया... जीवा पूरी तरह से गर्म हो चुकी थी मैंने जीवा की गुलाबी गीले त्रिकोण के ऊपर अपना हथियार रख घिसना शुरू कर दिया।और फिर... मैंने अपने औजार को जीवा के छेद के मुहाने पर टिका दिया...

जीवा अच्छी तरह जानती थी कि आज यह मोटा लम्बा लंड उसकी चूत को चीर के रख देगा, फाड़ कर रख देगा... मखमली गुलाबी सुरंग में अन्दर तक जाकर धंस जायेगा...

अब वह खुलकर चुदना चाहती थी और उसकी चूत भी उसके वासना में जलते जिस्म की आग बुझाने को तैयार थी। वह जानती थी यही मोटा भयानक लंड उसकी योनि की अंतिम गहराई तक जायेगा और वह अपने शरीर में जब तक दम रहेगा तब तक चुदवाना चाहती थी। उसे अपनी चूत की वर्षो की प्यास जो पहली छुड़ई के बाद धड़क चुकी थी मिटानी थी । उसे अपनी चूत की दीवारों में उमड़ रही चुदास की आग को बुझाना था, वह चाहती थी की जैसे सावन में बार-बार बरसते बादल धरती की प्यास बुझाते है ऐसे ही ये मोटा लम्बा लंड बार-बार मेरी चूत में जाकर मुझे चोदेगा और मैं बार-बार झड़-झड़ कर चूत के अन्दर लगी आग को बुझवाऊँगी और अपनी तृप्ति हासिल करू असली तृप्ति भरपूर तृप्ति, परम सुख संतुष्टि, ऐसी संतुष्टि जिसको मेरे नंगे जिस्म का एक-एक रोम महसूस करे। जीवा ने मुझे चूम कर अपनी टूटी हुई हिम्मत और पस्त हौसलों को एक नयी जान दी।

जीवा वासना की आग में पागल हुई जा रही थी...जैसे ही मेरा सख्त हाथ उसकी कमर के नीचे से वासना से दहकती उसकी जांघो के बीच में नरम चिकनी त्रिकोण चूत घाटी के पूरी तरह से साफ़ सुथरा गुलाबी चिकने मैदान पर से फिसलता हुआ नीचे बढ़ा, जीवा ने पैर फैलाकर खुद ही पूरी तरह से हथियार डाल कर टाँगे खोल दी और उसकी दुधिया गुलाबी गीली चिकनी चूत दिखने लगी।

जीवा की मोटी चिकनी मुलायम और गुदाज जाँघे अपनी पूरी आबो ताब के साथ मेरी भूखी प्यासी आँखों के सामने नुमाया हो रही थी।

मेरा लिंग उस की चूत से टच होते ही जीवा पर एक मस्ती-सी छाने लगी। सच्ची बात यह थी कि जीवा खुद भी मेरे मोटे लंड को देख कर मेरे लंड की दीवानी हो गई थी। इस लिए उस ने भी मेरे लंड को अपने हाथ में ले कर उसे सहलाना शुरू कर दिया।

जीवा बहुत मज़े ले-ले कर अपनी चूत मसलवा रही थी और साथ में ऊँगली के योनि में घर्षण के मजे ले रही थी। " ऊऊऊऊओह! आआआआआआआआआ! उफफफफ्फ़! जमशेद प्लेसीईईईईईई! और चोदो मुझे उफफफफफफफफफ्फ़। ओह्ह क्यों तड़पा रहे हो मास्टर अब पूरा डाल दो ना मैरी चूत में अपना लंड! उूउफफफफफफफफफफफफफफफफफफ्फ़!

बस मुझे इसी का इन्तजार था । मैंने तुरंत अपनी उंगली से चूत का चोदना रोक दिया और फिर अपने पैर फंसा कर जीवा के पैरो को और फैला दिया, जीवा की चूत पर एक भी बाल नहीं था इसलिए अब कोई भी दूर से जीवा की चिकनी गोरी गुलाबी चूत के खुले ओठो और गुलाबी छेद को देख सकता था। जिसे चूत की दीवारे कसकर बंद किये हुई थी। मैं जीवा के ऊपर आ गया और अपने पैरो को हिलाकर थोडा एडजस्ट किया। अब मेरा खून से लबालब भरा मोटा लंड, मेरा फूला हुआ लाल सूपाड़ा जिसकी नसे दूर से ही देख रही थी, जीवा की जांघो के बीच बिलकुल चूत के मुहाने पर झूल रहा था।

"उफफफफफफफफफ्फ़ मास्टर मेरी चूत को इतना गरम हो गई है। कि अब तुम्हारे लंड लिए बैगर इस की प्यास नहीं बुझ पाएगी" गीवा ने अब बेशर्म होकर कहा।

इन्ही मादक कराहो के बीच मैंने लंड को जीवा की चूत के छेद पर रखा और रगड़ने लगा। जीवा की कराहे और सिसकारियाँ बढती जा रही-रही थी। मैंने कमर को और झुकाते हुए लंड को जीवा की चूत से सटा दिया और उसकी चूत रगड़ने लगा। जीवा भी उसकी चूत को सहलाते मेरे लंड पको अंदर को दबाने लगी।

मैंने जीवा की चिकनी गुलाबी गीली चूत को सहलाते-सहलाते लंड थोड़ा दबाया और दबाब डाल कर जीवा की चूत के ओठ खोल दिए-और अपने खड़े लंड का फूला सुपाडा उसकी मखमली गुलाबी चूत पर सटा दिया। जीवा को लगा अब बस मैं अपना मुसल लंड उसकी चूत में पेल देगा। मैं जीवा की जांघो को अपने और करीब ले आया और अपने लंड को उसकी चूत के मुहाने पर लगा दिया।

अब दोनों इंतजार नहीं कर पाए तो मैं वागे हुआ और अपने लिंग को अपने दाहिने हाथ में पकड़ लिया। यह पूर्व सह टपक रहा था। योनि भी भीगी हुई थी। मैंने अब प्रवेश द्वार की तलाश में अपनी नोक को एक दो बार ऊपर और नीचे खिसकाया। उसने अपनी आँखें बंद कर लीं और लंड के प्रवेश के लिए तैयार थी।

मैंने कमर पर जोर लगाया और अपने मोटे लंड का फूला हुआ सुपाडा जीवा की चूत में पेलने की कोशिश करने लगा। उसने आइस्ते से जीवा के कसे संकरे चूत छेद पर दबाव बढ़ाया और अपने सुपाडे को जीवा की गीली चूतरस से भरी चूत के हवाले करने लगा। जीवा की चूत के गुलाबी ओंठ उसके फूले सुपाडे के इर्द गिर्द फ़ैल गए।

जीवा की चूत पर लंड सटाने के बाद उसने दो बार लंड को चूत में पेलने की कोशिश की और दोनों बार चिकनी चूत की कसी दीवारों और उसके चारों तरफ फैले चिकने चूत रस के कारन लंड फिसल गया। मैंने इस बार लंड को जड़ से पकड़कर चूत के मुहाने पर लगाया और जोर का धक्का दे मारा। जीवा की चूत की मखमली गुलाबी गीली दीवारों को चीरता हुआ लंड का सुपाडा चूत में घुस गया।

जीवा का पूरा शरीर काम उत्तेजना के कारन गरम था, चूत भी गीली थी, लगातार उसकी दीवारों से पानी रिस रहा था और जीवा भी मेरा मोटा फूला हुआ मुसल लंड चूत में अन्दर तक लेने के लिये मानसिक रूप से तैयार थी । फिर भी मेरे लंड का मोटा सुपाडा अन्दर जाते ही जीवा दर्द से कराह उठी।

जीवा-आआअह्ह्ह आआआआआह्हह्हह्हह्हहईईईईईईईईई स्सस्सस्स मैं आह्ह्हह्ह स्सस्सस्सस, हाय मैं मर गयी, दर्द ओह्ह हाय, आआआआऐईईईईईईईऊऊऊऊऊऊऊऊ।

चूत की दीवारों में हाहाकार मच गया, दर्द के मारे चूत का बुरा हाल हो गया, जीवा ने मुट्ठिया भीच ली, उसके जबड़े सख्त हो गए और अपने निचले ओठो को दांतों के बीच में कसकर दबा लिया। पूरे शरीर को कड़ा करके दर्द बर्दाश्त करने की कोशिश करने लगी।

आज जीवा की योनि पर मैंने ऊपर से दबाव बनाया और फिर एक झटका दिया जीवा की प्यासी गीली चूत के अंदर, मेरे लोड़े का सुपड़ा मेरी बहन की टाइट चूत को चीरता अंदर समा गया।

जीवा की आंखें बड़ी हो गई। मेरा बहुत बड़ा औजार था। जीवा दर्द में थी। मैंने कोई परवाह नहीं की और उन्होंने एक और झटका मारा अब मेरा आधा हथियार जीवा के छेद में जाकर फस गया था।

जीवा: आआअह्हह्हह्ह... मास्टर ।आआअह्हह्हह्ह ।आआअह्हह्हह्ह।

मैंने जीवा की आह से जोश में भर कर एक जोरदार झटका दिया और पूरा का पूरा लिंग मैंने जीवा के संकरे छेद में उतार दिया... फिर मैंने धीरे-धीरे अपना लंड बाहर निकाला, लंडमुंड अंदर ही रहने दिया और फिर से जीवा के अंदर पेल दिया।

मैं लिंग को धीरे अंदर बाहर करने लगा और चारो लड़किया पर्पल, मोनिका, क्सान्द्रा और केप्री रसोई के पास के दरवाजे पर खड़ी हमारी चुदाई चुपचाप देख रही थी। उन्हें अच्छी तरह से पता था कि मैं और जीवा क्या कर रहे हैं। प्रत्यक्ष चुदाई देख कर उत्तेजित हो रही थी फिर कुछ देर बाद पर्पल एक हाथ से अपने स्तन और दुसरे हाथ से अपनी योनि को मसल रही थी । क्सान्द्रा अपने स्तन दबा रही थी । मोनिका केप्री के ओंठो को चूम रही थी । केप्री अपनी बहन जीवा की चुदाई अब प्रत्यक्ष देख रही थी और उसे उसका बदन उत्तेजित हो रहा था ।

कुछ धक्को के बाद योनि की मासपेशिया मेरे लिंग के आकार और लम्बाई के हिसाब से समायोजित हो गयी और मैं जल्दी ही अपनी पूरी रफ्तार से जीवा की चूत का बाजा बजा रहा था । जीवा की गीली चूत से मुझे आसानी हो रही थी।

दोनों के मुंह से कामुक आवाज साफ-साफ सुनाई दे रही थी।

मैं जीवा की एक चूची को मुंह में लेकर दूध पीते हुए अपनी कमर चला रहा था । जीवा ने अपनी दोनों टांगे मेरी कमर में लपेट दी थी... लंड जब पूरा नादर जाय और हमारे बदन टकराते तो थप-थप की आवाज आ रही थी ।

लगातार ठोकरे...दे दनादन ठोकरे... सटासट मुसल लंड उसकी मखमली चूत की संकरी सुरंग को चीरता हुआ उसके अनगिनत फेरे लगा रहा था । साथ में चुदाई की थप-थप की आवाज पूरे माहौल को और भी कामुक बना रही थी ।जैसे ढोल बज रहा हो। हर धक्के के साथ उनकी रफ्तार बढ़ती जा रही थी। अगले कुछ मिनट तक जीवा इसी प्रकार से लेटी हुई मेरे धक्के बर्दाश्त करती रही।

हर बार लंड योनि को चीर-चीर कर फैलाता और अंदर पूरा का पूरा उसके अन्दर तक धंस जाता और फिर बाहर । फिर शुरू हुआ सरपट अन्धी सुरंग में रेस लगाने का सिलसिला और ये चुदाई और ठुकाई अब रुकने वाली नहीं थी ।

मैं उसे मंदिर में समारोह में चोद चूका था और आज फिर उसे चोद रहा था। अब वह पाईथिया की ही तरह मंदिर में सभी पुजारिणो और मंदिर के श्रद्धालुओ के लिए बड़ी बहन "एडेल्फी" थी। सब उसे "एडेल्फी" कह कर ही सम्बोधित करते थे। यहाँ तक की वह सब भी जो उम्र में उससे बड़े थे वह भी उसे एडेल्फी कह कर ही सम्भोधित करते थे। पर्पल और जीवा की छोटी बहन केप्री के लिए तो वह बड़ी बहन एडेल्फी थी ही । चारो लड़किया अब उसकी ऐसी चुदाई देख कर विस्मित थी और सभी साँसे रोक कर हमारे सम्भोग को देख रही थी ।

मैंने इन खास पलों का ख़ास लुत्फ उठाने का फैसला किया । यह जानते हुए कि मुझे ये विशेषाधिकार प्राप्त था और मैं बिस्तर पर ही जीवा और अन्य सभी पुजारिणो पर मैं बिना किसी डर के हावी हो सकता था। मैंने इस सम्भोग को लम्बा करने का फैसला किया और मैंने धक्के मारना धीमा कर दिया, जिससे वह हताशा में कराह उठी। मैं मुस्कुराया और धीरे-धीरे लंड उसके मांस से अंदर और बाहर स्ट्रोक किया, फिर मैं तब तक और भी धीमा होता गया जब तक कि मैं लगभग गतिहीन नहीं हो गया। वह हांफने लगी, मेरे नीचे दब गई और जोर-जोर से अपने कूल्हे ऊपर उछालने लगी।

मैंने अपने धक्के बहुत धीमे कर दिए और वह कराहती हुई जोर-जोर से अपने कूल्हे ऊपर उछालने लगी। फिर अचानक, मैंने जोर से इस तरह धक्के मारने शुरू कर दिए जैसी की मैं मेरा लंड कोई हिंसक हथोड़े में बदल गया हो-अपने कूल्हों को आगे-पीछे और ऊपर-नीचे करते हुए उसकी योनि में लंड को हथोड़े की तरह अंदर धकेल कर इसकी योनि के गर्भशय पर चोट करने लगा, मेरे नितंब तेजी से उठ रहे हैं और नीचे हो रहे थे मेरा लंड अंदर जा कर घुम रहा है और योनि ने गहरा घुस रहा था और फिर से घूम रहा है और उसके मांस को अंदर जाकर दबा रहा था।

जीवा भी पागलों की तरह अपने टांगो से मेरी गांड के ऊपर मारने लगी थी. जीवा स्खलित हो रही थी ।

फिर अचानक मेरा चेहरा लाल हो गया. मेरी गेंदों में उबाल आया और मैंने अनियंत्रित सम्भोग का अनुभव किया और मुझे लगा मैं स्खलित हो जाऊँगा और जीवा की मखमली गुलाबी सुरंग में अपना वीर्य गिरा कर जीवा की मखमली छेद को मैंने अपनी मलाई से भर दूंगा पर मैं भी झड़ना नहीं चाहता था । मैं रुक गया मैंने धक्के मारने बंद कर दिए ।

जीवा की गांड के नीचे का सोफे के कपड़े का हिस्सा उसकी योनि से रिस रहे रस से पूरी तरह गीला हो चुका था. जीवा की योनि से टपकता हुआ रस सोफे को गीला कर रहा था. जीवा की आंखें बंद थी और गहरी-गहरी सांसे ले रही थी. बहुत ही कामुक और उत्तेजक दृश्य था ।

जीवा पर मुझे प्यार आ रहा था। और मैं जीवा के बदन को चूम और निहार रहा था जीवा के उतार चढ़ाव, कटीले बदन का जायजा ले रहा था प्रेम और सेक्स की देवी की पूरी कृपा है इसके रूप रंग, इसके हुस्न और जवानी पर ये साक्षात दिख रहा था । मैं जीवा के बदन को निहारते हुए अपने ख्यालों में गुम था ।

आगे क्या हुआ--ये कहानी जारी रहेगी

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