महारानी देवरानी 004

Story Info
राजकाज के बारे में जानना
1.4k words
4.75
41
00

Part 4 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

महारानी देवरानी

अपडेट 4

राजकुमार बलदेव सिंह मन में कईं भाव लिए हुए अपने मां कक्षा की तरफ बढ़ा रहा था, उसे बड़ी मां को अपने मां के खिलफ बात सुन कर अजीब लगा था और परेशान हो गया था. उसे समझ नहीं आरहै था के को वो इन हालात में क्या करे। जब वो अपनी मान के काश में पहुँचता है तो देखता है रानी देवरानी अपने पुत्र के लिए 56 भोग सजा रही है. वो अपने बेटों का आभास पा कर कहती है -

देवरानी: आ गए पुत्र..बड़ी देर कर दी आने में!

राजकुमार बलदेव : माता श्री आप थकती नहीं हो?

देवरानी : ऐसा क्यू पूछ रहा है पुत्र?

राजकुमार बलदेव: क्यूकी मझे ज्ञात है आप सुबह से काम कर रही हो, आप विश्राम क्यू नहीं करती? (इसमें पुत्र का माँ के लिए प्रेम झलक रहा था । )

देवरानी: बलदेव..जिसका बेटा इतने वर्षो बाद वापिस आया है, वो माँ कैसे थक सकती है?

राजकुमार बलदेव. दसिया भी तो है ना माँ! और लोग भी है घर में..बड़ी मां भी है...!

देवरानी : वो महारानी है (मन में: ये क्या निकल गया मुह से.!)

राजकुमार बलदेव जो पहले से ही सब कुछ सुन के ही आ रहा था उसका माँ की बात सुन दिमाग खराब हो गया और उसने कहा-

राजकुमार बलदेव : मां, अगर बड़ी मां महारानी है तो क्या आप दासी हो?

देवरानी; बात को संभलते हुए बोली -नहीं..बेटा, मेरा मतलब था कि नियम अनुसार बड़ी पत्नी को ही महारानी की उपाधी मिलती है और ऐसा हर राज्य में होता है। (मन में: मझे महारानी क्या कभी रानी भी नहीं समझ गया। )

राजकुमार बलदेव को भी रानी देवरानी(माँ) का चेहरा पढ़ने में देर नहीं लगी और मन में बोला (कोई बात नहीं माँ अब तक कौन क्या था और क्या हुआ मझे नहीं पता पर अब महारानी सिर्फ आप ही रहोगी, आपके पास वो सब कुछ होगा जो एक महारानी के पास होना चाहिए. )यही सोच ही रहा था की रानी देवरानी ने कहा ।

रानी देवरानी: पुत्र अब भोजन कर लो।

उसके बाद दोनों बैठ के 56 भोग पकवान का आनंद लेने लगे।

राजकुमार बलदेव: मां आज ऐसा लग रहा है वर्षो बाद भोजन किया हूं। क्या स्वादिष्ट भोजन है!

देवरानी: सभी मेरे कुंवर कन्हैया के लिए ख़ास तौर पर बनवाया है।.पेट भर के खाना है आपको।.अब तुम्हे कहीं नहीं जाने दूंगी ।

राजकुमार बलदेव: पर मां मेरे कुछ मित्रगण तो आगे पढ़ाई के लिए विदेश जाएंगे वहा महा विद्यालय है।

देवरानी: हर विद्या तो आ ही गई है तुमको अब और क्या सीखना है।

राजकुमार बलदेव: मां लोग फ्रांस जाते हैं या इंग्लैंड जाते हैं, सुना है वह. विज्ञान और नए आविष्कार करने की शिक्षा प्रदान की जाती है, और वो इसी कारण हम से कई 100 साल आगे है।

देवरानी : वो कैसे?

राजकुमार बलदेव: जैसे वहा पर चित्रकार कुछ यंत्रो से चित्र निकालते हैं। बिना घोड़े के सवारी की जाती है। वाहन चलते हैं, पानी में बड़े बड़े नाव जो कोसो दूर तक हजारो लोगो के ले जा स्कते है.,वो ऐसे यंत्र बना रहे है।

देवरानी; (अचंभित हो कर) मैंने तो पारस तक कि दुनिया ही देखि है पुत्र..क्या ऐसी ऐसी दुनिया भी है उस जगत में?

बलदेव : हां उनके वेश भूसा भी अलग है बोली भी हम से अलग है । जिस दिन में महाराजा बन जाऊंगा उस दिन आपको अवश्य इस देशो की यात्रा करवाऊंगा ।

देवरानी: भोलू...बिना महारानी के महाराजा बन जाओगे।

बलदेव : हा हा! ये तो मैंने सोचा ही नहीं!

देवरानी :.बुद्धू कही के!

इसी बीच दोनो खाना खा लेते हैं या बलदेव भी थका था तो शुभ रात्रि कह के अपने कक्ष में चला जाता है और सो जाता है इधर देवरानी भी थकी हुई थी और वो भी सो जाती है।

(महल)

अगली सुबह सभी उठ जाते हैं । बलदेव सबसे पहले उठा था और वो महल मुआयना करता है। महल का ख़ास दरबार पहले से सुंदर और सजा हुआ दिख रहा था । एक बड़ा राजसिंहासन था. जिसके साथ एक छोटा आसान लगाया गया था जिसके दोनों तरफ 5, 5 आसन थे जो मंत्रियों के लिए थे. दरबार के एक तरफ सैनिको के अभ्यास के लिए जगह थी और अस्त्रों और शस्त्र के कक्ष थे और यात्रा अतिथि गृह, रसोई घर जहां पर भंडारा बनता था. राज्सिंघासन के पीछे से दरवाजा राज महल की और खुल रहगा था जहां पर अनेक सैनिक दिन रात पहरेदारी देते थे।

राजकुमार बलदेव के लिए राजा राजपाल ने महल में ऊपर एक मंज़िल बनवायी थी निचे खुद उनका स्वयं का कक्षा था और साथ ही महारानी और रानी का कक्ष था राजा राज पाल ने अपनी माँ को भी निचे कक्ष दिया था। प्रथम मंजिल पर सिर्फ राजकुमार बलदेव का कक्ष था और ऊपर सीधे चढ़ते ही सामने एक विशाल दरवाजा थ. जो एक आलिशान कक्ष की ओर खुलता था। उस आलीशान कक्ष के बीच में पलंग जो किसी भी साधारण पलंग से 3 गुना ज्यादा बड़ा था। बिस्तर भी ऐसा नरम की अगर बच्चा भी बैठे तो धस जाए। पलंग चारो तरफ कीमती मोतीयो से सजा हुआ था। पलंग के आस पास आराम कुर्सी और मेज रखी हुई थी। मेंज परकुछ अलग किस्म के जग रखे हुए थे. वही एक कोने में स्नान घर और शौचालय था जो राजा राजपाल ने पारसियो के राजा के द्वारा भेजे गए कारीगरों से बनवाया था ।कक्ष में कालीन भी पारस से ही मांगवाया था जो राजकुमार के पूरे महल को अलग रूप देते थे ।)

राजकुमार बलदेव अपना महल में आकर अंदर ही अंदर बहुत खुश हुआ। फिर उसे कहीं कोई ना दिखने पर वो महल के मुख्य द्वार से बाहर आया और एक रक्षक से पूछा सब कहा है?

सैनिक : युवराज वो आज सभा चल रही है।

राजकुमार बलदेव : अच्छा ठीक है।

तभी वहां सेनापति भी आ गया और प्रणाम कर बोला ।

राजकुमार सेनापति: युवराज! महाराज की आज्ञा है, आप भी तैयार हो कर सभा में आ जाए।

राजकुमार बलदेव : हां हम आते हैं.

राजकुमार बलदेव अपने कक्ष में जाकर अपने राजसी वस्त्र पहनता है और फिर उसपर मोतियो के हार पहनने के बाद दरबार की ओर चल देता है।

दरबार पहुचते ही देखता है के बारी बारी से सब लोग अपनी बात कह रहे हैं और मंत्री सभी की राय को लिख रहा था। जैसे ही वहां किसी की नजर युवराज पर पड़ती है सभी युवराज की जयकार करने लगते हैं। युवराज बलदेव देखता है के एक बड़े सिंघासन पर उसके पिता और उसके साथ के दूसरे बड़े सिघासन पर उसके बड़ी मां बैठी हैऔर छोटे सिंघासन पर उसकी मां बैठी है. जिसको देख कर बलदेव को अजीब लगता है परन्तु वो छोटे आसान पर अपनी मां बगल में जा कर बैठ जाता है. घंटो तक सभा चलती है राज्य के हर विषय पर सभी सभासद अपने तर्क रखते है और सबकी दुविधा परेशानीया सुनी जाती है। तभी महारानी सृष्टि उठ कर दरबार से जाने लगती है तो सब दरबारी उठ खड़े होते हैं और जय जय करने लगते हैं। ),, देवरानी जन बूझ कर नहीं उठती जिस से ये बात बलदेव से छुपाई जा सके पर अचानक महाराजा राजपाल कहते है।

महाराज राजपाल; देवरानी। आप महल में जाए विश्राम करे!

देवरानी: (ना चाहते हुए भी) जी महाराज!

देवरानी उठ कर जाने लगती है पर इस बार कोई भी सभासद देवरानी की जय जय कर नहीं करता बस एक महल का पहरेदार कहता है "रानी देवरानी पधार रही है।"

राजकुमार बलदेव: (मन में- यही पहरेदार बड़ी मां को महारानी कह के संबोधित करता है) आखिर ये भेद भाव क्यू? ना तो मेरी माँ को पिता जी के साथ सिंहासन न जय कार ना ही कोई उनको महारानी कहता हैं।

महाराज राजपाल :पुत्र!

राजकुमार बलदेव : आज्ञा पिता श्री!

महाराज राजपाल : किस सोच में डूबे हो?

राजकुमार बलदेव : कुछ नहीं।

महाराज राजपाल: पुत्र हमारे गुप्तचरों से खबर मिली है के अंग्रेज उत्तर से भारत के सीमा में प्रवेश करने का प्रयास करने वाले है।

(हर मंत्री आश्चर्यचकित होता है या साथ ही राजकुमार बलदेव भी हैरान रह जाता है। )

मंत्री: तो महाराज इसका क्या उपाय है?

महाराज राजपाल : अभी तक तो नहीं है।

मंत्री: आज तक इस उच्च पर्वत और इसके चारो और के घने वन ने हमारी रक्षा की है पर अंग्रेजी के पास तो आधुनिक यंत्र है और शस्त्र भी हैं।

महाराज राजपाल: हम पड़ोसी राज्यों से इस विषय पर बात कर रहे हैं देखते हैं क्या निष्कर्ष निकलता है।

मंत्री : जो हुक्म महाराज!

फिर उसके बाद सभा समाप्त हो जाती है और हर मंत्री अलग अलग बने हुये मंत्री महल में चले जाते हैं और राजा राजपाल तथा बलदेव कुछ सैनिको के साथ पीछे राजमहल में आ जाते हैं। सैनिक वही द्वार पर पहरा देने लगते हैं।

कहानी जारी रहेगी

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous