महारानी देवरानी 005

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घोड़ी कहीं की
1.3k words
4.75
35
00

Part 5 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 5

उसी दिन दुपहर के भोजन के बाद राजकुमार बलदेव अपनी दादी के कक्ष में जाता है और उनके चरण छू कर आशीर्वाद लेता है।

दादी: आयुष्मान भवः पुत्र!

राजकुमार बलदेव: दादी माँ आप कैसी है?

दादी: मेरी उमर हो गई अब तो बस जाने का वक्त आ गया है।

राजकुमार बलदेव: दादी ऐसा मत कहो अभी आप 100 साल और जीयोगे और ये आपके घुटनो में तकलीफ है ना!

दादी: हाँ पुत्र ।

राजकुमार बलदेव: तो आप ठीक हो सकते हैं और चल भी सकते हैं।

दादी: वह कैसे? पुत्र!

राजकुमार बलदेव: मैं एक ऐसे वैध को जनता हूँ जिसने ऐसा रोग ठीक कर दिया है और ताप तब तक वैसाखी से चल सकती हो, मैं कल ही उस वैध को आपके उपचार के लिए बुलवाता हूँ।

दादी: मेरे लिए इतना सोचने के लिए, धन्यवाद बेटा ।

राजकुमार बलदेव: ये मेरा फ़र्ज़ है, दादी आपसे कुछ बात जाननी थी।

दादी: बोल ना!

राजकुमार बलदेव: ये माँ के साथ ये व्यवहार क्यू और उसकी सारी मन की बात दादी को बता दी ।

दादी: ये जीवन ऐसा ही है बेटा, तेरी पिता को तेरे माँ से छीना गया, उसका हक छीना गया लेकिन में चाह के भी तेरे माँ की मदद नहीं कर स्की और फिर दादी रोने लगी।

राजकुमार बलदेव: रो मत दादी अब मैं आ गया हूँ ना मैं अब ठीक कर दूंगा।

दादी: बलदेव के सर पर हाथ रख के बोली "तू है महाराजा बलदेव सिंह घाटकराष्ट्र का राजा तेरी हर बोली होगी पत्थरों की लकीर"

ये सून कर राजकुमार बलदेव को एक अलग ही उर्जा मिली और उसकी दादी का हाथ अपने हाथ में ले कर कहा "हा मैं घाटराष्ट्र का महाराजा राजा बलदेव सिंह और मेरी हर बोली अब से है पत्थर की लकीर" और ये कह कर उसे एक अलग ही ऊर्जा की अनुभूति हुई।

दादी: बेटा एक वादा कर!

राजकुमार बलदेव: हाँ बोलिए दादी जी! आज्ञा कीजिये ।

दादी: तेरे माँ कभी मुह से नहीं कहेगी । उसे क्या जरूरत है? क्या तकलीफ है? उसने बहुत तकलीफ झेली है, मैं औरत हूँ उसका दर्द समझ सकती हूँ, मुझसे वादा करो पुत्र तुम उसका हर कदम पर साथ दोगे। उसके बिना बोले! उसकी जरूरत को समझ कर पूरा करना जितना उसने दुख सहा है उसका 10 गुना सुख उसे मिले । वादा करो पुत्र!

राजकुमार बलदेव: मैं वादा करता हूँ मैं पूरी कोशिश करूंगा उनको हर प्रकार से खुश रखने की।

दादी: कोशिश नहीं...बेटा मुझे तम पर पूरा यकीन है तुम्हारा अखो में ये जलती ज्योति इस बात की गवाही दे रही है के तुम सभी जिम्मेदारीया उठा लोगे । बस पुत्र सदा अपने दिल की सुनना और किसी की नहीं...तभी मेरे मरने के बाद मेरी आत्मा को शांती मिलेगी ।

बलदेव: (सोचते हुए) पर दादी क्या करें कैसे करें?

दादी: आपनी आंखों में देख, अपने दिल में सोच की तू क्या कर सकता है और उसकी भी आंखों में देख उसे क्या चाहिए?

बलदेव: ठीक है दादी, आशीर्वाद बनाए रखें।

दादी: जीते रहो पुत्र!

बलदेव अपने मन में कई सारे तूफान ले कर अपने कामरे में आकर विश्राम करने लगता है।

इधर देवरानी एक झीनी-सा लिबास पहन कर उल्टी लेटी हुई उसके गोरी बाजुए वस्त्रो से आज़ाद थी । उसके घाघरे में उसके मोटे गोल तरबूब एक गेंद की तरह लहरा रहे थे जिसे देख उसकी दासी कमला के मुंह में भी पानी आ गया था, कमला पिछले 10 मिनट से देवरानी की जैतून के तेल से मालिश कर रही थी,, देवरानी के दोनों तरफ अपने पैर रख के उनकी पीठ की मलिश कर रही थी। केवल कमला ही थी जो देवरानी को महारानी कहती थी।

कमला: महारानी आप का बदन तप रहा है।

देवरानी: हममम हूँ (सिसकी लेते हुए)

कमला: कही आपको बुखार तो नहीं महारानी! और फिर घाघरा के नीचे उसके जांघो और पिंडलियों पर तेल लगा के मलिश करने लगी ।

देवरानी: नहीं... कमला हम ठीक हैं ।

थोड़ा ऊपर हाथ करते हुए कमला उनके नितम्बो पर अपने हाथ रख देती है।

कमला: हाय राम इतना गोल और इतना बड़ा मेरे दोनों हाथो में तो महारानी का कुछ आता ही नहीं है।

देवरानी: क्या बोली।

कमला: कुछ नहीं महारानी अगर में पुरुष होती तो आपका हाल बुरा कर देती।

देवरानी: एक तो तू महिला है दूसरा तेरे से मालिश तक तो ठीक से होती नहीं है पुरुष होती तो भी कुछ नहीं कर पाती और मुस्कान देती है।

कमला: महारानी जी अब-अब पलट जाईये ।

देवरानी अपने पीठ पर छोटा-सा कपड़े का टुकड़ा जिस से दूध ढक रहे हैं कस लेती है और फिर सीधी हो जाती है।

कमला: उफ्फ्फ! कितनी चौड़ी पीठ है, इतने बड़े और मोटे सुडोल दूध भी है महारानी के और गांड भी चौड़ी है और फिर मनो बड़े दो तरबूजे जैसे नितम्ब उफ़! (मन में बुदबुदाती है।)

कमला पेट से ले कर कंधे तक मलिश करती है और तेल की शीशी ले कर महरानी के सपाट पेट की नाभि में तेल उड़ेल देती है।

कमला: हाय राम सारा का सारा तेल नाभी में ही रुक गया झाई इतनी गहरी नाभि है आपकी महारानी! (मन में चूत की खाई कितनी गहरी होगी और गांड तो मानो सुरंग ही होगी ।) देवरानी जब से विवाह के बाद महल में आई तब से अपनी आग बुझाने के लिए कमला का सहारा लेती रही है और कमला से उनकी दोस्ती-सी हो गई थी। एक तरह से कमला देवरानी की सखी-सी बन गयी थी ।

देवरानी अब कमला का हाथ ले कर अपनी बड़ी-बड़ी गेंदो पर ले जाती है और दांत से अपने ओंठ काटती है। कमला दोनों हाथो से एक दूध को पकड़कर मरोड़ती है और उससे रहा नहीं जाता तो फिर उसके दूध को चूम लेती है।

कमला: हाय दय्या इतना बड़ा दूध है महारानी आपका मेरे दोनों हाथो में भी नहीं आरहे इसके लिए तो अलग से हाथ बनवाना होगा (और महारानी के दूध को दबाती रहती हैं।)

देवरानी: ऐसा नहीं है कमला दुनिया में मैं अकेली नहीं हूँ जिसका बदन ऐसा है।

कमला: बराबर और औरतो को तो उनके हिसाब के नाप का पति मिल जाता है पर आप जैसी शानदार घोड़ी को राजा राजपाल जैसे डेढ़ फुटिया मिल गया।

देवरानी: ऐसा नहीं बोलते कमला।

कमला: काश अप्पको आपके हिसाब का हाथ और वह मिल जाता ।

देवरानी: सपना मत देखो कमला

कमला: सपना नहीं देखु तो क्या करूँ महारानी मैंने तो घाटक राष्ट्र में ही किसी का इतना लम्बा चौडा हाथ नहीं देखा जिसका जिस्म आपके जिस्म के उपयुक्त हो । जिसका हाथ इतना बड़ा होगा तो वह भी उतना बड़ा ही होगा तो आपके आगे का दरिया और पीछे का समुंदर पार कर देगा... अरे हाँ महारानी मैं अभी कुछ दिन पहले कुछ देखा मुझे याद नहीं आ रहा वह कौन था वह हाथ, वह बड़े हाथ वाला!

(और बोलते-बोलते देवरानी के दूध को मसल रही थी ।)

देवरानी अब अपने चरम पर थी और उत्तेजना से उनकी आँख बंद थी और वह सिसक रही थी)

कमला भुल्लकड थी।

महारानी-कमला तू भुलक्क़ड ही रहेगी!

कमला: अरे हा महारानी याद आया वह हाथ तो युवराज बलदेव का था।

देवरानी ये सोच कर की उतना बड़ा हाथ उसके बेटे का ही है उसके चुत से चुतरस की पिचकारी छूट गयी और वह हंसने लगी और अर्ध मूर्छित हो गयी । थोड़ी देर बाद महारानी को होश आया।

देवरानी: अनपढ़ है तू । कमला गवार ही रहेगी! गुस्सा होते हुए महारानी बोली ।

कमला: अरे वह उस दिन युवराज घुड़ सवारी करने जा रहे थे तो अचानक घोड़ा मिमियाया तो युवराज ने उसके सर को अपने एक से दबोच लिया। इतना बड़ा हाथ था महारानी उनका और वह घोड़ा शांत हो गया।

देवरानी: कमला तू गवार ही रहेगी तुझे नहीं पता है कब क्या बात करते हैं । वैसे वह घोड़ा नहीं था जिसे बलदेव ने चुप करवाया था वह घोड़ी थी। (उसके चेहरे पर एक मुस्कान आ जाती है।) फिर देवरानी झट से स्नान घर में घुस जाती है। अपने अंतर्वस्त्र निकाल के एक दम नग्न हो आईने के सामने जाती है।

जैसे ही उसकी नजर अपने तरबूज जैसे दूध पर गयी, पतली कमर मोटे गोल मटके जैसे नितम्ब गोरा बदन । अपनी लंबाई और चौड़ाई देख कर एक उसके मुंह से निकालता है "घोड़ी कहीं की" और फिर वह स्नान ले कर एक लाल रंग का साड़ी और काले रंग की चोली पहनती है जो उसने मेवाड़ से मांगवायी थी । फिर शृंगार कर, गहने पहन तैयार हो कर अपने बेटे से मिलने निकल पड़ती है।

कहानी जारी रहेगी

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