महारानी देवरानी 006

Story Info
घोड़ी, घोडा, चूहा, शेर, शेरनी, बंदरिया
1.9k words
4
25
00

Part 6 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 6

देवरानी शृंगार कर और सज सवर कर युवराज बलदेव को ढूँढने उसके कमरे की तरफ निकल गयी पर युवराज अपने कमरे में नहीं मिलता तो वह मुख्य महल के द्वार के पास गयी । जहाँ मुख्य द्वार पर सैनिक पहरेदारी कर रहे उन्हें महल के अंदर जाने की अनुमति नहीं थी।

देवरानी: सुनो क्या तुमने युवेआज बलदेव को देखा है?

सैनिक: जी रानी जी वह अभ्यास कर रहे हैं।

और सैनिक उसे अभ्यास स्थल को इशारे से बताता है, देवरानी उधर बढ़ जाती है और जैसे ही देवरानी की नजर बलदेव पर पड़ती है, वह खो जाती है। उसकी चौडी छाती, मांसल पेट, मजबूत बांहे मांसपेशिया, कधे को देखती रह जाती है । युवराज के एक हाथ में जंजीर और एक हाथ में तलवार लिए अपने अभ्यास में लगा हुआ था। देवरानी जैसे ही उसके हाथ पर बंधे जंजीर को देखती है और उसके हाथ का ताकत का अंदाज लगता है वह मन में कहती है: इतना बड़ा, इतना मजबूत हाथ! (तब उसके मन में कमला की बात याद आती है "युवराज का हाथ ही आपके ये बड़े दूध को एक हाथ से दबोच सकता है या आप के मटके जैसी गांड की नसे ढीली कर सकता है, जब उसका हाथ इतना बड़ा है तो वह इतना बड़ा होगा ही जिस से वह आपके आगे का दरिया या पीछे का समुंदर पार कर देगा।")

देवरानी अंदर ही अंदर शर्म से गड जाती है और कही ना कही मन में सोचती है कि कमला सही कहती है कि इस आकार के उसके शरीर को कुछ इसी प्रकार के शरीर भोग कर के तृप्त कर सकता है। फिर वह इन विचारो को झटक कर बुदबुदाती है: घोड़ी कहीं की!

तभी उसके कान में आवाज पड़ती है।

बलदेव: मां!...क्या हुआ आप क्या सोच रही हो?

देवरानी बस राजकुमार बलदेव को ममुस्कुरा कर देखती है।

बलदेव: (मन में) वह! क्या मुस्कान है माँ तुम्हारी और ये साडी आप पर कितनी फब रही है। माँ के ये आगे के पीछे के सब उभार ओरो से कितने अलग हैं, कितने बड़े हैं। माँ कितनी गोरी हैं (अरे! मैं क्‍या सोच रहा हूँ। वह मेरी माँ है। मुझे उनके लिए ऐसा नहीं सोचना चाहिए!) और अभ्यास रोक देता है!

राजकुमार बलदेव: माँ आप इतनी दूर क्यू हो पास आओ!

देवरानी: हाँ कुछ नहीं हुआ बेटा तुम्हे अभयास करता हुआ देखा रहे थी। मैं तुम्हारे ध्यान भंग नहीं करना चाहती थी।

राजकुमार बलदेव: माँ मेरा अभ्यास पूरा हो गया है। और उनके पास आ कर प्रणाम करता है ।

देवरानी: आयुष्मान भवः पुत्र! बस सोच रही थी तू कितना बड़ा और बांका जवान हो गया है।

राजकुमार बलदेव: और आप भी तो कितनी बड़े हो गए हो।

देवरानी: क्या मतलब है तुम्हारा, मैं बूढ़ी हो गई हूँ क्या?

राजकुमार बलदेव: नहीं मेरा मतलब पहले आप पतली थी अब थोड़ी मोटी हो गई हो।

रानी देवरानी: क्या कह तूने मैं मोटी हूँ। तुझे मैं मोटी लगती हूँ ।

राजकुमार बलदेव: नहीं-नहीं आप तो मेरे से भी कम उमर की लगती हो और वह भी कम से कम 5 साल छोटी।

रानी देवरानी: तुम मेरा मजाक मत बनाओ!

राजकुमार बलदेव: माँ के करीब आ कर उनके हाथ पकड़कर कर "मेरी प्यारी महारानी माँ मैं आपका मजाक कभी नहीं उड़ा सकता। आप मोटी नहीं पर पहले से सेहतमंद हो गई हो, इससे अब आपका शरीर भरा-भरा लगता है।"

देवरानी उसके मन की बात टटोल रही थी और समझ रही थी कि बलदेव क्या बात कर रहा है और उसका क्या मतलब है।

देवरानी: अरे पुत्र तेरे वापिस आने की वजह से मेरे तन मन सब बहुत खुश है तुझे ऐसा इसलिए लगा होगा और हाँ अभी मैं बूढी नहीं हुई हूँ । अभी मैं सिर्फ 35 साल की हूँ।

बलदेव: मुझे तो आप सिर्फ 18 की लगती हो ।और मैं भी 18 का ही हुआ हूँ ।

देवरानी: पर फिर भी तम कही के 30 वर्ष के राजा लगते हो, किसी अनजान व्यक्ति से पुछा कर देखना। (देवरानी थोड़ा तुनक कर बोलती है।)

बलदेव तुरंत पास रखे अपने राजसी वस्त्र उठा कर पहन लेता है।

बलदेव: अब बताओ में कैसा लग रहा हूँ?

देवरानी: अब तो प्योर 35 वर्षीय विवाहित राजपुरुष लग रहे हो" और फिर खिलखिला कर हंसने लगती है।

बात करते-करते दोनों माँ बेटा उद्यान की ओर चल देते हैं जहाँ हर जगह खूबसूरत फूल खिले हुए।

बलदेव: माँ कहीं बैठते हैं।

देवरानी: यहा नहीं वह दूर झील है वहा पर पत्थर पर बैठेंगे। दोनों चलते-चलते उद्यान पास कर उस छोटी-सी झील के किनारे पड़े पत्थर पर बैठ जाते हैं। बलदेव एक गुलाब का फूल जो उसे चलते हुए तोड लिया था आगे बढ़ कर माँ के बालो पर लगा देता है।

देवरानी: धन्यवाद बेटा।

बलदेव: ये तो मेरा फ़र्ज़ है। आप अब और भी सुंदर लग रही है ।

देवरानी: पुत्र! अब तुम मुझ से कही दूर मत जाना।

बलदेव बैठे-बैठे दहिने हाथ से उसके बाए हाथ को पकड़ लेता है।

बलदेव: कभी नहीं...मां!

देवरानी: हाँ मैंने तुम्हे बिना बहुत अकेला महसुस किया है। पिछले 5 वर्ष मैंने कैसे गुजरे हैं तुम्हें ज्ञात नहीं है पुत्र । शुक्र है तुम अपने पिता जैसे नहीं हो ।

बलदेव: माँ मुझे पुरा ज्ञात है अब से मैं तुम्हारे चेहरे पर कभी दुख नहीं आने दूंगा, मुझे पता है आपके बलिदान का और अब तुम्हारी बारी है अपने हक लेने की।

देवरानी: क्या बात कर रहे हो बेटा।

बलदेव: यही के "महारानी की उपाधी आपको भी मिलनी चाहिए थी।" आपकी भी जय-जय कार दरबार में होनी चाहिए, राज्य हित के हर निर्णय में आपकी सहमती लेनी चाहिए। आप दिन रात काम करती रहती हो पकवान से ले कर वस्त्र तक का, सबका ध्यान रखती हो, आप दासी नहीं हो मां।

ये सचाई सुन कर देवरानी के आखो से आसु छलक जाते हैं और वह अपना सर बलदेव के कधे पर रख रोने लगती है।

बलदेव: रो मत माँ!

देवरानी: ये खुशी के आसूं है बेटा! पता है हमारी आयु में इतना कम अंतर क्यू है। क्यू के मेरा ब्याह कम उमर में कर दीया गया था। वह भी मेरे निर्णय के बिना, वह तो विवाह के अगले ही साल तुम्हारा जन्म हो गया, नहीं तो मैंने ठान न लिया गया राष्ट्र छोड़ कर कहीं दूर चले जाने का, फिर तुम ने मेरे जीवन में एक नई आशा दी और मैं अपना मन मार कर यही महल में रहने लगी।

बलदेव: ये सुन क्रोधित होते हुए कहने लगा मैं बड़ी माँ को भी नहीं छोड़ूंगा जिसने तुम्हें पिता जी से दूर किया।

देवरानी: ऐसा कुछ नहीं करना, सब कुछ प्रेम से हासिल क्या जा स्कता है और वैसे भी मैं विवाह के बाद तेरे पिता जी को समझ गई कि वह सिर्फ महारानी सृष्टि की बात ही मानेंगे। वह मुझे मजबूरी में अपने पास रख रहे हैं मैं उनके लिए सिर्फ एक उपहार में मिली वास्तु जैसी हूँ।

ये कह कर वह फिर रोने लगी। बलदेव ने अपने हाथों से उनकी आंखों का आसु पोंछे।

देवरानी: महाराज ररतन के साथ तुम्हारे पिता भी 6 माहीने साल भर युद्ध क्षेत्र में रहते थे और जब मेने गुप्तचर से पता करवाया तो पता चला वह वहा राजा रतन के साथ विदेशी महिलाओ के साथ रंगरालिया मना रहे होते और शराब की लत भी उन्होंने उसके साथ ही पकड़ ली थी राजा रतन के वजह से ही तुम्हारे पिताजी को ये बुरी आदते लगी है।

ये सुन कर युवराज बलदेव कहता है- युवराज बलदेव: इन सब के किए उनको भी सजा मिलेगी मां!

देवरानी: धैर्य रखो बेटा, जोश में आकर होश कभी नहीं खोना।

युवराज बलदेव: जी माँ जब तक आप मेरे साथ है भला में कैसे धैर्य खो सकता हूँ आप ही मेरा धैर्य हो नींद हो, हृदय का सुकून हो।

देवरानी: बस-बस पुत्र!...बाते मत बनाओ ।

युवराज बलदेव मुस्क़ुराणे लगा उसे देख देवरानी भी मुस्कुरा देती है।

युवराज बलदेव: अच्छा माँ में अपने पिता जैसा नहीं हूँ तो किसके जैसा हूँ।

देवरानी: तुम्हे अपने पिता जैसा होना भी नहीं था पुत्र तुम अपने नाना या मामा पर गए हो। बस तुम वीरता में अपने पिता पर गए हो ।

युवराज बलदेव: क्या सच में!

देवरानी: हाँ वही नयन नक्ष कद काठी।

युवराज बलदेव: तो क्या में उनसे मिल सकता हूँ?

देवरानी: तुम्हारे नाना की तो मृत्यु हो गई पर कई वर्षो से तेरे मामा का कुछ आता पता नहीं है। उन्हें मैंने आखिरी बार विवाह के पहले ही देखा था और गुप्तचरों से पता चला के वह कहीं गायब है । पारस में तो है ही नहीं।

युवराज बलदेव: मैं उनकी खोज करवाऊंगा और उनसे मिलूंगा और तुम्हें भी अपने भाई से मिलवाऊंगा।

देवरानी: हाँ मेरे भाई देवराज की लम्बाई भी तुम्हारी तरह 6.2 है और वह एक वीर योद्धा है, देवराज बचपन में मेरी लम्बाई का-का मज़ाक उड़ाता था के "तू कितनी छोटी है बंदरिया जैसी।"

युवराज बलदेवः पर माँ मेरी लम्बाई 6.3 है।

देवरानी: हाँ तुमसे थोड़ी कम है!

युवराज बलदेव: पर मान तुम्हारी लम्बाई भी तो कम नहीं 5.10 का कद तो महिलाओ के लिए सबसे ऊंचा है।

देवरानी: हाँ बेटा पर पारस देश में तो ये महिलाओं के लिए ये लम्बाई आम बात है।

युवराज बलदेव: पर माँ तब की बात कुछ और थी अब यदी मामा आपको देख ले तो आपको देख के "बंदरिया" तो बिलकुल नहीं कह सकते।

देवरानी: हाँ ये तो है। उस वक्त मैं बहुत पतली थी और अब...!

युवराज बलदेव बात काटते हुए, उठ कर रानी से दूर होते हुए जल्दबाजी से कहता हैं-

युवराज बलदेव: पर माँ अब अगर मामा आपको देखे तो घोड़ी जरूर कहेंगे । सफेद घोड़ी।

देवरानी: रुक जा नटखट अभी बताती हूँ मैं " तू देख अपने को। तू है घोड़ा।

पास में ही एक मैदान में भागते हुए युवराज बलदेव पीछे एक झाड़ी से टकरा जाता है और मैदान में गिर जाता है जिसे देख कर देवरानी हसने लगती है और तुरत पीठ के बाल लेटे युवराज बलदेव के ऊपर चढ़ा जाती है और उसकी गर्दन पकड़ कर बोलती है ।

देवरानी: अब बोल क्या हूँ मैं, तुम्हे पता नहीं आखिर में पारस की राजकुमारी हूँ और तू चूहा है।

युवराज बलदेव भी रानी को दबोच लेता है और पूरी ताकत से दबोचने से देवरानी सांस थोड़ा ज़ोर से लेने लगती है।

ये समझ कर की देवरानी की दौड़ने या बाल प्रयोग से सांस तेज हुई है युवराज बलदेव अपना हाथ अपने माँ के बाजू को पकड़ कर सहलाता हैऔर फिर उसे पलट देता है अब देवरानी सीधा लेटी थी और उसके ऊपर दोनों टांगो के घुटनो को देवरानी के दोनों तरफ टिकाए अपने हाथो से युवराज बलदेव ने देवरानी के दोनों हाथो को पकड़ा लिया और इस प्रकिर्या में पलटते समय देवरानी के ब्लाउज में फसे दोनों बड़े वक्ष कुछ समय के लिए बलदेव के सीने पर डाब गए थे और कुछ सेकंड के लिए देवरानी की आखे बंद हो गयी थी।

देवरानी: हम्म आह!

युवराज बलदेव: मैं आपको नहीं छोडूंगा और फिर अपने मजबूत सीने से रानी देवरानी के बड़े दूध को दबा दिया। फिर वह उठा और देवरानी के आंखो में देख कर बोला ।

युवराज बलदेव: अब बोलो कौन चूहा है?

देवरानी के दोनों बड़े-बड़े चूचे साँसों के साथ ऊपर नीचे हो रहे थे जिसे युवराज बलदेव भी देख रहा था।

देवरानी: मुस्कुरा कर तुम चूहे नहीं शेर हो।

युवराज बलदेव: आपसे ही तो मैंने सारी ताकत प्राप्त की है आप भी शेरनी हो घोड़ी नहीं।

फिर युवराज बलदेव हाथ पकड़कर देवरानी को उठाता है और उसके कान में कहता है।

युवराज बलदेव: माँ आप घोड़ी भी हो और शेरनी भी।

ये सुन कर देवरानी भी मस्ती में उत्तर दिए बिना नहीं मानती और कहती है "बेटा जरा जिराफ का कान इधर लाना" जब युवराज बलदेव झुका और अपना कान देवरानी के होठों के पास ले गया ।

देवरानी: तुम भी सिर्फ शेर नहीं हो घोड़े भी हो।

रानी देवरानी का ये उत्तर सुन कर युवराज बलदेव हस देता है फिर दोनों महल की ओर चल तेजी से देते है।

कहानी जारी रहेगी

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