महारानी देवरानी 007

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मन में उथल पुथल
1.7k words
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30
00

Part 7 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 7

देवरानी और राजकुमार बलदेव दोनों घूम के महल वापिस आ जाते हैं और देवरानी अपने कक्ष में चली जाती है और राजकुमार बलदेव स्नान करने चले जाते हैं। रानी देवरानी के सुंदर जिस्म को किसी मर्द के जिस्म ने पहली बार छूआ और सही धंग से दबाया था, देवरानी को अभी भी अपने बेटे की कठोर और बालिष्ठ छाती से उसके स्तनों के दबने का असर उसे महसूस हो रहा था, इस आभास भर से उसने आखे बंद कर ली और सोचने लगी।

देवरानी: (मन में) ये क्या हुआ है मुझे, मैं क्यू अपने पुत्र की और आकर्षित हो रही हूँ, उसका मुझे छूना और दबाना अलग अहसास क्यू दिया रहा है। वह है भी तो ऐसा की किसी बूढी का भी दिल उस पर आ जाए, उसे स्पर्श का एहसास क्यों मेरी सुप्त कामुक संवेदनाओ को जागृत कर रहा है। हाय राम में ये क्या सोच रही हूँ? मुझे अपने आप पर काबू करना होगा।

उधर स्नान घर में बलदेव स्नान करने के लिए पुरा नंगा हो कर आज की घटना को याद कर रहा था और उसका हाथ उसके 9 इंच के लिंग पर था जिसे वह आगे पीछे कर रहा था। उसके मन में भी उथल पुथल मची हुई थी ।

राजकुमार बलदेव: (मन में) हाये मां! कितना मुलायम और गद्देदार और हलके ठोस चूचे हैं तुम्हारे! मेरी छाती में तो मानो तुम्हारे दूध पूरे ही चिपक ही गए थे। इतने बड़े-बड़े तो गाय के स्तन भी नहीं होते और ऐसे ही माँ के स्तन स्मरण कर तेजी से अपने 3 इंच मोटे और 9 इंच लम्बे लौड़ा हिलाने लगा।

राजकुमार बलदेव: हम्म आआह और उसके मुह से एक आवाज निकली "देवराणी" और उसके लिंग ले ज्वालामुखी की तरह गर्म-गर्म ज्वाला छोड़ दी जो की ज्वालामुखी के गर्म लावे जैसा था। राजकुमार ने अपने जीवन में पहली बार हस्तमैथुन किया था और उनसे लगभग इतना पानी छोड़ा की वह खुद इस गाड़े वीर्य के लावे को देख आश्चर्यचकित हो गया। कम से कम दो मुठी भर वीर्य उसने उत्सर्जित किया था जिसे उसे हाथ बिलकुल चिकने हो गए । स्नान समाप्त कर के वह अपने वस्त्र पहन कर अपने कक्ष के आसान पर बैठ कर सोचने लगा। उफ़ ये कितना अनैतिक है! उफ़ वह कितना बेशर्म है जो अपनी माँ के लिए ऐसे विचार अप्पने मन में आ ने दे रहा है! । पापी!

बलदेव: (मन में) क्या ये सही है। मेरे मुह से माँ का नाम कैसे निकल स्कता है, मेने देवरानी कहा, में कितना बेशरम हूँ, ऐसी पवित्र माँ को मेने अपवित्र कर दिया। परंतु मेरे उत्तेजना की वजह भी वही थी, आज झील के पास अगर उनसे छेड़ छाड़ नहीं होती तो ये सब ना होता, परन्तु मेरे साथ, मेरे छूने से, वह भी तो कितनी आनंदित लग रही थी, कई वर्षो बाद मैंने उनके चेहरे पर इतनी खुशी देखी है, नहीं ये पाप है पर इस से माँ की खुशी वापस आ सकती है। उनको प्रेम की आवश्यकता है। उन्हें प्रेमी की जरूरत है, परनतु क्या समाज और धर्म इस बात को समझेगा, और साथ ही घाटकराष्ट्र के नियमो के विरुद्ध जाने पर बहुत बुरा होगा? तो मुझे अब क्या करना चाहिए?

तभी राजकुमार बलदेव के कान में दादी की बात गूंजती है "पुत्र दिल की सुनना! दिमाग की नहीं" हाँ दिल तो यही कहता है कि अपनी प्यारी सुंदर माँ को संसार भर का प्रेम दे दू और दिमाग कहता है इसका अधिकार सिर्फ पिता जी को है और ये दुनिया इस बात को है कभी नहीं मानेगी। पर पिता जी ने ही तो उन्हें इतना दुख दिया है। मैं बचपन से देख रहा हूँ माँ कैसे रात भर रो कर करवट बदलती रहती है। उन्होंने अपनी हर इच्छा को अपने मन में दबया है, ना कभी वस्त्र का ना कभी सोना का ना चांदी का, ना महारानी बनने की इच्छा जाहिर की है उन्होंने । मेने तो उनको काई बार बिना खाए पीये सोते हुए भी देखा है।

अगर में दिल की सुनता हूँ तो मझे घाटराष्ट्र से लड़ाई लड़नी होगी और दिमाग से सुनता हूँ तो क्या करूँ? माँ ना तो दूसरा विवाह कर सकती है और वह जीवन भर ऐसे ही दुखी रहेगी।

किसकी खुशी देखूं घटकराष्ट्र की? या अपनी माँ देवरानी की?

वो ये सोचता हुआ अपने कक्ष से बाहर निकल कर महल की सीढ़ियों से नीचे उतारता है और देखता है उसकी माँ देवरानी ने एक लाल रंग की साड़ी पहनी हुई थी और हरे रंग के ब्लाउज में कसे हुए उसके बड़े चूचे साफ दिख रहे थे, उनकी दूधिया कमर पर एक कमरबंद चेन थी, पीछे उनकी गोल मोटी गांड देख राजकुँमार बलदेव का जी ललचा गया और उसका दिल बोल उठा।

बलदेव: वाह! क्या सुंदरी है। अध्भुत!

देवरानी देखती है कि उसका पुत्र राजकुम्मर बलदेव उसे मुग्ध हो कर निहार रहा है और उसका मुँह खुला हुआ है और आँखे बड़ी-बड़ी हो गयी हैं। ।

देवरानी अपने बेटे द्वारा ऐसे निहारे जाने से शर्मा जाती है और अंदर ही अंदर खुश होती है।

देवरानी: (मन में) आज पहली बार मैंने किसी की आँखों ने इतना प्यार देखा है और उसका दिल जोरो से धड़कने लगता है और उसे एक अजीब से खुशी का एहसास होता है।

बलदेव और देवरानी एक दूसरे के आंखो में खोए हुए थे तभी वहा रानी की दासी कमला आ जाती है और दोनों को इस तरह घुरते हुए देख लेती है । कमला को ये समझने में देर नहीं लगती की ये मा बेटे वाला प्रेम नहीं कोई और प्रेम है।

कमला: (हल्की-सी खांसी करते हुए) महारानी?

दोनो का ध्यान भंग होता है और

देवरानी: हा... हा बोलो कमला!

राजकुमार बलदेव अपना सर नीचे कर बाहर चला जाता है।

कमला: महारानी आप ठीक तो है ना

देवरानी: हा क्यू?

कमला: बात छुपाते हुए कहती है "महारानी मैं तो आपकी मलिश करने आई हूं" "पर आज तो आप बिना मालिश के ही खिल रही हो"

देवरानी: कुछ भी!

कमला: सच, महारानी मुझे तो लगता है किसी ने आज आपको मसल दिया है। (देवरानी को आज सुबह की याद आती है जब बलदेव ने उसे अपने नीचे ले कर मसल दिया था और उसके चुत में चिट्टी रेंगने लगती है।)

देवरानी: तुम्हारा मतलब?

कमला: यही के किसी और दासी से मलिश तो नहीं करवा ली आपने?

देवरानी: कमला! तुम्हे तो पता है मेंने पीछे 18 वर्ष से तुम्हारे सिवा किसी और मलिश नहीं करवायी है ।

कमला: इसीलिए तो कहती हूँ आप की को ढूँढ लो जो आपकी ढंग से मलिश कर दे!

ये बात चीत करते हुए कमला और देवरानी दोनों देवरानी के कक्षा में आ जाते हैं

देवरानी: कमला ऐसा मज़ाक मत करो ।

कमला: क्षमा कीजिये महारानी परन्तु, जितनी आज आप प्रसन्न हो उतनी प्रसन्न मैंने आपको कभी नहीं देखा है । आपको 18 वर्षो में मैंने आपकी मालिश की पर आपको इतना खुश कभी नहीं देखा।

देवरानी को ये बात दिल में तीर की तरह चुभी ।

देवरानी: (मन में) ये तो सब पापी दिल का कमाल है । नशा है जिसे बलदेव ने आँखों से पिला दिया है)

देवरानी: अंदर से मुस्कुराते हुए "। कुछ भी कहती हो कमला" ।

कमला: अच्छा तो चलिए आप की मलिश कर दू। ।

देवरानी: नहीं अभी मलिश नहीं तुम बस सिर्फ सर में तेल लगा दो।

फिर कमला एक बड़ी कुर्सी लाती है और जिसपर देवरानी बैठती है और कमला आयुर्वेदिक औषधि युक्त तेल ला कर उसके सर के बाल जो की बंधे हुए थे खोल देती है और उसके लम्बे काले बाल जो कमर तक थे उन पर तेल लगाने लगती है।

कमला: आप की सुंदरता ऐसे है कि अभी भी कोई राजा या राजकुमार आपको अपनी रानी बनाना चाहेगा

देवरानी: में इतनी भी जवान नहीं हूँ अब!

कमला: मैं तो कहती हूँ अगर आप कोशिश करो तो कोई ना कोई तो मिल ही जाएगा जो आपको वह प्यार देगा जो आपको कभी नहीं मिला । वह लैला मजनू जैसा प्यार करेगा आपको

देवरानी: हम्म

कमला और आपके इस तराशे हुए बदन की ऐठन को बेदर्दी से दबा कर मरोड़ कर इसका दर्द कम कर देगा और आपको एक नई ऊर्जा देगा, विश्वास किजिए महारानी ऐसा हो गया तो आप जैसे बदन वाली का कभी सर भी ना दुखे और ना ही मालिश की आवश्यकता पड़े।

ये सुन कर देवरानी की आँखे शर्म से झुक जाती हैं।

देवरानी: ना बाबा मझे डर लगता है और वैसे भी ऐसा राजा मिलेगा कहा जो मेरी खुमारी निकल दे और में इस उम्र में ऐसा प्रेमी कहा ढूँढू और महाराज वह तो मुझे मार हो डालेंगे । मुझे मरना नहीं कमला की बच्ची।

कमला: महारानी आपको कही जाने की आवशयकता नहीं है यही घाटराष्ट्र में खोजो।

देवरानी: यहा कोई मेरे हिसाब का नहीं होगा ।

कमला: मैंने बहुत से मर्द देखे हैं

देवरानी: कमला ये मत भूलो। में पारस की राजकुमारी हूँ। मैं किसी ऐरे गैरे को देखती भी नहीं हूँ ।

कमला: महारानी वचन दो! एक बात कहू तो आप बुरा नहीं मानोगी ।

देवरानी: हम वचन देते हैं। बोलो ।

कमला: आप के हिसाब का और आप की खुमरी निकालने वाला दम तो बस युवराज बलदेव सिंह रखता है, उसे ही ये मौका दे दो।

ये सुनते ही देवरानी के योनि में चींटी रेंगने लगी और इसका एहसास उसे अभी थोड़े देर पहले ही बलदेव हो देख कर हुआ था और बलदेव जैसे उसे देख रहा था उससे उसकी चूत में चींटी रेंगने लगी थी और कैसे उसने मैदान में रानी को मसला था ये सब याद आते ही वह तड़पने लगी ।

देवरानी: ज़ोर से चिल्लते हुए "कमला तुम्हारी इतनी हिम्मत! अगर हमने वचन न दिया होता तो तुम्हारे ये पाप भरे शब्दो की सज़ा तुम्हारी जान होती!"

देवरानी सोचती है अगर वह ऐसा ना बोली तोपता नहीं कमला उसके बारे में क्या सोचेगी और कहीं और बतला दीया इस कमला ने तो क्या होगा?

कमला: क्षमा महारानी । क्षमा कर दो महारानी!

देवरानी: ठीक है मेरी सहेली हो कमला! पर कम से कम सोचो तो सही क्या बोल रही हो और कमला को एक मुस्कान देती है।

कमला समझ गयी थी देवरानी की चूत में कुछ और मुह में कुछ है और बलदेव उनके दिल में प्यार की घंटी अभी बजा कर गया है ।

कमला: अच्छा तो कोई अन्य आपके हिसाब का अच्छा राजकुमार ढूँढती हूँ और दोनों जोर से हस देती है। (कमला अपने मन में" मैंने आपका बुखार नहीं निकलवाया तो मेरा नाम कमला नहीं।)

देवरानी: थोड़ा नरम मिजाज़ी दिखाते हुए "अच्छा-सा देखो!"

कमला का कम खतम होने पर वह विदा ले कर चली जाती है।

जारी रहेगी

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