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CHAPTER 7-पांचवी रात
योनि पूजा
अपडेट-36
योनि सुगम- गुरूजी के सेक्स ट्रीटमेंट का प्रभाव
गुरु जी मेरे माथे को चूमते हुए गद्दे से उतरे, जबकि मैं उनके शिष्यों के सामने चमकीले पीले प्रकाश में गद्दे पर बिलकुल नग्न लेटी हुई थी।
गुरुजी: संजीव उसे दवा दे दो और बेटी तुम आराम करो मैं पांच मिनट में वापस आऊंगा।
संजीव ने मुझे एक प्याला थमा दिया जिसमें उसने हरे रंग की दवाई डाल दी थी।
तरल पदार्थ का स्वाद बहुत अच्छा था और जैसे ही यह मेरे गले में उतरा इसने मुझे एक शांत प्रभाव के साथ-साथ एक बहुत ही संतोषजनक एहसास दिया। चूंकि मैं अभी भी उस चरणामृत में मिश्रित दवा के प्रभाव से 100% बाहर नहीं आयी थी और साथ ही साथ वह बहुत ही प्रभावशाली चुदाई जो मैंने अभी-अभी गुरु जी के साथ की थी, मैंने अपनी आँखें बंद करना और गद्दे पर थोड़ी देर आराम करना पसंद किया।
मेरे दिमाग में यही विचार घूम रहे थे की कहाँ मेरे शर्मीले स्वाभाव की वजह से लेडी डॉक्टर्स के सामने कपड़े उतारने में भी मुझे शरम आती थी. लेडी डॉक्टर चेक करने के लिए जब मेरी चूचियों, निपल या चूत को छूती थी तो मैं एकदम से गीली हो जाती थी. और मुझे बहुत शरम आती थी. और अब मैं पांच पुरुषो के सामने नंगी थी, उनमे प्रत्येक के साथ लगभग सम्भोग कर चुकी थी. और उन्होंने मेरे हर अंग से साथ खिलवाड़ किया था और मेरा शायद ही कोई अंग ऐसा था जिसे चूमा और चूसा नहीं गया था.
फिर मेरे दिमाग में यही विचार आये की मुझे इससे पहले संभोग किये हुए कितने दिन हो गए, मन बहुत करता है, पर क्या करूँ, जब मेरा पति अनिल मुझे चोदता है तो कितना मजा आता है... और अगर मैं गर्भवती हो गयी तो फिर तो काफी दिन बिना चुदाई के ही रहना होगा । आह, ओह अरे गुरूजी का वह वो मूसल लिंग.. वाह! उसको देखने से छूने से...पकड़ने से...सहलाने से कितना कामुक लग रहा था...ओह गुरूजी के लिंग की महक... ऐसा लिंग देखना बहुत किस्मत की बात है और फिर उससे चुदना। वाह! क्या एहसास था जब वह लिंग मेरे अंदर गया था।...कितना अच्छा लगता था जब उनका लिंग मेरी योनि में समाता था... (ऐसे सोचते ही मेरी योनि में संकुचन हुआ और मैंने अपनी जांघे थोड़ा भींच ली) वाह! लिंगा महाराज! वाह!
मेरे दिमाग और बंद आँखों के सामने गुरूजी का महा लिंग की छवि घूम रही थी । ओह उनके लिंग की-की चमड़ी खोलकर उसके अग्र भाग के छेद को चूमना कितना उत्तेजक था, उत्तेजना में फुले हुए उसके चिकने अग्र भाग को मुंह में लेकर चूसने में कितना आनंद आया था, गुरूजी के पूरे लिंग को धीरे-धीरे सहलाना, चाटना, उसे अपने होंठों से प्यार कर-कर के योनि के लिए तैयार करना ।कितना आनंदमय और उत्तेजक था।
काश मेरे पति का लिंग गुरूजी के लिंग जैसा होता ।काश मेरे जीवन में सदैव के लिए गुरूजी का लिंग होता, काश वह मुझे बाहों में भरकर रात भर प्यार करते, बार-बार करते, हर रात करते । काश मेरी योनि को वह बार छूते...सहलाते...चूमते... उफ़ उनकी वह जादुई उंगलिया । मेरे जीवन में मेरा पति नेल हालाँकि मुझे बहुत प्यार करता था और हम दोनों ने शादी के बाद लगातार कई दिन सिर्फ चुदाई ही की थी । । लेकिन फिर धीर धीरे सबकी तरह हमारा सम्भोग पहले हर रात में हुआ, फिर एक दिन छोड़ कर । फिर सप्ताहंत के दिनों में, फिर कभी-कभी । महीने में दो तीन बार । फिर सिर्फ बच्चे पाने के लिए सेक्स सिमित रह गया... अब अनिल और मेरे संबंधों में भी खटास आने लगी थी. अनिल के साथ सेक्स करने में भी अब कोई मज़ा नही रह गया था, ऐसा लगता था जैसे बच्चा प्राप्त करने के लिए हम ज़बरदस्ती ये काम कर रहे हों. सेक्स का आनंद उठाने की बजाय यही चिंता लगी रहती थी की अबकी बार मुझे गर्भ ठहरेगा या नही.
क्यों और कब मेरा सेक्स जीवन इतना नीरस हो गया है? मेरा क्या दोष है?...क्यों मैं धीरे-धीरे इस सुख से वंचित होती गयी ।
गुरूजी कहते हैं लिंग और योनि का कोई रिश्ता नहीं होता...तो क्या...तो क्या...मैं किसी भी पुरुष से सम्भोग कर लू?...उफ्फ्फ... नहीं मैं एक परिवार की बहु हूँ मैं ऐसा नहीं कर सकती! ओह! गुरूजी का...लिं...ग...ग...ग।गगगग... मेरे पति का लिंग! ओह! इतना बढ़िया और लम्बा सम्भोग गुरूजी के मुसल लंग के साथ मेरा मन कर रहा था अब मैं बार-बार वही सुख प्राप्त करूँ ।
मैं न चाहते हुए भी आज जो कुछ भी मैंने किया उसके बारे में सोचने के लिए विवश हो गयी थी। आज जीवन में पहली बार व्यभिचार के सागर में मैं उत्तर गयी थी । मेरा बदन कांप गया, एक तो सामने यज्ञ कुंड में अग्नि धधक रही थी वातावरण वैसे ही गरम हो चुका था और मेरे अंदर की कामाग्नि अभी भी सुलग रही थी । अब गुरूजी के साथ सम्भोग के बाद वह कैसे थमेगी ये मेरी समझ से बाहर था । क्या ये पाप था?
मेरे दिमाग में कुछ शब्द गूंजने लगे मानो गुरूजी कह रहे हो ।
जय लिंगा महाराज!
गुरूजी-रश्मि बेटी! पाप और पुण्य दोनों का अस्तित्व है पुत्री, पाप है तभी पुण्य है और पुण्य है तभी पाप भी है, जिस तरह रात्रि है तभी सवेरे का अस्तित्व है और फिर पुनः सवेरे के बाद सांझ है फिर रात्रि। पूरी सृष्टि, स्त्री और पुरुष की रचना लिंग देव और योनि माँ ने ही की है, बुद्धि और विवेक भी उसी ने दिया है और वासना और अनैतिक सोच भी एक सीमा के बाद पनपना भी उसी की माया है, माया भी तो लिंगा महाराज! की ही बनाई हुई है। अब हमी को देख लो जन मानस की भलाई के लिए ही सही आखिर इस रास्ते से हमे भी तो गुजरना ही है न, लिंग देव और माँ के आगे इंसान बेबस हो जाता है, कभी फ़र्ज़ के हांथों कभी वचन के हांथों कभी नियम और कर्तव्य के हांथों और कभी वासना के हांथों, आखिर इंद्रियाँ भी कोई चीज़ है बेटी! इंद्रियाँ भी लिंग देव के द्वारा ही बनाई हुई हैं, नियम भी उन्ही के बनाये हुए हैं और उनके उपाए भी उन्होंने ही बनाये हैं । ध्यान से सोचो तो सब लिंगा महाराज! की बनाई हुई माया है बस, रचा सब लिंगा महाराज! ने ही है और इंसान सोचता है कि मैंने किया है।
मैं पसीने-पसीने हो गयी, बार-बार आँख बंद करके फिर से उस अनैतिक संभोग की कल्पना करती जिससे मेरा बदन बार-बार सनसना जाता, बेचैन होकर मैं कभी इधर उधर देखने लगी, एकाध बार तो मैंने चुपके से अपनी दायीं चूची को खुद ही मसल लिया, और जांघों को मैं रह-रह कर सिकोड़ रही थी, कभी मैं गुरूजी के चुंबन के बारे में सोच कर, तो कभी उनके शिष्यों ने मेरे साथ जो मन्त्र दान में मेरे अंगो का मर्दन किया था वह सोच का लजा जाती और मैंने शर्माकर आँख बंद कर ली, रह-रह कर चुदाई की कल्पना से मेरा मन सिहर उठता, (इस हालत में सांसों की धौकनी बन जाना लाज़मी था)
बस गुरूजी के साथ सम्भोग की मैंने कल्पना की, मेरी कल्पना में गुरूजी ने बड़े प्यार से मुझे बिस्तर पर लिटा दिया, लेटते ही मेरी नज़र गुरूजी के काले फंफनाते हुए बड़े कठोर और मूसल लंड पर गयी और उस कमरे में उस आसान पर आँखे बंद कर धीरे-धीरे लेटती गयी और मुझे लगा जैसे-जैसे मैं लेटती गयी गुरूजी प्यार से मुझे चूमते हुए मुझ पर चढ़ गए, "आह गुरूजी और ओह बेटी" की सिसकी के साथ दोनों लिपट गए और गुरूजी का कठोर लंड मेरी चूत को फैलाता हुआ चूत में घुसता चला गया। गुरूजी का लन्ड मेरी प्यासी गीली और तंग चूत में घुस गया। एक प्यासी चूत फिर से मुसल लन्ड से भर गई। आखिर मेरी योनि खुलकर रिसने लगी और मेरे मुँह से एक सिसकारी निकल गयी।
ओओओहहहह... गुरूजी...आआ आहहहह...अम्मममा
जारी रहेगी जय लिंग महाराज!