बेनाम संबंध

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पड़ोसन के साथ बना संबंध और उस के गहराने की कहानी
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कहानी दों ऐसें व्यक्तियों के बीच पनपें संबंध की है जिस की व्याख्या सामाजिक ढ़ाचें के अंदर करना मुश्किल है। लेकिन ऐसें संबंध समाज से पुछ कर तो स्थापित होते नहीं है बस स्थापित हो जाते है। यही कारण है कि इस के बारें में लिखना बड़ा ही खतरनाक है, समाज के स्थापित ढ़ाचें के अंदर ऐसे किसी संबंध की कल्पना भी कठिन है सो लिखते समय हो सकता है कि कुछ ऐसा भी लिखा जाये जो अनैतिक भी लग सकता है लेकिन सत्य को लिखने में यह डर तो हमेशा रहता है।

अधेड़ उम्र की दहलीज पर पहुँचे मुझ जैसे पुरुष को अपने पर ध्यान देने का समय कम ही मिलता है। जिंदगी की आपाधापी में भागना ही नियती है। ऐसे में अगर कहीं से चाहत के संकेत मिले तो यह समझना कठिन होता है कि यह संकेत कितने असली है और कितने बनावटी या किसी काम को निकालने के लिये है। आप चाह कर भी ऐसे संकेतों की अवहेलना नहीं कर पाते।

ऐसा ही कुछ मेरे साथ हुआ, मोहल्ले में पढ़ा लिखा होने तथा तकनीकी रुप से जागरुक होने के कारण लोगों को राय देने और उन के कार्य में सहयोग करना ही पड़ता था। मुझे इस बात से कोई परेशानी भी नहीं होती थी क्योकि यह मेरे पसन्द के विषय थे। मेरे पड़ोस में रहने वाले गुप्ता जी की मेन बाजार में दूकान है, इस कारण से सुबह से लेकर देर शाम तक वह वही पर व्यस्त रहते है। इस लिये उन के कई कार्यों में मुझे मदद करनी पड़ती है या यह कहना उचित होगा कि उन्हें करना ही पड़ता था। आप कोई बहाना भी नहीं बना सकते। अधिकांश समय तो मैं यह सब कुछ आराम से कर देता था लेकिन कुछ समय ऐसे होते थे जब मुझे बड़ी कोफ्त होती थी लेकिन पत्नी कहती थी कि पड़ोसी होने के नाते मेरा फर्ज बनता है कि मैं मदद करुँ। ऐसे समय में मन को मार कर भी काम को करना पड़ता था।

ऐसा ही एक मौका था मैं सुबह नाश्ता करने बैठा ही था कि गुप्ता जी की पत्नी माधुरी घर पर टपक पड़ी, मेरी पत्नी उसे अंदर ले जाकर बात करने लगी। कुछ देर बाद माधुरी तो चली गयी, पत्नी मेरे पास आ कर बैठ गयी और बड़े प्यार से बोली कि गुप्ता जी का बैक में कोई काम फंस गया है, माधुरी गयी थी लेकिन कुछ हुआ नहीं है तो आज आप उस के साथ जा कर काम करवा देना। सुबह-सुबह ऐसे काम के लिये जाना मुझे गवारा नहीं था लेकिन पत्नी की बात टाली भी नहीं जा सकती थी सो पुछा कि क्या काम है? पत्नी ने बताया कि शायद बैक खाते पर रोक लग गयी है, कल कुछ बताया था लेकिन माधुरी को समझ नहीं आया, गुप्ता जी को टाइम नहीं है इस लिये माधुरी कह रही थी कि अगर आप उस के साथ चलेगे तो अच्छा रहेगा।

मैंने घड़ी देखी तो दस बज रहे थे, इस लिये नाश्ता खत्म करके कपड़ें पहन कर घर से गुप्ता जी के घर के लिये निकल गया। गुप्ता जी का घर गली के कोने में एकान्त से में पड़ता है। वहां पहुँच कर घंटी बजाई तो माधुरी निकल कर आयी और नमस्ते कर के दरवाजा खोल दिया। मैं उस के साथ घर के अंदर आ गया। मैंने अंदर आ कर माधुरी से पुछा कि क्या कहा है बैक वालों ने, तो उस ने बताया कि कुछ केवाईसी के लिये कह रहे थे। मैंने उस से कहा कि वह अपना आधार, पेन कार्ड और वोटर कार्ड रख ले। अगर उन की फोटो कॉपी हो तो उन्हें भी रख ले वह बोली कि कॉपी तो नहीं हैं। मैंने उसे सारे पेपर लाने को कहा और तैयार होने के लिये कहा कि बैक पहुँचने तक 11 बज जायेगे इस लिये जल्दी कर ले। वह सारे पेपर ला कर मुझे दे गयी और कपड़ें पहनने चली गयी। कुछ देर बाद जब आयी तो मैंने उसे ध्यान से देखा, वह अच्छी लग रही थी। उसे कभी ध्यान से देखा ही नहीं था।

मुझे याद आया कि हो सकता है फोटो की जरुरत पड़ें तो उस से पुछा कि कोई फोटो है तो वह बोली कि हां एक पड़ी है मैंने कहा कि उसे भी रख ले। क्या पता उस को कहीं लगाना पड़े? मेरी बात मान कर वह फोटो भी ले आयी और मेरे हाथ में दे दी। मैंने देखा कि वह पुरानी फोटो थी। पुछा कि कितनी पुरानी है तो वह बोली कि काफी पुरानी है। मैंने कहा कि आते में फोटो भी खिचंवा लेना, शायद जरुरत पड़ेगी तो वह बोली कि फोटो के लिये तो मेकअॅप करना पड़ेगा, मैंने उसे देखा और कहा कि वह सही लग रही है फोटो सही आयेगा तो वह हँस कर बोली कि ऐसा आप कैसे कह सकते है? मैंने कहा कि मुझे फोटोग्राफी को शौक है, इस लिये कह रहा हूँ कि फोटो अच्छी आयेगी लेकिन अगर उसे लगता है तो हल्का मेकअॅप कर सकती है। वह कमरे में वापस चली गयी।

मैं सोफे पर बैठ कर बैक के कागज देखने लगा। माधुरी जब वापस आयी तो मेकअॅप में और खुबसुरत लग रही थी। मैं कुछ कह नहीं सकता था इस लिये चलने के लिये उठ गया। दरवाजा बंद करके वह मेरे स्कुटर पर बैठ गयी और मैं उसे लेकर बैक के लिये चल पड़ा। रास्ते में एक दूकान पर रुक कर आधार वगैरहा की फोटोकॉफी करवायी और फिर बैक पहुँच गये। बैक में बहुत भीड़ थी। माधुरी को बिठा कर एक अधिकारी से मिलने पहुँचा और उसे सारी बात बताई तो उस ने मुझे संबंधित अधिकारी के पास जाने को कहा। जब उस अधिकारी के पास पहुँचा तो वह मेरी बात सुन कर बोले कि पिछले तीन महीने से इन्हें एसएमएस से, पत्र भेज कर केवाईसी करवाने के लिये कह रहे थे लेकिन यह आये ही नहीं है इसी वजह से खाता ब्लाक कर दिया है।

मैंने पुछा कि आप को कौन से पेपर चाहिये? तो वह बोले कि आधार और पेन कार्ड से काम चल जायेगा और एक फार्म मुझे दे दिया। फार्म पर फोटो भी लगाना था, मैंने पुरानी फोटो दिखायी तो वह बोले कि इस से काम नहीं चलेगा आप को नई फोटो लगानी पड़ेगी, हम फोटो से खाता धारक की शिनाख्त करेगें। उस की बात सुन कर मुझे लगा कि अब फोटो खिचंवानी ही पड़ेगी। माधुरी को यह बताया और हम दोनों बैक से बाजार के लिये पैदल ही चल दिये, क्योंकि फोटोग्राफर की दूकान देखनी थी लेकिन दूकान बैक के पास ही मिल गयी। उसे अपनी परेशानी बतायी तो वह बोला कि आप आधे घंटे बैठों मैं फोटो बना कर देता हूँ। यह कह कर वह माधुरी को लेकर अंदर स्टुडियों में चलने लगा तो माधुरी ने मेरा हाथ पकड़ कर मुझे भी साथ चलने को कहा, मैं उस का इशारा समझ कर उस के साथ चल दिया अंदर शीशे में माधुरी ने अपने बाल सही किये और कुर्सी पर बैठ गयी, फोटो खीचंने के बाद दूकानदार बोला कि अगर आप को कोई काम हो जो बाजार घुम ले, आधे घंटे बाद आ कर फोटो ले जाये।

हम दोनों दूकान से बाहर आ गये। मैंने माधुरी से पुछा कि आप को बाजार से कोई काम हो तो कर लो, तो उस ने कहा कि चलिये ऐसे ही घुमते है। शायद कुछ मिल जाये। मैं उस के साथ घुमने चल दिया वह मेरे पीछे-पीछे चल रही थी। एक चाट वाले की दूकान पर रुक कर उस ने मुझ से पुछा कि आप क्या खायेगे? मैंने कहा कि कुछ नहीं अभी नाश्ता करके आया हूँ तो वह बोली कि तो मैं भी नहीं खाती। उस की बात सुन कर मुझे कहना पड़ा कि जो वह खायेगी वह मैं भी खा लुंगा। मेरी बात सुन कर उस ने गोल-गप्पे लगाने के लिये दूकानदार को कह दिया। गोल-गप्पें स्वादिस्ट थे। खा कर मजा आ गया। जब वापस फोटोग्राफर की दूकान की तरफ जा रहे थे तो मैंने माधुरी को धन्यवाद कहा तो उस ने कहा कि मेरे साथ रहेगे तो ऐसे ही मौज करेगे। फिर वह हँस पड़ी और बोली कि मेरी बात का बुरा मत मानियेगा, इन के साथ को कही आ जा नहीं पाती, आज निकली तो मन पर काबु नहीं रहा और आप के पीछे पड़ गयी।

मैंने कहा कि तुम्हारी वजह से मुझे भी इतने स्वादिष्ट गोल-गप्पों का स्वाद गया है, नहीं तो मैं कहाँ इन्हें खा पाता हूँ। उस ने हैरानी से मुझे देखा और पुछा कि क्या दीदी को पसन्द नहीं है तो मैं बोला कि पसन्द तो है लेकिन वह मेरे साथ जाती कहाँ है। हमारी बातों के दौरान ही फोटोग्राफर की दूकान आ गयी, उस ने फोटो बना दी थी, जब उन्हें लिफाफे में से निकाल कर देखा तो पता चला कि माधुरी की फोटो भी अच्छी आती है। बैक के रास्ते में मैंने माधुरी से कहा कि तुम्हारी फोटो भी अच्छी आयी है यह सुन कर वह बोली कि कोई देखने वाला कहाँ है? उस की यह बात मुझे समझ में नहीं आयी।

बैक में फार्म भर कर फोटो लगा कर सारे पेपर उस के साथ अटैच्ड करके अधिकारी को दिये तो वह बोला कि आधार और पेन कार्ड की ऑरिजनल चाहिये, हम तो पहले से ही उन्हें लाये हुये थे सो निकाल कर उस के सामने रख दी। उस ने जांच करके हमें मुल वापिस कर दी और फोटो से माधुरी का मिलान करने के बाद बोला कि आप का चेहरा काफी बदल गया है अच्छा हुआ आप ने नयी फोटो लगा दी नहीं तो मुश्किल होती। मैंने अधिकारी से पुछा कि खाता कब तक अनब्लाक होगा तो वह बोला कि इस में 24 से 48 घंटे लग सकते है, आप इंटरनेट बैकिंग में जा कर चैक कर सकते है। यह सुन कर मैंने माधुरी की तरफ देखा तो उस ने ना मे सर हिला दिया। इस का मतलब था कि खाते का ऑनलाइन बैंकिग ऑन नहीं थी। मैंने अधिकारी से पुछा तो वह बोला कि आप खुद कर सकते है। उस की बात सुन कर हम दोनों अधिकारी को धन्यवाद दे कर बैक से बाहर निकल गये।

रास्ते में स्कुटर पर हम दोनों में कोई बात नहीं हुई। माधुरी को घर छोड़ कर जब में चलने लगा तो वह बोली कि शाम को आप फ्री है? मैंने पुछा क्या काम है तो वह बोली कि शाम को ही बताऊंगी। मैंने भी उसी टोन में कहा कि फिर शाम को ही पुछना। यह कह कर मैं अपने घर चला आया। दोपहर का एक बज रहा था। पत्नी बोली कि माधुरी का काम हुआ या नहीं? मैंने उसे सारी बात बतायी तो वह बोली कि अच्छा हुआ तुम चले गये नहीं तो उस का काम नहीं होना था। बार बार बैंक के धक्कें खाने पड़ते। मैंने हां में सर हिलाया और कहा कि नये आदमी तो तो एक बार में कोई बात पुरी तरह से नहीं बताते। बेकार में परेशान करते है। हमारी बातचीत यही खत्म हो गयी।

शाम को चाय पी रहा था तो माधुरी आयी। पत्नी बोली कि इन्हीं से सीधे बात कर और बता दे कि क्या काम है? मैंने पत्नी की बात सुन कर माधुरी से पुछा कि अब क्या काम है तो वह बोली कि बैक का इंटरनेट अकाऊंट ऑन करवाना है, इन के बस का तो है नहीं और किसी से कह नहीं सकती। मैंने उस से कहा कि अभी 24 घंटे नहीं हुये है इस लिये आज नहीं कर सकते, कल शाम को कर के देखेगे। फिर मुझे कुछ याद आया तो मैंने उस से पुछा कि बैंक का एटीएम है? वह बोली की एटीएम कार्ड तो है, उसी से जब पैसे नहीं निकले तभी तो पता चला कि अकाऊंट ब्लाक है। नहीं तो कैसे पता चलता? इस पर मैंने हँस कर कहा कि कभी कभी फोन में आने वाले मैसेजों को भी पढ़ लिया करों तो ऐसी हालत नहीं आयेगी। वह मेरी बात सुन कर मुस्करा दी, लेकिन कुछ बोली नहीं और चलने लगी तो पत्नी बोली कि चाय पी कर जाना और यह कह कर वह चाय बनाने चली गयी।

माधुरी ने मुझ से पुछा कि आप कह रहे थे कि मेरी फोटो अच्छी आयी है, ऐसा वाकई में ऐसा है या आप मेरा मन रखने के लिये कह रहे थे। उस की बात सुन कर मैंने कहा कि फोटो वाकये में बहुत अच्छी आयी है चाहे तो वह उसे बड़ी बनवा कर घर में लगा सकती है। उसे मेरी बात पर विश्वास नहीं हुआ तो मैंने उस से कहा कि कल जब शाम को आये तो फोटो ले कर आना मैं उसे बड़ी कर के दिखाऊँगा तो उसे विश्वास आयेगा। उस के चेहरे पर मेरी बात से चमक आ गयी। तभी पत्नी चाय ले कर आ गयी और दोनों बातों में मशगुल हो गयी।

दूसरें दिन शाम को में चाय पी रहा था कि माधुरी का आगमन हुआ। पत्नी से बात करने के बाद पत्नी मेरे पास आयी और बोली कि इस के बैंक खातें का कोई काम है वह करवाने आयी है, मैं तो मंदिर जा रही हूँ। उस ने माधुरी से कहा कि वह मंदिर जा रही है तुम इन से जो काम करवाना है करवा लेना। यह कह कर वह माधुरी से दरवाजा बंद करने की कह कर मंदिर चली गयी। मैं और माधुरी अब अकेले थे। मैंने माधुरी से पुछा कि क्या काम है तो वह बोली कि आप भुल गये है आज बैंक खाते को चैक करना है कि अनब्लाक हुआ है या नहीं? तब मुझे याद आया कि बैंक की नेट बैकिंग ऑन करना है।

मैंने माधुरी से बैक की पास बुक मांगी और कंप्यूटर चला कर नेट पर बैंक की वेब साईट खोल कर बैठ गया। मैंने माधुरी से पुछा कि बैंक में जो फोन नंबर दे रखा है वह किस के पास है तो वह बोली कि मेरे पास है। उस की बात सुन कर मैं उस के खाते की नेट बैंकिग ऑन करने की कोशिश करने लगा। माधुरी सारे कागजात ले कर आयी थी सो कोई परेशानी नहीं हूई और बैंक की नेट बैंकिग ऑन हो गयी। अकाउन्ट अनब्लाक हो गया था। मैंने पासवर्ड वगैरहा बना कर उसे नोट कर लिया और माधुरी को समझाने के लिये बुलाया तो वह मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गयी। कुछ देर बाद उस के भारी उरोजों का वजन मेरे कंधों पर होने लगा, पहले तो मुझे अजीब लगा फिर मैं भी उस का मजा लेने लगा। वह अब मेरे से और सट कर खड़ी थी उस के बदन की महक मेरे नथुनों में आ रही थी।

बैंक के खाते के बारे में काम खत्म करने के बाद मैं उठने लगा तो माधुरी से अपनी फोटो मेरे सामने रख दी। उसे देख कर मुझे याद आया कि मैंने ही उसे लाने को कहा था। मैंने स्कैनर ऑन किया और उस की फोटो उस में रख कर स्केन कर के कंप्यूटर में सेव कर ली फिर उसे बड़ा किया तो अपनी फोटो देख कर माधुरी बोली कि अब सही दिख रही है। मैंने पुछा कि मैंने कुछ गलत तो नहीं कहा था तो वह बोली कि नहीं उस समय तो मुझे समझ नहीं आया लेकिन अब लग रहा है कि आप सही कह रहे थे। आप ही इस को बड़ा करवा कर मुझे दिलवा देना मैं घर में दिवार पर लगा लुगी। उस के शरीर का बोझ अभी भी मेरे शरीर पर था। शायद वह यह जान पुछ कर कर रही थी लेकिन मैं कुछ कर नहीं सकता था। कुछ जवाब भी नहीं दे सकता था सो चुपचाप बैठा था। फिर वह अचानक मेरे पीछे से हट गयी। मैंने फोटो निकाल कर उसे दे दी और उस के बैंक के कागजात भी उसे वापस कर दिये, और कहा की यह पासवर्ड संभाल कर रखना। वह बोली कि आपके पास ही आऊंगी जब कुछ कराना होगा तो। इन को तो कुछ आता नहीं है और कोई कुछ जानता नहीं है। मैं चुप रहा।

मैं कुर्सी से उठ कर अलग हो गया तो वह भी हट कर खड़ी हो गयी। कुछ देर हम दोनों कुछ नहीं बोले, फिर उस ने ही शुरुआत करी, बोली कि आप मुझ से दूर-दूर क्यों रहते है? मेरे से बदबु आती है। मैंने हँस कर कहा कि ऐसा तो नहीं है लेकिन कुछ दूरी रखना तो जरुरी होता है। वह बोली कि जब अकेले हो तो यह जरुरी नहीं है। मैं चुप रहा, वह बोली कि आज आप ने बैंक का काम करवा कर मेरी बड़ी हैल्प की है उस के लिये धन्यवाद नहीं कहुंगी। आप पर मेरा अधिकार है छोटी होने के नाते इस लिये आप को ऐसे ही परेशान करती रहुगी। मैं इस पर हँस दिया तो वह बोली कि चलों पता चला कि आप हँसते भी है नहीं तो आप को देख कर लगता था कि ऐसा बोर आदमी कैसे जीता होगा? उस की इस बात पर मेरी जोरदार हँसी निकल गयी। वह भी हँस कर बोली कि अब लग रहा है कि आप नॉरमल है। मैं बोला कि माधुरी ज्यादा शरारत मत करों। मैं ऐसा ही हुं। वह जाते जाते बोली कि मेरी फोटो बड़ी करवा कर दे दिजीयेगा। आप को यह काम सौप रही हूँ। हो जाना चाहिये। यह कह कर वह चली गयी। मैं उस के व्यवहार से आचम्भित था।

मैं उस की फोटो बड़ी करवाने वाली बात भुल गया। मेरे दिमाग से ही उतर गयी। कुछ दिन बाद एक शाम फिर माधुरी के दर्शन हुये, उस ने पत्नी से कहा कि अकाउन्ट चैक करवाना था कि उस में पैसा जमा करवाया था वह आया है या नहीं? पत्नी बोली कि यह तो यही कर सकते है मेरे को इस में मत डाल यह कह कर वह चाय बनाने चली गयी। माधुरी ने मुझ से पुछा कि आप को एक काम सौपा था वह हुया या नहीं। मैं उस की बात सुन कर चौंका तो मेरी प्रतिक्रिया देख कर वह समझ गयी कि उस का काम नहीं हुआ है, वह रुआंसी सी हो कर बोली कि मुझे तो लगा था कि आप अपनी बात पर टिके रहने वाले है लेकिन आप भी सभी की तरह सिर्फ बातें बनाते है। उस की यह बात सुन कर मुझे बहुत गुस्सा, लेकिन गुस्से को काबू में करके पुछा कि क्या काम कहा था? वह बोली कि आप मेरी फोटो बड़ी करवा कर देने वाले थे। उस की बात सुन कर पुछे याद आया कि मैंने वायदा किया था। मैं आपाधापी में इस बारे में बिल्कुल ही भुल गया था।

मैंने उसे सॉरी कहा और कहा कि दो दिनों बाद उसे उसकी फोटो मिल जायेगी तो वह बोली कि जब मिलेगी तब देखेगे। यह कर कर वह चलने लगी तो मैंने पुछा कि वह किसी काम से आयी थी तो उसे याद आया कि नेट बैकिंग से अकाउन्ट में जमा करवायें पैसे के बारे में जानना था। मैंने उसे ताना सा मारते हुये कहा कि गुस्से की वजह से उसे काम की बात याद ही नहीं है, इस लिये उसे गुस्सा कम करना चाहिये। मेरी बात सुन कर वह मुस्करा दी और मेरे पास बैठ गयी और बोली कि आप से लड़ाई कर सकती हूँ रिश्ते में आप की साली लगती हूँ। मेरे लिये यह नयी बात थी, तभी पत्नी जी चाय ले कर आ गयी और हँसती हूई बोली कि माधुरी सही कह रही है, दूर के रिश्ते की बहन लगती है यह मेरी। मैंने हँस कर कहा कि अब तो इस का हर काम पहले कर के देना पडे़गा साली जो है। फिर हम तीनों हँस पड़ें। मैंने जब बैंक में लॉगिन किया तो देखा कि कल मोटी रकम जमा की गयी थी। मैंने माधुरी को बताया कि बैंक में जमा पैसा दिखा रहा है सो चिन्ता की कोई बात नहीं है। इस पर वह बोली कि यह मेरा अकाउन्ट है, ये जो कुछ मुझे देते है मैं इस में जमा कर देती हूँ। पत्नी और वह दोनों बात करती रही और मैं अपने काम में लग गया।

रात को मैंने पत्नी से पुछा कि इन के पास तो बड़ा पैसा है मोटी रकम जमा करी है बैंक में तो पत्नी बोली कि गुप्ता जी अच्छा कमा रहे है लेकिन घर पर ध्यान देने का समय नहीं है। वो तो माधुरी तेज-तर्रार है वही सब काम करती है। उन्हें तो पैसा कमाने से ही फुर्सत नहीं है। हम दोनों की बात यही पर खत्म हो गयी।

मैंने दूसरे दिन ही जा कर माधुरी की बड़ी फोटो बनवा ली और उसे फ्रेम में लगवा कर पैक करा कर ले आया। माधुरी काफी दिन तक मेरे सामने नहीं पड़ी तो मैं उस के बारें में भुल सा गया। एक दिन शाम को घंटी बजी तो देखा कि माधुरी खड़ी थी, उसे अंदर आने को कहा तो वह अंदर आ गयी मैंने उसे बताया कि पत्नी तो नहीं है कहीं गयी है। वह बोली कि आप से ही काम है, मैंने पुछा कि क्या काम है तो वह बोली कि आप ऐसे ही है या होने का नाटक करते है? मुझे उस की बात समझ नहीं आयी तो वह बोली कि आप किसी बात पर टिकते क्यों नहीं है। मैंने उस से पुछा कि उस की नाराजगी की वजह क्या है? तो वह बोली कि जैसे आप को पता हीं नहीं है?

मैंने ना में सर हिलाया तो वह बोली कि मुझें आप के बारें में गलतफहमी हो गयी थी, इस लिये आप से कहा, इस के लिये माफी मांगती हूँ। उस की बात सुन कर मुझें गुस्सा तो बहुत आया लेकिन मैंने उसे कंधें से पकड़ कर बैठने को कहा, लेकिन वह खड़ी रही, मैंने कहा कि अगर लड़ाई ही करनी है तो बैठ कर करते है। मेरी इस बात पर वह हँस पड़ी और बोली कि दीदी नें आप को बताया नहीं है कि आप बातों के खिलाड़ी है, मैंने उस से कहा कि चलों अब गुस्सा थूक दो और बताओ कि कौन सी बात है जो मैं भुल गया हूँ, बातें तो भूल जाता हूँ यह मेरी खराबी है।

इस दौरान मुझें याद आ गया कि वह किस की बात कर रही है उसे बिठा कर मैं कमरें में चला गया, वहां से उस की फोटो का पैकिट निकाल ला कर उस के हाथों में रख दिया। वह चौक गयी। मैंने कहा कि काम हो गया था लेकिन मैं तुम्हें देना भुल गया यह मेरी गलती है, इस के लिये जो सजा देना चाहती हो दे सकती हो। मेरी बात सुन कर वह पैकिट खोलने में लग गयी, अंदर से निकली फोटो देख कर वह खुश हो गयी और बोली कि मैंने बेकार में ही आप को उल्टा-सीधा सुना दिया। मैं बोला कि तुम्हारा गुस्सा जायज है मैंने ही दो दिन का वायदा किया था। फोटो बनवा दी लेकिन दी नहीं तो उस का बनना ना बनना एक समान है। वह कुछ देर तक अपनी फोटो को निहारती रही फिर बोली कि आप को कैसे धन्यवाद दूं, उस की इस बात पर मैंने मजाक में कहा कि साली होकर धन्यवाद की बात क्यों करती हो। वह बोली कि अब तो धन्यवाद देना जरुर बनता है। वह उठी और दोनों हाथों से मेरा चेहरा पकड़ कर उसे हिला कर फोटो ले कर चली गयी। मैं उस के व्यवहार को समझ नहीं सका लेकिन मन में संतोष था कि उसे उस की फोटो मिल गयी है। किसी तरह के प्रतिफल की चाह नहीं थी।

होली में छेड़ा-छाड़ी

कुछ दिनों बाद होली थी। इस दिन सब एक-दूसरे के यहाँ रंग लगाने के लिये जाते थे सो हम भी सब पड़ोसियों के यहाँ होली की शुभकामनाएं देने गये। इस दौरान एक-दूसरें को रंग भी लगाया। दूसरें भी हमारें यहाँ आये। गुप्ता जी और माधुरी भी हमारे यहाँ आये तो मैंने गुप्ता जी को गुलाल लगा कर शुभकामनायें दी। माधुरी को भी गुलाल लगाया तो वह बोली कि आप के साथ सुखी होली नहीं खेलनी है तो पत्नी बोली कि पानी तो छत पर ही मिलेगा वही चले जायो। हम सब छत पर चले गये। गुप्ता जी छत पर नहीं आये थे वह नीचे खाने के सामान पर हाथ साफ कर रहे थे मैंने माधुरी पर खुब पानी डाला और उस के चेहरे पर रंग लगाया इस मस्ती में हाथ उस के उरोजों से कई बार टकराया और उन के शरीर के खुले स्थलों पर भी रंग लगा दिया।

माधुरी नें भी मेरे साथ खुब मस्ती करी और मेरे को पुरी तरह से रंग से सराबोर कर दिया। उस के हाथ भी मेरे चेहरे, छाती और पीठ पर रंग लगाते रहे। होली में कोई कुछ नहीं कहता है। माधुरी के पतिदेव काफी देर बाद छत पर आये तो मैंने उन्हें भी रंग से रंग दिया वह बोले कि हम तो नीचे पेट पुजा कर रहे थे ताकि होली के लिये ताकत मिले, इस के बाद पत्नी का नंबर लगा और उन को पहचानना मुश्किल हो गया। जब सूरज सर पर चढ़ आया और गर्मी बढ़ गयी तो सब लोग होली खत्म करके अपने अपने घरों को चले गये। हम दोनों पति पत्नी भी नहाने के बाद आराम करने लगे। होली के रंगों से बहुत थकान हो जाती है। जो नहाने के बाद बढ़ जाती है। खाना खा कर लेटे ही थे की माधुरी आयी और पत्नी से बोली कि शाम को आप हमारे यहाँ आ रहे है। सब लोगों को बुलाया है। पार्टी कर रहे है। यह कह कर वह चली गयी।

शाम को सारी गली गुप्ता जी के यहाँ इकठ्ठी थी, गुझिया, नमकीन, सेवइया और मिठाइयों पर सब हाथ साफ कर रहें थे। कुछ देर बाद सारें पुरुष उठ कर छत पर आ गये और वहां दूसरी पार्टी शुरु हो गयी। महिलायें नीचे मस्त थी और पुरुष ऊपर। गुप्ता जी जब तीन पैग लगा लिये तो मेरे पास आ कर बोले की आप तो बड़ें है कुछ पुछे आप से तो बुरा नहीं मानेगे? मुझे लगा कि शराब के नशे में क्या बक रहे है। वह कान के पास मुँह ला कर बोले कि रात को ड्रिक करने से बिस्तर पर कुछ फायदा होता है? मैंने कहा कि बिना शराब किजियेगा, ज्यादा फायदा होगा। मेरी बात सुन कर वह चुप हो कर बैठ गये। मैंने भी उन से और कुछ नहीं पुछा। पार्टी खत्म होने के बाद सब लहराते हूये घरों को चल दिये।

माधुरी जब आयी तो गुप्ता जी बिल्कुल टुन्न थे। मैं भी नशे में था लेकिन होश नहीं खोये थे। मुझे देख कर बोली कि आप इन्हें कुछ समझाते क्यों नहीं है। मैंने उसे बताया कि आज कुछ समझाया है अगर इन्हें याद रहा तो फायदा होगा। उसे मेरी बात समझ नहीं आयी और मुँह बना कर गुप्ता जी को खड़ा करके नीचे चलने लगी लेकिन उस से वह सभलें नहीं। मैं नें उठ कर दूसरी तरफ से उन्हें संभाला और हम दोनों उन्हें नीचे ले कर आये। फिर में माधुरी को नमस्ते कर के घर चला आया। इस तरह से होली की पार्टी खत्म हुई।

पत्नी का बाहर जाना

कुछ दिनों बाद पत्नी किसी शादी में चली गयी, उन की यह यात्रा कम से कम हफ्तें भर की तो होनी ही थी। सो मैं घर पर अकेला रह गया। जिस व्यक्ति को चाय के अलावा कुछ ना बनाना आता हो उस की परेशानी समझी जा सकती है लेकिन किया कुछ नही जा सकता था। लेकिन पत्नी जी जाने से पहले माधुरी को बता कर गयी थी कि इनका ध्यान रखना। ऐसा ही हुआ, सुबह गुप्ता जी दूकान जाते में लंच बॉक्स दे कर चले गये। शाम को माधुरी रात का खाना ले कर आयी तो मैंने खाना लाने के लिये मना किया तो वह बोली कि आप हमारी इतनी मदद करते है तो मैं आप को हफ्तें भर खाना भी नहीं खिला सकती? मैंने कहा कि मैं नहीं चाहता कि मेरी वजह से कोई परेशान हो तो वह बोली कि इस में कोई परेशानी की बात नहीं है, आप नें इन को होली के रोज जो समझाया था उसें इन्होनें मान लिया है। उस की बात पहले तो मेरी समझ में नहीं आयी लेकिन जब दिमाग पर जोर दिया तो याद आया कि बिस्तर पर पैग मारने के लिये मना किया था। लगता है शराब ना पीने से साहब का बिस्तर पर प्रदर्शन सुधर गया है। इस बात को माधुरी मुझें क्यों बता रही है यह मेरे लिये रहस्य था। इस लिये मैं चुप रहा। थोड़ी देर बाद माधुरी फिर बोली कि यह आप का बहुत आदर करते है इसी तरह आप इन्हें राय देते रहिये ताकि यह रास्ते पर रहे भटके नहीं।

मैंने माधुरी की तरफ देखा तो उस की आँखों में शरारत की झलक थी। मैं अपनी राय उस के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता था लेकिन वह मुझे मजबुर कर रही थी। मैंने कहा कि गुप्ता को किसी की राय की जरुरत नहीं है वह इतनी बड़ी दूकान चलाता है, बुद्धिमान है। माधुरी बोली कि कई ऐसें मामलें है जिन में वह कमजोर है। मैंने कहा कि उसे उस क्षेत्र में ताकतवर बनाओ। वह बोली कि मैं तो खुब कोशिश करती हूँ लेकिन कुछ कर नहीं पाती। आप की सहायता अगर मिले तो शायद कुछ कर सकती हूँ। मैंने कहा कि मेरी सहायता तो तुम्हें हर समय मिलती है, बोलों क्या चाहिये? तो जवाब मिला कि जब जरुरत होगी तब मांग लुगी। हम दोनों के मध्य होने वाली इस रहस्यमय बातचीत का कोई अर्थ मुझे समझ में नहीं आता था। ज्यादा गहरे में मैं उतरना नहीं चाहता था अपनी इज्जत की चिन्ता मुझें हर समय रहती थी एक यहीं चीज तो थी जो मैंने जीवन में कमाई थी।