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युवराज बलदेव सीधा वैध जी के पास जाता है जहाँ पर वैध जी अपने कक्ष में बैठ कर योग कर रहे थे।
बलदेवः प्रणाम गुरु देव!
वैध: आओ बालक, तुम भी बैठो और आसन करो।
बलदेव वैध के सामने बैठ कर अपनी टाँगे मोड़ के आसान करने लगता है । दोनों कुछ देर योग करने के बाद डोनो उठ कर कुर्सी पर बैठते हैं और वैध जी बलदेव को कुछ आसन और जड़ी बूटी की ज्ञान देने के बाद वैध जी उसे कुछ बूटीया खाने को देते हैं।
वैध: लो बालक इस से तुमहारी उर्जा में बहुत वृद्धि होगी।
कमला देवरानी के कक्ष में पहुँचती है तो देखती है कि वह अपने कक्ष में बने छोटे से मंदिर के सामने हाथ जोड़ कर पूजा कर रही है।
कमला भी चुप चाप उसके पीछे खड़े हो कर उसके भजन सुनने लगती है, इतने मधुर आवाज में देवरानी गा रही थी की पूजा खतम होते ही प्रसाद ले कर देवरानी कमला को देती है और फिर खुद खाती है।
कमला: कृष्ण कन्हैया। आपकी बरसों की तपस्या से खुश हो गए हैं महारानी।
देवरानी: तुमहे कैसे पता।
कमला: क्योंकि में एक ऐसी खबर ले कर आई हूँ जिसे सुन कर आप खुशी से पागल हो जाएंगी।
देवरानी: बोलो फिर।
कमला: (कमला झूटी कहानी बनाने लगी।) बात ये है कि आज में झील के पास जा रही थी तभी वहा पर एक घोडे से एक लंबा ऊंचा कद का कोई राजा आया और मुझे देख कर बोला, सुनो तुम रानी देवरानी की दासी हो ना। मेने कहा।
कमला: जी हाँ आप कौन हो।
उसने अपना नाम शेर सिंह बताया।
शेर सिंह: मेरा नाम शेर सिंह है। कमला मझे तुमसे जरूरी काम है।
कमला: बोलो क्या काम है।
शेर सिंह: मुझे तुम्हारी रानी देवरानी पसंद आ गई है और मैं उन्हें कल अपना पत्र देना चाहता हूँ तुम उन्हें बता देना और कल इसी समय यहाँ आजाना।
कमला: पर तुम हो कौन और महारानी को कैसे देखा।
शेरसिंह: मैं पड़ोस का राजा हूँ और देवरानी को मैंने कुश्ती मैदान में देखा था जहाँ में भी उपस्थित था।
इतना कह कर वह अपना घोड़ा दौड़ाते हुए वापस चला गया।
देवरानी: वैसे दिखने में कैसा था? क्या कोई पागल लग रहा था?
कमला: बहुत ही बलवान, मैं तो कहूंगी महारानी आप ये मौका न छोड़ो।
देवरानी: पर कुछ उल्टा हो गया तो!
कमला: भगवान ने उसे तुम्हारे पास तुम्हारी खुशियाँ ले कर भेजा है।
देवरानी: हम्म! ठीक है देखती हूँ ये शेर सिंह क्या चीज है और कल तुम जा कर उसका पत्र ले आओ और अंदर ही अंदर उसे शर्म भी आ रही थी कि आज वह किस मोड़ पर है, फिर कमला चली जाती है।
देवरानी तुरंत अपना दरवाजा बंद कर के अपने बिस्तर के नीचे से कामसूत्र के पुस्तक निकल कर चित्र देखने लगती है और पढ़ने लगती है। "हाए! ये कैसा मिलन है ये स्त्री लिंग पर बैठी है और पुरुष सीधा लेटा हुआ है" फिर पन्ने को पलटी है तो देखती है "ये स्त्री तो अपनी योनी को पुरुष के मुह में दे कर बैठी है", और"इसमें तो इस्त्री लिंग को अपना मुह में भरा है" ये लोग ऐसे कैसे कर रहे हैं। विचित्र है। आज तक मैंने ऐसा तो सुना भी नहीं है "इसमें तो कुत्ते की तरह चोद रहा है" और वह एक हाथ ले जा कर अपनी बुर पर रगड़ती है।
इधर सृष्टि महारानी महाराज राजपाल को अपने आलिंगन में ले कर उनसे चिपकी हुई थी।
सृष्टि: महाराज आप क्या सोच रहे हैं।
राजपाल: यही के राजा रतन का फिर पत्र आया है और उन्हें अंदेशा है कि उनके राज्य पर फिर आक्रमण हो सकता है इसलिए हमें तैयार रहने को कहा है, हमें कभी भी उनके पास जाना होगा।
शिष्टि: जब जाना होगा तब आप चले जाना । आज क्यों इस बारे में इतना सोचना।
और रानी सृष्टि अपनी टाँगे महाराज की टांगो पर बंद कर लेती है और अपना बड़े-बड़े वक्ष को महाराज के कंधे से रागदने लगती है। महाराज एक हाथ से उसके वक्ष को दबाते हुए दुसरे से उसका उभरा हुआ पेट सेहला रहे थे, तब रानी सृष्टि राजा राजपाल के ऊपर बैठ जाती है और अपना ब्लाउज़ और साड़ी खोल कर अपने वक्ष राजपाल के मुँह पर रगड़ती है। फिर उसकी धोती को खोल उसका 2 इंच का लिंग जो सोया था उसे हाथ से थपथपाकर जगाने की कोशिश करती है, बहुत मुश्किल के बाद लिंग हल्का-सा खड़ा होता है और अब वह सिर्फ 4 इंच का हो गया था। अब सृष्टि एक हाथ से लंड पकड कर धीरे से अपनी योनि में सटा कर बैठ जाती है और राजा का लंड योनि में घुस जाता है, वह अभी दो बार ही ऊपर निचे अभी हुई की राजा राजपाल के हाथ पैर ठन्डे पड़ जाते है और वह अपनी आँखे मूँद लेता है।
सृष्टि: अब आप महाराज ऊपर आ जाईये।
राजपाल: जी और सृष्टि को नीचे लिटा कर खुद उसके ऊपर आजाता है और लंड योनि में डाल कर दो धक्के लगाता है और झड़ जाता है। सृष्टि जो अभी 49 वर्ष की भी नहीं हुई थी राजपाल से ठंडी और संतुष्ट नहीं हो पाती थी और उसकी आंखों के आसूं उसकी आंखों में ही सूख गए थे और इस 60 वर्षीय बूढ़े से और उम्मीद भी क्या की जा सकती थी इसलिए वह अपना मन मार कर लेट जाती है।
इधर वैध जी अपने कक्ष में अपने पूरे बदन की मालिश कर रहे थे और तेल मल रहे थे। अब वह तेल अपने लिंगपर मल रहे थे पर उनको ध्यान नहीं रहा कि उनके कक्ष की खिड़की खुली हुई है जहाँ से कोई भी उन्हें देख सकता था और हो भी ऐसा ही रहा था। कमला जो महारानी जीविका की औषधि खत्म होने पर और औषधि लेने आई थी। उसकी दोनों आँखे वही जम गई थी, जब उसने वैध जी को आपने लिंग का मर्दन करते हुए देखा।
वैध जी निरंतर अपने लिंग को जड़ी बूटीयो के तेल से मलिश किये जा रहे थे और अब उनका लिंग खड़ा हो कर लगभाग 7 इंच का हो गया था जिसे देख कमला के मुह से "हाय राम! इतने बूढ़े में ऐसी शक्ति" और फिर उसने अपने मुह पर हाथ रख लिया ।
कमला की आयु अभी 50 वर्ष की थी पर काम काज करते रहने से उसका बदन गठीला था और उसकी लम्बाई सिर्फ 5. 4 की थी। लम्बाई के हिसाब से उसे वक्ष इतने बड़े थे के नाभी तक लटक जाते थे। उसके पति को मरे पूरे तीन साल हो गए थे।
कमला कुछ सोच कर वापस जाने लगती है फिर उसके दिल में कुछ आता है और वह मुस्कान के साथ वैध जी के कक्ष के दरवाजे पर जा कर दरवाजा खटखटा देती है जो की बंद था।
वैध जी तुरंत अपना धोती पहने हैं और दरवाजा खोलते हैं।
वैध: कहो क्या काम है।
कमला: अंदर से मुस्कुराए हुए "वो महारानी जीविका की औषधि खत्म हो गई थी।"
वैध: अच्छा अंदर आओ।
कमला अंदर आती है पर उसकी नज़र सिर्फ धोती पहनने वैध पर थी। उनका बदन तेल से चमकते हुए देखने से कमला की नज़र नहीं हट रही थी, जिसे वैध भांप लेता है।
वैध: ये पलंग के निचे बरतन में जो औषधि हैं उसे ले जाओ।
कमला वैध के सामने झुकती है और अपनी बड़ी गांड को निकाल कर वैध के लिंग से रगड़ती हुई निचे बैठती है और औषधि उठा कर फिर उठाते समय पुनः अपनी गांड उनके लिंग से रगड़ती है इस बार खड़े कंद को जोर से रगड़ने के कारण कमला कर मुह से "आह" निकल जाती है।
कमला औषधि ले कर जाने लगती है और दरवाजा पर जा कर मुड़ती है और मुस्कुरा कर बोलती है "बाबाजी ये खिड़की बंद कर लिया करो ठंडी हवा चल रही है।"
बदले में वैध भी एक मुस्कान देता है और कमला खिलखिलाकर जल्दबाजी में चलो जाती है।
वैध जी को समझते हुए देर नहीं लगती के इसने मेरा लौड़ा देख लीया है क्योंकि ये खिड़की खुली हुई थी। इसी लिए ये खिड़की बंद करने के लिए कह कर गई है और वह अंदर ही अंदर कमला की गांड से लिंग रगड़ कर खुश था।
अगला दिन सामान्य गुज़रता है और शाम को कमला युवराज से अकेले में मिल कर एक पत्र जो शेर सिंह बन कर लिखा था वह ले लेती है।
कमला: देखते हैं के वह शेर सिंह को चयन कृति है या अपने बेटे बलदेव सिंह का।
बलदेव: अगर शेर सिंह से मिलाप करने के लिए राजी हो जाति है उनको हमेशा के लिए भूल जाऊंगा, भूल जाऊंगा के मैंने प्रेम क्या था कभी।
कमला पत्र ले कर देवरानी के कक्ष की ओर चल देती है।
कहानी जारी रहेगी