पुर्व प्रेमिका से मुलाकात

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मॉल में पुर्व प्रेमिका से मुलाकात और शादी होना
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पूर्व प्रेमिका से मुलाकात

आज मॉल में खरीदारी कर रहा था तो अचानक से ऐसा लगा कि जैसे किसी ने मेरा नाम ले कर पुकारा है, पहले तो लगा कि यहाँ कौन है मुझें पहचानने वाला और मैं मुड़ कर आगे बढ़ गया। लेकिन फिर मेरे कानों में मेरा नाम पड़ा तो ठहर गया और मुड़ कर देखने लगा कि कौन मुझे पुकार रहा है। जिस को देखा तो आँखों को यकीन नहीं हुआ कि यह मुझे पुकार सकती है। मेरा नाम पुकारने वाली मेरी पूर्व प्रेमिका प्रिया थी। उस की आवाज 10 साल बाद सुनने को मिली थी। कितनी बार मैंने उसे फोन करें थे, कितनें जन्मदिनों पर बधाई संदेश भेजे थे लेकिन किसी का कोई जबाव नही मिला था।

उस ने मेरे से सारे संपर्क काट दिये थे, मैं भी यह सोच कर सन्तुष्ट था कि वह अपनी जिन्दगी में खुश है तो मुझ से संपर्क ना रखे तो अच्छा ही है। यह बात अपने मन को समझाने में कितना समय लगा था यह मैं ही जानता था। आज उस की आवाज कानों में शहद तो नही घोल रही थी लेकिन मन को अच्छी लग रही थी, मैं यह सब सोच ही रहा था कि वह मेरे करीब आ कर बोली कि क्या बहरे हो गये हो जो अपना नाम भी नही सुनते। मैंने हैरत से उसे देखा तो उस को लगा कि मैं उसे पहचान नही पा रहा हूँ, तो वह बोली कि अब मुझें भुलने का नाटक मत करो। मैंने कहा कि नही तुम्हें तो नही भुला हूँ लेकिन लग रहा था कि यहाँ कौन मुझें मेरा नाम लेकर पुकारने वाला है? मैं तो खुद यहाँ अजनबी हूँ।

तुम यहाँ कहाँ से?

दो साल से हूँ

कैसी हो?

देख लो कैसी हूँ?

सही लग रही हो

तुम बिल्कुल नही बदले अभी भी वैसे ही हो

कैसा?

लापरवाह, मस्त, मजाकिया

कैसी लापरवाही और कैसा मजाक?

तुम ने मेरी आवाज नही पहचानी?

10 साल तक जो आवाज न सुनी हो तो उसे कैसे पहचान पाऊँगा?

अब उलाहना देना छोड़ो, कही चल कर बैठते है तुम से काफी बातें करनी है

मेरे से बातें?

गुस्सा थूक दो और चलो कही बैठ कर कॉफी पीते है

चलो

मैं उस के साथ मॉल से बाहर चल दिया मेरा एक हाथ उस के हाथ में था तथा दूसरें हाथ में सामान के थैले थे। बाहर एक रेस्टोरेंट में कोने में जा कर बैठ गये। वेटर आया तो दो कॉफी का ऑडर कर के दूबारा उस की तरफ देखा तो उस ने कहा कि ऐसी नजरों से क्यों देख रहे हो मैं वही हूँ।

सोच रहा हूँ कि तुम यहाँ कहाँ से टपक पड़ी?

अब कोसना बन्द कर दो वैसे ही जिन्दगी ने कम गम दे रखे है जो तुम और कोस रहे हो।

मैं तुम्हें कोस सकता हूँ ये तुम ने सोचा भी कैसे?

अभी तक क्या कर रहे थे?

भई ये यकीन करने की कोशिश कर रहा था कि यह तुम्ही हो या मैं कोई सपना तो नही देख रहा हूँ क्योकि सपनों से अब मुझें डर लगता है।

चाहो तो चुटकी काट कर देखो कि खुन निकलता है या नही असली हूँ या नहीं?

मैं हँस पड़ा तो उस के चेहरे का गुस्सा चला गया।

तुम कब से ऐसे हो गये?

जब से कोई बदल गया

सुई वही पर अटकी है

क्या करुँ मेरे पर बीती है कैसे भुला दूँ?

मुझें मार कर, यह तो तुम कर ही सकते हो?

मैंने कब तुम्हे मारा था, हाथ भी लगाया हो तो बताओ?

मैंने कब कहा मैं तो कह रही हूँ कि अपना गुस्सा मुझ पर निकाल सकते हो, मैं उस के लिए तैयार हूँ।

तुम ने वो जगह कब की छोड़ दी कि मैं तुम पर गुस्सा करुँ जो चीज अपनी नही उस पर गुस्सा करने का हक भी नहीं है।

बातें बनाने की आदत तो गई नही तुम्हारी, बात की जलेबी बना देते हो

तभी वेटर कॉफी ले कर आ गया, हम दोनों काफी पीने लगे मैंने उसे ध्यान से देखा तो ज्यादा नही बदली थी कुछ वजन बढ़ गया था छातियाँ भारी हो गयी थी। चेहरा वैसा ही था शरारत भरा। मुझें अपने आप को घुरते देख कर वह बोली कि क्या देख रहे हो?

देख रहा हूँ कि दस सालों से क्या बदला है?

तुम्हारी आँखों से तो कुछ छुप नही सकता है। मोटी हो गयी हूँ जहाँ सोच रहे हो वहाँ भी साईज बढ़ गया है।

मतलब कि ज्यादा सैक्सी हो गयी हो ऐसा कह सकते है

ये शब्द तुम ने जब तो नही कहे थे जब मैं तुम्हारे लबों से सुनना चाहती थी।

तब नही कह सकता था आज कह सकता हूँ तब तुम मेरी थी और मैं अपनी किसी भी चीज के बारे में हल्कें शब्द नही बोल सकता था। तुम से बेहतर कौन जानता है

हाँ सो तो है अब कह सकते है मतलब अब मैं तुम्हारी कुछ नही लगती

हाँ अब क्या लगती हो बताओ?

इतने सालों का साथ वो दोस्ती सब भुल गये?

अपने आप से पुछो फिर मेरे पर आरोप लगाना

ये हम दोनों ने लड़ना क्यों शुरु कर दिया, मैं तो तुम ने मिल कर बहुत खुश थी कि इस शहर में कोई तो अपना मिला है लेकिन तुम तो किसी अजनबी जैसे हो

अपने दिल से पुछो कि तुम मेरी कौन हो, फिर मैं किसी और की पत्नी का क्या हो सकता हूँ?

हाँ इतनी देर बाद तुम्हारे मुँह से असली बात निकली कि मैं किसी की पत्नी हूँ इस लिए तुम्हारे लिए अजनबी बन गयी हूँ। लेकिन उस से पहले तो मैं तुम्हारी जान थी

जान थी

अपने दिल को तसल्ली दे लो कि मैं अब किसी की पत्नी नही हूँ मेरे पति से मेरा तलाक हो गया है। अब तो सन्तुष्टि मिली तुम्हें

सॉरी, मुझें पता नही था, वैरी सॉरी

तुम्हें कैसे पता होगा जब तुम मुझ से 10 साल बाद मिले हो। हम संपर्क में भी तो नही थे। ये तो आज भाग्य ने तुम से मिला दिया नही तो मुझें यकीन नही था कि मैं तुम से कभी मिल भी पाऊँगी या नही।

इस में भी मेरी गलती है कॉफी पी लो ठन्ड़ी हो जायेगी, हम तो ऐसे लड़ रहे है जैसे प्रेमी-प्रेमिका लड़तें है कोई देखेगा तो क्या सोचेगा?

देखने वालो का डर है तो मेरे घर चलो वहाँ कोई देखने वाला नही है

अकेली रहती हो?

हाँ, कोई साथ नहीं रहता

और कुछ लोगी?

लुगी तुम्हारा समय, मुझें तुम से बहुत सारी बाते करनी है मुझ से पीछा छुड़ाने की कोशिश ना करो

मैं कब पीछा छुड़ा रहा हूँ वो तो तुम ने छुड़ाया था मेरे से, मैंने तो कई बार कोशिश की थी।

हां, चलो सब बताती हूँ एक बार मेरे साथ चलो तो।

तुम्हारे साथ तुम्हारे, घर दुनिया क्या सोचेगी?

तुम कब से दुनिया से डरने लगे?

जब से कोई और दुनिया से डर गया

ताने मारना छोड़ो और मेरे से बात करो, तुम्हारी सब गलतफहमी दूर कर दुँगी

लेकिन मैं तो कोई गलतफहमी दूर नही करना चाहता।

तुम नही मानोगे तो मैं यहाँ पर सीन कर दुँगी तब क्या करोगें?

तुम इतनी खतरनाक कब से हो गयी हो?

मन्नुअब मत तरसाओ यार चलो

चलो तुम्हें मेरा नाम तो याद है

मुझें सब याद है लेकिन उस समय हालात कुछ और थे, मेरे काबु से बाहर थे

हमारी बातें लोग सुन रहे थे तथा उन के कान हमारी तरफ ही थे ये देख कर मैंने वेटर को बुला कि बिल पे किया और उस के साथ बाहर निकल गया मेरे हाथ के बैग अब उस के पास थे। मैंने कहा कि अपनी गाड़ी तो निकाल लुँ पार्किग से, तो वह बोली कि हाँ चलो वही चलते है। हम दोनों बेसमेन्ट की पार्किग के लिए लिफ्ट में चले गये। बेसमेन्ट में जब मैं अपनी गाड़ी के पास पहुँचा तो मैंने अपनी गाड़ी रिमोट से खोली तो वह बोली कि गाड़ी तो जोरदार है। मैंने कहा कि मुझें तो बढ़िया चीजों की आदत है। उस ने सामान के बैग पीछे की सीट पर रखे और आगे की सीट पर बैठ गयी। मैंने गाड़ी निकाली ओर उस से पुछा कि कहाँ चलना है तो बोली कि प्रसाद नगर में मेरा फ्लैट है। मैं चुपचाप उस के घर की तरफ चल दिया, रास्ते में उस ने पुछा कि तुम कितने साल से यहाँ हो तो मैंने कहा कि सात साल हो गये है।

दिल्ली क्यों छोड़ दिया?

नौकरी चली गयी थी फिर किसी की यादों से छुटकारा पाना था इसलिए यहाँ पर नौकरी मिली तो कर ली, शान्त शहर है मन के भीतर की अशान्ति को यहाँ आ कर चैन मिला था।

शादी की थी या नही?

नही अभी नही की है

किसी के इन्तजार में हो?

नहीं अब किसी का इन्तजार नही है किसी के साथ मन ही नहीं मानता, इस लिए शादी नही करी

पहले तो तुम इतने दार्शनिक नही थे?

जवान था अनुभव नही था, जिन्दगी ने इतने घाव लगाये कि दार्शनिक बन गया हूँ।

उस का फ्लैट आ गया था नीचे गाड़ी खड़ी कर के उस के फ्लैट के लिए चल दिये, चौथी मंजिल पर उस का फ्लैट था। फ्लैट का दरवाजा खोल कर दोनों अन्दर घुसे तो दरवाजा बन्द करके वह मेरे से लिपट गयी और बोली कि जितना गुस्सा निकालना है अब निकाल लो। मैंने उसे अपने से अलग करके कहा कि मैं गुस्सा नही हूँ। वो अलग हो कर किचन में चली गई और पानी ले कर आयी और बोली कि पानी पी लो गुस्सा कम हो जायेगा। मैं ने पानी लिया और पीने लगा।

उस ने इस के बाद कहा कि आराम से बैठ तो सकते हो या उस में भी कोई प्रोब्लम है मैं सोफे पर बैठ गया वो मेरे पास बैठ कर बोली कि चलो सारे गिले-शिकवे दूर कर लेते है, मैंने कहा कि मुझें कोई शिकवा नही है। उस को जो अच्छा लगा था उस ने किया, एक साधारण सांवले लड़के को छोड़ कर गोरे चिट्टे लम्बे लड़के को पसन्द किया सही किया इस के लिए मैं उसे क्यों दोष दूँ? वह यह सुन कर बोली कि शायद सही कह रहे हो मैं ऊपर के रंग-रुप पर फिदा हो गयी और मन की सुन्दरता भुल गयी। उस को जब मुझ से सुन्दर मिली तो वह मुझें छोड़ कर उस के साथ चला गया। मेरे साथ सही हुआ है मैंने किसी को दगा दिया था किसी ने मुझें दगा दिया हिसाब बराबर हो गया है।

यह कह कर वह बोली कि तुम नही जानना चाहते कि मेरे साथ क्या हुआ है? मैंने कहा कि नही मुझें नही जानना है। मैं तो इस सब से पीछा छुड़ाने के लिए अपना शहर भी छोड़ कर आया हूँ। अब फिर से इस में फँसना नही चाहता। उस ने कहा कि कम से कम यह तो जान लो कि अब मैं कैसी हूँ? मैंने कहा कि मुझें तो तुम अच्छी खासी दिख रही हो। क्या परेशानी है? तो उस ने कहा कि कोई अपना नही है कोई तो होना चाहिए जिसे हम अपना कह सके। ऐसा कोई नहीं है। मैंने कहा कि इतने सालों में कोई नही मिला? तो उस ने जबाव दिया कि नही सब फायदा उठाने वाले मिले कोई दोस्त नही मिला। लगता है कि तुम्हारी हाय लग गयी है। मुझें सजा तो मिलनी चाहिए, शायद ये अकेलापन ही मेरी सजा है।

मैंने पुछा कि यहाँ पर कब से हो उस ने कहा कि दो साल हो गये है। अकेली कैसे रहती हो? तो जबाव मिला कि जैसे तुम रहते हो। मैंने कहा कि मैं तो अकेलेपन का आदी हूँ तो वह बोली कि मुझ को भी इस की आदत पड़ गयी है। मैंने कहा कि मेरी मेलस् का जबाव तो दे देती। उस ने कहा कि मेरी हिम्मत तुम्हारा सामना करने की नही थी। मैंने पुछा कि अब कैसे कर रही हो तो वह बोली कि तुम्हारे सामने तो मैं पहली वाली लड़की बन जाती हूँ साहस आ जाता है इतना तो हक है मेरा, मुझे पता है कि तुम्हारे ऊपर तो अपनी चला सकती हूँ। मैं चुप रहा।

प्रिया उठ कर शायद किचन में चली गयी। कुछ खाने का सामान और चाय लेकर आयी और बोली कि इस से तो नाराज नहीं हो मैंने कहा कि अब कितनी बार सुनना चाहती हो कि तुम से नाराज नही हूँ। उस से हँस कर कहा कि यह तो वह रोज सुनना चाहती है। मैंने कहा कि अब कुछ ज्यादा नही माँग रही हो? तो वह जोर से हँस दी और बोली कि मुझें पता है जो माँगुगी वो मिलेगा। तुम से बस मेरी हिम्मत नही हो रही है कुछ माँगने की?

फिर बोली बातें करने के लिए बहुत समय है कुछ खा लेते है। मैंने चाय का कप ऊठाया तो बोली कि कुछ और लाऊँ मैंने कहा कि नही चाय काफी है। चाय के बाद खाना खा कर मैं आराम से बैठ गया। उस की हिम्मत कुछ और बढ़ गयी और मेरी बगल में आ कर बैठ गयी। मैंने उसे कुछ नही कहा। उस ने मेरी बाँह पकड़ कर कहा कि गुस्से को निकाल क्यों नही देते। मेरी अच्छी तरह से पिटाई कर लो शायद इस से तुम्हें कुछ आराम मिलेगा।

यह सुन कर मैंने उस को अपने करीब करके कहा कि वह कभी मेरा एक हिस्सा थी और उस की पिटाई करने की, उसे चोट पहुँचाने की बात तो मैंने कभी सपने में भी नही सोची है यह क्या कह रही हो? उस ने कहा कि मैंने बड़ी पिटाई खाई है इस लिये लगा कि प्यार को दरशाने का शायद यह भी एक तरीका है।

मैंने उसे बाँहों में जकड़ कर कहा कि ज्यादा ना चिढ़ाऐ नही तो कुछ कर दुँगा। उस ने कहा कि इस कुछ का उसे इन्तजार है। मैंने उसे चुम कर कहा कि तैरा मैं कुछ नही कर सकता तेरी बात सही है कि तेरा मेरे पर हक है मैं चाह कर भी उसे तुझ से छिन नही सकता। लेकिन यह तो बता कि अब तुम मुझ से क्या चाहती हो। मेरे पास तो अब देने के लिये कुछ नही है। उस ने कहा कि मुझे कुछ नही चाहिए केवल तुम्हारा साथ चाहिए बाकि सब कुछ अपने आप मिल जायेगा। उस ने मेरी आँखों में आँखे डाल कर कहा कि अपने दिल में मुझें छुपा लो।

मैंने कहा कि वहाँ तो तुम्ही हो। कही गयी कहाँ थी। यह सुन कर उस की आँखों से आँसु गिरने लगे, मैंने उसे रोकने की कोशिश नही की वह मेरी कमीज को गिला करती रही। जब उस का मन शान्त हो गया तो उस ने अलग हो कर कहा कि अब तो मुझें प्यार कर सकते हो अब तो मैं कुवाँरी नही रही। पहले तो तुम हाथ लगाने से डरते थे। कही मैं मैली ना हो जाऊँ अब तो पुरी की पुरी मैली हो गई हूँ। क्या इस लिए दूर हो?

हम दोनों के बीच खामोशी पसरी रही। कोई उसे तोड़ने को तैयार नही था। मैं आगे आने को राजी नही हो रहा था। उस ने अपनी इच्छा जाहिर कर दी थी। मैंने उसे पकड़ कर बिठाया और कहा कि तुम्हें हमेशा जल्दी क्यों रहती है। हम दोनों एक शहर में है मैं तुम्हारे पास हूँ फिर भी जल्दी क्यो? उस ने कहा कि तुम फिर से खो ना जाओ इस लिए जल्दी है। पहले भी खो चुकी हूँ अब नही खोना चाहती, पहले तो तुम्हारी शरम से कुछ कहती नही थी लेकिन आज तो सब कुछ कह ही दिया है। तुम कुछ समझते क्यों नही हो? मैंने कहा कि मैं सब कुछ समझता हूँ लेकिन मेरा मन अभी तैयार नही हो रहा है जब होगा तब जबाव दूँगा।

वो अचानक मेरे घुटनों के पास जमीन पर बैठ गयी और मेरे दोनों पांव पकड़ लिये। मैंने अचरज से उसे देखा तो उस ने कहा कि आज तुम्हें कही जाने नही दूँगी। ऐसे ही बैठी रहुँगी। मैं उस की इस हरकत से हैरान था मैंने कहा कि जबरदस्ती मत करो। मन नही मान रहा है। उस ने कोई जबाव नही दिया। उस के आँसु मेरी पेन्ट को भिगो रहे थे। मैंने उस से कहा कि चलो कही घुमने चलते है शायद मन को शान्ति मिले वह इस के लिए तैयार हो गयी। बोली कि मैं तैयार हो कर आती हूँ तुम्हारी पेन्ट तो गीली हो गयी है अगर उतार दो तो प्रेस से सुखा देती हूँ मैंने कहा कि नही अपने आप सुख जायेगी। वह तैयार होने चली गयी। मुझें सोचने का समय मिल गया। मैंने अपने दिल से कहा कि जिस के लिए इतने सालों से तड़प रहा था अब जब वह मिल गयी है तो उसे स्वीकार क्यों नही करता? क्या दिक्कत है। कोई जबाव नही मिला। मैं, कहाँ चलना है इस पर विचार करता रहा।

थोड़ी देर बाद जब वह लौटी तो साड़ी में थी, हल्का मेकअप कर लिया था सुन्दर लग रही थी मेरी आँखो को उनका मनपसन्द दृश्य देखने को मिला था। उसे पता था कि वह मुझें साड़ी में अच्छी लगती है। पास आ कर बोली कि कोई कॅामेन्ट नही करोगे मैंने कहा कि पहले ही सारे कॅामेन्ट खत्म कर चुका हूँ अब नया कहाँ से लाऊँ? मेरी बात सुन कर उस के चेहरे पर रौनक आ गयी उसे समझ आ गया कि मैं पुराने रंग में आ रहा हूँ। बोली कहाँ ले जा रहे हो? मैंने कहा कि बीस किलोमीटर दूर एक किला है उसे देखने चलते है लॉगड्राईव हो जायेगी। घर बन्द करके उस ने मेरा हाथ अपने हाथ में थामा और लिफ्ट की तरफ चल दी।

गाड़ी निकाल कर उसे बिठाया तो वह आराम से बैठ गयी फिर बोली कि इस बैगों को पीछे डिग्गी में डाल देते है। मैंने ऐसा ही किया। फिर हम दोनों सफर पर चल पड़े। रास्ते में उस का हाथ मेरे हाथ पर पड़ा रहा। मैंने पुछा कि कहाँ पर नौकरी कर रही है तो उस ने कहा कि कॉलसेन्टर है, वह वहाँ मैनेजर है। मैंने उसे बताया कि वह जिस कम्पनी में काम करती है वह मेरे अन्डर है और मैं उस का डायरेक्टर हूँ तो उस ने कहा कि मैंने तुम्हारा नाम तो सुना था लेकिन यह नही पता था कि तुम ही हो, लगा कि कोई बुढ़ा व्यक्ति होगा। मैं हँसा। बोली कि बड़ी जल्दी तरक्की करी है। मैंने उसे बताया कि भारत में इस कम्पनी के ऑपरेशन्स को शुरु करने वाला मैं ही था। वास्तव में मैं ही इस का मालिक हूँ।

यह सुन कर उस की आँखे फैल गयी। बोली कि कही मजाक तो नही कर रहे? मैंने कहा कि कल ऑफिस जा कर मेरे बारे में पता कर लेना सब पता चल जायेगा। उस की खुशी का ठिकाना नही था। बोली तभी तुम इतनी मंहगी गाड़ी रखते हो। मैंने सर हिलाया। वह बोली कि क्या किस्मत है मेरी, जिस को छोड़ कर गयी वो अमीर हो गया और जिस के साथ गयी वो कुछ बनते ही मुझें छोड़ गया।

ऐसे ही बैसिर पैर की बातें करते हुए समय कब बीत गया पता ही नही चला। किला एकान्त में था इस लिये प्रेमी-प्रेमिकाओं का मनपसन्द अड्डा था। हम दोनों भी उन में शामिल हो गये और एक ऊँची जगह पर जा कर बैठ गये। उस का सिर मेरे कन्धे पर टिका हुआ था मैं चुप बैठा था तो वह बोली कि कुछ बोलते क्यों नही हो। मैंने कहा कि कभी-कभी मौन भी बहुत कुछ कहता है उसे सुनने की कोशिश करनी चाहिए।

बड़े दार्शनिक हो गये हो?

हाँ जब जिन्दगी ठोकर मारती है तो सब हो जाते हैं

तुम्हें क्या ठोकर लगी है, इतनी बड़ी कम्पनी के मालिक हो और क्या चाहते हो जिन्दगी से?

यही तो पता नहीं है? पहले धन कमाने की इच्छा थी जब वह आया तो उसे खर्च करने वाली चली गयी। लगा कि अब इस का क्या करे? इस लिए काम में अपने को डुबा लिया। काम और बढ़ गया लेकिन इस सफलता को भोगने वाला कोई नही है। किसी के साथ की इच्छा ही नही बची। अब जब तुम वापस आयी हो तो कुछ आशा बनी है।

जब भोगना ही नही था तो इतना सब बनाया क्यों?

अपने लिये नही औरों के लिए ताकि लोगों को रोजगार मिल सके तुम्हें तो पता ही है मेरी विचारधारा।

हाँ वासुदेव कुटम्बकम सब का कल्याण हो

यही बात थी

साधु क्यों नही बन जाते?

अगर मैं साधु बन गया तो तुम किस से प्यार करोगी सोचा है कभी?

क्या कहा?

जो तुम ने सुना

जरा फिर से कहो कानों को विश्वास नही हो रहा है।

धीरे-धीरे होगा धैर्य रखो

नदी के किनारे खडे व्यक्ति को प्यासा रख रहे हो पाप लगेगा

हम तो महा पापी है अब और क्या पाप लगेगा?

इतनी बातें कहाँ से सीखी है?

जिन्दगी ने सिखायी है

कुछ मुझे भी सिखा दो

अपने आप सीख जाओगी, मेरी शिष्य बन जाओ

जो बनाना चाहते हो बन जाऊँगी लेकिन अपने से दूर मत करो

मैंने तो तुम्हे कभी अपने से दूर नही किया था

तो इतना परेशान क्यों कर रहे हो?

अब मैंने क्या किया पास तो हो और कितना पास आना है

जहाँ हम दोनों के बीच कोई दूरी ना रहे

शैतानी करने की आदत नही गयी

तुम्हारे साथ तो और बढ़ जाती है

अपनी चीज को हासिल करना पड़ता है भीख नही माँगते छीन लेते है

उकसा रहे हो?

जैसा समझो

तो चलो यहाँ से

अभी तो आये है

फिर कभी आयेगें

अभी तो चलो मेरी कोई चीज किसी के पास है उसे हासिल करना है।

मैं हँसा

चिढ़ाओ मत, नही तो मारुँगी।

हिंसा मत करो प्यार करो

करने का मौका तो दो

हर चीज को खोजना पड़ता है

उस ने मेरे चेहरे को अपने हाथो में ले कर अपने होंठ मेरे होंठों पर रख दिये। उस के जलते होंठ मुझें मीठे लग रहे थे। मैंने उसे कहा कि जगह तो देखा करो, उस ने कहा कि कोई नही देख रहा है सब इसी काम में लगे है कुछ तो इस से भी आगे चले गये है। मैं ने उसे अलग करने की कोशिश नही की उस ने मेरे कानों में कहा कि ये तो आगे की फिल्म का ट्रेलर है। मैंने कहा कि ट्रेलर की जरुरत नही है अब सीधे फिल्म ही देखेगे। मेरी बात सुन कर उस के होंठ मेरे होंठों से अलग हो गये।

हम दोनों वापस जाने के लिए निकल पड़े। रास्ते में मैंने कहा कि अब तो वह बहुत बहादूर हो गयी है तो उस ने कहा कि तुम्हारे साथ तो मैं हमेशा से बहादूर थी।

मैंने कहा कि मुझें सब याद है। उस ने कहा कि जब सब याद है तो रोका क्यों? मैंने कहा कि भई कम्पनी के बड़े अधिकारी के साथ किसी वर्कर का ऐसे मिलना कुछ जमता नही है। उस की हँसी निकल गयी। बोली कि यह तो हद हो गयी कि जिस कम्पनी में दो साल से काम कर रही हूँ ये पता ही नही कि ये तो अपनी ही कम्पनी है। क्या मजाक किया है जिन्दगी ने मेरे साथ?

मैंने कहा की जयदेव की अभिसार को जाती नायिका सी लग रही हो।

मेरी ऐसी तुलना मत करो, मैं तो आम नारी बन कर ही खुश हूँ

राधा का दर्जा नही पता है भारत में, कृष्ण से पहले उन का नाम आता है।

मैं तो गोपी ही सही हूँ राधा का दर्जा मत दो उन्हें तो कन्हैया मिले ही नही थे?

रास्ते भर उस का हाथ मेरे हाथ पर रखा रहा।

उस के घर पहुँच कर गाड़ी पार्क करके जब उस के फ्लैट में घुसे तो उसे कुछ याद आया और बोली कि खाना तो लाना भूल गये। मैंने कहा कि जैसे अभिसार को जाती नायिका की सुधबुध खो गयी थी सो तुम्हारा हाल है। फोन पर ऑडर कर दो खाना आ जायेगा। उस ने फोन निकाला और पुछा कि क्या खाना है मैंने कहा कि उसे मेरी पसन्द पता है यह सुन कर उस ने खाना ऑडर कर दिया। कुछ देर बाद ऑडर आ गया। बोली कि खाना खाना है या कुछ और विचार है मैंने पुछा क्या है बोली कि बियर पड़ी है इस से ज्यादा उस के बस की नहीं है मैंने कहा कि उस से ही काम चला लेते है।

कपड़ें बदलने है तो बदल लो

नही सही है

वो फ्रिज से बियर के दो कैन निकाल कर ले आई किचन से नमकीन भी ले आई। मैंने कहा कि किसी होटल चल सकते थे। वह बोली कि नही घर ही सही है। प्राइवेसी का ध्यान रखना पड़ेगा।

मैंने पुछा दो ही है या और है तो बोली की पुरा बॉक्स खरीदती हूँ। चिन्ता मत करो। दोनों बियर पीने लगे, बियर भी नशा करती है लेकिन हल्का करती है कई कैन खत्म कर गये। फिर खाना खाने बैठे तो सारा खाना खत्म कर दिया। खाने के बाद मन किया कि आराम कर ले तो वह बोली कि सोफे पर नही अन्दर बेड पर आराम से लेट जाओ।

रात हो चुकी थी पुरा शहर रोशनी से जगमग कर रहा था। मैंने जुते उतार कर पेन्ट ढ़ीली कर के बेड़ पर पीठ सीधी कि तो वह मेरे पास ही लेट गयी और बोली कि फिल्म देखनी है तो मैंने कहा कि काफी दिन से डियु थी बिल्कुल देखनी है। यह कह कर मैंने उसे करीब कर लिया। उसे तो इस पल का ही इन्तजार था वह मेरे से लिपट गयी और मेरे चेहरे पर चुम्बनों की बरसात कर दी। मैंने उसे रोका और कहा कि मैं कपड़े उतार देता हूँ कपड़ें खराब हो गये तो परेशानी होगी।

उस ने उठ कर अपनी साड़ी भी उतार दी। आज पहली बार मेरी प्रेमिका मेरे सामने ऐसे खड़ी थी मैं उसे देख रहा था तो वह बोली कि क्या आज से पहले मुझें ऐसे देखा नही है मैंने कहा मैंने कहाँ देखा है? देखने की हसरत तो थी लकिन किस्मत नही थी। वो कसे ब्लाउज, पेटीकोट में मेरे सामने खड़ी थी। शरीर पर कही ज्यादा मांस नही था लेकिन मांसल लग रही थी। मैंने अपनी कमीज और पेन्ट उतार कर बेड के किनारे पर रखी तो वह बोली कि और कुछ मत उतारों मैं उतारुँगी।

मैं ने उस की बात मान ली दोनों बेड के नीचे खड़े थे मैंने अपनी बांहे फैलायी तो वह उन में समा गयी उस ने अपना मुँह मेरी छाती में छुपा कर कहा कि इस के लिए इतने सालों का इन्तजार करना पड़ा है। उस के भरे उरोज मेरे ह्रदय में चुभ रहे थे। उस की बांहे मेरी पीठ पर थी और मेरी बांहे उस को कसे हुँए थी। काफी देर तक हम ऐसे ही खड़े रहे। दस सालों की प्यास थी जो बुझानी थी। दोनों के शरीर एक-दूसरे को महसुस करना चाह रहे थे।

मैंने झुक कर उस के होंठों पर अपने होंठ रख दिये। उस के होंठों का मीठापन अब दूबारा नसीब हुआ था। उस ने धीरे से अपनी जीभ मेरे होंठों से छुआई मैंने होंठ खोले तो वह मेरे मुँह में प्रवेश कर गयी। मैंने उसे पहले अपनी जीभ से छुआ और फिर होठों से दबा कर चुसना शुरु कर दिया। मेरे हाथ उस की पीठ सहला रहे थे। फिर कमर से होते हुए नीचे कुल्हों पर चले गये और उन्हें दबोच लिया। उस का निचला हिस्सा मेरे निचले हिस्से से चिपक गया। उस के नाखुन मेरी पीठ के मांस में गड़ रहे थे रास्ते में मेरी बनियान का कपड़ा आ रहा था।

मैंने उस के माथे, आँखों, गालों को जी भर कर चुमा उस ने भी मेरे चेहरे को दिल भर के चुमा। मैंने अब अपने होंठ उस की कानों की लौ पर कर के उन्हें चुमा इस से उस के शरीर में करंट दौड़ गया। लम्बी गरदन पर मेरे होंठ अपनी छाप लगा रहे थे। वह खड़ी-ख़ड़ी कांप रही थी। गरदन से नीचे आ कर होंठो ने उरोजों के मध्य में चुम्बन किया। इस से नीचे वह नही जा सकते थे रास्ते में ब्लाउज और ब्रा थी। मैंने पीठ पर से ब्लाउज खोलने की कोशिश की तो पता चला कि पीछे कुछ नही है।

वह हँसी और बोली कि यह तो आगे से खुलेगा। उस ने हाथों से ब्लाउज खोल दिया बाकि काम मेरे हाथों ने कर दिया लेकिन अभी भी ब्रा थी पीछे से ब्रा के हुक खोल कर ब्रा भी खोल दी फिर उसे भी उतार कर फैक दिया। अब उस के पुष्ट उरोज मेरे सामने थे कितने सालों से इन्हें छुने की तमन्ना थी लेकिन कभी अवसर नही मिला था।