महारानी देवरानी 017

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घुड़सवारी
2.1k words
4.33
37
00

Part 17 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 17

सुबह सवेरे उठ कर देवरानी स्नान करती है। तैयार होने के लिए आईने के पास आ कर बैठती है और शेर सिंह के बारे में सोच कर खूब मन से सजती संवारती है। आज वह घाटराष्ट्र के सबसे बड़े देवी मंदिर जाने का निर्णय लेती है, फिर मंत्री को कह कर रथ मंगवा लेती है और एक घोड़े का रथ बिल्कुल तैयार महल के द्वार पर खड़ा था।

इधर राजकुमार बलदेव भी जल्दी उठ जाता है और स्नान कर पहले अपने दादी के कक्ष में जाता है और उनसे उनका हाल पूछ कर सोचता है बाहर जा कर एक बार वैध जी से पता करें कि दादी के उपचार में कोई कमी तो नहीं है। जैसे ही बाहर जाने लगता है सामने उसे देवरानी दिखती है।

जिसे देख राजकुमार बलदेव की लार टपकने लगती है। कल जहाँ देवरानी के नितांब कहर ढा रहे वही आज लग रहा था कि उसके कमल वक्ष साडी से बाहर आने को तडप रहे थे।

राजकुमार बलदेव: इतने बड़े वक्ष आज इसे देख तो मेरे दिन बन गया जैसे कल इनके उन्नत निताम्ब देख कर हुआ था।

बलदेव को अपने आप को ताड़ते हुए देख देवरानी हल्का-सा मुस्कुरा देती है और बलदेव कहता है।

राजकुमार बलदेव: माता कहा जा रही हो आप इतने सवेरे?

देवरानी: वह आज माता रानी के मंदिर जा रही थी।

राजकुमार बलदेव: पर किसके साथ?

देवरानी: सैनिक है ना।

बलदेव: माँ आप मेरे होते हुए किसी और के साथ क्यों?

देवरानी: मुझे लगा...

बलदेव: आपको लगा कि मैं नहीं जाऊंगा?

देवरानी: हम्म!

तुम सुबह सांय युद्ध अभ्यास करते हो, थक जाते हो और देर तक सोते हो इसीलिए मैंने सोचा कहीं तुम ना जाओ।

बलदेव: माँ में भले ही कितना भी थका रहूँ पर आपका साथ देने के लिए हमेशा तत्पर रहूँगा। सदैव!

देवरानी: अच्छा चलो।

बलदेव: आप आगे से कोई भी ऐसा कोई कदम उठाने से पहले सोच लेना और ध्यान रखना।

देवरानी: अच्छा श्रीमन अब चले।

फिर वह दोनों बहार निकलते हैं और रथ के पास आते हैं बलदेव कहते हैं "सैनिक तुम जाओ रथ हम चलाएंगे!"

देवरानी: आश्चर्य से देखती है फिर वह रथ पर बैठ जाती है और बलदेव रथ को दौड़ाता है।

कुछ दूरी तय कर दोनों मंदिर के पास पहुचते है और बलदेव मंदिर परिसर में अपना रथ खड़ा करता है और उतरता है और रथ पर बैठी देवरानी को अपना हाथ देता है और उन्हें नीचे उतारता है और उतरने के लिए अपने खुले केशो को पीछे हटा कर संभल कर उतारती देवरानी को देख बलदेव को जैसे स्वर्ग का आनंद मिलने लगता है। वह इतनी सुंदर लग रही थी और उस पारदर्शी साडी में उसके वक्ष कयामत लग रहे होते हैं।

रथ से उतारते समय ऐसा लग रहा जैसे देवरानी के वक्ष गिर जाएंगे। अपने बेटे की नज़र ऐसे अपने स्तनों पर देख देवरानी शर्मा जाती है और मन में भगवान को याद कर के आगे बढ़ती है और बलदेव के साथ मंदिर में चढ़ावा चढ़ाने की सामग्री ले कर मंदिर की सीढ़ियो पर चढ़ती है और बलदेव भी जा कर अपने माँ के साथ चढ़ावा चड्ढा कर माथा टेकता है।

देवरानी: (मन में) माता मुझे इतनी शक्ति दे की में हर परिस्थति से लड़ सकु, में अब खुश रहना चाहती हूँ, किसी ऐसे के साथ जो मेरा सम्मान करे मुझे दिल से प्रेम करे।

मैंने पत्नी धर्म बहुत निभाया पर मझे दुख के सिवा कुछ नहीं मिला। इस बार मुझे शेर सिंह के रूप में वह मिला है जो मेरा जीवन सफल कर सकता है, मुझे माफ कर देना पर में वही करूंगI जिससे अब मेरा जीवन ठीक हो।

बलदेव: (मन में) माता रानी में तेरा भक्त हूँ और मुझसे बड़ी भक्त मेरी माँ देवरानी है, जिसने जीवन में कोई सुख नहीं देखा। अगर संसार में तेरे नियम से पत्नी को सिर्फ खून के आंसू रोना है तो अब और नहीं। तू उतनी शक्ति दे के वह अपने जीवन में खुशियों लाने का फैसला खुद कर सके और रही बात मेरे प्रेम की तुझे पता है कि मेरा प्रेम कितना पवित्र है और हो भी क्यों न मैं उसे किसी अज्ञात पुरुष के पास भटकने के लिए भेज नहीं सकता, जिससे वह आगे माँ का साथ छोड़ दे और माँ को दुख दे। मैंने एक पाप किया है प्रेम कर के, तो मैं इसको पूरा भी करूंगा शक्ति देना...!

बलदेव जैसे अपने आँख खोलता है उसे सामने झुक कर प्रसाद की थाली लेने के लिए झुकी हुई देवरानी दिखती है। उसके वक्ष ऐसे लग रहे जैसे दो बड़े तरबूज हो। ये देख बलदेव मन पर मुश्किल से मन काबू करता है और वह कहता है।

बलदेव: चलो माँ!

जब वह मंदिर से बाहर आते हैं तो देखते हैं कि उसके रथ को कुछ बालक चलाने की कोशिश कर रहे हैं और घोड़े ने हमें रथ के पहिए को ले जा कर दो वृक्ष के बीच फसा दिया था और पहिया निकलकर टेढ़ा हो गया था।

बलदेव: बच्चो तुम सबने ये क्या कर दिया?

देवरानी: बच्चे हैं जाने दो! हम कुछ और प्रबंध लेंगे जाने का और वह चल कर आगे बढ़ती है।

पीछे से उसकी गांड देख बलदेव का लिंग फिर तन जाता है।

बलदेव को कुछ सूझता है और वह रथ से घोड़ा खोलने लगता है।

अपने बेटे द्वारा अपने मोटे नितमब घुरे जाने से अंदर ही अंदर देवरानी की सांस दुगनी गति से चलने लगी। वो दूर खड़े हो कर अपने आप को निहारती है और अपनी सुंदरता देख उसे खुद शर्म आ जाती है।

देवरानी: (मन में) ये बलदेव भी ना ऐसे देखता है जैसे खा जाएगा अभी के अभी। पता नहीं इसके दिमाग में क्या चल रहा है।

तभी बलदेव आवाज लगाता है "मां आ जाओ हम इस घोड़े से जाएंगे।"

देवरानी: पर बेटा एक घोड़े पर कहीं गिर गए तो..?

बलदेव: घुड़सवारी आप नहीं में करूँगा! आप क्या समझती हो मुझे घुडसवारी नहीं आती।

देवरानी: मैंने ये तो नहीं कहा।

बलदेव: आप घबराए नहीं और मेरे आगे बैठे में आपको संभल लुंगा।

देवरानी अपने आपको देख फिर नीचे देखती है!

देवरानी: (मन में) ये लड़का भी ना...मझे आज ये साडी नहीं पहननी चाहिए थी, ये घोड़े पर तो...!

देवरानी ना चाहते हुए भी पहले घोड़े पर बैठ जाती है फिर बलदेव उसके पीछे बैठ जाता है। देवरानी की पीठ बलदेव से चिपक जाती है ये छुअन के एहसास से एक पल के लिए देवरानी आखे बंद कर लेती है ।

अब बलदेव घोडे को तेजी से दौड़ाने लगा। जब-जब वह लगाम खीचता है उसके दो कठोर हाथ रानी के बड़े-बड़े वक्ष को छु देते थे अंजाने में और उसके लंड पर देवरानी के बड़े नितम्ब और गांड का घर्षण होता था। हर बार हिलने पर इस रगड़ से देवरानी उत्तेजित हो गई थी और उसे बूरा भी लग रहा था और वही बलदेव का लिंग भी खड़ा हो चूका था और खूब अच्छे से नितम्बी को दरार और गांड के बीच में जगह बनाने की कोशिश कर रहा था।

कुछ देर वह दोनों महल पहुचे और देवरानी उतर कर जल्दी से अंदर चली गयी और बलदेव अश्व को एक ओर बाँधने लगता है।

देवरानी लंबी सांस लेते हुए अपने कक्ष में पहुँच आईने में अपने आप को देखती है। वह जहाँ-जहाँ रगड़ हुई थी वह जगह लाल हो गई थी। "कितना कठोर है बलदेव! बस रगड़ने ने ही मेरे दूध और चुतड लाल कर दिए।" और मर्दन करेगा तो? हाय राम में क्या सोच रही हूँ।

तभी कमला जड़ी बूटी का काढ़ा ले कर आती है।

कमला: ये लिजिए महारानी!

देवरानी: हाँ लाओ, पी लेती हूँ।

कमला: आपने बताया नहीं आप आज कल रोज योग करती हो और ये काढ़ा क्यों पीती हो।

देवरानी: वह बस अच्छी सेहत के लये।

कमला: बनाओ मत रानी।

देवरानी: हाँ तो सुनो इस से जिस्म गठीला और मजबूत होता है जो काम क्रिया में मदद करता है। इसके सेवन से अच्छे-अच्छे मर्द भी मेरे सामने नहीं टिकेंगे।

कमला: हाँ मुझे पता है, पर ये किताबी बाते है।

देवरानी: तुम्हें कैसे पता?

कमला को एक झटका लगता है।

कमला: वह मुझे पढ़ना नहीं आता पर वह मैंने सुना है।

देवरानी: झूट मत कहो सच-सच कहो, कमला।

कमला: तो सुनो आपके पास जो किताब है वह वैधजी की है और मैंने वह पुस्तक आपके बिस्तर में देखी थी जब में सफाई कर ही थी। जिसमे अलग-अलग मुद्रा में सम्भोग के चित्र थे।

देवरानी: सुस्स्! धीरे से बोलो!

कमला: आप डरती क्यों हो? में तो कहती हो संभोग कि अलग-अलग क्रिया भी सीखो।

देवरानी (शर्म से) चुप रहो।

कमला: ये बताओ आप ये सब तैयारी कर रही हैं ना शेर सिंह के लिए?

देवरानी: हाँ! और सर नीचे कर लेती है।

कमला और वह नहीं मिला तो...फिर ये आग बुझ जाएगी। बोलिये ना?

देवरानी: ऐसा नहीं है।

कमला: मैं आपको एक राज की बात बताती हूँ मैंने अपनी प्यास बुझा ली किसी से!

देवरानी: किस से?

कमला: उसी से जिसकी पुस्तक से आप भी सीख रही हैं।

देवरानी हेरत से देखती हैं।

"तुम्हारा मतलब वैध जी?"

कमला: हाँ महारानी अब आप से क्या छुपाना।

देवरानी: पर कैसे?

फिर कमला महारानी देवरानी को सब उस दिन की बात बताती हैं।

कमला: मैं आपके जैसी नहीं अच्छे समय आने की प्रतीक्षा में जीवन काट दूं। अच्छा समय लाना पड़ता है।

देवरानी: हम्म पर अगर ये बात महाराज या किसी तक पहुच गई तो?

कमला: पहुचने दो मुझे डर नहीं है । प्रेम और सम्भोग मेरा अधिकार है और आपकी तरह क्या डर के इतना दूर सम्बंध बनाना कि मिलाप ही ना हो।

देवरानी: पर पास में कहा कोई है तू तो जानती है।

कमला: अच्छे से आस पास देखो कहीं दीया तले अँधेरा तो नहीं, अच्छे से देखो! अगर में तुम्हारी जगह होती तो में विधवा से सुहागन हो जाती उसे पा कर।

देवरानी इतनी बेवकूफ नहीं थी वह कमला का इशारा समझ जाती है कि महाराज का छोड कर घर में एक ही पुरुष था वह है बलदेव।

देवरानी: चुप कर कमिनी और फिर बैठ कर अपना व्यायाम करने लगती है ।

कमला: रानी याद रखो खुशी के लिए बलिदान तो देना ही पड़ता है । और कमला तुनक के बाहर चली जाती है।

इधर अपने कक्ष में आकर बलदेव पत्र लिखता है और उसे अपने खीसे में छुपा लेता है थोड़ी देर बाद कमला उससे पत्र लेने आती है तो बलदेव को खुश पा कर...!

कमला: महाराज के जाते ही तुम दोनों बड़े खुश लग रहे हो।

बलदेव: हम्म अब ज्यादा समय मिलता है।

कमला: तो बात कहाँ तक आगे बढ़ी?

बलदेव: उनके मन को समझना नामुमकिन है, वैसे कहते हैं ना कि स्त्री को कभी समझा नहीं जा सकता।

कमला: वह सब छोड़ो तुम बिंदास आगे बढ़ो। जो होना है आगे होगा। फिर बलदेव से पत्र ले कर चली जाती है और शाम को पत्र ले जा करके देवरानी को देती है। जिसे वह पढ़ना शुरू करती है।

"प्रिय देवरानी,

मैं संयम बरतने के लिए तैयार हूँ पर आखिरी कब तक? एक सीमा निर्धारित करो कि इतने दिनों में तुम सब छोड़ कर मेरे पास आजाओगी और युद्ध भी हुआ तो मुझे डर नहीं लगता।

में तुम्हें अत्यधिक प्रेम करता हु देवी!

शेर सिंह!"

पत्र पढ़ कर उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह इसका उत्तर क्या दे? और दूसरे मन में कमला की बात भी खाए जा रही थी।

वो दिन से बलदेव से दूर रहने का प्रयास करने लगती है और उससे बहुत कम मिलती है। ये सोच कर कि इस से बलदेव अपनी चाल चेक कर लेगा । वह लगातार 7 दिन तक उसके सामने नहीं जाती।

पर ये 7 डिनो में अहसास होता है कि जब वह बलदेव के साथ हस्ती खेलती है तभी उसे ये जीवन ठीक लग रहा था पर जब से उससे दूरी बनाई है तबसे जिंदगी बेरंग-सी है।

तभी उसके कानो में "माँ इधर आना।"

"बेटा मेरे व्यायाम का समय होगया है बोलो" और वह कमला को बुला कर बलदेव के पास भेज देती है। देवरानी: बेटा कमला को भेज रही हूँ उससे मदद ले लो।

बलदेव अंदर ही अंदर दुखी था पर जानबुझ कर चेहरे पर दुख नहीं आने देता है उसे यकीन था कि अगर उसका प्रेम सच्चा है तो जैसे मैं तड़प रहा हूँ वह भी तड़प रही होगी।

आज पूरे 7 दिन हो गए थे उसे बलदेव से अच्छे से बात किये हुए और ना तो देवरानी ने पत्र का उत्तर दिया था। अब शेर सिंह को भी समझ में कुछ नहीं आ रहा था।

देवरानी: (मन में) क्या करूं में शेर सिंह को कैसे बताऊ के मेरा पुत्र है। उसे छोडना मेरे लिए आसान नहीं है और तो और ये राजकुमार बलदेव भी बहुत शारारती हो गया है। इसके पास जाना भी नहीं बनता दूर रहना भी नहीं बनता। पर बलदेव मेरे से कितना प्यार करता है। इतना दूर जाने के बाद भी बेचारा मेरे पीछे पड़ा रहता है। बुलाता रहता है। मैं इसे डांटते भगाते थक गई पर फिर वह नहीं थका।

कहानी जारी रहेगी

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