महारानी देवरानी 027

Story Info
नदी के तट पर
1.7k words
5
30
00

Part 27 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
Share this Story

Font Size

Default Font Size

Font Spacing

Default Font Spacing

Font Face

Default Font Face

Reading Theme

Default Theme (White)
You need to Log In or Sign Up to have your customization saved in your Literotica profile.
PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

महारानी देवरानी

अपडेट 27

नदी के तट पर

घाटराष्ट्र में कोयल की मधुर आवाज़ से सुबह हुई और सूर्य उदय से पहले ही किसान अपने खेत पर काम करने लगे, बलदेव की आँख खुलती है। तो देखता है उसकी माँ उसके पास ही पलंग के कोने में बैठी है।

बलदेव उठ कर जाता है और जैसे ही अपनी बाहो में भरने का प्रयास करता है। वह गिर-सा जाता है।

बलदेव: (मन में) अरे ये क्या मुझे हुआ मुझे लगा यहाँ माँ है। ये तो मेरा भरम था।

और मुस्कराते हुए उसके मुह से निकला।

बलदेव: क्या यही प्यार है।

बलदेव उठ कर जा कर स्नान करता है। उसे याद था आज सूर्य पूजन के लिए माँ को नदी के तट पर ले जाना है।

देवरानी उठती है और स्नान गृह में घुस जाती है और एक छोटा-सा कपड़ा पहन करने लगती है।

ज्यो ज्यो उसके जिस्म पर पानी के बूँदे गिरती हैं। उसके जिस्म से धुये जैसा भाप निकलता है। जैसे किसी ने आग पर पानी के छींटे मार दिये हो।

अपने जलते बदन पर हाथ फरते हुये ।

देवरानी: (मन में) मेरे दूध को देखते हुये बलदेव कैसे कह रहा था वह आम दबा-दबा कर चुस कर खाएगा?

क्या सच में उसके पास इतना बड़ा गन्ना है कि वह मेरे खरबूजो को फोड़ के रस निकल दे? "

हाये राम! ये में क्या सोच रही हूँ, पर ये बलदेव के गन्ने की चुभन तो मुझे दिन रात सताये जा रही है। मुझे रात भर ऐसा मेहसूस होता है जैसे वह मेरे पीछे खड़ा अपना गन्ना मेरे चूतड़ों में लगा रहा है। "

वासना से देवरानी का दोनों आँख बंद हो जाती है। उसके कानो में आवाज गूंजती है। "माँ! कहाँ हो?"

बलदेव कक्ष में आ गया था और उसे पुकार रहा था।

देवरानी तूरंत अपने आखे खोलती है। अपने कपड़े ढूंढ़ने लगती है। पस उसे वहाँ अपना कोई वस्त्र नहीं मिलता तो वह पास में रखे एक साडी के टुकड़े से अपने जिस्म पर किसी भी तरह से ढक लेती है।

देवरानी: हे भगवान! आज में साडी अंदर लाना भूल गई । अब मैं ऐसी अवस्थ में बलदेव के सामने कैसे जाऊ?

कुछ सोच कर ।

देवरानी: बेटा आई में नहा रही हूँ।

वो उस सफ़ेद साडी से अपने आप को सुखाने की कोशिश कर रही थी । क्यू के उसके गीले बड़े बड़े वक्ष और उसके भरे चुतड उस सफ़ेद साडी में साफ पता चल रहे थे ।

देवरानी अपने आप को आईने में देख का मन में बोली बलदेव तो मुझे ऐसा देख आंखों से पी ही जाएगा ।

फिर भी देवरानी हिम्मत कर के स्नान गृह से बाहर आती है और अपने कक्ष के साथ छोटे से कक्षा में दखिल होने के लिए फुर्ती दिखाती है। आहट सुन कर और देवरानी को तेजी से चलते हुए देख।

बलदेव: माँ!

और देवरानी पलट कर बलदेव को देखती है और फिर कुछ समय के लिए अपने कदम रोक लेती है।

जिसे देख बलदेव की सांसे रुक जाती है।, देवरानी का भरी गंड पतले से कपड़े में चिपकी हुई साफ दिख रही थी और उसके दूध पर बंधे कपडे से दिख रहे उसके स्तन थान किसी गे के थनो से कम नहीं थे।

देवरानी: मैं अभी आई. पुत्र!

और तेज गति से अपने कक्ष में घुस जाती है।

बलदेव उसके चूतड़ों की थिरकान देख सहम जाता है।

बलदेव: तुम सचमच काम देवी हो, तुम्हारा अंग-अंग इस बात की गवाही दे रहा है।

बलदेव अपने खड़े लंड को हाथ से सहला कर "धैर्य! सब मिलेगा!"

देवरानी अंदर जा कर अपनी साँसों पर काबू पाती है और साडी पहनने लगती है।

" हाये राम! कसम से आज तो खा जाने वाली नज़र से देख रहा था । अगर थोड़ी देर वैसी ही वहा रह जाती तो बलदेव तो मेरे साथ जबरदस्ती भी कर सकता था फिर वह आपको-आपको संवारती है।

"जरा अपने आपको देख" देवरानी तू है ही ऐसी की कोई भी प्यासा तेरे जैसा कुवा देख अपनी बाल्टी डाल के पानी निकाल कर प्यास बुझाने जरूर आएगा। "

वो अब तैयार हो जाती है और अपने कक्ष से बाहर निकलती है।

बलदेव सजी संवरी अपने बालो के लटो को सुलझती देवरानी को देखता रह जाता है और उसका पहले से खड़ा लौड़ा फूलने लगता है।

देवरानी अदा से चलती हुई आती है और देखती है कि बलदेव उसे घूरे जा रहा है।

बलदेव के पास जा कर!

देवरानी: क्या हुआ लल्लू?

बलदेव: तुमने क्या कहा?

देवरानी: मैंने कहा लल्लू अपना मुह बंद करो! मछर घुस जाएगा!

और मुस्कुराने लगती है!

बलदेव रुको अभी बताता है। कौन है? लल्लू! और देवरानी चहकते हुए वह से भागती है और देवरानी उसे छेड़ने के बाद दूर जाने लगती है।

भागते हुए देवरानी के डोनो बड़े थन मस्ती में झूल रहे थे और कमर के नीचे की लचक ऐसी थी की दोनों चुतडो की दरार के बीच अगर कुछ आ जाए तो पिस जाएगा और चूर-चूर हो जाएगा!

बलदेव देवरानी के पीछे-पीछे भागता रहा । भागते-भागते आखिर कार देवरानी थक जाती है और एक जगह रुक जाती है और बलदेव उसे पीछे से आकर पकड़ लेता है।

बलदेव अपना हाथ देवरानी की कमर पर रख कर देवरानी को अपना ओर दबाता है। फिर अपने हाथ को उसके स्तन के नीचे के हिस्से पर ले जाता है। जहाँ पर देवरानी उसका हाथ अपने हाथों से रोक लेती है। अब बलदेव का हाथ देवरानी के दोनों वक्ष के नीचे था और उसके हाथ के ऊपर देवरानी का हाथ था और देवराबी अपने हाथ से बलदेव के हाथ को सहला रही थी।

ये देख कर की देवरानी ने उसका हाथ अपने दूध तक जाने नहीं दिया!

बलदेव: (मन में) "सयानी घोड़ी!"

अब बलदेव अपना लौड़ा देवरानी की गांड पर गोल-गोल घुमाता है और देवरानी एक दम एक अलग ही नशा महसूस करती है।

बलदेव: (मन मैं) "वाह क्या माल है! और ऐसा माल जो दिन रात चोदने लायक है। ऐसे माल को मेरे पिता राजपाल जैसा मुर्ख ही ऐसे छोड़ सकता है।" कितनी तड़पी है। इतने बरसों से ये घोड़ी। "

बलदेव: अब बोलो कौन है। लल्लू!

और उसकी गांड पर, अपने लौड़े से एक बार हल्का झटका देता है।

देवरानी: उह! ओह! तुम नहीं हो, तुम तो बली हो!

बलदेव को याद आता है। के वह मेले में खुद को बली और माँ को रानी और दोनों को पति पत्नी बताया था।

बलदेव खुश हो कर ।

बलदेव: हाँ अगर में बली हूँ तो तुम रानी हो!

देवरानी एक झटके से उससे छूटती है।

देवरानी: बड़ा आया रानी बनाने वाला, एक दिन याद रखता है। दूसरे दिन भूल जाता है।

बलदेवः तुम्हें रानी नहीं महारानी बनाऊंगा!

देवरानी: देखेंगे! वह तो वक्त ही बताएगा! अभी चलो!

देवरानी आज शुक्रवार का सूर्य पूजन करने नदी तट पर जाने के लिए अपनी पूजा की सामग्री ले लेती है। और अपने बेटे के साथ जाने लगती है।

सूर्य की पहली किरण के साथ नदीतट पर देवरानी अपनी पूजा में लग जाती है और भजन गाने लगती है। फिर श्लोक पढ़ कर दिया जल अपर्ण कर सूर्य देवता की पूजा करती है।

कुज 20 मिनट तक पूजा चलती है। पूजा समाप्त होने पर देवरानी बलदेव को बुलाती है। जो थोड़ी दूर पर बैठा देख रहा था।

देवरानी: इधर आजाओ!

बलदेव: आया माँ!

बलदेव नदी के तट पर देवरानी के पास जाता है और देवरानी उसके माथे पर एक तिलक लगाती है। फिर अपने माथे पर भी हल्का सिंदूर डालती है।

बलदेव वापस आकार नदी के तट से थोड़ा दूरी पर बैठ जाता है और देवरानी जा कर नदी में डबकी लगाने लगती है।

बलदेव: (मन में) मेरा पिता जैसा मुर्ख कोई नहीं होगा जो ऐसे माल को छोड़ कुबेरी में रतन सिंह के साथ अय्याशी कर रहा है।

बलदेव: (ज़ोर से) तुम बहुत सुंदर हो! जैसे मेले में किया था वैसे ही एक बार फिर नृत्य कर के दिखाओ!

देवरानी वैसे ही अपना पल्लू ऊपर करती है और खड़ी रहती है।

देवरानी: पर वहाँ गीत और संगीत भी था।

बलदेव: मैं गा देता हूँ ना मां!

देवरानी: तुम्हे मेरा नृत्य इतना पसंद आया।

बलदेव: सिर्फ निर्त्य नहीं तुम भी उतनी ही पसंद हो (ज़ोर से चिल्लाता है।)

ये बात इतने ज़ोर से बोले जाने पर देवरानी हस पड़ती है।

देवरानी: बड़े गीतकर बन गए हो!

बलदेव: तुमने बना दिया है।

बलदेव: चलो में गाता हूँ!

"तोरा ई दो रस गगरी तड़पावे मुझे बेदर्दी!" और देवरानी के भीगे हुए ब्लाउज में फसे उसके दोनों थनो को निहारता है।

देवरानी जान बूझ के अपने दूध नृत्य करने के बहाने आगे को करती है। जिसे देख बलदेव से रहा नहीं जाता और वह भी पानी में उतर जाता है।

देवरानी तुरंत अपना पल्लू ठीक करने लगती है। पर बलदेव उसका पल्लू अपने हाथ से पकड़कर!

"रानी तोरा दो रस गगरी तड़पावे बेदर्दी"

देवरानी को अपनी ओर खीचता है।

और कस के भरे बदन की देवरानी को रगड़ देता है।, उसके दूध बलदेव के सीने से सट जाते है।,

अब थोड़ा दूर हट देवरानी सीधी होती हैं। पर बलदेव अब अपना हाथ उसके बड़े चौड़े गांड के ऊपरी हिस्से पर टीका देता है।

देवरानी अपना दोनों हाथ बलदेव के कंधो पर रखती है और बलदेव की आंखो में देखती है।

देवरानी (मन में) : आह! ये क्या कर रहा है। ये लड़का मेरे बदन की गर्मी को चिंगारी दे रहा।

बलदेव (मन में) : ये तो भीग के ऐसी हो गई हो जैसी नई नवेली दुल्हन! क्या मोटे दूध और बड़ी गांड है। देवरानी तुम्हारे!

बलदेव झट से देवरानी के कमर पर हाथ रख माँ को नीचे आला झुकाता है।, देवरानी अपने पुत्र का सर को अपनी बाजू से पकड़ लेती है।

बलदेव अब कमर पकड़कर देवरानी की चूत का हिस्सा अपने लंड पर दबाने की कोशिश करता है।

उह्ह्ह!

कुछ देर ऐसे ही रखने के बाद देवरानी को अपने आगे झुकाता है और एक हाथ USKI कमर पर रखता है और दूसरे हाथ से देवरानी पर पानी के छींटे मारता है।

अब बलदेव का लौड़ा तन जाता है। है और बलदेव अपनी माँ को अपने ओर खीचता है।

देवरानी जो अब तक मुस्कुरा रही थी और मजे ले रही थी, लौड़ा लगते ही उत्तेजित हो जाती है।

जैसे ही बलदेव का लौड़ा गांड की दरार में जाता है बलदेव अपने खड़े लंड से निशाना बना कर देवरानी पर अच्छे से दबाव बना कर अपनी और चिपका लेता है।

देवरानी के मुह से एक हल्का "उह!" निकल जाता है।

बलदेव के आखे बंद थी इसी का फ़ायदा उठा कर देवरानी खिल खिलाते हुए बलदेव के क़ैद से भाग निकलती है।

अपने बहे फेला कर बलदेव: "रुको माँ"

देवरानी दौड़ कर नदी के तट पर पहुँच कर बलदेव को अपना अंगूठा दिखती है, जिसका मतलब था कि "मैं नहीं आने वाली" और अंगुठा दिखा देती है।

बलदेव और देवरानी के इस हरकत को वही छिपे हुए बद्री और श्याम देख रहे थे जो बलदेव को ढूँढते हुए नदी तक पहुँच गए थे ।

कहानी जारी रहेगी ।

Please rate this story
The author would appreciate your feedback.
  • COMMENTS
Anonymous
Our Comments Policy is available in the Lit FAQ
Post as:
Anonymous
Share this Story

Similar Stories

Cinderella's Submission Ch. 01 Cinderella must submit to her stepfather.in Incest/Taboo
Offspring with Queen Mother Pt. 01 Prince is asked to breed and turns his eyes to queen mother.in Incest/Taboo
After Four Years Indian mother and son satisfy each other.in Incest/Taboo
Chance Reluctant mom submits to her son.in Incest/Taboo
Peakwood University: Orientation Tony never thought his mom would come to college with him.in Incest/Taboo
More Stories