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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 28
नदी के तट पर झाड़ियों में छिपे बद्री और श्याम जो बलदेव को ढूँढते हुए वहाँ आये थे उन्होंने माँ बेटे को रंगरलिया मनाते हुए देख लिया था।
आज शुक्रवार का दिन था और फिर देवरानी अपने बेटे के साथ सूर्य पूजन कर के महल लौट आई, देवरानी के पास अब शनिवार ही बचा था क्यों की शेर सिंहने रविवार को उनका मिलने का दिन तय किया था।
श्याम: ये बलदेव आपने माँ को क्यों ऐसे दबोच रहा है।
बद्री: पता नहीं, ये तो ऐसे प्यार कर रहे हों जैसे माँ बेटा नहीं प्रेमी प्रेमिका हो।
श्याम: हाँ मित्र! दाल में जरूर कुछ काला है।
बद्री: हमें किसी भी निर्णय पर जाने के लये एक बार इस बारे में अच्छे से छान बीन करनी होगी।
फिर दोनों महल वापस आ जाते हैं। जहाँ बलदेव उनसे मिल कर पूछता है।
बलदेव: तुम दोनों कहाँ गए थे।
श्याम: अरे भाई। वह हमने पता किया की तुम महल में नहीं ही तो हम भी पास के उद्यान में टहलने चले गए।
श्याम बलदेव से झूट बोलता है कि वह उद्यान में गए थे कजब्कि असल में दोनों नदी पर गए थे।
बलदेव: मित्र आपको किसी सैनिक को साथ ले जाना चाहिए था ।तुम दोनों के लिए ये राज्य नया है।
बद्री: हम इतने भी कमजोर नहीं हैं युवराज बलदेव!
तीनो मिल कर नाश्ता करने बैठ जाते हैं और देवरानी गरम-गरम नाश्ता और जलेबी ला कर दे रही थी।
श्यामः यार बलदेव! तुम्हें विवाह कर लेना चाहिए।
बलदेव: क्यू भाई। तुम्हें क्यो नहीं करनी चाहिए।
श्याम: अरे मित्र! अगर तुम्हारी होगी तो हमारे पिता भी बिना समय गवाए हमारी भी शादी करवा देंगे।
ये सुन कर देवरानी जो की खाना परोस रही थी कहती है।
देवरानी: क्यों श्याम को शादी की बहुत जल्दी है।
श्यामः तुम्हें कैसी लड़की चाहिए, बलदेव?
ये सुन कर बलदेव एक नजर देवरानी की ओर देखता है।
देवरानी ये देख कर थम जाती है और हल्का आंखों को नीचे कर लेती है।
बलदेव: (मन में) अब तुम लोगों को क्या पता तुम्हारी भाभी तुम्हारे सामने ही है।
देवरानी: (मन में) ये बलदेव ऐसे घूर रहा है। जैसे अभी सात फेरे ले लेगा और लज्जा जाती है।
श्याम: चुप क्यू हो बलदेव?
देवरानी: बोलो जल्दी कैसी चाहिए हम वैसी ही लड़की तुम्हारे लिए ढूँढेंगे। (चुटकी लेते हुए।)
बलदेव: मुझे संस्कारी पत्नी चाहिए जो मेरे घरवाले का ख्याल रखे जैसा के आप रखती हो मां। भगवान के लिए उसके दिल में श्रद्धा हो। खूब सजने वाली हो। थोड़ी मस्तीखोर हो। वह शरीर से मजबूत हो और प्यार करने से थके नहीं।
देवरानी: अपना जीभ अपने होठ पर फेर कर "प्यार करने से थकती है या नहीं वह तो तुम्हें प्यार कर के मालूम होगा।"
श्याम अरे कोई भी लड़की वाला बलदेव को ऐसे एक दिन में ये जांचने के लिए तो अपनी लड़की नहीं देगा।
बलदेव: पर में अगर लड़की को जनता हूँ तो।
अब देवरानी से सुन कर तो मूरत-सी बन जाती है।
श्याम: हाँ तब हो सकता है। कुछ काम।
बद्री: (मन में) ये साला तो अपनी माँ पर नजर रखे हुए है। क्योंकि इस ने ये सारे गुण तो अपनी माँ के ही गिनाये है।
बद्री: वैसे मित्र हमे अपने विवाह पर न्योता दोगे या नहीं।
देवरानी अब उस फिर रसोई में जाती है।
बलदेव: क्यों नहीं दूंगा मित्र? इसमें कोई शक नहीं है। मित्र विवाह के बाद जितने दिन मन में हो तुम यही रहना।
श्यामः पर विवाह के बाद तुम हमें कहाँ मिलेंगे तुम तो अपनी पत्नी के पल्लू से बंधे रहोगे।
बलदेव: (धीरे से दोनों को कहता है।) पत्नी तो ऐसी दिमाग में है कि विवाह के बाद दो दिन लगतार उसे प्यार करूंगा तब वह शांत होगी।
पर देवरानी अपना कान लगाये सब सुन रही थी और वह बात सुन कर के वह समझ गयी की बलदेव उसके बारे में ही बात कर रहा है। वह अपने दांतो तले उन्गली दबा लेती है।
फिर दुपहर को भी कुछ ऐसी ही छेड़ छाड़ की बाते कर भोजन कर के अपने-अपने कक्ष में जा कर आराम करते है और बलदेव भी आराम कर रहा था।
उसे समय पारस देश मे-
कुछ घोड़ों की फौज एक राज महल की तरफ बढ़ रही थी जिसे देख राज सिंहासन पर बैठा राजा उठ खड़ा होता है। उस फ़ौज में से हवा से तेज़ घुड़सवारी कर तेजी से सबसे आगे राज दरबार की ओर चलने वाला कोई और नहीं शमशेरा था।
सिंहासन पारस के छोटे से राज्य का था जिसका कार्यभार देवराज के कांधे पर था और वह ही वहाँ का राजा था। वह देवराज ही था जो सिंहासन से उठा खड़ा हुआ था। पारस के साथ उन तमाम मुल्को के सुल्तान मीर वाहिद के बेटे शमशेरा के स्वागत के लिए उठा देवराज ही देवरानी का एकलौता भाई था।
देवराज: आईये युवराज प्रणाम! आपका स्वागत है।
शमशेरा: सलाम देवराज जी।
देवराज अपनी सिंहासन की बगल में शमशेरा को बैठाता है।
देवराज: कहिए में आपकी कैसे सेवा करूं।
शमशेरा: हम सुल्तान का पैगाम ले कर आए हैं।
देवराज: क्या संदेश है? युवराज!
शमशेरा: हमें एक ऐसे राज्य का पता चलता है। जो सोने और चांदी से भरा है।
देवराज: कहाँ का राज्य? कौन-सा राज्य?
शमशेरा: ये हिंद का एक राज्य है। कुबेरी!
देवराज: कही ये घटकराष्ट्र के पास वाला राज्य कुबेरी तो नहीं।
शमशेरा: तुमने बिलकुल ठीक पकड़ा।
देवराज: तो क्या करना है।
शमशेरा: देखो अब्बा हुजूर तुम पर बहुत ऐतबार करते हैं। देवराज! और वह ये भी कह रहे थे की हिंद पर फतेह करना देवराज से बेहतर कोई नहीं जानता।
देवराज: पर हमारी तो उनसे कोई शत्रुता नहीं।
शमशेरा: सवाल धन का है, अगर हमने पहले नहीं लूटा उस राज्य को, तो दिल्ली का सुलतान शाहजेब लूट ले जाएगा।
देवराज: शाहजेब से तो मुझे भी मेरे पिता की मृत्यु का बदला लेना है।
शमशेरा: सोच लो अगर तुम कुबेरी राज्य को लूट लेते हो तो शाहज़ेब को तुम बहुत बड़ा झटका दोगे और हो सकता है तुम घाटराष्ट्र को भी उसके साथ ही लूट सको।
देवराज: घाटराष्ट्र पर वहा मेरी बहन देवरानी की विवाह हुआ है।
शमशेरा: मुझे पता है। वह हमेशा तुम्हारे लिए दुआ करती है और तुमसे मिलना भी चाहती है।
देवराज: तुम्हें कैसे पता।
शमशेरा: में उससे मिल कर आया हूँ और घबराओ नहीं हमारी सेनाये देवरानी को कोई नुक्सान नहीं मिलेगी और सुना है तुम्हारा एक भांजा भी है।
देवराज: हं सुना तो मैंने भी है।
शमशेरा: वह अब बड़ा हो गया और वो, तुम से कम शक्तिशाली नहीं है!
देवराज: आपकी जासूसी का कोई तोड़ नहीं है।
शमशेरा: शुक्रिया देवराज। तो तय रहा आप जल्द ही हमारे यहाँ आएंगे फिर हम सब मिल कर हमले की तैयारी करेंगे।
देवराज: जी जरूर!
शमशेरा फिर से अपने घोड़े पर बैठ हवा से बात करते हुए अपने घुड़सवारों की सेना के साथ अपने महल की ओर चल पड़ता है।
एक शानदार महल के आगे अपने घोडे को रोक वह घोडे से कूद कर राज दरबार की यात्रा करता है। जहाँ पर बहुत भीड़ थी, वह अपनी तलवार निकाल कर अपनी सेना को देता है।
शमशेरा: (सैनिक से) जरा इसपर धार लगा कर लाना।
सैनिक: जी हुजूर।
सामने शमशेरा के पिता बैठे थे।
शमशेरा: अस्सलामु अलैकुम सुल्तान!
मीर वाहिद: बेटा शमशेरा आओ।
शमशेराः सर झुका कर सुल्तान का इकबाल बुलंद हो।
मीर वाहिद उठ कर शमशेर को गले से लगा लेता है।
शमशेरा: अब्बा हज़ूर!
मीर वाहिद: बैठो यहाँ मेरे लाल, कैसा रहा सफर।
शमशेरा: बहुत अच्छा।
मीर वाहिद: क्या कहा देवराज ने?
शमशेरा: वह हमारी बात मान गया । वह बहुत जल्दी हमारे यहा आ जायेगा।
"बेटा शमशेरा" ये उसकी माँ थी जो अपने बेटे का आने कीखबर मिलने पर आई थी।
शमशेरा ने मुड़ कर करअपनी माँ को देखा।
जी हाँ यही थी 25 वर्ष शमशेरा की माँ जिसकी उमर 45 वर्ष थी और उसका नाम उसके हुस्न को देख कर रखा गया था हूर जहाँ और प्यार से सभी उसे हुरिया भी कहते थे, वह मिश्र से थी।
हुर जहाँ: बेटा साल भर जासूसी करते रहते हो अपने अब्बा के लिए. कुछ वक्त अपने महल में भी बिताया करो। जब देखो तब जंग की बाते और तयारी करते रहते हो।
शमशेरा: अस्सलामु अलैकुम अम्मी।
हुरिया: वालेकुमसालम! तुम दोनों बाप बेटे एक जैसे हो, जंगी जहाज के लूटेरे और यहाँ पर बैठे सब लोग हसते है।
मीर वाहिद: हाँ इसीलिए तो हम आपको मिश्र से चुरा कर ले आए! और अब फिर से सब हसते हैं।
हुरिया: बूढ़े हो गए पर अक्ल नहीं आई।
हुरिया: बेटा चलो में तुम्हें खाना खिलाती हूँ नहीं तो ये तुम्हारे अब्बा तुम्हें भुखा ही फिर से जंग पर भेज देंगे।
हुरिया अपने बेटे को ले कर अंदर चली जाती है उसे खाना खिलाने के लिए।
कहानी जारी रहेगी ।