जेठ के लंड

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जेठ के लंड ने चूत का बाजा बजाया
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मैं जस्सी हूं. मेरी उम्र 32 साल है, रंग गोरा, हाइट 5 फ़ीट 6 इंच है. भगवान ने मेरा चेहरा भी अच्छा खासा बनाया है. मेरी फिगर साइज 32 डी -- 28 -- 34 है. आप लोग अंदाज़ा तो लगा ही सकते हैं कि मैं दिखने में कैसी लगती हूं.

मैं अपने जेठजी के साथ उनके आफिस के कामों में मदद करती हूं.

कहानी शुरू करने से पहले मैं आप सबको अपने फैमिली के सभी सदस्यों का परिचय दे देती हूं. आप मेरे बारे में तो जान ही गए हैं.

मेरे पति का नाम समीर है. उनकी उम्र 34 साल है, हाइट 5 फ़ीट 9 इंच, एकदम फिट बॉडी है. समीर मेरे लिए वो किसी हीरो से कम नहीं हैं. समीर ने एम बी ए किया है और अभी एक बड़ी कंपनी में मार्केटिंग मैंनेजर के तौर पर काम कर रहे हैं.

मेरे पति के दो भाई हैं. बड़े भाई शेखर हैं, जिनकी उम्र 36 साल है. उनकी हाइट 5 फ़ीट 10 इंच है. उन्होंने खुद को बड़े अच्छे से मेन्टेन करके रखा है. मेरे जेठजी यानि शेखर भैया सी.ए. हैं और उनकी खुद की अपनी एक कंसल्टेंसी फर्म है.

जेठजी की पत्नी श्वेता यानि मेरी जेठानी जी, जिन्हें मैं भाभी ही कह कर बुलाती हूं. उनकी उम्र 34 साल, फिट और स्लिम बॉडी, रंग गोरा और साइज 34-30-34 का है. मतलब मेरी जेठानी जी भी एक भरे बदन ही आकर्षक महिला हैं. श्वेता भाभी हाउसवाइफ हैं और उनका एक डेढ़ साल का बच्चा है.

मेरा देवर सौम्य और देवरानी जानवी ने लव मैरिज की है. जबकि मेरी और श्वेता भाभी की अरेंज मैरिज हुई है.

मैंने पहली बार सेक्स अपनी सुहागरात के समय ही किया था. मेरे पति ने ही मेरे चूत की सील को तोड़ा और उस रात उन्होंने दो बार मुझे जम कर चोदा था. मैं आप सबको अपनी सुहागरात की कहानी बाद में बताऊंगी, अभी मैं अपने जेठजी से कैसे चुद गयी वो चुदाई की कहानी बताने जा रही हूं.

दोस्तो, यह घटना आज से करीब 2 साल पहले की है, जब मेरी जेठानी जी यानि श्वेता भाभी प्रेग्नेंट थीं और उनका छठा महीना चल रहा था. पहला बच्चा गर्भ में होने के कारण वो अपने मायके चली गयी थीं. मेरे पति काम के सिलसिले में 15 दिन के लिए ऑस्ट्रेलिया गए हुए थे और मेरे देवर देवरानी दोनों लंदन में प्रैक्टिस कर रहे थे.

मतलब इस घटना के 5-6 दिन पहले से घर में सिर्फ मैं और मेरे जेठजी ही थे.

यहां मैं आप सबको अपने घर का माहौल भी बताना चाहूंगी ताकि आप सब हालात समझ सकें. जैसा कि मैंने आप सबको पहले ही बताया कि मैं अपने जेठजी के आफिस में उनके कामों में मदद करती हूं और इस वजह से मैं उनके साथ काफी टाइम व्यतीत करती हूं. मेरा ये कहना गलत नहीं होगा कि 24 में 12 घंटे तो मैं अपने जेठजी के साथ ही होती हूं. हम सब, मतलब मेरे पति, जेठजी, जेठानी जी, देवर और देवरानी और मैं, जब सब घर में साथ में होते, तब हम सबके बीच मस्ती मज़ाक, एडल्ट जोक्स वगैरह सब चलता रहता है. फैमिली के सभी मेम्बर्स फ्रेंडली और खुले विचारों के हैं.

कभी कभार आफिस में काम के दौरान जेठजी का हाथ मेरे कूल्हों से भी टकरा जाता था, तो कभी उनकी कोहनी मेरे चूचों से लग जाती थी. मेरे जेठजी ये सब जानबूझ कर करते थे या अनजाने में. ... ये तो मुझे नहीं पता था, पर उसके बाद जेठजी खुद ही शर्म महसूस करने लगते और मुझसे नजरें चुराने लगते, जिससे मुझे लगता कि शायद गलती से हो गया होगा.

मैं भी उन बातों पर ध्यान नहीं देती और अपने काम में लगी रहती.

सच कहूं तो दोस्तो, इतना टाइम साथ में रहने से और साथ में काम करने से मेरे दिल में जेठजी के लिए एक सॉफ्ट कार्नर बन गया था. वो कहते हैं ना कि एक मर्द और एक औरत जब काफी टाइम एक दूसरे के साथ बिताते हैं, तो उनके मन में सामने वाले के लिए कुछ ना कुछ फीलिंग्स तो आ ही जाती हैं. यही सब मेरे साथ भी हुआ था.

पर जेठजी का क्या हाल था, ये मुझे नहीं पता था.

जेठजी हमेशा की तरह ही रहते, उनके मन में क्या चलता, मैं कभी समझ ही नहीं पाती. ना ही कभी जेठजी ने ऐसी वैसी हरकत की, जिससे मैं कुछ समझ पाती ... और ना ही कभी मेरे मन में जेठजी के साथ ऐसा कुछ करने का ख्याल आया था.

इसका एक कारण ये भी था कि हम दोनों के पास अपने शरीर की जरूरतों को पूरा करने का विकल्प मौजूद था. मेरे पति जब भी घर पर होते, तो ऐसी कोई रात नहीं होती ... जिसमें मेरी चुदाई न होती हो. और सच कहूं, तो मेरे पति मुझे पूरी तरह संतुष्ट भी कर देते हैं. कभी कभी तो 2-2 बार चोदते हैं. मैं थक जाती पर मेरे पति नहीं थकते हैं. पता नहीं क्या खाकर आते और फिर मेरी चीख निकाल कर ही छोड़ते.

श्वेता भाभी से बातचीत में पता चलता कि जेठजी का भी वही हाल है, वो भी एक बार शुरू हो जाते, तो रुकने का नाम नहीं लेते. मतलब ये कि हम दोनों अपनी सेक्स लाइफ से खुश थे.

उस समय यही अगस्त सितम्बर का महीना चल रहा था. श्वेता भाभी को मायके गए यही कोई 15-20 दिन हुए थे और मेरे पति को ऑस्ट्रेलिया गए 5-6 दिन हुए थे. मेरा दिन तो आराम से कट जाता, पर रात को पति की याद सताने लगती. जिस चूत को रोज लंड का चस्का लगा हुआ हो ... और लंड भी ऐसा जो चूत से पानी निकाल कर ही दम लेता हो. फिर उस चूत को लंड के बिना कैसे चैन पड़ता.

रात होते ही मेरी चूत में आग लग जाती और उस आग में घी का काम करता. मेरे पति का फ़ोन पर रोमांटिक बातें करना और मेरा अन्तर्वासना साईट की गरमगरम चुदाई की कहानी पढ़ना.

मैं आफिस से थोड़ा जल्दी चली आती क्योंकि मुझे खाना भी बनाना होता और घर पर पहुंच कर कामों के बीच अपने पति से बातें भी करती. जिनकी ज़िंदगी में किसी बात का टेंशन न हो और सब कुछ अच्छा चल रहा हो, तो वो अपने पति या पत्नी से कैसी रोमांटिक बातें करते हैं, ये आप सबको बताने की जरूरत नहीं है. आप सब ये तो जानते ही हैं ... मेरा भी वही हाल था.

अक्सर पति से बातों के दौरान ही मेरी चूत गीली हो जाती ... और रही सही कसर अन्तर्वासना पूरी कर देता. मैं घर या आफिस के कामों से जब फ्री होती, तब अन्तर्वासना पर कोई ना कोई कहानी पढ़ लेती.

उस दिन भी मैं आफिस से जल्दी निकल गयी, पर रास्ते में अचानक हुई बारिश की वजह से मैं भीग गयी. घर पहुंच कर मैंने तुरंत ही कपड़े बदले और जल्दी जल्दी में श्वेता भाभी की नाइटी को पहन लिया. जल्दी जल्दी में कहो या फिर जानबूझ कर ... क्योंकि मुझे पता था कि भाभी 4-5 महीने से पहले तो आने वाली हैं नहीं ... और कौन सा मैं रोज़ उनकी नाइटी पहनने वाली हूं. ये तो बस सामने दिख गई, तो पहन ली. मैं अपने कामों में लग गयी. कामों के दौरान पति से बातें भी हुईं और चूत कुछ ज्यादा ही गीली भी हो गई. क्योंकि उस दिन पति भी कुछ ज्यादा ही रोमांटिक हो रहे थे.

मैंने जैसे तैसे छोटे मोटे कामों को खत्म किया और घड़ी की तरफ देखा, तो 10 बजने वाले थे. मतलब जेठजी के आने का समय हो चुका था. पर अभी तक मैं खाना बना नहीं पायी थी.

मैं फटाफट खाना बनाने में लग गयी. थोड़ी ही देर में दरवाजा खुलने की आवाज आयी. मैं समझ गयी कि जेठजी आ गए ... मुझे मालूम था कि जेठजी आने के बाद सीधा अपने बेडरूम में जाएंगे. फिर फ्रेश होकर हॉल में बैठकर टीवी देखेंगे. इसलिए मैं और जल्दी करने लगी.

अभी 5-7 मिनट ही बीता होगा और मैं रोटी बनाने में लगी हुई थी, इतने में किसी ने पीछे से आकर मुझे अपनी बांहों में भर लिया और मेरी गर्दन को चूमते हुए आवाज आने लगी- ओह श्वेता ... मेरी जान ... मुझे पता था कि तुम भी मेरे बगैर नहीं रह सकती ... जितना मैं यहां तड़प रहा था, उतना तुम भी तड़प रही होगी वहां! इसलिए तुम वापस आ गयी ना?

इतना बोल कर उन्होंने ने मुझे अपनी तरफ घुमा दिया.

आवाज से ही मैं पहचान गयी कि ये तो जेठजी हैं और शायद भाभी की मैक्सी की वजह से इन्होंने मुझे श्वेता भाभी समझ लिया. पर मेरे कुछ बोलने के पहले ही जेठजी शुरू हो गए और मुझे कुछ बोलने में मौका ही नहीं मिला.

मेरी और श्वेता भाभी की लगभग सेम हाइट और फिगर होने की वजह से पीछे से पहचाना थोड़ा मुश्किल है ... और उस मुश्किल को भाभी की नाइटी ने और बढ़ा दिया था.

मुझ पर नज़र पड़ते ही जेठजी एकदम शॉक्ड हो गए ... और मुझे छोड़कर पीछे हटते हुए अपनी झिझक दिखाने लगे.

जेठजी- ज..जस्सी, तुम?

इसके बाद जैसे जेठजी के होंठ सील से गए, वो पता नहीं किस कशमकश में उलझ से गए. मैं तो पहले से ही सुन्न पड़ गयी थी और चुपचाप सिर नीचे झुकाकर खड़ी थी. मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ ... क्या कहूं? और उनकी इस हरकत पर कैसे रियेक्ट करूं?

जेठजी का तो पता नहीं, पर मेरे दिमाग में यही सब चल रहा था ... अभी मैं यही सब सोच ही रही थी कि इतने में जेठजी बोले- सॉरी जस्सी, मुझे लगा कि श्वेता वापस आ गयी है और उसे सरप्राइज देने के चक्कर में मैं तुमसे ...

इतना कह कर जेठजी चुप हो गए. उसके आगे वो क्या कहना चाहते थे, मैं भी समझ गयी थी. हम दोनों अपनी जगह पर जम से गए थे ... कुछ देर चुप रहने के बाद जेठजी ने फिर से बोलना शुरू किया.

जेठजी- आज ही बात हुई थी मेरी श्वेता से ... और उसने बोला था कि आज वो मुझे सरप्राइज देगी ... और पीछे से तुम्हें देखा, तो मुझे लगा कि वो यहां आकर मुझे सरप्राइज देने वाली है. इसलिए मैं पीछे से आकर उसे सरप्राइज देने का सोचा.

अभी जेठजी बोल ही रहे थे कि इतने में जोरदार चमक और आवाज के साथ आसमानी बिजली कड़की और मैं भागकर जेठजी से कसकर चिपक गयी. मैं कुछ समझती कि ये मैंने क्या किया ... या खुद को संभालती, उससे पहले ही 2-3 बार और आवाज के साथ बिजली कड़की. हर आवाज और चमक के साथ मेरी पकड़ भी मजबूत होती गयी.

कुछ देर तक तो जेठजी एकदम खंभे के जैसे खड़े रहे, शायद जो कुछ हुआ पिछले एक मिनट में वो सब उनके लिए भी किसी सरप्राइज से कम नहीं था. डर के मारे मैं तो पहले से ही उनकी बांहों में सिकुड़ी हुई थी. मैं कुछ समझ पाती, उसके पहले ही जेठजी ने शायद मुझे संभलने के लिए या मौके का फायदा उठाने के लिए मेरी पीठ को हल्के हल्के सहलाने लगे. कभी वो मेरे बालों को सहलाते, तो कभी मेरी पीठ को. उनका सहलाना मुझे भी अच्छा लगने लगा. मेरे मन में अभी भी अजीब उधेड़बुन चल रहा था ... जैसे कि क्या ये जो कुछ हो रहा है, वो सही है! मुझे जेठजी को रोकना चाहिए या नहीं ... और इसके बाद क्या होगा?

दोस्तो, यहां मैं आप सबको एक बात बताना चाहूंगी कि मेरे पति और श्वेता भाभी के बीच भी शारीरिक संबंध थे और ये बात मेरे पति ने मुझे शादी से पहले ही बता दिया था. शादी के बाद श्वेता भाभी से पता चला कि जेठजी भी ये बात जानते हैं.

अब किसी के इतना पर्सनल बातों को जानने के बाद आपका नज़रिया तो थोड़ा बहुत तो बदल ही जाता है. जैसा कि मैंने पहले ही बताया कि ज्यादा टाइम साथ में होने से और ये सब बातें जानने के बाद मेरा भी नज़रिया जेठजी को लेकर थोड़ा तो बदल ही गया था. शायद जेठजी का भी नज़रिया मेरे लिए बदल गया हो ... क्योंकि उन्हें तो सब कुछ पता ही था ... जैसे उनका भाई उनकी बीवी को चोदता है. शायद वैसे ही वो भी अपने भाई की बीवी को चोदना चाहते हों. पर जेठजी ने ऐसा कुछ मेरे सामने कभी जाहिर नहीं किया.

मैं अभी भी अपना सर उनके सीने में ही छुपा कर खड़ी थी ... और जेठजी मेरी पीठ सहला रहे थे. जैसे जैसे टाइम बीतता गया, वैसे वैसे मेरी पकड़ ढीली पड़ती गयी. पर ना तो मैंने जेठजी से अलग होने की कोशिश की ... और ना ही जेठजी ने मुझे अलग किया.

जेठजी का हाथ अभी भी मेरी पीठ पर ही था. मैंने सर उठाकर जेठजी को देखने का सोचा, पर जैसे ही मैंने अपना चेहरा उनके चेहरे की तरफ किया. हम दोनों के होंठ एक दूसरे के होंठों के ठीक पास आ गए. मैं उनकी सांसें अपने चेहरे पर महसूस कर रही थी. मेरा गला एकदम सूख गया और दिल की धड़कन बढ़ गयी.

सच कहूं तो मैं अब जेठजी या खुद को रोकने के बिल्कुल मूड में नहीं थी. मैं बस इंतजार कर रही थी कि कब जेठजी पहल करें. अगर वो ऐसा करते, तो मैं उन्हें नहीं रोकती ... क्योंकि अभी थोड़ी देर पहले ही मेरे पति ने बातों से ही मेरी चूत को गीला कर दिया था. अभी वो आग ठंडी हुई भी नहीं थी कि इतने में ये सब हो गया. इस घटनाक्रम ने उस आग में चिंगारी का काम किया था. मतलब ये कि मैं एक बार फिर से गीली होना शुरू हो गयी थी ... पर जेठजी ने कोई पहल नहीं की.

कुछ देर तक जेठजी की सांसें महसूस करने के बाद ... या यूं कहूं कि जेठजी के पहल का इंतजार करने के बाद मैंने फिर से अपना सर झुका लिया.

मैं समझ गयी थी कि शायद जेठजी भी मेरी तरह अभी भी उलझन में ही हैं. इसलिए मैंने फिर से अपना सर उनके सीने से लगा दिया. ये मेरी तरफ से जेठजी के लिए एक इशारा था और जेठजी भी शायद मेरा इशारा समझ गए.

कुछ देर तक जेठजी ने कोई हरकत नहीं की और मैं भी वैसे ही खड़ी रही. उसके कुछ देर बाद मैंने जेठजी के हाथों में हलचल को महसूस किया. पहले जेठजी अपना हाथ सिर्फ मेरे कंधे और पीठ पर ही सहला रहे थे, पर अब उनका हाथ मेरी पीठ से होकर मेरी कमर और कूल्हों तक आने लगा था. उनका हाथ जैसे जैसे मेरी कमर और कूल्हों पर आने लगा, वैसे वैसे मेरी धड़कन और सांसें बढ़ने लगीं.

मैंने एक बार फिर अपना सर उठाकर जेठजी के चेहरे को देखा. जेठजी भी मेरे चेहरे को देख रहे थे. उनकी आंखें जैसे मुझसे आगे बढ़ने की इजाज़त मांग रही थीं. उनका हाथ मेरे कूल्हे पर रुक सा गया था. मैं फिर से अपना चेहरा नीचे करने ही वाली थी कि जेठजी ने मेरे चेहरे को दूसरे हाथ से रोक लिया. कुछ देर तक हम बस एक दूसरे की आंखों में देखते ही रहे, जैसे एक दूसरे की मन की बात समझने की कोशिश कर रहे हों.

मैं तो जेठजी के मन की बात नहीं समझ सकी, पर शायद जेठजी मेरे मन की बात समझ गए और उन्होंने आगे बढ़कर अपने होंठों को मेरे होंठों से लगा दिया.

सच कहूं तो उस वक़्त मुझे अच्छा भी और अजीब भी लगा क्योंकि मन तो मेरा भी आगे बढ़ने का कर रहा था, पर जेठजी के साथ कैसे करूं इसलिए मैं कुछ समझ ही नहीं सकी कि क्या करूँ?

मैं तुरंत ही जेठजी से अलग होकर दूर खड़ी हो गयी और उनकी तरफ पीठ करके खुद को संभालने लगी.

अभी मैं अपनी सांसों को संभाल भी नहीं पायी थी कि इतने में जेठजी फिर से पीछे से आकर मुझसे चिपक गए और मेरी गर्दन के पीछे वाले हिस्से को चूमने लगे. मुझे अपने कूल्हों के पास हल्के हल्के झटके भी महसूस होने लगे. मेरे जेठजी का लंड शायद अपने रौद्र रूप में आने लगा था.

अब मेरा खुद को कंट्रोल कर पाना मुश्किल होने लगा. मेरी सांसें फिर से उखड़ने लगीं. पर अभी भी मेरे दिल और दिमाग में सही और गलत के बीच जंग सी चल रही थी. दिल कह रहा था कि आगे बढ़ कर चूत की खुजली मिटा लूं और दिमाग कह रहा था कि रिश्ते की मर्यादा बनी रहने दूं.

इतने में जेठजी ने मुझे घुमा कर अपनी तरफ सीधा कर लिया और मुझसे चिपक गए. मैं अपने कमर के नीचे के भाग पर जेठजी का लंड महसूस कर रही थी, जो बार बार झटके ले रहा था.

आप सब तो उस वक़्त की मेरी मनोदशा समझ ही सकते हो कि जो औरत रोज़ मज़े से लंड की सवारी करती हो और पिछले 6-7 दिनों से उसकी चूत लंड के लिए तरस रही हो. उस पर से रोज़ रोज़ पति से बातों के दौरान, जिसकी चूत गीली होती हो, उसके सामने खड़ा लंड फुफकार रहा हो, तो वो चुदासी औरत क्या करती.

फिर भी मैंने अधूरे मन से जेठजी को रोकने की कोशिश की, पर गीली चूत और जबान लड़खड़ाने की वजह से मैं सिर्फ इतना ही बोल सकी- जेठजी प्लीज ... रुक जाइये!

पर मेरी बात का जेठजी पर बिल्कुल भी असर नहीं हुआ. जेठजी पर कामवासना सवार हो चुकी थी और उन्होंने मुझे और कसकर अपने से चिपका लिया.

वो मेरे गाल कान और गर्दन को चूमते हुए बोले- ओह्ह जस्सी, प्लीज अब मत रोको.

इतना बोल कर जेठजी ने मेरी नाइटी के ऊपर का बटन खोल कर नाइटी को कंधे से सरका दिया और मेरे कंधे को भी चूमने लगे. थोड़ी गरम तो मैं पहले से ही थी, पर उनकी इस हरकत की वजह से और गर्म हो गयी. मैंने भी जेठजी का चेहरा पकड़ा और उनके होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

उसके बाद तो जैसे मेरे और जेठजी के होंठों के बीच जंग सी छिड़ गई. कभी मैं उनके होंठों को चूसती, तो कभी जेठजी मेरे होंठों को चूसते. कभी जेठजी अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल देते, तो कभी मैं उनके मुँह में अपनी जीभ घुसेड़ देती. हम दोनों एक दूसरे की जीभ और होंठों को चूसने में लग गए थे.

मेरे हाथ तो अभी भी जेठजी के चेहरे पर ही थे, पर जेठजी के हाथ मेरे पिछवाड़े का अच्छे से माप ले रहा था. कभी पीठ का तो कभी कमर तो कभी कूल्हों का इलाका चैक किया जाने लगता था. बीच बीच में जेठजी मेरे कूल्हों को अपने मुठ्ठी में भरने की कोशिश भी करते, पर मेरे कूल्हे उनकी मुठ्ठी में आ नहीं पा रहे थे तो वो मेरे कूल्हों को दबा देते.

ये सिलसिला करीब 5-7 मिनट चला, उसके बाद मैं उनकी बांहों में घूम गयी ताकि अब वो मेरे पिछवाड़े को भी अपने होंठों से प्यार कर सकें. मेरा इशारा जेठजी समझ गए और वो मेरी गर्दन से शुरू हो गए, साथ ही उनका हाथ अब मेरे पेट को सहलाने लगा.

थोड़ी ही देर में जेठजी के हाथ पेट से सीधा मेरे चूचों पर आ गए और वो मेरे चूचों को कपड़ों के ऊपर से ही अपनी मुट्ठी में भर कर दबाने और मसलने लगे.

जेठजी का लंड मेरे कूल्हों के बीच अपनी जगह बनाने में लगा हुआ था, पर कपड़ों की वजह से जगह ना मिल पाने से शायद गुस्से में बार बार अकड़ भी रहा था. जेठजी कभी गर्दन तो कभी कंधे को चूमने और चाटने में लगे थे. उनकी इन सब हरकतों को मैं भी एन्जॉय कर रही थी.

मेरी मैक्सी के ऊपर का बटन खुला होने की वजह से मेरी पीठ आधी नंगी हो चुकी थी, तो बीच बीच में जेठजी मेरी ब्रा के स्ट्रिप को अपने दांतों से पकड़ कर खींचते, फिर छोड़ देते जो चट की आवाज के साथ मेरी पीठ से फिर से चिपक जाता. इससे थोड़ा दर्द तो होता, पर उस दर्द में भी मज़ा आ रहा था.

करीब 10 मिनट तक मेरी आधी खुली पीठ, गर्दन और कंधों को अच्छे से चूमने और चाटने के बाद जेठजी ने मुझे फिर से अपनी तरफ घुमा लिया और मेरे होंठों को चूसने लगे. मैं भी 'क्या गलत है और क्या सही' इस सबके बारे में सोचना छोड़ कर उनका पूरा साथ दे रही थी.

सच कहूं तो उस वक़्त मैं कुछ भी सोचने के मूड में भी नहीं थी. और जेठजी को देखकर लग रहा था कि उनका हाल भी मेरे जैसा ही है. हम दोनों ही कामवासना में अंधे हो चुके थे.

मैं जेठजी से चिपके चिपके ही उन्हें रसोई के स्लैब तक खींच कर ले गयी और स्लैब का सहारा लेकर खड़ी होकर जेठजी का साथ देने लगी. अभी भी हमारे होंठ एक दूसरे के होंठों से उलझे हुए थे और हाथ एक दूसरे के पिछवाड़े पर जमे थे.

कुछ देर बाद जेठजी एकाएक रुक गए और अपना चेहरा ठीक मेरे चेहरे के सामने करके मेरी आंखों में देखने लगे जैसे मेरी आंखों से मेरी मन की बात समझने की कोशिश कर रहे हों. कुछ सेकेंड्स तक मैंने भी उनकी आंखों से आंखें मिलाने की कोशिश की, पर जल्दी ही शर्म के मारे मैंने अपनी आंखें झुका लीं.

उसके बाद जेठजी ने मुझे कमर से पकड़ कर रसोई के स्लैब पर बैठा दिया और फिर से मेरे चेहरे को ठुड्डी के सहारे उठा कर मेरे होंठों को चूमने लगे. साथ ही अपने दोनों हाथों से मेरे मैक्सी के अन्दर से डाल कर मेरी कमर को सहलाने लगे. बीच बीच में वो अपनी उंगलियां मेरी पैंटी की इलास्टिक में फंसा कर मेरी कमर के चारों ओर घुमा देते.

मैं समझ रही थी कि अब जेठजी क्या चाहते हैं.. पर मैं अपनी तरफ से कोई पहल नहीं करना चाहती थी. इसलिए मैं अनजान बनकर किस करने में ही लगी रही. उधर जेठजी के शॉर्ट्स में बना तंबू मेरे घुटनों से रगड़ रहा था.

एक दो बार वैसे ही उंगलियां घुमाने के बाद जेठजी ने अपना पूरा पंजा मेरी पैंटी के अन्दर घुसा दिया और मेरे चूतड़ सहलाने लगे. कुछ देर तक मेरे चूतड़ों को सहलाने के बाद जेठजी की उंगलियां फिर से मेरे पैंटी की इलास्टिक पर आकर कुछ देर के लिए रुक गईं. फिर धीरे धीरे जेठजी मेरी पैंटी को नीचे की ओर सरकाने लगे.

थोड़ा नीचे आने के बाद जेठजी को पैंटी को निकालने के लिए मेरे सहयोग की जरूरत थी. मैंने भी अपने हाथों का सहारा लेकर अपने शरीर को थोड़ा ऊपर उठा दिया. मेरा सहयोग मिलते ही जेठजी ने जल्दी से मेरी पैंटी को खींच कर निकाल दिया. और वहीं बगल में फेंक दी. अब मैं ऊपर से तो ढकी हुई थी पर नीचे से पूरी तरह नंगी थी. शर्म की मारे मैंने अपनी दोनों जांघों को आपस में चिपका लिया और खुद फिर से जेठजी से चिपक गयी.

कुछ देर बाद जेठजी ने मुझे खुद से अलग किया और मेरी गोरी गोरी जांघों को सहलाने लगे. उनके छूने से मुझे गुदगुदी होने लगी, इसलिए मैंने उनका हाथ पकड़ कर हटा दिया. अभी तक जेठजी दूसरे ऐसे इंसान थे, जिसने मुझे ऐसी हालत में देखा और मेरे खास अंगों को छुआ था.

जेठजी ने अपनी हाथ मेरी कमर के पीछे ले जाकर मुझे मेरे चूतड़ों से पकड़ कर स्लैब के किनारे तक खींच लिया और मेरी दोनों टांगों को घुटने से मोड़कर स्लैब पर टिका दिए. आप सब मेरी उस पोजीशन को इमेजिन तो कर ही सकते हैं और उस पोजीशन में मेरी चूत पूरी तरह खुल गयी थी. मैंने अपनी चूत छुपाने की कोई कोशिश भी नहीं की. जब जेठजी से चुदवाने का सोच ही लिया है, तो उनसे शर्माना कैसा.

मेरी आंखें अभी भी जेठजी का लंड देखने को लालायित थीं.. क्योंकि अभी तक मैंने उनका लंड नहीं देखा था, जो शॉर्ट के अन्दर से ठीक ठाक ही लग रहा था. मैं उम्मीद कर रही थी कि जेठजी का लंड मेरे पति के लंड से बड़ा और मोटा ना सही.. पर उनके जैसा होना चाहिए. वैसे आप सबको बता दूं कि मेरे पति का लंड साढ़े सात इंच लंबा और तीन इंच मोटा है.

जेठजी ने अब अपना हाथ ठीक मेरी चूत की भगनासा पर रख दिया और उसे हल्के हाथों से मसलने लगे. लंड से मिलने के उम्मीद में मेरी चूत की हालत तो पहले से ही खराब थी, बेचारी पिछले 15-20 मिनट से पानी पानी हुई थी क्योंकि पिछले 15-20 मिनट से ही चुम्मा-चाटी का दौर चल रहा था. उस पर जेठजी अब चूत से खेलने भी लगे थे.

मैं और मेरी चूत कब तक बर्दाश्त करते ... और कब तक मैं अपनी फीलिंग छुपा कर रख पाती. आखिरकार मेरे सब्र का बांध टूट गया था. मेरे मुँह से सिसकारी निकलने लगी थी.

धीरे धीरे जेठजी अपने उंगलियों का दबाव मेरी चूत के दाने पर बढ़ाते गए और मेरी सिसकारियां अपने आप ही बढ़ती गयी. बीच बीच में जेठजी अपनी उंगली चूत की छेद में घुसा देते या चूत की फांकों के बीच ऊपर नीचे कर देते जो मेरे आनन्द को और बढ़ा देता.. और मेरे मुँह से कभी आह तो कभी सिसकारी निकल जाती. मैं अपनी आंखें बंद करके उस आनन्द को महसूस कर रही थी. आनन्द के मारे ऐसा लग रहा था कि मैं किसी भी वक़्त झड़ जाऊंगी.

कुछ देर तक मेरी भगनासा को मसलने और रगड़ने के बाद अचानक जेठजी रुक गए और थोड़ा दूर होकर कुछ करने लगे. मैं आंखें खोलकर देखती, उससे पहले ही जेठजी फिर से मेरे पास आ गए. अब मैं अपनी कमर के नीचे के हिस्सों पर जेठजी का नंगा स्पर्श महसूस कर रही थी. मतलब जेठजी भी अब नीचे से पूरे नंगे हो चुके थे.

मैं सोच रही थी कि जेठजी अब मुझे अपना लंड चूसने को बोलेंगे या फिर मेरी चूत को चाटेंगे. जेठजी का तो पता नहीं, पर मुझे लंड चूसने में और चूत चटवाने दोनों में बहुत मज़ा आता है. पर अभी शर्म और झिझक की वजह से मैं अपने मन की बात जेठजी को कह न सकी और जेठजी ने ऐसा कुछ किया ही नहीं.

उन्होंने हाथ से अपना लंड पकड़ कर मेरी चूत की छेद पर रख कर दो तीन बार अपना लंड चूत के फांकों में ऊपर नीचे किया. इतने से ही मेरे पूरे बदन में जैसे सनसनी सी दौड़ गयी और चूत झरने के जैसे बहने लगी. सीत्कार के रूप में मेरे मुँह से बस 'आह..' ही निकल सका. एक हल्के से धक्के के साथ वो मुझमें समा से गए. चूत गीली होने के कारण न तो उन्हें कोई दिक्कत हुई और न ही मुझे.

फिर 4-5 हल्के धक्कों में ही जेठजी का लंड पूरी तरह मेरी चूत में समा गया.

'आह हहहा ...' उस पल को शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता. अब जाकर मुझे और मेरी चूत दोनों को सुकून मिला. जब जेठजी का लंड पूरी तरह से मेरी चूत में घुसा, तब मुझे अहसास हुआ कि जेठजी का लौड़ा मेरे पति से बड़ा है. अब मेरे मन को और भी ज्यादा शांति मिली.

अभी तक हम दोनों एक दूसरे की आंखों में ही देख रहे थे. मनमाफिक लंड मिलने की खुशी में मैं खुद अपना चेहरा आगे बढ़ा कर जेठजी के होंठ चूमने लगी. जेठजी शायद मेरी ख़ुशी समझ गए और वो अपनी कमर थोड़ा तेज़ चलाने लगे.

जैसे जैसे लंड के धक्कों की स्पीड बढ़ने लगा, वैसे वैसे मेरा शरीर भी हिलने लगा और उस वजह से एक दूसरे के होंठों पर एकाग्रता बनाना मुश्किल होने लगा. इसलिए मैंने खुद ही अपने होंठ जेठजी के होंठ से हटा लिया और उस पल को एन्जॉय करने लगी.