जेठ के लंड

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फिर मुझे चूमते हुए सोफे पर ठीक उसी तरफ लिटा दिया, जैसे थोड़ी देर पहले वो लेट कर अपना लंड चुसवा रहे थे और खुद ठीक मेरी तरह ही मेरी दोनों टांगों के बीच बैठ गए. जेठजी तो पूरे नंगे हो चुके थे, पर अभी मेरा पजामा निकलना बाकी था. वो पजामा भी ज्यादा देर मेरे शरीर पर रह न सका क्योंकि जेठजी ने पजामे को खींच कर मेरे टांगों से अलग कर दिया.

पैंटी मैंने पहनी नहीं थी. अब हम दोनों जेठ बहू एकदम जन्मजात नंगे हो चुके थे और मेरी चूत ठीक जेठजी के चेहरे के आगे थी. जैसे ही इस बात का एहसास हुआ, मैंने खुद का चेहरा अपने ही हाथों से छुपा लिया और अपनी दोनों टांगों को एक दूसरे से चिपका दिया. वैसे शर्म लिहाज़ तो मैं त्याग ही चुकी थी, पर फिर भी पता नहीं क्यों ... मैं ये सब करने से खुद को रोक नहीं पायी.

जेठजी ने पहले मेरी दोनों टांगों को पकड़ कर अलग किया, फिर अपनी उंगली चूत के फांकों में फिराने लगे. मेरी चूत तो पहले से ही पानी पानी हुई थी और जेठ जी मेरी चूत के पानी को अपनी उंगली गीली करके चटखारे लेकर चाटने लगे. दो तीन बार वैसा करने के बाद जेठजी ने अपना मुँह ही चुत पर लगा दिया और मेरी समूची चूत अपने मुँह में भर कर झिंझोड़ डाली.

वो चुत के आसपास का इलाका भी चाट चूम रहे थे. मेरी जांघें चाटने लगे, काटने लगे. साथ ही जेठजी अपने दोनों हाथ ऊपर करके मेरे दोनों दूध दबाने लगे, जिससे मेरे निप्पल तन गए और मुझे चूत चुसवाने का मज़ा आने लगा.

मैंने अपने दोनों पैर उठाकर सोफे पर रख कर और फैला दिए जिससे मेरी चूत पूरी तरह खुल गयी. जेठजी ने अपना मुँह मेरी खुली चूत में घुसा दिया और मेरे दोनों चूचे कसकर पकड़ लिए. अब वो मेरी चूत की गहराई में जीभ डाल कर चाटने लगे. मेरी निगोड़ी कमर बेशर्मी से खुद ब खुद ऊपर उठ उठ कर चूत उनके मुँह में देने लगी.

मैंने कहा- आह जेठजी ... बस अब आ जाओ आप!

मेरी उत्तेजना चरम पर थी और मैं बिना वक्त खोये अपनी चूत में लंड लेना चाह रही थी. जेठजी भी मेरी तड़प समझ गए और बिना देरी किए ही लंड को चूत के मुहाने पर सैट करके एक ही झटके में मेरी चूत में अपना पूरा लंड घुसा दिया.

उसके बाद चूत और लंड की लड़ाई शुरू हो गयी और उससे निकलने वाली ध्वनियां वातावरण को और उत्तेजक बनाने लगीं.

अचानक से जेठजी ने अपना लंड चूत से बाहर निकाल लिया और रुक गए. मैंने सवालपूर्ण नज़रों से जेठजी की तरफ देखा, तो वो हल्के हल्के मुस्कुरा रहे थे.

फिर उन्होंने मुझे कुतिया बनने का इशारा किया और मैं अच्छी बच्ची की तरह उनकी बात मान कर कुतिया बन गयी.

जेठजी अपने लंड पर और मेरी चूत पर थूक लगाया और एक ही झटके में पूरा लंड पेल दिया. जेठ का लंड फचाक से चूत में उतर गया.

'उम्म्ह... अहह... हय... याह...'

जेठ जी का मोटा लंड मेरी बच्चेदानी से जा टकराया और वो ताबड़तोड़ चुदाई करने लगे. मैं भी अपनी गांड आगे पीछे करके चुदाई का मज़ा लेने लगी.

"आह और जोर से करो जेठजी." मैं लाज शरम त्याग कर चुदासी होकर बोली और जेठजी और जोर जोर से मुझे चोदने लगे.

मुझे पता था कि जेठजी इतने जल्दी नहीं रुकने वाले क्योंकि जेठजी करीब एक डेढ़ महीने बाद सेक्स कर रहे थे और पहली बार में ही करीब आधे घंटे तक चोदा था, तो ये तो दूसरी बार है. इस बार कम से कम आधा पौना घंटा तो मुझे जरूर चोदेंगे.

हुआ भी वही ... इस दूसरी चुदाई में पता नहीं, मैं कितनी बार झड़ चुकी थी ... और बीच बीच में मेरा मन कर रहा था कि जेठजी हट जाएं, तो मैं लेट कर चैन की सांस लूं, पर जेठजी कहां रुकने वाले थे.

करीब 45 मिनट तक जेठजी ने मुझे अलग अलग आसनों में जबरदस्त तरीके से चोदा ... और फिर मेरे अन्दर ही झड़ कर मेरे बगल में लेट कर सुस्ताने लगे.

उसके बाद तो मुझसे जैसे उठने की हिम्मत ही नहीं बची, इसलिए मैं भी उनके बगल में ही लेटी रही.

कुछ देर बाद हम दोनों उठे और एक साथ जाकर नहाए ... नहाने के टाइम भी जेठजी का लंड फिर से तन गया था पर मुझमें फिर से चुदवाने की हिम्मत नहीं थी इसलिए मैंने उन्हें मना कर दिया.

उस रात और उसके बाद जब तक मेरे पति ऑस्ट्रेलिया से वापस नहीं आ गए तब तक हम दोनों एक ही कमरे में सोते और हर रात जेठजी मेरी चूत का जम कर बाजा बजाते.

अगली रात मैं पूरी दुल्हन की तरह सजी और जेठजी दूल्हे की तरह और पूरी रात में उन्होंने मुझे तीन बार चोदा.

उसके बाद हम कभी कभी तो आफिस निकलने से पहले ... या सुबह ही चुदाई का मज़ा ले लेते और कई बार हमने आफिस में भी चुदाई का मज़ा लिया.

जैसा कि मैंने कहानी के पहले ही बताया था कि मेरे पति और मेरे जेठानी के बीच भी शारीरिक संबंध हैं. वो कहानी भी मैं आप सभी तक पहुँचाऊंगी और उसके साथ साथ ही कैसे मैं अपने देवर से भी चुद गयी और कैसे पिछले होली पर हम सबने मिल कर सामूहिक चुदाई का मज़ा लिया, ये सब आप सबके साथ साझा करूंगी.

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