जेठ के लंड

PUBLIC BETA

Note: You can change font size, font face, and turn on dark mode by clicking the "A" icon tab in the Story Info Box.

You can temporarily switch back to a Classic Literotica® experience during our ongoing public Beta testing. Please consider leaving feedback on issues you experience or suggest improvements.

Click here

जैसे जैसे टाइम बीत रहा था, मेरी चूत की चिकनाहट बढ़ती जा रही थी और जेठजी का लंड पिस्टन की तरह मेरी चूत में अन्दर बाहर हो रहा था. मेरे मुँह से बस 'आहह उम्म्ह... अहह... हय... याह... उम्ह ईईई ...' निकल रहा था.

कुछ देर तक उसी पोज़ में चोदने के बाद जेठजी ने चूत में लंड डाले डाले ही मुझे गोद में उठा लिया और मेरे पैरों में अपने हाथ फंसा कर खड़े हो गए. मैंने भी खुद को संभालने के लिए अपने हाथों का घेरा बनाकर जेठजी के गले में डाल दिया. अब मैं हैंगिंग पोजीशन में आ गयी. जेठजी ने मुझे थोड़ा ऊपर नीचे करके एडजस्ट किया ताकि मेरी चूत का छेद उनके लंड के ठीक सामने आ जाए. और जैसे ही ये हुआ, जेठजी फिर से शुरू हो गए.

अब ठप ठप और फच फच की आवाज के साथ जेठजी का लंड मेरी चूत की गुफा में फिर से सैर करने लगा और वो आवाज पूरे माहौल को और ही गर्म बना रहा था. जैसा कि आप सब जानते हैं कि भले ही ये पोज़ इंटरेस्टिंग है, पर इस पोज़ में थकान भी जल्दी लगती है. और हुआ भी वही.

कोई 2-3 मिनट तक धक्के लगाने के बाद जेठजी थक गए और उन्होंने मुझे नीचे उतार दिया, पर अपना लंड उन्होंने निकाला नहीं. फिर मेरे शरीर के ऊपर के हिस्से को पीछे की ओर धकेल कर खड़े खड़े ही धक्के लगाने लगे. मैं भी अपनी चूतड़ों को स्लैब के सहारे टिका कर उनके धक्कों का मज़ा लेने लगी.

इस पोज़ की अच्छी बात ये थी कि इसमें लंड चूत के दाने को रगड़कर अन्दर बाहर हो रहा था, जिससे और भी मज़ा आ रहा था. पर जल्दी ही पीछे की ओर झुक कर खड़े होने की वजह से पीठ में अकड़न सी महसूस होने लगी. इसलिए मैं सीधी खड़ी हो गयी. मेरे सीधे खड़े होने की वजह से जेठजी का लंड बार बार चूत से बाहर निकल जाता.

एक दो बार जेठजी लंड को पकड़ फिर चूत में घुसा देते, पर बार बार लंड के बाहर निकल जाने से मज़ा कम होने लगा और ये जेठजी भी महसूस कर रहे थे. इसलिए अब उन्होंने मेरे एक पैर को उठाकर हाथ से अपने सीने तक कर लिया. इस तरह से उन्होंने अपने लंड को पकड़ कर मेरी चूत के फांकों में एक दो बार ऊपर नीचे घुमा कर चूत में घुसा दिया और मुझे चोदने लगे.

मैंने भी अपने एक हाथ का घेरा बनाकर जेठजी के गले में डाल दिया, ताकि मैं भी अपना बैलेंस बनाकर चुदाई का मज़ा ले सकूँ.

कुछ देर तक वैसे ही एक पैर पर खड़ा करके चोदने के बाद जेठजी फिर से रुक गए और मेरे पैर को अपने कंधे से नीचे उतार दिया. मुझे लगा कि शायद अब जेठजी किसी और पोज़ में चोदेंगे और मेरा अंदाज़ा सही हुआ. जेठजी ने इस बार पहले मुझे स्लैब की ओर घुमाया, फिर स्लैब की तरफ ही झुका दिया. मैं भी अच्छी लड़की की तरफ उनका मतलब समझ कर झुक गयी.

सच कहूं तो मज़ा तो बहुत आ रहा था पर अब मैं थक सी गयी थी. करीब पिछले 20 मिनट से जेठजी मुझे अलग अलग आसनों में चोद रहे थे और आगे पता नहीं कितनी देर तक और चोदेंगे. जेठजी ने मेरी दाहिनी टांग को उठा कर स्लैब पर रख दिया और मेरे चूतड़ों को पकड़ कर ऊपर की ओर करने लगे.

मैं समझ गयी कि जेठजी चूत का छेद थोड़ा और ऊपर की ओर चाहते हैं इसलिए मैंने खुद ही थोड़ा और ऊपर की ओर सरकते हुए अपनी चूत का छेद उनके लंड के सामने कर दिया. उन्होंने भी देर ना करते हुए लंड को चूत में घुसा दिया और हचक कर चुत चोदने लगे. वैसे तो मुझे मेरे पति भी पूरी तरह संतुष्ट करते हैं, पर आज मैं जेठजी का स्टैमिना और टाइमिंग देखकर उनकी दीवानी हो गयी.

जेठजी का स्टैमिना और टाइमिंग मेरे पति से बेहतर था. अब तो मेरी चूत भी गीली होनी बंद हो गई और इसलिए अब लंड के रगड़ से दर्द होने लगा था. अब मैं मन ही मन में जेठजी का जल्दी पानी निकलने की प्रार्थना करने लगी थी. करीब 5-7 मिनट बाद जेठजी आह के साथ और जोर जोर से धक्के लगाने लगे.

मैं समझ गयी कि अब जेठजी का भी काम तमाम होने वाला है, जैसे जैसे जेठजी का टाइम नज़दीक आ रहा था, वैसे वैसे ही उनके धक्कों की स्पीड भी बढ़ती जा रही थी. उनके धक्कों की तीव्रता इतनी अधिक हो गई थी कि एक दो बार तो मेरा सर भी रसोई की दीवार से टकरा गया.

करीब 20-25 जोरदार धक्कों के बाद एक लंबी आह के साथ ही जेठजी ने अपना सारा रस मेरी चूत में ही छोड़ दिया. जेठजी मेरे ऊपर ही लेट गए. अभी भी मैं अपनी चूत में उनके लंड के झटके महसूस कर रही थी. लंड के पानी ने मेरी चूत को फिर से गीला कर दिया था. इस जबरदस्त चुदाई के दौरान मैं कितनी बार झड़ी थी, ये तो मुझे याद भी नहीं.. पर मैंने एक बार भी जेठजी को पता नहीं चलने दिया.

कुछ सेकंड्स बाद ही जेठजी का लंड भी ढीला होकर चूत से बाहर आ गया. लंड के बाहर आते ही जेठजी ने अपना शॉर्ट्स उठाया और बिना कुछ बोले ही रसोई से निकल गए.

ये मुझे कुछ बुरा तो लगा, पर मैं कुछ बोल न सकी. जेठजी का सारा रस भी मेरी चूत से टपकने लगा. मैंने तुरंत ही पास में ही पड़े एक कपड़े को उठाकर अपनी चूत पर दबा दिया ताकि जेठजी का रस फर्श पर ना गिरे.

कुछ देर तक मैं वैसे ही खड़ी रही और पिछले एक घंटे में जो कुछ हुआ वही सब दिमाग में चलने लगा.

अब मैं ये सोच रही थी कि बाहर कैसे जाऊं क्योंकि जेठजी अभी हॉल में ही होंगे और अगर मुझे बाथरूम या अपने बेडरूम में जाना है, तो हॉल से होकर ही जाना पड़ेगा. उधर अगर जेठजी दिख गए, तो मैं उनसे नजरें कैसे मिला पाऊंगी. भले ही मैं उनसे चुद चुकी हूं पर वो सब तो जोश जोश में हो गया.

खैर ... मुझे रसोई से बाहर तो जाना ही था, कपड़े बदलने थे और खाना भी खाना बाकी था. पर कैसे होगा ये सब?

मैं सोचने लगी थी.

कुछ देर तक सोचने के बाद मैंने रसोई के दरवाजे से झांक कर देखा, तो जेठजी हाल में नहीं दिखे. मैं तुरंत ही भाग कर अपने बेडरूम में चली गयी और अपने बाथरूम में घुस गई. पहले तो मन किया कि बाकी बदन को धो लेती हूं और चूत को वैसे ही रहने दूं. ताकि जब भी चूत पर उंगली लगाऊं तो जेठजी के वीर्य की महक मिलती रहे.

फिर सोचा अभी तो पूरी रात बाकी है, अगर मौका मिला तो जेठजी से फिर से खुल कर चुद लूंगी.

यही सोचते हुए मेरा हाथ अपने आप ही मेरी चूत पर पहुंच गया और मेरी उंगली जेठजी और मेरे बीच हुए कामक्रीड़ा के रस से भीग गयी. अब उंगली पर रस लग गया, तो हाथ भी अनायास ही मेरी नाक तक पहुंच गया.

आहहहा ... वीर्य की महक से ही मैं फिर से मदहोश होने लगी. जेठजी के लंड का एहसास फिर से याद आने लगा और मेरी चूत रानी फिर से गीली होने लगी.

खुद की भावनाओं को कंट्रोल करते हुए मैंने शॉवर लिया और इस बार अपनी नाइट ड्रेस टॉप पजामा पहना. वैसे रात को तो मैं कोई मेकअप वगैरह नहीं करती, पर आज पता नहीं क्यों ... मन कर रहा था कि पूरी दुल्हन की तरह सजूं जेठजी के लिए!

पर इतना सब करना मुझे ही ठीक नहीं लगा इसलिए मैंने हल्का सा टचअप किया और बाहर आ गयी.

जेठजी अभी भी हॉल में नहीं दिखे. शायद वो अभी भी अपने रूम में ही थे. मैं सीधे रसोई में चली गयी, वहां की सभी अस्त व्यस्त चीजों को फिर से सही किया और खाना गर्म करने लगी.

खाना गर्म करने के बाद मैंने फिर से रसोई से झांक कर देखा, पर अभी भी जेठजी नहीं दिखे. अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि मैं जेठजी को खाना खाने के लिए बुलाऊं कैसे?

अमूमन हम सब हॉल में एक साथ ही खाना खाते हैं. और जब से मैं और जेठजी अकेले थे, तब से लेकर आज तक भी हम दोनों एक साथ ही खाना खाते थे. पर आज जो कुछ हमारे बीच हुआ, उसके बाद समझ में ही नहीं आ रहा था कि जेठजी को कैसे बुलाऊं?

फिर सोचा कुछ देर इंतजार ही कर लेती हूं, शायद जेठजी खुद ही बाहर आकर मुझे आवाज दें.

आप सबको तो पता ही है कि इंतजार करना कितना मुश्किल होता है, बड़ी मुश्किल से करीब 10-12 मिनट मैंने इंतजार किया और इस दौरान मेरी नज़र कभी घड़ी पर, तो कभी हॉल पर ही टिकी रही.. पर अभी तक जेठजी न ही अपने कमरे से निकले और ना ही मुझे खाने के लिए आवाज दी.

चुदाई के दौरान अच्छी खासी मेहनत होने की वजह से मुझे भूख भी जोरों की लगी थी और इधर जेठजी पता नहीं अपने कमरे में क्या कर रहे थे. सच कहूं तो भूख की वजह से अब मेरे सब्र का बांध टूटने लगा, पर अकेले खाना खाना नहीं चाहती थी, इसलिए मैंने रसोई से जेठजी को दो बार आवाज लगाई. पर सामने से कोई रिस्पॉन्स नहीं मिला.

थोड़ी देर और इंतजार करने के बाद मैं हॉल में आ गयी और वहां से भी जेठजी को आवाज लगाई. जेठजी के कमरे का दरवाजा हल्का सा खुला होने की वजह से मेरी आवाज जेठजी तक तक पहुंच ही रही होगी पर फिर भी जेठजी कोई जवाब नहीं दे रहे थे.

अब मुझसे रहा नहीं गया, तो मैंने ठीक जेठजी के कमरे के सामने जाकर जेठजी को आवाज लगाई. अब भी कोई रेस्पांस नहीं मिला, मैंने हल्के से दरवाजे को धक्का दिया, तो दरवाजा पूरी तरह खुल गया. सामने देखा तो जेठजी शॉर्ट्स और टीशर्ट में अपने बेड पर सर नीचे किए बैठे थे. शायद वो कुछ सोच रहे थे.

मैंने एक फिर से जेठजी को आवाज दी, इस बार जेठजी ने एक बार सर उठा कर मेरी तरफ देखा और फिर से सर झुका लिया. मैं समझ गयी कि हो ना हो जेठजी अभी थोड़ी देर पहले जो कुछ हुआ, उसी के बारे में सोच रहे हैं और शायद जेठजी बुरा महसूस कर रहे हैं.

इसलिए मैंने माहौल को हल्का बनाने के लिए जेठजी से बात करने का फैसला किया- क्या सोच रहे है भैया?

मेरे सवाल के बाद जेठजी कुछ देर तक मेरे चेहरे को देखते रहे और फिर अपना सर नीचे कर लिया.

मैं- क्या हुआ भैया ... क्या सोच रहे हैं आप? खाना नहीं खाना क्या आपको?

मेरे सवालों से शायद जेठजी ने महसूस किया कि जो कुछ हुआ उसके बाद मैं जेठजी से नाराज़ नहीं हूं. जेठजी मेरी तरफ देखते हुए बोले- सॉरी जस्सी, मुझे माफ़ कर दो ... मैं खुद को संभाल नहीं पाया.

इतना बोल कर जेठजी फिर से चुप हो गए और उन्होंने फिर से अपना सर नीचे कर लिया.

अब मेरी समझ में ये नहीं आ रहा था कि मैं जेठजी को कैसे बताऊं कि जो कुछ हुआ, वो मुझे भी अच्छा लगा. भले ही वो सब अचानक में हो गया पर जो कुछ हुआ अच्छा ही हुआ और मैं आगे भी उसके लिए तैयार हूं.

मैं- ह्म्म ... अच्छा चलिए खाना खा लीजिए, आपकी वजह से काफी देर हो चुकी है.

मैंने 'आपकी' शब्द को थोड़ा खींच कर बोला. पर शायद जेठजी ने मेरी बात पर ध्यान नहीं दिया.

जेठजी- नहीं जस्सी, तुम जाकर खा लो, मेरा खाने का मन नहीं है.

मैं- अगर मुझे अकेले खाना होता, तो इतनी देर से आपको आवाज क्यों लगाती?

जेठजी- ह्म्म, अच्छा तुम चलो मैं आता हूं.

मैं समझ गयी कि जेठजी अभी भी खुद को दोषी समझ रहे हैं और वो मुझे टालने की कोशिश कर रहे हैं. पर मैं अपने दिल की बात जेठजी को कैसे कहती इसलिए मैंने सोचा कि चलो जेठजी को कुछ हिंट दे दी जाए, शायद वो समझ जाएं.

मैं- नहीं ... आप मेरे साथ ही चलो और अगर आपको मेरे साथ खाना खाने में शर्म आ रही है, तो मैं आपका खाना यहीं लेकर आ जाती हूं.

मेरी बात सुनकर जेठजी को जैसे राहत सी महसूस हुई.. जेठजी कुछ देर तक मेरे चेहरे को देखते रहे और उस दौरान मैं हल्के हल्के से मुस्कुराती रही.

जेठजी बोले- जस्सी, अभी जो कुछ हुआ उस वजह से तुम मुझसे नाराज़ तो नहीं हो ना?

मैं- अगर मैं नाराज़ होती, तो यहां आपको मनाने आती क्या?

उनके सवाल के जवाब में मेरा सवाल सुनकर जेठजी रिलैक्स हो गए, अब उनके चेहरे पर हल्की सी मुस्कुराहट आ गयी.

जेठजी- ह्म्म्म..

मैं- खाने चल रहे हैं या खाना यहीं लेकर आऊं?

जेठजी- दो मिनट बैठो ना जस्सी ... फिर खाना खाते हैं ना!

मेरी समझ में आ गया कि अब जेठजी के मन से सारी हिचकिचाहट दूर हो गयी है और हो सकता है कि कुछ देर बाद फिर से मेरी चुदाई हो जाए. मैं भी मन ही मन एक और राउंड के लिए तैयार थी.

मैं जेठजी की बात मानते हुए वहीं पड़े स्टूल पर बैठ गयी. कुछ देर तक ना तो मैंने कुछ बोला और ना ही जेठजी ने.

फिर अचानक से जेठजी ने बोलना शुरू किया- सॉरी जस्सी, श्वेता की नाइटी की वजह से मैं कंफ्यूज हो गया था और उसी दुविधा में मैंने तुम्हें पीछे से पकड़ लिया और उसके बाद मौसम की वजह जो कुछ हुआ, फिर मैं खुद को रोक नहीं पाया. पर सच कहूं, तो मैंने ऐसा कुछ सोचा नहीं था और ना ही मेरे मन में तुम्हारे लिए ऐसी कोई सोच थी.

जेठजी पता नहीं और क्या क्या बोल रहे थे पर मेरा ध्यान जेठजी के शॉर्ट्स पर था जिसमें अब हल्की हल्की हलचल होने लगी थी. शायद जेठजी के लंड को फिर से मेरी चूत की गुफा में सैर करने के एक और मौके का आहट मिल गई थी.

इधर मेरी चूत रानी भी धीरे धीरे पानी छोड़ने लगी थी.

कोई 5-7 मिनट तक जेठजी बोलते रहे. जैसे जैसे जेठजी की बातें बढ़ती जा रही थीं, वैसे वैसे जेठजी के शॉर्ट्स में हलचल भी बढ़ती जा रही थी.

मैंने नोटिस किया कि जेठजी ने शॉर्ट्स के नीचे कुछ नहीं पहना है, जिस वजह से उनके लंड का आकार साफ साफ समझ में आ रहा था. उनका लंड अब अपने रौद्र रूप में आने लगा था. सच कहूं तो अब मेरा खुद को रोकना मुश्किल हो रहा था. मेरा मन कर रहा था कि जेठजी को बेड पर धकेल कर उनके ऊपर चढ़ जाऊं और पहली राउंड में जो ख्वाहिशें अधूरी रह गयी थीं, उन्हें पूरा कर लूं.

पर मैं सही मौके का इंतजार कर रही थी. ये भी सच था कि मैं जेठजी से एक बार तो चुद चुकी थी, पर वो सब हालात की वजह से हुआ था और उस वक़्त मैं तैयार भी नहीं थी. शायद इसीलिए मैं अभी भी पहल करने में हिचकिचा रही थी. पर इतना तो मैं पक्का कर चुकी थी कि अगर इस बार मौका बना, तो मैं अपने हिसाब से चुदूंगी.

जेठजी समझ गए कि मेरी नज़र क्या ढूंढ रही हैं, इसलिए उन्होंने अपनी दोनों टांगों को थोड़ा और खोला और आराम से बैठ गए. वो मेरी तरफ देख कर मुस्कुराने लगे. जेठजी से नज़र मिलते ही मुझे शर्म आ गयी और मैंने अपनी नजरें नीचे कर लीं.

इतने में जेठजी अपनी जगह से उठ खड़े हुए और उन्होंने मेरे पास आकर मेरे कंधे पर अपना हाथ रख दिया. मैंने अपना चेहरा ऊपर करके जेठजी को देखना चाहा कि उससे पहले उनका लंड मेरी आंखों के सामने आ गया, जो अभी भी जेठजी के शॉर्ट्स में झूल रहा था. जेठजी मेरे पास खड़े थे और मैं स्टूल पर बैठी थी. इस वजह से जेठजी का औजार ठीक मेरे चेहरे के सामने था.

जेठजी के लंड से ध्यान हटाकर मैंने जेठजी के चेहरे की ओर देखा. जेठजी मुझे ही देख रहे थे. मैंने फिर से अपना चेहरा नीचे कर लिया. जेठजी अपना हाथ मेरे कंधे से हटाकर मेरी बांह को पकड़ लिया और मुझे स्टूल से उठाने का प्रयास करने लगे.

मैं भी उनका इशारा समझ कर स्टूल से उठ खड़ी हुई. मेरे खड़े होते ही जेठजी ने मुझे अपने सीने से लगा लिया. मैं भी उनके सीने से चिपक गयी.

कुछ देर तक वैसे ही रहने के बाद जेठजी ने मुझे अपने सीने से अलग कर दिया और मेरे चेहरे को पकड़ कर मेरे होंठों को चूमना चाहा, पर मैं अपने हाथ की उंगलियां उनके होंठों पर रख कर उन्हें रोकते हुए बोली- भैया पहले खाना खा लें ... मुझे बहुत जोर की भूख लगी है.

जेठजी- हम्म ...

मैं- खाना यहीं लेकर आऊं या हॉल में चलेंगे खाने?

जेठजी- यहीं लेकर आ जाओ, साथ में खाते हैं.

मैं- ओके.

इतना बोलकर मैं रसोई में खाना लेने चली गयी.

जेठजी- दो प्लेट में क्यों? एक में ही खा लेते ना!

मैं समझ गयी कि जेठजी रोमांटिक हो रहे हैं. मतलब इस बार और मज़ा आने वाला है.

मैं- अब लेकर आ गयी हूं तो खा लेते हैं.

जेठजी- ह्म्म.

इसके बाद हम दोनों ने अपनी अपनी प्लेट ले ली. जेठजी बेड पर और मैं स्टूल पर बैठ कर खाना खाने में लग गए.

मेरी नज़र बार बार जेठजी पर ही जा रही थी. आज जेठजी के खाने का तरीका देख कर लगा, जैसे वो जल्दी से खाना खत्म करना चाहते हों. उनकी जल्दी मैं भी समझ रही थी, पर इस बार मैं उन्हें तड़पाना चाहती थी, इसलिए मैं अपना खाना आराम आराम से खा रही थी.

अभी मैंने आधा खाना भी खत्म नहीं किया था, उससे पहले ही जेठजी ने अपना खाना खत्म कर दिया और हाथ मुँह धोकर मेरी तरफ देखकर मुस्कुराने लगे.

मैं भी उनकी मुस्कुराहट का मतलब समझ रही थी, फिर भी मैं आराम आराम से ही खाने में लगी रही.

कुछ देर में ही मेरा भी खाना खत्म हो गया. मैंने चुपचाप अपनी और जेठजी का प्लेट को उठाया और बिना जेठजी की तरफ देखे रसोई में चली गयी. अभी मैंने सारे बर्तनों को सिंक में रखा ही था कि इतने में जेठजी ने पीछे से आकर मुझे फिर से पकड़ लिया और मुझे बेसिन के पास से हटाकर रसोई के बीचों बीच करके अपनी तरफ घुमा दिया.

मैं उन्हें धक्का देकर अपने से अलग करते हुए बोली- क्या भैया जी, अभी भी आप मुझे श्वेता भाभी ही समझ रहे हैं क्या? इस बार तो मैंने अपनी नाइटी पहनी है.

जेठजी मुझे फिर से अपनी बांहों में जकड़ते हुए बोले- नहीं, इस बार मैं तुम्हें श्वेता नहीं, जस्सी ही समझ रहा हूं.

मैं- अच्छा ... फिर भी आप मुझसे चिपकते जा रहे हैं?

जेठजी- हां ... पिछली बार अनजाने में गलती हो गयी थी, लेकिन इस बार जानबूझ कर गलती करनी है.

इतना बोल कर जेठजी ने अपने होंठ मेरे होंठों से जोड़ दिया और मेरे होंठों का रसपान करने लगे.

मन तो मेरा भी यही चाहता था कि बाकी कामों के बारे में सोचना छोड़ कर इस पल का मज़ा लूं, पर फिर दिमाग में आया कि पूरी रात बाकी है और जेठजी को भी तो तड़पाना है ... इसलिए मैं उन्हें अपने से अलग करते हुए बोली- ठीक है, आपको जो करना है बाद में करना ... क्योंकि अभी मुझे बहुत काम करना बाकी है.

इतना बोल कर मैं फिर से बेसिन के पास चली गयी और बर्तन धोने लगी. अभी कुछ ही सेकंड्स बीते ही होंगे कि जेठजी ने पीछे से ही मुझे फिर से अपनी बांहों में जकड़ लिया और मेरी गर्दन को चूमते हुए बोले.

जेठजी- काम तो कल सुबह भी हो जाएगा जस्सी, अभी मुझे और मत तड़पाओ प्लीज!

जेठजी की तड़प देखकर मुझे मज़ा आ रहा था, उन्हें और तड़पाने के लिये मैं थोड़ा गुस्से का नाटक करते हुए बोली- नहीं, सुबह आप को भी आफिस जाने की जल्दी होती है और मुझे भी ... ये सब काम अभी खत्म नहीं किया, तो सुबह दोनों को लेट हो जाएगा, अभी आप चुपचाप जाकर हॉल में या अपने बेडरूम में बैठिए ... और मुझे मेरा काम खत्म करने दीजिए.

मेरे झूठे गुस्से का असर जेठजी पर हुआ, अब वो चुपचाप वहीं खड़े खड़े कभी बर्तनों को, तो कभी मुझे घूर रहे थे. मैं चुपचाप अपने काम में लगी रही.

तभी अचानक जेठजी ठीक मेरे बगल में आकर बेसिन के पास खड़े हो गए और मेरे द्वारा मले बर्तनों को धोने लगे. जेठजी की इस हरकत पर मुझे हंसी आ गयी ... जल्दी ही हमने बर्तन धो कर रख दिए.

उसके बाद मैं रसोई साफ करने लगी, जेठजी अभी भी वहीं रसोई में ही खड़े खड़े मेरे फ्री होने का इंतजार कर रहे थे.

कुछ ही देर में मैं भी काम से फ्री हो गयी ... स्लैब के सहारे खड़ी होकर जेठजी की तरफ देखा, तो वो मुझे ऐसे देख रहे थे, जैसे पूछना चाह रहे हों कि और कौन सा काम बाकी है?

जेठजी का चेहरा देख कर मेरे चेहरे पर अपने आप ही मुस्कुराहट आ गयी, जिसे जेठजी ने अपने लिए ग्रीन सिग्नल समझ लिया. जेठजी मेरे पास आकर मुझे अपनी तरफ खींच लिया और मेरे होंठों पर अपने होंठ रख दिए.

सच कह तो मैं भी इसी बात का इंतजार कर रही थी और अब जब मौका बन गया, तो मैं भी जेठजी का साथ देने लगी. रसोई में ही मेरे होंठ और जेठजी के होंठों के बीच लड़ाई सी होने लगी. कभी मैं उनके होंठों को अपने दांतों से पकड़ कर खींचती, तो कभी चूसती और यही सब जेठजी भी मेरे होंठों के साथ कर रहे थे.

इस दौरान जेठजी के हाथ और मेरे हाथ एक दूसरे के पिछवाड़े का मुआयना करने में बिजी थे. बीच बीच में जेठजी मेरे दोनों चूतड़ों को कस कर दबा देते, तो मैं भी उनके चूतड़ों को अपनी पूरी ताकत से दबा देती.

कोई 5-7 मिनट तक वैसे ही चुम्मा-चाटी के बाद जेठजी अपना एक हाथ मेरे पिछवाड़े से हटा कर मेरे चुचे पर रख दिए और मेरे दोनों चूचों को बारी बारी से मसलने लगे.

अब मेरा खुद पर से कंट्रोल छूट गया, मैंने खुद को एकदम ढीला छोड़ दिया ... या यूं कह लीजिए कि मैंने खुद को पूरी तरह से जेठजी को सौंप दिया.

जेठजी लगातार मुझे चूमे जा रहे थे. कभी गर्दन पर चूमते, कभी गालों पर ... तो कभी होंठों पर ... साथ ही साथ वो मेरे चूचों को कभी प्यार से सहलाते जाते, तो कभी कस कर दबा देते. मेरे साथ इतना कुछ हो रहा था, जिसका असर मेरी टांगों के बीच हो रहा था. मतलब मेरी चूत रानी पानी पानी हुई जा रही थी.

अब तो मेरी और मेरी चूत दोनों की बेताबी बढ़ने लगी. हम दोनों ही जल्दी से जल्दी जेठजी के लंड से मिलना चाहते थे. इसी बेताबी के कारण मैं जेठजी को खींचते हुए हॉल में लेकर आ गयी. लगभग उन्हें धक्का देते हुए सोफे पर गिरा कर उनके ऊपर चढ़ गई और उन्हें चूमने चाटने लगी.

जेठजी का लंड जो अब तक एकदम कड़क और पूरी तरह तन चुका था. वो मेरी चूत के आस-पास चुभने लगा था. जेठजी को मेरे इस रूप का अंदाज़ा ही नहीं था, वो एकदम भौंचक्के से मेरी हरकतों का मज़ा ले रहे थे.

मैंने जेठजी की टी-शर्ट को निकाल फेंका और उनकी गर्दन से होते हुए सीने को चूमने लगी. जेठजी भी खुद को रोक नहीं पाए ... और मुझे पकड़ कर अपने नीचे कर लिया. उन्होंने मेरे टॉप को मेरे शरीर से अलग कर दिया. ब्रा तो मैंने पहनी ही नहीं थी ... तो टॉप निकलते ही जेठजी को मेरे चूचों के दर्शन हो गए.

बस वो उन पर टूट से पड़े. पहले हाथ से अच्छे से दोनों चूचों का मुआयना करने बाद जेठजी ने अपना मुँह ही लगा दिया और एक बच्चे की तरह मेरे चुचे चूसने लगे. कुछ देर की चुसाई के बाद एकाएक जेठजी रुक गए और मेरी आंखों में देखने लगे. मैंने भी मौका देखकर जेठजी को पलट कर नीचे कर दिया और एक बार फिर से उनके ऊपर आ गयी.

कुछ देर तक मैं उनके होंठों को ... या यूं कह लीजिए कि हम एक दूसरे के होंठों को चूमते और चूसते रहे. फिर मैं चूमते हुए ही धीरे धीरे नीचे की तरफ जाने लगी. मैंने पहले कुछ देर तक सीने को चूमा, फिर पेट को चूमा. उसके बाद मैं रुक गयी और जेठजी की तरफ देखा. जेठजी मेरी तरफ ही देख रहे थे, जैसे वो जानने को बेचैन से थे कि आगे मैं क्या करने वाली हूँ?

मैं उनकी मनोदशा समझ गयी और अब मुझसे भी और देरी बर्दाश्त नहीं हो रही थी. इसलिए मैं पहले खुद जेठजी के ऊपर से हट गयी और सोफे से उतर कर ठीक जेठजी के दोनों टांगों के बीच अपने घुटनों पर बैठ गयी. जेठजी का लंड शॉर्ट्स के अन्दर बेचैन हुआ जा रहा था और बार बार झटके पर झटके खाये जा रहा था.

अब और देर करना मुझे भी ठीक नहीं लगा, इसलिए मैंने जेठजी के शॉर्ट्स को पकड़ कर नीचे की ओर खींच दिया.

आहहहा ... क्या नज़ारा था ... जेठजी का लंड, जिसे पहले राउंड में मैं देखने को तड़प गयी थी और पूरी चुदाई के दौरान देख ही नहीं पायी थी. अब उनका लंड ठीक मेरी आंखों के सामने था. लाल सुपारे के साथ गेहुंआ रंग का जेठजी का लंड, जो अभी आसमान की तरफ मुँह उठाये खड़ा था ... बीच बीच में कभी वो मेरी तरफ हल्का सा झुक जाता, फिर एक झटके और अकड़ के साथ आसमान की तरफ देखने लगता.

जेठजी के लंड के शिश्नमुण्ड से हल्का हल्का चमकीला द्रव्य पदार्थ निकल रहा था, जिसे हम अंग्रेजी में प्रीकम बोलते हैं.

मेरा अनुमान एकदम ठीक था, जेठजी का लंड मेरे पति के लंड से करीब आधा पौना इंच ज्यादा लंबा और मोटा था.

कुछ देर तक जेठजी के लंड को पकड़ कर मैं ऊपर नीचे करती रही, पर मैं ज्यादा देर खुद को रोक नहीं पायी और गप्प से उनके लंड को अपने मुँह में भर लिया. अब जाकर मुझे थोड़ा सुकून मिला.

जैसा कि आप लोग जानते हैं कि पहली बार की चुदाई के दौरान भी मैं जेठजी का लंड चूसना तो चाहती थी, पर शर्म और झिझक की वजह से कह और कर नहीं पायी थी. इस बार जब सब कुछ खुद करने का सोच लिया था, तो मैं इसमें पीछे क्यों रहती. मुझसे जितना अन्दर तक हो पा रहा था, मैं जेठ जी का लंड उतना अन्दर तक अपने मुँह में ले कर अपना मुँह ऊपर नीचे करने में लगी थी.

कुछ ही देर में जेठजी के मुँह से आह आह निकलने लगा. मैं भी पूरी शिद्दत से लगी रही और उनके लंड को चूसती रही.

कभी उनका पूरा लंड मुँह के अन्दर लेने की कोशिश करती, तो कभी सिर्फ सुपारे को दोनों होंठों के बीच फंसाकर चूसती. बीच बीच में मुँह ऊपर नीचे करके अपने जेठ को मैं मुखमैथुन का पूरा मज़ा तो दे रही थी. जेठजी मस्त हो कर मेरी इन सब हरकतों का मज़ा ले रहे थे.

कुछ देर तक मैं वैसे ही घुटनों के सहारे बैठे बैठे ही जेठजी का लंड चूसती रही, पर जल्दी ही मेरे घुटने दुखने लगे, इसलिए मैं उठ खड़ी हुई. लंड पर से मेरा मुँह हटते ही जेठजी ने सबसे पहले अपना शॉर्ट्स जो अभी भी उनके पैरों में फंसा था, उसे निकाल फेंका और उठ खड़े हुए.