महारानी देवरानी 034

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महारानी की नाराज़गी
1.7k words
3.33
24
00

Part 34 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 34

महारानी की नाराज़गी

कमला बलदेव और देवरानी पूरी रात सोच में ही निकाल देते हैं और देवरानी की रो-रो कर आँख फूल जाती है।

कल रात की हुई घटना देवरानी का दिल दहला देने वाली थी और आखिर हुआ भी तो कुछ ऐसा अप्रत्याशित था कि सब राज एक साथ एक झटके में खुल गए थे, एक तरफ जहाँ देवरानी अपने आप को छला हुआ महसूस कर रही थी, वही बलदेव और कमला को भी अपने किए पर शर्मिंदगी मेहसूस हो रही थी।

कमला और बलदेव सुबह उठ कर सबसे पहले देवरानी के कक्ष की ओर जाते हैं। पर दरवाजा अब भी बंद था फिर कमला अपने काम में लग जाती है और बलदेव सैनिको के साथ, अपने राष्ट्र की सीमा पर जाने की तैयारी करने लगता है।

इधर देवरानी अब भी अपने बिस्तर में लेटी सिसक रही थी।

देवरानी सिसकती हुई बोल रही थी: मेरे अपनों ने हमेशा मुझे धोखा दिया है। ऐसे में मैं दुसरो से क्या उम्मीद करु!

देवरानी ने कल रात भी कुछ खाया पिया नहीं था इसलिए वह अब बहुत कमज़ोर मेहसूस कर रही थी तो देवरानी हिम्मत कर के उठती है। उसके पैर के अंगूठे में लगे कांटे से घाव बन गया था।

देवरानी के अंगुठे में घाव के कारण चलते समय उसका घाव हल्का-सा दुख जाता था और वह कराह उठती थी । वैसे तो ये छोटा ही घाव था पर देवरानी जिसके बदन पर कभी उसके माँ बाप ने मक्खी नहीं बैठने दी थी उस कोमल-सी देवरानी के लिए ये बहुत दर्द भरा घाव था जिसके कारण भी वह रो रही थी ।

देवरानी कक्ष का दरवाजा खोल कर रसोई में जाती है और मटके से पानी निकल कर पीने लगती है। कमला उसे देख -

कमला: आपने क्यू कष्ट किया, महारानी मुझे बोलती!

देवरानी: मुझे झूठी और अपने साथ छलवा करने वाली के हाथो से पानी तक नहीं पीना, समझी!

कमला: आप चाहो तो मुझे जान से मार देना परमेरी पूरी बात तो सुनो!

देवरानी: अब सूने को क्या बचा है! चल हट यहाँ से!

कमला: अच्छा आप खाना तो खा लो।

तभी वहा बलदेव आ जाता है, जो अपने कक्षा से कुछ अस्त्र शस्त्र ले कर सीमा पर जाने की तैयारी कर रहा था।

बलदेव: मां, आप खाना खाओ!

और अब बलदेव भी रसोई में आ जाता है।

देवरानी उसे देखे बिना बोलती है:

कमला! इस झूठे फरेबी से कह दो की मुझे, दुबारा, अपना मुह नहीं दिखाये ।

और हाँ! खाना मुझे जब खाना होगा तब में खा लुंगी। तुम मेरी चिंता करने वाले होते कौन हो?

देवरानी बलदेव को देखे बिना ये बात कहती है और अपने कक्ष की ओर जाने लगती है।

बलदेव गुस्से से तमतमाया महल के बाहर चला जाता है।

कमला देवरानी के पीछे चलने लगती है।

देवरानी अपने कक्ष में घुसते ही जोर से दरवाजा बंद कर लेतीं है।

कमला: महारानी आप बात मत करो पालतू खाना तो खा लो, कम से कम!

कमला कुछ देर खड़ी रह के देवरानी को समझआने का प्रयास कर रही थी पर आखिरकार देवरानी की जिद के आगे वह घुटने टेक देती है।

कमला: (मन में) अब तुम्हें कैसे बताएँ महारानी के हम तुम्हें कितना मानते हैं।

इधर बलदेव भी सीमा पर पहरेदारी कर रहा था और सुबह से वह सैनिकों पर गुस्सा हो रहा था । उसका ये रवैय्या देख कर सब परेशान थे की आज बलदेव ऐसा क्यों हो गया।

बलदेव सीमा पर एक बंकर में बैठा सोच रहा था; "मां अगर मैं तुम्हारा कोई नहीं होता और जब में पापी ही हूँ तो आज से अपना बुरा आप को कभी अपना चेहरा नहीं दिखाऊंगा!" या उसके आंखों में आंसू आ जाते हैं।

शाम के 4 बजते है और देवरानी की भूख से हालत खराब होने लगती है। वह कक्ष से बाहर आ कर देखती है।, राधा कुछ काम कर रही थी।

देवरानी: राधा कुछ खाने के लिए है?

राधा: (मन में) ये देवरानी को आज क्या हुआ! आज मुझे बुला रही है।

राधा: जी मालिकिन और वह उसे कुछ खाने को देती है।

"ये लीजिये मालकिन!"

देवरानी: धन्यवाद राधा!

और देवरानी रोती हुई खाना खाने लगती है।

राधा: मालकिन आज वह कमला कहाँ है?

फिर देवरानी कुछ देर चुप रहती है।

देवरानी: "यहीं होगी, कही कुछ काम कर रही होगी।"

राधा देवरानी का गुस्सा देख समझ जाती है "दाल में जरूर कुछ काला है।"

और यही कुछ सोचते हुए चली जाती है।

देवरानी खाने तो बैठ गई थी पर थोड़ा खाने के बाद उससे भोजन खाया नहीं जाता और वह उसे ले कर के उठ कर फिर अपने कक्ष में चली जाती है।

सूर्यस्त का समय हो गया था तब कुछ-कुछ घोड़े घाटराष्ट्र की सीमा की तरफ आते हुए बलदेव को दिखते हैं।

बलदेवः सैनिको फंदा तैयार करो!

सैनिक रस्सी के फंदे बना कर पकड़कर बैठ जाते हैं।

जैसे वह घोड़े और पास आते हैं।

बलदेव गौर से देखता रहता है और उसे घोडे पर अपने पिता राजपाल दिखाई देते है।

बलदेवः सैनिको फंदा हटाओ!

बलदेव एक सैनिक से "तुम जा कर खड़े हो जाओ वहा पर वह पिता महाराज है।"

एक सैनिक रास्ते पर मुस्तैद हो खड़ा हो जाता है और घाटराष्ट्र की ओर जा रहा राजा राजपाल वही अपने सैनिको के साथ घोड़ा रोक देता है।

सैनिक: महाराज की जय हो!

राजपाल सैनिक को देख मुस्कुरा के सर हिलाता है।

बलदेव पीछे से आ कर "महाराज प्रणाम" और अपने पिता के चरणों को छू लेता है।

राजपाल घोड़े पर वही बैठा रहता है।

"कैसे हो पुत्र!"

"ठीक हू पिता जी!"

राजपाल: वैसे नाकाबंदी अच्छी लगाई है। बलदेव तुमने! "

बलदेव मुस्कुरा कर "जी! वह आपकी सूचना मिलने पर हमने सुरक्षा बढ़ा दी है ।"

राजपाल: चलो! ऐसे ही डटे रहो। घाटराष्ट्र की सुरक्षा तो अब तुम्हें ही करनी है।

राजपाल: घर चलो पुत्र!

बलदेव: नहीं पिताजी में आधी रात ही आऊंगा । जब तक ये सुनीश्चित ना हो जाए के दूर-दूर तक कोई आक्रमणकारी सीमा तक नहीं है तब तक मैं यही सुरक्षा जांच करूँगा ।

राजपाल: जीयो पुत्र! तुम ही घटकराष्ट्र के असली उत्तराधिकारी हो!

राजपाल महल चला जाता है और बलदेव अपना काम खत्म कर के मदीरा पीने लगता है ।

वो कुछ सैनिको के साथ बैठ के खूब मदिरा पी लेता है।

सैनिक: आप बस करो युवराज! आप अपने होश खो बैठे हो!

बलदेव: मुझे जीना नहीं मुझे पीना है।

कुछ देर तक यू ही वहा पीने के बाद, वह एक सैनिक को साथ ले, अपने घोड़े पर बैठ महल की ओर चल देता है।

राजपाल महल पहुच कर सब से मिलता है। फिर अपने माँ से मिल कर आशीर्वाद लेता है और दूर का सफर करने से वह थक चूका था, तो जा कर तुरत सो जाता है।

आधी रात बलदेव अपने घोडे से उतारता है और उतारते समय नीचे गिर जाता है।

सैनिक: युवराज संभल के!

बलदेव: अरे! में संभला हुआ ही हूँ । अब तू मुझे सिखाएगा कैसे चलना है।

सैनिक बलदेव को किसी भी तरह अंदर लाता है और उसको सहारा दे कर उसके कक्ष की ओर ले जा रहा था। तो कमला उसे देख लेतीं है ।

कमला: हाय दैया! क्या हुआ युवराज को?

सैनिक: कुछ नहीं बस इनहोने आज मदिरा ज्यादा चढ़ा ली है और अपने होश में नहीं हैं ।।

कमला भी सैनिक का साथ युवराज को सहारा देने लगती है।

उनकी आवाज सुन कर देवरानी भी अपने कक्ष से बाहर आती है।

तो बलदेव को ऐसे नशे में बेसुध देख कर-

"नशेड़ी! अब ये सब भी शुरू कर दिया! "

देवरानी ये बात धीरे से बोलती है। पर कमला ने उसकी बात सुन ली थी।

कमला बलदेव को ले जा के उसके बिस्तर पर लिटा देती है।

सैनिक चला जाता है।

कमला जैसे जाने को होती है।

बलदेव उसका हाथ पकड़कर

"देवरानी मत जाओ! मुझे माफ़ कर दो! मत जाओ माँ!"

कमला: बेटा! में कमला हूँ, देवरानी नहीं!

कमला उसके मुह पर हल्का पानी मारती है।

बलदेव थोड़ा होश में आता है।

कमला: क्यों पी तूने इतनी, जब तुम्हें नहीं पचती है?

बलदेव: तो क्या करूं कमला?

कमला: तुम्हारे मुह से बोल नहीं निकल रहे है

कल से मैं देख रही हूँ तुमको । ये क्या हाल बना लिया है आपने युवराज?

बलदेव: मैं मर जाऊंगा कमला!

कमला: शुभ-शुभ बोलो युवराज!

बलदेव: में देवरानी के बिना नहीं रह सकता!

कमला: जरा होश में रहो महाराज राजपाल भी लौट आये हैं!

बलदेव: मुझे किसी की परवाह नहीं है ।

कमला को ये बात बोल बलदेव अपनी आँखे बंद कर लेता है और कमला उसकी हाल देख बहुत दुखी होती है और वह भी महल से छुट्टी ले कर अपने घर चली जाती है।

सुबह की किरण बलदेव के चेहरे पर पड़ती है और वह उठता है। तो अपने आप को अस्त व्यस्त रूप से अपने बिस्तर पर पाता है।

उसे कल का थोड़ा बहुत याद आता है और फिर वह स्नान करने चला जाता है। तैयार हो कर महल से बहार निकल कर दरबार में जाता है।

सब युवराज की जय जयकार करते हैं।

दरबार में सब बैठे हुए थे और आज राजा राजपाल बहुत दिनो बाद अपने राज दरबार में था।

वो बलदेव को भी बैठने को कहते हैं। बलदेव जा कर देवरानी के बगल में बैठ जाता है। बलदेव देवरानी की ओर देख रहा था, पर देवरानी बिना पलक झपके सामने देख रही थी जैसे के ठान लीया हो के उसे बलदेव को नहीं देखना है। नियमित कार्यो के बाद सभा खत्म होती है और सभी उठ कर जाने लगते हैं।

बलदेव भी महल के मुख्य द्वार से अपने कक्ष की ओर बढ़ा रहा था तो देवरानी के हसने की आवाज़ आ रही थी ।

राजपाल और देवरानी के कक्ष के गलियारे में पाए के पीछे खड़े थे और बात कर रहे थे ।

बलदेव अपने पैर वहीँ जमा लेता है और कनखियो से उस तरफ देवरानी और राजपाल को हसते और खिलखिलाते हुए देख रहा था।

देवरानी: हाहा! आप भी ना महाराज! बूढ़े हो गए पर...

राजपाल: अभी बूढ़ा नहीं हुआ हूँ!

राजपाल देवरानी को अपने बाहो में ले लेता है।

बलदेव सीधा खड़ा हो कर देखता है, परन्तु राजपाल की पीठ की तरफ खड़े होने के कारण से राजपाल उसे देख नहीं पाता।

पर जब देवरानी राजपाल के गले लगती है, तो सामने बलदेव को देखती है और एक गुस्से की निगाह से बलदेव को जलाने के.लिए "आह!" "महाराज आप भी ना क्या करते हैं।" हसती हुई बोलती है।

राजा राजपाल अब देवरानी की गांड के पास हाथ रख देता है और बलदेव अपनी माँ को ऐसा करते देख जल भुन जाता है और देवरानी सीधी खड़ी हो कर राजा राजपाल का हाथ अपने हाथ में फसा कर बोलती है: "चलिए न महाराज!" और उसे अपने कक्ष में ले जाती है।

बलदेव की आंखो के सामने अँधेरा छा जाता है। वह अपने कक्ष में जा कर लेट जाता है।

कहानी जारी रहेगी

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