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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 41
प्रथम भेंट में कुछ प्रेम भरी शिकायते
बलदेव देवरानी का तरफ दिखता है और उसके पल्लू के जालीदार कपड़ो से उसके बड़े ऊंचे दूध को देख बोलता है।
बलदेव: इनके ये भी अच्छे हैं।
राजपाल: क्या बक-बक कर रहे हो?
बलदेव: मतलब माँ भी अच्छी और इनके हाथों का ये सब खाना बहुत अच्छा है।
राजपाल: ओह! हाँ तुमने सही कहा।
ये बात समझ हल्का-सा शर्मा कर देवरानी अपना सर नीचे कर भोजन खाने लगती है।
बलदेव: ओर लीजिए न पिता जी।
राजपाल: नहीं, अब नहीं।
बलदेव: अब लीजिए, ये क्या बात हुई? "मां इतनी अच्छी है। माँ के ये सब चीज खाने लायक है। पर आप खाते हैं नहीं"
राजपाल: अब बुढ़ापा आ गया पहले जैसी बात नहीं रही!
बलदेव: पर मैं तो कभी थकूं ही नहीं, अगर इतना अच्छे खाने मिले तो...
राजपाल: हाँ तुम जवान हो! तुम खाओ पियो! कुछ मत छोड़ना सब चाट-चाट के खा जाओ।
बलदेव: बस आप की आज्ञा और आशीर्वाद मिल जाए तो मुझे इतना खाउ दिन रात की खा-खा कर मोटा हो जाऊँ।
राजपाल: मेरी आज्ञा और आशीर्वाद है। मेरे हिस्से का भी खा लिया करो।
बलदेव: अब मैं चाट-चाट कर खाऊंगा, माँ अब आप मुझे मना मत करना।
देवरानी ये सुन कर मुस्कुराती है।
देवरानी: "हाँ नहीं करूंगी मना, जितना जी चाहे खा लेना।"
देवरानी अपने होठ अपने दांत से पिसती हुई कहती है।
उसके बाद महाराज और फिर बलदेव खाना खा कर बाहर चला जाता है और कमला और देवरानी बर्तन समेटने लगती है।
कमला: अब तो तुम्हारा आशिक भी चला गया। नदी के किनारे तुम कब जाओगी?
देवरानी: कमला देखो ना, सैनिक बल चारो ओर घेरे हुए हैं और ये महाराज और सृष्टि भी पीछे पड़े रहते हैं हम पर नज़र रखते हैं।
कमला: तो फिर पीछे के रास्ते से जाओ ।
देवरानी: हाँ इन लोगों को झपकी लेने दो फिर जाऊंगी बलदेव से मिलने।
कमला और हाँ जल्दी आ जाना पूरी रात नदी पर मत रुक जाना!
देवरानी: नहीं कमलाl!
कमला: हाँ! नहीं तो ज्यादा समय रुकी नदी पर तो बलदेव तुम्हारे नदी में गोते लगवा देगा।
यह बात बोलते समय कमला अपना सर झुकाए शर्माती है।
देवरानी: कुछ भी कहती हो! भगवान तुम्हें सद्बुद्धि दे!
बलदेव खाना खा कर टहलने के बहाने सोचते हुए नदी की ओर चल देता है।
बलदेव (मन में) आज कैसा दिन है। मेरी अपनी माँ जो अब मेरी प्रेमिका बन गई है। मैंने उसे प्रेम लीला के लिए नदी पर बुलाया है और वह भी घर वालो और सैनिकों से छुप कर आएगी, अपने प्रेमी से मिलने के लिए, ये प्रेम, ये मिलने की तड़प, ये जिस्म की आग हम से क्या करवाती है।
रात धीरे-धीरे बढ़ रही थी और सब अपने-अपने कक्ष में आराम कर रहे थे और सैनिक बल भी अब एक कोना पकड़कर झपकी लेने लगे थे, इसी का फायदा उठा कर देवरानी अपना हल्का-सा शृंगार करती है और अपने आशिक से मिलने के लिए पीछे के दरवाजे से नदी किनारे जाने के लिए बाहर जाने लगती है।
देवरानी: (मन में) हे भगवान कुछ गड़बड़ नहीं हो!, किसी ने हमें धर लिया तो क्या होगा, अरे नहीं मैं क्यू डरूँ! मेरा बलदेव सब संभाल लेगा, जो होगा देख लेंगे!
"पर आज अपने प्रेमी से ऐसे चोरी छुपे मिलने का आनंद कुछ और ही है।" और वह ये सोच कर मुस्कुरा रही थी।
बलदेव इधर नदी पर पहुँच कर एक पेड़ के नीचे छोटे से पत्थर पर बैठ जाता है और अपने हाथ में कुछ कंकर ले कर नदी के चलते हुए पानी पर मारने लगता है।
देवरानी तभी नदी पर पहुँच कर चारो ओर देखती है और उसे पूर्णिमा की रात की रोशनी में पेड़ के नीचे बैठा हुआ बलदेव दिख जाता है।
देवरानी एक मुस्कान के साथ"कितनी शिद्दत से इंतज़ार कर रहा है। मेरा प्रेमी!"
देवरानी धीरे-धीरे चल के बलदेव के पास पहुँच रही थी, अंदर से देवरानी का दिल ज़ोर से धड़कने लगा था और उसके हाथ और पैर हल्का-सा कांपने लग गए थे।
बलदेव धीरे-धीरे चल के मस्तानी देवरानी सजी सवरी अपने कसे हुए बदन को एक छोटे से ब्लाउज और साडी में लिपटी और अपनी लाज शर्म से छुपते छुपाते हुए उसके पास आ रही अपनी प्रेमिका को देख रहा था।
बलदेव: (मन में) शर्माओ मत माँ। मैं तुम्हारी सारी लाज शर्म निकाल दूंगा।
देवरानी अब बलदेव के सामने खड़ी थी। वह अपने पैर के अंगुठे को अपने अंगूठे के बगल वाली उंगली पर चढ़ाये हुए खड़ी थी और उसकी आखे नीचे थी जैसे इंतजार कर रही हो के बलदेव कुछ कहे।
बलदेव अपनी माँ का रूप देख खो गया था और निहारे जा रहा था पर अंदर ही अंदर उसकी भी दिल की धड़कन, थोड़ी बढ़ गई थी, क्योंकि ये उसका भी पहला प्यार था।
देवरानी भी अपने पहले प्यार और अपने पहले यार के सामने सजी सवरी हुई खड़ी थी उसको अपने-अपने परोसने आई थी।
आख़िर कर बलदेव हे हिम्मत कर के चुप्पी तोड़ता है।
बलदेव: माँ बहुत देर कर दी!
देवरानी सर उठा कर बलदेव को देखती है। जो अपने मुछो पर ताव दे रहा था ।
देवरानी: हाँ वह सब के सोने का इंतजार कर रही थी।
बलदेव: मुस्कुरा के "अच्छा आओ मेरे पास बैठो।"
बलदेव के अच्छे बरताव से खुश हुई देवरानी उसके पास ही पत्थर पर बैठ जाती है।
बलदेव: खाना खा लिया आपने?
देवरानी: हम्म!
बलदेव: झूठ!
देवरानी: हम्म्म!
बलदेव: खा कर आना था आपको। मैं थोड़ा समय और प्रतीक्षा कर लेता।
देवरानी: थोड़े देर में तो तुम्हारी हालत ऐसी हो गई और मुस्कुराती है। वैसे देर मैंने नहीं तुमने की है।
बलदेव: वह कैसे?
देवरानी: तुमने मुझे बताने में की। वह तो भला हो कमला का।
बलदेव मुस्कुरा कर "अच्छा जी!"
बलदेव: मैं डरता था के कहीं तुम।
देवरानी: हाँ हिम्मत नहीं तुम में!
बलदेव: ऐसी बात नहीं है।
देवरानी: क्या ऐसी बात नहीं है। मैंने पत्र लिखा तब तुम माने। जब तुम मदीरा में डूबे रहे तो क्या तुम मिलने आये।
बलदेव और देवरानी अपना मुंह अभी भी नदी के तरफ थे और दोनों बिना दूसरे को देखे बाते कर रहे थे।
बलदेवःधन्यवाद माँ!
देवरानी: चुप करो धन्यवाद कितनी बात का करोगे, तुम इतने क्यू पीते हो?
बलदेव: वोह हम्म!
देवरानी बलदेव को ज़ोर से पूछती है। जिसका बलदेव उत्तर नहीं दे सका तब देवरानी उसको अपने सामने आने को कहती है।
देवरानी: इधर आओ मेरे सामने मेरे आखों में आखे डाल कर कहो!
बलदेव उठ कर पत्थर पर बैठी देवरानी के सामने खड़ा हो जाता है।
देवरानी: बढ़ कर वृक्ष हो गए, पर एक छोटी-सी बात कहने की हिम्मत नहीं जुटाई और मदिरा में डूब गए।
ये कह कर देवरानी बलदेव जो की 6.3 उचाई का था उसको नीचे होने को कहती है।
देवरानी: नीचे आओ तुम इतने ऊंचे हो की मैं तुम्हारी आँखे नहीं देख सकती कि क्या झूठ क्या सच कह रहे हो!
बलदेव ये सुन कर अपने घुटनो के बल देवरानी के आगे बैठ जाता है।
बलदेव के आसु से भरे थे।
देवरानी: अगर तुम्हें कुछ हो जाता तो मैं क्या करती हूँ? कहाँ जाती मैं? और तुमने कैसे सोचा कि अगर तुम अपने प्यार का इजहार कर देते, तो क्या मैं तुम्हें जान से मार देती?
और फिर तुमने तो मेरे लिए नया पति भी ढूँढ लिया और उस दिन मुझे किसी और के पास भी ले जा कर छोड़ देते?
बलदेव कुछ नहीं बोल रहा था।
देवरानी: बलदेव सुन रहे हो ना!
बलदेव: हम्म्म!
बलदेव चुपचप सुने जा रहा था और उसका दर्द उसके आखो में पानी बन दिख रहा था।
देवरानी: क्या तुम पागल हो?
अब देवरानी की आंखो से आसू बहने लगते है।
देवरानी: क्या मुझे किसी और को सौप के तुम खुश रह पाते? तुमने ऐसा सोचा भी कैसे?
देवरानी अपना हाथ ले जा कर बलदेव को हल्का थप्पड मारती है और फिर ज़ोर से रोने लगती है।
देवरानी: "तुम मेरे पहले प्यार हो और मेरे बेटे भी हो। मैं तुम्हारे प्यार की कुर्बानी दे कर कभी जी नहीं पाती और तुम तो दो दिन में मरने के हाल में आ गए, तुम तो मेरे बिना मर ही जाओगे।" (रोते हुए)!
बलदेवःहाँ माँ (रोते हुए)!
देवरानी और तुमने कहा था कि तुम अपनी जान दे दोगे अगर तुम मुझे नहीं मिली तो।
बलदेव: हम्म!
देवरानी रोते हुए उठ खड़ी होती है और सीधा बलदेव के बाहो में आकर उसका गर्दन पकड़ कर लटक-सी जाती है।
देवरानी: खबरदार अगर तुमने अपने मरने का सोचा भी तो तुम्हारी जान से पहले मेरी जान जाएगी।
देवरानी फफक कर रोने लगती है।
अपनी मां, अपने प्रेमी को ऐसे अपने लटके देख अपने दोनों हाथों से अपनी माँ को पकड लेता है और उठा लेता है।
बलदेव: नहीं माँ मुझे माफ़ कर दो।
देवरानी: मुझे भी माफ़ कर दो जो मैं भी दूसरे पुरुष के बारे में सोच रही थी।
बलदेव: तुम्हें जीवन भर अपनी बना कर रखूंगा।
देवरानी: मुझे तो बाकी के हर जन्म में भी तुम ही चाहिए।
और फ़िर से दोनों गले लग जाते हैं।
थोड़े देर तक गले लगने पर दोनों का दिल ठंडा होता है।
देवरानी: अब उतारो मुझे नीचे तुम थक जाओगे।
बलदेव: मैं तुम्हारे भार से कभी थक नहीं सकता।
देवरानी: मैं कोई हल्की नहीं जो तुम ऐसे उठ कर चल सकोगे। तुम्हारी नस न चढ़ जाएगी।
बलदेव देवरानी को नीचे उतार देता है।
बलदेव: बस आपको मेरी काबिलियत पर इतना भरोसा है वैसे मैं तुमसे दुगना भार रात भर उठा के रखू तो भी टस से मस नहीं होऊंगा।
देवरानी: हा आए बड़े पहलवान कहीं के, चलो अब जल्दी चले घर!
देवरानी आगे-आगे चलने लगती है। बलदेव अभी जाना नहीं चाहता था वह बस वही रुक गया था।
देवरानी उसको पलट कर देखती है।
देवरानी: क्या उल्लू हो! निहारना बंद करो और चलो!
बलदेव: उल्लू नहीं मैं चकोर हूँ और तुम चांद हो!
देवरानी भली भांति जानती थी कि बलदेव उसके पिछवाड़े पर नजर गड़ाए हुए हैं। देवरानी अब हल्का-सा अपनी गांड को हिला देती है।
बलदेव: थोड़ी देर और रुको ना।
देवरानी: अपनी मस्तानी चाल से जाने लगती है और जन बुझ कर बलदेव को तड़पा रही थी और धीरे-धीरे ऐठ के चल रही थी।
बलदेव: रुको मुझे पता है आप मेरी बात नहीं मानती हो।
देवरानी देखती है, बलदेव उसकी तरफ तेजी से भाग रहा है। तो वह भी भागने लगती है, पर बलदेव झट से उसको पीछे से पकड़ लेता है।
देवरानी को कसे हुए बलदेव अब उसके पीछे चिपक जाता है।
देवरानी: उफ़ हे भगवान!
बलदेव: कब तक भागोगी?
अब बलदेव का लंड देवरानी को अपने पीछे महसुस होने लगता है और उसके मुँह से सिस्कारी निकलने लगती है। इस्सस! और उसे मसल देता है
बलदेव: इतनी सजती संवरती हो तुम, कहीं कोई भगा ना ले जाये!
देवरानी: आह! मुझे भगा ले जाने वाले के पास शेर का दिल होना चाहिए. "उह!"
बलदेव के इस तरह मसलने से देवरानी मचल रही थी और उसके साड़ी का पल्लू गिर जाता है।
बलदेव देवरानी के कमर में हाथ रख देवरानी के कंधे को चूमता है। जिस से देवरानी बलदेव से दूर होती है और उसके सामने सीधी खड़ी होती है।
बिना पल्लू के ब्लाउज में कसो गेंदो की तरफ बलदेव बड़े चाव से देख रहा था।
बलदेवमन मैं) ये सच में इतने बड़े हैं को घाटराष्ट्र में इतने बड़े किसी की चुची नहीं होंगे. माँ तुम सच में परी हो ।
मंगलसूत्र और सिन्दूर लगाए सजी संवरी देवरानी कयामत ढा रही थी ।
बलदेव: माँ ब्लाउज बहुत अच्छा है।
देवरानी:सिर्फ ब्लाउज?
और कामुकता से बलदेव को देखती है।
बलदेव: वो भी बड़े अच्छे है।
देवरानी:बस सिर्फ बड़े अच्छे हैं। और कोई शब्द नहीं!
बलदेव: बहुत बड़े बड़े और अच्छे है।
इसका अर्थ समझ कर देवरानी शर्मा जाती है।
देवरानी बलदेव से दूर जाने लगती है। बलदेव उसके साड़ी का पल्लू पकड़ के उसके पास जाता है और उसके बड़े वक्ष को ढक देता है।
बलदेव के ऐसा करने से देवरानी बहुत खुश होती है।
बलदेव: अब चले माँ!
देवरानी: चलो बेटा जी!
दोनों रास्ते पर चलने लगते हैं और बलदेव रास्ते में कुछ कंकड़ उठा कर फिर उनको पानी में फेकने लगता है।
देवरानी: तुम धीरे-धीरे अपने बचपन में जा रहे हो
बलदेव: प्यार में अक्सर लोग बच्चे हो जाते हैं।
देवरानी: हाँ ये पत्थर ही मारते रहो पानी में बच्चों की तरह...!
बलदेव देवरानी की आंखो में दिखता है।
बलदेव: अभी तो पत्थर ही है। कुछ और मिलेगा तो वह भी मार लूँगा
ऐसे खुल्लमखुल्ला मारने की बात समझ कर देवरानी का मुँह खुला रह जाता है।
देवरानी: घत्त! बेशरम...!
जारी रहेगी