मजदूर नेता की हरकत

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मैं अपने जिस्म को सिकोड़ते हुए और एक हाथ से अपने मम्मों को और एक हाथ से अपनी टाँगों को जोड़ कर ढकने की असफ़ल कोशिश करती हुई रसोई में पहुँची।

अंदर 45 साल का एक रसोइया था। उसने मुझे देख कर एक सीटी बजाई और मेरे पास आकर मुझे सीधा खड़ा कर दिया। मैं झुकी जा रही थी मगर उसने मेरी नहीं चलने दी, जबरदस्ती मेरे सीने पर से हाथ हटा दिया।

'शानदार' उसने कहा। मैं शर्म से दोहरी हो रही थी। एक निचले स्तर के गंवार के सामने मैं अपनी इज्जत बचाने में नाकाबिल थी।

उसने फ़िर खींच कर चूत पर से दूसरा हाथ हटाया, मैंने टाँगें सिकोड़ ली।

यह देख कर उसने मेरी चूचियों को मसल दिया। चूचियों को उससे बचाने के लिये नीचे की ओर झुकी तो उसने अपनी दो अंगुलियाँ मेरी चूत में पीछे की तरफ़ से डाल दी। मेरी चूत वीर्य से गीली हो रही थी।

'खुब चुदी हो... लगता है।' उसने कहा।

'शेर खुद खाने के बाद कुछ बोटियाँ गीदड़ों के लिये भी छोड़ देता है। एक-आध मौका साहब मुझे भी देंगे। तब तेरी खबर लुँगा' कहकर उसने मुझे अपने जिस्म से लपेट लिया।

'भोगी भाई जी ने खाना लगाने के लिये कहा है।' मैंने उसे धक्का देते हुए कहा। उसने मुझसे अलग होने से पहले मेरे होंठों को एक बार कस कर चूम लिया।

'चल तुझे तो तसल्ली से चोदेंगे... पहले साहब को जी भर के मसल लेने दो।' उसने कहा, फिर मुझे खाने का सामान पकड़ाने लगा।

मैंने टेबल पर खाना लगाया। फिर डिनर भोगी भाई की गोद में बैठ कर लेना पड़ा।

वो भी नंगा ही बैठा था। उसका लंड सिकुड़ा हुआ था, मेरी चूत उसके नरम पड़े लंड को चूम रही थी। खाते हुए कभी मुझे मसलता, कभी चूमता जा रहा था।

उसके मुँह से शराब की बदबू आ रही थी। वो जब भी मुझे चूमता, मुझे उस पर गुस्सा आ जाता। खाते-खाते ही उसने मोबाइल पर कहीं रिंग किया।

'हलो, कौन... गावलेकर?'

'क्या कर रहा है?'

'अबे इधर आ जा। घर पर बोल देना कि रात में कहीं गश्त पर जाना है। यहीं रात गुजारेंगे... हमारे बृज साहब की जमानत यहीं है मेरी गोद में!' कहकर उसने मेरे एक निप्पल को जोर से उमेठा।

दोनों निप्पल बुरी तरह दर्द कर रहे थे। नहीं चाहते हुए भी मैं चीख उठी।

'सुना? अब झटाझट आ जा सारे काम छोड़ कर!' रात भर अपन दोनों इसकी जाँच पड़ताल करेंगे।'

मैं समझ गई कि भोगी भाई ने इंसपैक्टर गावलेकर को रात में अपने घर बुलाया है और दोनों रात भर मुझे चोदेंगे। खाना खाने के बाद मुझे बांहों में समेटे हुए ड्राईंग रूम में आ गया। मुझे अपनी बांहों में लेकर मेरे होंठों पर अपने मोटे-मोटे भद्दे होंठ रख कर चूमने लगा। फिर अपनी जीभ मेरे मुँह में डाल दी और मेरे मुँह का अपनी जीभ से मोआयना करने लगा। फिर वो सोफ़े पर बैठ गया और मुझे जमीन पर अपने कदमों पर बिठाया। टाँगें खोल कर मुझे अपनी टाँगों के जोड़ पर खींच लिया।

मैं उसका इशारा समझ कर उसके लंड को चूमने लगी। वो मेरे बालों पर हाथ फ़िरा रहा था। फिर मैंने उसके लंड को मुँह में ले लिया और उसके लंड को चूसने लगी और जीभ निकाल कर उसके लंड के ऊपर फ़िराने लगी। धीरे-धीरे उसका लंड हर्कत में आता जा रहा था। वो मेरे मुँह में फ़ूलने लगा। मैं और तेजी से उसके लंड पर अपना मुँह चलाने लगी।

कुछ ही देर में लंड फ़िर से पूरी तरह तन कर खड़ा हो गया था। वापस उसे चूत में लेने की सोच कर ही झुरझुरी सी आ रही थी। चूत का तो बुरा हाल था। ऐसा लग रहा था मानो अंदर से छिल गई हो। मैं इसलिए उसके लंड पर और तेजी से मुँह ऊपर नीचे करने लगी जिससे उसका मुँह में ही निकल जाये। मगर वो तो पूरा साँड कि तरह स्टैमिना रखता था। मेरी बहुत कोशिशों के बाद उसके लंड से हल्का सा रस निकलने लगा। मैं थक गई मगर उसके लंड से वीर्य निकला ही नहीं। तभी दरबान ने आकर गावलेकर के आने की इत्तला दी।

'उसे यहीं भेज दे।' मैं उठने लगी तो उसने कंधे पर जोर लगा कर कहा- तू कहाँ उठ रही है... चल अपना काम करती रह।' कहकर उसने वापस मेरे मुँह से अपना लंड सटा दिया।

मैंने भी मुँह खोल कर उसके लंड को वापस अपने मुँह में ले लिया।

तभी गावलेकर अंदर आया। वो कोई छ: फ़ीट का लंबा कद्दावर जिस्म वाला आदमी था। मेरे ऊपर नजर पड़ते ही उसका मुँह खुला का खुला रह गया। मैंने कातर नज़रों से उसकी तरफ़ देखा।

'आह भोगी भाई क्या नजारा है! इस हूर को कैसे वश में किया।' गावलेकर ने हंसते हुए कहा।

'आ बैठ... बड़ी शानदार चीज है... मक्खन की तरह मुलायम और भट्टी की तरह गरम।' भोगी भाई ने मेरे सिर को पकड़ कर उसकी तरफ़ घुमाया- ये है अंजलि सिंह! अपने बृज की बीवी! इसने कहा मेरे पति को छोड़ दो... मैंने कहा रात भर के लिए मेरे लंड पर बैठक लगा, फ़िर देखेंगे। समझदार औरत है... मान गई। अब ये रात भर तेरे पहलू को गर्म करेगी... जितनी चाहे ठोको।'

गावलेकर आकर पास में बैठ गया। भोगी भाई ने मुझे उसकी ओर ढकेल दिया। गावलेकर ने मुझे खींच कर अपनी गोद में बिठा लिया और मुझे चूमने लगा। मुझे तो अब अपने ऊपर घिन्न सी आने लगी थी। मगर इनकी बात तो माननी ही थी वरना ये तो मुर्दे को भी नोच लेते थे। मेरे जिस्म को भोगी भाई ने साफ़ करने नहीं दिया था। इसलिए जगह-जगह वीर्य सूख कर सफ़ेद पपड़ी की तरह दिख रहा था। दोनों चूचियों पर लाल-लाल दाग देख कर गावलेकर ने कहा- तू तो लगता है काफी जमानत वसूल कर चुका है।'

'हँ सोचा पहले देखूँ तो सही कि अपने स्टैंडर्ड की है या नहीं' भोगी भाई ने कहा।

'प्लीज़ साहब मुझे छोड़ दीजिये... सुबह तक मैं मर जाऊँगी।' मैंने गावलेकर से मिन्नतें की।

'घबरा मत... सुबह तक तो तुझे वैसे ही छोड़ देंगे। ज़िंदगी भर तुझे अपने पास थोड़े ही रखना है।' गावलेकर ने मेरे निप्प्लों को दो अंगुलियों के बीच मसलते हुए कहा।

'तूने अगर अब और बकवास की ना तो तेरा टेंटुआ दबा दूँगा।' भोगी भाई ने गुर्राते हुए कहा- तेरी अकड़ पूरी तरह गई नहीं है शायद' कहकर उसने मेरी दोनों चूचियों को पकड़ कर ऐसा उमेठा कि मेरी तो जान ही निकल गई।

'ओओओऊऊऊईईईई माँआँआँ मर गईईई' मैं पूरी ताकत से चीख उठी।

'जा जाकर गावलेकर के लिये शराब का एक पैग बना ला और टेबल तक घुटनों के बल जायेगी समझी।' भोगी भाई ने तेज आवाज में कहा। इतनी जलालत तो शायद किसी को नहीं मिली होगी। मैं हाथों और घुटनों के बल डायनिंग टेबल तक गई। मेरी चूचियाँ पके अनारों की तरह झूल रही थीं। मैं उसके लिये एक पैग बना कर लौट आई।

'गुड अब कुछ पालतू होती लग रही है' गावलेकर ने मेरे हाथ से ग्लास लेकर मुझे खींच कर वापस अपनी गोद में बिठा लिया। फिर मेरे होंठों से ग्लास को छुआते हुए बोला- ले एक सिप कर।'

मैंने अपना चेहरा मोड़ लिया, मैंने ज़िंदगी में कभी शराब को हाथ भी नहीं लगाया था। हमारे घरों में ये सब चलता था मगर मेरे बृज ने भी कभी शराब को नहीं छुआ था।

उसने वापस ग्लास मेरे होंठों से लगाया। मैंने साँस रोक कर थोड़ा सा अपने मुँह में लिया। बदबू इतनी थी कि उबकाई आने लगी। वे नाराज़ हो जायेंगे, ये सोच कर जैसे तैसे उसे पी लिया।

'और नहीं... प्लीज़, मैं आप लोगों को कुछ भी करने से नहीं रोक रही। ये काम मुझसे नहीं होगा'

पता नहीं दोनों को क्या सूझा कि फ़िर उन्होंने मुझे पीने के लिये जोर नहीं दिया।

गावलेकर मेरे जिस्म पर हाथ फ़ेर रहा था और मेरी चूचियों को चूमते हुए अपना ग्लास खाली कर रहा था। मुझे फ़िर अपनी गोद से उतार कर जमीन पर बिठा दिया। मैंने उसके पैंट की ज़िप खोली और उसके लंड को निकाल कर उसे मुँह में ले लिया। अपने एक हाथ से भोगी भाई के लंड को सहला रही थी। बारी-बारी से दोनों लंड को मुँह में भर कर कुछ देर तक चूसती और दूसरे के लंड को मुट्ठी में भर कर आगे पीछे करती। फ़िर यही काम दूसरे के साथ करती।

काफ़ी देर तक दोनों शराब पीते रहे। फ़िर गावलेकर ने उठ कर मुझे एक झटके से गोद में उठा लिया और बेड रूम में ले गया। बेडरूम में आकर मुझे बिस्तर पर पटक दिया। भोगी भाई भी साथ-साथ आ गया था। वो तो पहले से ही नंगा था। गावलेकर भी अपने कपड़े उतारने लगा।

मैं बिस्तर पर लेटी उसको कपड़े उतारते देख रही थी। मैंने उनके अगले कदम के बारे में सोच कर अपने आप अपने पैर फ़ैला दिये। मेरी चूत बाहर दिखने लगी। गावलेकर का लंड भोगी भाई की तरह ही मोटा और काफी लंबा था। वो अपने कपड़े वहीं फ़ेंक कर बिस्तर पर चढ़ गया। मैंने उसके लंड को हाथ में लेकर अपनी चूत की ओर खींचा मगर वो आगे नहीं बढ़ा। उसने मुझे बांहों से पकड़ कर उल्टी कर दिया और मेरे चूतड़ों से चिपक गया। अपने हाथों से दोनों चूतड़ों को अलग करके छेद पर अँगुली फ़िराने लगा। मैं उसका इरादा समझ गई कि वो मेरे गाँड को फाड़ने का इरादा बनाये हुए था।

मैं डर से चिहुँक उठी क्योंकि इस गैर-कुदरती चुदाई से मैं अभी तक अन्जान थी। सुना था कि गाँड मरवाने में बहुत दर्द होता है और गावलेकर का इतना मोटा लंड कैसे जायेगा ये भी सोच रही थी।

भोगी भाई ने उसकी ओर क्रीम का एक डिब्बा बढ़ाया। उसने ढेर सारी क्रीम लेकर मेरे पिछले छेद पर लगा दी और फ़िर एक अँगुली से उसको छेद के अंदर तक लगा दिया। अँगुली के अंदर जाते ही मैं उछल पड़ी।

पता नहीं आज मेरी क्या हालत होने वाली थी। इन आदमखोरों से रहम की उम्मीद करना बेवकूफ़ी थी। भोगी भाई मेरे चेहरे के सामने आकर मेरा मुँह जोर से अपने लंड पर दाब दिया। मैं छटपटा रही थी तो उसने मुझे सख्ती से पकड़ रखा था। मुँह से गूँ- गूँ की आवाज ही निकल पा रही थी। गावलेकर ने मेरे नितम्बों को फ़ैला कर मेरी गाँड के छेद पर अपना लंड सटाया। फिर आगे कि ओर एक तेज धक्का लगाया। उसके लंड के आगे का हिस्सा मेरी गाँड में जगह बनाते हुए धंस गया। मेरी हालत खराब हो रही थी। आँखें बाहर की ओर उबल कर आ रही थी।

वो कुछ देर उसी पोज़िशन में रुका रहा। दर्द हल्का सा कम हुआ तो उसने दुगने जोश से एक और धक्का लगाया। मुझे लगा मानो कोई मोटा मूसल मेरे अंदर डाल दिया गया हो। वो इसी तरह कुछ देर तक रुका रहा। फिर उसने अपने लंड को हर्कत दे दी। मेरी जान निकली जा रही थी। वो दोनों आगे और पीछे से अपने-अपने डंडों से मेरी कुटाई किये जा रहे थे।

धीरे-धीरे दर्द कम होने लगा। फिर तो दोनों तेज-तेज धक्के मारने लगे। दोनों में मानो होड़ हो रही थी कि कौन देर तक रुकता है। मगर मेरी हालत कि किसी को चिंता नहीं थी। भोगी भाई के स्टैमिना की तो मैं लोहा मानने लगी। करीब घंटे भर बाद दोनों ने अपने-अपने लंड से पिचकारी छोड़ दी। मेरे दोनों छेद टपकने लगे।

फिर तो रात भर ना तो खुद सोये और ना मुझे सोने दिया। सुबह तक तो मैं बेहोशी हालत में हो गई थी। सुबह दोनों मेरे जिस्म को जी भर कर नोचने के बाद चले गये। जाते-जाते भोगी भाई अपने नौकर से कह गया- इसे गर्म-गर्म दूध पिला। इसकी हालत थोड़ा ठीक हो तो घर पर छुड़वा देना और तू भी कुछ देर चाहे तो मुँह मार ले।'

मैं बिस्तर पर बिना किसी हलचल के पड़ी थी। टाँगें दोनों फ़ैली हुई थी और पैरों में अभी तक सैंडल पहने हुए थे। तीनों छेदों पर वीर्य के निशान थे। पूरे जिस्म पर अनगिनत दाँतों के और वीर्य के निशान पड़े हुए थे। चूचियाँ और निप्पल सुजे हुए थे। कुछ यही हालत मेरी चूत की भी हो रही थी। मैं फटी-फटी आँखों से दोनों को देख रही थी।

"तू घर जा... तेरे पति को दो एक घंटों में रिहा कर दूँगा" गावलेकर ने पैंट पहनते हुए कहा- भोगी भाई मजा आ गया। क्या पटाखा ढूँढा है। तबियत खुश हो गई। हम अपनी बातों से फ़िरने वाले नहीं हैं। तुझे कभी भी मेरी जरूरत पड़े तो जान हाजिर है।'

भोगी भाई मुस्कुरा दिया। फिर दोनों तैयार होकर निकल गये। मैं वैसी ही नंगी पड़ी रही बिस्तर पर।

तभी भीमा दूध का ग्लास लेकर आया और मुझे सहारा देकर उठाया। मैंने उसके हाथों से दूध का ग्लास ले लिया। उसने मुझे एक पेन-किलर भी दिया।

मैंने दूध का ग्लास खाली कर दिया। उसने खाली ग्लास हाथ से लेकर मेरे होंठों पर लगे दूध को अपनी जीभ से चाट कर साफ़ कर दिया।

वो कुछ देर तक मेरे होंठों को चूमता रहा और मेरे जिस्म पर आहिस्ता से हाथ फ़ेरता रहा। फिर वो उठा और डिटॉल ला कर मेरे जख्मों पर लगा दिया। अब मैं जिस्म में कुछ जान महसूस कर रही थी। फिर कुछ देर बाद आकर उसने मुझे सहारा देकर उठाया और मेरे जिस्म को बांहों में भर कर मुझे उसी हालत में बाथरूम में ले गया।

वहाँ काफी देर तक उसने मुझे गर्म पानी से नहलाया। जिस्म पोंछ कर मुझे बिस्तर पर ले गया और मुझे मेरे कपड़े लाकर दिए। वो जैसे ही जाने लगा, मैंने उसका हाथ पकड़ लिया। मेरी आँखों में उसके लिये एहसानमंदी के भाव थे। मैं उसके करीब आकर उसके जिस्म से लिपट गई।

मैं तब बहुत हल्का महसूस कर रही थी। मैं खुद ही उसका हाथ पकड़ कर बिस्तर पर ले गई। मैंने उससे लिपटते हुए ही उसकी पैंट की तरफ हाथ बढ़ाया। मैं उसके अहसान का बदला चुका देना चाहती थी। वो मेरे होंठों को, मेरी गर्दन को, मेरे गालों को चूमने लगा। फिर मेरी चूचियों पर हल्के से हाथ फ़िराने लगा।

'प्लीज़ मुझे प्यार करो... इतना प्यार करो कि कल रात की घटनायें मेरे दिमाग से हमेशा के लिये उतर जायें।' मैं बेहताशा रोने लगी।

वो मेरे एक-एक अंग को चूम रहा था। वो मेरे एक-एक अंग को सहलाता और प्यार करता। मैं उसके होंठ फ़ूलों की पंखुड़ियों की तरह पूरे जिस्म पर महसूस कर रही थी। अब मैं खुद ही गर्म होने लगी और मैं खुद ही उससे लिपटने और उसे चूमने लगी। उसका हाथ मैंने अपने हाथों में लेकर अपनी चूत पर रख दिया।

वो मेरी चूत को सहलाने लगा। फिर उसने मुझे बिस्तर के कोने पर बिठा कर मेरे सामने घुटनों के बल मुड़ गया। मेरे दोनों पैरों को अपने कंधे पर चढ़ा कर मेरी चूत पर अपने होंठ चिपका दिए।

उसकी जीभ साँप की तरह सरसराती हुई उसकी मुँह से निकल कर मेरी चूत में घुस गई। मैंने उसके सिर को अपने हाथों में ले रखा था। उत्तेजना में मैं उसके बालों को सहला रही थी और उसके सिर को चूत पर दाब रही थी।

मेरे मुँह से सिस्करियाँ निकल रही थी। कुछ देर में मैं अपनी कमर उचकाने लगी और उसके मुँह पर ही ढेर हो गई। मेरे जिस्म से मेरा सारा विसाद मेरे रस के रूप में निकलने लगा। वो मेरे चूत-रस को अपने मुँह में खींचता जा रहा था। कल से इतनी बार मेरे साथ चुदाई हुई थी कि मैं गिनती ही भुल गई थी मगर आज भीमा की हरकतों से अब मेरा खुल कर मेरी चूत ने रस छोड़ा।

भीमा के साथ मैं पूरे दिल से चुदाई कर रही थी। इसलिए अच्छा भी लग रहा था। मैंने उसे बिस्तर पर पटका और उसके ऊपर सवार हो गई। उसके जिस्म से मैंने कपड़ों को नोच कर हटा दिया। उसका मोटा ताज़ा लंड तना हुआ खड़ा था। काफी तगड़ा जिस्म था। मैं उसके जिस्म को चूमने लगी।

उसने उठने की कोशिश की तो मैंने गुर्राते हुए कहा, "चुप चाप पड़ा रह। मेरे जिस्म को भोगना चाहता था ना तो फ़िर भाग क्यों रहा है? ले भोग मेरे जिस्म को।

मैंने उसे चित्त लिटा दिया और उसके लंड के ऊपर अपनी चूत रखी। अपने हाथों से उसके लंड को सेट किया और उसके लंड पर बैठ गई। उसका लंड मेरी चूत की दीवारों को चूमता हुआ अंदर चला गया। फिर तो मैं उसके लंड पर उठने-बैठने लगी। मैंने सिर पीछे की ओर झटक दिया और अपने हाथों को उसके सीने पर फ़िराने लगी। वो मेरे मम्मों को सहला रहा था और मेरे निप्पलों को अंगुलियों से इधर-उधर घुमा रहा था। निप्पल भी उत्तेजना में खड़े हो गये थे।

काफी देर तक इस पोज़िशन में चुदाई करने के बाद मुझे वापस नीचे लिटा कर मेरी टाँगों को अपने कंधे पर रख दिया। इससे चूत ऊपर की ओर हो गई। अब लंड चूत में जाता हुआ साफ़ दिख रहा था। हम दोनों उत्तेजित हो कर एक साथ झड़ गये। वो मेरे जिस्म पर ही लुढ़क गया और तेज तेज साँसें लेने लगा। मैंने उसके होंठों पर एक प्यार भरा चुंबन दिया। फिर नीचे उतर कर तैयार हो गई।

भीमा मुझे घर तक छोड़ आया। दोपहर तक मेरे पति रिहा होकर घर आ गये। भोगी भाई ने अपना बयान बदल लिया था। मैंने उन्हें उनकी जमानत की कीमत नहीं बताई मगर अगले दिन ही उस कंपनी को छोड़ कर वहाँ से वापस जाने का मैंने ऐलान कर दिया। बृज ने भले ही कुछ नहीं पूछा मगर शायद उसे भी उसकी रिहाई की कीमत की भनक पड़ गई थी। इसलिए उसने भी मुझे ना नहीं किया और हम कुछ ही दिनों में अपना थोड़ा बहुत सामान पैक करके वो शहर छोड़ कर वापस आगरा आ गये।

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