लगाव

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अगले शनिवार ऑफिस की छुट्टी थी वह बोली कि आप दोपहर को मुझे कही मिलो। मैंने कहा कि किसी मॉल में चलते है वहाँ पर ही ब्रा मिल सकती है। वह बोली कि मुझे तो कुछ पता नहीं है। मैंने कहा कि वह कल आ जाये मैं उस के साथ चला चलुंगा। वह चली गयी। हम दोनों नयी खुली मॉल में गये। वहाँ एक बड़ी कंपनी की लॉन्जरी की शॉप थी वहाँ पर जा कर उस के साइज की ब्रा देखी बहुत महंगी थी लेकिन उस की जिद थी की उसे यही चाहिये तो दिला दी। वह बोली कि सोमवार को मैं पहन कर आऊँगी। मैंने पुछा कि घर वालों को क्या जबाव देगी तो वह बोली कि कीमत कम बता दूँगी।

अगले सोमवार को जब वह सुबह मिली तो उस का ऊपर का हिस्सा कसा हुआ लग रहा था। ब्रा के कारण साइज बड़ा हो गया था। मैं उसे घुर रहा था तो वह समझ कर बोली कि अब सही लग रही हूँ? मैने उसे बताया कि वह अलग लग रही है। उस ने कहा कि मैंने उस पर बड़ा उपकार किया है वह तो खुद कभी इतनी महंगी ब्रा नहीं खरीद पाती। मैंने उस से पुछा कि इस में मेरा क्या फायदा हुआ है तो वह बोली कि यह तुम्हें आगे पता चलेगा। उस की आँखों में शरारत झलक रही थी। मैं कुछ नहीं बोला।

शाम को आते में वह बोली कि इस ब्रा ने मेरी पर्सनेल्टी बदल दी है। कल तक जो मेरे पर ध्यान नहीं देते थे वह आज घुर-घुर कर देख रहे थे। लेकिन जिस को देखना चाहिये वह नहीं देख रहा था। मैंने इशारा समझ कर कहा कि मैं नकली कि बजाय असली चीज देखुँगा। उस ने मुझे हाथ मारा और कहा कि इतने गंदे विचार है तुम्हारे। मैंने कहा कि सच्चाई है अभी दबाओ तो सही बात पता चल जायेगी। वह मुझे मुक्कें मारने लगी। मैंने उस से कहा कि मजाक कर रहा हूँ लेकिन वह अब ज्यादा आकर्षक लग रही है । स्तनों का सही साइज का होना उसकी सुन्दरता को बढ़ा रहा है। अपनी प्रशंसा सुन कर वह शान्त हुई।

एक सप्ताहंत मैं काम में डुबा हुआ था जब घर के लिये निकला तो किसी की आवाज आयी कि मुझे भी साथ ले चले। देखा तो वही थी। कार में बि़ठा कर जब उस से पुछा कि वह अब तक ऑफिस में क्यों बैठी थी तो जबाव मिला की आप का इंतजार कर रही थी। आज आप के साथ जाना था। उस की यह साफगोई मुझे पसन्द थी। रात काफी हो चुकी थी। वह बोली कि आज आप को मुझे घर तक छोड़ना पड़ेगा। मैंने ना में सर हिलाया तो वह बोली कि मैं आप से कुछ नहीं माँगती हूँ आज आप से कुछ माँग रही हूँ तो आप मना कर रहे है। मैं तो आप की हर बात मान लेती हूँ। मुझे समझ नही आया कि उसे क्या जबाव दूँ। चुपचाप उस के घर की तरफ चल दिया। घर पहुँच कर उसे छोड़ कर चलने लगा तो वह बोली कि यहाँ तक आये है तो चाय पी कर जाना तो बनता है। उस की बात सुन कर मैं हँस कर बोला कि चलो तुम्हारी बात मान लेते है। यह कह कर मैं उस के साथ चल दिया। उस का घर चौथे फ्लोर पर था। घर उस ने ही खोला। मैंने हैरानी से उसे देखा तो वह बोली कि मम्मी-पापा किसी शादी में गये है। उस की बात सुन कर मुझे कुछ अजीब सा लगा, लेकिन मैंने उसे जाहिर नहीं किया।

घर में मुझे बिठा कर वह कपड़ें बदलने चली गयी। जब कपड़ें बदल कर आयी तो देखा कि ट्रेक सूट में थी। इस में वह अच्छी लग रही थी। मेरी आँखों में अपनी प्रशंसा देख कर बोली कि कुछ मत कहिये मुझे आप की आँखों से पता चल जाता है। वह फिर मेरे लिये पानी लेने चली गयी। घर सरकारी फ्लैट था। मैं पानी पीने लगा तो वह बोली कि आज आप को अपना घर दिखाती हूँ। मैं उठ कर उस के साथ चल दिया। कमरे दिखा कर वह बोली कि हमारे घर की सबसे बढ़िया खासियत है इस का पार्क के सामने होना। सारे दिन ठंड़ी हवा चलती रहती है यह कह कर उस ने पीछे की बालकॉनी का दरवाजा खोल दिया। बाहर अंधेरे के कारण कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन ताजी हवा ने मन खुश कर दिया। मैं बालकॉनी में खड़ा हवा का आनंद ले रहा था तभी वह मेरे पीछे आ कर खड़ी हो गयी। मुझे उस की सांसे अपनी गरदन पर महसुस हो रही थी। कुछ देर हम दोनों ऐसे ही खड़ें रहे मैं पीछे की तरफ मुड़ा तो वह मुझ से चिपक गयी। उस के बदन की खुशबु मेरी नाक में भर रही थी। मुझे लग रहा था कि आज उस का इरादा सही नहीं है। कुछ किया नहीं जा सकता था। उस ने दरवाजा बंद किया और परदा खिसका दिया। इस के बाद वह पलटी और मेरे सामने खड़ी हो गयी। मुझे चुपचाप खड़ा देख कर बोली कि क्या बात है डर लग रहा है मुझ से?

किस बात का डर

मेरे साथ अकेले होने का

कोई पहली बार तो तुम्हारे साथ अकेला नहीं हूँ

आज आप मेरे रहमो करम पर है

तुम्हें मेरे से डर लगना चाहिये

आप से किस बात का डर

बढ़िया है हम दोनों एक दूसरे से नहीं डरते

क्या पीयेगे?

जो तुम पिलाना चाहो

मैं तो बहुत कुछ पिलाना चाहती हूँ आप ही दूर भाग जाते है

आज सब कुछ पी लुगाँ

अच्छा जी यह बात है

बातें है बातों का क्या

मैं कॉफी बना कर लाती हूँ

जल्दी करना, मैं लेट हो रहा हूँ

कल कौन सा ऑफिस जाना है

इरादा क्या है

नेक है

नेक तो नहीं लग रहा है

देखते है

वह किचन में चली गयी। मैं वही बैठा घर का निरिक्षण करने लगा। एक मध्यम वर्गीय घर में जो सामान हो सकता था वह वहाँ था। चार लोग रहने वाले थे इस लिये ज्यादा सामान नहीं भरा हूआ था। जब बोर होने लगा तो उठ कर किचन में चला गया। वह कॉफी बनाने में लगी थी। मैंने पुछा कि रात को अकेले में डर नहीं लगेगा तो वह बोली कि लगेगा तो लेकिन कुछ कर नहीं सकती इसी लिये तो आप को साथ ले कर आयी थी। कुछ देर तो अकेलापन दूर होगा। मैं उसे काम करते देखने लगा। वह चुपचाप कॉफी बनाती रही, जब बन गयी तो बिस्कुट और कॉफी के मग प्लेट में रख कर चल दी। मैं भी उस के पीछे हो लिया। आज वह ट्रेक सूट में जंच रही थी । उस के कुल्हों और कमर की खम उस के चलने में दिख रही थी। इन कपड़ों में वह बला की सैक्सी लग रही थी। मैं उसे ध्यान से देखता हूआ कमरे में आ गया।

सोफे पर बैठा तो वह बोली कि और क्या खायेगे? मैंने कहा कि कॉफी बहुत है इस के बाद मैं निकलुगा। वह बोली कि पहले कॉफी तो पी ले। मैंने कॉफी का मग उठा लिया। वह मेरे साथ सोफे के हथ्थे पर बैठ गयी। इस कारण से उस की छातियाँ मेरे सामने थी। उस ने चेहरा मेरी तरफ कर रखा था। कॉफी पी कर मैं बोला कि कॉफी तो अच्छी बना लेती हो। वह बोली कि खाना भी सही बना लेती हूँ। मैंने उस की तरफ मुँह किया तो देखा कि वह मुझे ही देख रही थी। उस की आँखे आज अलग सी लग रही थी। मैं सोच ही रहा था कि कुछ बोली तभी वह बोली कि मेरे सामने आप की जबान बंद क्यो हो जाती है?

बोल तो रहा हूँ

जो मैं सुनना चाहती हूँ वह तो नहीं बोल रहे है

क्या सुनना चाहती हो

यह भी अब मैं ही बताऊँ

तुम्हें पता है वह मैं नहीं कहुँगा, ऐसी चाहत ही क्यों करती हो?

चाहत भी नहीं कर सकती, यह तो गलत बात है

कुछ चीजे बिना बोले भी समझी जा सकती है, तुम्हें सब समझ आता है

क्या समझु की मुझे आप ब्रा दिलवाते हो और पुछते हो कि लड़कें अब कैसी निगाह से देखते है?

लड़कें ही तो देखगे

आप क्या करेगे?

मेरे भाग्य में तुम नहीं हो, यह मुझे पता है

मुझे यह पता है कि आज आप मेरे पास हो यही बहुत है मेरे लिये

बड़े खतरनाक इरादे है

है तो खतरनाक बचने का कोई चांस नहीं है

बचना कौन चाहता है

मेरी बात सुन कर वह कॉफी का मग रख कर मेरी तरफ झुकी और मेरे माथे पर चुम लिया। मैंने भी अपना मग मेज पर रख दिया। उस का चेहरा बांहों से अपनी तरफ किया और उस के होंठो पर किस किया। वह कसमसायी लेकिन बोली कुछ नही। मैंने अपने होंठ उस की छातियों के मध्य में रख दिये। वह कांप ऊठी। मेरे होंठ वही पड़े रहे। उस की गरम सांसे मेरे चेहरे पर लग रही थी। मेरे अपने दोनों हाथों से उसे थाम लिया नहीं तो वह सोफे से गिर जाती। भावना झुकी और मुझे गिराते हुये सोफे पर लेट गयी। अब वह मेरे ऊपर लेटी हुई थी। उस के उरोज मेरी छाती में दब रहे थे। उस ने मेरे होंठों पर अपनी छाप लगानी शुरु कर दी थी। मैं भी इस में उस का साथ देने लगा। काफी देर तक दोनों एक-दूसरे को चुमने में लगे रहे। इस के बाद दोनों में उत्तेजना भर गयी। मेरा लिंग तनाव के कारण ब्रीफ कस गया था। मुझे परेशानी सी हो रही थी लेकिन भावना के मेरे ऊपर होने के कारण कुछ कर नहीं पा रहा था। अब उस ने अपने कुल्हों को मेरे लिंग पर जोर जोर से मारना शुरु कर दिया। मुझे पता था कि वह उस दिन कार में हुई घटना का बदला ले रही थी। कुछ देर तो मैं इस का मजा लेता रहा लेकिन जब वह अपने कुल्हों को मेरे लिंग पर ऊपर नीचे करके रगड़ने लगी तो मुझे लगा कि मैं यही पर स्खलित ना हो जाऊँ जो मैं होना नहीं चाहता था। भावना ऐसा चाहती थी, उस का मन था कि मेरे कपड़ें खराब हो जाये।

इसे रोकने के लिये मैंने अपने हाथ उस के कुल्हों पर कस दिये। इस से उसके कुल्हें उछलने बंद हो गये। उस के होंठ मेरे चेहरे को बुरी तरह से चुमने लगे। मैंने अपना हाथ उस की ट्रेक सुट की पेंट के अंदर डाल कर कुल्हों की गहराई से आगे जा कर उस की पेंटी को छुआ तो पता चला कि वह गीली थी। मुझे पता था कि वह मिलन के लिये मरी जा रही थी, लेकिन सोफे पर यह सब आराम से नहीं होने वाला था। साथ ही सोफे पर दाग लगने का डर भी था। मैंने उस के कान में कहा कि सोफा गंदा हो जायेगा, कमरे में चलते है तो वह बोली कि ले चलों रोका किसने है।

मैंने उसे गोद में उठाया और पुछा कि कहां चलना है तो उस ने अपने कमरे का इशारा किया। मैंने उसे उस के बेड पर ले जा कर लिटा दिया। वह मेरी तरफ देख रही थी। मैं भी पुरी तरह से तैयार था अब कुछ नहीं हो सकता था। वासना की आग दोनों के शरीर के अंदर पुरी तरह से भड़क गयी थी। मैंने अपनी कमीज, पेंट उतार दिये। अब मैं उस के सामने ब्रीफ में खड़ा था। ब्रीफ भी लिंग के तने होने के कारण तनी खड़ी थी। उस की नजर वही पर थी।

मैंने पुछा कि डर तो नहीं लग रहा है

किस बात का डर

दर्द बहुत होगा

कोई बात नहीं

उस के बाद होने वाली परेशानी

तुम नहीं होने दोगे

इतना विश्वास है मुझ पर

तुम्हें इतने दिनों में यह भी नही पता चला है

कह नही सकता

मैंने बेड पर बैठ कर उस के ट्रेक सुट के अपर की चेन नीचे खींच दी। अब वह ब्रा में मेरे सामने थी। अपर उतर कर नीचे आ गया। वह ब्रा में अच्छी लग रही थी, लेकिन मेरे पास समय कम था। वह भी जल्दी चाहती थी। उस ने ब्रा उतार दी। अब उस के साइज में छोटे लेकिन कसे उरोज मेरी आंखों के सामने थे। मैंने पहले उन्हें हाथों से सहलाया फिर अपने होठों से उन को चुमना शुरु कर दिया। वह आहहहहहहहहहह उहहहह करने लग गयी

उस के काले निप्पल तन कर खडे़ थे मैं अपने होंठों में ले कर उन का रस ले रहा था दूसरे हाथ से उस के दूसरे उरोज का दबा रहा था। वह उहहह कर रही थी लेकिन मुझे पता था कि उसे यह अच्छा लग रहा था। उरोजों का जोरदार मर्दन करने के बाद मेरा ध्यान उस के पेट की तरफ गया वहाँ पर चुम्बन ले कर मैंने उस की कमर के नीचे की तरफ होंठ रख दिये। वह कांप रही थी। मैंने हाथ से उस की पेंट को कुल्हों से नीचे खिसका दिया। हाथ से पेंटी के ऊपर से योनि को सहलाया। योनि से पानी निकल रहा था। मैंने उस की पेंटी उतार कर नीचे डाल दी। अब वह बिल्कुल नंगी थी। उस की योनि को होंठों से सहलाया और उन्हें नीचे से ऊपर चाटना शुरु कर दिया। उत्तेजना के कारण उस ने मेरे सर के बाल खींच लिये।

मैं उस की योनि में जीभ डाल कर उस का स्वाद लेने के बाद उस की जाँघों को चुमता हुआ उस के पंजों पर पहुँचा और उन्हें चुम कर उसे उल्टा कर दिया। इस के बाद उस की पिड़लियों को चुमता हुआ उस के कुल्हों को दांत से काट कर उस की पीठ पर चुम कर उस की गरदन पर चुम्बन करने लग गया। वह बुरी तरह से काँप रही थी। शायद उसे इस की आदत नही थी। मैंने उसे पलटा और उस की टाँगों के बीच बैठ गया।

उस की फूली हुई योनि बंद थी। दरार बहुत छोटी लग रही थी। मेरा लिंग अपने पुरे शरुर पर था। 6 इंच और 4 इंच चौड़ा लिंग उस की योनि में जाने के लिये तड़फ रहा था। मुझे लग रहा था कि वह दर्द के कारण हल्ला करेगी। शायद उस की पहली बार हो। अपने मन में आये विचारों को निकाल कर मैंने अपने लिंग के मुँह को दो तीन बार उस की योनि के मुँह पर रगड़ा और सुपाड़े को योनि में डाल दिया। योनि में बहुत नमी थी। सुपाड़ा धीरे से योनि में घुस गया। भावना के चेहरे पर दर्द के भाव आये लेकिन मैंने धीरे धीरे पुरा लिंग उस की योनि में डाल दिया। अब वह अपना सिर इधर-उधर कर रही थी। यह देख कर मैं रुक गया। उस ने आँखों से आगे बढ़ने का इशारा किया।

मैंने लिंग को अंदर बाहर करना शुरु कर दिया। कुछ देर बाद भावना भी कुल्हें उठा कर मेरा साथ देने लग गयी। कमरे में फचा-फच की आवाज आने लगी। भावना डिस्चार्ज हो गयी थी। मेरे धक्कें की रफ्तार बढ़ गयी। उस के नाखुन मेरी पीठ में गढ़ गये। कुछ देर बाद में उस के ऊपर से उतर कर उस की बगल में लेट गया। वह मेरे ऊपर आ गयी और अपने कुल्हों को लिंग से रगड़ने लग गयी। मैंने लिंग को उस की योनि में डाल दिया। वह धीरे-धीरे अपने कुल्हों को हिला कर लिंग को मथने लगी। योनि की मासपेशियां अंदर से लिंग को बुरी तरह से कस रही थी। योनि के कसे होने के कारण लिंग को अंदर बाहर करना मुश्किल हो रहा था। कुछ देर बाद वह भी थक कर मेरे ऊपर से उतर गयी।

मैंने बैठ कर उसे अपने ऊपर बिठा लिया और उस के कुल्हों के नीचे हाथ लगा कर उस की योनि में लिंग डाल दिया। लिंग गहराई में जाने के कारण उस के मुँह से कराह निकली। फिर वह धीरे-धीरे कुल्हों को हिलाने लग गयी। मैं उस के उरोजों को चुसने लग गया। वह बोली कि तुम एक साथ ही मेरा दम निकाल दोगे। मैंने कहा कि रुका नहीं जा रहा है। वह मेरे होंठों को चुमने लग गयी। उस की जीभ मेरे मुँह में किलोल करने लगी। हम दोनों आग की गर्मी से जल रहे थे अब इस से छुटकारा पाना चाहते थे। लेकिन चरम अभी दूर था।

मैंने उसे फिर से लिटाया और उस में प्रवेश किया। अब मैं अपनी पुरी ताकत से धक्कें लगा रहा था। मेरा शरीर एक लकीर में सीधा था और पुरी ताकत से लिंग अंदर बाहर कर रहा था। फिर अचानक मेरी आँखों के सामने अंधेरा छा गया और मैं भावना के ऊपर लेट गया। जब हालत सही हुई तो नीचे आकर भावना की बगल में लेट गया। उस की छातियाँ भी ऊपर-नीचे हो रही थी। कुछ देर बाद हम दोनों की सांसे ठीक हो गयी। मैंने अपने नीचे देखा कि लिंग का क्या हाल है तो पता चला कि वह भावना के और मेरे शरीर के द्रव्यों से लिथड़ा हुआ था। उस पर खुन का कोई निशान नहीं था। यह बताता था कि भावना का यह पहला संभोग नहीं था। उस की सील पहले से ही टुटी हुई थी। मुझे इस के कोई मतलब नहीं था।

मैंने भावना से कहा कि नीचे से साफ कर ले तो वह बोली कि मेरी पेंटी से साफ कर दो, मुझ से उठा नहीं जा रहा है। मैंने पुछा कि चलो बाथरुम में साफ कर लेते है तो वह बोली कि मुझे उठा कर ले चलो। मैं उसे गोद में ले कर बाथरुम में गया और उसे खड़ा करके उस की योनि को पानी से साफ कर के अपने लिंग को भी पानी से घो लिया। फिर उसे वापस कमरे में ला कर बेड पर बिठा दिया। वह सही थी। उसे उस के कपड़ें पहनने को दिये तो वह बोली कि अभी मन नहीं भरा है। उस की इस बात पर मैंने कहा कि दूसरे दौर के बाद कल जब लगड़ा के चलोगी तो परेशानी खड़ी हो जायेगी। उसे मेरी बात समझ आ गयी। वह कपड़ें पहनने लगी। मैं भी अपने कपड़ें पहन कर तैयार हो गया। एक घंटा बीत चुका था। मुझे घर के लिये निकलना था। मैंने भावना से पुछा कि वह सही है तो वह शरारत से बोली कि सारा बदन तोड़ कर पुछ रहे हो कि सही हूँ या नहीं?

सुबह सब सही हो जायेगा। मैं अब चलता हूँ। वह बोली कि तुम रुकों, मैं बाहर देख कर आती हूँ की कोई है तो नहीं। उस ने दरवाजा खोल कर बाहर झाका और मुझे बाहर जाने का इशारा किया मैं चुपचाप बिना आवाज किये सिढ़ीयां उतर गया। अपनी कार लेकर घर के लिये चल दिया।

घर काफी देर से पहुँचा लेकिन मेरा देर से आना सब को पता था। कुछ देर बाद भावना का फोन आया कि घर पहुँच गये। मैंने बताया कि कुछ देर पहले ही पहुँचा हूँ। उस से हाल पुछा तो वह बोली कि मैं तो आसमान पर हुँ अभी कुछ नहीं बता सकती। यह कह कर उस ने फोन काट दिया। मैं भी थका था। जोरदार संभोग के कारण थकान तो होनी ही थी।

सोमवार को मुझे आशा नहीं थी कि भावना मेरे साथ जायेगी लेकिन वह रोड़ पर मेरा इंतजार करती मिली। उसे बिठा कर मैं ऑफिस के लिये चल दिया। रास्ते में उस ने बताया कि वह कल सारे दिन बिस्तर पर पड़ी रही। सारा बदन टुट रहा था। लेकिन आज ऑफिस आना जरुरी थी इस लिये आयी है। मैंने कुछ पुछने के लिये मुँह खोला लेकिन कुछ सोच कर चुप हो गया । मेरी यह बात भावना ने नोट कर ली और बोली कि

क्या पुछना चाह रहे थे?

कुछ नहीं,

कुछ तो है जो तुम्हारे दिमाग में चल रहा है

हाँ है तो सही लेकिन बुरा मत मानना

यह तो बात सुन कर ही पता चलेगा

हम ने कुछ उपाय नहीं किया था, यही मन में चल रहा है

मैंने गोली खा ली है

गोली

पहले से ला कर रखी थी, सब तैयारी कर के रखी थी तुम चिन्ता ना करो

बड़ी खुरापाती हो

अपनी चिन्ता करना आता है मुझे

अच्छी बात है, मैं इस बात से परेशाना था

कोई और बात तुम ने पुछनी है

नहीं

नहीं पक्का

पक्का

मुझे लगा कि पुछोगे कि उस दिन खुन निकला या नहीं?

मुझे ध्यान नहीं है कि खुन था या नहीं, लेकिन इस का मुझे क्या करना है?

मेरा पहली बार था, ऐसा होना चाहिये था, लेकिन खुन नहीं निकला था, दर्द बहुत हुआ था। लगा था कि चीख पड़ुँगी

चीखी तो नहीं थी

इस दिन के लिये जाने कब से मरी जा रही थी, चीख कर उसे खराब नहीं करना चाहती थी।

और कोई परेशानी तो नहीं हुई

क्या होना चाहिये था

नीचे दर्द या सुजन

सुजन तो है, चलने में दर्द हो रहा है।

काम चला लोगी

महीने में एक बार ऐसी हालत हम लड़कियों की होती ही है, यह कोई अजीब बात नही है।

उस दिन बहुत समय लगा था

तुम्हें कैसे पता?

पता है

पहले किसी के साथ किया है

यह कैसा सवाल है

जब नहीं किया तो कैसे पता कि ज्यादा समय लगा था

हर चीज कर के ही थोड़ी ना पता कि जाती है पढ़ लिख कर भी पता चल जाता है

क्या पता है, कितना समय लगता है

ज्यादा से ज्यादा 10 मिनट, लेकिन हमे तो आधा घंटा लग गया था

बीच में रुके भी तो थे

हाँ यह बात तो है

कैसा अनुभव रहा?

तुम बताओ

मैं बता नहीं सकता

मैं अभी नहीं बता सकती

तुम ने मुझे बहुत नोचा है

तुम्हें पता है कहाँ कहाँ पर काटा है, दिखा भी नहीं सकती

उस समय कुछ ध्यान ही नहीं था

मैं तो आसमान में उड़ रही थी।

अपना ध्यान रखना

यह क्या बात हुई

क्या बात है यही तो कहा है कि अपना ध्यान रखना

तुम्हें कब से मेरी चिन्ता होने लग गयी

जब से तुम्हें पता चला है, मैं तो हमेशा तुम्हारी चिन्ता करता हूँ, लेकिन तुम समझती नहीं हो

कहते क्यों नहीं हो

तुम्हें पता है तुम मेरी किस्मत में नहीं हो

पता है

किसी को ढ़ुढो और उस से शादी कर लो, यही मेरी चिन्ता है

कर लुँगी

हमारी बातों में कब ऑफिस आ गया पता ही नहीं चला। ऑफिस में कोई नहीं था। भावना मेरे ऑफिस में आयी और मुझे चुम कर चली गयी। मैं काफी देर तक उस के चुम्बन का अहसास करता रहा।

शाम को भावना पहले ही घर चली गयी। कुछ दिन तक वह सुबह भी मेरे साथ नहीं गयी। मुझे लगा कि कुछ गड़बड़ है लेकिन ऑफिस में उस से पुछ नहीं पाया। ना ही वह मेरे पास आयी। एक दिन एक दूसरी काम करने वाली लड़की काफी देर मेरे साथ ऑफिस में बैठी रही। मैं उसे कुछ सीखला रहा था। शाम को घर जाते में बस स्टैड़ पर भावना खड़ी मिली। उसे कार में बिठाया और चल दिया। रास्ते में वह बोली कि

वह तुम्हारें साथ क्या कर रही थी।

कौन और क्या साफ कहो

तुम्हें सब पता है

मुझे समझ नहीं आ रहा,

आज वह सड़ी हुई सारे दिन तुम्हारे साथ ऑफिस में बैठी रही थी मुझे सब पता है

मैं उसे ट्रेनिंग दे रहा था

ऐसा क्या है जो उसे सीखा रहे थे। पहले तो सब को सीखाते थे

नया सॉफ्टवेयर है उसे पहले से कुछ कुछ आता है इस लिये उसे सीखा रहा हूँ फिर वह सब को सिखायेगी।

मैं नहीं सिखुँगी उस से

जैसी तुम्हारी मर्जी

तुम मुझे सिखा देना

सीखा दूँगा

कोई तुम्हारे पास बैठे मुझे बर्दास्त नही होता

बर्दास्त करना सीख लो

क्यों

तुम तो किसी और के पीछे हो तो मेरे पास कोई और ना आये कैसे होगा

मेरा मन नहीं मानता

मैं किसी के साथ नहीं हूँ यह समझ लो

मुझे पता है लेकिन मेरा मन तुम्हारे साथ किसी को देख कर काबु में नहीं रहता है

तुम्हारे जितना कोई मेरे पास नहीं आ सकता

पता है

फिर भी ऐसी अकुलाहट क्यो?

मन पर काबु नहीं होता

काबु पाना सीखो

तुम कैसे कर पाते हो, मेरा किसी के साथ घुमना

मुझे कोई फर्क नहीं पड़ता

सिर्फ शरीर चाहिये था

वह मेरा आग्रह नहीं था तुम ही चाहती थी मैंने तुम्हारे मन का किया था

हाँ मैं ही चाहती थी लेकिन तुम मेरे साथ ऐसा कैसे कर सकते हो, मुझे डाँटते क्यों नहीं हो

तुम अपने लिये सही लड़का ढुढ़ रही हो तो मैं क्यों बुरा मानु

बुरा मत मानो लेकिन ऐसा दिखा तो सकते हो कि नाराज हो

मेरी नाजारगी से तुम्हें कोई असर पड़ता है

हाँ

फिर तो तुम्हारी शादी हो ली

क्यों

मैं तो किसी लड़के को पसन्द ही नहीं करुँगा

अच्छी बात है मैं बिना शादी के रह लुगी

यह नहीं होगा, इसी लिये मैं तुम से कुछ नहीं कहता

मैं और तुम एक-दूसरे से प्यार करते है लेकिन एक-दूसरे को पा नहीं सकते, कैसी माया है

हाँ, हमें ऐसी ही सजा मिली है, हम दोनों इस से भाग नहीं सकते, इस लिये मैं उस बात के बारे में सोचता भी नही हूँ

लेकिन प्यार कर सकते हो

तुम उस के लिये मरी जा रही थी, उस दिन में भी तुम्हारे सामने हार गया

शुरुआत तो तुमने ही करी थी, उस दिन कार में

मेरी गल्ती थी, मैं बहुत गुस्से में था, और कुछ समझ नहीं आया तो वह कर दिया

करा कुछ नही लेकिन मेरे अंदर आग लगा दी, उसे मुझे ही बुझाना पड़ा

माफ कर दो

तुम क्या हो मुझे समझ नहीं आते, कभी तो मेरी चिन्ता करते हो कभी मुझे लगता है कि मुझे कुछ कहते नही हो

मैं ऐसा ही हूँ, उस दिन तुम नहीं चाहती तो मैं कुछ नही करता

मैं चाहती थी कि तुम मेरे साथ पहली बार करो, ताकि मैं हमेशा याद रखुं कि मेरी सील मेरे प्रेमी ने ही तोड़ी थी।

प्यार में जरुरी नहीं है कि मन के साथ शरीर भी मिले

मुझे शरीर भी चाहिये था। इस शरीर की चाह में मैंने जाने कितनी रातें जाग कर काटी है

अब खुश हो

हाँ मेरे मन का हुआ है तुम ने ना नही किया

तुम्हारे सामने मेरी नही चलती है

मुझे पता है

सावधान रहना, यह बात किसी को पता नहीं चलनी चाहिये

किसी को भी पता नहीं चलेगी, मेरे होने वाले पति को भी नहीं

एक सन्नाटा हम दोनों के बीच पसर गया। सारे रास्ते हम दोनों कुछ नहीं बोले। शायद उस रात के बाद हम दोनों के पास कुछ कहने को बचा नहीं था। भावना अपने लिये मन पसन्द लड़का ढुढ़ रही थी। कई लड़कों से हो कर उस की निगाह एक सुन्दर लड़के पर जा कर अटक गयी। वह सुन्दर तो था लेकिन तेज नहीं था। ऐसा ही वर भावना को अपने लिये चाहिये था। दोनों ने शीघ्र ही शादी कर ली और शादी के बाद भावना कंपनी छोड़ कर दूसरी कंपनी में चली गयी। उस के जाने का मुझे दूख तो था लेकिन मुझे पता था कि वह जब तक मेरे साथ रहेगी उस की मेरे पर अधिकार जमाने की आदत किसी भी दिन उस के वैवाहिक जीवन में तुफान ला सकती है। यह मैं नहीं चाहता था।

इस लिये जिस दिन वह मेरी कंपनी छोड़ कर गयी, मैं उदास होने के साथ-साथ खुश भी था। व्यक्ति के जीवन में ऐसे क्षण कम ही आते है कि जब वह उदास भी हो और खुश भी हो। कंपनी से जाने के बाद भी भावना मेरे सम्पर्क में रही लेकिन यह सम्पर्क भी उस के किसी फायदे से ही जुड़ा होता था। मैं सब कुछ जान कर भी उस की सहायता कर देता था कि कभी उस का मेरे साथ कोई रिश्ता था। अब चाहे वह अपने स्वार्थ के कारण ही मुझ से सम्पर्क करती हो। जीवन मे सब किसी ना किसी स्वार्थ के कारण ही किसी से जुड़ते है। यहाँ भी वही बात थी। इस का बुरा क्या मानना।

समाप्त

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