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कनक और राजकुमार की सुहागरात
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कनक और राजकुमार की सुहागरात

कनक ने अपने पति राजकुमार की गल्तियों का क्षमा कर दिया था। राजकुमार ने भी कनक को पत्नी के रुप में स्वीकार कर लिया था। उन के विवाह के बाद घटनाक्रम इतनी तेजी से हुआ की वह अपने विवाह को सम्पुर्णता देना ही भुल गये थे। चन्दन के घर जाने के बाद आज उन्हें एकान्त मिला था। वह इस का फायदा उठाना चाहते थे। कनक चाहती थी कि वह पति से अपने मन की बात कह सके और उसके मन की बात सुन सके। आज ही वह अवसर था। उस के जीवन में बहुत तेजी से परिवर्तन हुआ था कि वह अभी तक संभली नहीं थी, लेकिन पति से एकान्त में मुलाकात आज ही नसीब में आई थी।

कनक का सोने का कमरा उसके तिमजिंला मकान की तीसरी मंजिल पर था। वह अपने कमरे में चली गयी। साथ में राजकुमार भी था। नौकर चाकर सब सोने चले गये थे। केवल चौकीदार अपने काम पर लगे थे। रात साढ़े ग्यारह बज रहे थे। उसे पता था कि सुबह राजकुमार को अपनी माँ से मिलने के लिये बाहर जाना है इससे पहले उसे चन्दन की माँ को साथ लेकर काशी छोड़ कर आना था। उन दोनों के पास आज का ही समय था लेकिन कनक इसी बात से खुश थी कि आज उसे अपने पति का सानिध्य मिल सकेगा।

राजकुमार जब कुर्ता उतार कर सोने के लिये लेटने लगा तो कनक ने उसे रोक लिया, फिर सर पर साड़ी कर के राजकुमार के पाँव छु लिये। राजकुमार ने उसे कंधो से पकड़ कर उठा लिया और अपने से सटा लिया। राजकुमार का सम्पुर्ण अस्तित्व आज जैसे हिल गया था। वह और कुछ सोचना नहीं चाहता था। आज तक जिस चित्र की कल्पना वह मानस में किया करता था वह साक्षात उस के साथ खड़ी थी। अब समय था उसे स्वीकारने का। वह पहले ही उसे स्वीकारने से भाग खड़ा हुआ था। अब वह ऐसी गल्ती नहीं करना चाहता था। कनक के बदन की खुशबु उस की नाक में भर रही थी। उस से अपने संकोच को दूर करके उसे अपने गले लगा लिया। कनक भी लता की तरह उस के अंग से लिपट गयी।

राजकुमार ने कनक के माथे पर अपने होंठों की छाप लगा दी, फिर उस ने कनक की दोनों आँखों को चुम लिया। उस के बाद कनक के लरजते, काँपते होंठ राजकुमार के होंठों से जुड़ गये। दोनों गहरे चुम्बन में रत हो गये। इस क्षण के लिये दोनों ने बहुत इंतजार किया था। कनक की बांहें राजकुमार के गले में लिपट गयी। वह अपने पति के कान में बोली कि अब तो मुझ से नाराज नही है? राजकुमार बोला कि अपने प्राण से भी कोई नाराज हो सकता है। वह तो मेरी मंदबुद्धि थी जो मैंने इतनी गल्तियां की। तुम उन्हें क्षमा कर देना। कनक ने कुछ नहीं कहा।

उस का शरीर तो राजकुमार के सामिप्य का आनंद ले रहा था। उस ने जिस को अपने प्राणों का आधार माना था वह आज उस के पास था। वह अपने भाग्य को सराह रही थी। नहीं तो पहले उस के साथ इतना कुछ गुजर चुका था कि उस के मन की इच्छा ही मर गयी थी। वह कुछ चाहना ही भुल गयी थी। कुछ उस का गर्व कुछ राजकुमार का संकोच दोनों ने मिल कर उन के विवाह पर ही सवाल खड़े कर दिये थे। फिर उस ने मान में इतनी बड़ी गल्ती करी थी जो उस के लिये प्राण हरने वाली बन गयी थी। वह तो प्रभु की उस के ऊपर दया थी कि उन्होंने उस पर आये हर संकट को चंदर और उसकी भाभी के द्रारा दूर कर दिया था। वह उन दोनों की ऋृणी थी।

राजकुमार पलंग पर एक तरफ लेट गया। कनक भी उस के बगल में पलंग पर उस के समीप बैठ गयी। दोनों के पास बहुत बातें करने को थी। कनक शर्म के कारण कुछ कहने से संकोच कर रही थी, लेकिन उसे अपने पति के उस के प्रति प्रेम का पता चल गया था इस लिये उस के मन का सारा संताप समाप्त हो गया था। कनक ने राजकुमार का सर अपनी गोद में रख लिया। राजकुमार भी उस की गोद में आराम से लेट गया। कनक के बाल उस के चेहरे पर पड़ रहे थे लेकिन कोई उन्हें हटाने को तैयार नहीं था। कनक अपनी ऊंगलियाँ राजकुमार के बालों में फेरने लगी। राजकुमार को ऐसा सही लग रहा था। कनक के सर में मसाज करने से राजकुमार के सर में बड़ा आराम लग रहा था। कुछ देर बाद कनक ने झुक कर राजकुमार के माथे पर अपने होंठों की छाप लगा दी।

राजकुमार के सर के ऊपर कनक के उरोज खड़े थे। वह कनक के होंठो को छुना चाहता था लेकिन उस के उरोज रास्ते में बाधा बन रहे थे। राजकुमार ने हाथ बढ़ा कर कनक का सर अपने पर झुका लिया और उस के कमल की पखड़ियों के समान कोमल होंठ चुम लिये। कनक से बैठा रहना मुश्किल हो रहा था। राजकुमार ने यह जान कर उसे अपनी बगल में लिटा लिया। अब पति-पत्नी दोनों एक-दूसरे की बगल में लेटे थे। कनक अपनी आँखों में पति की पुरी छवि समा लेना चाहती थी। राजकुमार भी अपनी अप्सरा को देख रहा था। उस ने आज से पहले कनक को ध्यान से देखा ही नहीं था। राजकुमार ने कनक को अपने से सटा लिया। कनक पति से लता की तरह लिपट गयी। वह पति की सुगंध अपने में समा लेना चाहती थी।

राजकुमार और कनक दोनों एक-दूसरे को चुमने लगे। दोनों प्रेमी अपने मन की प्यास को बुझाने में लग गये। अब दोनों के मन में कोई संकोच नही था। जब दोनों की साँस फुल गयी तब दोनों अलग हुये। कनक ने पहली बार पति के प्यार को पाया था। वह अपने जीवन को तृप्त मान रही थी। राजकुमार ने कनक के शरीर को सहलाना शुरु कर दिया। उस के हाथ कनक की पीठ पर फिरने लगे। पीठ से नीचे की तरफ कुल्हों पर पहुँच गये। कनक के शरीर में इस से विद्युत की तरंग दौडने लग गयी थी। पति के हाथ उस की गहराई में चला गया था। साड़ी के कारण हाथ ज्यादा दूर नहीं जा पा रहा था। कुछ देर तक ऐसे ही चलता रहा, राजकुमार के हाथ साड़ी के ऊपर से कनक के बदन को सहलाते रहा। राजकुमार को कनक की साड़ी अब अवरोध लग रही थी।

राजकुमार ने कनक की लाल साड़ी उतार कर बिस्तर पर रख दी और कनक को बिस्तर पर बिठा दिया और स्वंय भी उस के साथ बैठ गया। अपना हाथ बढ़ा कर कनक को अपने समीप कर लिया और उस के बालों से खेलने लग गया। उसे समझ नहीं आ रहा था कि इस रुपवती को कैसे प्यार करे। स्वर्ग से उतरी अप्सरा के समान रुपवती कनक उस की प्रेयसी और पत्नी दोनों थी। कनक ने अपने पति के मन की बात समझ ली और पति को लेटने के लिये कहा । राज कुमार जब लेट गया तो कनक भी उस की बगल में लेट दोनों कुछ क्षण तक निश्चल से पड़े रहे फिर दोनों एक साथ एक दूसरे की तरफ मुड़ गये। इस पर दोनों की हँसी निकल गयी। कनक ने बात अपने हाथ में लेकर कहा कि कल आप को जाना है फिर कब आयेगे तो राजकुमार बोला कि चार-पांच दिन में माँ से मिल कर वापिस आ जाऊँगा। यह जान कर कनक के मन को चैन मिला। तभी राजकुमार ने कनक के वक्षस्थल पर हाथ लगा कर कहा कि कहो तो आगे चले? कनक बोली कि मैंने तो अपने आप को आप को समर्पित कर दिया है अब आप जैसा सही समझे।

राजकुमार ने पत्नी के कसे उरोजों को हाथ से दबाया तो पता चला कि यौवन उन में भरा पड़ा था। इस कारण से उस के अंदर भी उर्जा सी भर गयी। अब सनातन खेल शुरु होने को था। जो ना जाने कब से पति-पत्नि के बीच होता आया है। आज इन दोनों का पहला दिन था इस लिये कुछ हिचक थी। कनक ने राजकुमार के छाती मे अपना सर छुपा लिया और उस की बनियान के ऊपर से ही उसे चुमने लगी। राजकुमार से अब रहा नही जा रहा था। उस ने कनक के ब्लाउज को उतारने की कोशिश की लेकिन उतार नही सका। हँस कर कनक ने ही उसे उतार कर फैंक दिया। अब वह ऊपर से निवस्त्र थी। कमरे में धीमा प्रकाश था राजकुमार की छाती में कनक के प्रस्तर के सामान कठोर उरोज और कुँचाग चुभ रहे थे। उस ने बनियान उतार दी। वह उन का स्पर्श अपने शरीर पर करना चाहता था।

उस ने मुँह झुका कर एक कुँचाग्र को अपने होंठो में लेकर चुसा। कनक आहहहह उहहह करने लग गयी। इस से उस की उत्तेजना और बढ़ गयी उसने दूसरें उरोज को पुरा निगलने का प्रयास किया लेकिन कठोर उरोज आधा ही मुँह में आ पाया। कनक सिसकने लगी। उस के हाथ राजकुमार की पीठ पर कस गये और उसके नाखुन उस के माँस में गढ़ गये। इस से राजकुमार को तीव्र पीड़ा का आभास तो हुआ लेकिन यह पीड़ा उसे मीठी लगी। कनक से अपने को उस के हवाले कर दिया था। वह दोनों उरोजों का रस पीने के बाद उस की पतली कमर पर चुम्बन ले रहा था। उस के बाद उस की नाभी को चुम कर नीचे चलने लगा लेकिन पेटीकोट ने बाधा उत्पन्न कर दी। उस से पेटीकोट का नाड़ा खोल कर उसे धीला कर दिया।

उस के होंठ नाभी के नीचे की बालों की हल्की रेखा का पीछा करते हुये नीचे उतर गये। हाथों ने पेटीकोट की नीचे खिसका दिया। नीचे जाँघों के मध्य जा कर वह ठहर गया। वहाँ अजीब सी सुग्धित गन्ध उस के नथुनों में समा रही थी। वह इस का परिचित नही था। लेकिन उस की मादकता उस पर हावी हो रही थी। अपनी कुँवारी पत्नी की योनि का स्वाद लेने का मन उस का था। उस के होंठों ने उभरी हुई योनि का चुम्बन लिया और जीभ से उसे नीचे से ऊपर की तरफ चाटा। जीभ को कड़वा और नमकीन का स्वाद मिला। योनि के फलक बहुत कसे थे उस के भीतर उस की जिव्हा नहीं घुस पायी।

राजकुमार बिस्तर पर बैठ गया और उसने कनक के पेटीकोट को उस के पंजों से निकाल कर एक तरफ रख दिया फिर उस ने कनक की केले के तने के समान जाँघों को चुम कर पिंडलियों को चुमा और उस के फुलों के समान कोमल पंजों की हर ऊंगली को अपने मुँह में ले कर उस को चुमा। इस के बाद कनक को पेट के बल करके राजकुमार उस के पंजों से चुमता हुँआ उस की ऊँचाइयों तक पहुँच गया उन की मांसलता को दांतों से चखता हूआ वह कमर पर रीड़ की हड्डी को जीभ से चाटता हुआ उस की गरदन पर चुम्बन देने लगा। इस के कारण कनक के सारे शरीर में विद्युत की चमक सी दौड़ रही थी। राजकुमार ने उसे पलटा और उस के मुँह को चुम कर उस की गरदन पर होंठों की छाप लगा दी। उस ने अपनी प्रेयसी के सारे शरीर का रसास्वादनकर लिया था। अब वह उसे भोगना चाहता था।

राजकुमार का भी यह पहला संभोग था थोड़ा सा वह भी डरा सा तो था लेकिन पुरषोचित व्यवहार के कारण गम्भीर था। कनक का यौवन उसे भोगने के लिये ललचा रहा था। दोनों के शरीर में काम के बाण अपना काम कर चुके थे। काम की ज्वाला प्रज्वलित हो चुकी थी। उस में अब बस आहुति देने की देर थी। वह कनक की भरी हुई जाँघों के मध्य बैठने लगा तो उसे घ्यान आया कि वह तो धोती पहने था। उस का लिंग तनाव के कारण सीधा खड़ा होकर धोती से बाहर झाँक रहा था। उस ने धोती उतार का रख दी। वह कनक की जाँघों के बीच बैठ गया और उन्हे हाथ से दूर किया। कनक से शर्म के कारण अपनी आँखें बंद कर रखी थी। लिंग योनि से टकरा रहा था। राजकुमार ने योनि के अंदर लिंग को डालने के लिये प्रयास किया तो योनि के कसाब के कारण सफल नहीं हुआ उस ने लिंग को हाथ से पकड़ कर योनि के मुँह पर रख कर दबाव डाला तो लिंग का मुँख योनि में थोड़ा सा घुस गया। कनक होने वाले दर्द को रोकने के लिये अपने ऊपर के होंठ को नीचे के होंठ से दबा रही थी।

राजकुमार को पता था कि पहली बार में प्रवेश कठिनता से होगा। लेकिन प्रवेश करना तो था ही। उस ने लिंग पर हाथ लगा कर जोर से प्रहार किया इस बार लिंग चौथाई लम्बाई तक योनि में घुस गया। कनक दर्द को सहन कर रही थी। दर्द के कारण वह अपनी गरदन इधर-उधर पटक रही थी। तीसरी बार राजकुमार ने प्रहार किया तो लिंग जड़ तक योनि में समा गया। योनि में बहुत कसाव था। गर्मी भी बहुत थी। लिंग योनि में मथा सा जा रहा था। कनक से दर्द सहन नहीं हुआ तो उस की जीख निकलने ही वाली थी कि राजकुमार के होंठों ने उस के होठों को ढ़क लिया। कुछ देर तक राजकुमार इसी अवस्था में कनक के उरोजों को सहलाते रहे। ऐसा करने से कनक को अपने दर्द में कुछ आराम मिला।

इस के बाद जब कनक ने उसकी पीठ पर हाथ तो फेरा तो वह आगे के लिये तैयार हो गया। उस ने अपने कुल्हों से धीरे-धीरे धक्कें लगाने शुरु कर दिये। लिंग को आधा बाहर निकाला और फिर अंदर डाल दिया। अंदर के घर्षण के कारण लिंग को अंदर बाहर करना कठिन हो रहा था लेकिन धीरे-धीरे अंदर बाहर होना आसान हो गया। अब कनक के कुल्हें भी नीचे से उस के कुल्हों का साथ लेने लगे। दोनों अपने अंदर लगी काम की आग का शमन करने लगे। इस शमन में जो उर्जा सर्जित हो रही थी वह उन दोनों के शरीर को जला रही थी। उस की जलन से बचने का कोई साधन नहीं था। कनक का दर्द भी शायद कम होने लगा था। वह अब संभोग का आनंद लेने लग गयी थी। प्रथम मिलन का दोनों आनंद उठा रहे थे। कुछ देर तक राजकुमार संभोग में लगा रहा फिर जब थक सा गया तो कनक के ऊपर से उठ कर उस की बगल में लेट गया।

आग अभी बुझी नहीं थी। कुछ देर बाद वह फिर कनक के ऊपर आ कर उस में प्रवेश कर गया। इस बार कनक ने दर्द नहीं दर्शाया। राजकुमार जोर-जोर से धक्कें लगाते रहा। कुछ देर बाद उस की आँखों के सामने तारे झिलमिला गये और वह कनक के ऊपर लेट गया। कुछ क्षण बाद जब उसे चेतना आयी तो वह कनक की बगल में लेट गया। दोनों की साँसें धोकनी की मान्निद चल रही थी। इस कारण दोनों बोलने में असमर्थ थे। जब समर्थ हुये तो कनक ने कहा कि तुम ने तो मेरी जान ही ले ली थी। राजकुमार कुछ बोला नही। कनक को पता था कि प्रथम मिलन में दर्द बहुत होगा लेकिन वह अपने प्रिय के मुँह से मीठे शब्द सुनना चाहती थी। राजकुमार बोला कि ज्यादा बल प्रयोग के लिये क्षमा चाहता हुँ लेकिन प्रथम मिलन होने के कारण मैं भी तुम्हारी तरह ही अनाड़ी हुँ। कनक यह सुन कर समझ गयी कि उसका पति उसकी कितनी चिन्ता करता है। गम्भीरता उसका आवरण है। उस के नीचे तो सह्रदयता भरी हूई है।

कनक बोली कि अब तो तुम को सारी उम्र मेरी शिकायते सुननी पड़ेगी। राजकुमार ने कनक को अपने आलिंगन में ले लिया और बोला कि मेरे पास इस के लिये समय ही समय है। कनक यह सुन कर प्रसन्न हो गयी। उस की सारी वेदना जाती रही। दोनों के मध्य की दीवार गिर गयी थी। प्रेम ने अपनी जड़े जमा ली थी अब वह ही लगाम अपने हाथ में रख रहा था।

पहला मिलन कुछ अटपटा सा था। दोनों का मन नहीं भरा था। कुछ देर बाद दोनों फिर प्रेम करने लग गये। शरीर में काम की आग फिर भड़क गयी। लिंग फिर से तन कर खड़ा हो गया था। कनक की योनि में जब लिंग घुसा तो उसे ज्यादा नमी मिली। घर्षण कम था लेकिन अंदर योनि के मांसपेशियों ने लिंग को पुरी तरह से मथ कर रख दिया। पहले कनक स्खलित हुई और उस ने अपने पांवों से राजकुमार की कमर को जकड़ लिया। कमरे में फच फच की आवाज भर गयी। कुछ देर बाद राजकुमार भी स्खलित हो गया। उस के लिंग पर आग सी लगी हुई थी। लेकिन कुछ देर बाद लिंग सिकुड़ कर कनक की योनि से बाहर निकल गया। नीचे की चद्दर गिली हो गयी थी लेकिन दोनों को इस की चिन्ता नहीं थी। दोनों एक दूसरे से लिपट कर सो गये।

सुबह कनक उठ गयी। उसे पता था कि राजकुमार को घर जाना था उस ने राजकुमार को झकझौर कर उठाया तो राजकुमार उठ कर बैठ गया। कनक ने अपने कपड़े पहन लिये थे। राजकुमार को धोती पहनने को दी। राजकुमार बिस्तर से उतर गया। तब कनक ने देखा कि चद्दर पर बहुत बड़ा खुन का दाग लगा था। राजकुमार की निगाह भी उस पर पड़ी। कनक बोली कि दीदी ने कहा था कि इस चद्दर को धोना नहीं है संभाल कर रख लेना है। राजकुमार ने सहमति में सिर हिला दिया। कनक ने सारे कमरे को घ्यान से देखा और संतुष्ट होने पर घंटी बजा कर नौकर को बुला लिया। नौकर के आने पर उसे राजकुमार के नहाने का इंतजाम करने को कहा और खुद नहाने चली गयी।

कनक के बाद राजकुमार नहा कर आ गया। कनक ने पुछा कि जलपान करना है तो उस ने हाँ में सर हिला दिया। नीचे नौकर गाड़ी निकाल कर खड़ा था। राजकुमार जलपान करने के बाद चलने के लिऐ तैयार हो गया। राजकुमार कनक से विदा लेकर गाड़ी मे सवार हो गया। कनक अपनी मंजिल से राजकुमार को जाते हुये देखती रही।

आज उस के मन की अभिलाषा पुर्ण हुयी थी। वह जानती थी कि इस में प्रभु की कृपा है। वह पूजा करने के तैयारी करने लग गयी।

**** समाप्त ****

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