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Click hereमहारानी देवरानी
अपडेट 47
महल में या मन में घुसपैठ
देवरानी अपनी जिभ निकल कर बलदेव के होठ को पकड़कर के चुसने लगती है।
" गल्लप्पप्पप्प गल्पपपपपप! उम्म्म्हहा! गैलप्पप्पप्प! अम्म्म्म्म्म!
बलदेव भी प्रतिक्रिया में उसका साथ देता है।
"आआह माँ!"
गैलप्पप्प! उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म! गैलप्पप्पप्प! गैलप्पप्प! आह! उम्म्म्म्म्म्म्म्म्म!
बलदेव और देवरानी खूब एक दूसरे को चूसते हैं।
देवरानी उसके लंड के पानी को एक अंदाज़ से अपने होठों से छुआ कर चाट लेती है।
बलदेव उठ कर अपनी माँ को गले से लगा लेता है।
"देवरानी मेरी रानी!"
"बलदेव मेरे प्रेमी!"
"तुम रति से कम नहीं मेरी रानी!"
"और तुम कामदेव हो!"
रात के 2 बज रहे थे देवरानी या बलदेव गले में गले डाले आहे भर रहे थे, पर कोई और था जो उठ गया था।
वो था राजपाल जिसे अपने राज्य पर हमले का डर रहता था। आज भी वह जग रहा था तभी उसे बाहर किसी के दबे पांव चलने की आवाज आती है।
राजपाल; (मन में) ये इतनी रात को बाहर दबे पाँव चलने वाला कौन है अगर कोई घर का होता तो उसको यू चोरो की चाल चलने की क्या ज़रूरत थी।
राजपाल के मन में शंका होती है पर तभी वह आवाज बंद हो जाती है।
इधर बलदेव के बाहो में देवरानी लहरा रही थी।
बलदेव: कैसा लगा मेरी रानी को मेरा पानी?
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देवरानी; चल हट! नटखट!
देवरानी अपने होठो पर हल्के से बलदेव के लैंड के पानी को चाटते ते हुए और खुश होते हुए बोली।
बलदेव: मेरी जान, मेरी रानी! आओ मेरे रूह में समा जाओ!
देवरानी: मैं भी तुम्हारे जिस्म में नहीं, तुम्हारी रूह तक अपना नाम लिख देना चाहती हूँ मेरे प्रेमी पर...!
बलदेव: पर क्या माँ?
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देवरानी: थोड़ा धैर्य रखो! फल मीठा मिलेगा!
बलदेव: कितना सब्र तो किया हुआ है।
देवरानी: थोड़ा और कर लो और अब जाओ अपने कक्ष में आराम करो। सुबह अपने काम पर जाओ।
बलदेव: पर मेरा तुम्हे छोड़ कर जाने का दिल नहीं करता।
देवरानी: तुम दो दिन से दिन रात में यही हो। सीमा पार भी नहीं जा रहे, सबका शक बढ़ता जा रहा है। मेरे युवराज!
बलदेव थोड़ा गुस्सा होते हुए।
"तो बढ़ने दो! मेरी जान में इन सब से नहीं डरता।"
देवरानी: बात को समझो सही समय पर सब कुछ मिलता है पर उसकी प्रतीक्षा मनुष्य को करनी चाहिए।
बलदेव: माँ! आपका जितना धैर्य मैंने नहीं कही नहीं देखा। पिछले 18 वर्ष से तो आप हर सुख से वंचित हो फिर आपने अपने धैर्य को नहीं खोया है।
देवरानी: उसी धैर्य का वह परिनाम है कि मुझे इतना सुंदर या बलिष्ठ प्रेमी मिला है तुम्हारे रूप में।
ये सुन कर बलदेव शर्मा जाता है।
बलदेव; माँ! दिन बा दिन तुमसे मेरा प्रेम बढ़ता ही जा रहा है।
देवरानी: बस करो!
और बलदेव के माथे पर चूम लेती है।
"जाओ बलदेव अपने कक्ष में।"
"तुम्हारे चेहरे से नज़र नहीं हटती। माँ!"
"जाओ तुम्हारी कक्ष में मेरे चित्र को देखते रहना। पर यहाँ पर ऐसे ज्यादा समय रहना खतरे से खाली नहीं है।"
देवरानी; (मन में) मुझे माफ़ कर दो मेरे पिया। मैं तड़पा रही हूँ तुमको!
बलदेव जाने लगता है तभी देवरानी उसे रोक कर।
"ओ मेरे बलमा! इतनी रात में मेरे कक्ष से जाओगे और किसी ने देख लिया तो क्या समझेगा?"
"यही समझेगा देवरानी! की एक प्रेमी अपनी प्रेमिका को प्यार कर के आ रहा है।"
"पर तुम्हारी दादी जिसका शक हो गया है वह तो समझेगी के...!"
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"अरी माँ यही समझेगी के ना मैं तुम्हारे साथ सो कर आ रहा हूँ।"
देवरानी ये सुन कर लज्जा जाती है और अपना सारा झुक लेती है और अपने पैर की उंगली से जमीन खोदती है।
"बेटा अगर लोग ये समझेंगे कि आधी रात बलदेव अपनी माँ के साथ सो कर आ रहा है तो सब हमारे दुश्मन हो जायेंगे।"
"सारे दुश्मनों को मैं काट दूंगा पर मैं अपनी माँ को अपने साथ ले कर सोना बंद नहीं करूंगा" और मुस्कुराता है।
"बड़ा आया! ये लो चादर ओढ़ लो ठंड भी है और इसमें कोई देख नहीं पाएगा।"
बलदेव उसके हाथ से चादर ले लेता है फिर उसे ओढ़ लेता है और अपने मुँह को हल्का-सा खोल देता है। देखने भर के लिए।
"वैसे माँ तुम्हारे साथ सोने से ज़रा भी ठंड नहीं लग रही थी।"
देवरानी बलदेव को जल्दबाजी में पकड़ कर दरवाजे से बाहर ढकेलती है। बलदेव बाहर निकल जाता है और देवरानी दरवाजा बंद करती है।
बलदेव दबे पाव सीढियो की तरफ जाने लगता है।
इधर जगा हुआ राजपाल को फिर से वही दबे हुए चोर कदमों की आवाज सुनता है और वह उत्सुक्त हो कर अपने बगल में तलवार लगाए बाहर निकलता है।
जैसे वह बहार आता है उसे हल्का अँधेरे में कोई चादर ओढ़े देवरानी की कक्षा से कोई सीढ़ियों की तरफ जाता हुआ दिखता है।
राजपाल; कौन है वहाँ?
और अपनी तलवार खेंच कर निकल कर आदेश देता है।
राजपाल; रूक जाओ वही।
बलदेव ऐसी अवस्था में पकड़े जाने से रुक जाता है और राजपाल अपनी तलवार को लिए बलदेव के करीब आने लगता है।
बलदेव की पीठ की तरफ से आता राजपाल तलवार बलदेव की पीठ के पास ले जा रहा था।
"कौन हो बहुरूपिए"?
बलदेव को राजपाल की चाल की आहट अब सुनाई नहीं देती। वह बिना पीछे मुड़े, मौका देख कर भागने लगता है।
राजपाल: सैनिको होशियार! घुसपैठिया!
राजपाल ज़ोर से चिल्लाता है।
महल में चारो ओर से सैनिक जग कर अपने तलवारो को निकाल कर इधर उधर देखने लगते हैं।
बलदेव मरता क्या न करता झट से सीढ़ी से चढ़ कर ऊपर अपने कक्ष की तरफ जाता है और उसका पीछा करते हुए राजपाल जो कि उतनी फुर्ती से सीढिया चढ़ नहीं पाता।
बलदेव ऊपर जा कर अपनी कक्ष के बगल में एक छोटा कक्ष था, जिसमें कोई नहीं रहता था, सिर्फ पुराना सामान राखे उसमें घुस जाता है।
राजपाल: बलदेव उठो महल में घुसपैठ हुई है। उठो बलदेव...सेनापति!
बलदेव ये सुन कर मुस्कुराता है और कक्ष की खिड़की के पास जा कर अपना चादर वही छोड़ देता है और खुद अपने कक्ष की खिड़की में छलांग लगाता है।
राजपाल दौड़ता हुआ सामान वाले कमरे में घुसता है और उसके पीछे सेनापति और बहार से आए कुछ सैनिक घुसते हैं, तो वह लोग देखते हैं खिड़की खुली हुई है और वहाँ पर एक चादर गिरी हुई है।
राजपाल चादर उठा कर!
"सेनापति यहाँ से कूद गया वह नीचे सैनिकों को ले कर जाओ उसे ढूढो और पकड़ो! वह राष्ट्र की सीमा को पार न कर सके। ।"
सेनापति: जी महाराज कुछ दिनो पहले भी ऐसे ही महल में एक घुसपैठ हुई थी। जरूर कोई हमारे खिलाफ षड्यंत्र कर रहा है।
बलदेव अपनी कक्ष में जा कर अपने नंगे जिस्म पर कुर्ता पहनता है और बाहर निकलता है।
"पिता जी कहा हो आप?"
बलदेव राजपाल या सैनिको की आवाज सुन कर उनकी तरफ जाने लगता है।
सेनापति: महाराज हम चलते हैं और वह लोग भी उसी कक्ष की खिड़की से कूद जाते हैं।
बलदेव उन सबको देखता रहता हैं।
फिर बलदेव अपने पिता के पास पहुँच कर।
"क्या हुआ पिता जी इतनी रात गए, महल इतना शोर क्यों मचा हुआ में।"
"बेटा तुम अब आ रहे हो, महल में घुसपैठ हुई है।"
"पिता जी मैं नींद में था। मुझे क्षमा करे।"
"वो भाग गया बलदेव और ये चादर छोड़ गया। अगर तुम सही समय पर उठ जाते तो वह पकड़ा जाता।"
जी हाँ पिता जी शायद वह पकड़ा जाता, पर घुसपैठिया शातिर होते हैं। "
"चलो चलो बलदेव!"
नीचे सब के सब जग गए थे। जीविका सृष्टि और कमला भी सीढ़ियों से नीचे उतरते हुए दोनों बाप बेटे को सब देख रहे थे।
"बेटा बलदेव एक बात याद रखना एक राजा कभी रात में चेन से नहीं सोता। बल्कि अपनी प्रजा की रखवाली करता है।"
जीविका; अरे! क्या हुआ राजपाल इतना शोर क्यों मचाया हुआ है?
राजपाल और बलदेव अपने परिवार के पास आते हैं।
राजपाल; माँ, जासूसी करने महल में कोई घुसपैठिया आया था।
जीविका: भगवान भला करे तुम अकेले ही उसके पीछे दौड़ जाते हो कम से कम सैनिको को तो साथ लेते।
राजपाल: बस वह पकड़ा जाता अगर बलदेव सही समय पर उठ जाता।
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तभी वहा पर देवरानी चल कर आती है और ये बात सुन कर मन में!
"तू राजपाल मर्द के नाम पर कलंक है। तेरी पत्नी के दिल में तुम्हारे पुत्र बलदेव ने घुसपैठ कर ली तो तुम पकड़ नहीं सके तुम महल में हुई घुसपैठ को क्या पकड़ पाओगे?"
सब देवरानी को देखते हैं जो चलते हुए आ रही थी।
"क्या हुआ महाराज?" "क्या हुआ बलदेव?"
राजपाल: अभी आ रही हो! तुम देवरानी। आओ!
देवरानी: जी महाराज!
राजपाल; तुम बड़ी भोली हो देवरानी! ऐसा दृश्य होने का मतलब है कि महल में घुसपैठ हुई है।
देवरानी: अरे ऐसा है महाराज! लेकिन घुसपैठ हुई आपके महल में, तो आप ने पकड़ा क्यू नहीं, कुछ चोरी तो नहीं कर लिया?
देवरानी भोली बनती हुई कहती है।
बलदेव देवरानी को देख मन में ("ये माँ बड़ी तेज़ है इतनी जल्दी वस्त्र बदल लिए, साडी पहन ली और आ कर सती सावित्री बन रही है।")
राजपाल; तुम सही में भोली हो ऐसे घुसपैठिये जासूसी करने आते हैं, किसी भी महल में। ये चोरी नहीं करते।
देवरानी; (मन में) राजपाल में भोली हुआ करती थी पर अब नहीं रही और बलदेव ने घुसपैठ कर के मेरा दिल चुरा लिया है। पर तुमसे हमसे क्या?
देवरानी; अच्छा महाराज मुझे नहीं पता था।
सृष्टि: इसे कहाँ समझ रहे हो महाराज! ये सब समझने के लिए दिमाग होना चाहिए।
राजपाल; और ये चादर छोड़ के भाग गया घुसपैठिया।
सबकी नज़र उस चादर पर जाती है।
जीविका: (मन में) ये चादर तो जानी पहचानी लग रही है, कहीं मैं जो सोच रही हूँ वह सही तो नहीं बलदेव...?
जीविका का तेज दिमाग भांप कर तेजी से दौड़ने लगता है।
सृष्टि: ये चादर तो मैंने कहीं तो पहले भी देखी है। महाराज को बताऊंगी।
राजपाल: जाओ अब सब! अपने-अपने कक्ष में जा कर आराम करो! अभी इतनी रात में कोई बहस नहीं चाहता और हाँ कमला आज तुम गई नहीं अपने घर?
कमला: वह महाराज मैं जा रही थी पर!
देवरानी: वह मैंने ही इसे रोक लीया था क्योंकि मेरे कमर में दर्द था।
देवरानी: (मन मैं) ये कमला का रोक के क्या फ़ायदा हुआ। कामिनी सो गई थी जिसकी वजह से ये सब हुआ। अगर पहले सचेत कर देती तो?
जीविका; (मन में) लगता है कमर तोड़ के पेलवा रही है रंडी! जो कमर की मालिश करवाती रहती है।
सब लोग अपने-अपने कक्ष में जाने लगते हैं।
देवरानी: सासु माँ चलो! मैं छोड़ देती हूँ आपको।
जीविका मैं बैसाखी के सहारे चली जाउंगी।
राजपाल: माँ अगर वह मदद करना चाहती है तो उसके साथ चली जाओ ना।
जीविका: मैं अभी इतनी भी बेबस नहीं हुई हूँ।
और देवरानी के ओर गुस्से से देखती है।
थोड़े देर में सब एक-एक कर के वापस सोने चले जाते हैं।
राजपाल सोचते हुए अपनी कक्षा में जा रहा था।
"ये देवरानी के कक्ष के पास से ही घुसपैठिये ने भागना शुरू किया था।"
वो कुछ सोच कर देवरानी के कक्ष की ओर जाता है।
देवरानी का दरवाजा खटखटाता है।
"अरे महाराज आप!"
देवरानी (मन में) ; हे भगवान! ये इतनी रात में यहाँ।! कहीं इसका कुछ गलत इरादा तो नहीं, कहीं इसका पति प्रेम तो नहीं जग गया। "
"क्या हुआ महाराज कुछ काम था?"
"देवरानी क्या दरवाजे पर ही रहु? अंदर तो आने दो मुझे।"
"ओह्ह! हा आइये ना महाराज!"
राजपाल आकर कक्ष के चारो ओर देखता है।
राजपाल: देवरानी क्या तुमने घुसपैठिये के आने की या चलने की आवाज सुनी थी।
देवरानी: नहीं महाराज! मैं नींद में थी।
राजपाल (मन में) : कहीं देवरानी का किसी से चक्कर तो नहीं या यही किसी के सहारे हम पर आक्रमण तो नहीं करवा रहे हैं षड्यंत्रकारी।
देवरानी (मन में) ; बस यही तुम्हारा पति धर्म है। अपनी पत्नी पर शक करना कि वह दुश्मनी कर रही है और तुम्हारी जान लेना चाहती है। ये सब सृष्टि ने तुम्हारे दिमाग में भर दिया है।
राजपाल: ठीक है मैं जाता हूँ।
राजपाल के जते हे देवरानी फटाक से दरवाजा लगा के लम्बी-लम्बी साँस लेने लगती है।
"हे भगवान बचा लिया तूने! नहीं तो अगर राजपाल मेरे साथ कुछ ऊंच नीच करते तो मैं उन्हें रोक नहीं पाती, क्यूकी वह अब भी मेरे पति है समाज के सामने और फिर मैं बलदेव को क्या मुंह दिखाती?"
"नहीं मैं राजपाल को, अपने शरीर को छूने भी नहीं दे सकती इसपे अब सिर्फ बलदेव का हक है।"
फिर देवरानी मुस्कुराती है।
"भगवान क्या हो रहा है मुझे जब बलदेव आया औरमेरे साथ रंगरलिया मना कर गया तो मुझे संकोच नहीं हुआ पर राजपाल के आते, मैं ऐसे डरने लगी जैसे कोई गैर पुरुष आगया हो।"
"सच मैं मुझे बलदेव से प्रेम हो गया है।"
और फिर जा कर उल्टा लेट कर कामसूत्र पुस्तक उठा कर पढ़ने लगती है।
जारी रहेगी