महारानी देवरानी 048

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दाग-शक के बीज
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Part 48 of the 99 part series

Updated 04/14/2024
Created 05/10/2023
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महारानी देवरानी

अपडेट 48

दाग-शक के बीज

देवरानी: उह! बलदेव, एक दिन मुझे भी इस चित्र की तरह अपने गोद में उठाया खड़े-खड़े पेलना इस निगोड़ी बुर ने मुझे बहुत तड़पाया है...! ओह्ह! "बलदेव के लिंग का पानी कितना मज़ेदार था!"

चुत को मसलते हुए बिस्तर पर देवरानी आज की घटना को याद कर रही थी, कैसे उसे बलदेव ने रगड़ा था और उसका साथ दे कर देवरानी को आज एक अलग ही सुख का एहसास हो रहा था। आखिर में वह किसी भी तरह उस रात में सो जाती है।

बलदेव भी देवरानी पर खूब मेहनत कर अपना पानी गिरा कर हल्का हो गया था। बाप दुवारा पकड़े जाने से बचने की ख़ुशी भी थी उसे और वह चैन की नींद लेने लगता है।

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राजपाल के मन में कहीं न कहीं शक पैदा हो गया था कि इस घुसपैठ के पीछे कहीं देवरानी तो नहीं जुड़ी है और कहीं उसके देवरानी की ओर से ध्यान नहीं देने के कारण, किसी से सम्बंध तो नहीं बना लीये हैं देवरानी ने!

जीविका तो मन ही मन समझ गई थी घुसपैठ किसी अन्य ने नहीं बल्कि बलदेव ने ही की है, वह भी अपनी माँ के लिए और सृष्टि के मन में भी शंका पैदा हो गई थी, के हो ना हो ये चादर जो घुसपैठिये ने छोड़ दी थी वह देवरानी की ही है।

सुबह सब से पहले कमला उठती हैऔर घर का काम करने में लग जाती है। उसके बाद जीविका उठती है और टहलने के लिए बाग में चली जाती है। राजपाल भी सुबह जल्दी उठ जाता है और महल के बाहर टहलने लगता है।

सृष्टि स्नान घर से निकल कर आती है।

शुरुष्टि: कमला कहा हो तुम?

कमला: महारानी रसोई में हूँ।

शुरुष्टि रसोई की ओर आ कर...

"कमला मेरे कपड़े कुछ गंदे हो गए हैं थोड़ा देख लेना।"

"ठीक है महारानी मैं कर दूंगी साफ।"

कमला रसोई का काम ख़त्म कर के कपडे धोने के लिए सब जगह से कपडे इकठ्ठा करने लगती है।

कमला: हे भगवान सब उठ गये ये प्रेमी जोड़ा अब तक सो रहे है देखु ज़रा इनको।

कमला देवरानी की कक्षा में जाती है।

कमला: महरानी देवरानी हद्द हो गयी अब तक सो रही हो आप।

देवरानी एक अंगड़ाई ले कर उठती है।

"कमला कहो ना क्या बात है।"

"अब मैं क्या कहूँ महारानी उठ जाओ सुबह कब की हो गयी है।"

देवरानी उठ के बैठ जाती है।

"कमला मेरे बदन का नस-नस दुख हो रहा है।"

अपनी अधखुली आंखो से देवरानी कहती है।

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"क्यू महारानी कल रात में कुवा खुदवा ली क्या?"

"हट पागल कमला!" शर्मा कर फिर लेट जाती है।

"अब कर लो बात! कुछ भी नहीं और रोम-रोम दर्द भी है! ऐसा नहीं हो सकता, कोई बात नहीं महारानी वर्षो बाद प्रेम का खेल रही हो, शरीर को धीरे-धीरे आदत हो जाएगी।"

"चुप करो कमला! जाओ अपना काम करो!"

"ठीक है महरानी सोती रहो! सब पूजापाठ, सुबह उठ कर स्नान करना भूल गई हो!, मैं जाती हूँ कपड़े धोने, तुम्हारा कुछ है धोने के लिए तो बताओ!"

देवरानी उल्टा लेती हुई अपना मुँह तकिये से दबाये बोलती है।

"हा स्नान गृह में देखो, अलगनी पर उतरे वस्त्र है सब धो दो!"

"ठीक है महारानी!"

कमला सब वस्त्र ले कर चली जाती है महल के एक कोने में जहाँ पर कुआ था और बड़ी-सी पक्की जगह थी वहाँ पर सिर्फ कपडे धोये जाते थे वहाँ पर जाकर कमला बारी-बारी से कपडे धोने लगती है।

कमला अब जैसे ही देवरानी की एक साडी धो कर फिर से बाल्टी में हाथ डालती है तो उसके हाथ में एक छोटी धोती नुमा कपड़ा आता है जिसे देख उसके मुँह से निकलता है।

"हाय राम ये तो इतना छोटी-सी धोती है वह भी रेशमी है ये महारानी कब से ऐसा वस्त्र पहनने लगी!"

"अच्छा रात का कार्यक्रम में यही धारण किया था महारानी ने!"

तभी उसके साथ का ब्लाउज भी निकलाती है बाल्टी से "ये देखो इतना छोटा-सा ब्लाउज पहना था और जिसके दूध पहाड़ जैसे हो उसे ये क्या छुपाएगा?"

अब कमला उस धोती को पकड़ के जैसे ही उस पर पानी मारने वाली थी वहाँ सामने से सृष्टि आ जाती है।

शुरुष्टि: कामला ये क्या समय व्यर्थ कर रही हो?

सृष्टि को देख कमला चौक जाती है पर संभाल कर बोलती है।

"क्या हुआ महारानी?"

"मैंने कहा था तुम्हें मेरा कपड़ा धोने के लिए पूरे राज्यके वस्त्र धोने के लिए तुम्हे नहीं बोला था।"

"ये किसके वस्त्र धो रही हो?"

"महारानी देवरानी का है ये।"

सृष्टि (मन में: ये पहनने से अच्छा है कि नग्न ही रह ले देवरानी।)

तभी सृष्टि की पैनी नजर देवरानी की उस धोती पर पड़ती जहाँ पर कुछ सफेद दाग लगा था।

सृष्टि: कामला ये क्या लगा कर धो रही हो इसको?

कमला: कुछ नहीं महारानी।

सृष्टि अपनी उंगली दिखा कर पूछती है।

"तो वह क्या है सफेद-सा जो वस्त्र पर चिपका हुआ है?"

कमला भी आचार्य चकित हो कर देखती है तो पाती है कुछ गाढ़ा-सा पदार्थ चिपका हुआ है देवरानी के कपडे पर!

"ये क्या लग गया अब!" कमला उसपर एक उंगली लगा कर घिसती है पर वह कड़ा हो गया था और अब ज़ोर लगाने से वह और फेल जाता है और फिर कमला की उंगली में सबसे चिपक जाता है।

शुरुष्टि: छी ये क्या चीज है?

कमला: लिसलिसा चिपचिपा लिस्सा जैसा है।

शुरष्टि (मन में: ये लिस्सा नहीं वीर्य है और इसके गाढ़ेपन से लग रहा है कि ये किसी पुरुष का है अगर देवरानी का होता तो उसके सामने की तरफ लगा होता पर ये पीछे लगा हुआ है।)

कमला: (मन में) ये देवरानी भी ना पता नहीं क्या लगा लिया? कहीं ये वीर्य तो नहीं पर अब सृष्टि को क्या बोलू!

कमला: महारानी सृष्टि वह कपड़ा मैंने सब कपडो के नीचे रखा था, सब वस्त्र इकठा करने के लिए तो कुछ लग गया होगा।

सृष्टि: अच्छा-अच्छा ठीक है। (मन में: देवरानी ये वस्त्र तो ना रात में पेहनी थी और ना ही कल तो ये गंदा कब हुआ और देवरानी ने इसे पेहना कब? कहीं इसके तार रात हुए घुसपैठ से तो नहीं मिलते...)

शुरष्टि: अच्छा कमला देवरानी अभी तक उठी नहीं क्या हुआ?

कमला: हाँ उनके बदन में थोड़ा दर्द है।

सृष्टि अंदर ही अंदर एक मुस्कान देती है और (मन मैं "अब मैं सब समझी अगर जो मैं सोच रही हूँ वह सही निकला तो मेरी प्यारी देवरानी तुम्हारे प्राण लेने का सही समय आ गया है।")

इधर देवरानी उठ कर स्नान घर में जाती है तो उसे अचानक कुछ याद आता है वह झट से बाहर जा कर कक्ष में देखती है फिर आकर अंदर ढूँढने लगती है।

"हे भगवान कमला भी ना...मेरा वह वस्त्र भी ले गई। मैं तो भूल गई थी उस पर वह दाग भी था बलदेव के लंड के पानी का।"

"किसी ने देख लिया तो? अब क्या करू!"

फिर वह स्नान कर के आती है कपडे बदल के अपने कक्ष में रखे मंदिर के पास हाथ जोडे खड़ी होती है।

फिर दिया जलाती है मंदिर का और कुछ अगरबती जलाती है फिर मंत्रो को जाप शुरू कर देती है कुछ आधे घंटे तक पूजा करती रहती है फिर अपने मन में भगवान से प्रार्थना करने लगती है।

"भगवान मेरा कोई नहीं पर तू है, तू था और तू रहेगा। मेरे जीवन में बलदेव एक नई ख़ुशी ले कर आया है। भगवान हमारे प्यार को किसी की नज़र ना लगे।"

अपने आखे खोलती है तो सामने कमला खड़ी मुस्कुरा रही थी।

देवरानी पूजा की थाली ले कर कमला की तरफ से दिया और निकलते धुवे को कमला की तरफ हाथ करती है और उसे अपने हाथ से प्रसाद देती है।

"धन्यवाद महारानी।"

"कमला ये लो थाली और सबको प्रसाद बांट दो!"

"महारानी मुझे थाली प्रसाद दो, बाँट ही दूँगी पर उसके पहले!"

कमला थाली ले कर पास में वही रख देती है और देवरानी का हाथ पकड़ कर बिस्तर पर बैठा कर

"महारानी आप को कुछ ऐसा धुलवाना था जो आप सब से छुपा कर पहनती हो तो मैं यही धो देती।"

"कमला मैं समझ रही हूँ तुम क्या कह रही हो। मैं नींद में थी दिमाग से वह उतर गया था। मुझे चिंता लग रही थी की..."

"लग नहीं महारानी गड़बड़ हो गई है।"

"कैसे? कामला क्या हुआ है? बताओ!"

"महारानी वह आपकी धोती पर लगे आप के प्रेमी के पानी का दाग सृष्टि ने देख लिया है।"

"उफ़ अब क्या करूँ मैं?"

देवरानी परेशान हो कर बोली।

"हाँ वह तो शातिर है, उसे मैं आसानी से बेवकूफ भी नहीं बना सकती थी। मुझे लगता है कि वह समझ गई कि किसी पुरुष का वीर्य है।"

"हे भगवान कमला! कही वह ये बात महाराज को ना बता दे?"

"हाँ वह रात की बात भी समझ चुकी होगी। डरो मत महारानी आज नहीं तो कल पता तो चलना ही है।"

"हम्म वह तो है, मैं नहीं डरती किसी से! ज्यादा से ज्यादा मेरी जान ले लेंगे!"

"अरे छोड़ो उसे! अभी शक वह पैदा हुआ है ना। उसके पास क्या सबूत है?"

"कमला तुम तो बस चुप रहो, सब तुम्हारे कारण से हो रहा है। कल रात में घोड़े बेच कर सो गई थी। महाराज के आने का इशारा कर देती तो मैं बलदेव को ऐसे बाहर ना भेजती।"

"मेरा बलदेव बाल-बाल बच गया। नहीं तो पकड़ा जाता!"

"महारानी तुम ना भेजती बलदेव को बाहर, पर महाराज को अगर चलने की आवाज आ चुकी थी और वह कहीं आपका कक्ष खुलवा कर देखते और म दोनों को रंगे हाथ पकड़ लेते तो?"

"हम्म वह भी है कमला!"

"इसलिये कहती हूँ महारानी जो होता है अच्छे के लिए होता है मौज करो, डरो नहीं! मरना तो एक दिन है ही।"

"कमला तू इतना ज्ञान कहाँ से लाती है?"

"जैसा तुमने बलदेव का वीर्य अपने कपड़े पर लगा लिया वैसे ही मेरे पास ज्ञान आ गया।"

"चल हट कामिनी कहीं की। वह तो बस!"

"क्या बस महरानी!"

"महारानी तुम तो कहती हो कुछ नहीं हुआ पर तुम्हारे रोम-रोम में भी दर्द हो रहा था!"

"अरे कामिनी बस हम कोई जल्दीबाजी नहीं करना चाहते पर वह बलदेव ने जोश में आ कर पीछे से रगड़ के पानी छोड़ दिया!"

देवरानी शर्मा कर अपना मुंह फेर लेती है।

"महारानी है वह तुम्हारा पिछवाड़ा है ही ऐसा अच्छा! क्या खूब मसला बलदेव ने और महारानी इतना गाढ़ा वीर्य मैंने तो कभी नहीं देखा!"

"हम्म पता है कमला!"

(मन में: कमला अब तुम्हें क्या बताऊँ की मैंने मेरे प्यारे प्रेमी के वीर्य के अनमोल दानो को, मेरे बेटे के बीज को चखा भी है और जिसका स्वाद अब तक मेरे मुंह में है।

"क्या सोच रही हो महारानी बलदेव का ऐसा गाड़ा अमोघ वीर्य है कि किसी भी महिला को एक बच्चे नहीं दो बच्चे की माँ बना दे!"

"चुप कर कामिनी कमला! और जा प्रसाद बांट दे सबको!"

कमला: महारानी ध्यान से करना कहि बलदेव आपको ही जुड़वा बच्चे की माँ ना बना दे!

ये कह कर कमला प्रसाद की थाली ले कर जल्दबाजी में भागती है और हसती है।

देवरानी: कमला की बच्चीऔर उसके ऊपर हाथ उठाये उसके पीछे भागती है।

कमला तेजी से भाग जाती है और देवरानी ज़ोर से हस देती है और आखे बंद कर के...

"हे भगवान ये कमला भी ना।" और बलदेव द्वारा उसे गर्भआती कर देने वाली बात सोच कर उसका रोम-रोम सिहर जाता है फिर कुछ सोच कर।

"प्यार मेरा है, प्रेमी मेरा है, वह एक बच्चे से मुझे गर्भवती करे या जुड़वाँ से इससे इस कमला को क्या काम?"

उधर बलदेव भी अब उठ चुका था फिर व्यायाम कर के स्नान कर तैयार हो गया है और वैद द्वारा दिया चूरन खा लेता है उतने में कमला वहाँ आती है।

कमला: ये लो युवराज प्रसाद!

युवराज बलदेव कमला से प्रसाद ले कर श्रद्धा के साथ प्रसाद खा लेता है।

कमला: कब तक चूरन खाओगे प्रसाद खाओ।

बलदेव: कमला वह तो मैं बच गया रात में नहीं तो तुम तो मुझे मरवा ही देती।

कमला: अपनी माँ को ले कर सोना भी है और मजे भी करने है या डरते भी हो!

बलदेव: डरते तो हम अपने बाप से भी नहीं हैं!

कमला: हाँ जानती हूँ इसलिए तुमने अपनी ही माँ को पटा लिया है और आधी रात माँ के साथ मजे ले कर उसके वह कक्ष में उसीके बिस्तर पर ही सो जाते हो।

बलदेव: हाँ कमला हमें कुछ न कुछ सोचना पड़ेगा! क्यू के हम और ज्यादा दिन तक ये छुपनछुपायी का खेल इस तरह से नहीं खेल सकते!

कमला: तो आपका युवराज से महाराज बन ने का इरादा है?

बलदेव: अब तुम्हारी महारानी मेरी हुई तो महाराज तो हो गया मैं।

कमला: पर आधे हुए ही अभी क्यूकी अभी ब्याह तो किया नहीं है।

बलदेव: विवाह हाहा! उसका पता नहीं पर मेरे प्रेम में दीवानी है तुम्हारी महारानी!

कमला: चलो अब प्रसाद खा लिया और अब मैं अपना काम करने जा रही हूँ और कक्ष से बाहर जाने लगती है।

बलदेव: अरे सुनो तो ये तो बताती जाओ मेरी रानी कहा है अभी?

कमला: तैयार हो कर बैठी है तुम्हारे लिए अपनी कक्षा में और जल्दबाजी में बाहर चली जाती है।

बलदेव (मन में अब मुझे अपना असली प्रसाद खाना चाहिए जो भगवान ने सिर्फ मेरे लिए बनाया है)

जारी रहेगी

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